यद्यपि परमेश्वर मनुष्य से छिपा हुआ है, किंतु मनुष्य के लिए उसे जानने हेतु सभी चीज़ों के बीच परमेश्वर के कर्म पर्याप्त हैं

30 मई, 2020

अय्यूब ने परमेश्वर का चेहरा नहीं देखा था या परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन नहीं सुने थे, उसने व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के कार्य का अनुभव तो और भी नहीं किया था, तो भी परमेश्वर के प्रति उसका भय और उसकी परीक्षाओं के दौरान उसकी गवाही सभी लोगों द्वारा देखी जाती है, और वे परमेश्वर द्वारा प्रेम की जाती, उसे आनंदित करती, और उसके द्वारा प्रशंसित होती हैं, और लोग उनसे ईर्ष्या, और उनकी प्रशंसा करते हैं, और उससे भी अधिक, उनकी स्तुति गाते हैं। उसके जीवन के बारे में कुछ भी महान या असाधारण नहीं था : किसी भी साधारण मनुष्य के समान ही, उसने अनुल्लेखनीय जीवन जिया था, सूर्य उगने पर काम पर बाहर जाना और सूर्य अस्त होने पर विश्राम के लिए लौट आना। अंतर यह है कि अपने जीवन के अनेक अनुल्लेखनीय दशकों के दौरान, उसने परमेश्वर के मार्ग की अंतर्दृष्टि प्राप्त की थी, और परमेश्वर की महान सामर्थ्य और संप्रभुता का इस तरह अहसास किया और उसे समझ लिया था जैसा पहले कभी किसी अन्य व्यक्ति ने नहीं किया था। वह किसी साधारण मनुष्य की अपेक्षा अधिक चतुर नहीं था, उसका जीवन विशेष रूप से सुदृढ़ नहीं था, इसके अतिरिक्त, न ही उसके पास अदृश्य विशेष कौशल थे। यद्यपि जो उसके पास था वह ऐसा व्यक्तित्व था जो ईमानदार, दयालु हृदय, और खरा था, ऐसा व्यक्तित्व जो निष्पक्षता, धार्मिकता और सकारात्मक चीज़ों से प्रेम करता था—इनमें से कुछ भी बहुसंख्यक साधारण लोगों के पास नहीं है। उसने प्रेम और घृणा के बीच भेद किया, उसमें न्याय का बोध था, वह अटल और दृढ़ था, और अपने सोच-विचार के विवरणों पर सूक्ष्मता से ध्यान देता था। इस प्रकार, पृथ्वी पर अपने अनुल्लेखनीय समय के दौरान उसने वे सब असाधारण चीज़ें देखीं जो परमेश्वर ने की थीं, और उसने परमेश्वर की महानता, पवित्रता और धार्मिकता देखी, उसने मनुष्य के लिए परमेश्वर का सरोकार, अनुग्रहशीलता, और संरक्षण देखा, और उसने सर्वोच्च परमेश्वर की माननीयता और अधिकार देखा। अय्यूब क्यों इन चीज़ों को प्राप्त कर पाया था जो किसी भी साधारण मनुष्य से परे थीं, इसका पहला कारण यह था कि उसके पास शुद्ध हृदय था, और उसका हृदय परमेश्वर का था, और सृष्टिकर्ता द्वारा मार्गदर्शित होता था। दूसरा कारण था उसका अनुसरण : अवगुणरहित और पूर्ण होने का अनुसरण, और ऐसा व्यक्ति होने का अनुसरण जो स्वर्ग की इच्छा का पालन करता हो, जिसे परमेश्वर द्वारा प्रेम किया जाता हो, और जो बुराई से दूर रहता हो। अय्यूब ने परमेश्वर को देखने या परमेश्वर के वचन सुनने में असमर्थ होते हुए भी इन चीज़ों को धारण और इनका अनुसरण किया; यद्यपि उसने परमेश्वर को कभी नहीं देखा था, फिर भी वह उन उपायों को जानने लगा था जिनसे परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है; और उसने उस बुद्धि को समझ लिया था जिससे परमेश्वर ऐसा करता है। यद्यपि उसने परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन कभी नहीं सुने थे, फिर भी अय्यूब जानता था कि मनुष्य को फल देने और मनुष्य से ले लेने के सारे कर्म परमेश्वर से आते हैं। हालाँकि उसके जीवन के वर्ष किसी भी साधारण व्यक्ति के वर्षों से भिन्न नहीं थे, फिर भी उसने अपने जीवन की अनुल्लेखनीयता से सभी चीज़ों के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता के अपने ज्ञान को, या परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग के अपने अनुसरण को प्रभावित नहीं होने दिया। उसकी नज़रों में, सभी चीज़ों के विधानों में परमेश्वर के कर्म समाए थे, और परमेश्वर की संप्रभुता व्यक्ति के जीवन के किसी भी भाग में देखी जा सकती थी। उसने परमेश्वर को नहीं देखा था, परंतु वह यह अहसास कर पाता था कि परमेश्वर के कर्म हर जगह हैं, और पृथ्वी पर अपने अनुल्लेखनीय समय के दौरान, अपने जीवन के प्रत्येक कोने में वह परमेश्वर के असाधारण और चमत्कारिक कर्म देख पाता और उनका अहसास कर पाता था, और वह परमेश्वर की चमत्कारिक व्यवस्थाओं को देख सकता था। परमेश्वर की अदृश्यता और मौन ने परमेश्वर के कर्मों के अय्यूब के बोध में रुकावट नहीं डाली, न ही उन्होंने सभी चीज़ों के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता के उसके ज्ञान को प्रभावित किया। उसके दिन-प्रतिदिन के जीवन के दौरान, उसका जीवन हर चीज़ में छिपे परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं का बोध था। अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में उसने परमेश्वर के हृदय की आवाज़ और परमेश्वर के वचन सुने और समझे थे, उस परमेश्वर के जो सभी चीज़ों के बीच मौन रहकर भी अपने हृदय की आवाज़ और अपने वचन सभी चीज़ों के विधि-विधानों को शासित करने के द्वारा व्यक्त करता है। तो, तुम देखो, कि यदि लोगों के पास अय्यूब के समान ही मानवता और अनुसरण हो, तो वे अय्यूब के समान बोध और ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, और अय्यूब के समान ही सभी चीज़ों के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता की समझ और ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। परमेश्वर अय्यूब के समक्ष प्रकट नहीं हुआ था या परमेश्वर ने उससे बात नहीं की थी, किंतु अय्यूब पूर्ण, और खरा होने, तथा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में समर्थ था। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के मनुष्य के समक्ष प्रकट हुए या उससे बात किए बिना भी, सभी चीज़ों के बीच परमेश्वर के कर्म और सभी चीज़ों के ऊपर उसकी संप्रभुता मनुष्य को परमेश्वर के अस्तित्व, सामर्थ्य और अधिकार से अवगत होने के लिए पर्याप्त है, और परमेश्वर की सामर्थ्य और अधिकार मनुष्य से परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करवाने के लिए पर्याप्त हैं। चूँकि अय्यूब जैसा साधारण मनुष्य परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग अर्जित कर पाता था, इसलिए परमेश्वर का अनुसरण करने वाले प्रत्येक साधारण मनुष्य को भी ऐसा कर पाना चाहिए। हालाँकि ये शब्द तार्किक निष्कर्ष की तरह लग सकते हैं, फिर भी ये चीज़ों के विधि-विधानों की अवहेलना नहीं करते हैं। तो भी तथ्य अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहे हैं : ऐसा प्रतीत होगा कि परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना अय्यूब और केवल अय्यूब के लिए परिरक्षित नहीं है। "परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने" का उल्लेख होने पर लोग सोचते हैं कि यह केवल अय्यूब द्वारा ही किया जाना चाहिए, मानो परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग अय्यूब के नाम के साथ चस्पा हो गया था और दूसरों के साथ इसका कोई लेना-देना नहीं था। इसका कारण स्पष्ट है : चूँकि केवल अय्यूब ही ऐसा व्यक्तित्व रखता था जो ईमानदार, दयालु हृदय, और खरा था, और जो निष्पक्षता और धार्मिकता तथा उन चीज़ों से जो सकारात्मक थीं प्रेम करता था, इस प्रकार केवल अय्यूब ही परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण कर सका था। तुम सबने इसके निहितार्थ अवश्य समझ लिए होंगे—चूँकि कोई भी उस मानवता से युक्त नहीं है जो ईमानदार, दयालु हृदय, और खरी है, और जो निष्पक्षता और धार्मिकता और उससे जो सकारात्मक है प्रेम करती है, इसलिए कोई भी न परमेश्वर का भय मान सकता है और न बुराई से दूर रह सकता है, और इस प्रकार लोग कभी परमेश्वर का आनंद प्राप्त नहीं कर सकते हैं या परीक्षाओं का सामना नहीं कर सकते हैं। इसका यह भी अर्थ है कि अय्यूब के अपवाद के साथ, सभी लोग अब भी शैतान द्वारा घेरे और फुसलाए जाते हैं; वे सब शैतान द्वारा उसके दोषारोपण, आक्रमण और दुर्व्यवहार के भागी बनाए जाते हैं। वे ही हैं जिन्हें शैतान निगलने की कोशिश करता है, और वे सब स्वतंत्रता से रहित, शैतान के द्वारा बंधक बनाए गए क़ैदी हैं।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

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