परमेश्वर को लोगों का न्याय और उनकी ताड़ना क्यों करनी पड़ती है?

15 मार्च, 2021

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे।

— "वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना' से उद्धृत

मनुष्य को छुटकारा दिए जाने से पहले शैतान के बहुत-से ज़हर उसमें पहले ही डाल दिए गए थे, और हज़ारों वर्षों तक शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद मनुष्य के भीतर ऐसा स्थापित स्वभाव है, जो परमेश्वर का विरोध करता है। इसलिए, जब मनुष्य को छुटकारा दिलाया गया है, तो यह छुटकारे के उस मामले से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसमें मनुष्य को एक ऊँची कीमत पर खरीदा गया है, किंतु उसके भीतर की विषैली प्रकृति समाप्त नहीं की गई है। मनुष्य को, जो कि इतना अशुद्ध है, परमेश्वर की सेवा करने के योग्य होने से पहले एक परिवर्तन से होकर गुज़रना चाहिए। न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है। वास्तव में यह चरण विजय का और साथ ही उद्धार के कार्य का दूसरा चरण है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4)

तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अंत के दिनों में उतरेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे उतरेगा? तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में

परमेश्वर द्वारा मनुष्य की पूर्णता किन साधनों से संपन्न होती है? यह उसके धार्मिक स्वभाव द्वारा पूरी होती है। परमेश्वर के स्वभाव में मुख्यतः धार्मिकता, क्रोध, भव्यता, न्याय और शाप शामिल हैं, और वह मनुष्य को प्राथमिक रूप से न्याय द्वारा पूर्ण बनाता है। कुछ लोग नहीं समझते और पूछते हैं कि क्यों परमेश्वर केवल न्याय और शाप के द्वारा ही मनुष्य को पूर्ण बना सकता है। वे कहते हैं, "यदि परमेश्वर मनुष्य को शाप दे, तो क्या वह मर नहीं जाएगा? यदि परमेश्वर मनुष्य का न्याय करे, तो क्या वह दोषी नहीं ठहरेगा? तब वह कैसे पूर्ण बनाया जा सकता है?" ऐसे शब्द उन लोगों के होते हैं जो परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते। परमेश्वर मनुष्य की अवज्ञा को शापित करता है और वह मनुष्य के पापों का न्याय करता है। यद्यपि वह बिना किसी संवेदना के कठोरता से बोलता है, फिर भी वह उन सबको प्रकट करता है जो मनुष्य के भीतर होता है, और इन कठोर वचनों के द्वारा वह उन सब बातों को प्रकट करता है जो मूलभूत रूप से मनुष्य के भीतर होती हैं, फिर भी ऐसे न्याय द्वारा वह मनुष्य को देह के सार का गहन ज्ञान प्रदान करता है, और इस प्रकार मनुष्य परमेश्वर के समक्ष समर्पण कर देता है। मनुष्य की देह पापमय और शैतान की है, यह अवज्ञाकारी है, और परमेश्वर की ताड़ना की पात्र है। इसलिए, मनुष्य को स्वयं का ज्ञान प्रदान करने के लिए परमेश्वर के न्याय के वचनों से उसका सामना और हर प्रकार का शोधन परम आवश्यक है; केवल तभी परमेश्वर का कार्य प्रभावी हो सकता है।

परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों से यह देखा जा सकता है कि उसने मनुष्य की देह को पहले ही दोषी ठहरा दिया है। क्या ये वचन फिर शाप के वचन नहीं हैं? परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन मनुष्य के असली रंग को प्रकट करते हैं, और ऐसे प्रकाशनों द्वारा उसका न्याय किया जाता है, और जब वह देखता है कि वह परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में असमर्थ है, तो वह अपने भीतर शोक और ग्लानि अनुभव करता है, वह महसूस करता है कि वह परमेश्वर का बहुत ऋणी है, और परमेश्वर की इच्छा के लिए अपर्याप्त है। ऐसा समय भी होता है जब पवित्र आत्मा तुम्हें भीतर से अनुशासित करता है, और यह अनुशासन परमेश्वर के न्याय से आता है; ऐसा समय भी होता है जब परमेश्वर तुम्हारा तिरस्कार करता है और अपना चेहरा तुमसे छुपा लेता है, जब वह कोई ध्यान नहीं देता, और तुम्हारे भीतर कार्य नहीं करता, और तुम्हें शुद्ध करने के लिए बिना आवाज के तुम्हें ताड़ना देता है। मनुष्य में परमेश्वर का कार्य प्राथमिक रूप से अपने धार्मिक स्वभाव को स्पष्ट करने के लिए होता है। मनुष्य अंततः कैसी गवाही परमेश्वर के बारे में देता है? वह गवाही देता है कि परमेश्वर धार्मिक परमेश्वर है, उसके स्वभाव में धार्मिकता, क्रोध, ताड़ना और न्याय शामिल हैं; मनुष्य परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की गवाही देता है। परमेश्वर अपने न्याय का प्रयोग मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए करता है, वह मनुष्य से प्रेम करता रहा है और उसे बचाता रहा है—परंतु उसके प्रेम में कितना कुछ शामिल है? उसमें न्याय, भव्यता, क्रोध, और शाप है। यद्यपि आतीत में परमेश्वर ने मनुष्य को शाप दिया था, परंतु उसने मनुष्य को अथाह कुण्ड में नहीं फेंका था, बल्कि उसने उस माध्यम का प्रयोग मनुष्य के विश्वास को शुद्ध करने के लिए किया था; उसने मनुष्य को मार नहीं डाला था, बल्कि उसने मनुष्य को पूर्ण बनाने का कार्य किया था। देह का सार वह है जो शैतान का है—परमेश्वर ने इसे बिलकुल सही कहा है—परंतु परमेश्वर द्वारा कार्यान्वित वास्तविकताएँ उसके वचनों के अनुसार पूरी नहीं हुई हैं। वह तुम्हें शाप देता है ताकि तुम उससे प्रेम कर सको, ताकि तुम देह के सार को जान सको; वह तुम्हें इसलिए ताड़ना देता है कि तुम जागृत हो जाओ, तुम अपने भीतर की कमियों को जान सको और मनुष्य की संपूर्ण अयोग्यता को जान लो। इस प्रकार, परमेश्वर के शाप, उसका न्याय, और उसकी भव्यता और क्रोध—ये सब मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए हैं। वह सब जो परमेश्वर आज करता है, और अपना धार्मिक स्वभाव जिसे वह तुम लोगों के भीतर स्पष्ट करता है—यह सब मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए है। परमेश्वर का प्रेम ऐसा ही है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो

सच में, जो कार्य अब किया जा रहा है, वह लोगों से अपने पूर्वज शैतान का त्याग करवाने के लिए किया जा रहा है। वचन के द्वारा सभी न्यायों का उद्देश्य मानवजाति के भ्रष्ट स्वभाव को उजागर करना और लोगों को जीवन का सार समझने में सक्षम बनाना है। ये बार-बार के न्याय लोगों के हृदयों को बेध देते हैं। प्रत्येक न्याय सीधे उनके भाग्य से संबंधित होता है और उनके हृदयों को घायल करने के लिए होता है, ताकि वे उन सभी बातों को जाने दें और फलस्वरूप जीवन के बारे में जान जाएँ, इस गंदी दुनिया को जान जाएँ, परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को जान जाएँ, और मानवजाति को भी जान जाएँ, जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है। जितना अधिक मनुष्य इस प्रकार की ताड़ना और न्याय प्राप्त करता है, उतना ही अधिक मनुष्य का हृदय घायल किया जा सकता है और उतना ही अधिक उसकी आत्मा को जगाया जा सकता है। इन अत्यधिक भ्रष्ट और सबसे अधिक गहराई से धोखा खाए हुए लोगों की आत्माओं को जगाना इस प्रकार के न्याय का लक्ष्य है। मनुष्य के पास कोई आत्मा नहीं है, अर्थात् उसकी आत्मा बहुत पहले ही मर गई और वह नहीं जानता है कि स्वर्ग है, नहीं जानता कि परमेश्वर है, और निश्चित रूप से नहीं जानता कि वह मौत की अतल खाई में संघर्ष कर रहा है; वह संभवतः कैसे जान सकता है कि वह पृथ्वी पर इस गंदे नरक में जी रहा है? वह संभवतः कैसे जान सकता है कि उसका यह सड़ा हुआ शव शैतान की भ्रष्टता के माध्यम से मृत्यु के अधोलोक में गिर गया है? वह संभवतः कैसे जान सकता है कि पृथ्वी पर प्रत्येक चीज़ मानवजाति द्वारा बहुत पहले ही इतनी बरबाद कर दी गई है कि अब सुधारी नहीं जा सकती? और वह संभवतः कैसे जान सकता है कि आज स्रष्टा पृथ्वी पर आया है और भ्रष्ट लोगों के एक समूह की तलाश कर रहा है, जिसे वह बचा सके? मनुष्य द्वारा हर संभव शुद्धिकरण और न्याय का अनुभव करने के बाद भी, उसकी सुस्त चेतना मुश्किल से ही हिलती-डुलती है और वास्तव में लगभग प्रतिक्रियाहीन रहती है। मानवजाति कितनी पतित है! और यद्यपि इस प्रकार का न्याय आसमान से गिरने वाले क्रूर ओलों के समान है, फिर भी वह मनुष्य के लिए सर्वाधिक लाभप्रद है। यदि इस तरह से लोगों का न्याय न हो, तो कोई भी परिणाम नहीं निकलेगा और लोगों को दुःख की अतल खाई से बचाना नितांत असंभव होगा। यदि यह कार्य न हो, तो लोगों का अधोलोक से बाहर निकलना बहुत कठिन होगा, क्योंकि उनके हृदय बहुत पहले ही मर चुके हैं और उनकी आत्माओं को शैतान द्वारा बहुत पहले ही कुचल दिया गया है। पतन की गहराइयों में डूब चुके तुम लोगों को बचाने के लिए तुम्हें सख़्ती से पुकारने, तुम्हारा सख़्ती से न्याय करने की आवश्यकता है; केवल तभी तुम लोगों के जमे हुए हृदयों को जगाना संभव होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है

परमेश्वर न्याय और ताड़ना का कार्य करता है ताकि मनुष्य परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सके और उसकी गवाही दे सके। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का परमेश्वर द्वारा न्याय के बिना, संभवतः मनुष्य अपने धार्मिक स्वभाव को नहीं जान सकता था, जो कोई अपराध नहीं करता और न वह परमेश्वर के अपने पुराने ज्ञान को एक नए रूप में बदल पाता। अपनी गवाही और अपने प्रबंधन के वास्ते, परमेश्वर अपनी संपूर्णता को सार्वजनिक करता है, इस प्रकार, अपने सार्वजनिक प्रकटन के ज़रिए, मनुष्य को परमेश्वर के ज्ञान तक पहुँचने, उसको स्वभाव में रूपांतरित होने और परमेश्वर की ज़बर्दस्त गवाही देने लायक बनाता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं

अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं। सृष्टि की सभी चीज़ें उनके प्रकार के अनुसार अलग की जाएँगी और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जाएँगी। यही वह क्षण है, जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते, तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को उजागर करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जा सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंग दिखाता है, जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरे को बुरे के साथ रखा जाएगा, भले को भले के साथ, और समस्त मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार अलग किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जाएगा, ताकि बुरे को दंडित किया जा सके और अच्छे को पुरस्कृत किया जा सके, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन हो जाएँ। यह समस्त कार्य धार्मिक ताड़ना और न्याय के माध्यम से पूरा करना होगा। चूँकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर हो गई है, इसलिए केवल परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय से संयुक्त है और अंत के दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपांतरित कर सकता है और उसे पूर्ण बना सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधार्मिकों को गंभीर रूप से दंडित कर सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)

परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य का मूलभूत उद्देश्य मानवता को शुद्ध करना है और उन्हें उनके अंतिम विश्राम के लिए तैयार करना है; इस शुद्धिकरण के बिना संपूर्ण मानवता अपने प्रकार के मुताबिक़ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत नहीं की जा सकेगी, या विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होगी। यह कार्य ही मानवता के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण का कार्य ही मनुष्यों को उनकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा और केवल उसकी ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानवता के उन अवज्ञाकारी तत्वों को सामने लाएगा, और इस तरह बचाये जा सकने वालों से बचाए न जा सकने वालों को अलग करेगा, और जो बचेंगे उनसे उन्हें अलग करेगा जो नहीं बचेंगे। इस कार्य के समाप्त होने पर जिन्हें बचने की अनुमति होगी, वे सभी शुद्ध किए जाएँगे, और मानवता की उच्चतर दशा में प्रवेश करेंगे जहाँ वे पृथ्वी पर और अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का आनंद उठाएंगे; दूसरे शब्दों में, वे अपने मानवीय विश्राम का दिन शुरू करेंगे और परमेश्वर के साथ रहेंगे। जिन लोगों को रहने की अनुमति नहीं है, उनकी ताड़ना और उनका न्याय किया गया है, जिससे उनके असली रूप पूरी तरह सामने आ जाएँगे; उसके बाद वे सब के सब नष्ट कर दिए जाएँगे और शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवता में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ऐसे लोग अंतिम विश्राम की धरती पर प्रवेश करने के योग्य नहीं हैं, न ही ये उस विश्राम के दिन में प्रवेश के योग्य हैं, जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे क्योंकि वे दंड के लायक हैं और दुष्ट, अधार्मिक लोग हैं। ... बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने के परमेश्वर के अंतिम कार्य के पीछे का पूरा उद्देश्य, सभी मनुष्यों को पूरी तरह शुद्ध करना है, ताकि वह पूरी तरह पवित्र मानवता को शाश्वत विश्राम में ला सके। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है; यह उसके समस्त प्रबंधन-कार्य का अंतिम चरण है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण:

परमेश्वर को क्यों भ्रष्ट मानवजाति का न्याय और उसकी ताड़ना करनी चाहिए, और परमेश्वर द्वारा भ्रष्ट मानवजाति के न्याय और उसकी ताड़ना का अर्थ क्या है? यह सत्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें परमेश्वर के कार्य के दर्शन के बारे में सच्चाई शामिल है। अगर परमेश्वर पर मनुष्य के विश्वास में दर्शन की कमी है, तो वह जान नहीं पाएगा कि परमेश्वर में विश्वास कैसे करना है; मनुष्य परमेश्वर पर विश्वास कर भी ले, तो वह सही मार्ग का चयन नहीं कर पाएगा। परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना का भ्रष्ट मानवजाति के लिए क्या अर्थ है, इस भ्रष्ट मानवजाति के लिए जो उसका विरोध करती है और उसके साथ विश्वासघात करती है? हमें पहले स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि परमेश्वर ही सृष्टिकर्ता है। चूँकि वह सृष्टिकर्ता है, उसके पास सृष्टि पर शासन करने, उसका न्याय करने और ताड़ना देने का अधिकार है। इसके अलावा, परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक और पवित्र है। अपने स्वभाव के अनुसार, परमेश्वर उन मनुष्यों को उसकी उपस्थिति में रहने की अनुमति नहीं देता है जो उसके खिलाफ़ विरोध और विश्वासघात करते हैं। परमेश्वर गंदी और भ्रष्ट चीजों को अपनी उपस्थिति में रहने की अनुमति नहीं देता है। इसलिए, भ्रष्ट मानवजाति के प्रति परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना पूरी तरह से तर्कसंगत और उचित है, और यह सब परमेश्वर के स्वभाव से निर्धारित होता है। हम सभी जानते हैं कि परमेश्वर धर्मी है, और परमेश्वर सत्य है। परमेश्वर द्वारा प्रकट किये गए स्वभाव से हमने पहले ही देखा है कि परमेश्वर ही सत्य है। परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं। परमेश्वर ने अपने वचनों के माध्यम से आकाश और पृथ्वी और सब चीज़ों को बनाया। परमेश्वर के वचन सभी चीज़ों को बनाने में समर्थ हैं, और परमेश्वर के वचन वे सत्य हैं, जो सभी चीजों का न्याय करने में सक्षम होते हैं। अंत के दिनों में, परमेश्वर भ्रष्ट मानवजाति के न्याय और ताड़ना का कार्य कर रहा है। कुछ लोग पूछ सकते हैं: क्या परमेश्वर ने पहले न्याय का कार्य किया है? परमेश्वर ने वास्तव में न्याय और ताड़ना का बहुत कार्य किया है, केवल लोगों ने इसे देखा नहीं है। मनुष्यों के अस्तित्व में आने के पहले, शैतान ने परमेश्वर का विरोध किया और उसके साथ विश्वासघात किया, तब परमेश्वर ने शैतान का न्याय कैसे किया? परमेश्वर ने शैतान को निष्कासित कर धरती पर भेज दिया, और शैतान के साथ ही उन सभी स्वर्गदूतों को भी निष्कासित कर धरती पर भेज दिया गया जो शैतान के अनुगामी थे। परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग से निष्कासित कर पृथ्वी पर भेज दिया। क्या यह शैतान के खिलाफ़ न्याय नहीं था? यह शैतान के खिलाफ़ एक न्याय था, साथ ही साथ यह उसकी ताड़ना भी थी। इसलिए, मनुष्यों के होने से पहले, परमेश्वर ने पहले ही शैतान का न्याय किया था और उसे ताड़ना दी थी। हमारे पास बाइबल में इसकी लिखित जानकारी मौजूद है। इस मानवजाति से पहले, क्या कोई अन्य मानव या अन्य जीव हुआ करते थे? क्या उन्हें परमेश्वर से न्याय और ताड़ना मिली थी? हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि जो लोग परमेश्वर द्वारा नष्ट किये जा चुके हैं, वे वो मनुष्य थे जिन्होंने परमेश्वर के खिलाफ़ विरोध और विद्रोह किया था, और उन सभी को परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना मिली थी। इसलिए, जब से परमेश्वर ने स्वर्ग तथा पृथ्वी और सभी चीज़ों को बनाया, तब से हमेशा परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना का अस्तित्व रहा है। सभी चीज़ों पर शासन करने के सम्बन्ध में परमेश्वर के कार्य का यह एक पहलू है, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव एक ही रहता है और वह कभी नहीं बदलेगा। हम देख सकते हैं कि जब से मनुष्य अस्तित्व में आया है, उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया और शैतान का अनुसरण किया, वे सभी परमेश्वर के अभिशाप के बीच रहते थे। ऐसे कई लोग हैं जो अपने कुकर्मों की वजह से परमेश्वर की ताड़ना से मरे हैं, और कुछ तो पूरी तरह नष्ट भी हो गए थे। ऐसे कई लोग हुए हैं जिन्होंने परमेश्वर में विश्वास किया, फिर भी परमेश्वर का विरोध किया, और वे सब के सब अंत में मर गए हैं। कुछ को आध्यात्मिक क्षेत्र में दंडित किया गया था, जबकि कुछ ने अपने जीवन-काल में ही न्याय और ताड़ना को पाया है। इसलिए, मानवजाति एक निष्कर्ष पर आ गई है: "भलाई के बदले भलाई और बुराई के बदले बुराई दी जाएगी"। यह सब परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना है। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने भ्रष्ट मानवजाति को बचाने के लिए न्याय और ताड़ना का कार्य शुरू कर दिया है। परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने में, हम परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को भी स्वीकार कर रहे हैं। वे सभी लोग जो परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने में परमेश्वर के ख़िलाफ़ विद्रोह करते हैं और परमेश्वर की अवज्ञा करते हैं, उन सभी लोगों को परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना मिलती है। ज्यादातर समय, लोग परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना के अधीन हैं, और कभी-कभी उन्हें तथ्यात्मक घटनाओं से भी न्याय और ताड़ना मिलती है, साथ ही साथ परमेश्वर की सजा भी प्राप्त होती है। हमने इन सभी चीज़ों को देखा है। कुछ लोग कहते हैं, "अविश्वासियों ने कभी भी परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य को स्वीकार नहीं किया है, तो क्या वे परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से बच निकलने में सक्षम होंगे?" लोग अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करें या न करें, उन सभी को फिर भी परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से गुजरना ही होगा, क्योंकि कोई भी परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से बच नहीं सकता है, और यह बात सच है। जिन धार्मिक व्यक्तियों ने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार नहीं किया है, फिर भी वे इससे बच नहीं सकते। कोई भी उस ताड़ना से नहीं बच सकता हैजिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए पूर्व-निर्धारित कर रखा है। यह सिर्फ समय का प्रश्न है, और हर किसी का एक अपना व्यक्तिगत परिणाम होता है। यह परिणाम भी परमेश्वर द्वारा निर्धारित किया जाता है। हम उस न्याय और ताड़ना को देख सकते हैं जो उनमें से प्रत्येक को उनके परिणाम के रूप में प्राप्त होती है। कुछ लोग परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करते हैं, परमेश्वर से शुद्धता प्राप्त करते हैं, पूरी तरह से परमेश्वर के पास लौट आते हैं, और उनका परिणाम एक अच्छा गंतव्य होता है—जो राज्य में प्रवेश करना, अनंत जीवन को प्राप्त करना है। इस तरह के लोग उद्धार प्राप्त करते हैं। जो लोग परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को स्वीकार नहीं करते हैं, अर्थात, जो लोग परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, वे अंततः नरकवास और विनाश का सामना करेंगे। उनके लिए यह न्याय और ताड़ना है जो परमेश्वर द्वारा पूर्व-निर्धारित है, और उनके अंतिम परिणाम को भी परमेश्वर के न्याय और ताड़ना द्वारा तय किया जाता है। वर्तमान में धार्मिक समुदाय के कई अगुवा हैं जो परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं, उनके लिए अंतिम परिणाम क्या है? यदि वे पश्चाताप नहीं करते हैं, तो अंततः वे निश्चित रूप से विनाश और नरकवास में डूब जाएंगे, क्योंकि कोई भी परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से बच नहीं सकता है। यह परम सिद्धांत है। हमने आज परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को स्वीकार कर लिया है, इसका मतलब है कि हमने मानवजाति के उद्धार से सम्बंधित परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया है। हम परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को एक सकारात्मक ढंग से स्वीकार कर रहे हैं और अंततः सच्चा पश्चाताप कर रहे हैं, अंततः परमेश्वर को जान रहे हैं और हमारे जीवन-स्वभाव में परिवर्तन हासिल कर रहे हैं। ऐसा न्याय और ऐसी ताड़ना हमारा उद्धार है। जहाँ तक उन लोगों का प्रश्न है जो परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, उनका परिणाम दंड है, वे अंततः नरकवास और विनाश को भोगेंगे। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से दूर भागने के कारण उनका यही नसीब है।

— 'जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति' से उद्धृत

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