पिछले कुछ सालों में हमने हमारे कलीसीया में बढ़ती हुई वीरानी को महसूस किया है। हमने अपने शुरुआती विश्वास और प्यार को खो दिया है, हम कमज़ोर और ज्‍़यादा नकारात्मक बन गए हैं। यहां तक कि कभी-कभी हम उपदेशक भी खोया-खोया महसूस करते हैं, और नहीं जानते कि किस बारे में बात करनी है। हमें लगता है कि हमने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है। हमने पवित्र आत्मा के कार्य वाली किसी कलीसिया के लिए भी हर जगह खोज की। लेकिन जिस भी कलीसिया को हमने देखा, वह हमारी कलीसिया की तरह ही वीरान है। इतनी सारी कलीसियाएं भूखी और वीरान क्यों हैं?

09 मार्च, 2021

उत्तर: आपका सवाल महत्वपूर्ण है। हम सभी जानते हैं कि हम अंत के दिनों की आखरी अवस्‍था में रहते हैं। प्रभु यीशु ने एक बार भविष्यवाणी की थी: "अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा पड़ जाएगा" (मत्ती 24:12)। धर्म की दुनिया में अराजकता बढ़ रही है। धार्मिक अगुवा प्रभु की आज्ञाओं का पालन नहीं करते, सिर्फ़ मनुष्यों की परंपराओं का पालन करते हैं। वे सिर्फ़ दिखावे के लिए बाइबल के ज्ञान का उपदेश देते हैं और ख़ुद की गवाही देते हैं। वे परमेश्‍वर की गवाही नहीं देते या उनकी बिल्कुल भी प्रशंसा नहीं करते हैं, और वे पूरी तरह से प्रभु के मार्ग से भटक गए हैं, यही कारण है कि परमेश्‍वर उन्हें अस्वीकार करते और खत्‍म करते हैं। धार्मिक जगत के पवित्र आत्मा के कार्यों को गंवाने का यही खास कारण है। लेकिन साथ ही, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि प्रभु ने फ़िर से देह में लौट आए है, और अंत के दिनों का "परमेश्‍वर के भवन से शुरू होने वाले न्याय" का कार्य प्रारंभ कर दिया है। अंत के दिनों के मसीह के रूप में-सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर मानव जाति को बचाने के लिये पूर्ण सत्‍य व्यक्त करते हैं, ताकि ऐसे सभी लोग जो अंत के दिनों में परमेश्‍वर के कार्य और पवित्र आत्मा के कार्य को स्‍वीकार करते हैं और परमेश्‍वर के अंत के दिनों के कार्य की ओर मुड़ते हैं, वे पवित्र किए जा सकें। जो लोग अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें पवित्र आत्मा का कार्य मिलेगा, और वे जीवन के सजीव जल का पोषण और सिंचाई प्राप्त करेंगे। जो लोग उनके सिंहासन के सम्मुख लौट आएंगे, परमेश्‍वर उन्‍हें विजयी बनाएंगे, और उन्हें उनकी इच्छा के अनुरूप लाएंगे, जबकि वे लोग जो धार्मिक स्थान पर रुकते तो हैं, मगर अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य को स्‍वीकारने से इनकार करते हैं, उन्हें गहन विनाश की दशा में छोड़ दिया जाता हैं। यह बात बाइबल की इस भविष्यवाणी को साबित करती हैं: "जब कटनी के तीन महीने रह गए, तब मैं ने तुम्हारे लिये वर्षा न की; मैं ने एक नगर में जल बरसाकर दूसरे में न बरसाया; एक खेत में जल बरसा, और दूसरा खेत जिस में न बरसा, वह सूख गया। इसलिये दो तीन नगरों के लोग पानी पीने को मारे मारे फिरते हुए एक ही नगर में आए, परन्तु तृप्‍त न हुए; तौभी तुम मेरी ओर न फिरे, यहोवा की यह वाणी है" (आमोस 4:7-8)। "एक खेत में जल बरसा" का संदर्भ उन कलीसियाओं से है जो अंत के दिनों में परमेश्‍वर के न्याय के कार्य को स्वीकार और उनका आज्ञापालन करती हैं। उन्होंने परमेश्‍वर के मौजूदा वचनों को स्वीकार किया है, और इसलिए जीवन के सजीव जल के पोषण का आनंद उठाया जो सिंहासन से बहता है। "...और दूसरा खेत जिस में न बरसा, वह सूख गया" का संदर्भ उन धार्मिक पादरियों और एल्डर्स से है जो प्रभु के वचनों पर अमल करने से इनकार करते हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते हैं, साथ ही, वे अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कार्य का अस्वीकार, प्रतिकार और निंदा करते हैं, जो धार्मिक जगत को परमेश्‍वर द्वारा अस्वीकार और अभिशापित किए जाने की ओर ले जाता हैं, जिस कारण वे पवित्र आत्मा के कार्य और जीवन के सजीव जल को पूरी तरह खो देते हैं, और तबाही में फंस कर रह जाते हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे व्यवस्था के युग के अंत में, जब एक बार यहोवा परमेश्‍वर की भव्यता से भरपूर मंदिर वीरान बन बन गया था। जब यहूदी लोगों ने परमेश्‍वर की व्यवस्थाओं का पालन नहीं किया, अनुचित त्याग किये गए, तो मंदिर व्यापार की जगह, चोरों का अड्डा बन गए। ऐसा क्‍यों हुआ? इसका मूल कारण यह है कि यहूदी धार्मिक अगुवाओं ने यहोवा परमेश्‍वर की व्यवस्थाओं का पालन नहीं किया और उनके दिलों में परमेश्‍वर का भय भी नहीं था। उन्होंने मनुष्यों की परम्पराओं का पालन किया, लेकिन परमेश्‍वर की आज्ञाओं को नकार दिया। वे परमेश्‍वर के मार्ग से पूरी तरह से हट गए, इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें शाप दिया। लेकिन दूसरा कारण यह था कि अनुग्रह के युग में मानवजाति के छुटकारे का कार्य करने के लिए परमेश्‍वर ने देहधारण की थी। परमेश्‍वर का कार्य बदल गया था। वे सभी लोग जिन्होंने प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य का स्वीकार किया, उन्‍हें पवित्र आत्मा का कार्य और अपने विश्वास पर अमल करने का एक नया मार्ग मिला, लेकिन जिन लोगों ने प्रभु यीशु के कार्य को नकारा और उसका विरोध किया, उन्हें परमेश्‍वर के कार्य के ज़रिए हटा दिया गया, और वे अंधियारी वीरानी में गिर गए। अगर आप पवित्र आत्मा के कार्य और जीवन के सजीव जल का पोषण पाना चाहते हैं तो, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कार्य को खोजना और उसकी जाँच करना है। इससे आपकी आत्माओं के अन्धकार और आपके कलीसिया की वीरानी की समस्या का जड़ से समाधान हो जाएगा। क्या आपको ऐसा नहीं लगता?

"सिंहासन से बहता है जीवन जल" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

अगला: हालाँकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया हाल के वर्षों में सीसीपी और धार्मिक समुदाय के उन्मत्त विरोध और निंदा से त्रस्त हो गई है, लेकिन मैं देखता हूं कि यह कलीसिया परमेश्वर की गवाही देते हुए अधिक से अधिक ऑनलाइन फिल्मों और वीडियो का निर्माण करती रही है। इन फिल्मों और वीडियो की सामग्री बढ़ती रहती है, और वे तकनीकी रूप से अधिकाधिक संपन्न होती जा रही हैं। जिन सच्चाइयों पर ये प्रस्तुतियाँ सहभागिता करती हैं, वे भी लोगों को अविश्वसनीय रूप से शिक्षित कर रही हैं। संपूर्ण धार्मिक समुदाय ने हाल के वर्षों में परमेश्वर के कार्य की गवाही देने वाली कोई भी फिल्म नहीं बनाई है जो इसके आसपास भी हो। अब सभी धर्मों और संप्रदायों से अधिक से अधिक लोग जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में शामिल हो गए हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया उन्नतिशील क्यों है, जबकि पूरा धार्मिक समुदाय इतना उजाड़ है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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बाइबल कहती है कि प्रभु यीशु का बपतिस्मा होने के बाद, स्वर्ग के द्वार खुल गए थे, और पवित्र आत्मा एक कबूतर की तरह प्रभु यीशु पर उतर आया था, एक आवाज ने कहा था: "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ" (मत्ती 3:17)। और हम सभी विश्वासी मानते हैं कि प्रभु यीशु ही मसीह यानी परमेश्वर के पुत्र हैं। फिर भी आप लोगों ने यह गवाही दी है कि देहधारी मसीह परमेश्वर का प्रकटन यानी स्वयं परमेश्वर हैं, यह कि प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी स्वयं परमेश्वर हैं। यह बात हमारे लिए काफ़ी रहस्यमयी है और हमारी पिछली समझ से अलग है। तो क्या देहधारी मसीह स्वयं परमेश्वर हैं या परमेश्वर के पुत्र हैं? दोनों ही स्थितियां हमें उचित लगती हैं, और दोनों ही बाइबल के अनुरूप हैं। तो कौन सी समझ सही है?

उत्तर: आप लोगों ने जो सवाल उठाया है ठीक वही सवाल है जिसे ज्यादातर विश्वासियों को समझने में परेशानी होती है। जब देहधारी प्रभु यीशु मानवजाति...

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