गेहूं और जंगली पौधे के बीच क्या अंतर है?

14 मार्च, 2021

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

जैसा कि मैंने कहा है, शैतान ने मेरे प्रबंधन को बाधित करने के लिए उन लोगों को भेजा है, जो मेरी सेवा करते हैं। ये सेवाकर्ता जंगली दाने हैं, फिर भी "गेहूँ" ज्येष्ठ पुत्रों को नहीं, बल्कि उन सभी पुत्रों और लोगों को संदर्भित करता है, जो ज्येष्ठ पुत्र नहीं हैं। "गेहूँ सदैव गेहूँ रहेगा, जंगली दाने सदैव जंगली दाने रहेंगे"; इसका अर्थ है कि शैतान के लोगों की प्रकृति कभी नहीं बदल सकती। इसलिए, संक्षेप में, वे शैतान ही रहते हैं। "गेहूँ" का अर्थ है पुत्र और लोग, क्योंकि मैंने दुनिया के सृजन से पहले इन लोगों में अपनी गुणवत्ता भर दी थी। मैंने पहले ही कहा है कि मनुष्य की प्रकृति नहीं बदलती, और यही कारण है कि गेहूँ सदैव गेहूँ रहेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 113

जिनके हृदय में परमेश्वर है, उनकी चाहे किसी भी प्रकार से परीक्षा क्यों न ली जाए, उनकी निष्ठा अपरिवर्तित रहती है; किंतु जिनके हृदय में परमेश्वर नहीं है, वे अपने देह के लिए परमेश्वर का कार्य लाभदायक न रहने पर परमेश्वर के बारे में अपना दृष्टिकोण बदल लेते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर को छोड़कर चले जाते हैं। इस प्रकार के लोग ऐसे होते हैं जो अंत में डटे नहीं रहेंगे, जो केवल परमेश्वर के आशीष खोजते हैं और उनमें परमेश्वर के लिए अपने आपको व्यय करने और उसके प्रति समर्पित होने की कोई इच्छा नहीं होती। ऐसे सभी अधम लोगों को परमेश्वर का कार्य समाप्ति पर आने पर बहिष्कृत कर दिया जाएगा, और वे किसी भी प्रकार की सहानुभूति के योग्य नहीं हैं। जो लोग मानवता से रहित हैं, वे सच में परमेश्वर से प्रेम करने में अक्षम हैं। जब परिवेश सही-सलामत और सुरक्षित होता है, या जब लाभ कमाया जा सकता है, तब वे परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारी रहते हैं, किंतु जब जो वे चाहते हैं, उसमें कमी-बेशी की जाती है या अंतत: उसके लिए मना कर दिया जाता है, तो वे तुरंत बगावत कर देते हैं। यहाँ तक कि एक ही रात के अंतराल में वे अपने कल के उपकारियों के साथ अचानक बिना किसी तुक या तर्क के अपने घातक शत्रु के समान व्यवहार करते हुए, एक मुसकराते, "उदार-हृदय" व्यक्ति से एक कुरूप और जघन्य हत्यारे में बदल जाते हैं। यदि इन पिशाचों को निकाला नहीं जाता, तो ये पिशाच बिना पलक झपकाए हत्या कर देंगे, तो क्या वे एक छिपा हुआ ख़तरा नहीं बन जाएँगे? ... जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने में समर्थ हैं, जबकि जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर के किसी भी परीक्षण का सामना करने में अक्षम हैं। देर-सवेर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जबकि विजेता राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर सनक के आधार पर किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि "गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता"। जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

यह उसी प्रकार है, जैसे तुम सब के बीच के कुछ लोग जो मौखिक रूप में देहधारी परमेश्वर को पहचानते हैं, फिर भी देहधारी परमेश्वर के प्रति समर्पण के सत्य का अभ्यास नहीं कर पाते, तो वे अंत में हटाने और विनाश की वस्तु बनेंगे। इसके अलावा, जो कोई मौखिक रूप में प्रत्यक्ष परमेश्वर को मानता है, देहधारी परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त सत्य को खाता और पीता है जबकि अज्ञात और अदृश्य परमेश्वर को भी खोजता है, तो भविष्य में उसके नष्ट होने की और भी अधिक संभावना होगी। इन लोगों में से कोई भी, परमेश्वर का कार्य पूरा होने के बाद उसके विश्राम का समय आने तक नहीं बचेगा, न ही उस विश्राम के समय, ऐसे लोगों के समान एक भी व्यक्ति बच सकता है। दुष्टात्मा लोग वे हैं, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते; उनका सार प्रतिरोध करना और परमेश्वर की अवज्ञा करना है और उनमें परमेश्वर के समक्ष समर्पण की लेशमात्र भी इच्छा नहीं है। ऐसे सभी लोग नष्ट किए जाएँगे। तुम्हारे पास सत्य है या नहीं और तुम परमेश्वर का प्रतिरोध करते हो या नहीं, यह तुम्हारे प्रकटन पर या तुम्हारी कभीकभार की बातचीत और आचरण पर नहीं बल्कि तुम्हारे सार पर निर्भर है। प्रत्येक व्यक्ति का सार तय करता है कि उसे नष्ट किया जाएगा या नहीं; यह किसी के व्यवहार और किसी की सत्य की खोज द्वारा उजागर हुए सार के अनुसार तय किया जाता है। उन लोगों में जो कार्य करने में एक दूसरे के समान हैं, और जो समान मात्रा में कार्य करते हैं, जिनके मानवीय सार अच्छे हैं और जिनके पास सत्य है, वे लोग हैं जिन्हें रहने दिया जाएगा, जबकि वे जिनका मानवीय सार दुष्टता भरा है और जो दृश्यमान परमेश्वर की अवज्ञा करते हैं, वे विनाश की वस्तु होंगे। परमेश्वर के सभी कार्य या मानवता के गंतव्य से संबंधित वचन प्रत्येक व्यक्ति के सार के अनुसार उचित रूप से लोगों के साथ व्यवहार करेंगे; थोड़ी-सी भी त्रुटि नहीं होगी और एक भी ग़लती नहीं की जाएगी। केवल जब लोग कार्य करते हैं, तब ही मनुष्य की भावनाएँ या अर्थ उसमें मिश्रित होते हैं। परमेश्वर जो कार्य करता है, वह सबसे अधिक उपयुक्त होता है; वह निश्चित तौर पर किसी प्राणी के विरुद्ध झूठे दावे नहीं करता। अभी बहुत से लोग हैं, जो मानवता के भविष्य के गंतव्य को समझने में असमर्थ हैं और वे उन वचनों पर विश्वास नहीं करते, जो मैं कहता हूँ। वे सभी जो विश्वास नहीं करते और वे भी जो सत्य का अभ्यास नहीं करते, दुष्टात्मा हैं!

आजकल, वे जो खोज करते हैं और वे जो नहीं करते, दो पूरी तरह भिन्न प्रकार के लोग हैं, जिनके गंतव्य भी काफ़ी अलग हैं। वे जो सत्य के ज्ञान का अनुसरण करते हैं और सत्य का अभ्यास करते हैं, वे लोग हैं जिनका परमेश्वर उद्धार करेगा। वे जो सच्चे मार्ग को नहीं जानते, वे दुष्टात्माओं और शत्रुओं के समान हैं। वे प्रधान स्वर्गदूत के वंशज हैं और विनाश की वस्तु होंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण:

उद्धार प्राप्त करने वाले व्यक्तियों में प्रकट हुई मुख्य अभिव्यक्तियाँ निम्नलिखित हैं: व्यक्तिगत प्राथमिकता की परवाह किए बिना वे परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण करने में सक्षम होते हैं; वे परमेश्वर का अनुसरण करते हैं चाहे वह उन्हें कहीं भी क्यों न ले जाए, चाहे यह सेवा करने वालों के परीक्षणों के बीच हो, मृत्यु हो, ताड़ना के समय हों, या बड़े क्लेश हों—इन सभी में वे घबराते या ढोंग नहीं करते हैं। कठिनाइयों और कुंठाओं के अपने अनुभव में, इन लोगों ने कभी भी सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ा है, आज के दिन तक भी वे परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करते हैं और उन कर्तव्यों को करते हैं जो उन्हें करने चाहिए—ऐसे लोग आज्ञाकारी होते है जो समर्पण करते हैं और अंत में वे परमेश्वर द्वारा निश्चित रूप से बचाए जाएँगे। जो परमेश्वर को सच में चाहते हैं, ऐसे व्यक्ति उस तरह के हैं—वे अंत तक पालन करेंगे भले ही इसका अर्थ अपने जीवन को गँवाने का जोखिम उठाना हो। "चाहे जो भी हो जाए, हम परमेश्वर से दूर नहीं जाएँगे। हम परिवार के सुख का त्याग कर सकते हैं, हम अपने परिवार का त्याग कर सकते हैं, हम अपनी पत्नी, बच्चों या पति को छोड़ सकते हैं। अगर हम अपने आप को परमेश्वर के लिए व्यय कर सकते हैं, तो यह ठीक होगा।" यह, जिन्हें बचाया जाएगा और जिन्हें हटाया जाएगा, उन लोगों के बीच स्पष्ट अंतर है। परमेश्वर के कार्य के अपने अनुभव में, जो लोग बचाये जाएँगे वे सच्चाई का अनुसरण करते हैं और जीवन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, और यही वे लोग हैं जो वास्तव में तुष्टिदायक परिणाम प्राप्त करते हैं और अपने जीवन स्वभाव में विभिन्न अंशों में परिवर्तन को प्राप्त करते हैं। उनमें बहुत कम अवधारणाएँ और अवज्ञा होती हैं और वे धीरे-धीरे एक मनुष्य की सदृशता को जीने लगते हैं। अन्य लोगों के साथ उनका संपर्क अधिक सामान्य हो जाता है, और वे कम भ्रष्टता प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने सत्य में प्रगति कर ली है, और वे सत्य के बारे में और गहरी स्पष्टता प्राप्त करने की लगातार कोशिश कर रहे होते हैं। वे परमेश्वर के वचन को सँजोते हैं और उसके लिए प्यासे होते हैं। वे परमेश्वर के वचन को पढ़ते हैं और सत्य पर उचित रूप से संगति करते हैं, वे स्वयं को जानने पर ज़ोर देते हैं, और वे अपने स्वभाव में अधिक गहराई से परिवर्तन लाने पर ज़ोर देते हैं। वे चाहे किसी भी कर्तव्य का पालन करें, वे जीवन में अपने प्रवेश में कभी भी ढीले नहीं पड़ते हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि वे विश्वास के सही मार्ग पर हैं, और परमेश्वर को उनके बारे में बहुत चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। ये वे लोग हैं जिनके साथ परमेश्वर सापेक्ष रूप से संतुष्ट रहता है। यह उन लोगों के बीच एक और अंतर है जो बचाए जाएँगे और जो हटा दिये जाएँगे। जो बचाये जाएँगे वे सभी अपनी सर्वोत्तम क्षमता तक स्वयं को परमेश्वर के लिए व्यय देते हैं और ऐसा कुछ भी करते हैं जिसके लिए वे उपयुक्त हैं। वे उत्साह से पहल करते हैं, और वे न तो ढीले पड़ते हैं और न ही काम से जी चुराते हैं, और उनका कोई काम बेपरवाह या फूहड़ नहीं होता है। उनके सामने जो भी काम होता है, वे उसमें अपना पूरा ह़ृदय और ताक़त लगा देते करते हैं, और उसे गंभीरता से लेते हैं, और दूसरों के साथ काम करने में वे परमेश्वर के परिवार के हित पर विचार करने में समर्थ होते हैं। वे कार्य के प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, वे परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील होते हैं, और वे परमेश्वर की माँगों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। अपने कर्तव्यों को करने में इन लोगों के कोई स्वार्थी इरादे नहीं होते हैं, वे खुद के लिए षड़यंत्र नहीं रचते हैं या व्यक्तिगत लाभ या हानि पर उपद्रव नहीं करते हैं, वे देह के सुखों को और अपने परिवार के हितों को एक तरफ़ रख सकते हैं, और यदि आवश्यक हो तो शारीरिक कठिनाइयों को सहन करने के लिए तैयार रहते हैं। उनके लिए, अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से पूरा करना, और साथ ही लोगों को बचाने के लिए सुसमाचार को फैलाना और परमेश्वर के सुसमाचार के कार्य का विस्तार करना सबसे पहले आता है। यह उनका नीति-वाक्य है। अपने कर्तव्य को वफ़ादारी से निभाने में समर्थ होना किसी व्यक्ति में विवेक और तर्क का सबूत है। इससे भी अधिक प्रशंसनीय परमेश्वर की इच्छा के बारे में मननशील होने, और परमेश्वर के हृदय को दिलासा देने के लिए कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार रहने की उनकी क्षमता है। क्योंकि ये लोग सत्य से प्यार करते हैं और जीवन की तलाश करते हैं, इसलिए उनके भीतर हमेशा पवित्र आत्मा कार्य कर रहा होता है। परमेश्वर के वचन पर संगति करते समय उनमें पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी होती है और वे सत्य को स्वीकार करने में समर्थ होते हैं। अपने आप में उनके दिल हमेशा से अधिक उज्ज्वल होते हैं, वे अपने कर्तव्य को अधिकाधिक जोश से पूरा करते हैं, उनकी स्थिति बेहतर से बेहतर होती जाती है, तथा भाई-बहनों के साथ उनके सम्बन्ध उत्तरोत्तर अधिक सामान्य होते जाते हैं। वे एक-दूसरे से प्रेम कर सकते है, किन्तु स्वयं के और उन लोगों के बीच स्पष्ट सीमा रेखा खींचने में भी सक्षम होते हैं जो परमेश्वर से प्यार नहीं करने और अपने कर्तव्यों को नहीं करने वालों के रूप में उजागर कर दिए जाते हैं, वे जानते हैं कि ऐसे लोगों को किस प्रकार समझदारी से सँभाला जाए। विशेष रूप से, वे सारी दुनिया को और अविश्वासियों को पूरी स्पष्टता से देखते हैं; वे उनसे बुरी तरह से नफ़रत करते हैं और जब वे उनके संपर्क में आते हैं तब वे उनसे बुरी तरह तंग आ जाते हैं। वे केवल अन्य भाइयों और बहनों के साथ बातचीत करना चाहते हैं। उनकी नज़रों में, केवल उनके भाई-बहन ही उनके परिवार होते हैं; यदि परमेश्वर के परिवार से अलग कर दिया जाता है तो वे जीवित नहीं रह सकते हैं, कि उनके लिए परमेश्वर के लिए जीवित न रहने के मुकाबले मर जाना ही बेहतर होगा। ये लोग अपने हृदय में ईमानदार और खरे होते हैं, इसलिए अगर परमेश्वर किसी चीज़ से नफ़रत करता है, तो वे उसे छोड़ देंगे, और परमेश्वर की आवश्यकता के अनुसार चलते हैं, अगर परमेश्वर संतुष्ट रहता है। उनका आत्म-सम्मान होता है, और अपने हृदयों में वे उत्कृष्टता प्राप्त करने और संकल्प करने के लिए उत्सुक होते हैं। वे परमेश्वर के लिए सेवा करने की इच्छा रखते हैं, और वफ़ादार सेवा करने वाला बनने को अपनी महिमा मानते हैं। वे परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहते हैं, और भले ही यह मात्र सेवा करना हो वे इसे अंत तक, अपनी आखिरी साँस तक, करते हैं। उनका मानना है कि आशीषों के पीछे भागना अत्यंत घृणित है, निजी आकांक्षाओं को रखना एक ओछापन है, और एक उचित और खरा सेवा करने वाला होने के लिए वे कर्तव्य-बाध्य हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों के माध्यम से महिमा पाता है। यद्यपि इनमें कुछ अवज्ञा और भ्रष्टता रहती है, वे सत्य से प्रेम करते हैं और न्याय की तलाश करते हैं। वे कठिनाई से नहीं डरते, हमेशा अपने कर्तव्य को पूरा करने में डटे रहते हैं, और अंततः परमेश्वर का आशीष प्राप्त करते हैं। हम देखते हैं कि परमेश्वर के कार्य के परिणाम उनमें विशेष रूप से स्पष्ट होते हैं—उनके जीवन स्वभाव में अलग-अलग अंशों में परिवर्तन हो जाता है, जीवन के बारे में उनके रवैये, सोच-विचार, जीवन-शैली और चीज़ों के बारे में दृष्टिकोण सभी में बहुत बदलाव हो जाता है, ये कुछ हद तक नए लोग बन जाते हैं। ये लोग जिन्हें बचा लिया गया है, मृत्यु की छाया की घाटी से गुज़र चुके होते हैं, और उन्होंने भोर का पहला प्रकाश देख लिया होता है मानो कि उन्हें मृत्यु से उठाया गया है। जैसे-जैसे अंत नज़तीक आता है उनकी प्राणशक्ति बढ़ जाती है, और उनमें युवाओं की ताज़गी चमकती है। परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, वे अपनी गवाही पर दृढ़ बने रहते है। यह ठीक उन लोगों का समूह है जिसे परमेश्वर ने आज अपने महान उद्धार को प्राप्त करने के लिए नियत किया है।

आओ, हम उन दुष्ट लोगों के व्यवहार पर नज़र डालें जिन्हें उजागर किया गया है। वे लोगों को बुरी तरह से निराश करते हैं और उन्हें भय महसूस कराते हैं, वे इस बात के प्रतिमान होते हैं कि "किसी की प्रकृति को बदलने की तुलना में पहाड़ों और नदियों को बदलना आसान है।" यद्यपि अतीत में, उन्होंने परमेश्वर के परिवार में काम किया है या सेवा की है, लेकिन अंततः जब परमेश्वर ने उन्हें उजागर कर दिया, तो वे पुनः पलट गए और उन्होंने अपने असली रंग दिखा दिए। वे आशीष पाने की उम्मीद में चुपके से घुस गए, लेकिन उनका अंत मुँहहतोड़ और शर्मनाक हार में हुआ। वे सत्य से बिल्कुल भी प्यार नहीं करते हैं, और परमेश्वर के काम में उन्हें कोई रुचि नहीं होती है। उन्होंने परमेश्वर के वचन को पढ़ने को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया है। उनके लिए दवा लेने की तुलना में परमेश्वर का वचन पढ़ना ज्यादा मुश्किल है। सत्य के बारे में संगति करना तो वे और भी कम चाहते हैं। यह उनका मुख्य लक्षण है। उनके लिए, सत्य को समझने और सच्चाई की तलाश करने का प्रश्न ही नहीं उठता है, खुद को जानने की बात तो बिल्कुल भी नहीं होती है। वे अविश्वासी होते हैं; वे शैतान द्वारा बोई गई खरपतवार हैं। मूल रूप से उनका कोई जीवन नहीं होता है जिसके बारे में बात की जाए। जब उन्होंने कलीसिया में प्रवेश किया था, तो उनके इरादे अच्छे नहीं थे। इन लोगों की मुख्य अभिव्यक्तियाँ होती हैं कि: वे कभी भी कुछ भी अर्पण करना नहीं चाहते हैं, और हमेशा फायदे और मुनाफ़े प्राप्त करना चाहते हैं। वे लाभ के लिए विभिन्न अवसरों का उपयोग करते हैं। यदि उन्हें फ़ायदा न हो रहा हो, तो वे नींद से भी जल्दी नहीं उठेंगे। वे ऐसे लोग होते हैं जो केवल मुनाफ़ा चाहते हैं, और वे अपने कर्तव्य को खुशी और स्वेच्छा से नहीं करते हैं। उनके स्वभाव क्रूर होते हैं; उनके पास दूसरों के प्रति करुणा या समानुभूति का हृदय तो बिल्कुल नहीं होता है। वे घृणात्मक रूप से लालची और अतृप्य होते हैं। वे ऐसे किसी भी व्यक्ति को पकड़ लेते हैं जो उन्हें फ़ायदा पहुँचाएगा और उन्हें बढ़त देगा, और वे उस व्यक्ति से सेवा अपने लिए सेवा करवाते हैं। वे हमेशा झूठ बोलते हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं वह झूठ या अशुद्धियों से युक्त होता है। वे जो कुछ भी कहते हैं वह परिशुद्ध नहीं होता है, इसलिए तुम यह कभी नहीं जान पाते हो कि उनके कहे कौन से वचन सत्य हैं और कौन से झूठ। वे सब कुछ गुप्त रूप से करते हैं, और ऐसा कुछ भी नहीं करते जो न्यायपूर्ण और सम्मानजनक हो। वे अपने हृदयों को कभी नहीं खोलेंगे और दूसरों से ईमानदारी से कुछ नहीं बोलेंगे, सिवाय उस समय के जब वे मरने ही वाले होंगे और ताबूत को देखकर कुछ आँसू बहाएँगे। जो भी वचन उनके मुँह से निकलते हैं, वे दूसरे लोगों के बारे में निंदनीय बातें, गपशप और आलोचना के होते हैं, ऐसे वचन जो आपस में फूट डालते हैं, निंदा करने वाले वचन और साथ ही ऐसे वचन होते हैं जो दूसरों की बेइज्जती करते हैं। वे सबसे अधिक जिससे प्रेम करते हैं वह है अन्य लोगों से चापलूसी और उनके द्वारा खुद की आराधना करवाना, तथा जब दुसरे लोग उनके आस-पास घूमते हैं, तो उन्हें यह सबसे ज्यादा पसंद हैं। वे उत्सुकता से महारानी या उच्चतम सामर्थ्य बनना चाहते हैं जिसके हुक्म की हर कोई प्रतीक्षा करता हो। जब वे अच्छा समय गुज़ार रहे होते हैं और सौभाग्य में होते हैं, तो वे कुछ विनम्र बनते हैं और थोड़े समय के लिए भले होने का ढोंग कर सकते हैं। जब वे पराजय से पीड़ित होते हैं और परमेश्वर द्वारा त्याग दिए जाते हैं, तो, हालाँकि, वे तुरंत अपने असली रंग दिखाते हैं, और तुरंत गाली देना शुरू करते हैं, लम्बी-चौड़ी शिकायतें करते हैं, और राक्षस बन जाते हैं। तब वे कुछ भी करने में सक्षम होते हैं। दूर तक फैली महामारी की तरह, वे हर जगह विष फैलाते हैं और लोगों को धोखा देने के लिए अफ़वाहें फैलाते हैं। ऐसे सभी दुष्ट लोग जो हर तरह के बुरे काम करते हैं, अपनी प्रकृति में समान होते हैं, यद्यपि उनके व्यवहार भिन्न हो सकते हैं। उन सभी की एक ही मनोवैज्ञानिक स्थिति होती है; उनमें बस बुराई की गंभीरता अलग-अलग होती है जो दिखाई देती है। इस तरह के व्यक्ति हर जगह मिल सकते हैं, और उन्हें पहचानना आसान होता है। इसे इस तरह समझाया जा सकता है: वे सभी लोग जो सत्य पर अपने कार्यों को आधारित करने की जगह व्यक्तिगत लाभ की तलाश करते हैं, वे दुष्ट हैं; जो लोग जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं और खुद के बारे में थोड़ा भी ज्ञान नहीं रखते हैं, वे सभी दुष्ट लोग हैं; जो कोई भी योगदान नहीं करते हैं, यद्यपि उनके पास धन है, और जो अपने कर्तव्यों को करने के लिए तैयार नहीं होते हैं, वे सब दुष्ट लोग हैं; जो अपने कर्तव्य को करने में बेपरवाह हैं, बस मनमानी करते हैं, वे सभी दुष्ट लोग हैं; वे सभी जो ओहदों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, कलीसियाई जीवन में विघ्न डालते हैं, और किसी का अज्ञापालन नहीं करते हैं, वे दुष्ट लोग हैं; वे सभी जो अपनी मर्जी के अनुसार कार्य करते हैं, स्वेच्छाचारिता से कार्य करते हैं, किसी और की बात नहीं सुनते हैं, वे दुष्ट लोग हैं; वे सभी जो परमेश्वर की वाणी को सुनते हैं और भय नहीं मानते हैं, और जो पश्चाताप भी नहीं करते हैं, वे दुष्ट लोग हैं; क्रूर और निर्दय स्वभाव वाले सभी लोग, जो लोगों के साथ निर्दयता से पेश आते हैं, जो लोगों पर हर जगह अपशब्दों से हमला करते हैं, जो अपने दृष्टिकोण को बिल्कुल भी नहीं बदलते हैं, ऐसे लोग सबसे भयंकर पापों के और भी अधिक दोषी होते हैं। वे सभी जो पलट जाते हैं, जो अपने असली रंगों में लौट आते हैं अविश्वासियों की तरह ही हो जाते हैं, वे सभी राक्षस हैं जो दर्शा रहे हैं कि वे वास्तव में क्या हैं। पवित्र आत्मा ने इन लोगों को बहुत पहले ही छोड़ दिया है। परमेश्वर ने उन्हें पहले ही शैतान को सौंप दिया है, और वे परमेश्वर के परिवार से संबंध नहीं रखते हैं।

— ऊपर से संगति से उद्धृत

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