परमेश्वर मनुष्य को जीवित रहने के लिए एक स्थायी वातावरण देने हेतु सभी चीज़ों के मध्य संबंधों को संतुलित करता है

06 अगस्त, 2018

परमेश्वर सभी चीज़ों में अपने कर्मों को प्रकट करता है और सभी वस्तुओं पर वह शासन करता है और सभी चीज़ों के नियमों को नियंत्रित करता है। हमने अभी-अभी बात की कि किस प्रकार परमेश्वर सभी चीज़ों के नियमों पर शासन करता है साथ ही वह किस प्रकार उन नियमों के तहत संपूर्ण मानवजाति के जीवन-निर्वाह की व्यवस्था और उनका पालन-पोषण करता है। यह एक पहलू है। आगे, हम दूसरे पहलू पर बात करने जा रहे हैं, जो सभी चीजों पर परमेश्वर के नियंत्रण का एक तरीका है। मैं बता रहा हूं कि सभी चीज़ों की सृष्टि करने के बाद, परमेश्वर ने किस तरह उन चीजों के बीच संबंधों को संतुलित किया। यह भी तुम्हारे लिए एक बहुत बड़ा विषय है। सभी चीज़ों के मध्य संबंधों को संतुलित करना—क्या ऐसा करना लोगों के लिए संभव है? नहीं, मनुष्य ऐसा अद्भुत कार्य करने में समर्थ नहीं हैं। लोग केवल विध्वंस ही कर सकते हैं। वे सभी चीज़ों के मध्य संबंधों को संतुलित नहीं कर सकते; यह उनके वश में नहीं है, इतनी बड़ी सत्ता और शक्ति मानवजाति की समझ के परे है। केवल परमेश्वर स्वयं के पास ही इस प्रकार के कार्य करने की सामर्थ्‍य है। लेकिन इस प्रकार का कार्य करने में परमेश्वर का उद्देश्य क्या है—यह किसलिए है? यह भी मानवजाति के जीवित रहने से करीब से जुड़ा हुआ है। हर एक चीज़ जो परमेश्वर करना चाहता है वह ज़रूरी है—ऐसा कुछ नहीं है जो वह कर सकता है या नहीं कर सकता है। मानवजाति के अस्तित्व की सुरक्षा और उसके जीवित रहने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करने के लिए, कुछ अपरिहार्य और बेहद महत्वपूर्ण चीज़ें हैं जो उसे करनी चाहिए।

इस वाक्यांश "परमेश्वर सभी चीज़ों को संतुलित करता है," के शाब्दिक अर्थ से यह पता चलता है कि यह एक अत्यंत व्यापक विषय है; यह सबसे पहले लोगों को यह धारणा प्रदान करता है कि "सभी चीज़ों को संतुलित करने" का अर्थ सभी चीज़ों पर उसकी श्रेष्ठता प्रभुता भी है। "संतुलन" शब्द का क्या अर्थ है? प्रथम, "संतुलन" का अर्थ यह है कि किसी चीज़ को डगमगाने नहीं देना। यह चीज़ों को तोलने के लिए तराज़ू का इस्तेमाल करने जैसा है। तराजू को संतुलित करने के लिए, दोनों पलड़ों पर वज़न समान होना चाहिए। परमेश्वर ने बहुत सारी अलग-अलग प्रकार की चीज़ों का सृजन कियाः उसने ऐसी चीज़ों की सृष्टि की जो स्थिर हैं, ऐसी चीज़ें जो गतिमान हैं, जो जीवित हैं, और जो सांस लेती हैं, साथ ही जो सांस नहीं लेती हैं। क्या इन सभी चीज़ों के बीच परस्पर निर्भरता, सहयोग, और जुड़ाव का ऐसा संबंध स्थापित करना आसान है जिसमें वे एक-दूसरे को समृद्ध और नियंत्रित कर सकें? इन सब में निश्चित रूप से कुछ सिद्धांत हैं लेकिन जो बहुत जटिल हैं, है ना? परमेश्वर के लिए यह कठिन नहीं है, लेकिन लोगों के अध्ययन के लिए यह एक बहुत ही जटिल मामला है। यह बहुत ही साधारण शब्द है—"संतुलन।" लेकिन यदि लोगों ने इसका अध्ययन किया होता, यदि लोगों को स्वयं संतुलन बनाने की आवश्यकता होती, तो यदि वे सभी प्रकार के शिक्षाविद—मानव जीवविज्ञानी, खगोलशास्त्री, भौतिकशास्त्री, रसायनशास्त्री और यहां तक कि इतिहासकार भी इसपर कार्य कर रहे होते, तो उस शोध का अंतिम परिणाम क्या होता? इसका परिणाम कुछ नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर की समस्त सृष्टि अविश्वसनीय है और मनुष्य कभी भी इसके रहस्य को नहीं खोल सकेगा। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की, उसने उनके बीच सिद्धांतों को स्थापित किया, उसने पारस्परिक संयम, अनुपूरकता, और संपोषण के लिए, जीवित रहने की विभिन्न पद्धतियां स्थापित कीं। ये विभिन्न पद्धतियाँ बहुत पेचीदा हैं; वे निस्संदेह आसान और एकसमान दिशा में नहीं हैं। सभी चीज़ों पर परमेश्वर के नियन्त्रण के पीछे के सिद्धान्तों की पुष्टि या खोज करने के लिए जब लोग अपने मस्तिष्क, अपने अर्जित ज्ञान और जिन घटनाओं का उन्होंने अवलोकन किया है, इन सबका इस्तेमाल करते हैं, तो इन चीजों को खोज पाना अत्यंत कठिन होता है, साथ ही किसी परिणाम तक पहूंचना भी बहुत मुश्किल होता है। लोगों के लिए किन्हीं भी परिणामों को प्राप्त करना कठिन है; परमेश्वर की सृष्टि की सभी चीजों को नियंत्रित करने के लिए मानवीय सोच और ज्ञान पर भरोसा करते हुए अपना संतुलन बनाए रखना लोगों के लिए बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि अगर लोगों को सभी चीज़ों के जीवित बचे रहने के सिद्धान्तों की जानकारी नहीं है तो वे यह नहीं जान पाएंगे कि इस प्रकार के संतुलन का बचाव कैसे करें। अतः, यदि लोगों को सभी चीज़ों का प्रबंधन और नियंत्रण करना पड़ता, तो ज़्यादा संभावना होती कि वे इस संतुलन को नष्ट कर देते। जैसे ही संतुलन नष्ट होता, मानवजाति के जीवित रहने के लिए वातावरण नष्ट हो जाते, और जब ऐसा होता, तो मानवजाति के जीवित बचे रहने पर संकट आ जाता। यह एक आपदा की स्थिति होती। जब मानवजाति आपदा के बीच जी रही हो, तो उसका भविष्य क्या होगा? इसके परिणाम का अनुमान लगाना बहुत कठिन होता, और इस बारे में निश्चितता के साथ भविष्यवाणी करना असंभव होता।

इसलिए, परमेश्वर कैसे सभी चीज़ों के मध्य संबंधों का संतुलन करता है? प्रथम, संसार में कुछ स्थान ऐसे हैं जो सालों भर बर्फ और हिम से ढके होते हैं, जबकि कुछ अन्य स्थानों में, सभी चारों मौसम बसंत के समान होते हैं, और शीत ऋतु कभी नहीं आती है, और इस तरह के स्थानों में, तुम कभी भी बर्फ की बड़ी परत जैसी चीज या हिमकण नहीं देखोगे। यहाँ, हम अधिक बड़ी जलवायु के बारे में बात कर रहे, और यह उदाहरण उन तरीकों में से एक है जिससे परमेश्वर सभी चीज़ों के बीच संबंधों को संतुलित करता है। दूसरा तरीका यह हैः पर्वतों की एक श्रृंखला हरी-भरी वनस्पतियों से ढकी हुई है, जहाँ धरती पर सभी प्रकार के पौधों का गलीचा बिछा हुआ है, और जंगलों का ऐसा घना सिलसिला है कि जब तुम उनके बीच से गुजरते हो तो तुम ऊपर सूरज भी नहीं देख सकते। किन्तु पर्वतों की एक अन्य श्रृंखला को देखा जाए, तो वहाँ घास की एक पत्ती तक नहीं उगती है, बस परत-दर-परत बंजर, बिखरे हुए पर्वत हैं। बाहर से दिखने में, ये दोनों ही प्रकार मूल रूप से पर्वतों में परिणत धूल की परतों के विशाल अंबार हैं, किन्तु एक घने जंगल से ढका है, जबकि दूसरा विकास से विहीन है, यहाँ तक कि घास की एक पत्ती तक नहीं है। यह दूसरा तरीका है जिससे परमेश्वर सभी चीज़ों के बीच संबंधों को संतुलित करता है। तीसरे प्रकार में, तुम एक ओर अंतहीन घास के मैदानों को देख सकते हो, लहराते हरे रंग का मैदान। दूसरी तरफ, जहाँ तक तुम्हारी दृष्टि जाती है तुम्हें एक मरुस्थल दिखाई देगा; जहां कोई जीवित प्राणी नहीं दिखता, जल का कोई स्रोत तो बिलकुल ही नहीं, बस रेत के साथ बहती हुई हवा की सांय-सांय सुन सकते हो। चौथे प्रकार में, एक तरफ सबकुछ उस महाजलराशि, समुद्र से ढका हुआ है, जबकि दूसरी तरफ, तुम्हें किसी ताजे जल-स्रोत की एक बूंद भी बहुत मुश्किल से दिखाई पड़ती है। पांचवें प्रकार में, एक स्थान में अक्सर बारिश होती रहती है, कोहरा और नमी भरी रहती है, जबकि दूसरे स्थान में प्रचंड धूप का खिलना बहुत ही सामान्य है, और जहां वर्षा की एक बूँद का भी गिरना एक विरल घटना है। छठे प्रकार में, एक तरफ पठार है जहां हवा दुर्लभ है और मनुष्य के लिए सांस लेना मुश्किल, और दूसरी तरफ वह स्थान है जहां दलदल और तराइयाँ हैं, जो विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षियों के ठिकाने के रूप में काम आते हैं। ये विभिन्न प्रकार की जलवायु हैं, या ऐसी जलवायु या वातावरण हैं जो विभिन्न भौगोलिक वातावरण के अनुरूप हैं। कहने का तात्पर्य यह कि परमेश्वर मानवजाति के आधारभूत वातावरण को बड़े पैमाने पर पर्यावरण, जलवायु से लेकर भौगोलिक पर्यावरण और मिट्टी के विभिन्न घटकों से लेकर उन जलस्रोतों की संख्या तक जीवित रहने के लिए संतुलित करता है, ताकि उन सभी वातावरण में हवा, तापमान और आद्रता संतुलन रहे, जिससे लोग जीवित रहते हैं। इन विषम भौगोलिक वातावरण के कारण लोगों के पास स्थिर वायु होती है और विभिन्न मौसमों में तापमान और आर्द्रता स्थिर बनी रहती है। यह लोगों को जीने के लिए जरूरी उस तरह के वातवरण में हमेशा की तरह जीना संभव बनाता है। पहले, उस बृहत वातावरण को संतुलित किया जाना चाहिए। यह विभिन्न भौगोलिक स्थानों और संरचनाओं के उपयोग के माध्यम से और साथ ही विभिन्न जलवायु के बीच परिवर्तन के माध्यम से किया जाता है जो उन्हें एक-दूसरे को सीमित करने और नियंत्रित करने की अनुमति देता है, जो परमेश्वर चाहता है और जो मानवजाति की आवश्यकता है। ये बातें बृहत वातावरण के परिप्रेक्ष्य में है।

अब हम पेड़-पौधों जैसी बारीकियों के बारे में बात करेंगे। उनके बीच संतुलन कैसे बनाया जाता है? अर्थात्, पेड़-पौधों को संतुलित वातावरण के भीतर जीवित बचे रहने में कैसे सक्षम बनाया जा सकता है? इसका उत्तर है, विभिन्न प्रकार के पौधों के जीवित रहने हेतु आवश्यक वातावरण की रक्षा करने के लिए उनके जीवनकाल, वृद्धि दर, और प्रजनन दर का प्रबंध करने के द्वारा संतुलन बनाया जा सकता है। छोटी घास को एक उदाहरण के रूप में लेते हैं—बसंत ऋतु में कोपलें हैं, ग्रीष्म ऋतु में फूल हैं, और शरद ऋतु में फल हैं। फल भूमि पर गिर जाता है। अगले वर्ष, उस फल से बीज अंकुरित होता है और उन्हीं नियमों के अनुसार आगे बढ़ता रहता है। घास का जीवनकाल बहुत छोटा होता है; हर बीज ज़मीन में गिरता है, जड़ें फूटती हैं और वह अंकुरित होता है, खिलता है और फल उत्पन्न करता है, और यह प्रक्रिया केवल बसंत, ग्रीष्म, और शरद में होती है। सभी प्रकार के वृक्षों का भी अपना जीवनकाल और अंकुरित होने और फलने का अलग-अलग समय होता है। कुछ वृक्ष 30 से 50 सालों के बाद ही मर जाते हैं—यह उनका जीवनकाल है, किन्तु उनका फल ज़मीन पर गिरता है, जो उसके बाद जड़ पकड़ता और अंकुरित होता है, खिलता है और फल उत्पन्न करता है, और अगले 30 से 50 सालों तक जीवित रहता है। यह इसकी पुनरावृत्ति की दर है। एक पुराना पेड़ मरता है और नया पेड़ उगता है; इसी लिए तुम जंगल में हमेशा पेड़ों को बढ़ते हुए देखते हो। परन्तु उनका भी जन्म और मृत्यु का अपना सामान्य चक्र और प्रक्रियाएँ हैं। कुछ वृक्ष हज़ार वर्ष से भी अधिक जी सकते हैं, और कुछ तीन हज़ार वर्ष तक भी जी सकते हैं। सामान्य रूप से कहें तो, चाहे पौधा किस भी प्रकार का हो या इसका जीवनकाल कितना भी लम्बा हो, परमेश्वर इस आधार पर उसके संतुलन का प्रबंध करता है कि वह कितने लम्बे समय तक जीवित रहता है, प्रजनन करने की उसकी क्षमता, प्रजनन की उसकी गति, आवृत्ति और संततियों की मात्रा कितनी है। यह घास से लेकर वृक्ष तक के वनस्पतियों को, निरन्तर फलते रहने में सक्षम होने, और एक संतुलित पारिस्थितिक वातावरण के भीतर फलने-फूलने देता है। अतः जब पृथ्वी पर तुम एक जंगल देखते हो, तो इसके भीतर विकसित होने वाले वृक्ष और घास, दोनों ही अपने नियमों के अनुसार निरन्तर प्रजनन कर रहे और बढ़ रहे हैं। इसे मानवजाति से किसी अतिरिक्त श्रम या सहायता की ज़रुरत नहीं है। चूँकि उनके पास इस प्रकार का संतुलन है, इसी लिए वे जीवित रहने के अपने वातावरण को बनाए रखने में सक्षम हैं। चूँकि उनके पास ज़िंदा बचे रहने के लिए एक उपयुक्त वातावरण है, संसार के जंगल, और घास के मैदान पृथ्वी पर निरन्तर जीवित रह पाते हैं। उनका अस्तित्व पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों का पालन-पोषण करता है, साथ ही साथ जंगलों और घास के मैदानों में मौजूद प्राकृतिक वास-स्थान द्वारा सभी प्रकार के जीवित प्राणियों—पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों, और सभी प्रकार के अति सूक्ष्म जीवों का पीढ़ी-दर-पीढ़ी पालन-पोषण करता है।

परमेश्वर सभी प्रकार के पशुओं के बीच के संतुलन का भी नियन्त्रण करता है। इस संतुलन का नियंत्रण वो कैसे करता है? यह पौधों के समान ही है—वह उनके संतुलन का प्रबन्ध करता है और उनकी संख्याओं को, प्रजनन की उनकी क्षमता, प्रजनन की उनकी मात्रा और दर और उनके द्वारा पशुओं के बीच अदा की जाने वाली भूमिकाओं के आधार पर निर्धारित करता है। उदाहरण के लिए, शेर ज़ेबरों को खाते हैं, अतः यदि शेरों की संख्या ज़ेबरों की संख्या से ज़्यादा हो जाए, तो ज़ेबरों की नियति क्या होगी? वे विलुप्त हो जाएँगे। और यदि ज़ेबरों के प्रजनन की मात्रा शेरों की अपेक्षा बहुत कम हो जाए, तो उनकी नियति क्या होगी? तब भी वे विलुप्त हो जाएँगे। अतः, ज़ेबरों की संख्या शेरों की संख्या से कहीं अधिक होनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज़ेबरे सिर्फ स्वयं के लिए ही अस्तित्व में नहीं है; बल्कि वे शेरों के लिए भी अस्तित्व में हैं। तुम यह भी कह सकते हो कि प्रत्येक ज़ेबरा सारे ज़ेबरों का एक भाग है, किन्तु यह एक शेरों का आहार भी है। शेरों के प्रजनन की गति ज़ेबरों से आगे कभी नहीं बढ़ सकती है, अतः उनकी संख्या ज़ेबरों की संख्या से बढ़कर कभी नहीं हो सकती है। सिर्फ इसी तरह से शेरों के आहार के स्रोत की गारंटी दी जा सकती है। तो इस तरह, शेर ज़ेबरों का प्राकृतिक शत्रु है, फिर भी लोग अक्सर उन्हें एक ही इलाके में फुरसत से आराम करते हुए देखते हैं। शेर उनका शिकार करते हैं और खाते हैं उसके कारण ज़ेबरे संख्या में कभी कम नहीं होंगे या वे कभी विलुप्त नहीं होंगे, और शेर "राजा" की अपनी पदवी के कारण कभी भी अपनी संख्या नहीं बढ़ाएँगे। यह संतुलन परमेश्वर ने बहुत पहले स्थापित कर दिया था। अर्थात्, परमेश्वर ने सभी जानवरों के मध्य संतुलन के नियमों को स्थापित कर दिया था ताकि वे इस प्रकार का संतुलन प्राप्त कर सकें, और लोग अक्सर ही ऐसा होते देखते हैं। क्या सिर्फ शेर ही ज़ेबरों के प्राकृतिक शत्रु हैं? नहीं, मगरमच्छ भी ज़ेबरों को खाते हैं। ऐसा लगता है कि ज़ेबरे वास्तव में एक प्रकार के असहाय पशु हैं। उनमें शेरों की क्रूरता नहीं है, और जब वे एक शेर, एक भयंकर शत्रु का सामना करते हैं, तो वे केवल भाग सकते हैं। वे तो उसका प्रतिरोध भी नहीं कर सकते। जब वे शेर से तेज भाग नहीं सकते हैं, तो वे शेर के सामने आहार के रूप में अपने आपको समर्पित ही कर सकते हैं। ऐसा पशु जगत में अक्सर देखा जा सकता है। जब तुम लोग इस प्रकार की चीज़ों को देखते हो तो तुम लोगों के मन में कौन से विचार और भावनाएँ आती हैं? क्या तुम ज़ेबरे के लिए दुखी होते हो? क्या तुम्हें शेरों के लिए घृणा का एहसास होता है? ज़ेबरे कितने सुन्दर दिखाई देते हैं! लेकिन शेर, वे हमेशा उन्हें लालच से देखते रहते हैं। और मूर्खतापूर्वक, ज़ेबरे दूर नहीं भागते हैं। वे शेरों को पेड़ की ठंडी छाया में अपना इन्तजार करते हुए देखते रहते हैं। वह कभी भी आकर उन्हें खा सकता है। वे इस बात को अपने मन में जानते हैं, लेकिन तब भी उस जगह को छोड़कर नहीं भागते। यह एक अद्भुत बात है, एक अद्भुत बात जो परमेश्वर की पूर्वनियति, और उसका शासन को दर्शाती है। तुम उस ज़ेबरे के लिए दुखी होते हो लेकिन तुम उसे बचाने में असमर्थ हो, और तुम्हें लगता है कि शेर घृणा के योग्य है किन्तु तुम उसे नष्ट नहीं कर सकते। ज़ेबरा वह भोजन है जिसे परमेश्वर ने शेर के लिए तैयार किया है, लेकिन शेर चाहे जितनों को भी खा लें, ज़ेबरों का सफाया नहीं होगा। शेर द्वारा पैदा किए गए बच्चों की संख्या काफी कम होती है, और वे बहुत धीरे-धीरे प्रजनन करते हैं, इसलिए वे कितने भी ज़ेबरों को खा लें, उनकी संख्या ज़ेबरों से अधिक नहीं होगी। इसमें, संतुलन है।

इस प्रकार के संतुलन को बनाए रखने में परमेश्वर का लक्ष्य क्या है? यह जीवित रहने के लिए लोगों के वातावरण साथ ही साथ मानवजाति के जीवित रहने से संबंधित है। यदि ज़ेबरा, या शेर का कोई ऐसा ही शिकार जैसे हिरन या अन्य पशु बहुत धीमे प्रजनन करते हैं और शेरों की संख्या तेजी से बढ़ती है, तो मानव को किस प्रकार के खतरे का सामना करना पड़ेगा? शेरों का अपने शिकार को खाना एक सामान्य घटना है, लेकिन शेर का किसी व्यक्ति को खाना त्रासदी है। यह त्रासदी ऐसी चीज़ नहीं है जिसे परमेश्वर ने पूर्वनियत किया हो, यह उसके शासन के अंतर्गत होने वाली घटना नहीं है, और इसे उसके द्वारा मानवजाति पर बिलकुल भी नहीं डाला गया है। बल्कि यह ऐसी त्रासदी है जिसे लोग स्वयं अपने ऊपर लाते हैं। अतः परमेश्वर की नज़रों में, सभी प्राणियों के मध्य संतुलन मानवजाति के जीवित रहने के लिए अति महत्वपूर्ण है। चाहे पौधे हों या पशु, कोई भी अपना उचित संतुलन नहीं खो सकता। पौधों, पशुओं, पर्वतों, और झीलों में परमेश्वर ने मानवजाति के लिए एक सुव्यवस्थित पारिस्थितिक वातावरण तैयार किया है। जब लोगों के पास इस प्रकार का पारिस्थितिक वातावरण होता है—एक संतुलित वातावरण—केवल तभी उनका जीवन सुरक्षित होता है? यदि वृक्ष या घास की प्रजनन करने की क्षमता खराब होती या उनकी प्रजनन की गति बहुत धीमी होती, तो क्या मिट्टी अपनी नमी नहीं खो देती? यदि मिट्टी अपनी नमी खो देती, तो क्या यह तब भी उर्वर होती? यदि मिट्टी अपनी वनस्पतियों और नमी को खो देती, तो इसका अपक्षरण बहुत जल्दी हो जाता, और इसके स्थान पर रेत बन जाती। जब मिट्टी और ख़राब हो जाती है, तो जीवित रहने के लिए लोगों का वातावरण भी नष्ट हो जाता। और तब इस तबाही के साथ और कई विपत्तियाँ भी आती हैं। इस प्रकार के पारिस्थितिक संतुलन के बिना, और इस प्रकार के पारिस्थितिक वातावरण के बिना, सभी चीज़ों के मध्य इन असंतुलन के कारण लोगों को बार-बार विपत्तियाँ सहनी पड़ती। उदाहरण के लिए, जब वातावरण संबंधी असंतुलन के कारण मेंढकों के पारिस्थितिक वातावरण का विनाश होने लगता है तो, वे सभी एक साथ इकट्ठे हो जाते हैं, उनकी संख्या में तेज़ी से वृद्धि होने लगती है। लोग ढेर सारे मेंढकों को शहरों की गलियां पार करते हुए भी देखते हैं। यदि मेंढकों की बड़ी संख्या जीवित रहने के लिए लोगों के वातावरण पर कब्जा कर ले, तो इसे क्या कहा जायेगा? एक विपत्ति। इसे विपत्ति क्यों कहा जायेगा? ये छोटे जानवर जो मानवजाति के लिए फायदेमंद और लोगों के लिए तब उपयोगी होते हैं, जब वे उस स्थान में रहते हैं जो उनके लिए उपयुक्त है; वे जीवित रहने के लिए लोगों के वातावरण को संतुलित बनाए रखते हैं। पर अगर वे एक विपत्ति बन जाते हैं, तो वे लोगों के जीवन की सुव्यवस्था को प्रभावित करेंगे। सभी चीज़ें और सभी तत्व जो मेंढक अपने शरीर के साथ लाते हैं, वे लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। यहाँ तक कि लोगों के शारीरिक अंगों पर भी वार कर सकते हैं—यह विपत्तियों का एक प्रकार है। अन्य प्रकार की विपत्ति, जो कुछ ऐसी है जिसका मनुष्यों ने अक्सर अनुभव किया है, वह है भारी संख्या में टिड्डियों का प्रगट होना। क्या यह एक विपत्ति नहीं है? हाँ, यह वास्तव में एक भयावह विपत्ति है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि मनुष्य कितना समर्थ है—लोग हवाई जहाज़, तोप, और परमाणु बम बना सकते हैं—लेकिन जब टिड्डियाँ मनुष्य पर आक्रमण करती हैं, तो उनके पास क्या समाधान होता है? क्या वे उन पर तोप का उपयोग कर सकते हैं? क्या वे उन्हें मशीन गनों से मार सकते हैं? नहीं मार सकते। तब क्या वे उन्हें भगाने के लिए उन पर कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं। यह भी कोई आसान काम नहीं। वे छोटी-छोटी टिड्डियाँ किसलिये आती हैं? वे खासतौर से फसलें और अनाज खाती हैं। जहाँ कहीं टिड्डियाँ जाती हैं वहाँ की फसलें पूर्णतया ख़त्म हो जाती हैं। टिड्डी के आक्रमण के समय, वह अनाज जिस पर किसान पूरे साल के लिए निर्भर होते हैं, उसे पूरी तरह टिड्डियों के द्वारा पलक झपकते ही खाया जा सकता है। और मनुष्य के लिए टिड्डियों का आगमन बस चिढ़चिढ़ाहट का कारण नहीं है—यह एक विपत्ति है। तो हम जानते हैं कि बड़ी संख्या में टिड्डियों की उपस्थिति एक प्रकार की विपत्ति है, तो चूहों का क्या? यदि चूहों को खाने के लिए उल्लू या बाज जैसे शिकारी पक्षी न हों, तो वे बहुत तेजी से बढ़ेंगे, तुम्हारी सोच से भी कहीं ज़्यादा तेजी से। और यदि चूहे बिना किसी रूकावट के बढ़ते जाएँ, तो क्या मनुष्य अच्छा जीवन जी सकते हैं? मनुष्य को किस प्रकार की स्थिति का सामना करना पड़ेगा? (महामारी का।) क्या तुम्हें लगता है महामारी इसका इकलौता परिणाम होगा? चूहे कुछ भी खाएँगे! यहाँ तक कि वे लकड़ी को भी कुतर देंगे। यदि एक घर में दो ही चूहे हों, तो भी पूरे घर में हर व्यक्ति परेशान हो जाएगा। कभी-कभी वे तेल चुरा लेते और उसे पी जाते हैं, कभी वे रोटी या अनाज खा जाते हैं। और जो चीज़ें वे नहीं खाते, उन्हें कुतर कर बर्बाद कर देते हैं। वे कपड़े, जूते, फर्निचर—सब कुछ कुतर जाते हैं। कभी-कभी वे अलमारी पर चढ़ जाते हैं—क्या थालियों पर चूहों के चढ़ जाने के बाद, उन्हें फिर से प्रयोग में लाया जा सकता है? उन्हें कीटाणुमुक्त करने के बाद भी तुम्हें तसल्ली नहीं होती, तुम उन्हें फेंक ही देते हो। चूहे लोगों के लिए इस तरह की मुसीबत खड़ी कर देते हैं। हैं तो वे छोटे चूहे, लेकिन लोगों के पास उनसे निपटने का कोई तरीका नहीं है और वे बस उनके द्वारा मचाए गए उत्पात को सहते रहते हैं। चूहों के पूरे दल की क्या बात करें, गड़बड़ी फैलाने के लिए चूहे का केवल एक जोड़ा ही पर्याप्त है। यदि उनकी संख्या बढ़ जाये और वे विपत्ति बन जाएँ, तो नतीजे सोच भी नहीं सकते। चींटियों जैसे नन्हें प्राणी भी विपत्ति बन सकते हैं। अगर ऐसा हो जाए तो उनके द्वारा मानवजाति को होने वाले नुकसान की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। चीटियाँ घरों को इतनी अधिक क्षति पहुँचा सकती हैं कि वे ढह जाएँ। उनकी ताक़त को अवश्य अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। यदि विभिन्न प्रकार के पक्षी विपत्ति पैदा कर दें तो क्या यह भयावह नहीं होगा? (हाँ।) इस बात को यदि दूसरे तरीके से कहें तो, किसी भी प्रकार के पशु या प्राणी हों, जैसे ही वे अपना संतुलन खोते हैं, वे बढ़ेंगे, प्रजनन करेंगे, और एक असामान्य और अनियमित दायरे के भीतर रहेंगे। यह मनुष्य के लिए अकल्पनीय परिणामों को लेकर आएगा। यह न केवल लोगों के जीवित रहने और जीवन को प्रभावित करेगा, बल्कि यह मानवजाति के लिए विपत्ति भी लाएगा, उस हद तक जहाँ लोग संपूर्ण विनाश और विलुप्त होने की नियति भोगते हैं।

जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की, तब उसने उन्हें संतुलित करने के लिए, पहाड़ों और झीलों के वास की स्थितियों को संतुलित करने के लिए, पौधों और सभी प्रकार के पशुओं, पक्षियों, कीड़ों-मकोड़ों के वास की स्थितियों को संतुलित करने के लिए सभी प्रकार की पद्धतियों और तरीकों का उपयोग किया। उसका लक्ष्य था कि सभी प्रकार के प्राणियों को उन नियमों के अंतर्गत जीने और बहुगुणित होने की अनुमति दे जिन्हें उसने स्थापित किया था। सृष्टि की कोई भी चीज़ इन नियमों के बाहर नहीं जा सकती है, और उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता है। केवल इस प्रकार के आधारभूत वातावरण के अंतर्गत ही मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी सकुशल जीवित रह सकते हैं और वंश-वृद्धि कर सकते हैं। यदि कोई प्राणी परमेश्वर के द्वारा स्थापित मात्रा या दायरे से बाहर चला जाता है, या वह उसके शासन के अधीन उस वृद्धि दर, प्रजनन आवृत्ति, या संख्या से अधिक बढ़ जाता है, तो जीवित रहने के लिए मानवजाति का वातावरण विनाश की भिन्न-भिन्न मात्राओं को सहेगा। और साथ ही, मानवजाति का जीवित रहना भी खतरे में पड़ जाएगा। यदि एक प्रकार का प्राणी संख्या में बहुत अधिक है, तो यह लोगों के भोजन को छीन लेगा, लोगों के जल-स्रोत को नष्ट कर देगा, और उनके निवासस्थान को बर्बाद कर देगा। उस तरह से, मनुष्य का प्रजनन या जीवित रहने की स्थिति तुरन्त प्रभावित होगी। उदाहरण के लिए, पानी सभी चीज़ों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यदि बहुत सारे चूहे, चींटियाँ, टिड्डियाँ और मेंढक या दूसरी तरह के बहुत से जानवर हों, तो वे बहुत सारा पानी पी जाएँगे। वे जो जल पीते हैं उसकी मात्रा बढ़ती जाती है, तो लोगों के पीने का पानी और पेयजल के स्त्रोतों के निश्चित दायरे में जल-स्रोत कम हो जाएँगे, जलीय क्षेत्र कम हो जाएँगे और उन्हें जल की कमी होगी। यदि लोगों के पीने का पानी नष्ट, दूषित, या खत्म हो जाता है क्योंकि सभी प्रकार के जानवर संख्या में बढ़ गए हैं, तो जीवित रहने के लिए उस प्रकार के कठोर वातावरण के अधीन, मानवजाति का जीवित रहना गंभीर रूप से खतरे में पड़ जाएगा। यदि एक प्रकार के या अनेक प्रकार के प्राणी अपनी उपयुक्त संख्या से आगे बढ़ जाते हैं, तो हवा, तापमान, आर्द्रता, और यहाँ तक कि मानवजाति के जीवित रहने के स्थान के भीतर की हवा के तत्व भी भिन्न-भिन्न मात्रा में ज़हरीले और नष्ट हो जाएँगे। इन परिस्थितियों के अधीन, मनुष्य का जीवित रहना और उसकी नियति भी उस प्रकार के वातावरण के खतरे में होगी। अतः, यदि ये संतुलन बिगड़ जाते हैं, तो वह हवा जिसमें लोग सांस लेते हैं, ख़राब हो जाएगी, वह जल जो वे पीते हैं, दूषित हो जाएगा, और वह तापमान जिसकी उन्हें ज़रुरत है वह भी बदल जाएगा, और भिन्न-भिन्न मात्रा से प्रभावित होगा। यदि ऐसा होता है, तो जीवित बचे रहने के लिए वातावरण जो स्वाभाविक रूप से मनुष्यजाति के हैं, बहुत बड़े प्रभावों और चुनौतियों के अधीन हो जाएँगे। इस परिस्थिति में जहाँ जीवित रहने के लिए मनुष्यों के आधारभूत वातावरण को नष्ट कर दिया गया है, मानवजाति की नियति और भविष्य की संभावनाएँ क्या होंगी? यह एक बहुत गंभीर समस्या है! क्योंकि परमेश्वर जानता है कि किस कारण से सृष्टि की प्रत्येक चीज़ मनुष्यजाति के वास्ते मौज़ूद है, हर एक प्रकार की चीज़ जिसे उसने बनाया है, उसकी भूमिका क्या है, इसका लोगों पर कैसा प्रभाव होता है, और यह मानवजाति के लिए कितना लाभ पहुँचाता है, परमेश्वर के हृदय में इन सब के लिए एक योजना है और वह सभी चीज़ों के हर एक पहलू का प्रबन्ध करता है जिसका उसने सृजन किया है, अतः हर एक कार्य जो वह करता है, मनुष्यों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और ज़रूरी है। तो अब से जब तुम सभी परमेश्वर द्वारा सृजी गयी चीज़ों के मध्य कोई पारिस्थितिक घटना या प्राकृतिक नियम देखोगे, तो परमेश्‍वर द्वारा रची गयी किसी चीज़ की अनिवार्यता के विषय में फ़िर कभी संदेह नहीं रखोगे। तुम सभी चीज़ों के विषय में परमेश्वर की व्यवस्थाओं पर और मानवजाति की आपूर्ति करने के लिए उसके विभिन्न तरीकों पर मनमाने ढंग से फैसले लेने के लिए अज्ञानता भरे शब्दों का उपयोग नहीं करोगे। साथ ही तुम परमेश्वर की सृष्टि के सभी चीज़ों के लिए उसके नियमों पर मनमाने ढंग से निष्कर्ष नहीं निकालोगे। क्या बात ऐसी ही नहीं है?

यह सब क्या है जिसके विषय में हमने अभी बात की है? इसके बारे में सोचो। हर उस चीज़ में, जो परमेश्वर करता है, उसका अपना इरादा होता है। भले ही मनुष्य के लिए उसके इरादे गूढ़ होते हैं, फिर भी यह हमेशा मानवजाति के जीवन से जटिलता और प्रबलता के साथ संबंधित होते हैं। यह पूरी तरह अपरिहार्य है। यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने कभी ऐसा काम नहीं किया जो व्यर्थ हो। क्योंकि हर चीज़ जो वह करता है, उसके पीछे के सिद्धांतों में उसकी योजना और बुद्धि होती है। उस योजना के पीछे के इरादे और लक्ष्य मनुष्य की सुरक्षा के लिए हैं, और किसी आपदा, किसी प्राणी द्वारा उत्पात और परमेश्वर की सृष्टि की किसी भी चीज़ के द्वारा मनुष्यों के किसी प्रकार के नुकसान को टालने हेतु मानवजाति की सहायता करने के लिए हैं। अतः क्या हम कह सकते हैं कि परमेश्वर के जिन कर्मों को हमने इस विषय के अंतर्गत देखा है, वह एक अन्य तरीका है जिससे परमेश्वर मनुष्य की आपूर्ति करता है? क्या हम कह सकते हैं कि इन कर्मों द्वारा परमेश्वर मानवजाति को खिला रहा है और उसकी चरवाही कर रहा है? (हाँ।) क्या इस विषय और हमारी संगति के शीर्षक : "परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है," के बीच एक मज़बूत संबंध है? (हाँ।) एक मज़बूत संबंध है, और यह विषय उसका एक पहलू है। इन विषयों के बारे में बात करने से पहले, लोगों के पास परमेश्वर, स्वयं परमेश्वर और उसके कर्मों की कुछ अस्पष्ट कल्पनाएँ थीं—उनके पास इन चीज़ों की सच्ची समझ नहीं थी। हालाँकि, जब लोगों को उसके कर्मों और उन चीज़ों के बारे में बताया जाता है जिन्हें उसने किया है, तो वे जो कुछ परमेश्वर करता है उसके सिद्धांतों को समझ-बूझ सकते हैं और वे उनकी समझ हासिल कर सकते हैं और उनकी पहुँच के भीतर आ सकते हैं—क्या ऐसी बात नहीं है? भले ही परमेश्वर जब भी सभी चीज़ों की सृष्टि करने, और उन पर शासन करने जैसा कुछ करता है तो उसके हृदय में, अत्यंत जटिल सिद्धांत, उसूल और नियम होते हैं, लेकिन यदि तुम लोगों को संगति में बस उनके एक भाग के बारे में जानने दिया जाये, तो क्या तुम सब अपने हृदय में यह समझने में सक्षम नहीं होगे कि ये परमेश्वर के कर्म हैं, और जितना हो सकता है उतने वास्तविक हैं? (हाँ।) तो फिर परमेश्वर के विषय में तुम सबकी वर्तमान सोच पहले से अलग कैसे है? यह अपने सार में भिन्न है। जो कुछ तुम सभी पहले समझते थे वह बहुत खोखला एवं अस्पष्ट था, परंतु अब तुम्हारी समझ में, परमेश्वर के कर्मों और परमेश्वर की स्वरूप से मिलान करने के लिए बहुत सारे ठोस प्रमाण शामिल हैं। अतः, वह सब कुछ जो मैंने कहा है वह परमेश्वर के विषय में तुम लोगों की समझ के लिए विशाल शैक्षिक सामग्री है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX

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