परमेश्वर ने विभिन्न नस्लों के बीच सीमाएँ खींची

06 अगस्त, 2018

... परमेश्वर ने सीमा-रेखाओं को इस तरह क्यों खींचा? यह सचमुच पूरी मानवजाति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है—सचमुच बेहद महत्वपूर्ण! परमेश्वर ने हर किस्म के जीव के लिए एक दायरा बनाया और हर प्रकार के मानव के लिए जीवित रहने के साधन तय किए हैं। साथ ही उसने इस पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के लोगों और विभिन्न नस्लों को भी विभाजित किया है और उनके दायरों को तय किया है। इसी पर हम आगे चर्चा करेंगे।

चौथा, परमेश्वर ने विभिन्न नस्लों के बीच सीमाएँ खींची। पृथ्वी पर गोरे लोग, काले लोग, भूरे लोग, और पीले लोग हैं। ये लोगों के विभिन्न प्रकार हैं। साथ ही परमेश्वर ने इन विभिन्न प्रकार के लोगों की ज़िन्दगियों के लिए दायरा भी तय किया है। लोग इससे अनजान रहते हुए, परमेश्वर के प्रबंधन के अधीन जीवित रहने के लिए अपने अनुकूल वातावरण के भीतर रहते हैं। कोई भी इसके बाहर कदम नहीं रख सकता। उदाहरण के लिए, गोरे लोगों की बात करते हैं। इनमें से अधिकांश लोग किस भौगोलिक इलाके में रहते हैं? वे अधिकांशतः यूरोप और अमेरिका में रहते हैं। काले लोग मुख्यतः जिस भौगोलिक सीमा में रहते हैं, वह अफ्रीका है। भूरे लोग मुख्य रूप से दक्षिणी-पूर्वी एशिया और दक्षिणी एशिया में, थाइलैण्ड, भारत, म्यांमार, वियतनाम और लाओस जैसे देशों में रहते हैं। पीले लोग मुख्य रूप से एशिया में, अर्थात् चीन, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में रहते हैं। परमेश्वर ने इन अलग-अलग प्रकार की सभी नस्लों को उचित रूप से विभाजित किया है ताकि ये अलग-अलग नस्लें संसार के विभिन्न भागों में वितरित हो जाएँ। संसार के इन अलग-अलग भागों में, परमेश्वर ने बहुत पहले से ही मनुष्यों की प्रत्येक नस्ल के जीवित रहने के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार किया है। जीवित रहने के लिए इस प्रकार के वातावरण के अंतर्गत, परमेश्वर ने उनके लिए मिट्टी के विविध रंग और तत्वों की रचना की। दूसरे शब्दों में, गोरे लोगों के शरीर के तत्व और काले लोगों के शरीर के तत्व समान नहीं हैं, और साथ ही वे अन्य नस्ल के लोगों के शरीर के तत्वों से भी भिन्न हैं। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की, तब उसने पहले से ही उस नस्ल के अस्तित्व के लिए एक वातावरण तैयार कर लिया था। ऐसा करने का उसका उद्देश्य यह था कि जब उस प्रकार के लोग अपने वंश की वृद्धि शुरू करें, जब उनकी संख्या बढ़ने लगे, तो उन्हें एक दायरे के भीतर सीमित किया जा सके। मनुष्य की रचना करने से पहले ही परमेश्वर ने इन सारी बातों पर विचार कर लिया था—वह गोरे लोगों को विकसित होने और जीवित रहने के लिये यूरोप और अमेरिका देगा। अतः जब परमेश्वर पृथ्वी की सृष्टि कर रहा था तब उसके पास पहले से ही एक योजना थी, भूमि के एक हिस्से में वह जो कुछ रख रहा था, वहाँ जिसका पालन-पोषण कर रहा था, इन सबके पीछे उसका एक लक्ष्य और उद्देश्य था। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने बहुत पहले से ही तैयारी कर ली थी कि उस भूमि पर कौन-से पर्वत, कितने मैदान, कितने जल-स्रोत, किस प्रकार के पशु-पक्षी, कौन-सी मछलियाँ, और कौन-से पेड़-पौधे होंगे। किसी एक प्रकार के मानव, एक नस्ल के जीवित रहने के लिए वातावरण तैयार करते समय, परमेश्वर ने अनेक मुद्दों पर हर दृष्टिकोण से विचार किया था : भौगोलिक वातावरण, मिट्टी के तत्व, पशु-पक्षी की विभिन्न प्रजातियां, विभिन्न प्रकार की मछलियों के आकार, मछलियों के तत्व, पानी की गुणवत्ता में असमानताएँ, साथ ही विभिन्न प्रकार के सभी पेड़-पौधे...। परमेश्वर ने इन सारी चीजों को बहुत पहले ही तैयार कर लिया था। उस प्रकार का वातावरण जीवित बचे रहने के लिए एक ऐसा वातावरण है जिसे परमेश्वर ने गोरे लोगों के लिए सृजित और तैयार किया और जो प्राकृतिक रूप से उनका है। क्या तुम लोगों ने देखा है कि जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की, तो उसने उसमें बहुत ज़्यादा सोच-विचार किया और एक योजना के तहत कार्य किया? (हाँ, हमने देखा है कि विभिन्न प्रकार के लोगों के प्रति परमेश्वर बहुत ही विचारशील था। विभिन्न प्रकार के मनुष्यों के जीवित रहने के लिए जो वातावरण उसने निर्मित किया उसमें किस प्रकार के पशु-पक्षी और किस प्रकार की मछलियां रहेंगी, वहाँ कितने सारे पर्वत और मैदान होंगेइन सभी पर उसने बहुत सूक्ष्मता से सोच-समझ कर विचार किया था।) उदाहरण के लिए, गोरे लोग मुख्य रूप से कौन-सा आहार खाते हैं? जो आहार गोरे लोग खाते हैं वह उन आहारों से बिलकुल अलग है जो एशिया के लोग खाते हैं। जो खाद्य पदार्थ गोरे लोग खाते हैं वे मुख्यतः मांस, अण्डे, दूध और मुर्गीपालन के पदार्थ हैं। अनाज जैसे रोटी और चावल सामान्यतः मुख्य आहार नहीं हैं, उन्हें थाली पर किनारे रखा जाता है। सलाद में भी कुछ भुना हुआ माँस या चिकन डालते हैं। गेहूँ पर आधारित आहार में भी वे चीज़, अण्डे, और मांस डाल देते हैं। यानी, उनके मुख्य भोज्य पदार्थ गेहूँ पर आधारित आहार या चावल नहीं हैं; वे लोग माँस और चीज़ बहुत खाते हैं। वे प्रायः बर्फीला पानी पीते हैं क्योंकि वे लोग उच्च कैलोरी युक्त आहार खाते हैं। अतः गोरे लोग असाधारण रूप से तगड़े होते हैं। ये उनकी आजीविका के स्रोत हैं, जीने के लिए उनके वातावरण हैं जिन्हें परमेश्वर ने उनके लिए तैयार किया था, ताकि वे उस तरह की जीवनशैली में रह सकें। यह जीवनशैली अन्य नस्लों के लोगों की जीवनशैलियों से अलग है। इस जीवनशैली में कुछ सही या ग़लत नहीं है—यह जन्मजात, परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित और परमेश्वर के शासन और उसकी व्यवस्था के कारण है। इस प्रकार की नस्ल के पास इस तरह की जीवनशैली और आजीविका के ऐसे साधन, उनकी नस्ल के कारण हैं, और साथ ही जीवित रहने के लिए उस वातावरण के कारण हैं जिसे परमेश्वर द्वारा उनके लिए तैयार किया गया था। तुम कह सकते हो कि जीवित रहने के लिए जो वातावरण परमेश्वर ने गोरे लोगों के लिए तैयार किया और जो दैनिक आहार वे उस वातावरण से प्राप्त करते हैं, वह समृद्ध और प्रचुर है।

परमेश्वर ने दूसरी नस्लों के जीवित रहने के लिए भी आवश्यक वातावरण तैयार किया। काले लोग भी हैं—काले लोग किस जगह अवस्थित हैं? वे मुख्य रूप से मध्य और दक्षिणी अफ्रीका में अवस्थित हैं। उस प्रकार के वातावरण में जीने के लिए परमेश्वर ने उनके लिए क्या तैयार किया? उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन, सभी प्रकार के पशु-पक्षी, साथ ही मरुस्थल, और सभी प्रकार के पेड़-पौधे जो उनके आस-पास रहते हैं। उनके पास जल के स्रोत, अपनी आजीविका, और भोजन हैं। परमेश्वर उनके प्रति पक्षपातपूर्ण नहीं था। चाहे उन्होंने हमेशा से जो भी किया हो, उनका ज़िन्दा रहना कभी कोई मुद्दा नहीं रहा है। वे भी संसार के एक निश्चित स्थान और क्षेत्र में बसे हुए हैं।

अब हम पीले लोगों के बारे में कुछ बात करते हैं। पीले लोग मुख्य रूप से पूर्व में अवस्थित हैं। पूरब और पश्चिम के वातावरण और भौगोलिक स्थितियों के बीच क्या भिन्नताएँ हैं? पूरब में अधिकांश भूमि उपजाऊ है, और यह पदार्थों और खनिज भण्डारों से समृद्ध है। अर्थात्, भूमि के ऊपर और भूमि के नीचे की सब प्रकार की संपदाएँ बहुतायत में उपलब्ध हैं। और इस समूह के लोगों के लिए, अर्थात् इस नस्ल के लिए, परमेश्वर ने अनुकूल मिट्टी, जलवायु, और विभिन्न भौगोलिक वातावरण को भी तैयार किया जो उनके लिए उपयुक्त हैं। हालांकि यहाँ के भौगोलिक वातावरण और पश्चिम के वातावरण के बीच बहुत भिन्नताएँ हैं, फिर भी लोगों के लिए आवश्यक भोजन, उनकी जीविका, और जीवित रहने के लिए उनके साधन परमेश्वर द्वारा तैयार किए गए। पश्चिम में गोरे लोगों के पास जो वातावरण है, उसकी तुलना में यह बस एक अलग वातावरण है। लेकिन वह कौन-सी एक चीज़ है, जिसे मुझे तुम लोगों को बताने की आवश्यकता है? पूर्वी नस्ल के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, इसलिए परमेश्वर ने बहुत सारे ऐसे तत्वों को पृथ्वी के उस हिस्से में जोड़ दिया जो पश्चिम से भिन्न हैं। उस भाग में, उसने बहुत सारे अलग अलग भूदृश्यों और सब प्रकार की भरपूर सामग्रियों को जोड़ दिया। वहाँ प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं; साथ ही भूभाग भी विभिन्न एवं विविध प्रकार के हैं, जो पूर्वी नस्ल के लोगों की विशाल संख्या का पालन-पोषण करने के लिए पर्याप्त हैं। जो चीज़ पूर्व को पश्चिम से अलग करती है वह है—दक्षिण से उत्तर तक, और पूर्व से पश्चिम तक—जलवायु पश्चिम से बेहतर है। चारों ऋतु स्पष्ट रूप से भिन्न हैं, तापमान अनुकूल हैं, प्राकृतिक संपदाएँ प्रचुर मात्रा में हैं, और प्राकृतिक दृश्य और भूभाग के प्रकार पश्चिम से बहुत बेहतर हैं। परमेश्वर ने ऐसा क्यों किया? परमेश्वर ने गोरे और पीले लोगों के बीच एक बहुत ही तर्कसंगत सन्तुलन बनाया था। इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि गोरे लोगों के खान-पान के हर पहलू, उनके उपयोग में आने वाली हर चीज, और मनोरंजन के लिये उन्हें उपलब्ध कराए गए साधन—ये सारी चीजें पीले लोगों को उपलब्ध सुविधाओं से कहीं बेहतर हैं। फिर भी, परमेश्वर किसी भी नस्ल के प्रति पक्षपातपूर्ण नहीं है। परमेश्वर ने जीवित रहने के लिए पीले लोगों को कहीं अधिक ख़ूबसूरत और बेहतर वातावरण दिया। यही संतुलन है।

परमेश्वर ने पूर्व-नियत कर दिया है कि किस प्रकार के लोग दुनिया के किस भाग में रहने चाहिए; क्या मनुष्य इन सीमाओं के बाहर जा सकते हैं? (नहीं, वे नहीं जा सकते।) यह कितनी अद्भुत चीज़ है! यदि विभिन्न युगों या विशेष समय के दौरान युद्ध या अतिक्रमण हुए हों, तो भी ये युद्ध, और ये अतिक्रमण जीवित रहने के लिए उन वातावरणों को बिल्कुल नष्ट नहीं कर सकते जिन्हें परमेश्वर ने प्रत्येक नस्ल के लिए पूर्वनिर्धारित किया हुआ है। अर्थात्, परमेश्वर ने संसार के एक निश्चित भाग में किसी एक प्रकार के लोगों को बसाया है और वे उस दायरे के बाहर नहीं जा सकते। भले ही लोगों में अपने सीमा-क्षेत्रों को बदलने या फैलाने की किसी प्रकार की महत्वाकांक्षा हो, फिर भी परमेश्वर की अनुमति के बिना, इसे हासिल कर पाना बहुत मुश्किल होगा। उनके लिए इसमें सफलता प्राप्त करना बहुत ही कठिन होगा। उदाहरण के लिए, गोरे लोग अपने सीमा-क्षेत्र का विस्तार करना चाहते थे और उन्होंने अन्य देशों में उपनिवेश बनाए। जर्मनी ने कुछ देशों पर आक्रमण किया, और इंग्लैण्ड ने कभी भारत पर कब्ज़ा कर लिया था। परिणाम क्या हुआ? अंत में वे विफल हो गए। हम उनकी इस असफलता में क्या देखते हैं? जो कुछ परमेश्वर ने पूर्व-निर्धारित कर रखा है उसे नष्ट करने की अनुमति नहीं दी गई है। अतः, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह गति कितनी तेज थी जो शायद तुमने ब्रिटेन के विस्तार में देखी होगी, अंततः उन्हें तब भी भारत की भूमि को छोड़ कर, पीछे लौटना पड़ा। वे लोग जो उस भूमि में रहते हैं अभी भी भारतीय हैं, अंग्रेज़ नहीं, क्योंकि परमेश्वर ऐसा करने नहीं देगा। इतिहास या राजनीति पर शोध करने वालों में से कुछ लोगों ने इस विषय पर शोध-प्रबंध प्रस्तुत किए हैं। वे इंगलैंड की असफलता के कारण बताते हुए यह कहते हैं कि हो सकता है कि किसी जातीय समूह विशेष पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती हो, या इसका कोई अन्य मानवीय कारण हो सकता है...। ये वास्तविक कारण नहीं हैं। वास्तविक कारण है परमेश्वर—वह इसकी अनुमति नहीं देता! परमेश्वर किसी जातीय समूह को एक निश्चित भूभाग में रहने की अनुमति देता है और वह उन्हें वहाँ बसाता है और यदि परमेश्वर उन्हें स्थान बदलने की अनुमति न दे तो वे कभी भी स्थान नहीं बदल पाएँगे। यदि परमेश्वर उनके लिए एक दायरा निर्धारित करता है, तो वे उस दायरे के भीतर ही रहेंगे। मानवजाति इन दायरों को तोड़ कर मुक्त नहीं हो सकती या इन निर्धारित दायरों को तोड़ कर बाहर नहीं जा सकती है। यह निश्चित है। आक्रमणकारियों की ताकत कितनी भी ज़्यादा क्यों न हो या जिन पर आक्रमण किया जा रहा है वे कितने भी कमज़ोर क्यों न हों, आक्रमणकारियों की सफलता का निर्णय अंततः परमेश्वर पर ही निर्भर है। उसने पहले से ही इसे पूर्वनिर्धारित कर दिया है और कोई भी इसे बदल नहीं सकता।

परमेश्वर ने उपर्युक्त वर्णित तरीके से विभिन्न नस्लों का विभाजन किया है। परमेश्वर ने नस्लों के विभाजन के लिए कौन-सा कार्य किया है? पहले तो, उसने लोगों के लिए अलग-अलग भूभाग आवंटित करते हुए व्यापक भौगोलिक वातावरण तैयार किया, और फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग वहाँ रहे। यह तय हो चुका है—उनके जीवित रहने के लिए दायरा तय हो चुका है। और उनकी ज़िन्दगियां, उनका खाना-पीना, उनकी आजीविका—परमेश्वर ने यह सब बहुत पहले ही तय कर दिया था। और जब परमेश्वर सभी चीज़ों की रचना कर रहा था, उसने अलग-अलग प्रकार के लोगों के लिए अलग-अलग तैयारियां कीं : मिट्टी के अलग-अलग घटक, विभिन्न जलवायु, विभिन्न पेड़-पौधे, और विभिन्न भौगोलिक वातावरण हैं। अलग-अलग स्थानों में पशु-पक्षी भी अलग-अलग हैं, जल के अलग-अलग स्रोतों में उनकी अपनी विशेष प्रकार की मछलियां और जलोत्पाद हैं। कीड़े-मकोड़ों की किस्में भी परमेश्वर द्वारा निर्धारित की गई हैं। उदाहरण के लिए, जो चीज़ें अमेरिकी महाद्वीप में उगती हैं वे सब बहुत विशाल, बहुत ऊँची, और बहुत मज़बूत होती हैं। पहाड़ के जंगल में पेड़ों की जड़ें बहुत छिछली होती हैं, किन्तु वे बहुत ऊँचाई तक बढ़ते हैं। वे सौ मीटर या उससे भी अधिक ऊँचे हो सकते हैं, लेकिन एशिया के जंगलों में पेड़ बहुधा उतने ऊँचे नहीं होते। उदाहरण के लिए मुसब्बर पौधों को लें। जापान में वे बहुत कम चौड़े, एवं बहुत पतले होते हैं, किन्तु अमेरीका में यही पौधे बहुत बड़े होते हैं। यहाँ एक अंतर है। दोनों पौधे एक ही हैं, नाम भी समान है, परन्तु अमेरिकी महाद्वीप में यह विशेष रूप से बड़ा होता है। विभिन्न पहलुओं की इन भिन्नताओं को शायद लोग देख या महसूस न कर सकें, किन्तु जब परमेश्वर सभी चीज़ों की रचना कर रहा था, तब उसने उनकी रूपरेखा निरुपित की और विभिन्न नस्लों के लिए विभिन्न भौगोलिक वातावरण, विभिन्न भूभागों, और विभिन्न जीवित प्राणियों को तैयार किया। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर ने विभिन्न प्रकार के लोगों का सृजन किया है, और वह जानता है कि उनमें से प्रत्येक की जरूरतें और जीवनशैलियां क्या हैं।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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