परमेश्वर द्वारा मनुष्यजाति के लिए बनाया जाने वाला बुनियादी जीवित रहने का पर्यावरण : वायु का प्रवाह

06 अगस्त, 2018

पाँचवीं चीज़ क्या है? यह चीज़ प्रत्येक मनुष्य के दैनिक जीवन से बहुत ज़्यादा जुड़ी हुई है, और यह संबंध मज़बूत है। यह कुछ ऐसा है जिसके बिना मानव शरीर इस भौतिक जगत में जीवित नहीं रह सकता है। यह चीज़ वायु का प्रवाह है। "वायु का प्रवाह" ऐसा शब्द है जिसे शायद सभी लोग समझते हैं। तो वायु का प्रवाह क्या है? तुम ऐसा कह सकते हो कि हवा के बहने को "वायु का प्रवाह" कहते हैं। वायु का प्रवाह वह हवा है जिसे मानवीय आँखें नहीं देख सकती हैं। यह एक ऐसा तरीका भी है जिससे गैस बहती है। किन्तु वायु का प्रवाह क्या है जिसके बारे में हम यहाँ बात कर रहे हैं? जैसे ही मैं कहूँगा तुम लोग समझ जाओगे। पृथ्वी घूमती हुई पहाड़ों, महासागरों और सभी चीज़ों को उठाए रहती है, और जब यह घूमती है तो उसमें गति होती है। यद्यपि तुम किसी घूर्णन को महसूस नहीं कर सकते हो, फिर भी उसका घूर्णन वास्तव में विद्यमान है। उसका घूर्णन क्या लाता है? जब तुम दौड़ते हो तो तुम्हारे कानों के आस पास हवा होती है? यदि जब तुम दौड़ते हो तो हवा पैदा हो सकती है, तो जब पृथ्वी घूर्णन करती है हवा की शक्ति क्यों नहीं हो सकती है? जब पृथ्वी घूर्णन करती है, तब सभी चीज़ें गतिमान होती हैं। यह गतिवान होती है और एक निश्चित गति से घूर्णन करती है, जबकि पृथ्वी पर सभी चीज़ें निरन्तर आगे बढ़ रही और विकसित हो रही होती हैं। इसलिए, एक निश्चित गति से गतिमान होने से स्वाभाविक रूप से वायु का प्रवाह उत्पन्न होगा। वायु का प्रवाह ऐसा ही है। क्या यह वायु का प्रवाह कुछ निश्चित हद तक मानव शरीर को प्रभावित करेगा? सामान्य तूफ़ान उतने प्रबल नहीं होते हैं, किन्तु जब वे टकराते हैं, तो लोग स्थिर खड़े नहीं रह सकते हैं और उन्हें हवा में चलने में कठिनाई होती है। यहाँ तक कि एक कदम लेना भी कठिन होता है। यह इतना प्रबल होता है, कि कुछ लोगों को हवा के द्वारा किसी चीज़ के विरुद्ध धकेल दिया जाता है और वे हिल नहीं सकते हैं। यह एक तरीका है जिससे वायु का प्रवाह मानवजाति को प्रभावित कर सकता है। यदि सारी पृथ्वी मैदान से भरी होती, तो मानव शरीर के लिए वायु के उस प्रवाह के सामने टिकना अत्यंत कठिन होता जो पृथ्वी के घूर्णन और सभी चीज़ों के एक निश्चित गति से चलने के द्वारा उत्पन्न होता इसे सँभालना बहुत कठिन होता। यदि मामला ऐसा होता, तो वायु का यह प्रवाह न केवल मानवजाति के लिए क्षति लेकर आता, बल्कि विध्वंस भी लेकर आता। ऐसे पर्यावरण में कोई भी ज़िन्दा बचने में समर्थ नहीं होता। यही कारण है कि विभिन्न पर्यावरणों में ऐसे वायु के प्रवाहों का समाधान करने के लिए परमेश्वर विभिन्न भौगोलिक पर्यावरणों का उपयोग करता है, वायु के प्रवाह कमज़ोर पड़ जाते हैं, अपनी दिशाएँ बदल लेते हैं, अपनी गति बदल लेते हैं, और अपने बल को बदल लेते हैं। इसीलिए लोग पहाड़ों, पर्वत मालाओं, मैदानों, पहाड़ियों, घाटियों, तराईयों, पठारों एवं नदियों जैसे विभिन्न भौगोलिक पर्यावरणों को देख सकते हैं। परमेश्वर वायु के प्रवाह की गति, दिशा और बल को परिवर्तित करने के लिए इन विभिन्न भौगोलिक पर्यावरणों का उपयोग करता है, उसे एक उचित वायु गति, वायु दिशा और वायु बल में घटाने और हेरफेर करने के लिए वह ऐसी पद्धतियों का उपयोग करता है, ताकि मनुष्य के पास एक सामान्य रहने का वातावरण हो सके। क्या ऐसा करना आवश्यक है? (हाँ।) इस तरह का कुछ करना मनुष्य के लिए कठिन प्रतीत होता है, किन्तु यह परमेश्वर के लिए आसान है क्योंकि वह सभी चीज़ों का अवलोकन करता है। उसके लिए मनुष्यजाति के लिए उपयुक्त वायु के प्रवाह वाला एक पर्यावरण बनाना बहुत सरल है, बहुत आसान है। इसलिए, परमेश्वर के द्वारा बनाए गए एक ऐसे पर्यावरण में, सभी चीज़ों के बीच हर एक चीज़ अपरिहार्य है। उन सभी के अस्तित्व का महत्व और आवश्यकता है। हालाँकि, यह दर्शन शैतान और भ्रष्ट कर दी गयी मनुष्यजाति की समझ में नहीं आता है। वे पहाड़ों को समतल भूमि बनाने, घाटियों को भरने, और कंक्रीट के जंगल बनाने के लिए समतल भूमि पर गगनचुम्बी इमारतें बनाने के व्यर्थ स्वप्न देखते हुए, लगातार ढहाते और निर्माण करते रहते हैं। यह परमेश्वर की आशा है कि मनुष्यजाति प्रसन्नता से रह सके, प्रसन्नता से प्रगति कर सके, और प्रत्येक दिन को उस उपयुक्त वातावरण में प्रसन्नता से बिता सके जिसे उसने उनके लिए बनाया है। इसीलिए जब मनुष्यजाति के रहने के लिए वातावरण से निपटने की बात आती है तो परमेश्वर कभी भी असावधान नहीं रहा है। तापमान से लेकर वायु तक, आवाज़ से लेकर प्रकाश तक, परमेश्वर ने जटिल योजनाएँ बनाई हैं और जटिल व्यवस्थाएँ की हैं, ताकि मनुष्यजाति के शरीर और उनके रहने का पर्यावरण प्राकृतिक स्थितियों से किसी व्यवधान के अधीन नहीं होगा, और उसके बजाए मनुष्यजाति जीवित रहने और बहुगुणित होने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में सभी चीज़ों के साथ सामान्य रूप से जीने में समर्थ होगी। यह सब परमेश्वर के द्वारा सभी चीज़ों और मनुष्यजाति को प्रदान किया जाता है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII

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