शैतानी कब्ज़ा क्या है? शैतानी कब्ज़े की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं?

14 मार्च, 2021

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। परमेश्वर का कार्य मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता; उदाहरण के लिए, पुराने नियम ने मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी की, और इस भविष्यवाणी का परिणाम यीशु का आगमन था। चूँकि यह पहले ही घटित हो चुका है, इसलिए एक और मसीहा का पुनः आना ग़लत होगा। यीशु एक बार पहले ही आ चुका है, और यदि यीशु को इस समय फिर आना पड़ा, तो यह गलत होगा। प्रत्येक युग के लिए एक नाम है, और प्रत्येक नाम में उस युग का चरित्र-चित्रण होता है। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना

कुछ ऐसे लोग हैं, जो दुष्टात्माओं से ग्रस्त हैं और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते रहते हैं, "मैं परमेश्‍वर हूँ!" लेकिन अंत में, उनका भेद खुल जाता है, क्योंकि वे गलत चीज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे शैतान का प्रतिनिधित्व करते हैं, और पवित्र आत्मा उन पर कोई ध्यान नहीं देता। तुम अपने आपको कितना भी बड़ा ठहराओ या तुम कितना भी जोर से चिल्लाओ, तुम फिर भी एक सृजित प्राणी ही रहते हो और एक ऐसा प्राणी, जो शैतान से संबंधित है। मैं कभी नहीं चिल्लाता, "मैं परमेश्वर हूँ, मैं परमेश्वर का प्रिय पुत्र हूँ!" परंतु जो कार्य मैं करता हूँ, वह परमेश्वर का कार्य है। क्या मुझे चिल्लाने की आवश्यकता है? मुझे ऊँचा उठाए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर अपना काम स्वयं करता है और वह नहीं चाहता कि मनुष्य उसे हैसियत या सम्मानजनक उपाधि प्रदान करे : उसका काम उसकी पहचान और हैसियत का प्रतिनिधित्व करता है। अपने बपतिस्मा से पहले क्या यीशु स्वयं परमेश्वर नहीं था? क्या वह परमेश्वर द्वारा धारित देह नहीं था? निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि केवल गवाही मिलने के पश्चात् ही वह परमेश्वर का इकलौता पुत्र बना। क्या उसके द्वारा काम शुरू करने से बहुत पहले ही यीशु नाम का कोई व्यक्ति नहीं था? तुम नए मार्ग लाने या पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो। तुम पवित्र आत्मा के कार्य को या उसके द्वारा बोले जाने वाले वचनों को व्यक्त नहीं कर सकते। तुम स्वयं परमेश्वर का या पवित्रात्मा का कार्य करने में असमर्थ हो। परमेश्वर की बुद्धि, चमत्कार और अगाधता, और उसके स्वभाव की समग्रता, जिसके द्वारा परमेश्वर मनुष्य को ताड़ना देता है—इन सबको व्यक्त करना तुम्हारी क्षमता के बाहर है। इसलिए परमेश्वर होने का दावा करने की कोशिश करना व्यर्थ होगा; तुम्हारे पास सिर्फ़ नाम होगा और कोई सार नहीं होगा। स्वयं परमेश्वर आ गया है, किंतु कोई उसे नहीं पहचानता, फिर भी वह अपना काम जारी रखता है और ऐसा वह पवित्रात्मा के प्रतिनिधित्व में करता है। चाहे तुम उसे मनुष्य कहो या परमेश्वर, प्रभु कहो या मसीह, या उसे बहन कहो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। परंतु जो कार्य वह करता है, वह पवित्रात्मा का है और वह स्वयं परमेश्वर के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि मनुष्य उसे किस नाम से पुकारता है। क्या वह नाम उसके काम का निर्धारण कर सकता है? चाहे तुम उसे कुछ भी कहकर पुकारो, जहाँ तक परमेश्वर का संबंध है, वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारी स्वरूप है; वह पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करता है और उसके द्वारा अनुमोदित है। यदि तुम एक नए युग के लिए मार्ग नहीं बना सकते, या पुराने युग का समापन नहीं कर सकते, या एक नए युग का सूत्रपात या नया कार्य नहीं कर सकते, तो तुम्हें परमेश्वर नहीं कहा जा सकता!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1)

कुछ लोग होते हैं जो जब तक कोई मुद्दा नहीं उठता, बहुत सामान्य होते हैं, जो बहुत सामान्य रूप से बात करते और चर्चा करते हैं, जो सामान्य लगते हैं और जो कुछ भी बुरा नहीं करते हैं। लेकिन जब सभाओं में परमेश्वर के वचनों को पढ़ा जा रहा होता है, जब सत्य की संगति की जा रही होती है, तो वे अचानक असामान्य व्यवहार करने लगते हैं। कुछ सुनना सहन नहीं कर पाते, कुछ ऊंघने लगते हैं और कुछ बीमार पड़ जाते हैं, यह कहते हुए कि उन्हें बुरा लग रहा है और वे अब और नहीं सुनना चाहते। वे बिल्कुल अनजान होते हैं-यहां क्या कुछ चल रहा है? उन पर एक दुष्ट आत्मा चढ़ी होती है। तो फिर किसी दुष्ट आत्मा के अधीन होकर वे लोग ये शब्द क्यों बोलते रहते हैं "मैं इसे नहीं सुनना चाहता"? कभी-कभी लोग समझ नहीं पाते हैं कि यहां क्या हो रहा है, लेकिन एक दुष्ट आत्मा के लिए यह बिल्कुल स्पष्ट होता है। मसीह-विरोधियों में यही आत्मा होती है। तुम उनसे पूछो कि वे सत्य के प्रति इतने शत्रुतापूर्ण क्यों हैं, तो वे कहेंगे कि वे नहीं हैं, और वे दृढ़तापूर्वक इसे मानने से इनकार करेंगे। लेकिन अपने दिल में वे जानते हैं कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते। जब वे परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते, तब दूसरों से मिलने-जुलने में वे सामान्य लगते हैं। तुम्हें पता नहीं चलेगा कि उनके अंदर क्या चल रहा है। जब वे कोशिश करके परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, तो तुरंत उनके मुँह से ये शब्द निकलते हैं, "मैं इसे नहीं सुनना चाहता"; उनकी प्रकृति उजागर हो जाती है और वे जो हैं, यही हैं। क्या परमेश्वर के वचनों ने उन्हें उकसाया है, प्रकट किया है या वहां चोट पहुँचाई है, जहां दर्द होता है? ऐसा कुछ भी नहीं। दरअसल हुआ यह है कि जब बाकी सभी लोग परमेश्वर के वचन पढ़ रहे होते हैं, वे कहते हैं कि वे उसे नहीं सुनना चाहते। क्या वे दुष्ट नहीं हैं? (हाँ।) दुष्ट होने का क्या अर्थ होता है? इसका अर्थ होता है बिना किसी स्पष्ट कारण और बिना जाने क्यों किसी चीज़ के प्रति और सकारात्मक चीज़ों के प्रति बहुत शत्रुतापूर्ण होना। वे वास्तव में कहना चाहते हैं, “जैसे ही मुझे परमेश्वर के वचन सुनाई पड़ते हैं, ये बात मेरे मुँह में आ जाती है; जैसे ही मुझे परमेश्वर की गवाही सुनाई पड़ती है, मुझमें विरक्ति पैदा हो जाती है, मुझे नहीं पता क्यों। जब मैं किसी ऐसे व्यक्ति को देखता हूँ, जो सत्य का अनुसरण करता है या सत्य से प्रेम करता है, मैं उन्हें चुनौती देना चाहता हूँ, मैं हमेशा उन्हें डांटना चाहता हूँ या उनकी पीठ पीछे उन्हें नुकसान पहुँचाने वाला कोई काम करना चाहता हूँ, मैं उन्हें मार देना चाहता हूँ।” ऐसा कहना उनकी दुष्टता दर्शाता है। दरअसल, शुरुआत से ही मसीह-विरोधियों में कभी भी सामान्य व्यक्ति की आत्मा नहीं रही और उनमें कभी भी सामान्य मानवता नहीं रही–वास्तव में यही सब चल रहा है।

— "मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'नायकों और कार्यकर्ताओं के लिए, एक मार्ग चुनना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है (5)' से उद्धृत

संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण:

राक्षसों के कब्ज़े में वे लोग होते हैं जो दुष्ट आत्माओं द्वारा दबाये गए और नियंत्रित होते हैं। मनोविक्षिप्ति या कभी-कभी मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाना और सामान्य विवेक को पूरी तरह से खो देना, इसकी मुख्य अभिव्यक्ति होती है। ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ होते हैं और केवल विघ्न और उपद्रव पैदा करने वाली भूमिकाएँ निभाकर शैतान के सेवक के रूप में कार्य कर सकते हैं। इसलिए, वे परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं लेकिन बचाये नहीं जा सकते हैं और उन्हें निष्कासित कर देना चाहिए। बुरी आत्माओं के वशीभूत लोग प्राथमिक रूप से स्वयं को नीचे लिखे दस तरीक़ों से व्यक्त करते हैं :

1. जो लोग परमेश्वर या मसीह होने का नाटक करते हैं वे दुष्ट आत्माओं के वश में होते हैं।

2. जो लोग यह ढोंग करते हैं कि उनमें स्वर्गदूतों की आत्माएँ बसी हैं, वे दुष्ट आत्माओं के वश में होते हैं।

3. जो लोग एक और देहधारी परमेश्वर होने का नाटक करते हैं, वे सब दुष्ट आत्माओं के वश में होते हैं।

4. जो लोग परमेश्वर के वचनों को अपने शब्द बताते हैं या लोगों से अपने वचनों को परमेश्वर के वचन मान लेने के लिए कहते हैं, वे सभी दुष्ट आत्माओं के कब्ज़े में होते हैं।

5. जो लोग अपना अनुसरण और आज्ञापालन करवाने के लिए पवित्र आत्मा द्वारा अपना उपयोग किये जाने का नाटक करते हैं, वे दुष्ट आत्माओं के वश में होते हैं।

6. जो लोग अक्सर ज़ुबानों में बोलते हैं, भाषाओँ की व्याख्या करते हैं, और सभी प्रकार के अलौकिक दृश्यों को देख सकते हैं, या अक्सर दूसरों के पापों को इंगित करते हैं, वे दुष्ट आत्माओं के कब्ज़े में होते हैं।

7. जो लोग अक्सर आत्माओं की अलौकिक बातें सुनते हैं या आत्माओं की आवाज़ें सुनते हैं या अक्सर भूतों को देखते हैं, और जो लोग स्पष्ट रूप से कुछ हद तक दिमाग से सही नहीं होते हैं, वे दुष्ट आत्माओं के वश में हैं।

8. जो सामान्य मानवता की मानसिक क्षमताएँ गँवा देता है, जो अक्सर शैतानी बातें कहते हैं, अक्सर खुद से बात करते हैं, बकबक करते हैं या अक्सर कहते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें निर्देश दिया है और पवित्र आत्मा ने उन्हें छुआ है, वे सब दुष्ट आत्माओं के वश में हैं।

9. जिन लोगों के साथ मनोविक्षिप्ति की घटनाएँ हो चुकी हैं, जो मूर्खतापूर्ण काम करते हैं, जो लोगों से सहजता से बात नहीं कर पाते हैं और कभी-कभी पागल-से और खोये-से रहते हैं, वे सब दुष्ट आत्माओं के वश में हैं। जो लोग समलैंगिकों के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं राक्षसों के कब्ज़े में रहने वाले लोग हैं, वे भी निष्कासित किये जाएँगे।

10. कुछ लोग आमतौर पर काफी सामान्य होते हैं, लेकिन कुछ महीनों या एक-दो वर्षों में, उत्तेजित हो सकते हैं और उनमें कोई मानसिक विकार पैदा हो सकता है। विकार के समय वे पूरी तरह से उन लोगों के समान होते हैं जो राक्षसों के वश में हैं। यद्यपि ये लोग कभी-कभी सामान्य होते हैं, फिर भी उन्हें दुष्ट आत्माओं के कब्ज़े में रहे लोगों की तरह वर्गीकृत किया जाता है। (यदि किसी व्यक्ति को कई साल पहले मानसिक विकार हो चुका हो, लेकिन बाद में कई साल तक ऐसा न हुआ हो, और वह परमेश्वर में विश्वास करने के सत्य को समझ गया हो और उसे स्वीकार कर लिया हो, और उसमें कुछ बदलाव हुए हों, तो उसको बुरी आत्माओं से वशीभूत के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा।)

जो व्यक्ति राक्षसों के कब्ज़े में होता है, वह पूरी तरह से शैतान द्वारा वशीभूत, नियंत्रित और शापित होता है।

— 'कार्य व्यवस्था' से उद्धृत

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