जो कलीसिया परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर उसका अनुपालन करती है उसे परमेश्वर का आशीष मिलता है, जबकि धार्मिक जगत को परमेश्वर का विरोध करने के कारण उसके द्वारा शाप मिलता है

18 मार्च, 2018

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

परमेश्वर के विश्वासी होने के नाते, तुममें से प्रत्येक को सराहना करनी चाहिए कि अंत के दिनों के परमेश्वर का कार्य ग्रहण करके और उसकी योजना का वह कार्य ग्रहण करके जो आज वह तुममें करता है, तुमने किस तरह अधिकतम उत्कर्ष और उद्धार सचमुच प्राप्त कर लिया है। परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को समस्त ब्रह्माण्ड भर में अपने कार्य का एकमात्र केंद्रबिंदु बनाया है। उसने तुम लोगों के लिए अपने हृदय का रक्त तक निचोड़कर दे दिया है; उसने ब्रह्माण्ड भर में पवित्रात्मा का समस्त कार्य पुनः प्राप्त करके तुम लोगों को दे दिया है। इसी कारण से मैं कहता हूँ कि तुम लोग सौभाग्यशाली हो। इतना ही नहीं, वह अपनी महिमा इस्राएल, उसके चुने हुए लोगों से हटाकर तुम लोगों के ऊपर ले आया है, और वह इस समूह के माध्यम से अपनी योजना का उद्देश्य पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष करेगा। इसलिए तुम लोग ही वह हो जो परमेश्वर की विरासत प्राप्त करोगे, और इससे भी अधिक, तुम परमेश्वर की महिमा के वारिस हो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?

वो सभी धन्य हैं, जो पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करने में सक्षम हैं। पिछले युगों के लोग भी परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलते थे, फिर भी वो आज तक इसका अनुसरण नहीं कर सके; यह आखिरी दिनों के लोगों के लिए आशीर्वाद है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण कर सकते हैं और जो परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में सक्षम हैं, इस तरह कि चाहे परमेश्वर उन्हें जहाँभी ले जाए वो उसका अनुसरण करते हैं—ये वो लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है और चाहे वो कितना भी काम करें या उनकी पीड़ा जितनी भी ज़्यादा हो या वो कितनी ही भागदौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज वो सभी जो परमेश्वर के वर्तमान वचनों का पालन करते हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह में हैं; जो लोग आज परमेश्वर के वचनों से अनभिज्ञ हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह से बाहर हैं और ऐसे लोगों की परमेश्वर द्वारा सराहना नहीं की जाती। वह सेवा जो पवित्र आत्मा के वर्तमान कथनों से जुदा हो, वह देह और धारणाओं की सेवा है और इसका परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होना असंभव है। यदि लोग धार्मिक धारणाओंमें रहते हैं, तो वो ऐसा कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुकूल हो और भले ही वो परमेश्वर की सेवा करें, वो अपनी कल्पनाओं और धारणाओं के घेरे में ही सेवा करते हैं और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में पूरी तरह असमर्थ होते हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, वो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते और जो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते, वो परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकते। परमेश्वर ऐसी सेवा चाहता है जो इच्छाके मुताबिक हो; वह ऐसी सेवा नहीं चाहता, जो धारणाओं और देह की हो। यदि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के चरणों का पालन करने में असमर्थ हैं, तो वो धारणाओं के बीच रहते हैं। ऐसे लोगों की सेवा बाधा डालती है और परेशान करती है और ऐसी सेवा परमेश्वर के विरुद्ध चलती है। इस प्रकार, जो लोग परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में असमर्थ हैं, वो परमेश्वर की सेवा करने में असमर्थ हैं; जो लोग परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में असमर्थ हैं, वो निश्चित रूप से परमेश्वर का विरोध करते हैं और वो परमेश्वर के साथ सुसंगत होने में असमर्थ हैं। "पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण" करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन करने में सक्षम होना और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल यही ऐसा है, जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा के प्रवाहमें है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने में सक्षम हैं बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं और परमेश्वर के नवीनतम कार्य से मनुष्य की अवधारणाओं और अवज्ञा को, मनुष्य की प्रकृति और सार को जान सकते हैं; इसके अलावा, वो अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं, जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं और जो सचमुच में सच्चा मार्ग पा चुके हैं। जिन लोगों को पवित्र आत्मा के कार्य से हटा दिया गया है, वो लोग हैं, जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं और जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। ऐसे लोग खुलेआम परमेश्वर का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि परमेश्वर ने नया कार्य किया है और क्योंकि परमेश्वर की छवि उनकी धारणाओं के अनुरूप नहीं है—जिसके परिणामस्वरूप वो परमेश्वर का खुलेआम विरोध करते हैं और परमेश्वर पर निर्णय देते हैं, जिसके नतीजे में परमेश्वर उनसे घृणा करता है और उन्हें अस्वीकार कर देता है। परमेश्वर के नवीनतम कार्य का ज्ञान रखना कोई आसान बात नहीं है, लेकिन अगर लोगों में परमेश्वर के कार्य का अनुसरण करने और परमेश्वर के कार्य की तलाश करने का ज्ञान है, तो उन्हें परमेश्वर को देखने का मौका मिलेगा, और उन्हें पवित्र आत्मा का नवीनतम मार्गदर्शन प्राप्त करने का मौका मिलेगा। जो जानबूझकर परमेश्वर के कार्य का विरोध करते हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रबोधन या परमेश्वर के मार्गदर्शन को प्राप्त नहीं कर सकते; इस प्रकार, लोग परमेश्वर का नवीनतम कार्य प्राप्त कर पाते हैं या नहीं, यह परमेश्वर के अनुग्रह पर निर्भर करता है, यह उनके अनुसरण पर निर्भर करता है और यह उनके इरादोंपर निर्भर करता है।

वो सभी धन्य हैं जो पवित्र आत्मा के वर्तमान कथनों का पालन करने में सक्षम हैं। इस बात से कोई फ़र्कनहीं पड़ता कि वो कैसे हुआ करते थे या उनके भीतर पवित्र आत्मा कैसे कार्य कियाकरती थी—जिन्होंने परमेश्वर का नवीनतम कार्य प्राप्त किया है, वो सबसे अधिक धन्य हैं और जो लोग आज नवीनतम कार्य का अनुसरण नहीं कर पाते, हटा दिए जाते हैं। परमेश्वर उन्हें चाहता है जो नई रोशनी स्वीकार करने में सक्षम हैं और वह उन्हें चाहता है जो उसके नवीनतम कार्य को स्वीकार करते और जान लेते हैं। ऐसा क्यों कहा गया है कि तुम लोगों को पवित्र कुँवारी होना चाहिए? एक पवित्र कुँवारी पवित्र आत्मा के कार्य की तलाश करने में और नई चीज़ों को समझने में सक्षम होती है, और इसके अलावा, पुरानी धारणाओं को भुलाकर परमेश्वर के आज के कार्य का अनुसरण करने में सक्षम होती है। इस समूह के लोग, जो आज के नवीनतम कार्य को स्वीकार करते हैं, परमेश्वर द्वारा युगों पहले ही पूर्वनिर्धारित किए जा चुके थे और वो सभी लोगों में सबसे अधिक धन्य हैं। तुम लोग सीधे परमेश्वर की आवाज़ सुनते हो और परमेश्वर की उपस्थिति का दर्शन करते हो और इस तरह समस्त स्वर्ग और पृथ्वी परऔर सारे युगों में, कोई भी तुम लोगों, लोगों के इस समूह से अधिक धन्य नहीं रहा है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो

पवित्र आत्मा का कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है, और जो लोग पवित्र आत्मा की धारा में हैं, उन्हें भी अधिक गहरे जाना और कदम-दर-कदम बदलना चाहिए। उन्हें एक ही चरण पर रुक नहीं जाना चाहिए। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते, केवल वे ही परमेश्वर के मूल कार्य के बीच बने रहेंगे और पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार नहीं करेंगे। जो लोग अवज्ञाकारी हैं, केवल वे ही पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करने में अक्षम होंगे। यदि मनुष्य का अभ्यास पवित्र आत्मा के नए कार्य के साथ गति बनाए नहीं रखता, तो मनुष्य का अभ्यास निश्चित रूप से आज के कार्य से कटा हुआ है, और वह निश्चित रूप से आज के कार्य के साथ असंगत है। ऐसे पुराने लोग परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में एकदम अक्षम होते हैं, और वे ऐसे लोग तो बिलकुल भी नहीं बन सकते, जो अंततः परमेश्वर की गवाही देंगे। इतना ही नहीं, संपूर्ण प्रबंधन-कार्य ऐसे लोगों के समूह के बीच समाप्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि जिन लोगों ने किसी समय यहोवा की व्यवस्था थामी थी, और जिन्होंने कभी सलीब का दुःख सहा था, यदि वे अंत के दिनों के कार्य के चरण को स्वीकार नहीं कर सकते, तो जो कुछ भी उन्होंने किया, वह सब व्यर्थ और निष्फल होगा। पवित्र आत्मा के कार्य की स्पष्टतम अभिव्यक्ति अभी वर्तमान को गले लगाने में है, अतीत से चिपके रहने में नहीं। जो लोग आज के कार्य के साथ बने नहीं रहे हैं, और जो आज के अभ्यास से अलग हो गए हैं, वे वो लोग हैं जो पवित्र आत्मा के कार्य का विरोध करते हैं और उसे स्वीकार नहीं करते। ऐसे लोग परमेश्वर के वर्तमान कार्य की अवहेलना करते हैं। यद्यपि वे अतीत के प्रकाश को पकड़े रहते हैं, किंतु इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते। मनुष्य के अभ्यास में परिवर्तनों के बारे में, अतीत और वर्तमान के बीच के अभ्यास की भिन्नताओं के बारे में, पूर्ववर्ती युग के दौरान किस प्रकार अभ्यास किया जाता था और आज किस प्रकार किया जाता है इस बारे में, यह सब बातचीत क्यों की गई है? मनुष्य के अभ्यास में ऐसे विभाजनों के बारे में हमेशा बात की जाती है, क्योंकि पवित्र आत्मा का कार्य लगातार आगे बढ़ रहा है, इसलिए मनुष्य के अभ्यास का निरंतर बदलना आवश्यक है। यदि मनुष्य एक ही चरण में अटका रहता है, तो यह प्रमाणित करता है कि वह परमेश्वर के नए कार्य और नए प्रकाश के साथ बने रहने में असमर्थ है; इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि परमेश्वर की प्रबंधन-योजना नहीं बदली है। जो पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हैं, वे सदैव सोचते हैं कि वे सही हैं, किंतु वास्तव में उनके भीतर परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही रुक गया है, और पवित्र आत्मा का कार्य उनमें अनुपस्थित है। परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही लोगों के एक अन्य समूह को हस्तांतरित हो गया था, ऐसे लोगों के समूह को, जिन पर वह अपने नए कार्य को पूरा करने का इरादा रखता है। चूँकि धर्म में मौजूद लोग परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने में अक्षम हैं और केवल अतीत के पुराने कार्य को ही पकड़े रहते हैं, इसलिए परमेश्वर ने इन लोगों को छोड़ दिया है, और वह अपना कार्य उन लोगों पर करता है जो इस नए कार्य को स्वीकार करते हैं। ये वे लोग हैं, जो उसके नए कार्य में सहयोग करते हैं, और केवल इसी तरह से उसका प्रबंधन पूरा हो सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

चूँकि मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए उसे परमेश्वर के पदचिह्नों का, कदम-दर-कदम, निकट से अनुसरण करना चाहिए; और उसे "जहाँ कहीं मेमना जाता है, उसका अनुसरण करना" चाहिए। केवल ऐसे लोग ही सच्चे मार्ग को खोजते हैं, केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को जानते हैं। जो लोग शाब्दिक अर्थों और सिद्धांतों का ज्यों का त्यों अनुसरण करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा निष्कासित कर दिया गया है। प्रत्येक समयावधि में परमेश्वर नया कार्य आरंभ करेगा, और प्रत्येक अवधि में मनुष्य के बीच एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सत्यों का ही पालन करता है कि "यहोवा ही परमेश्वर है" और "यीशु ही मसीह है," जो ऐसे सत्य हैं, जो केवल उनके अपने युग पर ही लागू होते हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में अक्षम रहेगा। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करता हो, मनुष्य बिना किसी संदेह के अनुसरण करता है, और वह निकट से अनुसरण करता है। इस तरह, मनुष्य पवित्र आत्मा द्वारा कैसे निष्कासित किया जा सकता है? परमेश्वर चाहे जो भी करे, जब तक मनुष्य निश्चित है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, और बिना किसी आशंका के पवित्र आत्मा के कार्य में सहयोग करता है, और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने का प्रयास करता है, तो उसे कैसे दंड दिया जा सकता है? परमेश्वर का कार्य कभी नहीं रुका है, उसके कदम कभी नहीं थमे हैं, और अपने प्रबंधन-कार्य की पूर्णता से पहले वह सदैव व्यस्त रहा है और कभी नहीं रुकता। किंतु मनुष्य अलग है : पवित्र आत्मा के कार्य का थोड़ा-सा अंश प्राप्त करने के बाद वह उसके साथ इस तरह व्यवहार करता है मानो वह कभी नहीं बदलेगा; जरा-सा ज्ञान प्राप्त करने के बाद वह परमेश्वर के नए कार्य के पदचिह्नों का अनुसरण करने के लिए आगे नहीं बढ़ता; परमेश्वर के कार्य का थोड़ा-सा ही अंश देखने के बाद वह तुरंत ही परमेश्वर को लकड़ी की एक विशिष्ट आकृति के रूप में निर्धारित कर देता है, और यह मानता है कि परमेश्वर सदैव उसी रूप में बना रहेगा जिसे वह अपने सामने देखता है, कि यह अतीत में भी ऐसा ही था और भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा; सिर्फ एक सतही ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य इतना घमंडी हो जाता है कि स्वयं को भूल जाता है और परमेश्वर के स्वभाव और अस्तित्व के बारे में बेहूदा ढंग से घोषणा करने लगता है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं होता; और पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण के बारे में निश्चित हो जाने के बाद, परमेश्वर के नए कार्य की घोषणा करने वाला यह व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, मनुष्य उसे स्वीकार नहीं करता। ये ऐसे लोग हैं, जो पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार नहीं कर सकते; वे बहुत रूढ़िवादी हैं और नई चीज़ों को स्वीकार करने में अक्षम हैं। ये वे लोग हैं, जो परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं, किंतु परमेश्वर को अस्वीकार भी करते हैं। मनुष्य का मानना है कि इस्राएलियों का "केवल यहोवा में विश्वास करना और यीशु में विश्वास न करना" ग़लत था, किंतु अधिकतर लोग ऐसी ही भूमिका निभाते हैं, जिसमें वे "केवल यहोवा में विश्वास करते हैं और यीशु को अस्वीकार करते हैं" और "मसीहा के लौटने की लालसा करते हैं, किंतु उस मसीहा का विरोध करते हैं जिसे यीशु कहते हैं।" तो कोई आश्चर्य नहीं कि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण को स्वीकार करने के पश्चात् अभी भी शैतान के अधिकार-क्षेत्र में जीते हैं, और अभी भी परमेश्वर के आशीष प्राप्त नहीं करते। क्या यह मनुष्य की विद्रोहशीलता का परिणाम नहीं है? दुनिया भर के सभी ईसाई, जिन्होंने आज के नए कार्य के साथ कदम नहीं मिलाया है, यह मानते हुए कि परमेश्वर उनकी हर इच्छा पूरी करेगा, इस उम्मीद से चिपके रहते हैं कि वे भाग्यशाली होंगे। फिर भी वे निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि क्यों परमेश्वर उन्हें तीसरे स्वर्ग तक ले जाएगा, न ही वे इस बारे निश्चित हैं कि कैसे यीशु उनका स्वागत करने के लिए सफेद बादल पर सवार होकर आएगा, और वे पूर्ण निश्चय के साथ यह तो बिलकुल नहीं कह सकते कि यीशु वास्तव में उस दिन सफेद बादल पर सवार होकर आएगा या नहीं, जिस दिन की वे कल्पना करते हैं। वे सभी चितित और हैरान हैं; वे स्वयं भी नहीं जानते कि परमेश्वर उनमें से प्रत्येक को ऊपर ले जाएगा या नहीं, जो विभिन्न समूहों के थोड़े-से मुट्ठी भर लोग हैं, जो हर पंथ से आते हैं। परमेश्वर द्वारा अभी किया जाने वाला कार्य, वर्तमान युग, परमेश्वर की इच्छा—इनमें से किसी भी चीज़ की उन्हें कोई समझ नहीं है, और वे अपनी उँगलियों पर दिन गिनने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते। जो लोग बिलकुल अंत तक मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं, केवल वे ही अंतिम आशीष प्राप्त कर सकते हैं, जबकि वे "चतुर लोग", जो बिलकुल अंत तक अनुसरण करने में असमर्थ हैं, किंतु विश्वास करते हैं कि उन्होंने सब-कुछ प्राप्त कर लिया है, वे परमेश्वर के प्रकटन को देखने में असमर्थ हैं। वे सभी विश्वास करते हैं कि वे पृथ्वी पर सबसे चतुर व्यक्ति हैं, और वे बिलकुल अकारण ही परमेश्वर के कार्य के लगातार जारी विकास को काटकर छोटा करते हैं, और पूर्ण निश्चय के साथ विश्वास करते प्रतीत होते हैं कि परमेश्वर उन्हें स्वर्ग तक ले जाएगा, वे जो कि "परमेश्वर के प्रति अत्यधिक वफादार हैं, परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, और परमेश्वर के वचनों का पालन करते हैं।" भले ही उनमें परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों के प्रति "अत्यधिक वफादारी" हो, फिर भी उनके वचन और करतूतें अत्यंत घिनौनी हैं क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य का विरोध करते हैं, और छल और दुष्टता करते हैं। जो लोग बिलकुल अंत तक अनुसरण नहीं करते, जो पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम मिलाकर नहीं चलते, और जो केवल पुराने कार्य से चिपके रहते हैं, वे न केवल परमेश्वर के प्रति वफादारी हासिल करने में असफल हुए हैं, बल्कि इसके विपरीत, वे ऐसे लोग बन गए हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं, ऐसे लोग बन गए हैं जिन्हें नए युग द्वारा ठुकरा दिया गया है, और जिन्हें दंड दिया जाएगा। क्या उनसे भी अधिक दयनीय कोई है? अनेक लोग तो यहाँ तक विश्वास करते हैं कि जो लोग प्राचीन व्यवस्था को ठुकराते हैं और नए कार्य को स्वीकार करते हैं, वे सभी विवेकहीन हैं। ये लोग, जो केवल "विवेक" की बात करते हैं और पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते, अंततः अपने ही विवेक द्वारा अपने भविष्य की संभावनाओं को कटवाकर छोटा कर लेंगे। परमेश्वर का कार्य सिद्धांत का पालन नहीं करता, और भले ही वह उसका अपना कार्य हो, फिर भी परमेश्वर उससे चिपका नहीं रहता। जिसे नकारा जाना चाहिए, उसे नकारा जाता है, जिसे हटाया जाना चाहिए, उसे हटाया जाता है। फिर भी मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के सिर्फ एक छोटे-से भाग को ही पकड़े रहकर स्वयं को परमेश्वर से शत्रुता की स्थिति में रख लेता है। क्या यह मनुष्य की बेहूदगी नहीं है? क्या यह मनुष्य की अज्ञानता नहीं है? परमेश्वर के आशीष प्राप्त न करने के डर से लोग जितना अधिक भयभीत और अति-सतर्क होते हैं, उतना ही अधिक वे और बड़े आशीष प्राप्त करने और अंतिम आशीष पाने में अक्षम होते हैं। जो लोग दासों की तरह व्यवस्था का पालन करते हैं, वे सभी व्यवस्था के प्रति अत्यंत वफादारी का प्रदर्शन करते हैं, और जितना अधिक वे व्यवस्था के प्रति ऐसी वफादारी का प्रदर्शन करते हैं, उतना ही अधिक वे ऐसे विद्रोही होते हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। क्योंकि अब राज्य का युग है, व्यवस्था का युग नहीं, और आज के कार्य और अतीत के कार्य को एक जैसा नहीं बताया जा सकता, न ही अतीत के कार्य की तुलना आज के कार्य से की जा सकती है। परमेश्वर का कार्य बदल चुका है, और मनुष्य का अभ्यास भी बदल चुका है; वह व्यवस्था को पकड़े रहना या सलीब को सहना नहीं है, इसलिए, व्यवस्था और सलीब के प्रति लोगों की वफादारी को परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

मनुष्य भ्रष्ट हो चुका है और शैतान के फंदे में जी रहा है। सभी लोग देह में जीते हैं, स्वार्थपूर्ण अभिलाषाओं में जीते हैं, और उनके मध्य एक भी व्यक्ति नहीं, जो मेरे अनुकूल हो। ऐसे लोग भी हैं, जो कहते हैं कि वे मेरे अनुकूल हैं, परंतु वे सब अस्पष्ट मूर्तियों की आराधना करते हैं। हालाँकि वे मेरे नाम को पवित्र मानते हैं, पर वे उस रास्ते पर चलते हैं जो मेरे विपरीत जाता है, और उनके शब्द घमंड और आत्मविश्वास से भरे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मूलत: वे सब मेरे विरोध में हैं और मेरे अनुकूल नहीं हैं। प्रतिदिन वे बाइबल में मेरे निशान ढूँढ़ते हैं, और यों ही "उपयुक्त" अंश तलाश लेते हैं, जिन्हें वे अंतहीन रूप से पढ़ते रहते हैं और उनका वाचनपवित्रशास्त्र के रूप में करते हैं। वे नहीं जानते कि मेरे अनुकूल कैसे बनें, न ही वे यह जानते हैं कि मेरे विरुद्ध होने का क्या अर्थ है। वे केवल पवित्रशास्त्रों को आँख मूँदकर पढ़ते रहते हैं। वे बाइबल के भीतर एक ऐसे अज्ञात परमेश्वर को कैद कर देते हैं, जिसे उन्होंने स्वयं भी कभी नहीं देखा है, और जिसे देखने में वे अक्षम हैं, और जिसे वे फ़ुरसत के समय में ही निगाह डालने के लिए बाहर निकालते हैं। वे मेरा अस्तित्व मात्र बाइबल के दायरे में ही सीमित मानते हैं, और वे मेरी बराबरी बाइबल से करते हैं; बाइबल के बिना मैं नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापोंपर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत सेलोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, इस हद कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूँ, वे उसे मापने और मेरी निंदा करने के लिए बाइबल के छंदों का उपयोग करते हैं। वे मेरे साथ अनुकूलता का मार्ग या सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग नहीं खोजते, बल्कि बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजते हैं, औरविश्वास करते हैं कि कोई भी चीज़ जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यपरायण वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के साथ अनुकूल होने की कोशिश नहीं की, बल्कि कर्मठतापूर्वक व्यवस्था का इस हद तक अक्षरशः पालन किया कि—यीशु पर पुराने विधान की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए—निर्दोष यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उनका सार क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के साथ अनुकूलता के मार्ग की खोज नहीं की? उनके दिमाग़ में पवित्रशास्त्र का एक-एक वचन घर कर गया था, जबकि मेरी इच्छा और मेरे कार्य के चरणों और विधियों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। वे सत्य की खोज करने वाले लोग नहीं, बल्कि सख्तीसे पवित्रशास्त्र के वचनों से चिपकने वाले लोग थे; वे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग नहीं, बल्कि बाइबल में विश्वास करने वाले लोग थे। दरअसल वे बाइबल की रखवाली करने वाले कुत्ते थे। बाइबल के हितों की रक्षा करने, बाइबल की गरिमा बनाए रखने और बाइबल की प्रतिष्ठा बचाने के लिए वे यहाँ तक चले गए कि उन्होंने दयालु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। ऐसा उन्होंने सिर्फ़ बाइबल का बचाव करने के लिए और लोगों के हृदय में बाइबल के हर एक वचन की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए किया। इस प्रकार उन्होंने अपना भविष्य त्यागने और यीशु की निंदा करने के लिए उसकी मृत्यु के रूप में पापबलि देने को प्राथमिकता दी, क्योंकि यीशु पवित्रशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था। क्या वे लोग पवित्रशास्त्र के एक-एक वचन के नौकर नहीं थे?

और आज के लोगों के बारे में क्या कहूँ? मसीह सत्य बताने के लिए आया है, फिर भी वे निश्चित ही उसे इस दुनिया से निष्कासित कर देंगे, ताकि वे स्वर्ग में प्रवेश हासिल कर सकें और अनुग्रह प्राप्त कर सकें। वे बाइबल के हितों की रक्षा करने के लिए सत्य के आगमन को पूरी तरह से नकार देंगे और बाइबल का चिरस्थायी अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए देह में लौटे मसीह को फिर से सूली पर चढ़ा देंगे। मनुष्य मेरा उद्धार कैसे प्राप्त कर सकता है, जब उसका हृदय इतना अधिक द्वेष से भरा है और उसकी प्रकृति मेरेइतनी विरोधी है? मैं मनुष्य के मध्य रहता हूँ, फिर भी मनुष्य मेरे अस्तित्व के बारे नहीं जानता। जब मैं मनुष्य पर अपना प्रकाश डालता हूँ, तब भी वह मेरे अस्तित्व से अनभिज्ञ रहता है। जब मैं लोगों पर क्रोधित होता हूँ, तो वे मेरे अस्तित्व को और अधिक प्रबलता से नकारते हैं। मनुष्य वचनों और बाइबल के साथ अनुकूलता की खोज करता है, लेकिन सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजने के लिए एक भी व्यक्ति मेरे समक्ष नहीं आता। मनुष्य मुझे स्वर्ग में खोजता है और स्वर्ग में मेरे अस्तित्व की विशेष चिंता करता है, लेकिन देह में कोई मेरी परवाह नहीं करता, क्योंकि मैं जो देह में उन्हीं के बीच रहता हूँ, बहुत मामूली हूँ। जो लोग सिर्फ़ बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता की खोज करते हैं और जो लोग सिर्फ़ एक अज्ञात परमेश्वर के साथ अनुकूलता की खोज करते हैं, वे मेरे लिए एक घृणित दृश्य हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे मृत शब्दों की आराधना करते हैं, और एक ऐसे परमेश्वर की आराधना करते हैं, जो उन्हें अनकहा खज़ाना देने में सक्षम है; जिस परमेश्वर की वे आराधना करते हैं, वह एक ऐसा परमेश्वर है, जो अपने आपको मनुष्य के नियंत्रण मेंछोड़ देता है—ऐसा परमेश्वर, जिसका अस्तित्व ही नहीं है। तो फिर, ऐसे लोग मुझसे क्या प्राप्त कर सकते हैं? मनुष्य बस वचनों के लिए बहुत नीच है। जो मेरे विरोध में हैं, जो मेरे सामने असीमित माँगें रखते हैं, जिनमें सत्य के लिए कोई प्रेम नहीं है, जो मेरे प्रति विद्रोही हैं—वे मेरे अनुकूल कैसे हो सकते हैं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए

चाहे कितने भी लोग परमेश्वर में विश्वास क्यों न करें, जैसे ही उनके विश्वासों को परमेश्वर द्वारा धर्म या समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, तब परमेश्वर ने निर्धारित किया है कि उन्हें बचाया नहीं जा सकता। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? किसी गिरोह या लोगों की भीड़ में जो परमेश्वर के कार्य और मार्गदर्शन से रहित हैं और जो उसकी आराधना बिल्कुल भी नहीं करते हैं, वे किसकी आराधना करते हैं? वे किसका अनुसरण करते हैं? रूप और नाम में, वे एक इंसान का अनुसरण करते हैं, लेकिन वास्तव में वे किसका अनुसरण करते हैं? अपने हृदय में वे परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, लेकिन वास्तव में, वे मानवीय हेरफेर, व्यवस्थाओं और नियंत्रण के अधीन हैं। वे शैतान, हैवान का अनुसरण करते हैं; वे उन ताक़तों का अनुसरण करते हैं जो परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं, जो परमेश्वर की दुश्मन हैं। क्या परमेश्वर इस तरह के लोगों के झुण्ड को बचाएगा? (नहीं।) क्यों? क्या वे पश्चाताप करने में सक्षम हैं? (नहीं।) वे मानव उद्यमों को चलाते हुए, अपने स्वयं के प्रबंधन का संचालन करते हुए विश्वास का झंडा लहराते हैं, और मनुष्यजाति के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना के विपरीत चलते हैं। उनका अंतिम परिणाम परमेश्वर द्वारा नफ़रत और अस्वीकृत किया जाना है; परमेश्वर इन लोगों को संभवतः नहीं बचा सकता है, वे संभवतः पश्चाताप नहीं कर सकते है, वे पहले से ही शैतान के द्वारा पकड़ लिए गए हैं—वे पूरी तरह से शैतान के हाथों में हैं। तुमने कितने वर्ष परमेश्वर में विश्वास किया है, क्या तुम्हारी आस्था में इसका असर इस बात पर पड़ता है कि परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा करता है या नहीं? क्या तुम्हारे रस्मों और विनियमों के पालन करने का कुछ महत्व है? क्या परमेश्वर लोगों के अभ्यास के तौर-तरीकों को देखता है? क्या वह देखता है कि वहाँ कितने लोग हैं? उसने मानवजाति के एक हिस्से को चुना है; वह कैसे मापता है कि उन्हें बचाया जा सकता है और बचाया जाना चाहिए? उसका यह निर्णय उन मार्गों पर आधारित होता है जिन पर ये लोग चलते हैं। अनुग्रह के युग में, हालांकि परमेश्वर द्वारा लोगों को बताए गए सत्य आज की तरह इतने अधिक नहीं थे और इतने विशिष्ट नहीं थे, वह फिर भी उस समय लोगों को पूर्ण बना सका और तब भी उनका उद्धार संभव था। और इसलिए इस युग के लोग, जिन्होंने बहुत से सत्य सुने हैं, और जो परमेश्वर की इच्छा को समझ पाये हैं, अगर वे परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में असमर्थ हैं और उद्धार के मार्ग पर चलने में असमर्थ हैं, तो उनका अंतिम परिणाम क्या होगा? उनका अंतिम परिणाम उन्हीं के समान होगा जो ईसाई और यहूदी धर्म को मानते हैं; कोई अंतर नहीं होगा। यह परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है! चाहे तूने कितने भी धर्मोपदेश सुने हों, और तू कितने सत्यों को समझ चुका हो, यदि अंततः तू अभी भी लोगों का अनुसरण करता है और शैतान का अनुसरण करता है, और अंततः, तू अभी भी परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में अक्षम हैं और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में असमर्थ है, तो इस तरह के लोगों से परमेश्वर द्वारा नफ़रत की जाएगी और उन्हें अस्वीकार कर दिया जाएगा। हर पहलू से, ये लोग जो परमेश्वर द्वारा नफ़रत और अस्वीकृत किए जाते हैं वे पत्रों और सिद्धांतों के बारे में ज्यादा बात कर सकते हैं, और बहुत से सत्य समझते हैं और फिर भी वे परमेश्वर की आराधना करने में असमर्थ होते हैं; वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में असमर्थ हैं, और परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारी होने में असमर्थ हैं। परमेश्वर की नज़रों में, परमेश्वर उन्हें धर्म के रूप में, मनुष्य मात्र के एक समूह के रूप में, एक इंसानों का गिरोह और शैतान के लिए एक निवास स्थान के रूप में परिभाषित करता है। उन्हें सामूहिक रूप से शैतान का गिरोह कहा जाता है, और परमेश्वर उनसे पूरी तरह से घृणा करता है।

— "अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'यदि तू हर समय परमेश्वर के सामने रह सकता है केवल तभी तू उद्धार के पथ पर चल सकता है' से उद्धृत

राक्षस और बुरी आत्माएँ काफी समय से पृथ्वी पर अंधाधुंध विचरण कर रही हैं, और उन्होंने परमेश्वर की इच्छा और कष्टसाध्य प्रयास दोनों को इतना कसकर बंद कर दिया है कि वे अभेद्य बन गए हैं। सचमुच, यह एक घातक पाप है! ऐसा कैसे हो सकता है कि परमेश्वर चिंतित महसूस न करे? परमेश्वर कैसे क्रोधित महसूस न करे? उन्होंने परमेश्वर के कार्य में गंभीर बाधा पहुँचाई है और उसका घोर विरोध किया है : कितने विद्रोही हैं वे! यहाँ तक कि वे छोटे-बड़े राक्षस भी शेर के पीछे चलते गीदड़ों जैसा व्यवहार करते हैं और बुराई की धारा में बहते हैं, और चलते हुए गड़बड़ी पैदा करते हैं। सत्य को जानने के बावजूद उसका जानबूझकर विरोध करते हैं, ये विद्रोह के बेटे! यह ऐसा है, मानो अब जबकि नरक का राजा राजसी सिंहासन पर चढ़ गया है, तो वे दंभी और बेपरवाह हो गए हैं और अन्य सभी की अवमानना करने लगे हैं। उनमें से कितने सत्य की खोज करते हैं और धार्मिकता का पालन करते हैं? वे सभी जानवर हैं, जो सूअरों और कुत्तों से बेहतर नहीं हैं, वे गोबर के एक ढेर के बीच में बदबूदार मक्खियों के एक समूह के ऊपर दंभपूर्ण आत्म-बधाई में अपने सिर हिलाते हैं और हर तरह का उपद्रव भड़काते[1] हैं। उनका मानना है कि नरक का उनका राजा सबसे बड़ा राजा है, और इतना भी नहीं जानते कि वे खुद बदबूदार मक्खियों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। और फिर भी, वे अपने माता-पिता रूपी सूअरों और कुत्तों की ताकत का लाभ उठाकर परमेश्वर के अस्तित्व को बदनाम करते हैं। वे तुच्छ मक्खियाँ मानती हैं कि उनके माता-पिता बड़े-बड़े दाँतों वाली व्हेल[2] की तरह विशाल हैं। वे इतना भी नहीं जानते कि वे खुद बहुत छोटे हैं, और उनके माता-पिता उनसे लाखों गुना बड़े गंदे सूअर और कुत्ते हैं। अपनी नीचता से अनजान वे अंधाधुंध दौड़ने के लिए उन सूअरों और कुत्तों द्वारा छोड़ी गई सड़न की बदबू पर भरोसा करते हैं और शर्मिंदगी से बेखबर वे व्यर्थ ही भविष्य की पीढ़ियों को पैदा करने के बारे में सोचते हैं! अपनी पीठ पर हरे पंख लगाए (जो उनके परमेश्वर पर विश्वास करने के दावे का सूचक है), वे आत्मतुष्ट हैं और हर जगह अपनी सुंदरता और आकर्षण की डींग हाँकते हैं, जबकि वे चुपके से अपने शरीर की मलिनताओं को मनुष्य पर फेंक देते हैं। इतना ही नहीं, वे स्वयं से अत्यधिक प्रसन्न होते हैं, मानो वे इंद्रधनुष के रंगों वाले एक जोड़ी पंखों का इस्तेमाल कर अपनी मलिनताएँ छिपा सकते हों, और इस तरह वे सच्चे परमेश्वर के अस्तित्व पर अपना कहर बरपाते हैं (यह धार्मिक दुनिया में परदे के पीछे चलने वाली हकीकत बताता है)। मनुष्य को कैसे पता चलेगा कि मक्खी के पंख कितने भी खूबसूरत और आकर्षक हों, मक्खी एक अत्यंत छोटे प्राणी से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसका पेट गंदगी से भरा हुआ और शरीर रोगाणुओं से ढका हुआ है? अपने माता-पिता रूपी सूअर और कुत्तों के बल पर वे देश-भर में हैवानियत में निरंकुश होकर अंधाधुंध दौड़ते हैं (यह उस तरीके को संदर्भित करता है, जिससे परमेश्वर को सताने वाले धार्मिक अधिकारी सच्चे परमेश्वर और सत्य से विद्रोह करने के लिए राष्ट्र की सरकार से मिले मजबूत समर्थन पर भरोसा करते हैं)। ऐसा लगता है, मानो यहूदी फरीसियों के भूत परमेश्वर के साथ बड़े लाल अजगर के देश में, अपने पुराने घोंसले में लौट आए हों। उन्होंने हजारों साल पहले का अपना काम फिर करते हुए उत्पीड़न का दूसरा दौर शुरू कर दिया है। पतितों के इस समूह का अंततः पृथ्वी पर नष्ट हो जाना निश्चित है! ऐसा प्रतीत होता है कि कई सहस्राब्दियों के बाद अशुद्ध आत्माएँ और भी चालाक और धूर्त हो गई हैं। वे गुप्त रूप से लगातार परमेश्वर के काम को क्षीण करने के तरीकों के बारे में सोच रही हैं। प्रचुर छल-कपट के साथ वे अपनी मातृभूमि में कई हजार साल पहले की त्रासदी की पुनरावृत्ति करना चाहती हैं और परमेश्वर को लगभग पुकार उठने की कगार तक ले आती हैं। परमेश्वर उन्हें नष्ट करने के लिए तीसरे स्वर्ग में लौट जाने से खुद को मुश्किल से रोक पाता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7)

फुटनोट :

1. "हर तरह का उपद्रव भड़काते" का मतलब है कि कैसे वे लोग, जो राक्षसी किस्म के होते हैं, दंगा फैलाते हैं और परमेश्वर के कार्य को बाधित करते हैं तथा उसका विरोध करते हैं।

2. "दाँतों वाली व्हेल" का इस्तेमाल उपहास के रूप में किया गया है। यह एक रूपक है, जो बताता है कि कैसे मक्खियाँ इतनी छोटी होती हैं कि सूअर और कुत्ते भी उन्हें व्हेल की तरह विशाल नज़र आते हैं।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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