एक सच्चे परमेश्वर को त्रिविध परमेश्वर के रूप में परिभाषित करना परमेश्वर की निंदा करना है और यह सबसे बेतुकी भ्रांति है

18 मार्च, 2018

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

यीशु के देहधारी होने का सत्य अस्तित्व में आने के बाद, मनुष्य का मानना था: न केवल पिता स्वर्ग में है, बल्कि पुत्र भी है और यहां तक कि आत्मा भी है। यह पारंपरिक धारणा है, जिसे मनुष्य धारण किए है कि इस तरह का एक परमेश्वर स्वर्ग में हैः एक त्रयात्मक परमेश्वर जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है। समस्त मानवजाति की ये धारणाएं हैं: परमेश्वर एक परमेश्वर है, पर उसमें तीन भाग शामिल हैं, जिसे कष्टदायक रूप से पारंपरिक धारणाओं में जकड़े वे सभी पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा मानते हैं। केवल इन्हीं तीनों एकाकार हुए भाग से संपूर्ण परमेश्वर बनता है। पवित्र पिता के बिना परमेश्वर संपूर्ण नहीं होगा। इसी प्रकार से, न ही पुत्र और पवित्र आत्मा के बिना परमेश्वर संपूर्ण होगा। अपनी धारणाओं में वे यह विश्वास करते हैं कि न तो अकेले पिता को और न अकेले पुत्र को ही परमेश्वर माना जा सकता है। केवल पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को एक साथ मिलाकर परमेश्वर स्वयं माना जा सकता है। अब, सभी धार्मिक विश्वासी और तुम लोगों में से प्रत्येक अनुयायी भी इस बात पर विश्वास करता है। फिर भी, जैसे यह विश्वास सही है कि नहीं, कोई नहीं समझा सकता, क्योंकि तुम लोग हमेशा स्वयं परमेश्वर के मामलों को लेकर भ्रम के कोहरे में रहते हो। हालांकि ये धारणाएं हैं, तुम लोग नहीं जानते कि ये सही हैं या ग़लत क्योंकि तुम लोग धार्मिक धारणाओं से बुरी तरह संक्रमित हो गए हो। तुम लोगों ने धर्म की इन पारंपरिक धारणाओं को बहुत गहराई से स्वीकार कर लिया है और यह ज़हर तुम्हारे भीतर बहुत गहरे रिसकर चला गया है। इसलिए इस मामले में भी तुम इन हानिकारक प्रभाव के आगे झुक गए हो क्योंकि त्रयात्मक परमेश्वर का अस्तित्व ही नहीं है। इसका मतलब यह है कि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का त्रित्व अस्तित्व में ही नहीं है। ये सब मनुष्य की पारंपरिक धारणाएं हैं और मनुष्य के भ्रामक विश्वास हैं। कई सदियों से मनुष्य का इस त्रित्व पर विश्वास रहा है, ये मनुष्य के मन में धारणाओं से जन्मी, मनुष्य द्वारा गढ़ी गई और मनुष्य द्वारा पहले कभी नहीं देखी गई हैं। इन अनेक वर्षों के दौरान बाइबल के कई प्रतिपादक हुए हैं, जिन्होंने त्रित्व का "सही अर्थ" समझाया है, पर तीन अभिन्न तत्व व्यक्तियों वाले त्रयात्मक परमेश्वर की ऐसी व्याख्याएं अज्ञात और अस्पष्ट रहे हैं और लोग परमेश्वर की "रचना" के बारे में पूरी तरह संभ्रमित हैं। कोई भी महान व्यक्ति कभी भी इसकी पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं रहा है; अधिकांश व्याख्याएं, तर्क के मामले में और कागज़ पर जायज़ ठहरते हैं, परंतु किसी भी मनुष्य को इसके अर्थ की पूरी तरह साफ़ समझ नहीं है। यह इसलिए क्योंकि यह महान त्रित्व, जो मनुष्य अपने हृदय में धारण किए है, वह अस्तित्व में है ही नहीं। ... मैं बताता हूँ कि ब्रह्मांड में कहीं भी त्रयात्मक परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है। परमेश्वर का न पिता है और न पुत्र, और इस ख्याल का तो और भी वजूद नहीं है कि पिता और पुत्र संयुक्त तौर पर पवित्र आत्मा का उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं। यह सब बड़ा भ्रम है और संसार में इसका कोई अस्तित्व नहीं है! फिर भी इस प्रकार के भ्रम का अपना मूल है और यह पूरी तरह निराधार नहीं है, क्योंकि तुम लोगों के मन इतने साधारण नहीं हैं और तुम्हारे विचार तर्कहीन नहीं हैं। बल्कि, वे काफी उपयुक्त और चतुर हैं, इतने कि किसी शैतान द्वारा भी अभेद्य हैं। अफ़सोस यह कि ये विचार बिल्कुल भ्रामक हैं और बस इनका अस्तित्व नहीं है! तुम लोगों ने वास्तविक सत्य को देखा ही नहीं है; तुम लोग केवल अटकलें और कल्पनाएं लगा रहे हो, फिर धोखे से दूसरों का विश्वास प्राप्त करने या सबसे अधिक बुद्धिहीन या तर्कहीन लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए इस सबको कहानी में पिरो रहे हो, ताकि वे तुम लोगों की महान और प्रसिद्ध "विशेषज्ञ शिक्षाओं" पर विश्वास करें। क्या यह सच है? क्या यह जीवन का तरीका है, जो मनुष्य को प्राप्त करना चाहिए? यह सब बकवास है! एक शब्द भी उचित नहीं है! इतने सालों में, तुम लोगों के द्वारा परमेश्वर इस प्रकार विभाजित किया गया है, हर पीढ़ी द्वारा इसे इतना बारीक़ी से विभाजित किया गया है कि एक परमेश्वर को खुलकर तीन हिस्सों में बांट दिया गया है। और अब मनुष्य के लिए यह पूरी तरह असंभव है कि इन तीनों को फिर से एक परमेश्वर बना पाए, क्योंकि तुम लोगों ने उसे बहुत ही सूक्ष्मता से बांटा है! यदि मेरा कार्य सही समय पर शुरू न हुआ होता तो कहना कठिन है कि तुम लोग कब तक इसी तरह ढिठाई करते रहते! इस प्रकार से परमेश्वर को विभाजित करना जारी रखने से, वह अब तक तुम्हारा परमेश्वर कैसे रह सकता है? क्या तुम लोग अब भी परमेश्वर को पहचान सकते हो? क्या तुम अभी भी उसे अपना पिता स्वीकार करके उसके पास लौटोगे? यदि मैं थोड़ा और बाद में आता, तो हो सकता है कि तुम लोग "पिता और पुत्र", यहोवा और यीशु को इस्राएल वापस भेज चुके होते और दावा करते कि तुम लोग स्वयं ही परमेश्वर का एक भाग हो। भाग्यवश, अब ये अंत के दिन हैं। अंतत: वह दिन आ गया है, जिसकी मुझे बहुत प्रतीक्षा थी और मेरे अपने हाथों से इस चरण के कार्य को क्रियान्वित करने के बाद ही तुम लोगों द्वारा परमेश्वर स्वयं को बांटने का कार्य रुका है। यदि यह नहीं होता, तो तुम लोग और आगे बढ़ जाते, यहां तक कि अपने बीच सभी शैतानों को तुमने आराधना के लिए अपनी मेज़ों पर रख लिया होता। यह तुम लोगों की चाल है! परमेश्वर को बांटने के तुम्हारे तरीके! क्या तुम सब अभी भी ऐसा ही करोगे? मैं तुमसे पूछता हूँ: कितने परमेश्वर हैं? कौन सा परमेश्वर तुम लोगों के लिए उद्धार लाएगा? पहला परमेश्वर, दूसरा या फिर तीसरा, जिससे तुम सब हमेशा प्रार्थना करते हो? उनमें से तुम लोग हमेशा किस पर विश्वास करते हो? पिता पर? या फिर पुत्र पर? या फिर आत्मा पर? मुझे बताओ कि तुम किस पर विश्वास करते हो। हालांकि तुम्हारे हर शब्द में परमेश्वर पर विश्वास दिखता है, लेकिन तुम लोग जिस पर वास्तव में विश्वास करते हो, वह तुम्हारा दिमाग़ है। तुम लोगों के हृदय में परमेश्वर है ही नहीं! फिर भी तुम सबके दिमाग़ में इस प्रकार के कई "त्रित्व" हैं! क्या तुम लोग इससे सहमत नहीं हो?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

यदि त्रित्व की इस अवधारणा के अनुसार काम के तीन चरणों का मूल्यांकन किया जाना है, तो तीन परमेश्वर होने चाहिए क्योंकि प्रत्येक द्वारा क्रियान्वित कार्य एकसमान नहीं हैं। यदि तुम लोगों में से कोई भी कहता है कि त्रित्व वास्तव में है, तो समझाओ कि तीन व्यक्तियों में यह एक परमेश्वर क्या है। पवित्र पिता क्या है? पुत्र क्या है? पवित्र आत्मा क्या है? क्या यहोवा पवित्र पिता है? क्या यीशु पुत्र है? फिर पवित्र आत्मा का क्या? क्या पिता एक आत्मा नहीं है? पुत्र का सार भी क्या एक आत्मा नहीं है? क्या यीशु का कार्य पवित्र आत्मा का कार्य नहीं था? एक समय आत्मा द्वारा क्रियान्वित यहोवा का कार्य क्या यीशु के कार्य के समान नहीं था? परमेश्वर में कितने आत्माएं हो सकते हैं? तुम्हारे स्पष्टीकरण के अनुसार, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के तीन व्यक्ति एक हैं; यदि ऐसा है, तो तीन आत्माएं हैं, लेकिन तीन आत्माओं का अर्थ है कि तीन परमेश्वर हैं। इसका मतलब है कि कोई भी एक सच्चा परमेश्वर नहीं है; इस प्रकार के परमेश्वर में अभी भी परमेश्वर का निहित सार कैसे हो सकता है? यदि तुम मानते हो कि केवल एक ही परमेश्वर है, तो उसका एक पुत्र कैसे हो सकता है और वह पिता कैसे हो सकता है? क्या ये सब केवल तुम्हारी धारणाएं नहीं हैं? केवल एक परमेश्वर है, इस परमेश्वर में केवल एक ही व्यक्ति है, और परमेश्वर का केवल एक आत्मा है, वैसा ही जैसा बाइबल में लिखा गया है कि "केवल एक पवित्र आत्मा और केवल एक परमेश्वर है।" जिस पिता और पुत्र के बारे में तुम बोलते हो, वे चाहे अस्तित्व में हों, कुल मिलाकर परमेश्वर एक ही है और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का सार, जिसे तुम लोग मानते हो, पवित्र आत्मा का सार है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर एक आत्मा है लेकिन वह देहधारण करने और मनुष्यों के बीच रहने के साथ-साथ सभी चीजों से ऊँचा होने में सक्षम है। उसका आत्मा समस्त-समावेशी और सर्वव्यापी है। वह एक ही समय पर देह में हो सकता है और पूरे विश्व में और उसके ऊपर हो सकता है। चूंकि सभी लोग कहते हैं कि परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, फिर एक ही परमेश्वर है, जो किसी की इच्छा से विभाजित नहीं होता! परमेश्वर केवल एक आत्मा है और केवल एक ही व्यक्ति है; और वह परमेश्वर का आत्मा है। यदि जैसा तुम कहते हो, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, तो क्या वे तीन परमेश्वर नहीं हैं? पवित्र आत्मा एक तत्व है, पुत्र दूसरा है, और पिता एक और है। उनके व्यक्तित्व अलग हैं और उनके सार अलग हैं, तो वे एक इकलौते परमेश्वर का हिस्सा कैसे हो सकते हैं? पवित्र आत्मा एक आत्मा है; यह मनुष्य के लिए समझना आसान है। यदि ऐसा है तो, पिता और भी अधिक एक आत्मा है। वह पृथ्वी पर कभी नहीं उतरा और कभी भी देह नहीं बना है; वह मनुष्यों के दिल में यहोवा परमेश्वर है और निश्चित रूप से वह भी एक आत्मा है। तो उसके और पवित्र आत्मा के बीच क्या संबंध है? क्या यह पिता और पुत्र के बीच का संबंध है? या यह पवित्र आत्मा और पिता के आत्मा के बीच का रिश्ता है? क्या प्रत्येक आत्मा का सार एकसमान है? या पवित्र आत्मा पिता का एक साधन है? इसे कैसे समझाया जा सकता है? और फिर पुत्र और पवित्र आत्मा के बीच क्या संबंध है? क्या यह दो आत्माओं का संबंध है या एक मनुष्य और आत्मा के बीच का संबंध है? ये सभी ऐसे मामले हैं, जिनकी कोई व्याख्या नहीं हो सकती! यदि वे सभी एक आत्मा हैं, तो तीन व्यक्तियों की कोई बात नहीं हो सकती, क्योंकि वे एक आत्मा के अधीन हैं। यदि वे अलग-अलग व्यक्ति होते, तो उनकी आत्माओं की शक्ति भिन्न होती और बस वे एक ही आत्मा नहीं हो सकते थे। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करती है और प्रत्येक को एक ओहदा और आत्मा देकर उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करती है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है? मुझे बताओ कि क्या स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ें पिता, पुत्र या पवित्र आत्मा द्वारा बनाई गई थीं? कुछ कहते हैं कि उन्होंने यह सब मिलकर बनाया। फिर किसने मानवजाति को छुटकारा दिलाया? क्या यह पवित्र आत्मा था, पुत्र था या पिता? कुछ कहते हैं कि वह पुत्र था, जिसने मानवजाति को छुटकारा दिलाया था। तो फिर सार में पुत्र कौन है? क्या वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण नहीं है? एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से देहधारी स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाता है। क्या तुम्हें पता नहीं कि यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के गर्भधारण से हुआ था? उसके भीतर पवित्र आत्मा है; तुम कुछ भी कहो, वह अभी भी स्वर्ग में परमेश्वर के साथ एकसार है, क्योंकि वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण है। पुत्र का यह विचार केवल असत्य है। यह एक आत्मा है जो सभी कार्य क्रियान्वित करता है; केवल परमेश्वर स्वयं, यानी परमेश्वर का आत्मा अपना कार्य क्रियान्वित करता है। परमेश्वर का आत्मा कौन है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है, जो यीशु में कार्य करता है? यदि कार्य पवित्र आत्मा (अर्थात, परमेश्वर का आत्मा) द्वारा क्रियान्वित नहीं किया गया था, तो क्या उसका कार्य स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता था? जब प्रार्थना करते हुए यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया, तो यह केवल एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से किया गया था, केवल इसलिए कि परमेश्वर के आत्मा ने एक सामान्य और साधारण देह का चोला धारण किया था और उसका वाह्य आवरण एक सृजित प्राणी का था। भले ही उसके भीतर परमेश्वर का आत्मा था, उसका बाहरी प्रकटन अभी भी एक सामान्य व्यक्ति का था; दूसरे शब्दों में, वह "मनुष्य का पुत्र" बन गया था, जिसके बारे में स्वयं यीशु समेत सभी मनुष्यों ने बात की थी। यह देखते हुए कि वह मनुष्य का पुत्र कहलाता है, वह एक व्यक्ति है (चाहे पुरुष हो या महिला, किसी भी हाल में एक इंसान के बाहरी चोले के साथ) जो सामान्य लोगों के साधारण परिवार में पैदा हुआ। इसलिए, यीशु का स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना, वैसा ही था जैसे तुम लोगों ने पहले उसे पिता कहा था; उसने सृष्टि के एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से ऐसा किया। क्या तुम लोगों को अभी भी प्रभु की प्रार्थना याद है, जो यीशु ने तुम लोगों को याद करने के लिए सिखाई थी? "स्वर्ग में हमारे पिता..." उसने सभी मनुष्यों से स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाने को कहा। और चूँकि वह भी उसे पिता कहता था, उसने ऐसा उस व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से किया, जो तुम सभी के साथ समान स्तर पर खड़ा था। चूंकि तुम लोगों ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया था, इससे पता चलता है कि यीशु ने स्वयं को तुम सबके साथ समान स्तर पर देखा और पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा चुने गए व्यक्ति (अर्थात परमेश्वर के पुत्र) के रूप में देखा। यदि तुम लोग परमेश्वर को पिता कहते हो, तो क्या यह इसलिए नहीं कि तुम सब सृजित प्राणी हो? पृथ्वी पर यीशु का अधिकार चाहे जितना अधिक हो, क्रूस पर चढ़ने से पहले, वह मात्र मनुष्य का पुत्र था, पवित्र आत्मा (यानी परमेश्वर) द्वारा नियंत्रित था और पृथ्वी के सृजित प्राणियों में से एक था क्योंकि उसे अभी भी अपना कार्य पूरा करना था। इसलिए, स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना पूरी तरह से उसकी विनम्रता और आज्ञाकारिता थी। परमेश्वर (अर्थात स्वर्ग में आत्मा) को उसका इस प्रकार संबोधन करना हालांकि यह साबित नहीं करता कि वह स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मा का पुत्र है। बल्कि, यह केवल यही है कि उसका दृष्टिकोण अलग था, न कि वह एक अलग व्यक्ति था। अलग व्यक्तियों का अस्तित्व एक मिथ्या है! क्रूस पर चढ़ने से पहले, यीशु मनुष्य का पुत्र था, जो देह की सीमाओं से बंधा था और उसमें पूरी तरह आत्मा का अधिकार नहीं था। यही कारण है कि वह केवल एक सृजित प्राणी के परिप्रेक्ष्य से परमपिता परमेश्वर की इच्छा तलाश सकता था। यह वैसा ही है जैसा गतसमनी में उसने तीन बार प्रार्थना की थी: "जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।" क्रूस पर रखे जाने से पहले, वह बस यहूदियों का राजा था; वह मसीह मनुष्य का पुत्र था और महिमा का शरीर नहीं था। यही कारण है कि एक सृजित प्राणी के दृष्टिकोण से, उसने परमेश्वर को पिता बुलाया। अब तुम यह नहीं कह सकते कि सभी जो परमेश्वर को पिता बुलाते हैं, पुत्र हैं। यदि ऐसा होता, तो क्या यीशु द्वारा प्रभु की प्रार्थना सिखाए जाने के बाद, क्या तुम सभी पुत्र नहीं बन गए होते? यदि तुम लोग अभी भी आश्वस्त नहीं हो तो मुझे बताओ, वह कौन है जिसे तुम सब पिता कहते हो? यदि तुम यीशु की बात कर रहे हो तो तुम सबके लिए यीशु का पिता कौन है? एक बार जब यीशु चला गया तो पिता और पुत्र का यह विचार नहीं रहा। यह विचार केवल उन वर्षों के लिए उपयुक्त था जब यीशु देह में था; अन्य सभी परिस्थितियों में, जब तुम परमेश्वर को पिता कहते हो, तो यह वह रिश्ता है, जो सृष्टि के परमेश्वर और सृजित प्राणी के बीच होता है। ऐसा कोई समय नहीं, जिस पर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के त्रित्व का विचार खड़ा रह सके; यह भ्रांति है, जो युगों तक शायद ही कभी समझी गई है और इसका अस्तित्व नहीं है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

फिर भी कुछ कह सकते हैं: "पिता पिता है; पुत्र पुत्र है; पवित्र आत्मा पवित्र आत्मा है और अंत में वे एक बनेंगे।" तो तुम उन्हें एक कैसे बना सकते हो? पिता और पवित्र आत्मा को एक कैसे बनाया जा सकता है? यदि वे मूल रूप से दो थे, तो चाहे वे एक साथ कैसे भी जोड़ें जाएं, क्या वे दो हिस्से नहीं बने रहेंगे? जब तुम उन्हें एक बनाने को कहते हो, तो क्या यह बस दो अलग हिस्सों को जोड़कर एक बनाना नहीं है? लेकिन क्या पूरे किए जाने से पहले वे दो भाग नहीं थे? प्रत्येक आत्मा का एक विशिष्ट सार होता है और दो आत्माएं एक नहीं बन सकतीं। आत्मा कोई भौतिक वस्तु नहीं है और भौतिक दुनिया की किसी भी अन्य वस्तु के समान नहीं है। जैसे मनुष्य इसे देखता है, पिता एक आत्मा है, बेटा दूसरा, और पवित्र आत्मा एक और, फिर तीन आत्माएं एक साथ पूरे तीन गिलास पानी की तरह मिलकर पूरा एक बनते हैं। क्या यह तीन को एक बनाना नहीं है? यह एक शुद्ध रूप से ग़लत व्याख्या है! क्या यह परमेश्वर को विभाजित करना नहीं है? पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सभी को एक कैसे बनाया जा सकता है? क्या वे भिन्न प्रकृति वाले तीन भाग नहीं हैं? अभी भी ऐसे हैं, जो कहते हैं, "क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?" यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है—यह निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को गवाही देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के वचन, "मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है," क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है। युग में परिवर्तन, कार्य की आवश्यकताओं और उसकी प्रबंधन योजना के विभिन्न चरणों के कारण, जिस नाम से मनुष्य उसे बुलाता है, वह भी अलग हो जाता है। जब वह कार्य के पहले चरण को क्रियान्वित करने आया था, तो उसे केवल यहोवा, इस्राएलियों का चरवाहा ही कहा जा सकता था। दूसरे चरण में, देहधारी परमेश्वर को केवल प्रभु और मसीह कहा जा सकता था। परंतु उस समय, स्वर्ग में आत्मा ने केवल यह बताया था कि वह परमेश्वर का प्यारा पुत्र है और उसके परमेश्वर का एकमात्र पुत्र होने का कोई उल्लेख नहीं किया था। ऐसा हुआ ही नहीं था। परमेश्वर की एकमात्र संतान कैसे हो सकती है? तब क्या परमेश्वर मनुष्य नहीं बन जाता? क्योंकि वह देहधारी था, उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा गया और इससे पिता और पुत्र के बीच का संबंध आया। यह बस स्वर्ग और पृथ्वी के बीच जो विभाजन है, उसके कारण हुआ। यीशु ने देह के परिप्रेक्ष्य से प्रार्थना की। चूंकि उसने इस तरह की सामान्य मानवता की देह को धारण किया था, यह उस देह के परिप्रेक्ष्य से है, जो उसने कहा: "मेरा बाहरी आवरण एक सृजित प्राणी का है। चूंकि मैंने इस धरती पर आने के लिए देहधारण किया है, अब मैं स्वर्ग से बहुत दूर हूँ।" इस कारण से, वह केवल परमपिता परमेश्वर से देह के परिप्रेक्ष्य से ही प्रार्थना कर सकता था। यह उसका कर्तव्य था और यह वह था, जो परमेश्वर के देहधारी आत्मा में होना चाहिए। यह नहीं कहा जा सकता कि वह परमेश्वर नहीं था क्योंकि वह देह के दृष्टिकोण से पिता से प्रार्थना करता था। यद्यपि उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा जाता था, वह अभी भी परमेश्वर था क्योंकि वह आत्मा का देहधारण था और उसका सार अब भी आत्मा का था।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

मनुष्य के स्पष्टीकरण में कई विरोधाभास हैं। वास्तव में, ये सभी मनुष्य की धारणाएं हैं; बिना किसी जाँच-पड़ताल के तुम सभी विश्वास कर लोगे कि वे सही हैं। क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर का त्रित्व का यह विचार मनुष्य की धारणा है? मनुष्य का कोई ज्ञान पूरा और संपूर्ण नहीं है। हमेशा अशुद्धियां होती हैं और मनुष्य के बहुत अधिक विचार हैं; यह दर्शाता है कि एक सृजन किया गया प्राणी, परमेश्वर के कार्य की व्याख्या कर ही नहीं सकता। मनुष्य के मन में बहुत कुछ है, सभी तर्क और विचार से आता है, जो सत्य के साथ संघर्ष करता है। क्या तुम्हारा तर्क परमेश्वर के कार्य का पूरी तरह से विश्लेषण कर सकता है? क्या तुम यहोवा के सभी कार्यों की अंतर्दृष्टि पा सकते हो? क्या यह तुम एक मानव होकर सब कुछ देख सकते हो या स्वयं परमेश्वर ही अनंत से अनंत तक देखने में सक्षम है? क्या तुम बीते अनंत काल से आने वाले अनंत काल तक देख सकता है या यह परमेश्वर है, जो ऐसा कर सकता है? तुम्हारा क्या कहना है? परमेश्वर की व्याख्या करने के लिए तुम कैसे योग्य हो? तुम्हारे स्पष्टीकरण का आधार क्या है? क्या तुम परमेश्वर हो? स्वर्ग और पृथ्वी, और इसमें मौजूद सभी चीज़ें स्वयं परमेश्वर द्वारा बनाई गई थीं। यह तुम नहीं थे जिसने यह किया था, तो तुम ग़लत व्याख्याएं क्यों दे रहे हो? अब, क्या तुम त्रयात्मक परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखे हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस तरह यह बहुत बोझिल है? तुम्हारे लिए सबसे अच्छा होगा कि तुम एक परमेश्वर में विश्वास करो, न कि तीन में। हल्का होना सबसे अच्छा है क्योंकि प्रभु का भार हल्का है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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