मैंने अपनी आधी से अधिक जिंदगी में मसीह पर विश्वास किया है। मैंने प्रभु के लिए अथक रूप से काम किया है और मुझे निरंतर उनके दूसरे आगमन की प्रतीक्षा रही है। अगर प्रभु आए हैं, तो मुझे उनका प्रकाशन क्यों नहीं मिला? क्या उन्होंने मुझे किनारे कर दिया है? इस बात ने मुझे बहुत दुविधा में डाल दिया है। आप इसे कैसे समझाएंगे?
उत्तर: मनुष्य सोचता है कि अगर वह अपनी आधी जिंदगी प्रभु में विश्वास करता है, प्रभु के लिए कठिन परिश्रम करता है, और सतर्कता से उनके दूसरे आगमन की प्रतीक्षा करता है, तो जब प्रभु दूसरी बार आएंगे, वे उन्हें प्रकाशन देंगें। यह मनुष्य की अवधारणा और परिकल्पना है, इसका परमेश्वर के कार्य की सच्चाई से कोई संबंध नहीं है। यहूदी फ़रीसियों ने परमेश्वर के रास्ते में फैली जमीन और समुद्र को घेर लिया था। क्या प्रभु यीशु ने कभी भी अपने आगमन पर उनको कोई प्रकाशन दिया? जहां तक प्रभु यीशु का अनुसरण करने वाले शिष्यों का प्रश्न है, उनमें से किसने प्रभु यीशु का अनुसरण इसलिए किया क्योंकि उन्हें प्रकाशन दिया गया था? एक ने भी नहीं! आप यह तर्क दे सकते हैं कि पतरस को परमेश्वर का प्रकाशन मिला था और उन्होंने पहचान लिया था कि प्रभु यीशु ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं, मगर ऐसा तब हुआ था जब पतरस कुछ समय से प्रभु यीशु का अनुसरण कर रहे थे और कुछ समय तक उनके उपदेश को सुना था और उनके बारे में कुछ जानकारी हासिल की थी। केवल तभी उनको पवित्र आत्मा से प्रकाशन मिला था और वे प्रभु यीशु की सही पहचान को समझने में सक्षम हुए। यकीनन पतरस को प्रभु यीशु का अनुसरण करने से पहले कोई प्रकाशन नहीं मिला था, यह सच्चाई है। जिन लोगों ने प्रभु यीशु का अनुसरण किया था, केवल वे ही यह समझने में सक्षम थे कि प्रभु यीशु आने वाले मसीहा हैं, ऐसा कुछ समय तक उनके उपदेश सुनने के बाद हुआ था। उन्होंने उनका अनुसरण इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें पहले से ऐसा प्रकाशन मिला था जिससे उनको यह समझने में मदद मिली कि प्रभु यीशु कौन थे। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए गुप्त रूप से लोगों के बीच देहधारी हुए थे। लाखों लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया और उनका अनुसरण किया है, मगर उनमें से किसी ने भी ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि उनको पवित्र आत्मा से प्रकाशन मिला था। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करते हैं क्योंकि हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और सच्चाई के संदेश पढ़ते समय परमेश्वर की आवाज को पहचाना है। इन तथ्यों से यह साबित होता है कि जब परमेश्वर अपना काम करने के लिए देहधारण करते हैं, तो वे निश्चित रूप से किसी भी मनुष्य को अपने में विश्वास करने और अनुसरण करने के लिए कोई प्रकाशन नहीं देते हैं। कहना न होगा कि अंत के दिनों में परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए सच्चाई बयान करते हैं। पूरे ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर ने जो वचन कहे हैं, वे ही उनके अंत के दिनों का कार्य है। हर कोई परमेश्वर की आवाज को सुन सकता है। अंत के दिनों में परमेश्वर का प्रवचन परमेश्वर द्वारा सृष्टि की रचना के बाद से उस पहले अवसर को दर्शाता है जब परमेश्वर ने पूरी मानवता के लिए और संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए अपने वचनों की घोषणा की थी। प्रकाशन में, परमेश्वर ने कई बार कहा "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" अंत के दिनों में, परमेश्वर अपने वचन की उक्ति और अपनी भेड़ को ढूंढने के लिए सच्चाई के सहारे काम करते हैं। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज को सुन सकती है। वे सभी लोग जो परमेश्वर की आवाज को सुनते और समझते हैं, परमेश्वर की भेड़ हैं, और बुद्धिमान कुंवारियां हैं। जो लोग परमेश्वर की आवाज को नहीं समझते हैं, वे मूर्ख कुंवारियां होंगे। इस तरह हर इंसान को उसकी अपनी श्रेणी में अलग-अलग बांटा जाता है। इससे पता चलता है कि परमेश्वर कितने बुद्धिमान और धर्मी हैं!
परमेश्वर ने अपने वचन को, अपनी वाणी को बहुत अधिक स्पष्ट किया है। अगर हम अभी भी उनको सुन और समझ नहीं सकते हैं, तो क्या हम सिर्फ मूर्ख कुंवारियां नहीं हैं? हर वर्ग में, कुछ ऐसे विश्वासी हैं जिन्होंने परमेश्वर की वाणी को सुना है और उनके पास लौट आए हैं। क्या ये सिर्फ "चुराया हुआ" खजाना नहीं है? प्रभु इन खजानों को वापस लेने के लिए गुप्त रूप से देहधारी हुए हैं, ताकि आपदाओं से पूर्व उन लोगों में से विजेताओं का एक समूह बनाया जा सके जिनका सबसे पहले परमेश्वर के सिंहासन के सामने आरोहण किया गया है। उन लोगों के संबंध में जो परमेश्वर के प्रकाशन के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं मगर परमेश्वर के कहे गए वचनों में उनकी वाणी को पहचान नहीं पाते हैं, केवल यही कहा जा सकता है कि वे सच्चाई को पसंद नहीं करते हैं, परमेश्वर को नहीं जानते हैं और निश्चित रूप से परमेश्वर की भेड़ नहीं हैं। स्वाभाविक रूप से, ऐसे ही लोग हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा अलग और दूर कर दिया जाता है। जैसे कि प्रभु यीशु ने थोमा से कहा था: "तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया" (यूहन्ना 20:29)। प्रभु यीशु ने पहले कहा था: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। परमेश्वर की बुद्धिमत्ता यहाँ स्पष्ट है। अगर परमेश्वर ने मनुष्य को इसलिए प्रकाशन दिया ताकि वे उनमें विश्वास कर सकें, तो परमेश्वर अभी भी ऐसा क्यों कहते हैं कि परमेश्वर की भेड़ उनकी आवाज सुनती है? क्या दोनों बातें अलग नहीं हैं? परमेश्वर इस आधार पर कि क्या मनुष्य परमेश्वर की आवाज को पहचान सकता है, यह तय करते हैं कि मनुष्य परमेश्वर के प्रति निष्ठावान है या नहीं। यह परमेश्वर की निष्पक्षता और धार्मिकता है। जैसा कि आप देखते हैं, जिन लोगों को परमेश्वर का प्रकाशन नहीं मिला और फिर भी परमेश्वर की आवाज को पहचान लिया और सीधे तौर पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लिया, वे ही सही मायनों में धन्य हैं। इसलिए, सही मार्ग को परखने में, परमेश्वर का प्रकाशन पाना महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि क्या आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की आवाज को पहचान पाते हैं या नहीं। केवल वे लोग जो यह समझते हैं कि परमेश्वर का वचन पूर्ण सत्य है और परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, वही सच्चे विश्वासी, सत्य के प्रेमी हैं और जो परमेश्वर के प्रकट होने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। अगर मनुष्य सिर्फ परमेश्वर का प्रकाशन पाने की प्रतीक्षा करता है, तो यह कहना मुश्किल है कि क्या वह व्यक्ति वास्तव में सत्य का प्रेमी है और परमेश्वर की आवाज को जानता है। इसलिए जिन लोगों ने प्रभु के आगमन को स्वीकार कर लिया है, उन्होंने ऐसा प्रभु की आवाज को सुनकर और यह समझकर किया है कि उनका वचन सत्य है। और यही कारण है कि वे प्रभु के फिर से प्रकट होने और उनके कार्य को स्वीकार करते हैं और उनका पालन करते हैं। केवल ऐसे लोगों का ही सही मायनों में परमेश्वर के सामने स्वर्गारोहण किया जाता है। अगर कोई सिर्फ परमेश्वर के प्रकाशन की प्रतीक्षा करता है, मगर उन वचनों के अध्ययन को अनदेखा कर देता है जो पवित्र आत्मा सभी कलीसियाओं से कहता है, तो ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर के कार्य के द्वारा दूर और अलग कर दिया गया है, और वे ऐसे लोगों में शामिल होंगे जो प्रलय के दिनों में पकड़े जाने पर विलाप करेंगे और अपने दांत पीसेंगे।
"प्रभुत्व का रहस्य" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?