अपनी परीक्षाओं के पश्चात् अय्यूब

30 मई, 2020

अय्यूब 42:7-9 ऐसा हुआ कि जब यहोवा ये बातें अय्यूब से कह चुका, तब उसने तेमानी एलीपज से कहा, "मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही। इसलिये अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छाँटकर मेरे दास अय्यूब के पास जाकर अपने निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अय्यूब तुम्हारे लिये प्रार्थना करेगा, क्योंकि उसी की प्रार्थना मैं ग्रहण करूँगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूँगा, क्योंकि तुम लोगों ने मेरे विषय मेरे दास अय्यूब की सी ठीक बात नहीं कही।" यह सुन तेमानी एलीपज, शूही बिलदद और नामाती सोपर ने जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया, और यहोवा ने अय्यूब की प्रार्थना ग्रहण की।

अय्यूब 42:10 जब अय्यूब ने अपने मित्रों के लिये प्रार्थना की, तब यहोवा ने उसका सारा दु:ख दूर किया, और जितना अय्यूब के पास पहले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया।

अय्यूब 42:12 यहोवा ने अय्यूब के बाद के दिनों में उसके पहले के दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, छ: हज़ार ऊँट, हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गदहियाँ हो गईं।

अय्यूब 42:17 अन्त में अय्यूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया।

वे जो परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते हैं परमेश्वर द्वारा दुलार से देखे जाते हैं, जबकि वे जो मूर्ख हैं परमेश्वर द्वारा दीन-हीन के रूप में देखे जाते हैं

अय्यूब 42:7-9 में, परमेश्वर कहता है कि अय्यूब उसका दास है। अय्यूब का उल्लेख करने के लिए उसके द्वारा "दास" शब्द का प्रयोग उसके हृदय में अय्यूब का महत्व दर्शाता है; यद्यपि परमेश्वर ने अय्यूब को कुछ ऐसा कहकर नहीं पुकारा था जो और अधिक सम्माननीय होता, फिर भी परमेश्वर के हृदय के भीतर अय्यूब के महत्व से इस उपाधि का कोई संबंध नहीं था। यहाँ "दास" अय्यूब के लिए परमेश्वर का दिया उपनाम है। परमेश्वर द्वारा "मेरे दास अय्यूब" का बहुत बार उल्लेख दिखाता है कि वह अय्यूब से कितना प्रसन्न था, और यद्यपि परमेश्वर ने "दास" शब्द के पीछे निहित अर्थ की बात नहीं की, फिर भी "दास" शब्द की परमेश्वर की परिभाषा पवित्र शास्त्र के इस अंश के उसके वचनों में देखी जा सकती है। परमेश्वर ने सबसे पहले तेमानी एलीपज से कहा : "मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही।" यह पहली बार है जब परमेश्वर ने ये वचन स्पष्ट रूप से लोगों से कहे थे कि उसने वह सब स्वीकार किया जो अय्यूब ने परमेश्वर द्वारा अपनी परीक्षाओं के बाद कहा और किया था, और यह पहली बार है जब उसने अय्यूब द्वारा कहे और किए गए सब कुछ की सटीकता और औचित्य की पुष्टि की थी। परमेश्वर एलीपज और दूसरों के ग़लत, और बेतुके वार्तालाप के कारण क्रोधित था, क्योंकि, अय्यूब के समान, वे परमेश्वर का प्रकटन नहीं देख सके थे या उन वचनों को नहीं सुन सके थे जो उसने उनके जीवन में कहे थे, इसके अतिरिक्त अय्यूब को परमेश्वर का ऐसा सटीक ज्ञान था, जबकि वे परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन करते हुए और वे जो कुछ करते थे उनमें उसके धैर्य की परीक्षा लेते हुए, आँख मूँदकर परमेश्वर के बारे में केवल अनुमान ही लगा सके थे। परिणामस्वरूप, अय्यूब के द्वारा जो किया और कहा गया था उसे स्वीकार करने के साथ ही साथ, परमेश्वर दूसरों के प्रति कुपित हो गया, क्योंकि उनमें वह न केवल परमेश्वर के भय की कोई वास्तविकता नहीं देख पाया था, बल्कि वे जो कुछ कहते थे उसमें भी उसने परमेश्वर के भय के बारे में कुछ नहीं सुना था। और इसलिए इसके बाद परमेश्वर ने उनसे नीचे लिखी माँगें कीं : "इसलिये अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छाँटकर मेरे दास अय्यूब के पास जाकर अपने निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अय्यूब तुम्हारे लिये प्रार्थना करेगा, क्योंकि उसी की प्रार्थना मैं ग्रहण करूँगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूँगा।" इस अंश में परमेश्वर एलीपज और दूसरों से कुछ ऐसा करने के लिए कह रहा है जो उन्हें उनके पापों से मुक्ति देगा, क्योंकि उनकी मूढ़ता यहोवा परमेश्वर के विरुद्ध पाप थी, और इस प्रकार उन्हें अपनी ग़लतियों का सुधार करने के लिए होमबलि चढ़ानी पड़ी थी। होमबलियाँ प्रायः परमेश्वर को चढ़ाई जाती हैं, परंतु इन होमबलियों के बारे में असामान्य बात यह है कि वे अय्यूब को चढ़ाई गई थीं। अय्यूब को परमेश्वर द्वारा इसलिए स्वीकार किया गया था क्योंकि उसने अपनी परीक्षाओं के दौरान परमेश्वर के लिए गवाही दी थी। इस बीच, अय्यूब के इन मित्रों को उसकी परीक्षाओं के समय के दौरान उजागर किया गया था; उनकी मूर्खता के कारण, परमेश्वर द्वारा उनकी भर्त्सना की गई थी, और उन्होंने परमेश्वर का क्रोध भड़काया था, और परमेश्वर द्वारा दण्डित किए जाने चाहिए—अय्यूब के सामने होमबलि चढ़ाने के द्वारा दण्डित किए गए—जिसके बाद अय्यूब ने उनके लिए प्रार्थना की कि उनकी तरफ़ से परमेश्वर का दण्ड और कोप हट जाए। परमेश्वर का अभिप्राय उन्हें लज्जित करना था, क्योंकि वे ऐसे लोग नहीं थे जो परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते थे, और उन्होंने अय्यूब की सत्यनिष्ठा की भर्त्सना की थी। एक दृष्टि से, परमेश्वर उन्हें बता रहा था कि उसने उनके कार्यकलाप स्वीकार नहीं किए थे, किंतु अय्यूब को अत्यधिक स्वीकार किया और उससे प्रसन्न हुआ था; दूसरी दृष्टि से, परमेश्वर उन्हें बता रहा था कि परमेश्वर द्वारा स्वीकार किया जाना मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष ऊँचा उठा देता है, कि मनुष्य अपनी मूर्खता के कारण परमेश्वर की घृणा का भागी बनता है, और इसके कारण परमेश्वर को नाराज़ करता है, और वह परमेश्वर की नज़रों में दीन-हीन और नीच है। ये दो प्रकार के लोगों की परमेश्वर द्वारा दी गई परिभाषाएँ हैं, वे इन दो प्रकार के लोगों के प्रति परमेश्वर की प्रवृत्तियाँ हैं, और वे इन दो प्रकार के लोगों के महत्व और प्रतिष्ठा के बारे में परमेश्वर की अभिव्यक्तियाँ हैं। परमेश्वर ने अय्यूब को भले ही अपना दास कहा था, फिर भी परमेश्वर की नज़रों में यह दास परमप्रिय था, और उसे दूसरों के लिए प्रार्थना करने और उनकी ग़लतियों को क्षमा करने का अधिकार प्रदान किया गया था। यह दास परमेश्वर से सीधे बातचीत कर पाता और सीधे परमेश्वर के समक्ष आ पाता था, उसकी हैसियत दूसरों की तुलना में अधिक ऊँची और सम्माननीय थी। यही परमेश्वर द्वारा बोले गए "दास" शब्द का सच्चा अर्थ है। अय्यूब को उसके द्वारा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की वजह से यह विशेष सम्मान दिया गया था, और दूसरों को परमेश्वर द्वारा दास नहीं कहा गया तो इसका कारण यह है कि वे परमेश्वर का भय नहीं मानते थे और बुराई से दूर नहीं रहते थे। परमेश्वर की ये दो स्पष्ट रूप से भिन्न प्रवृत्तियाँ ही दो प्रकार के लोगों के प्रति उसकी प्रवृत्तियाँ हैं : वे लोग जो परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते हैं परमेश्वर द्वारा स्वीकार किए जाते हैं और उसकी नज़रों में अनमोल माने जाते हैं, जबकि वे लोग जो मूर्ख हैं परमेश्वर का भय नहीं मानते हैं, बुराई से दूर रहने में अक्षम हैं, और परमेश्वर की कृपा प्राप्त नहीं कर पाते हैं; वे प्रायः परमेश्वर की घृणा और भर्त्सना के भागी बनते हैं, और वे परमेश्वर की नज़रों में दीन-हीन हैं।

परमेश्वर अय्यूब को अधिकार प्रदान करता है

अय्यूब ने अपने मित्रों के लिए प्रार्थना की, और उसके बाद, अय्यूब की प्रार्थनाओं की वजह से, परमेश्वर उनसे उनकी मूर्खता के अनुसार नहीं निपटा—उसने उन्हें दण्ड नहीं दिया या उनसे कोई बदला नहीं लिया। ऐसा क्यों था? ऐसा इसलिए था क्योंकि परमेश्वर के दास अय्यूब द्वारा उनके लिए की गई प्रार्थनाएँ परमेश्वर के कानों तक पहुँच गई थीं; परमेश्वर ने उन्हें क्षमा कर दिया था क्योंकि उसने अय्यूब की प्रार्थनाओं को स्वीकार कर लिया था। तो, इसमें हम क्या देखते हैं? जब परमेश्वर किसी को धन्य करता है, तो वह उन्हें बहुत-से पुरस्कार देता है, और केवल भौतिक पुरस्कार ही नहीं : परमेश्वर उन्हें अधिकार भी देता है, और दूसरों के लिए प्रार्थना करने का अधिकारी बनाता है, और परमेश्वर उन लोगों के अपराधों को भूल जाता और अनदेखा कर देता है, क्योंकि वह इन प्रार्थनाओं को सुन लेता है। यह वही अधिकार है जो परमेश्वर ने अय्यूब को दिया। उनके तिरस्कार को रोकने के लिए अय्यूब की प्रार्थनाओं के माध्यम से, यहोवा परमेश्वर ने उन मूर्ख लोगों को लज्जित किया—जो, निश्चित ही, एलीपज और दूसरों के लिए उसका विशेष दण्ड था।

अय्यूब को एक बार फिर परमेश्वर द्वारा धन्य किया जाता है, और वह फिर कभी शैतान द्वारा दोषारोपित नहीं किया जाता है

यहोवा परमेश्वर के कथनों के बीच ऐसे वचन हैं कि "तुम लोगों ने मेरे विषय मेरे दास अय्यूब की सी ठीक बात नहीं कही।" वह क्या था जो अय्यूब ने कहा था? यह वह था जिसके बारे में हमने पहले बात की थी, और साथ ही अय्यूब की पुस्तक में वचनों के अनेक पन्नों में बताया गया है जिनमें अय्यूब द्वारा बोला गया अंकित है। वचनों के इन अनेक पन्नों में से सभी में, अय्यूब को परमेश्वर के बारे में कभी एक बार भी कोई शिकायत या संदेह नहीं है। वह बस परिणाम की प्रतीक्षा करता है। यह वह प्रतीक्षा है जो आज्ञाकारिता की उसकी प्रवृत्ति है, जिसके परिणामस्वरूप, और परमेश्वर को कहे गए उसके वचनों के परिणामस्वरूप, अय्यूब को परमेश्वर द्वारा स्वीकार किया गया था। जब उसने परीक्षाएँ भुगतीं और कष्ट झेला, तब परमेश्वर उसके बगल में था, और यद्यपि परमेश्वर की उपस्थिति से उसका कष्ट कम नहीं हुआ था, फिर भी परमेश्वर ने वह देखा जो वह देखना चाहता था, और वह सुना जो वह सुनना चाहता था। अय्यूब के कार्यकलापों और वचनों में से प्रत्येक परमेश्वर की आँखों और कानों तक पहुँचा; परमेश्वर ने सुना, और उसने देखा—यह तथ्य है। परमेश्वर के बारे में अय्यूब का ज्ञान, और उस समय, उस अवधि के दौरान उसके हृदय में परमेश्वर के बारे में उसके विचार, वास्तव में उतने विशिष्ट नहीं थे जितने आज के लोगों के हैं, परंतु उस समय के संदर्भ में, परमेश्वर ने तब भी वह सब पहचान लिया जो उसने कहा था, क्योंकि उसका व्यवहार और उसके हृदय के विचार, साथ ही वह जो उसने अभिव्यक्त और प्रकट किया था, उसकी अपेक्षाओं के लिए पर्याप्त थे। उस समय के दौरान जब अय्यूब को परीक्षाओं से गुज़ारा गया था, उसने अपने हृदय में जो सोचा और करने का ठान लिया था, उसने परमेश्वर को परिणाम दिखाया, वह परिणाम जो परमेश्वर के लिए संतोषजनक था, और उसके बाद परमेश्वर ने अय्यूब की परीक्षाएँ दूर कर दीं, अय्यूब अपने कष्टों से निकल गया, और उसकी परीक्षाएँ समाप्त हो गई थीं और फिर कभी दुबारा उस पर नहीं आईं। चूँकि अय्यूब इन परीक्षाओं से पहले ही गुज़ारा जा चुका था, और इन परीक्षाओं के दौरान वह डटा रहा था, और उसने शैतान पर पूरी तरह विजय प्राप्त कर ली थी, इसलिए परमेश्वर ने उसे वे आशीष प्रदान किए जिनका वह समुचित रूप से अधिकारी था। जैसा कि अय्यूब 42:10,12 में अभिलिखित है, अय्यूब एक बार फिर धन्य किया गया था, और उससे कहीं अधिक धन्य किया गया जितना पहले दृष्टांत में किया गया था। इस समय शैतान पीछे हट गया था, तथा उसने अब और न कुछ कहा या न कुछ किया, और उसके बाद से शैतान ने अब और न अय्यूब के साथ छेड़छाड़ की या न ही उस पर आक्रमण किया, और शैतान ने अय्यूब को दिए गए परमेश्वर के आशीषों के विरुद्ध अब और कोई दोषारोपण नहीं किया।

अय्यूब ने अपने जीवन का उत्तरार्द्ध परमेश्वर के आशीषों के बीच बिताया

यद्यपि उस समय के उसके आशीष केवल भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, ऊँटों, भौतिक संपत्तियों, इत्यादि तक ही सीमित थे, फिर भी परमेश्वर अपने हृदय में अय्यूब को जो आशीष प्रदान करना चाहता था वे इनसे कहीं बढ़कर थे। क्या उस समय यह अंकित किया गया था कि परमेश्वर किस प्रकार की अनंत प्रतिज्ञाएँ अय्यूब को देना चाहता था? अय्यूब को अपने आशीषों में, परमेश्वर ने उसके अंत का उल्लेख नहीं किया या उसकी थोड़ी भी चर्चा नहीं की, और परमेश्वर के हृदय में अय्यूब चाहे जो महत्व और स्थान रखता था, कुल मिलाकर परमेश्वर अपने आशीषों में अत्यधिक नपा-तुला था। परमेश्वर ने अय्यूब के अंत की घोषणा नहीं की। इसका क्या अर्थ है? उस समय, जब परमेश्वर की योजना मनुष्य के अंत की घोषणा के बिंदु तक नहीं पहुँची थी, इस योजना को उसके कार्य के अंतिम चरण में अभी प्रवेश करना था, तब परमेश्वर ने मनुष्य को भौतिक आशीष मात्र ही प्रदान करते हुए, अंत का कोई उल्लेख नहीं किया था। इसका अर्थ यह है कि अय्यूब के जीवन का उत्तरार्द्ध परमेश्वर के आशीषों के बीच गुज़रा था, जो वही था जिसने उसे दूसरों से अलग बनाया था—किंतु उनके समान ही उसकी आयु बढ़ी, और किसी भी सामान्य व्यक्ति के समान ही वह दिन आया जब उसने संसार को अलविदा कह दिया। इस प्रकार यह अभिलिखित है कि "अन्त में अय्यूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया" (अय्यूब 42:17)। यहाँ "वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया" का क्या अर्थ है? परमेश्वर ने लोगों के अंत की घोषणा की उससे पहले के युग में, परमेश्वर ने अय्यूब के लिए एक जीवन काल निर्धारित किया था, और जब वह उस आयु तक पहुँच गया था तब उसने अय्यूब को स्वाभाविक रूप से इस संसार से जाने दिया। अय्यूब को दूसरे आशीष से उसकी मृत्यु तक, परमेश्वर ने और कोई कष्ट नहीं बढ़ाए। परमेश्वर के लिए, अय्यूब की मृत्यु स्वाभाविक, और आवश्यक भी थी; यह कुछ ऐसा था जो बहुत सामान्य था, और न तो न्याय था और न ही दण्डाज्ञा। जब वह जीवित था, तब अय्यूब परमेश्वर की आराधना करता और उसका भय मानता था; उसकी मृत्यु के बाद उसका अंत किस प्रकार हुआ, इस संबंध में परमेश्वर ने कुछ नहीं कहा, न ही इस बारे में कोई टिप्पणी की। परमेश्वर जो कहता और करता है उसमें उसके औचित्य का प्रबल बोध होता है, और उसके वचनों और कार्यों की विषयवस्तु और सिद्धांत उसके कार्य के चरण और उस अवधि के अनुसार होते हैं जिसमें वह कार्य कर रहा होता है। परमेश्वर के हृदय में अय्यूब जैसे किसी व्यक्ति का किस प्रकार का अंत हुआ? क्या परमेश्वर अपने हृदय में किसी भी प्रकार के निर्णय पर पहुँच गया था? निस्संदेह वह पहुँच गया था! बस इतना ही है कि मनुष्य को यह अविदित था; परमेश्वर मनुष्य को बताना नहीं चाहता था, न ही मनुष्य को बताने का उसका कोई इरादा था। इस प्रकार, ऊपरी तौर पर कहें, तो अय्यूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मरा, और ऐसा था अय्यूब का जीवन।

अपने जीवनकाल के दौरान अय्यूब द्वारा जिए गए जीवन का मूल्य

क्या अय्यूब ने मूल्यवान जीवन जिया? वह मूल्य कहाँ था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि उसने मूल्यवान जीवन जिया? मनुष्य के लिए उसका मूल्य क्या था? मनुष्य के दृष्टिकोण से, उसने शैतान और संसार के लोगों के सामने गूँजती हुई गवाही में उस मनुष्यजाति का प्रतिनिधित्व किया जिसे परमेश्वर बचाना चाहता था। उसने वह कर्तव्य निभाया जो परमेश्वर के सृजित प्राणी को निभाया ही चाहिए था, उन सभी लोगों के लिए जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, एक प्रतिमान स्थापित किया, और एक आदर्श के रूप में कार्य किया, लोगों को देखने दिया कि परमेश्वर पर भरोसा रखकर शैतान पर विजय प्राप्त करना पूरी तरह संभव है। परमेश्वर के लिए उसका मूल्य क्या था? परमेश्वर के लिए, अय्यूब के जीवन का मूल्य परमेश्वर का भय मानने, परमेश्वर की आराधना करने, परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने, और परमेश्वर के कर्मों की स्तुति करने, परमेश्वर को आराम देने और उसके आनंद लेने के लिए कुछ करने की उसकी क्षमता में निहित था; परमेश्वर के लिए, अय्यूब के जीवन का मूल्य इसमें भी निहित था कि कैसे, उसकी मृत्यु से पहले, अय्यूब ने परीक्षाओं का अनुभव किया और शैतान पर विजय प्राप्त की, और शैतान के समक्ष परमेश्वर की गूँजती हुई गवाही दी, मनुष्यजाति के बीच परमेश्वर का महिमामंडन किया, परमेश्वर के हृदय को आराम पहुँचाया, और परमेश्वर के आतुर हृदय को एक परिणाम देखने दिया और आशा देखने दी। उसकी गवाही ने मनुष्यजाति के प्रबंधन के परमेश्वर के कार्य में, परमेश्वर की अपनी गवाही में डटे रहने की क्षमता का, और परमेश्वर की ओर से शैतान को लज्जित करने में सक्षम होने का दृष्टांत स्थापित किया। क्या यह अय्यूब के जीवन का मूल्य नहीं है? अय्यूब ने परमेश्वर के हृदय को आराम पहुँचाया, उसने परमेश्वर को महिमान्वित होने की खुशी का पूर्वस्वाद चखाया, और परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए अद्भुत आरंभ प्रदान किया था। इस बिंदु से आगे, अय्यूब का नाम परमेश्वर की महिमा का प्रतीक, और शैतान पर मनुष्यजाति की विजय का चिन्ह बन गया। अपने जीवनकाल के दौरान अय्यूब ने जो जिया, वह और साथ ही शैतान के ऊपर उसकी उल्लेखनीय विजय परमेश्वर द्वारा हमेशा हृदय में सँजोकर रखी जाएगी, और आने वाली पीढ़ियों द्वारा उसकी पूर्णता, खरेपन, और परमेश्वर के भय का सम्मान और अनुकरण किया जाएगा। परमेश्वर द्वारा उसे दोषरहित, चमकदार मोती के समान हमेशा सँजोया जाएगा, और इसलिए वह मनुष्य के द्वारा भी सहेजकर रखे जाने योग्य है!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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