किसी को धार्मिक दुनिया के फरीसियों और मसीह-विरोधी लोगों के धोखे और नियंत्रण में रखने के परिणाम, और क्या वे परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं

18 मार्च, 2018

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

अपने उद्धार के लिए व्यक्ति को कौन सी शर्तें पूरी करनी ज़रूरी हैं? सबसे पहले, उसके अंदर शैतानी मसीह-विरोधी को पहचानने की क्षमता होनी चाहिए; उसके अंदर सत्य का यह दृष्टिकोण ज़रूर होना चाहिए। केवल सत्य के इस दृष्टिकोण से ही वह वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकता है और मनुष्य की आराधना करने या उसका अनुसरण करने से बच सकता है; केवल वही लोग मसीह विरोधी की पहचान कर सकते हैं जिनके अंदर वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करने और उसकी गवाही देने की क्षमता है। मसीह-विरोधियों की पहचान करने के लिए, लोगों को सबसे पहले पूरी स्पष्टता और समझ के साथ लोगों और चीज़ों को देखना सीखना चाहिए; उन्हें मसीह-विरोधियों के सार को महसूस करने में सक्षम होना चाहिए, और उनके तमाम षड्यंत्रों, चालबाजियों, अंतःप्रेरणाओं, और उद्देश्यों को समझना चाहिए। यदि तुम ऐसा कर सकते हो, तो तुम दृढ़ रह सकते हो। यदि तुम उद्धार प्राप्त करना चाहते हो, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह यह सीखना है कि शैतान को कैसे पराजित किया जाए और प्रतिरोधी शक्तियों तथा बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप पर कैसे विजय प्राप्त की जाए। यदि तुम शैतान की शक्तियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में अंत तक टिके रहने का कद और पर्याप्त सत्य प्राप्त कर लेते हो, और उन्हें पराजित कर देते हो, तब—और केवल तब—तुम अनवरत सत्य की तलाश कर सकते हो, और केवल तब तुम सत्य की तलाश और उद्धार के रास्ते पर दृढ़तापूर्वक और बिना किसी दुर्घटना के चल सकते हो। यदि तुम यह परीक्षा पास नहीं कर सकते, तब यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम मसीह-विरोधी के कब्जे में आ सकते हो और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में अगुआ और कार्यकर्ताओं में कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य की तलाश करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। हक़ीक़त में, ये चीज़ें कलीसिया में मौजूद हैं; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। यदि तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों के हाथों धोखा खा चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम उसे छोड़ दोगे, यह कहते हुए, "परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है; परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई धार्मिकता या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!" तुम परमेश्वर को नकारते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, यदि तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। यदि तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान को देख या छू नहीं सकते, लेकिन जो शैतान व्यावहारिक जीवन में मौजूद है, वह हर जगह है। कोई भी व्यक्ति जो सत्य से घृणा करता है वह बुरा है, और कोई भी अगुआ या कार्यकर्ता जो सत्य को स्वीकार नहीं करता वह मसीह-विरोधी और बुरा व्यक्ति है। क्या ऐसे लोग जीवित शैतान नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुवाई कर रहे हैं या वे लोग जिनके प्रति तुम लंबे समय से अपने हृदय में आशा, श्रद्धा, निष्ठा और भरोसा बनाए हुए हो। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे रास्ते में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें उद्धार प्राप्त करने से रोक रहे हैं; वे मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। यदि तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण, तुम उनके जाल में फँस सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। क्या ऐसे बहुत ज्यादा लोग हैं, जो इस खतरे से बच सकते हैं? क्या तुम लोग इससे बच गए हो? कुछ ऐसे हैं जो खुद को सत्य का खोजी बताते हैं और कहते हैं कि वे मसीह-विरोधियों से नहीं डरते—क्या यह महज शेखी बघारना नहीं है? जब तुम अपने विषैले दांत दिखाते और अपने नुकीले पंजे लहराते एक मसीह-विरोधी से टकराते हो, जो मानवता से दरिद्र है और बुराई पर उतारू है, तो तुम उन्हें निश्चित ही पहचान लेते हो। लेकिन अगर कोई मसीह-विरोधी काफी धर्मनिष्ठ लगता हो और लोगों की धारणाओं पर खरा उतरता हो, जिसकी मानवता श्रेष्ठ स्तर की हो, जिसकी बोलचाल और हरकतों में व्यवहार-कुशलता, शिष्टता और विनम्रता दिखाई देती हो, तो तुम उसकी असलियत नहीं भाँप पाओगे—लेकिन उनका व्यवहार, उनके विचार और धारणाएँ, और साथ ही उनके काम करने के तरीके और सत्य को समझने के उनके तरीके भी तुम पर अपना प्रभाव छोड़ेंगे। उनके इस प्रभाव की सीमा क्या है? वे तुम्हारे व्यवहार के तौर-तरीके को, उस रास्ते को जिस पर तुम चलते हो, और परमेश्वर के प्रति तुम्हारे रवैये को प्रभावित कर सकते हैं; और आखिर में, वे तुम्हारे आराध्य बन जाएंगे और तुम्हारे दिल में जगह बना लेंगे और तुम उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे। जब तुम इस सीमा तक प्रभावित हो जाते हो, तो तुम्हारे उद्धार की उम्मीद बहुत कम रह जाती है। अगर तुम लोग इसी सीमा तक परमेश्वर और सत्य को कार्य करने दो, तो यह बहुत स्वागत योग्य और अच्छी बात होगी, लेकिन इस सीमा तक एक ऐसे व्यक्ति के नियंत्रण में रहना जो शैतान या उसके जैसों द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका हो—तुम्हारे लिए एक विनाश होगा या वरदान? यह तुम्हारे लिए विनाश ही होगा, न कि वरदान। भले ही वे तुम्हें एक अस्थायी रास्ता दिखा पाएँ या तुम्हारा अस्थायी तौर पर भरण-पोषण कर पाएँ, तुम्हारी मदद करें या तुम्हें शिक्षा दें, इत्यादि, और भले ही तुम्हें इसमें अपनी भलाई प्रतीत हो, पर जैसे ही वे तुम्हारे दिल में अपनी एक खास जगह बना लेंगे, और तुम्हारे विचारों और धारणाओं को नियंत्रित और संचालित करने लगेंगे, इतना कि वे तुम्हारी आगे की दिशा भी तय कर सकें, तो तुम मुसीबत में घिर जाओगे—फिर तुम शैतान के नियंत्रण में आ जाओगे। ऐसे लोग भी हैं, जो किसी मसीह-विरोधी के बारे में कहते हैं, "वह शैतान नहीं है! वह एक आध्यात्मिक व्यक्ति है जो सत्य की खोज करता है!" क्या यह एक वैध वक्तव्य है? सत्य की सच्ची खोज करने वाला कोई भी व्यक्ति तुम्हें जो मार्गदर्शन, मदद और भरण-पोषण प्रदान करता है—जो प्रभाव और लाभ वे तुम तक पहुंचाते हैं—वह तुम्हें परमेश्वर के सम्मुख लाता है, ताकि तुम उसके वचनों और सत्य को प्राप्त कर सको, और तुम परमेश्वर के सम्मुख आकर उस पर निर्भर करना और उससे कामना करना सीख सको, और परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध घनिष्ठ-से-घनिष्ठ होता जाता है। अगर, इसके विपरीत, उस व्यक्ति के साथ तुम्हारा संबंध घनिष्ठ-से-घनिष्ठ होता जाता है, तो क्या हो रहा है? तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो वह अब उल्टा हो जाता है, और तुम गलत रास्ते पर चलने लगते हो। इसका क्या परिणाम होता है? मनुष्य के सम्मुख लाए जाने के कारण तुम परमेश्वर से बहुत दूर हो जाओगे, और जैसे ही परमेश्वर कुछ ऐसा करेगा जो तुम्हारे द्वारा पूजे जाने वाले व्यक्ति के हित में नहीं होगा, तुम सीधे विद्रोह पर उतर आओगे। यह एक आम घटना है। जब कुछ अगुआ बदल दिए जाते हैं, या कुछ मामलों में, निष्कासित कर दिए जाते हैं, तो उनके अनुयायी भी उनके साथ चले जाते हैं और विश्वास करना छोड़ देते हैं। क्या यह एक आम घटना नहीं है? उन्होंने विश्वास करना कैसे छोड़ दिया? वे कहते हैं, "अगर मेरे अगुआ को नहीं बचाया जा सकता तो मैं क्या उम्मीद रख सकता हूँ?" क्या यह नासमझी की बात नहीं है? वे इस तरह की बात कैसे कह सकते हैं? उनके अगुआ ने उन्हें धोखा दिया है। इस तरह धोखा खाने का क्या परिणाम होता है? यह कि वे पहले से ही अपने अगुआ के नियंत्रण में हैं। अपने अगुआ की हर कथनी और करनी को, हर कर्म और गतिविधि को और उसके किसी भी तरह के विचारों को वे अंधाधुंध स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें मापदंडों और उदाहरणों की तरह इस्तेमाल करते हैं और उन्हें सर्वोच्च सत्य की तरह देखते हैं। इसलिए वे यह सहन नहीं कर पाते कि कोई उनके अगुआ के शब्दों, कृत्यों या विचारों को गलत ठहराए, या उनके बारे में कोई नकारात्मक बात कहे, या उनकी निंदा करे और उनके बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचे। जैसे ही अगुआ को निष्कासित या बर्खास्त किया जाता है, वे सभी लोग उसके साथ चले जाते हैं जिन पर उसका नियंत्रण होता है, उनका दृढ़ विश्वास टस-से-मस नहीं होता, उन्हें लाख समझाकर भी वापस नहीं लाया जा सकता। क्या वे अपने अगुआ के नियंत्रण में नहीं हैं? सिर्फ उनके नियंत्रण में ही तुम उनकी तरफ से न्याय के लिए लड़ते हो, या उनकी चिंताओं, उनके विचारों, उनके आंसुओं और उनकी शिकायतों को साझा करते हो, यहाँ तक कि तुम अब परमेश्वर का भी संज्ञान नहीं लेते हो। उनका लक्ष्य तुम्हारा प्रभु, तुम्हारा परमेश्वर बनना है, जिस चीज पर तुम निर्भर करते हो, ताकि तुम अपने हृदय की गहराइयों से उनकी अधीनता स्वीकार करते हुए उनकी आज्ञा का पालन करो और उनका अनुसरण करो, और तुम परमेश्वर के प्रति एक अस्वीकृति का रवैया अपना लेते हो। तुम लोग एक मसीह-विरोधी को परमेश्वर मानने लगोगे, और तुम उन्हें अपना प्रभु और अपना परमेश्वर बना चुके होगे, तुम्हारे लिए, परमेश्वर कुछ भी नहीं होगा—तो यह होता है इसका परिणाम। यह कहने का कोई लाभ नहीं है कि तुम्हें किसी मसीह-विरोधी से धोखा खाने की चिंता नहीं है, और तुम्हें उसका अनुसरण करने से डर नहीं लगता, क्योंकि अगर तुम जिस रास्ते पर चलते हो वह गलत है, तो यह अपरिहार्य परिणाम है। तुम इससे बच नहीं सकते और तुम इस तथ्य को बदल नहीं सकते। जब तुम अपने चुने हुए रास्ते पर चलते हो तो यह परिणाम थोड़ा-थोड़ा करके सतह पर उभरने लगता है और अपने-आपको प्रस्तुत कर देता है। तब तक किसी अस्पष्टता की गुंजाइश नहीं रह जाती—परिणाम अपरिहार्य होता है।

— "मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं' से उद्धृत

तुम लोगों को मसीह-विरोधियों को पहचानना होगा। अगर तुम इसे कभी गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम्हारे पास यह जानने का कोई तरीका नहीं होगा कि तुम उनके द्वारा किस तरह की स्थिति में भटकाए जा सकते हो, और यह भी हो सकता है कि बिना यह तक जाने कि क्या हो रहा है, भ्रम की धुंध में तुम मसीह-विरोधियों का अनुसरण कर रहे हो। जब तुमने उनका अनुसरण करना शुरू किया, तो तुम्हें यह एहसास नहीं हुआ कि कुछ गलत है, और तुम्हें यह भी लग सकता है कि मसीह-विरोधी जो कह रहा है, वह सही है। अनजाने ही तुम्हें भटका दिया गया है। एक बार जब तुम धोखे में आ गए, तो परमेश्वर अब तुम्हें नहीं चाहता। कुछ लोग सामान्य रूप से अच्छा करते प्रतीत होते हैं, और वे अस्थायी रूप से किसी मसीह-विरोधी द्वारा भरमा दिए जाते हैं, इसलिए कलीसिया उन्हें चेतावनी देकर और उनके साथ सहभागिता करके अंततः उन्हें वापस ले सकती है। लेकिन कुछ लोग कभी वापस नहीं आते, चाहे उन्हें किसी भी प्रकार की सहभागिता प्राप्त हो; इसके बजाय वे मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने पर अड़े रहते हैं। क्या यह बरबाद होना नहीं है? आखिर वे वापस क्यों नहीं आते? ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर ऐसा नहीं होने देता। कुछ लोग बहुत नेक नीयत से कहते हैं, "ओह, लेकिन वह इतना अच्छा इंसान है। उसने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास किया है और बहुत त्याग किया और खुद को खपाया है। वह वास्तव में सीधा है और वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहा है, साथ ही परमेश्वर में उसकी आस्था जबरदस्त है। वह एक सच्चा विश्वासी है।" लोगों के अच्छे इरादों के आधार पर ऊपर से ऐसा ही दिखता है, लेकिन तुम उस व्यक्ति के हृदय के अंतरतम में नहीं देख सकते। तुम नहीं देख सकते कि वह वास्तव में किस तरह का व्यक्ति है, उसका सार क्या है। इसके अतिरिक्त, तुम अपने दिल की अच्छाई से उसे बचाने की कोशिश कर सकते हो, लेकिन तुम चाहे कैसे भी सहभागिता करो, वह वापस नहीं मुड़ेगा, और तुम नहीं जानते कि इसके पीछे क्या कारण है। वास्तव में, कारण यह है कि परमेश्वर उसे अब और नहीं चाहता। परमेश्वर उसे अब और क्यों नहीं चाहता? इसका एक अत्यंत स्पष्ट और आसानी से देखा जा सकने वाला कारण है। कुछ मसीह-विरोधी बहुत स्पष्ट रूप से दुष्ट आत्माएँ हैं, जबकि कुछ मसीह-विरोधी इस हद तक नहीं जाते कि स्वयं को दुष्टात्माओं के रूप में प्रस्तुत करें, इसलिए उन्हें इस रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता। जब कोई उन मसीह-विरोधियों का अनुसरण करता है जो स्पष्ट रूप से बुरी आत्माएँ हैं, तो जैसा कि परमेश्वर का सार और स्वभाव है, उसके अनुसार क्या वह उस व्यक्ति को स्वीकार करेगा? परमेश्वर पवित्र है, और वह ईर्ष्यालु परमेश्वर है—वह उन लोगों को अस्वीकार कर देता है, जिन्होंने बुरी आत्माओं का अनुसरण किया है। भले ही ऊपर से वह व्यक्ति तुम्हें अच्छा प्रतीत होता हो, परमेश्वर उस पहलू को नहीं देख रहा। "ईर्ष्यालु" क्या होता है? यहाँ "ईर्ष्यालु" का क्या अर्थ है? यदि यह शब्द से ही स्पष्ट नहीं है, तो देखो कि क्या तुम लोग मेरी व्याख्या से समझ सकते हो। जब से परमेश्वर द्वारा किसी व्यक्ति को चुना जाता है, तब से जब तक वे यह निर्धारित नहीं कर लेते कि परमेश्वर सत्य है, कि वह धार्मिकता, बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता है, कि एकमात्र केवल वही है—जब वे यह सब समझ जाते हैं, तो वे अपने दिल की गहराई में परमेश्वर के स्वभाव और सार के साथ-साथ उसके स्वरूप की एक बुनियादी समझ हासिल कर लेते हैं। यह बुनियादी समझ तब उनका विश्वास बन जाती है, और यही उन्हें परमेश्वर का अनुसरण करने, स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरित करती है। यह उनका आध्यात्मिक कद है, है ना? (हाँ।) इन चीजों ने पहले ही उनके जीवन में जड़ें जमा ली हैं और वे फिर कभी परमेश्वर को नहीं नकारेंगे। लेकिन अगर उन्हें मसीह या व्यावहारिक परमेश्वर का सच्चा ज्ञान नहीं है, तो वे फिर भी किसी मसीह-विरोधी की आराधना और उसका अनुसरण कर सकते हैं। ऐसा व्यक्ति अभी भी खतरे में है। वे अभी भी किसी दुष्ट मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए देहधारी मसीह से मुँह मोड़ सकते हैं; यह खुले तौर पर मसीह को नकारना और परमेश्वर से संबंध तोड़ना होगा। इसका निहितार्थ है : "मैं अब तुम्हारे पीछे नहीं चलूँगा, बल्कि मैं शैतान का अनुसरण कर रहा हूँ। मैं शैतान से प्यार करता हूँ और उसकी सेवा करना चाहता हूँ; मैं शैतान का अनुसरण करना चाहता हूँ, और चाहे वह मेरे साथ कैसा भी व्यवहार करे, वह कैसे भी मुझे बरबाद करे, रौंदे और भ्रष्ट करे, मैं सहर्ष तैयार हूँ। तुम चाहे कितने भी धार्मिक और कितने भी पवित्र हो, मैं अब तुम्हारा अनुसरण नहीं करना चाहता। इस तथ्य के बावजूद कि तुम परमेश्वर हो, मैं तुम्हारा अनुसरण नहीं करना चाहता।" और वे ऐसे ही छोड़कर चले जाते हैं, और किसी ऐसे व्यक्ति का अनुसरण करने लगते हैं जिसका उनसे कोई लेना-देना नहीं होता, ऐसे व्यक्ति का जो परमेश्वर का शत्रु है, या जो एक बुरी आत्मा भी है। क्या परमेश्वर अब भी इस तरह के व्यक्ति को चाहेगा? क्या उसे ठुकराना परमेश्वर के लिए उचित होगा? यह बिलकुल उचित होगा। सामान्य ज्ञान से, सभी लोग जानते हैं कि परमेश्वर एक ईर्ष्यालु परमेश्वर है, कि वह पवित्र है, लेकिन क्या तुम वास्तव में इसके पीछे की वास्तविक स्थिति को समझते हो? क्या मैं यहाँ जो कह रहा हूँ, वह सही नहीं है? (है।) यदि ऐसा है, तो क्या परमेश्वर द्वारा उस व्यक्ति का त्याग करना उसकी क्रूरता माना जाएगा? परमेश्वर सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है—अगर तुम जानते हो कि परमेश्वर कौन है लेकिन तुम उसका अनुसरण नहीं करना चाहते, और तुम जानते हो कि शैतान कौन है और तुम अभी भी उसका अनुसरण करना चाहते हो, तो मैं जोर नहीं दूँगा। मैं तुम्हें हमेशा के लिए शैतान का अनुसरण करने दूँगा और तुम्हें वापस आने के लिए नहीं कहूँगा, बल्कि मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। परमेश्वर का यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या यह हठ है? क्या वह भावनाओं में बहकर काम कर रहा है या गौरवान्वित हो रहा है? यह गौरव नहीं है, न ही हठ है, बल्कि परमेश्वर की "ईर्ष्या" का हिस्सा है। अर्थात्, अगर एक सृजित प्राणी के रूप में तुम भ्रष्ट होने में प्रसन्न हो, तो परमेश्वर क्या कह सकता है? अगर तुम भ्रष्ट होना चाहते हो, तो यह तुम्हारी व्यक्तिगत पसंद है—अंततः तुम ही परिणाम भुगतोगे, और दोषी तुम खुद ही होगे। लोगों के साथ व्यवहार करने के परमेश्वर के सिद्धांत अपरिवर्तनीय हैं, इसलिए अगर तुम भ्रष्टता से खुश हो, तो तुम्हारा अपरिहार्य अंत दंडित किया जाना है। चाहे तुमने पहले कितने भी वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण किया हो; अगर तुम भ्रष्ट होना चाहते हो, तो परमेश्वर चुनने में तुम्हारी मदद करेगा, न ही वह तुम्हें मजबूर करेगा। तुम स्वयं शैतान का अनुसरण करने के लिए, शैतान द्वारा गुमराह और अशुद्ध किए जाने के लिए तैयार हो, और इसलिए अंत में तुम्हें परिणाम भुगतने होंगे।

— "मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (II)' से उद्धृत

चाहे कितने भी लोग परमेश्वर में विश्वास क्यों न करें, जैसे ही उनके विश्वासों को परमेश्वर द्वारा धर्म या समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, तब परमेश्वर ने निर्धारित किया है कि उन्हें बचाया नहीं जा सकता। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? किसी गिरोह या लोगों की भीड़ में जो परमेश्वर के कार्य और मार्गदर्शन से रहित हैं और जो उसकी आराधना बिल्कुल भी नहीं करते हैं, वे किसकी आराधना करते हैं? वे किसका अनुसरण करते हैं? रूप और नाम में, वे एक इंसान का अनुसरण करते हैं, लेकिन वास्तव में वे किसका अनुसरण करते हैं? अपने हृदय में वे परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, लेकिन वास्तव में, वे मानवीय हेरफेर, व्यवस्थाओं और नियंत्रण के अधीन हैं। वे शैतान, हैवान का अनुसरण करते हैं; वे उन ताक़तों का अनुसरण करते हैं जो परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं, जो परमेश्वर की दुश्मन हैं। क्या परमेश्वर इस तरह के लोगों के झुण्ड को बचाएगा? (नहीं।) क्यों? क्या वे पश्चाताप करने में सक्षम हैं? (नहीं।) वे मानव उद्यमों को चलाते हुए, अपने स्वयं के प्रबंधन का संचालन करते हुए विश्वास का झंडा लहराते हैं, और मनुष्यजाति के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना के विपरीत चलते हैं। उनका अंतिम परिणाम परमेश्वर द्वारा नफ़रत और अस्वीकृत किया जाना है; परमेश्वर इन लोगों को संभवतः नहीं बचा सकता है, वे संभवतः पश्चाताप नहीं कर सकते है, वे पहले से ही शैतान के द्वारा पकड़ लिए गए हैं—वे पूरी तरह से शैतान के हाथों में हैं। तुमने कितने वर्ष परमेश्वर में विश्वास किया है, क्या तुम्हारी आस्था में इसका असर इस बात पर पड़ता है कि परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा करता है या नहीं? क्या तुम्हारे रस्मों और विनियमों के पालन करने का कुछ महत्व है? क्या परमेश्वर लोगों के अभ्यास के तौर-तरीकों को देखता है? क्या वह देखता है कि वहाँ कितने लोग हैं? उसने मानवजाति के एक हिस्से को चुना है; वह कैसे मापता है कि उन्हें बचाया जा सकता है और बचाया जाना चाहिए? उसका यह निर्णय उन मार्गों पर आधारित होता है जिन पर ये लोग चलते हैं। अनुग्रह के युग में, हालांकि परमेश्वर द्वारा लोगों को बताए गए सत्य आज की तरह इतने अधिक नहीं थे और इतने विशिष्ट नहीं थे, वह फिर भी उस समय लोगों को पूर्ण बना सका और तब भी उनका उद्धार संभव था। और इसलिए इस युग के लोग, जिन्होंने बहुत से सत्य सुने हैं, और जो परमेश्वर की इच्छा को समझ पाये हैं, अगर वे परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में असमर्थ हैं और उद्धार के मार्ग पर चलने में असमर्थ हैं, तो उनका अंतिम परिणाम क्या होगा? उनका अंतिम परिणाम उन्हीं के समान होगा जो ईसाई और यहूदी धर्म को मानते हैं; कोई अंतर नहीं होगा। यह परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है! चाहे तूने कितने भी धर्मोपदेश सुने हों, और तू कितने सत्यों को समझ चुका हो, यदि अंततः तू अभी भी लोगों का अनुसरण करता है और शैतान का अनुसरण करता है, और अंततः, तू अभी भी परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में अक्षम हैं और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में असमर्थ है, तो इस तरह के लोगों से परमेश्वर द्वारा नफ़रत की जाएगी और उन्हें अस्वीकार कर दिया जाएगा। हर पहलू से, ये लोग जो परमेश्वर द्वारा नफ़रत और अस्वीकृत किए जाते हैं वे पत्रों और सिद्धांतों के बारे में ज्यादा बात कर सकते हैं, और बहुत से सत्य समझते हैं और फिर भी वे परमेश्वर की आराधना करने में असमर्थ होते हैं; वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में असमर्थ हैं, और परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारी होने में असमर्थ हैं। परमेश्वर की नज़रों में, परमेश्वर उन्हें धर्म के रूप में, मनुष्य मात्र के एक समूह के रूप में, एक इंसानों का गिरोह और शैतान के लिए एक निवास स्थान के रूप में परिभाषित करता है। उन्हें सामूहिक रूप से शैतान का गिरोह कहा जाता है, और परमेश्वर उनसे पूरी तरह से घृणा करता है।

— "अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'यदि तू हर समय परमेश्वर के सामने रह सकता है केवल तभी तू उद्धार के पथ पर चल सकता है' से उद्धृत

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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