क्या धार्मिक पादरी और एल्डर वास्तव में परमेश्वर द्वारा रखे गए हैं, और क्या पादरियों और एल्डरों का आज्ञापालन करना परमेश्वर का आज्ञापालन करना है

18 मार्च, 2018

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

अपनी सेवा के लिए किसी व्यक्ति को चुनने में, परमेश्वर के सदैव अपने स्वयं के सिद्धांत होते हैं। परमेश्वर की सेवा करना मात्र एक उत्साह की बात नहीं है, जैसा कि लोग कल्पना करते हैं। आज तुम लोग देखते हो कि वे सभी जो परमेश्वर के समक्ष उसकी सेवा करते हैं, ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास परमेश्वर का मार्गदर्शन और पवित्र आत्मा का कार्य है; और इसलिए क्योंकि वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। ये परमेश्वर की सेवा करने वाले सभी लोगों के लिए न्यूनतम शर्तें हैं।

परमेश्वर की सेवा करना कोई सरल कार्य नहीं है। जिनका भ्रष्ट स्वभाव अपरिवर्तित रहता है, वे परमेश्वर की सेवा कभी नहीं कर सकते हैं। यदि परमेश्वर के वचनों के द्वारा तुम्हारे स्वभाव का न्याय नहीं हुआ है और उसे ताड़ित नहीं किया गया है, तो तुम्हारा स्वभाव अभी भी शैतान का प्रतिनिधित्व करता है जो प्रमाणित करता है कि तुम परमेश्वर की सेवा अपनी भलाई के लिए करते हो, तुम्हारी सेवा तुम्हारी शैतानी प्रकृति पर आधारित है। तुम परमेश्वर की सेवा अपने स्वाभाविक चरित्र से और अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार करते हो। इसके अलावा, तुम हमेशा सोचते हो कि जो कुछ भी तुम करना चाहते हो, वो परमेश्वर को पसंद है, और जो कुछ भी तुम नहीं करना चाहते हो, उनसे परमेश्वर घृणा करता है, और तुम पूर्णतः अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करते हो। क्या इसे परमेश्वर की सेवा करना कह सकते हैं? अंततः तुम्हारे जीवन स्वभाव में रत्ती भर भी परिवर्तन नहीं आएगा; बल्कि तुम्हारी सेवा तुम्हें और भी अधिक ज़िद्दी बना देगी और इससे तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव गहराई तक जड़ें जमा लेगा। इस तरह, तुम्हारे मन में परमेश्वर की सेवा के बारे में ऐसे नियम बन जाएँगे जो मुख्यतः तुम्हारे स्वयं के चरित्र पर और तुम्हारे अपने स्वभाव के अनुसार तुम्हारी सेवा से प्राप्त अनुभवों पर आधारित होंगे। ये मनुष्य के अनुभव और सबक हैं। यह दुनिया में जीने का मनुष्य का जीवन-दर्शन है। इस तरह के लोगों को फरीसियों और धार्मिक अधिकारियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि वे कभी भी जागते और पश्चाताप नहीं करते हैं, तो वे निश्चित रूप से झूठे मसीह और मसीह विरोधी बन जाएँगे जो अंत के दिनों में लोगों को धोखा देते हैं। झूठे मसीह और मसीह विरोधी, जिनके बारे में कहा गया था, इसी प्रकार के लोगों में से उठ खड़े होंगे। जो परमेश्वर की सेवा करते हैं, यदि वे अपने चरित्र का अनुसरण करते हैं और अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं, तब वे किसी भी समय बहिष्कृत कर दिए जाने के ख़तरे में होते हैं। जो दूसरों के दिलों को जीतने, उन्हें व्याख्यान देने और नियंत्रित करने तथा ऊंचाई पर खड़े होने के लिए परमेश्वर की सेवा के कई वर्षों के अपने अनुभव का प्रयोग करते हैं—और जो कभी पछतावा नहीं करते हैं, कभी भी अपने पापों को स्वीकार नहीं करते हैं, पद के लाभों को कभी नहीं त्यागते हैं—उनका परमेश्वर के सामने पतन हो जाएगा। ये अपनी वरिष्ठता का घमंड दिखाते और अपनी योग्यताओं पर इतराते पौलुस की ही तरह के लोग हैं। परमेश्वर इस तरह के लोगों को पूर्णता प्रदान नहीं करेगा। इस प्रकार की सेवा परमेश्वर के कार्य में विघ्न डालती है। लोग हमेशा पुराने से चिपके रहते हैं। वे अतीत की धारणाओं और अतीत की हर चीज़ से चिपके रहते हैं। यह उनकी सेवा में एक बड़ी बाधा है। यदि तुम उन्हें छोड़ नहीं सकते हो, तो ये चीज़ें तुम्हारे पूरे जीवन को विफल कर देंगी। परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा नहीं करेगा, थोड़ी-सी भी नहीं, भले ही तुम दौड़-भाग करके अपनी टाँगों को तोड़ लो या मेहनत करके अपनी कमर तोड़ लो, भले ही तुम परमेश्वर की "सेवा" में शहीद हो जाओ। इसके विपरीत वह कहेगा कि तुम एक कुकर्मी हो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, धार्मिक सेवाओं का शुद्धिकरण अवश्य होना चाहिए

जो कार्य मनुष्य के मन में होता है उसे वह बहुत आसानी से प्राप्त कर सकता है। उदाहरण के लिए, धार्मिक संसार के पादरी और अगुवे अपना कार्य करने के लिए अपनी प्रतिभाओं और पदों पर भरोसा रखते हैं। जो लोग लम्बे समय तक उनका अनुसरण करते हैं वे उनकी प्रतिभाओं से संक्रमित होकर उनके अस्तित्व के कुछ हिस्से से प्रभावित हो जाते हैं। वे लोगों की प्रतिभा, योग्यता और ज्ञान को निशाना बनाते हैं, वे अलौकिक चीज़ों और अनेक गहन और अवास्तविक सिद्धांतों पर ध्यान देते हैं (निस्संदेह, ये गहन सिद्धांत अप्राप्य हैं)। वे लोगों के स्वभाव में बदलाव पर ध्यान न देकर, लोगों को उपदेश देने और कार्य करने का प्रशिक्षण देने, लोगों के ज्ञान और उनके भरपूर धार्मिक सिद्धांतों को सुधारने पर ध्यान देते हैं। वे इस बात पर ध्यान नहीं देते कि लोगों के स्वभाव में कितना परिवर्तन हुआ है, न ही इस बात पर ध्यान देते हैं कि लोग कितना सत्य समझते हैं। उन्हें लोगों के सार से कोई लेना-देना नहीं होता, वे लोगों की सामान्य और असामान्य दशा को जानने की कोशिश तो बिल्कुल नहीं करते। वे लोगों की धारणाओं का विरोध नहीं करते, न ही वे अपनी धारणाओं को प्रकट करते हैं, वे लोगों की कमियों या भ्रष्टता के लिए उनकी काट-छाँट तो बिल्कुल भी नहीं करते। उनका अनुसरण करने वाले अधिकांश लोग अपनी प्रतिभा से सेवा करते हैं, और जो कुछ वे प्रदर्शित करते हैं, वह धार्मिक धारणाएँ और धर्म-संबंधी सिद्धांत होते हैं, जिनका वास्तविकता से कोई नाता नहीं होता और वे लोगों को जीवन प्रदान करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। वास्तव में, उनके कार्य का सार प्रतिभाओं का पोषण करना, प्रतिभाहीन व्यक्ति का पोषण करके उसे एक योग्य सेमेनरी स्नातक बनाना है जो बाद में कार्य और अगुवाई करता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का कार्य

उन सभी लोगों ने, जो मंच पर खड़े होते हैं, धर्मशास्त्र का अध्ययन किया होता है, वे मदरसा-प्रशिक्षित होते हैं, धर्मशास्त्रीय ज्ञान और सिद्धांत से युक्त होते हैं—वे मूल रूप से ईसाइयत के आधार-स्तंभ हैं। ईसाइयत ऐसे लोगों को मंच पर उपदेश देने, घूम-घूमकर प्रचार और काम करने के लिए प्रशिक्षित करती है। उन्हें लगता है कि ईसाइयत का मूल्य धर्मशास्त्र के ऐसे सक्षम लोगों में ही निहित है, क्योंकि धर्मशास्त्र के ये विद्यार्थी, ये पादरी और धर्मशास्त्री, जो उपदेश देते हैं; उनकी पूँजी हैं। यदि किसी कलीसिया का पादरी एक मदरसे का स्नातक हो, पवित्रशास्त्र की व्याख्या करने में कुशल हो, उसने कुछ आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ी हों, और उसके पास थोड़ा ज्ञान और वक्तृत्व-कौशल हो, तो वह कलीसिया पनपती है, और अन्य कलीसियाओं की तुलना में उसकी प्रतिष्ठा बहुत बेहतर होती है। ईसाइयत में ये लोग किसकी हिमायत करते हैं? ज्ञान की। और यह ज्ञान कहाँ से आता है? इसे प्राचीन काल से सौंपा गया है। प्राचीन काल में पवित्रशास्त्र था, जिसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दिया गया था, ठीक आज तक प्रत्येक पीढ़ी उसे पढ़ती और सीखती आई है। इंसान ने बाइबल को अलग-अलग खंडों में विभाजित किया और लोगों के पढ़ने और सीखने के लिए उसके अलग-अलग संस्करण तैयार किए। लेकिन वे जो सीखते हैं, वह यह नहीं है कि सत्य को कैसे समझें और परमेश्वर को कैसे जानें, या परमेश्वर की इच्छा को कैसे समझें और परमेश्वर का भय कैसे हासिल करें और बुराई से कैसे दूर रहें, बल्कि वे उनमें निहित ज्ञान का अध्ययन करते हैं। ज्यादा से ज्यादा, वे उनके भीतर निहित रहस्यों का पता लगते हैं, वे यह देखने के लिए उसकी जाँच करते हैं कि प्रकाशित वाक्य की पुस्तक की कौन-सी भविष्यवाणियाँ एक निश्चित अवधि में पूरी हुईं, महान आपदाएँ कब आएँगी, सहस्राब्दी कब आएगी—ये वे चीजें हैं, जिनका वे अध्ययन करते हैं। और जिसका वे अध्ययन करते हैं, क्या वह वह सत्य से जुड़ा होता है? नहीं। वे उन चीजों का अध्ययन क्यों करते हैं, जिनका सत्य से कोई संबंध नहीं? जितना अधिक वे उनका अध्ययन करते हैं, उतना ही अधिक वे सोचते हैं कि वे समझते हैं, और उतना ही अधिक वे खुद को शब्दों और सिद्धांत से लैस करते हैं। उनकी पूँजी भी बढ़ती है। उनकी योग्यताएँ जितनी अधिक होती हैं, उन्हें लगता है कि वे उतने ही अधिक सक्षम हैं, वे मानते हैं कि परमेश्वर में उनका विश्वास उतना ही अधिक मुकम्मल है, और उन्हें लगता है कि उनके बचाए जाने और स्वर्गिक राज्य में प्रवेश करने की उतनी ही अधिक संभावना है।

— "मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (III)' से उद्धृत

ईसाइयत में वे सभी जो धर्मशास्त्र, पवित्र ग्रंथ और यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य का इतिहास भी पढ़ते हैं—क्या वे सच्चे विश्वासी हैं? क्या वे उन विश्वासियों और अनुयायियों से भिन्न हैं, जिनके बारे में परमेश्वर बात करता है? क्या परमेश्वर की दृष्टि में वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं? (नहीं।) वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, वे परमेश्वर का अध्ययन करते हैं। क्या उनमें कोई अंतर है, जो परमेश्वर का अध्ययन करते हैं और जो अन्य चीजों का अध्ययन करते हैं? कोई अंतर नहीं है। वे बिलकुल उन्हीं लोगों के समान हैं जो इतिहास पढ़ते हैं, जो दर्शन-शास्त्र पढ़ते हैं, जो कानून पढ़ते हैं, जो जीव विज्ञान पढ़ते हैं, जो खगोल विज्ञान पढ़ते हैं—वे बस विज्ञान या जीव विज्ञान या अन्य विषयों को पसंद नहीं करते; वे सिर्फ धर्मशास्त्र पसंद करते हैं। ये लोग परमेश्वर के कार्य में सुरागों और सूत्रों की खोज करते हुए परमेश्वर का अध्ययन करते हैं—और इनकी शोध से क्या निकलता है? क्या वे यह तय कर पाते हैं कि क्या परमेश्वर का अस्तित्व है? वे ऐसा कभी नहीं कर पाएंगे। क्या वे परमेश्वर की इच्छा को तय कर पाते हैं? (नहीं।) क्यों? क्योंकि वे शब्दों और वाक्यांशों में जीते हैं, वे ज्ञान में जीते हैं, वे दर्शन-शास्त्र में जीते हैं, वे मनुष्यों के मस्तिष्कों और विचारों में जीते हैं। वे कभी भी परमेश्वर को नहीं देख पाएंगे, वे कभी भी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता प्राप्त नहीं कर पाएंगे। परमेश्वर उन्हें किस तरह परिभाषित करता है? अविश्वासियों के रूप में, गैर-विश्वासियों के रूप में। ये अविश्वासी और गैर-विश्वासी तथाकथित ईसाई समुदाय में घुलमिल जाते हैं, परमेश्वर में विश्वास करने वालों की तरह व्यवहार करते हुए, ईसाइयों की तरह व्यवहार करते हुए—पर क्या वे सचमुच परमेश्वर की आराधना करते हैं? क्या वे सचमुच उसकी आज्ञा का पालन करते हैं? नहीं। क्यों? एक बात निश्चित है : ऐसा इसलिए है क्योंकि अपने हृदयों में वे यह विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर ने दुनिया बनाई है, कि वह सभी चीजों पर शासन करता है, कि वह देहधारण कर सकता है, और इससे भी कम वे यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर का अस्तित्व है। यह अविश्वास क्या दर्शाता है? संदेह, नकार, और यह उम्मीद करने का रवैया भी कि परमेश्वर की भविष्यवाणियाँ—खासकर आपदाओं के बारे में—सच साबित नहीं होंगी और पूरी नहीं होंगी। यह वह रवैया है जो वे परमेश्वर में विश्वास के प्रति अपनाते हैं और यह उनकी तथाकथित आस्था का सार और असली चेहरा भी है। ये लोग परमेश्वर का अध्ययन करते हैं क्योंकि उनकी विद्वत्ता और धर्मशास्त्र के ज्ञान में विशेष रुचि है और उन्हें परमेश्वर के कार्यों के ऐतिहासिक तथ्यों में भी दिलचस्पी है। वे धर्मशास्त्र पढ़ने वाले बुद्धिजीवियों के एक झुंड से ज्यादा और कुछ भी नहीं हैं। ये "बुद्धजीवी" परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, तो जब परमेश्वर अपने काम पर आता है और उसके वचन साकार होते हैं तो ये लोग क्या करते हैं? जब वे सुनते हैं कि परमेश्वर देहधारी बन गया है और नया कार्य कर रहा है तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती है? "असंभव!" वे परमेश्वर के नए कार्य का उपदेश देने वाले की निंदा करते हैं, और ऐसे लोगों को मार देना तक चाहते है। यह किस चीज की अभिव्यक्ति है? क्या यह इस बात की अभिव्यक्ति नहीं है कि वे पक्के मसीह-विरोधी हैं? वे परमेश्वर के कार्य और उसके वचनों के पूरे होने के प्रति शत्रुता का भाव रखते हैं, उसके देहधारी अस्तित्व की तो बात ही क्या: "अगर तुमने देहधारण नहीं किया था और तुम्हारे वचन पूरे नहीं हुए हैं, तो तुम परमेश्वर हो। अगर तुम्हारे वचन पूरे हुए हैं और तुमने देहधारण किया था, तो तुम नहीं हो।" इसका दूसरा पहलू क्या है? यह कि जब तक उनका अपना अस्तित्व है, वे परमेश्वर के देहधारण की अनुमति नहीं देंगे। क्या यह एक प्रामाणिक मसीह-विरोधी होना नहीं है? यह असली मसीह-विरोध है।

— "मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (III)' से उद्धृत

हर पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, "हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।" देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं? ...

पहले, हो सकता है परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग किसी व्यक्ति का अनुसरण करते हों, या उन्होंने परमेश्वर की इच्छाओं को पूरा न किया हो; इस अंतिम चरण में, उन्हें परमेश्वर के सामने आना होगा। यदि तुम्हारी नींव कार्य के इस चरण का तुम्हारा अनुभव है, फिर भी तुम किसी व्यक्ति का अनुसरण करते रहते हो, तो तुम अक्षम्य हो, और तुम्हारा अंजाम भी वही होने वाला है जो पौलुस का हुआ था।

— "अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य का अनुसरण करना ही परमेश्वर में सच्चे अर्थ में विश्वास करना है' से उद्धृत

जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। किसी व्यक्ति को ऊँचा न ठहराओ, न किसी पर श्रद्धा रखो; परमेश्वर को पहले, जिनका आदर करते हो उन्हें दूसरे और ख़ुद को तीसरे स्थान पर मत रखो। किसी भी व्यक्ति का तुम्हारे हृदय में कोई स्थान नहीं होना चाहिए और तुम्हें लोगों को—विशेषकर उन्हें जिनका तुम सम्मान करते हो—परमेश्वर के समतुल्य या उसके बराबर नहीं मानना चाहिए। यह परमेश्वर के लिए असहनीय है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए

कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। बल्कि वे शक्ति और सम्पत्तियों में आनन्दित होते हैं; इस प्रकार के लोग शक्ति के खोजी कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनरी से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालंकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे आधा विश्वास करते हैं; और वे अपने दिलो-दिमाग को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हैं, वे मुख से तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, किन्तु उनकी नज़रें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं, और वे मसीह की ओर दूसरी नजर भी नहीं डालते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिक गए हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा मामूली व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है कि एक इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बनाबना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज़ लोग परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हँसते। उनका मानना है कि यदि परमेश्वर ने ऐसे नाचीज़ों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वास करने से अधिक, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल पद, प्रतिष्ठा और सत्ता को महत्व देते है और केवल बड़े समूहों और सम्प्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उनके लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे गद्दार हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुँह मोड़ लिया है।

तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो जो संसार की कीचड़ में लोट लगाते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, किन्तु उन मुरदों की तारीफ़ करते हो जो चढ़ावों को हड़प लेते हैं और अय्याशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, परन्तु उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालाँकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, उनकी हैसियत की ओर, उनके प्रभाव की ओर मुड़ता है। फिर भी तुम ऐसा रवैया बनाये रखते हो जहाँ तुम मसीह के कार्य को गले से उतारना कठिन पाते हो और उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ़ इसलिए किया, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और चारा नहीं था। तुम्हारे हृदय में हमेशा बुलंद छवियों का स्थान रहा है; तुम न तो उनके हर वचन और कर्म को, और न ही उनके प्रभावशाली वचनों और हाथों को भूल सकते हो। तुम सबके हृदय में वे हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक हैं। किन्तु आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा आदर के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह उत्कृष्ट तो बिल्कुल नहीं है।

बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य का सम्मान नहीं करते हैं वे सभी अविश्वासी और सत्य के प्रति गद्दार हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। क्या अब तुमने पहचान लिया है कि तुम्हारे भीतर कितना अधिक अविश्वास है, और मसीह के प्रति कितना विश्वासघात है? मैं तुमको इस तरह से शिक्षा देता हूँ : चूँकि तुमने सत्य का मार्ग चुना है, तो तुम्हें सम्पूर्ण हृदय से खुद को समर्पित कर देना चाहिए; दुविधाग्रस्त या अधूरे मन वाले न बनो। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर इस संसार या किसी एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि उन सबका है जो उस पर सचमुच विश्वास करते हैं, उन सबका जो उसकी आराधना करते हैं, और उन सबका है जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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