दुनिया के अंत के संकेत दिख गए हैं: भारी क्लेश से पहले हमें कैसे स्वर्गारोहित किया जाएगा

06 मार्च, 2020

लेखक: बेकी, अमेरिका

सूचीपत्र
जब हमारा स्वर्गारोहण होगा, तो क्या हमें वाकई आसमान में उठाया जाएगा?
भारी क्लेश से पहले स्वर्गारोहण का क्या अर्थ है?
भारी क्लेश से पहले स्वर्गारोहण कैसे किया जाएगा

आज, दुनिया भर में आपदाएं पहले से ज़्यादा गंभीर होती जा रही हैं। ख़बरें महामारी, भूकंप, बाढ़ और सूखे की कहानियों से भरी रहती हैं। क्या तुमने कभी खुद यह विचार किया है: प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियां पूरी हो चुकी हैं, तो फिर हमने अब तक प्रभु का स्वागत क्यों नहीं किया है? अगर यही चलता रहा, तो भारी क्लेश आने पर क्या हम सब भी आपदा में नहीं गिर जाएंगे? प्रभु हमें स्वर्ग के राज्य में कब लेकर जाएगा?

जब हमारा स्वर्गारोहण होगा, तो क्या हमें वाकई आसमान में उठाया जाएगा?

प्रभु के कई विश्वासियों ने बाइबल के इन वचनों को पढ़ा है: "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4)। वे चाहते हैं कि उन्हें आसमान में उठाया जाए और प्रभु के आने पर वे उससे मिल सकें। लेकिन, वास्तव में, ये वचन प्रभु यीशु ने नहीं बोले हैं, ये प्रकाशितवाक्य की पुस्तक की भविष्यवाणी भी नहीं हैं। दरअसल, ये प्रेरित पॉलुस के शब्द हैं। क्या प्रभु के आगमन का स्वागत करने के मामले में पॉलुस के शब्दों पर भरोसा करना सही है? क्या पॉलुस के शब्द प्रभु के वचनों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं? अंत के दिनों का प्रभु कैसे आता है और कैसे उन लोगों को राज्य में लेकर जाता है जो उस पर विश्वास करते हैं, यह देखना स्वयं परमेश्वर का कार्य है। पॉलुस सिर्फ़ एक प्रेरित था जिसने प्रभु के लिए संदेश फ़ैलाने का काम किया; वह ऐसी चीज़ें कैसे जान सकता था। प्रभु के आगमन का स्वागत करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात है, ऐसी बात जिसमें सिर्फ़ प्रभु यीशु के वचनों पर भरोसा करना ही हमारे लिए सही है। प्रभु यीशु ने कहा, "हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो" (मत्ती 6:9-10)। प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में ये भविष्यवाणियां भी मौजूद हैं: "फिर मैं ने पवित्र नगर नये यरूशलेम को स्वर्ग से परमेश्‍वर के पास से उतरते देखा। ... फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊँचे शब्द से यह कहते हुए सुना, 'देख, परमेश्‍वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है। वह उनके साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्‍वर आप उनके साथ रहेगा और उनका परमेश्‍वर होगा'" (प्रकाशितवाक्य 21:2-3)। "जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया, और वह युगानुयुग राज्य करेगा" (प्रकाशितवाक्य 11:15)। इन भविष्यवाणियों में, "स्वर्ग से परमेश्‍वर के पास से उतरते देखा," "परमेश्‍वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है," और "जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया," इन वचनों से पता चलता है कि परमेश्वर पृथ्वी पर अपना राज्य स्थापित करेगा, और उसने मनुष्य के लिए जिस मंजिल की व्यवस्था की है वह भी पृथ्वी पर ही मौजूद है। क्या स्वर्ग में उठाए जाने की हमारी निरंतर इच्छा हमारी अपनी धारणाएं और कल्पनाएं नहीं हैं? क्या यह परमेश्वर से अलग मार्ग पर चलना नहीं है?

सच्चाई यह है कि परमेश्वर ने कभी लोगों को आसमान पर उठाए जाने के बारे में नहीं बोला है, और इस बात को हम परमेश्वर के कार्य के तथ्यों से पहचान सकते हैं। शुरुआत में, परमेश्वर ने मिट्टी से मनुष्य को बनाया और उसे अदन के बाग में रखा, जहां रहकर उसने सही तरीके से परमेश्वर की आराधना की। नूह के ज़माने में, परमेश्वर ने नूह और उसके परिवार को बाढ़ से बचाने के लिए आसमान में नहीं उठाया। इसके बजाय, उसने नूह को पृथ्वी पर एक संदूक बनाने का व्यावहारिक कार्य करने का आदेश दिया। फिर व्यवस्था के युग में, लोगों ने परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन करने के लिए मौत की सजा पाने के खतरे का सामना किया। परमेश्वर ने पाप की भेंट पाने के लिए उन्हें हवा में नहीं उठाया, बल्कि इसके बजाय वह खुद देह बनकर पृथ्वी पर आया, जहां वास्तव में उसने मानवजाति के लिए क्रूस धारण किया, जिसके कारण मानवजाति को पाप से मुक्ति मिली। इससे हम यह देख सकते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य के उद्धार के लिए निरंतर पृथ्वी पर काम किया, उसने जीवन जीने और परमेश्वर की आराधना करने में मानवजाति का मार्गदर्शन किया। स्पष्ट है कि आसमान में उठाए जाने की हमारी निरंतर चाह परमेश्वर की इच्छा से अलग है!

भारी क्लेश से पहले स्वर्गारोहण का क्या अर्थ है?

आप में से कुछ लोगों को यह स्पष्ट नहीं होगा कि वास्तव में "स्वर्गारोहित किए जाने" का क्या अर्थ है। इसे समझने के लिए, पहले हम यह देखें कि परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं। परमेश्वर ने कहा, "'उठाया जाना' निचले स्थान से किसी ऊँचे स्थान पर ले जाया जाना नहीं है जैसा कि लोग सोच सकते हैं; यह एक बहुत बड़ी मिथ्या धारणा है। 'उठाया जाना' मेरे द्वारा पूर्वनियत और फिर चयनित किए जाने को इंगित करता है। यह उन सभी के लिए है जिन्हें मैंने पूर्वनियत और चयनित किया है। उठाए गए लोग वे सभी लोग हैं जिन्होंने पहलौठे पुत्रों या पुत्रों का स्तर प्राप्त कर लिया है या जो परमेश्वर के लोग हैं। यह लोगों की धारणाओं के बिलकुल भी संगत नहीं है। वे सभी लोग जिन्हें भविष्य में मेरे घर में हिस्सा मिलेगा, ऐसे लोग हैं जो मेरे सामने उठाए जा चुके हैं। यह एक सम्पूर्ण सत्य है, कभी न बदलने वाला और जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह शैतान के विरुद्ध एक जवाबी हमला है। जिस किसी को भी मैंने पूर्वनियत किया है, वह मेरे सामने उठाया जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 104)। ये वचन हमें बताते हैं कि स्वर्गारोहित किए जाने का मतलब प्रभु से मिलने के लिए आसमान में ले जाया जाना नहीं है जैसी कि हम कल्पना करते हैं; इसके बजाय, इसका अर्थ है परमेश्वर की वाणी को सुनने के बाद उसके नए कार्य को स्वीकार करना और उसका आज्ञापालन करना, मेमने के पदचिह्नों का बारीकी से अनुसरण करना और जब परमेश्वर पृथ्वी पर आकर अपना कार्य कर रहा हो तब उसके समक्ष आना। सिर्फ़ यही सच्चा स्वर्गारोहण है। यह बिलकुल वैसा ही है कि जब प्रभु यीशु छुटकारे का कार्य करने आया, तब पतरस, सामरी महिला, जेम्स और अन्य लोगों ने प्रभु के वचनों को सुनकर उसकी वाणी को पहचान लिया और यह तय किया कि आने वाला मसीहा वही था। इसके परिणाम स्वरूप, उन्हें प्रभु का उद्धार प्राप्त हुआ और अनुग्रह के युग के दौरान उन सभी को प्रभु के समक्ष ऊपर उठाया गया। वे सभी लोग जो अंत के दिनों में प्रभु की वापसी का स्वागत करते हैं और परमेश्वर के मौजूदा कार्य को स्वीकार करते हैं, मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाले लोग हैं और उन्हें प्रभु के सामने ऊपर उठाया जाता है!

भारी क्लेश से पहले स्वर्गारोहण कैसे किया जाएगा

प्रभु का स्वागत करने और आपदा से पहले स्वर्गारोहण के लिए हमें क्या करना चाहिए? इसकी भविष्यवाणी बहुत पहले बाइबल में कर दी गई थी, जब प्रभु यीशु ने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के अध्याय 2 और 3 में कई बार कहा गया है: "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" अध्याय 3, पद 20 में भी कहा गया है: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।" परमेश्वर के वचन कहते हैं, "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)। परमेश्वर के वचन हमें कहते हैं कि अगर हम प्रभु का स्वागत करना चाहते हैं, तो परमेश्वर के कार्य और वचनों की खोज करना ज़रूरी है। कलीसियाओं से कहे गए पवित्र आत्मा के कथन कहाँ हैं और आज परमेश्वर का प्रकटन और कार्य कहाँ है, इसका पता लगाने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। अगर हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज करने की जिम्मेदारी खुद नहीं उठाते हैं, अगर हम परमेश्वर की वाणी सुनने को महत्व नहीं देते हैं, बल्कि इसके बजाय निष्क्रिय होकर आसमान में बादलों को टकटकी लगाए देखते रहते हैं, बेपरवाही से प्रभु के आने और हमें हवा में उठाये जाने का इंतज़ार करते रहते हैं, तो क्या ऐसे विचार काल्पनिक नहीं हैं? तब क्या हम हमेशा के लिए प्रभु का स्वागत करने में असमर्थ नहीं हो जाएंगे, और अंततः हम उसके द्वारा स्वर्गारोहित किये जाने का मौक़ा व्यर्थ में नहीं गँवा देंगे?

प्रभु के पदचिह्न कहाँ हैं? परमेश्वर अपने वचन कहाँ बोलता है? आज, सिर्फ़ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ही खुले तौर पर मानवजाति को यह गवाही देती है कि प्रभु पहले ही लौट आया है, जो अंत के दिनों का देहधारी परमेश्वर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन व्यक्त किये हैं, अनेकों सत्यों और रहस्यों को उजागर किया है और हमारे लिये परमेश्वर की छः हज़ार सालों की प्रबंधन योजना, देहधारण के रहस्य और बाइबल के रहस्यों का खुलासा किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति का न्याय करने और उसे उजागर करने के लिए भी वचन बोले हैं, शैतान के हाथों हमारी भ्रष्टता के सच्चे तथ्यों और हमारे विभिन्न शैतानी स्वभावों का खुलासा किया है। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को स्वीकार करके, हमें हमारी भ्रष्टता का पता चलता है और हम देखते हैं कि हम सिर्फ़ अहंकार, स्वार्थ, नीचता, विश्वासघात और कपट के शैतानी स्वभावों को प्रकट करते हैं, हम विवेक और बुद्धि से वंचित हैं। हमें परमेश्वर के वचनों से पूरी तरह सहमत हैं, हम परमेश्वर के समक्ष दंडवत होते हैं, पश्चाताप से अभिभूत होते हैं, हमें परमेश्वर के धार्मिक और पवित्र स्वभाव का कुछ ज्ञान होता है। हमारे भीतर परमेश्वर के प्रति सम्मान और आज्ञाकारिता का भाव रखने वाला हृदय विकसित होता है और हम अपने दिलों के भीतर से इस बात की पुष्टि करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये गए सभी वचन सत्य हैं, ये वचन लोगों को शुद्ध और परिवर्तित करने में सक्षम हैं।

आज, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन मानवजाति के बीच फ़ैल रहे हैं। विभिन्न ईसाई संप्रदायों में कई लोगों ने, जो सच्चे विश्वासी हैं और वास्तव में सत्य से प्रेम करते हैं, परमेश्वर की वाणी को सुना है, परमेश्वर के वचनों को सुनकर जाग उठे हैं और उसके सिंहासन के सामने लौट आये हैं। वे उसके वचनों के सिंचन और पोषण का आनंद उठाते हैं, वे यह महसूस करते हैं कि ये वचन कितने अधिकारपूर्ण और शक्तिशाली हैं, उन्होंने यह जान लिया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। वे वही लोग हैं जिन्हें भारी क्लेश से पहले स्वर्गारोहित किया गया है! आइये हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के एक अंश को पढ़ें: "मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं चाहता हूँ कि अपने चुने हुए लोगों के समक्ष मैं और अधिक वचन बोलूँ। मैं पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ, उन शक्तिशाली गर्जनाओं की तरह जो पर्वतों और नदियों को हिला देती हैं। इस प्रकार, मेरे मुँह से निकले वचन मनुष्य का खज़ाना बन गए हैं, और सभी मनुष्य मेरे वचनों को सँजोते हैं। बिजली पूरब से चमकते हुए दूर पश्चिम तक जाती है। मेरे वचन ऐसे हैं कि मनुष्य उन्हें छोड़ना बिलकुल पसंद नहीं करता, पर साथ ही उनकी थाह भी नहीं ले पाता, लेकिन फिर भी उनमें और अधिक आनंदित होता है। सभी मनुष्य खुशी और आनंद से भरे होते हैं और मेरे आने की खुशी मनाते हैं, मानो किसी शिशु का जन्म हुआ हो। अपनी वाणी के माध्यम से मैं सभी मनुष्यों को अपने समक्ष ले आऊँगा। उसके बाद, मैं औपचारिक तौर पर मनुष्य जाति में प्रवेश करूँगा ताकि वे मेरी आराधना करने लगें। मुझमें से झलकती महिमा और मेरे मुँह से निकले वचनों से, मैं ऐसा करूँगा कि सभी मनुष्य मेरे समक्ष आएंगे और देखेंगे कि बिजली पूरब से चमकती है और मैं भी पूरब में 'जैतून के पर्वत' पर अवतरित हो चुका हूँ। वे देखेंगे कि मैं बहुत पहले से पृथ्वी पर मौजूद हूँ, यहूदियों के पुत्र के रूप में नहीं, बल्कि पूरब की बिजली के रूप में। क्योंकि बहुत पहले मेरा पुनरुत्थान हो चुका है, और मैं मनुष्यों के बीच से जा चुका हूँ, और फिर अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच पुनः प्रकट हुआ हूँ। मैं वही हूँ जिसकी आराधना असंख्य युगों पहले की गई थी, और मैं वह शिशु भी हूँ जिसे असंख्य युगों पहले इस्राएलियों ने त्याग दिया था। इसके अलावा, मैं वर्तमान युग का संपूर्ण-महिमामय सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ! सभी लोग मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामयी मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरी संपूर्ण इच्छा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है, यही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी है। सभी राष्ट्र मेरी आराधना करें, हर ज़बान मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और सभी लोग मेरी अधीनता स्वीकार करें!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)

परमेश्वर के वचनों के इस अंश को पढ़ने के बाद तुम कैसा महसूस करते हो? क्या तुम्हारे हृदय के भीतर उत्साह नहीं है? क्या तुम्हें यह महसूस होता है कि सृष्टिकर्ता पूरी मानवजाति से बात कर रहा है? क्या तुम्हें महसूस होता है कि अब परमेश्वर हमें यह गवाही दे रहा है कि वह पहले ही लौट आया है? तुम्हें चाहे जैसा भी महसूस होता हो, हमें एक अत्यावश्यक कार्य करना है: हमें बुद्धिमान कुंवारियां बनना है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा बोले गये वचनों को सुनना है और खुले मन से अंत के दिनों के उसके कार्य की खोज करनी है। भारी क्लेश से पहले स्वर्गारोहित किये जाने का दूसरा कोई मार्ग नहीं है!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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