आप कहते हैं कि प्रभु यीशु देह में, एक चीनी व्यक्ति के रूप में, लौट आया है। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते। बाइबल में जो लिखा गया है उसके अनुसार, प्रभु यीशु एक यहूदी के रूप में विदा हुआ था, इसलिए हम मानते हैं कि जब प्रभु अंतिम दिनों के दौरान लौटता है, तो यह भी एक यहूदी के रूप में ही होना चाहिए। वह एक चीनी व्यक्ति के रूप में कैसे आ सकता था?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर पूरे ब्रह्मांड और ऊपर के राज्य में महानतम है, तो क्या वह देह की छवि का उपयोग करके स्वयं को पूरी तरह से समझा सकता है? परमेश्वर अपने कार्य के एक चरण को करने के लिए देह के वस्त्र पहनता है। देह की इस छवि का कोई विशेष अर्थ नहीं है, यह युगों के गुज़रने से कोई संबंध नहीं रखती, और न ही इसका परमेश्वर के स्वभाव से कुछ लेना-देना है। यीशु ने अपनी छवि को क्यों नहीं बना रहने दिया? क्यों उसने मनुष्य को अपनी छवि चित्रित नहीं करने दी, ताकि उसे बाद की पीढ़ियों को सौंपा जा सकता? क्यों उसने लोगों को यह स्वीकार नहीं करने दिया कि उसकी छवि परमेश्वर की छवि है? यद्यपि मनुष्य की छवि परमेश्वर की छवि में बनाई गई थी, किंतु फिर भी क्या मनुष्य की छवि के लिए परमेश्वर की उत्कृष्ट छवि का प्रतिनिधित्व करना संभव रहा होता? जब परमेश्वर देहधारी होता है, तो वह स्वर्ग से मात्र एक विशेष देह में अवरोहण करता है। यह उसका आत्मा है, जो देह में अवरोहण करता है, जिसके माध्यम से वह पवित्रात्मा का कार्य करता है। यह पवित्रात्मा ही है जो देह में व्यक्त होता है, और यह पवित्रात्मा ही है जो देह में अपना कार्य करता है। देह में किया गया कार्य पूरी तरह से पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करता है, और देह कार्य के वास्ते होता है, किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि देह की छवि स्वयं परमेश्वर की वास्तविक छवि का स्थानापन्न होती है; परमेश्वर के देह बनने का उद्देश्य और अर्थ यह नहीं है। वह केवल इसलिए देहधारी बनता है, ताकि पवित्रात्मा को रहने के लिए ऐसी जगह मिल सके, जो उसकी कार्य-प्रणाली के लिए उपयुक्त हो, जिससे देह में उसका कार्य बेहतर ढंग से हो सके, ताकि लोग उसके कर्म देख सकें, उसका स्वभाव समझ सकें, उसके वचन सुन सकें, और उसके कार्य का चमत्कार जान सकें। उसका नाम उसके स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है, उसका कार्य उसकी पहचान का प्रतिनिधित्व करता है, किंतु उसने कभी नहीं कहा है कि देह में उसका प्रकटन उसकी छवि का प्रतिनिधित्व करता है; यह केवल मनुष्य की एक धारणा है। और इसलिए, परमेश्वर के देहधारण के मुख्य पहलू उसका नाम, उसका कार्य, उसका स्वभाव और उसका लिंग हैं। इस युग में उसके प्रबंधन का प्रतिनिधित्व करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है। केवल उस समय के उसके कार्य के वास्ते होने से, देह में उसके प्रकटन का उसके प्रबंधन से कोई संबंध नहीं है। फिर भी, देहधारी परमेश्वर के लिए कोई विशेष छवि नहीं रखना असंभव है, और इसलिए वह अपनी छवि निश्चित करने के लिए उपयुक्त परिवार चुनता है। यदि परमेश्वर के प्रकटन का प्रातिनिधिक अर्थ होता, तो उसके चेहरे जैसी विशेषताओं से संपन्न सभी व्यक्ति भी परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते। क्या यह एक गंभीर त्रुटि नहीं होती? यीशु का चित्र मनुष्य द्वारा चित्रित किया गया था, ताकि मनुष्य उसकी आराधना कर सके। उस समय पवित्रात्मा ने कोई विशेष निर्देश नहीं दिए, और इसलिए मनुष्य ने आज तक उस कल्पित चित्र को आगे बढ़ाया। वास्तव में, परमेश्वर के मूल इरादे के अनुसार, मनुष्य को ऐसा नहीं करना चाहिए था। यह केवल मनुष्य का उत्साह है, जिसके कारण आज तक यीशु का चित्र बचा रहा है। परमेश्वर पवित्रात्मा है, और अंतिम विश्लेषण में उसकी छवि कैसी है, इसे रेखांकित करने में मनुष्य कभी सक्षम नहीं होगा। उसकी छवि का केवल उसके स्वभाव द्वारा ही प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। जहाँ तक उसकी नाक, उसके मुँह, उसकी आँखों और उसके बालों के रूप-रंग की बात है, इन्हें रेखांकित करना तुम्हारी क्षमता से परे है। जब यूहन्ना पर प्रकाशन आया, तो उसने मनुष्य के पुत्र की छवि देखी : उसके मुँह से एक तेज दो-धारी तलवार निकल रही थी, उसकी आँखें आग की ज्वाला के समान थीं, उसका सिर और बाल श्वेत ऊन के समान उज्ज्वल थे, उसके पाँव चमकाए गए काँसे के समान थे, और उसकी छाती के चारों ओर सोने का पटुका बँधा हुआ था। यद्यपि उसके वचन बहुत जीवंत थे, किंतु उसने परमेश्वर की जिस छवि का वर्णन किया, वह किसी सृजित प्राणी की छवि नहीं थी। उसने जो देखा, वह मात्र एक झलक थी, भौतिक जगत में से किसी व्यक्ति की छवि नहीं थी। यूहन्ना ने एक झलक देखी थी, किंतु उसने परमेश्वर की वास्तविक छवि नहीं देखी थी। देहधारी परमेश्वर के देह की छवि एक सृजित प्राणी की छवि होने से परमेश्वर के स्वभाव का समग्रता से प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है। जब यहोवा ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसने कहा कि उसने ऐसा अपनी छवि में किया और नर और मादा का सृजन किया। उस समय, उसने कहा कि उसने नर और मादा को परमेश्वर की छवि में बनाया। यद्यपि मनुष्य की छवि परमेश्वर की छवि से मिलती-जुलती है, किंतु इसका अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि मनुष्य की छवि परमेश्वर की छवि है। न ही तुम परमेश्वर की छवि को पूरी तरह से साकार करने के लिए मनुष्य की भाषा का उपयोग कर सकते हो, क्योंकि परमेश्वर इतना उत्कृष्ट, इतना महान, इतना अद्भुत और अथाह है!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)
यह अनिवार्य है कि देहधारी परमेश्वर का देह उस कार्य की समाप्ति पर पृथ्वी से चला जाए, जिसे करना उसके लिए आवश्यक है, क्योंकि वह केवल उस कार्य को करने आता है जो उसे करना चाहिए, लोगों को अपनी छवि दिखाने नहीं आता। यद्यपि देहधारण का अर्थ परमेश्वर द्वारा पहले ही दो बार देहधारण करके पूरा किया जा चुका है, फिर भी वह किसी ऐसे देश पर अपने आपको खुलकर प्रकट नहीं करेगा, जिसने उसे पहले कभी नहीं देखा है। यीशु फिर कभी स्वयं को धार्मिकता के सूर्य के रूप में यहूदियों को नहीं दिखाएगा, न ही वह जैतून के पहाड़ पर चढ़ेगा और सभी लोगों को दिखाई देगा; वह जो यहूदियों ने देखा है, वह यहूदिया में अपने समय के दौरान की यीशु की तसवीर है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अपने देहधारण में यीशु का कार्य दो हजार वर्ष पहले समाप्त हो गया; वह यहूदी की छवि में वापस यहूदिया नहीं आएगा, एक यहूदी की छवि में अपने आप को किसी भी अन्यजाति राष्ट्र को तो बिलकुल भी नहीं दिखाएगा, क्योंकि यीशु के देहधारी होने की छवि केवल एक यहूदी की छवि है, मनुष्य के उस पुत्र की छवि नहीं है, जिसे यूहन्ना ने देखा था। यद्यपि यीशु ने अपने अनुयायियों से वादा किया था कि वह फिर आएगा, फिर भी वह अन्यजाति राष्ट्रों में स्वयं को मात्र यहूदी की छवि में नहीं दिखाएगा। तुम लोगों को यह जानना चाहिए कि परमेश्वर के देह बनने का कार्य एक युग का सूत्रपात करना है। यह कार्य कुछ वर्षों तक सीमित है, और वह परमेश्वर के आत्मा का समस्त कार्य पूरा नहीं कर सकता। इसी तरह से, एक यहूदी के रूप में यीशु की छवि केवल परमेश्वर की उस छवि का प्रतिनिधित्व कर सकती है, जब उसने यहूदिया में कार्य किया था, और वह केवल सलीब पर चढ़ने का कार्य ही कर सकता था। उस अवधि के दौरान, जब यीशु देह में था, वह युग का अंत करने या मानवजाति को नष्ट करने का कार्य नहीं कर सकता था। इसलिए, जब उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया, और उसने अपना कार्य समाप्त कर लिया, तब वह ऊँचे पर चढ़ गया और उसने हमेशा के लिए स्वयं को मनुष्य से छिपा लिया। तब से, अन्यजाति देशों के वे वफादार विश्वासी प्रभु यीशु की अभिव्यक्ति को देखने में असमर्थ हो गए, वे केवल उसके चित्र को देखने में ही समर्थ रहे, जिसे उन्होंने दीवार पर चिपकाया था। यह तसवीर सिर्फ मनुष्य द्वारा बनाई गई तसवीर है, न कि वह छवि, जो स्वयं परमेश्वर ने मनुष्य को दिखाई थी। परमेश्वर अपने आपको खुलकर अपने दो बार देह बनने की छवि में जनसाधारण को नहीं दिखाएगा। जो कार्य वह मनुष्यों के बीच करता है, वह इसलिए करता है ताकि वे उसके स्वभाव को समझ सकें। यह सब मनुष्य को भिन्न-भिन्न युगों के कार्य के माध्यम से दिखाया जाता है; यह उस स्वभाव के माध्यम से, जो उसने ज्ञात करवाया है और उस कार्य के माध्यम से, जो उसने किया है, संपन्न किया जाता है, यीशु की अभिव्यक्ति के माध्यम से नहीं। अर्थात्, मनुष्य को परमेश्वर की छवि देहधारी छवि के माध्यम से नहीं, बल्कि देहधारी परमेश्वर के द्वारा, जिसके पास छवि और आकार दोनों हैं, किए गए कार्य के माध्यम से ज्ञात करवाई जाती है; और उसके कार्य के माध्यम से उसकी छवि दिखाई जाती है और उसका स्वभाव ज्ञात करवाया जाता है। यही उस कार्य का अर्थ है, जिसे वह देह में करना चाहता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (2)
यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारे देह एक-दूसरे से जुड़े नहीं है, किन्तु हमारा आत्मा एक ही है; यद्यपि हमारे कार्य की विषयवस्तु और हम जो कार्य करते हैं, वे एक नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम समान हैं; हमारे देह भिन्न रूप धारण करते हैं, लेकिन यह युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की भिन्न आवश्यकताओं के कारण है; हमारी सेवकाई एक जैसी नहीं है, इसलिए जो कार्य हम आगे लाते हैं और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं, वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और समझता है वह अतीत के समान नहीं है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनके देह के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे हैं, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु फिर भी उनके आत्मा एक ही हैं। यद्यपि उनके देह किसी प्रकार के रक्त या भौतिक संबंध साझा नहीं करते, पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में परमेश्वर के देहधारण हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है कि वे परमेश्वर के देहधारी शरीर हैं, यद्यपि वे एक ही व्यक्ति के वंशज या एक ही भाषा (एक पुरुष था जो यहूदियों की भाषा बोलता था और दूसरा शरीर स्त्री है जो सिर्फ चीनी भाषा बोलता है) साझा नहीं करते। इन्हीं कारणों से उन्हें जो कार्य करना चाहिए, उसे वे भिन्न-भिन्न देशों में, और साथ ही भिन्न-भिन्न समयावधियों में करते हैं। इस तथ्य के बावजूद वे एक ही आत्मा हैं, उनका सार एक ही है, लेकिन उनके देह के बाहरी आवरणों में कोई समानता नहीं है। बस उनकी मानवता समान है, परन्तु जहाँ तक उनके देह के प्रकटन और जन्म की परिस्थितियों की बात है, वे दोनों समान नहीं हैं। इनका उनके अपने-अपने कार्य या मनुष्य के पास उनके बारे में जो ज्ञान है, उस पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि आखिरकार, वे आत्मा तो एक ही हैं और उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता। यद्यपि उनका रक्त-संबंध नहीं है, किन्तु उनका सम्पूर्ण अस्तित्व उनके आत्मा द्वारा निर्देशित होता है, जो उन्हें अलग-अलग समय में अलग-अलग कार्य देता है और उनके देह को अलग-अलग रक्त-संबंध से जोड़ता है। यहोवा का आत्मा यीशु के आत्मा का पिता नहीं है, यीशु का आत्मा यहोवा के आत्मा का पुत्र नहीं है : वे एक ही आत्मा हैं। उसी तरह, आज के देहधारी परमेश्वर और यीशु में कोई रक्त-संबंध नहीं है, लेकिन वे हैं एक ही, क्योंकि उनके आत्मा एक ही हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने
ऐसी चीज़ की जाँच-पड़ताल करना कठिन नहीं है, परंतु इसके लिए हममें से प्रत्येक को इस सत्य को जानने की ज़रूरत है: जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है। बाहरी स्वरूप सार का निर्धारण नहीं कर सकता; इतना ही नहीं, परमेश्वर का कार्य कभी भी मनुष्य की अवधारणाओं के अनुरूप नहीं हो सकता। क्या यीशु का बाहरी रूपरंग मनुष्य की अवधारणाओं के विपरीत नहीं था? क्या उसका चेहरा और पोशाक उसकी वास्तविक पहचान के बारे में कोई सुराग देने में असमर्थ नहीं थे? क्या आरंभिक फरीसियों ने यीशु का ठीक इसीलिए विरोध नहीं किया था क्योंकि उन्होंने केवल उसके बाहरी स्वरूप को ही देखा, और उसके द्वारा बोले गए वचनों को हृदयंगम नहीं किया? मुझे उम्मीद है कि परमेश्वर के प्रकटन के आकांक्षी सभी भाई-बहन इतिहास की त्रासदी को नहीं दोहराएँगे। तुम्हें आधुनिक काल के फरीसी नहीं बनना चाहिए और परमेश्वर को फिर से सलीब पर नहीं चढ़ाना चाहिए। तुम्हें सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए कि परमेश्वर की वापसी का स्वागत कैसे किया जाए और तुम्हारे मस्तिष्क में यह स्पष्ट होना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति कैसे बना जाए, जो सत्य के प्रति समर्पित होता है। यह हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है, जो यीशु के बादल पर सवार होकर लौटने का इंतजार कर रहा है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना' से उद्धृत
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?