8. सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया इस बात की गवाही देती है कि प्रभु यीशु लौट आया है, और आप सुसमाचार को सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों तक फैलाते हैं। बहुत से लोग जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्होंने अपनी कलीसियाओं को छोड़ दिया है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना शुरू कर दिया है—क्या आप अन्य कलीसियाओं से भेड़ें नहीं चुरा रहे हैं?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है : देखो, मैं चरवाहों के विरुद्ध हूँ; और मैं उनसे अपनी भेड़-बकरियों का लेखा लूँगा, और उनको फिर उन्हें चराने न दूँगा; वे फिर अपना अपना पेट भरने न पाएँगे। मैं अपनी भेड़-बकरियाँ उनके मुँह से छुड़ाऊँगा कि आगे को वे उनका आहार न हों" (यहेजकेल 34:10)

"क्योंकि परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है : देखो, मैं आप ही अपनी भेड़-बकरियों की सुधि लूँगा, और उन्हें ढूँढ़ूँगा। जैसे चरवाहा अपनी भेड़-बकरियों में से भटकी हुई को फिर से अपने झुण्ड में बटोरता है, वैसे ही मैं भी अपनी भेड़-बकरियों को बटोरूँगा; मैं उन्हें उन सब स्थानों से निकाल ले आऊँगा, जहाँ जहाँ वे बादल और घोर अन्धकार के दिन तितर-बितर हो गई हों" (यहेजकेल 34:11-12)

"मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं। मुझे उनका भी लाना अवश्य है। वे मेरा शब्द सुनेंगी, तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा" (यूहन्ना 10:16)

"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

हमने धार्मिक मंडलियों के भीतर बार-बार कई अगुवाओं को सुसमाचार का उपदेश दिया है, किन्तु हम उनके साथ सत्य पर कैसे भी संगति क्यों न करें, वे इसे स्वीकार नहीं करते। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका घमंड मूल प्रवृत्ति बन गया है और उनके हृदयों में परमेश्वर का अब और स्थान नहीं रह गया है! कुछ लोग कह सकते हैं: "धार्मिक दुनिया के कुछ निश्चित पादरियों की अगुवाई में लोगों में वास्तव में बहुत अधिक प्रेरणा होती है; यह ऐसा है मानो परमेश्वर उनके बीच ही है!" क्या तुम उत्साह होने को अत्यधिक प्रेरणा होना मानते हो? उन पादरियों के धर्मोपदेश भले ही कितने भी उत्कृष्ट क्यों न प्रतीत होते हों, क्या वे परमेश्वर को जानते हैं? यदि उनके अंतर्तम में परमेश्वर के प्रति श्रद्धा होती, तो क्या वे लोगों से अपना अनुसरण करवाते और अपना उत्कर्ष करवाते? क्या वे दूसरों पर एकाधिकार करते? क्या वे अन्य लोगों को सत्य की तलाश करने और सच्चे मार्ग की जाँच करने से रोकने की हिम्मत करते? यदि वे मानते हैं कि परमेश्वर की भेड़ें वास्तव में उनकी हैं, और उन्हें उनकी बात सुननी चाहिए, तो क्या बात ऐसी नहीं है कि वे स्वयं को परमेश्वर मानते हैं? ऐसे लोग फरीसियों से भी बदतर हैं। क्या वे मसीह-विरोधी नहीं हैं? इस प्रकार, उनकी यह अभिमानी प्रकृति उन्हें ऐसी चीज़ें करने के लिए नियंत्रित कर सकती है जो परमेश्वर के साथ विश्वासघात करती हैं।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध की जड़ में अहंकारी स्वभाव है

मनुष्य की संगति :

जो लोग प्रभु में विश्वास रखते हैं, वे जानते हैं कि विश्वासी परमेश्वर के होते हैं; वे न तो किसी संप्रदाय से जुड़े होते हैं, न ही किसी संप्रदाय के अगुआओं, पादरियों या एल्डरों से। वे चाहे किसी भी कलीसिया की सभाओं या गतिविधियों में भाग लेते हों, चाहे कोई भी पादरी और एल्डर उनकी अगुआई करता हो, जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं वे सभी उसी की भेड़ें हैं—और परमेश्वर की भेड़ें केवल परमेश्वर की वाणी ही सुनती हैं। यह वैसा ही है जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था : "अच्छा चरवाहा मैं हूँ; मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं" (यूहन्ना 10:14)। बहुत से पादरी और एल्डर अक्सर अपनी कलीसिया के लोगों को अपनी भेड़ें बताते हैं, लेकिन यह भयंकर भूल है। भला परमेश्वर के विश्वासी उन लोगों के कैसे हो सकते हैं? यदि कोई झुंड के स्वामित्व का दावा करने का दुस्साहस करे, तो क्या ऐसा व्यक्ति उस झुंड और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ लगाने की कोशिश नहीं कर रहा है? ऐसे व्यक्ति और उन दुष्ट किरायेदारों में क्या अंतर है जिनके बारे में प्रभु यीशु ने बाइबल में बताया है? अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने यहूदियों के लिए प्रायश्चित के मार्ग का प्रचार-प्रसार किया था, जो उस समय परमेश्वर में विश्वास रखते थे। उसने अपने शिष्यों और प्रेरितों को पूरे यहूदिया में स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार को साझा करने के लिए और उन लोगों को बचाने के लिए भेजा जो बंधनों तथा नियमों-कानूनों की बेड़ियों में जकड़े हुए थे। यह इंसान के लिए परमेश्वर का प्रेम और उद्धार था। लेकिन यहूदी धर्म के मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों ने प्रभु यीशु की निंदा की और उसका विरोध किया, और लोगों को भी उसे स्वीकार करने से रोक दिया, आखिरकार उन्हें परमेश्वर द्वारा तिरस्कार और दंड भुगतना पड़ा। अब प्रभु यीशु लौट आया है : वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। परमेश्वर की भेड़ें उसकी वाणी सुनती हैं। यदि पादरी और एल्डर न सिर्फ प्रभु के झुंडों को उसे नहीं सौंपते बल्कि उन्हें हथियाने की हद तक चले जाते हैं, तो फिर वे निश्चित ही दुष्ट सेवक हैं। तो फिर वे यहूदी मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों की तरह ही परमेश्वर के तिरस्कार और दण्ड के भागी होंगे।

आज सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य ने बाइबल की एक भविष्यवाणी को पूरा कर दिया है : "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। विभिन्न संप्रदायों के अनेक सत्य-प्रेमी और परमेश्वर के प्रकटन की लालसा रखने वाले भाई-बहनों ने उसकी वाणी सुनी है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार किया है, और वे एक-एक करके उसके सिंहासन के सामने लौट रहे हैं। यह परमेश्वर की भेड़ों का उसकी वाणी को सुनना है। जब प्रभु यीशु वापस लौटा, तो वह सबसे पहले उन लोगों के सामने प्रकट हुआ जो उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, उसने परमेश्वर के कार्य का प्रचार करने के लिए लोगों को धार्मिक मंडलियों में भेजा ताकि जो लोग उसकी वापसी के लिए तरस रहे थे, वे उसकी वाणी सुनकर उसके पास लौट आएँ। क्या यह स्वाभाविक बात नहीं थी? लेकिन धार्मिक दुनिया के कुछ पादरियों और एल्डरों ने परमेश्वर की भेड़ें उन्हें सौंपने के बजाय, उस पर निराधार आरोप लगाए और अपने झुंडों की रक्षा करने की आड़ में अपनी कलीसियाओं को मुहरबंद कर दिया। वे विश्वासियों को सच्चे मार्ग की खोज या जाँच नहीं करने देते, बल्कि लगातार सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा करते हैं और उस पर उनकी भेड़ें चुराने का आरोप लगाते हैं। वे बेशर्मी से परमेश्वर की भेड़ों को अपनी होने का दावा करते हैं। इस हरकत से उनकी महत्वाकांक्षा और लोगों को अपने कब्जे में रखने और नियंत्रित करने की इच्छा का पर्दाफाश हो जाता है। वे विश्वासियों पर कड़ा नियंत्रण रखते हैं और उन विश्वासियों से अपना अनुसरण और पूजा कराना जारी रखने के मकसद से परमेश्वर की भेड़ों पर दावा करते हैं। क्या ऐसे अगुआ वास्तव में वे दुष्ट सेवक नहीं हैं जो उस झुंड को कब्जे में ले लेते हैं जिसके बारे में प्रभु यीशु ने कहा था? क्या वे ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और उसके पद को हड़पना चाहते हैं? इससे कार्य करने के लिए आए प्रभु यीशु के आगमन का ध्यान आता है : यह देखकर कि अनेक यहूदी उसका अनुसरण कर रहे हैं, यहूदी मुख्य याजक, शास्त्री और फरीसी ईर्ष्या और भय महसूस करने लगे, उन्हें इस बात का डर था कि यदि सभी विश्वासी प्रभु यीशु का अनुसरण करेंगे, तो वे अपना पद और आजीविका दोनों गँवा बैठेंगे। वे भी ठीक उसी तरह लोगों को प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकारने से रोकने के लिए उसकी निंदा करने लगे। यह ठीक वैसा ही था जैसा बाइबल में लिखा है : "इस पर प्रधान याजकों और फरीसियों ने महासभा बुलाई, और कहा, 'हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिह्न दिखाता है। यदि हम उसे यों ही छोड़ दें, तो सब उस पर विश्‍वास ले आएँगे, और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।' ... अत: उसी दिन से वे उसे मार डालने का षड्‍यन्त्र रचने लगे" (यूहन्ना 11:47-48, 53)। यहूदी मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों ने यहूदियों को अपनी निजी संपत्ति समझते थे, उन लोगों की परमेश्वर की भेड़ों पर मजबूत पकड़ थी। जब परमेश्वर आकर काम करने और अपनी भेड़ें वापस लेने लगा, तो अगुआओं ने उन पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए उससे लड़ना शुरू कर दिया। ये मुख्य याजक, शास्त्री, और फरीसी न तो खुद परमेश्वर की शरण में आए और न ही उन्होंने यहूदियों को उसका अनुसरण करने दिया। प्रभु यीशु ने उन्हें फटकार लगाते हुए कहा, "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव लोगों के अपराध बर्दाश्त नहीं करेगा! जब यहूदी मुख्य याजक, शास्त्री, और फरीसी, परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर कब्जा बनाए रखने के लिए परमेश्वर से होड़ लगा रहे थे, परमेश्वर का विरोध और निंदा कर रहे थे, तो उनकी इस हरकत ने परमेश्वर के स्वभाव को कुपित कर दिया, इसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें उसके शाप और दंड का भागी बनना पड़ा। इस्राएल देश लगभग दो हजार वर्षों तक दुनिया के नक्शे से गायब रहा, बहुत से यहूदी लोगों को मार डाला गया था, उन्हें भीड़ के रूप में पृथ्वी के अलग-अलग कोनों में खदेड़ दिया गया था। यदि आज के धार्मिक जगत के पादरी और एल्डर परमेश्वर की भेड़ों पर दावा करना जारी रखेंगे और उन्हें परमेश्वर की शरण में जाने से रोकेंगे, तो उन अगुआओं को सिर्फ परमेश्वर का धार्मिक दंड ही मिलेगा!

पिछला: 7. आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, और वह अंतिम दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, है। लेकिन धार्मिक दुनिया के पादरी और एल्डर्स कहते हैं कि आप जिसमें विश्वास करते हैं वह प्रभु यीशु नहीं है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ईसाई धर्म की नहीं है। क्या इन पादरियों और एल्डर्स की बातों में कोई विश्वसनीयता है?

अगला: 9. आप गवाही देते हैं कि "चमकती पूर्वी बिजली" अंतिम दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, की उपस्थिति और कार्य है, लेकिन मैंने बाईडू और विकिपीडिया जैसी प्रसिद्ध वेबसाइटों पर कई लेख पढ़े हैं, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा करते, उस पर हमला करते, और उसका अपमान करते हैं। मुझे पता है कि बाईडू पर दी गई जानकारी सीसीपी की निगरानी और उसके नियंत्रण में होती है, और यह ज़रूरी नहीं है कि यह विश्वसनीय हो। लेकिन विकिपीडिया जैसी विदेशी वेबसाइटों ने भी आपकी निंदा करने में सीसीपी और धार्मिक दुनिया का अनुसरण किया है। मैं इसे सुलझा नहीं सकता—इन वेबसाइटों पर दिए गए बयान सही हैं या गलत?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

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