5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट चढ़ाई जाती है; क्योंकि अन्यजातियों में मेरा नाम महान् है, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है" (मलाकी 1:11)

"क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा। जहाँ लोथ हो, वहीं गिद्ध इकट्ठे होंगे" (मत्ती 24:27-28)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

परमेश्वर संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है

(परमेश्वर के वचनों का चुनिंदा अध्याय)

पिछले दो युगों के कार्य का एक चरण इस्राएल में पूरा किया गया, और एक यहूदिया में। सामान्य तौर पर कहा जाए तो, इस कार्य का कोई भी चरण इस्राएल छोड़कर नहीं गया, और प्रत्येक चरण पहले चुने गए लोगों पर किया गया। परिणामस्वरूप, इस्राएली मानते हैं कि यहोवा परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है। चूँकि यीशु ने यहूदिया में कार्य किया, जहाँ उसने सूली पर चढ़ने का काम किया, इसलिए यहूदी उसे यहूदी लोगों के उद्धारक के रूप में देखते हैं। वे सोचते हैं कि वह केवल यहूदियों का राजा है, अन्य किसी का नहीं; कि वह अंग्रेजों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु नहीं है, न ही अमेरिकियों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु, बल्कि वह इस्राएलियों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु है, और इस्राएल में भी उसने यहूदियों को छुटकारा दिलाया। वास्तव में, परमेश्वर सभी चीज़ों का स्वामी है। वह संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। वह केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, न यहूदियों का; बल्कि वह संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। उसके कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में हुए, जिसने लोगों में कुछ निश्चित धारणाएँ पैदा कर दी हैं। वे मानते हैं कि यहोवा ने अपना कार्य इस्राएल में किया, और स्वयं यीशु ने अपना कार्य यहूदिया में किया, और इतना ही नहीं, कार्य करने के लिए उसने देहधारण किया—और जो भी हो, यह कार्य इस्राएल से आगे नहीं बढ़ा। परमेश्वर ने मिस्रियों या भारतीयों में कार्य नहीं किया; उसने केवल इस्राएलियों में कार्य किया। लोग इस प्रकार विभिन्न धारणाएँ बना लेते हैं, वे परमेश्वर के कार्य को एक निश्चित दायरे में बाँध देते हैं। वे कहते हैं कि जब परमेश्वर कार्य करता है, तो अवश्य ही उसे ऐसा चुने हुए लोगों के बीच और इस्राएल में करना चाहिए; इस्राएलियों के अलावा परमेश्वर किसी अन्य पर कार्य नहीं करता, न ही उसके कार्य का कोई बड़ा दायरा है। वे देहधारी परमेश्वर को नियंत्रित करने में विशेष रूप से सख़्त हैं और उसे इस्राएल की सीमा से बाहर नहीं जाने देते। क्या ये सब मानवीय धारणाएँ मात्र नहीं हैं? परमेश्वर ने संपूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजें बनाईं, उसने संपूर्ण सृष्टि बनाई, तो वह अपने कार्य को केवल इस्राएल तक सीमित कैसे रख सकता है? अगर ऐसा होता, तो उसके संपूर्ण सृष्टि की रचना करने का क्या तुक था? उसने पूरी दुनिया को बनाया, और उसने अपनी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना केवल इस्राएल में नहीं, बल्कि ब्रह्मांड में प्रत्येक व्यक्ति पर कार्यान्वित की। चाहे वे चीन में रहते हों या संयुक्त राज्य अमेरिका में, यूनाइटेड किंगडम में या रूस में, प्रत्येक व्यक्ति आदम का वंशज है; वे सब परमेश्वर के बनाए हुए हैं। उनमें से एक भी सृष्टि की सीमा से बाहर नहीं जा सकता, और उनमें से एक भी खुद को "आदम का वंशज" होने के ठप्पे से अलग नहीं कर सकता। वे सभी परमेश्वर के प्राणी हैं, वे सभी आदम की संतानें हैं, और वे सभी आदम और हव्वा के भ्रष्ट वंशज भी हैं। केवल इस्राएली ही परमेश्वर की रचना नहीं हैं, बल्कि सभी लोग परमेश्वर की रचना हैं; बस इतना ही है कि कुछ को शाप दिया गया है, और कुछ को आशीष। इस्राएलियों के बारे में कई स्वीकार्य बातें हैं; परमेश्वर ने आरंभ में उन पर कार्य किया क्योंकि वे सबसे कम भ्रष्ट थे। चीनियों की उनसे तुलना नहीं की जा सकती; वे उनसे बहुत हीन हैं। इसलिए, आरंभ में परमेश्वर ने इस्राएलियों के बीच कार्य किया, और उसके कार्य का दूसरा चरण केवल यहूदिया में संपन्न हुआ—जिससे मनुष्यों में बहुत सारी धारणाएँ और नियम बन गए हैं। वास्तव में, यदि परमेश्वर मनुष्य की धारणाओं के अनुसार कार्य करता, तो वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, और इस प्रकार वह अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता, क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर नहीं। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा, कि वह अन्यजाति-राष्ट्रों में फैल जाएगा। यह भविष्यवाणी क्यों की गई थी? यदि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इतना ही नहीं, वह इस कार्य का विस्तार न करता, और वह ऐसी भविष्यवाणी न करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की थी, इसलिए वह निश्चित रूप से अन्यजाति-राष्ट्रों में, प्रत्येक राष्ट्र में और समस्त भूमि पर, अपने कार्य का विस्तार करेगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, इसलिए वह ऐसा ही करेगा; यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीज़ों का सृष्टिकर्ता प्रभु और संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। चाहे वह इस्राएलियों के बीच कार्य करता हो या संपूर्ण यहूदिया में, वह जो कार्य करता है, वह संपूर्ण ब्रह्मांड और संपूर्ण मानवता का कार्य होता है। आज जो कार्य वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र—एक अन्यजाति-राष्ट्र में—करता है, वह भी संपूर्ण मानवता का कार्य है। इस्राएल पृथ्वी पर उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार, अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच चीन भी उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने अब इस भविष्यवाणी को पूरा नहीं किया है कि "यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा"? अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच उसके कार्य का पहला चरण यह कार्य है, जिसे वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में कर रहा है। देहधारी परमेश्वर का इस राष्ट्र में कार्य करना और इन शापित लोगों के बीच कार्य करना विशेष रूप से मनुष्य की धारणाओं के विपरीत है; ये लोग सबसे निम्न स्तर के हैं, इनका कोई मूल्य नहीं है, और इन्हें यहोवा ने आरंभ में त्याग दिया था। लोगों को दूसरे लोगों द्वारा त्यागा जा सकता है, परंतु यदि वे परमेश्वर द्वारा त्यागे जाते हैं, तो किसी की भी हैसियत उनसे कम नहीं होगी, और किसी का भी मूल्य उनसे कम नहीं होगा। परमेश्वर के प्राणी के लिए शैतान द्वारा कब्ज़े में ले लिया जाना या लोगों द्वारा त्याग दिया जाना कष्टदायक चीज़ है—परंतु किसी सृजित प्राणी को उसके सृष्टिकर्ता द्वारा त्याग दिए जाने का अर्थ है कि उसकी हैसियत उससे कम नहीं हो सकती। मोआब के वंशज शापित थे और वे इस पिछड़े देश में पैदा हुए थे; नि:संदेह अंधकार के प्रभाव से ग्रस्त सभी लोगों में मोआब के वंशजों की हैसियत सबसे कम है। चूँकि अब तक ये लोग सबसे कम हैसियत वाले रहे हैं, इसलिए उन पर किया गया कार्य मनुष्य की धारणाओं को खंडित करने में सबसे सक्षम है, और परमेश्वर की संपूर्ण छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना के लिए सबसे लाभदायक भी है। इन लोगों के बीच ऐसा कार्य करना मनुष्य की धारणाओं को खंडित करने का सर्वोत्तम तरीका है; और इसके साथ परमेश्वर एक युग का सूत्रपात करता है; इसके साथ वह मनुष्य की सभी धारणाओं को खंडित कर देता है; इसके साथ वह संपूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य का समापन करता है। उसका पहला कार्य इस्राएल की सीमा के भीतर यहूदिया में किया गया था; अन्यजाति-राष्ट्रों में उसने नए युग का सूत्रपात करने के लिए कोई कार्य नहीं किया। कार्य का अंतिम चरण न केवल अन्यजातियों के बीच किया जा रहा है; बल्कि इससे भी अधिक, उन लोगों में किया जा रहा है, जिन्हें शापित किया गया है। यह एक बिंदु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे सक्षम प्रमाण है, और इस प्रकार, परमेश्वर ब्रह्मांड में संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर, सभी चीज़ों का प्रभु, और सभी जीवधारियों की आराधना की वस्तु "बन" जाता है।

आज ऐसे लोग हैं, जो अभी भी नहीं समझते कि परमेश्वर ने कौन-सा नया कार्य आरंभ किया है। अन्यजाति-राष्ट्रों में परमेश्वर ने एक नई शुरुआत की है। उसने एक नया युग प्रारंभ किया है, और एक नया कार्य शुरू किया है—और वह इस कार्य को मोआब के वंशजों पर कर रहा है। क्या यह उसका नवीनतम कार्य नहीं है? पूरे इतिहास में पहले कभी किसी ने इस कार्य का अनुभव नहीं किया है। किसी ने कभी इसके बारे में नहीं सुना है, समझना तो दूर की बात है। परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर का चमत्कार, परमेश्वर की अज्ञेयता, परमेश्वर की महानता, परमेश्वर की पवित्रता सब कार्य के इस चरण के माध्यम से प्रकट किए जाते हैं, जो कि अंत के दिनों का कार्य है। क्या यह नया कार्य नहीं है, ऐसा कार्य, जो मानव की धारणाओं को खंडित करता है? ऐसे लोग भी हैं, जो इस प्रकार सोचते हैं : "चूँकि परमेश्वर ने मोआब को शाप दिया था और कहा था कि वह मोआब के वंशजों का परित्याग कर देगा, तो वह उन्हें अब कैसे बचा सकता है?" ये अन्यजाति के वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर द्वारा शाप दिया गया था और इस्राएल से बाहर निकाल दिया गया था; इस्राएली उन्हें "अन्यजाति के कुत्ते" कहते थे। हरेक की दृष्टि में, वे न केवल अन्यजाति के कुत्ते हैं, बल्कि उससे भी बदतर, विनाश के पुत्र हैं; कहने का तात्पर्य यह कि वे परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोग नहीं हैं। वे इस्राएल की सीमा में पैदा हुए होंगे, लेकिन वे इस्राएल के लोगों से संबंधित नहीं थे; और अन्यजाति-राष्ट्रों में निष्कासित कर दिए गए थे। ये सबसे हीन लोग हैं। चूंकि वे मानवता के बीच हीनतम हैं, यही कारण है कि परमेश्वर एक नए युग को आरंभ करने का अपना कार्य उनके बीच करता है, क्योंकि वे भ्रष्ट मानवता के प्रतिनिधि हैं। परमेश्वर का कार्य चयनात्मक और लक्षित है; जो कार्य वह आज इन लोगों में करता है, वह सृष्टि में किया जाने वाला कार्य भी है। नूह परमेश्वर का एक सृजन था, जैसे कि उसके वंशज हैं। दुनिया में हाड़-मांस से बने सभी प्राणी परमेश्वर के सृजन हैं। परमेश्वर का कार्य संपूर्ण सृष्टि पर निर्देशित है; यह इस बात पर आधारित नहीं है कि सृजित किए जाने के बाद किसी को शापित किया गया है या नहीं। उसका प्रबंधन-कार्य समस्त सृष्टि पर निर्देशित है, केवल उन चुने हुए लोगों पर नहीं, जिन्हें शापित नहीं किया गया है। चूँकि परमेश्वर अपनी सृष्टि के बीच अपना कार्य करना चाहता है, इसलिए वह इसे निश्चित रूप से सफलतापूर्वक पूरा करेगा, और वह उन लोगों के बीच कार्य करेगा जो उसके कार्य के लिए लाभदायक हैं। इसलिए, जब वह मनुष्यों के बीच कार्य करता है, तो सभी परंपराओं को तहस-नहस कर देता है; उसके लिए, "शापित," "ताड़ित" और "धन्य" शब्द निरर्थक हैं! यहूदी लोग अच्छे हैं, इस्राएल के चुने हुए लोग भी अच्छे हैं; वे अच्छी क्षमता और मानवता वाले लोग हैं। प्रारंभ में यहोवा ने उन्हीं के बीच अपना कार्य आरंभ किया, और अपना सबसे पहला कार्य किया—परंतु आज उन पर विजय प्राप्त करने का कार्य अर्थहीन होगा। वे भी सृष्टि का एक हिस्सा हो सकते हैं और उनमें बहुत-कुछ सकारात्मक हो सकता है, किंतु उनके बीच कार्य के इस चरण को कार्यान्वित करना बेमतलब होगा; परमेश्वर लोगों को जीत पाने में सक्षम नहीं होगा, न ही वह सृष्टि के सारे लोगों को समझाने में सक्षम होगा, जो कि उसके द्वारा अपने कार्य को बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के इन लोगों तक ले जाने का आशय है। यहाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण उसका युग आरंभ करना, उसका सभी नियमों और मानवीय धारणाओं को खंडित करना और संपूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य का समापन करना है। यदि उसका वर्तमान कार्य इस्राएलियों के मध्य किया गया होता, तो जब तक उसकी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना समाप्त होने को आती, हर कोई यह विश्वास करने लगता कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर का आशीष और प्रतिज्ञा विरासत में पाने योग्य हैं। अंत के दिनों के दौरान बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के अन्यजाति-देश में परमेश्वर का देहधारण संपूर्ण सृष्टि के परमेश्वर के रूप में परमेश्वर का कार्य पूरा करता है; वह अपना संपूर्ण प्रबंधन-कार्य पूरा करता है, और वह बड़े लाल अजगर के देश में अपने कार्य के केंद्रीय भाग को समाप्त करता है। कार्य के इन तीनों चरणों के मूल में मनुष्य का उद्धार है—अर्थात, संपूर्ण सृष्टि से सृष्टिकर्ता की आराधना करवाना। इस प्रकार, कार्य के प्रत्येक चरण का बहुत बड़ा अर्थ है; परमेश्वर ऐसा कुछ नहीं करता जिसका कोई अर्थ या मूल्य न हो। एक ओर, कार्य का यह चरण एक नए युग का सूत्रपात और पिछले दो युगों का अंत करता है; दूसरी ओर, यह मनुष्य की समस्त धारणाओं और उसके विश्वास और ज्ञान के सभी पुराने तरीकों को खंडित करता है। पिछले दो युगों का कार्य मनुष्य की विभिन्न धारणाओं के अनुसार किया गया था; किंतु यह चरण मनुष्य की धारणाओं को पूरी तरह मिटा देता है, और ऐसा करके वह मानवजाति को पूरी तरह से जीत लेता है। मोआब के वंशजों के बीच किए गए कार्य के माध्यम से उसके वंशजों को जीतकर परमेश्वर संपूर्ण ब्रह्मांड में सभी लोगों को जीत लेगा। यह उसके कार्य के इस चरण का गहनतम अर्थ है, और यही उसके कार्य के इस चरण का सबसे मूल्यवान पहलू है। भले ही तुम अब जानते हो कि तुम्हारी अपनी हैसियत निम्न है और तुम कम मूल्य के हो, फिर भी तुम यह महसूस करोगे कि तुम्हारी सबसे आनंददायक वस्तु से भेंट हो गई है : तुमने एक बहुत बड़ा आशीष विरासत में प्राप्त किया है, एक बड़ी प्रतिज्ञा प्राप्त की है, और तुम परमेश्वर के इस महान कार्य को पूरा करने में सहायता कर सकते हो। तुमने परमेश्वर का सच्चा चेहरा देखा है, तुम परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव को जानते हो, और तुम परमेश्वर की इच्छा पर चलते हो। परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में संपन्न किए गए थे। यदि अंत के दिनों के दौरान उसके कार्य का यह चरण भी इस्राएलियों के बीच किया जाता, तो न केवल संपूर्ण सृष्टि मान लेती कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, बल्कि परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना भी अपना वांछित परिणाम प्राप्त न कर पाती। जिस समय इस्राएल में उसके कार्य के दो चरण पूरे किए गए थे, उस दौरान अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच न तो कोई नया कार्य—न ही नया युग प्रारंभ करने का कोई कार्य—किया गया था। कार्य का आज का चरण—एक नए युग के सूत्रपात का कार्य—पहले अन्यजाति-राष्ट्रों में किया जा रहा है, और इतना ही नहीं, प्रारंभ में मोआब के वंशजों के बीच किया जा रहा है; और इस प्रकार संपूर्ण युग का आरंभ किया गया है। परमेश्वर ने मनुष्य की धारणाओं में निहित किसी भी ज्ञान को बाकी नहीं रहने दिया और सब खंडित कर दिया। विजय प्राप्त करने के अपने कार्य में उसने मानवीय धारणाओं को, ज्ञान के उन पुराने, आरंभिक मानवीय तरीकों को ध्वस्त कर दिया है। वह लोगों को देखने देता है कि परमेश्वर पर कोई नियम लागू नहीं होते, कि परमेश्वर के मामले में कुछ भी पुराना नहीं है, कि वह जो कार्य करता है वह पूरी तरह से स्वतंत्र है, पूरी तरह से मुक्त है, और कि वह अपने समस्त कार्य में सही है। वह सृष्टि के बीच जो भी कार्य करता है, उसके प्रति तुम्हें पूरी तरह से समर्पित होना चाहिए। उसके समस्त कार्य में अर्थ होता है, और वह उसकी अपनी इच्छा और बुद्धि के अनुसार किया जाता है, मनुष्य की पसंद और धारणाओं के अनुसार नहीं। अगर कोई चीज़ उसके कार्य के लिए लाभदायक होती है, तो वह उसे करता है; और अगर कोई चीज़ उसके कार्य के लिए लाभदायक नहीं होती, तो वह उसे नहीं करता, चाहे वह कितनी ही अच्छी क्यों न हो! वह कार्य करता है और अपने कार्य के अर्थ और प्रयोजन के अनुसार अपने कार्य के प्राप्तकर्ताओं और स्थान का चयन करता है। कार्य करते हुए वह पुराने नियमों से चिपका नहीं रहता, न ही वह पुराने सूत्रों का पालन करता है। इसके बजाय, वह अपने कार्य की योजना उसके मायने के अनुसार बनाता है। अंतत: वह वास्तविक प्रभाव और प्रत्याशित लक्ष्य प्राप्त करेगा। यदि तुम आज इन बातों को नहीं समझते, तो इस कार्य का तुम पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य

यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, वह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र जगह पर एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए सभी देशों में से सबसे अशुद्ध देश में किया जा रहा है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान पर किया गया था और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान पर किया जा रहा है, और इस अंधकार को बाहर निकालकर प्रकाश को प्रकट किया जाएगा और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि परमेश्वर है, जो कि सच्चा परमेश्वर है और हर व्यक्ति को पूरी तरह से विश्वास हो जाएगा, तब समस्त ब्रह्मांड में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है : एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का छह हजार वर्षों का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया गया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। इस तरह, केवल चीन में ही विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्त रूप है और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। चीनी लोग ही बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, वही परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी हैं, उन्हीं की मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूल आदर्श हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य देशों में कोई समस्या नहीं है; मनुष्य की अवधारणाएँ समान हैं, यद्यपि इन देशों के लोग अच्छी क्षमता वाले हो सकते हैं, किन्तु यदि वे परमेश्वर को नहीं जानते, तो वे अवश्य ही उसके विरोधी होंगे। यहूदियों ने भी परमेश्वर का विरोध और उसकी अवहेलना क्यों की? फ़रीसियों ने भी उसका विरोध क्यों किया? यहूदा ने यीशु के साथ विश्वासघात क्यों किया? उस समय, बहुत-से अनुयायी यीशु को नहीं जानते थे। यीशु को सूली पर चढ़ाये जाने और उसके फिर से जी उठने के बाद भी, लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया? क्या मनुष्य की अवज्ञा पूरी तरह से समान नहीं है? बात बस इतनी है कि चीन के लोग इसके एक उदाहरण के रूप में पेश किए जाते हैं, जब उन पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी तो वे एक आदर्श और नमूना बन जाएँगे और दूसरों के लिए संदर्भ का काम करेंगे। मैंने हमेशा क्यों कहा है कि तुम लोग मेरी प्रबंधन योजना के सहायक हो? चीन के लोगों में भ्रष्टता, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता पूरी तरह से व्यक्त और विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं और दूसरी ओर, उनका जीवन और उनकी मानसिकता पिछडी हुई है, उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जिस परिवार में वे जन्में हैं—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी निम्न है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, एक बार जब यह परीक्षा-कार्य पूरी तरह से संपन्न हो जाएगा, तो परमेश्वर का बाद का कार्य अधिक आसान हो जाएगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सका, तो इसके बाद का कार्य अच्छी तरह से आगे बढ़ेगा। एक बार जब कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जायेगा, तो बड़ी सफलता प्राप्त हो जाएगी और समस्त ब्रह्माण्ड में विजय का कार्य पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल होने पर, यह समस्त ब्रह्माण्ड में सफलता प्राप्त करने के बराबर होगा। यही इस बात की महत्ता है कि क्यों मैं तुम लोगों को एक आदर्श और नमूने के रूप में कार्य करने को कहता हूँ। विद्रोहशीलता, विरोध, अशुद्धता, अधार्मिकता—ये सभी इन लोगों में पाए जाते हैं और ये मानवजाति की समस्त विद्रोहशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वास्तव में कुछ हैं। इस प्रकार, उन्हें विजय के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, एक बार जब वे जीत लिए गए तो वे स्वाभाविक रूप से दूसरों के लिए एक आदर्श और नमूने बन जाएँगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)

परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को समस्त ब्रह्माण्ड भर में अपने कार्य का एकमात्र केंद्रबिंदु बनाया है। उसने तुम लोगों के लिए अपने हृदय का रक्त तक निचोड़कर दे दिया है; उसने ब्रह्माण्ड भर में पवित्रात्मा का समस्त कार्य पुनः प्राप्त करके तुम लोगों को दे दिया है। इसी कारण से तुम लोग सौभाग्यशाली हो। इतना ही नहीं, वह अपनी महिमा इस्राएल, उसके चुने हुए लोगों से हटाकर तुम लोगों के ऊपर ले आया है, और वह इस समूह के माध्यम से अपनी योजना का उद्देश्य पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष करेगा। इसलिए तुम लोग ही वह हो जो परमेश्वर की विरासत प्राप्त करोगे, और इससे भी अधिक, तुम परमेश्वर की महिमा के वारिस हो। तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : "क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।" तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी क्षमता के माध्यम से, और इस कुत्सित देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है। अर्थात, परमेश्वर विजय का कार्य उन्हीं लोगों के माध्यम से करता है जो उसका विरोध करते हैं, और केवल इसी प्रकार परमेश्वर की महान सामर्थ्य प्रत्यक्ष की जा सकती है। दूसरे शब्दों में, केवल अशुद्ध देश के लोग ही परमेश्वर की महिमा का उत्‍तराधिकार पाने के योग्य हैं, और केवल यही परमेश्वर की महान सामर्थ्‍य को उभारकर सामने ला सकता है। इसी कारणअशुद्ध देश से ही, और अशुद्ध देश में रहने वालों से ही परमेश्वर की महिमा प्राप्त की जाती है। ऐसी ही परमेश्वर की इच्छा है। यीशु के कार्य का चरण भी ऐसा ही था : वह केवल उन्हीं फरीसियों के बीच महिमा प्राप्त कर सकता था जिन्होंने उसे सताया था; यदि फरीसियों द्वारा किया गया उत्पीड़न और यहूदा द्वारा दिया गया धोखा नहीं होता, तो यीशु का उपहास नहीं उड़ाया जाता या उसे लांछित नहीं किया जाता, सलीब पर तो और भी नहीं चढ़ाया जाता, और इस प्रकार उसे कभी महिमा प्राप्त नहीं हो सकती थी। जहाँ परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य करता है, और जहाँ वह देह में काम करता है, वहीं वह महिमा प्राप्त करता है और वहीं वह उन्हें प्राप्त करता है जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है। यही परमेश्वर के कार्य की योजना है, और यही उसका प्रबंधन है।

कई हज़ार वर्षों की परमेश्वर की योजना में, कार्य के दो भाग देह में किए गए हैं : पहला है सलीब पर चढ़ाए जाने का कार्य, जिसके लिए वह महिमा प्राप्त करता है; दूसरा है अंत के दिनों में विजय और पूर्णता का कार्य, जिसके लिए उसे महिमामंडित किया जाता है। यही परमेश्वर का प्रबंधन है। इसलिए परमेश्वर के कार्य, या तुम लोगों को दिए गए परमेश्वर के आदेश को सीधी-सादी बात मत समझो। तुम सभी लोग परमेश्वर की कहीं अधिक असाधारण और अनंत महत्व की महिमा के वारिस हो, और यह परमेश्वर द्वारा विशेष रूप से निश्चित किया गया था। उसकी महिमा के दो भागों में से एक तुम लोगों में प्रत्यक्ष होता है; परमेश्वर की महिमा का एक समूचा भाग तुम लोगों को प्रदान किया गया है, जो तुम लोगों की विरासत हो सकता है। यही परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उत्कर्ष है, और यह वह योजना भी है जो उसने बहुत पहले पूर्वनिर्धारित कर दी थी। जहाँ बड़ा लाल अजगर रहता है उस देश में परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य की महानता को देखते हुए, यदि यह कार्य कहीं और ले जाया जाता, तो यह बहुत पहले अत्यंत फलदायी हो गया होता और मनुष्य द्वारा तत्परता से स्वीकार कर लिया जाता। यही नहीं, परमेश्वर में विश्वास करने वाले पश्चिम के पादरियों के लिए इस कार्य को स्वीकार कर पाना कहीं अधिक आसान होता, क्योंकि यीशु द्वारा किए गए कार्य का चरण एक पूर्ववर्ती मिसाल का काम करता है। यही कारण है कि परमेश्वर महिमा पाने के कार्य का यह चरण कहीं और पूरा कर पाने में असमर्थ है; जब कार्य का लोगों द्वारा समर्थन किया जाता है और उसे देशों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है, तो परमेश्वर की महिमा प्रभावी नहीं हो सकती है। इस देश में कार्य के इस चरण का यही असाधारण महत्व है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?

कई जगहों पर परमेश्वर ने सीनियों के देश में विजेताओं के एक समूह को प्राप्त करने की भविष्यवाणी की है। चूँकि विजेताओं को दुनिया के पूर्व में प्राप्त किया जाना है, इसलिए परमेश्वर अपने दूसरे देहधारण में जहाँ कदम रखता है, वह बिना किसी संदेह के सीनियों का देश है, ठीक वह स्थान, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे पड़ा है। वहाँ परमेश्वर बड़े लाल अजगर के वंशजों को प्राप्त करेगा, ताकि वह पूर्णतः पराजित और शर्मिंदा हो जाए। परमेश्वर पीड़ा के बोझ से अत्यधिक दबे इन लोगों को जगाने जा रहा है, जब तक कि वे पूरी तरह से जाग नहीं जाते, वह उन्हें कोहरे से बाहर निकालेगा, और उनसे उस बड़े लाल अजगर को अस्वीकार करवाएगा। वे अपने सपने से जागेंगे, बड़े लाल अजगर के सार को जानेंगे, परमेश्वर को अपना संपूर्ण हृदय देने में सक्षम होंगे, अँधेरे की ताक़तों के दमन से बाहर निकलेंगे, दुनिया के पूर्व में खड़े होंगे, और परमेश्वर की जीत का सबूत बनेंगे। केवल इसी तरीके से परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा। केवल इसी कारण से परमेश्वर इस्राएल में समाप्त हुए कार्य को उस देश में लाया, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे पड़ा है, और प्रस्थान करने के लगभग दो हजार वर्ष बाद वह अनुग्रह के कार्य को जारी रखने के लिए पुनः देह में आया है। मनुष्य की आँखों को लग रहा है कि, परमेश्वर देह में नए कार्य का शुभारंभ कर रहा है। किंतु परमेश्वर की दृष्टि से, वह अनुग्रह के युग के कार्य को जारी रख रहा है, पर केवल कुछ हजार वर्षों के अंतराल के बाद, और अपने कार्य के स्थान तथा कार्यक्रम में बदलाव के साथ।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (6)

चाहे तुम अमेरिकी हो, ब्रिटिश या फिर किसी अन्य देश के, तुम्हें अपनी राष्ट्रीयता की सीमाओं से बाहर कदम रखना चाहिए, अपनी अस्मिता के पार जाना चाहिए, और परमेश्वर के कार्य को एक सृजित प्राणी के स्थान से देखना चाहिए। इस तरह तुम परमेश्वर के पदचिह्नों को सीमाओं में नहीं बाँधोगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आजकल बहुत-से लोग इसे असंभव समझते हैं कि परमेश्वर किसी विशेष राष्ट्र में या कुछ निश्चित लोगों के बीच प्रकट होगा। परमेश्वर के कार्य का कितना गहन अर्थ है, और परमेश्वर का प्रकटन कितना महत्वपूर्ण है! मनुष्य की धारणाएँ और सोच भला उन्हें कैसे माप सकती हैं? और इसलिए मैं कहता हूँ, कि तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन की तलाश करने के लिए अपनी राष्ट्रीयता और जातीयता की धारणाओं को तोड़ देना चाहिए। केवल इसी प्रकार से तुम अपनी धारणाओं से बाध्य नहीं होगे; केवल इसी प्रकार से तुम परमेश्वर के प्रकटन का स्वागत करने के योग्य होगे। अन्यथा, तुम शाश्वत अंधकार में रहोगे, और कभी भी परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं करोगे।

परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति का परमेश्वर है। वह स्वयं को किसी भी राष्ट्र या लोगों की निजी संपत्ति नहीं मानता, बल्कि अपना कार्य अपनी बनाई योजना के अनुसार, किसी भी रूप, राष्ट्र या लोगों द्वारा बंधे बिना, करता जाता है। शायद तुमने इस रूप की कभी कल्पना नहीं की है, या शायद इस रूप के प्रति तुम्हारा दृष्टिकोण इनकार करने वाला है, या शायद वह देश, जहाँ परमेश्वर स्वयं को प्रकट करता है और वे लोग, जिनके बीच वह स्वयं को प्रकट करता है, ऐसे हैं, जिनके साथ सभी के द्वारा भेदभाव किया जाता है और वे पृथ्वी पर सर्वाधिक पिछड़े हुए हैं। लेकिन परमेश्वर के पास अपनी बुद्धि है। उसने अपने महान सामर्थ्य के साथ, और अपने सत्य और स्वभाव के माध्यम से, सचमुच ऐसे लोगों के समूह को प्राप्त कर लिया है, जो उसके साथ एक मन वाले हैं, और जिन्हें वह पूर्ण बनाना चाहता है—उसके द्वारा विजित समूह, जो सभी प्रकार के परीक्षणों, क्लेशों और उत्पीड़न को सहन करके, अंत तक उसका अनुसरण कर सकता है। परमेश्वर का प्रकटन, जो किसी राष्ट्र या रूप में सीमित नहीं है, उसका लक्ष्य उसे अपनी योजना के अनुसार कार्य पूरा करने में सक्षम बनाना है। यह वैसा ही है जैसे, जब परमेश्वर यहूदिया में देह बना, तब उसका लक्ष्य समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा करना था। फिर भी यहूदियों का मानना था कि परमेश्वर के लिए ऐसा करना असंभव है, और उन्हें यह असंभव लगता था कि परमेश्वर देह बन सकता है और प्रभु यीशु का रूप ग्रहण कर सकता है। उनका "असंभव" वह आधार बन गया, जिस पर उन्होंने परमेश्वर की निंदा और उसका विरोध किया, और जो अंततः इस्राएल को विनाश की ओर ले गया। आज कई लोगों ने उसी तरह की ग़लती की है। वे अपनी समस्त शक्ति के साथ परमेश्वर के आसन्न प्रकटन की घोषणा करते हैं, मगर साथ ही उसके प्रकटन की निंदा भी करते हैं; उनका "असंभव" परमेश्वर के प्रकटन को एक बार फिर उनकी कल्पना की सीमाओं के भीतर कैद कर देता है। और इसलिए मैंने कई लोगों को परमेश्वर के वचनों के आने के बाद जँगली और कर्कश हँसी का ठहाका लगाते देखा है। लेकिन क्या यह हँसी यहूदियों के तिरस्कार और ईशनिंदा से किसी भी तरह से भिन्न है? तुम लोग सत्य की उपस्थिति में श्रद्धावान नहीं हो, और सत्य के लिए तरसने की प्रवृत्ति तो तुम लोगों में बिलकुल भी नहीं है। तुम बस इतना ही करते हो कि अंधाधुंध अध्ययन करते हो और पुलक भरी उदासीनता के साथ प्रतीक्षा करते हो। इस तरह से अध्ययन और प्रतीक्षा करने से तुम क्या हासिल कर सकते हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हें परमेश्वर से व्यक्तिगत मार्गदर्शन मिलेगा? यदि तुम परमेश्वर के कथनों को नहीं समझ सकते, तो तुम किस तरह से परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हो? जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य व्यक्त होता है, और वहाँ परमेश्वर की वाणी होगी। केवल वे लोग ही परमेश्वर की वाणी सुन पाएँगे, जो सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, और केवल इस तरह के लोग ही परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हैं। अपनी धारणाओं को जाने दो! स्वयं को शांत करो और इन वचनों को ध्यानपूर्वक पढ़ो। यदि तुम सत्य के लिए तरसते हो, तो परमेश्वर तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम उसकी इच्छा और उसके वचनों को समझोगे। "असंभव" के बारे में अपनी राय जाने दो! लोग किसी चीज़ को जितना अधिक असंभव मानते हैं, उसके घटित होने की उतनी ही अधिक संभावना होती है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमाओं के पार जाता है। जितना अधिक कुछ असंभव होता है, उतना ही अधिक उसमें सत्य होता है, जिसे खोजा जा सकता है; कोई चीज़ मनुष्य की धारणा और कल्पना से जितनी अधिक परे होती है, उसमें परमेश्वर की इच्छा उतनी ही अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भले ही वह स्वयं को कहीं भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसका सार उसके प्रकटन के स्थान या तरीके के आधार पर कभी नहीं बदलेगा। परमेश्वर के पदचिह्न चाहे कहीं भी हों, उसका स्वभाव वैसा ही बना रहता है, और चाहे परमेश्वर के पदचिह्न कहीं भी हों, वह समस्त मनुष्यजाति का परमेश्वर है, ठीक वैसे ही, जैसे कि प्रभु यीशु न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, बल्कि वह एशिया, यूरोप और अमेरिका के सभी लोगों का, और इससे भी अधिक, समस्त ब्रह्मांड का एकमात्र परमेश्वर है। तो आओ, हम परमेश्वर की इच्छा खोजें और उसके कथनों में उसके प्रकटन की खोज करें, और उसके पदचिह्नों के साथ तालमेल रखें! परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकटन साथ-साथ विद्यमान हैं, और उसका स्वभाव और पदचिह्न मनुष्यजाति के लिए हर समय खुले हैं। प्यारे भाइयो और बहनो, मुझे आशा है कि तुम लोग इन वचनों में परमेश्वर का प्रकटन देख सकते हो, एक नए युग में आगे बढ़ते हुए तुम उसके पदचिह्नों का अनुसरण करना शुरू कर सकते हो, और उस सुंदर नए स्वर्ग और पृथ्वी में प्रवेश कर सकते हो, जिसे परमेश्वर ने उन लोगों के लिए तैयार किया है, जो उसके प्रकटन का इंतजार करते हैं!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है

पिछला: 4. हमने कई वर्षों से प्रभु पर विश्वास किया है और हमेशा उसके लिए कड़ी मेहनत की है, सतर्कता से उसकी वापसी की प्रतीक्षा करते हुए। हमारा मानना है कि हमें सबसे पहले प्रभु की वापसी के बारे में रहस्योद्घाटन प्राप्त होना चाहिए। अब आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, तो हमें इस बारे में रहस्योद्घाटन क्यों नहीं मिला? इसका न मिलना यही साबित करता है कि प्रभु लौटा नहीं है। क्या हमारे लिए ऐसा सोचना गलत है?

अगला: 6. हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचन पढ़े हैं। उनमें अधिकार और शक्ति हैं, और वे वास्तव में परमेश्वर की आवाज़ हैं। फिर भी पादरी और एल्डर्स कहते हैं कि बाइबल में यह लिखा है, "मुझे आश्‍चर्य होता है कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह में बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है कि कितने ऐसे हैं जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। परन्तु यदि हम, या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो शापित हो" (गलातियों 1:6-8)। पौलुस द्वारा बोले गए इन शब्दों के कारण, पादरी और एल्डर्स कहते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में हमारा विश्वास प्रभु यीशु के नाम से, और प्रभु यीशु के रास्ते से, भटक जाता है। वे कहते हैं कि हम दूसरे सुसमाचार में विश्वास करते हैं, और यह धर्मत्याग है, प्रभु के प्रति विश्वासघात है। हालाँकि हमें यह तो लगता है कि वे जो कहते हैं वह ग़लत है, (फिर भी) हम यह सुनिश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं कि वे किस तरह ग़लत हैं। कृपया इस बारे में हमारे साथ सहभागिता करें।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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