358 परमेश्वर उदास कैसे न हो?
1
परमेश्वर ने तीखा, मीठा, कड़वा, खट्टा,
इंसानी अनुभव का हर स्वाद चखा है।
हवाओं में वो आता है, बरसात में चला जाता है।
परिवार की यातनाएँ भी झेली हैं उसने,
उतार-चढ़ाव भी ज़िन्दगी के देखे हैं उसने,
अपने देह से जुदा होने का ग़म भी झेला है उसने।
जब धरती पर आया परमेश्वर, मुश्किलें जो झेलीं उसने उनकी ख़ातिर,
बजाय उसका स्वागत करने के, ठुकरा दिया "अदब से"
परमेश्वर के नेक इरादों को इंसान ने।
कैसे न उसका दिल दुखे, कैसे न वो उदास हो इससे?
2
इसी तरह का अंत पाने के लिए क्या देहधारण किया परमेश्वर ने?
क्यों नहीं इंसान करता प्रेम परमेश्वर से?
क्यों दिया जाता है प्रतिदान उसके प्रेम का नफ़रत से?
क्या इसलिये कि परमेश्वर यातना सहे इसी तरह से?
3
चूँकि परमेश्वर ने मुश्किलें सहीं धरती पर,
इसलिये हमदर्दी के आँसू बहाए हैं इंसान ने।
उसकी बदकिस्मती के अन्याय की निंदा की इंसान ने।
परमेश्वर के दिल को सचमुच फिर भी किसने जाना है?
4
कौन समझ सकता है उसके जज़्बात को?
परमेश्वर के लिये कभी गहरी चाहत थी इंसान में,
कामना करता था अक्सर अपने ख़्वाबों में उसकी।
धरती के निवासी मगर कैसे समझें स्वर्ग में इच्छा उसकी, स्वर्ग में इच्छा उसकी?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 31 से रूपांतरित