284 मनुष्य की पीड़ा कैसे उत्पन्न होती है?
1
लोग ईश्वर की संप्रभुता नहीं पहचानते,
विद्रोह और ढिठाई से भाग्य का सामना करते,
नियति और ईश्वर के अधिकार को नकारते,
अपने हालात, नियति बदलने की बेकार आशा करते।
वे सफल न होंगे, वे हमेशा हारेंगे।
उनकी आत्मा में होने वाला संघर्ष
दर्द लाता है, गहरा घाव देता है, वे अपना जीवन व्यर्थ गवांते हैं।
क्या है इंसान की पीड़ा का कारण?
कारण है वे मार्ग जिन पर वे चलते,
विकल्प जो वे चुनते वे ढंग जिससे वे अपना जीवन जीते।
2
इंसान की त्रासदी उसकी खुशी से जीने की कामना नहीं,
शोहरत-दौलत की चाहत, और नियति से उसका विरोध नहीं।
ईश्वर है, इंसान की नियति का शासक है,
जानकर भी, वो अपने तरीके न सुधारे, ये त्रासदी है।
वो ईश्वर की संप्रभुता से होड़ करता,
केवल टूट जाने पर ही हार स्वीकारता।
ईश्वर कहता, समझदार हैं वो जो समर्पण करते हैं,
संघर्ष करने वाले वास्तव में मूर्ख हैं।
क्या है इंसान की पीड़ा का कारण?
कारण है वे मार्ग जिन पर वे चलते,
विकल्प जो वे चुनते वे ढंग जिससे वे अपना जीवन जीते।
शायद कुछ लोगों को एहसास न हो।
पर जब तुम समझ जाते, जब तुम सच में पहचान लेते
कि ईश्वर मनुष्य का भाग्य-विधाता है,
जब तुम देखते, ईश्वर ने तुम्हारे लिए जो योजना बनाई है,
वो एक बड़ी सहायता, सुरक्षा है,
तो दर्द तुम्हारा जल्द हल्का होने लगता,
पूरा अस्तित्व तुम्हारा मुक्ति पा जाता।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III से रूपांतरित