पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें

तुम सभी परमेश्वर के समक्ष पुरस्कृत होने और उसका अनुग्रह पाने की इच्छा रखते हो; सभी ऐसी चीजों की आशा करते हैं, जब वे परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करते हैं, क्योंकि सभी उच्चतर चीजों की खोज में लीन रहते हैं, और कोई भी दूसरों से पीछे नहीं रहना चाहता। लोग बस ऐसे ही हैं। यही कारण है कि तुम लोगों में से बहुत-से लोग लगातार स्वर्ग के परमेश्वर की चापलूसी करके उसका अनुग्रह पाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वास्तव में, परमेश्वर के प्रति तुम लोगों की निष्ठा और निष्कपटता अपने प्रति तुम लोगों की निष्ठा और निष्कपटता से बहुत कम है। मैं यह क्यों कह रहा हूँ? क्योंकि मैं परमेश्वर के प्रति तुम लोगों की निष्ठा को बिलकुल भी स्वीकार नहीं करता, और इसलिए भी, क्योंकि मैं उस परमेश्वर के अस्तित्व को नकारता हूँ, जो तुम लोगों के दिलों में है। दूसरे शब्दों में, जिस परमेश्वर की तुम लोग आराधना करते हो, जिस अस्पष्ट परमेश्वर का तुम लोग गुणगान करते हो, उसका कोई अस्तित्व नहीं है। मैं यह इतनी निश्चितता से इसलिए कह सकता हूँ, क्योंकि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से बहुत दूर हो। तुम लोगों की निष्ठा का कारण तुम लोगों के दिलों के भीतर की मूर्ति है; इस बीच, मेरी नज़र में, जिस परमेश्वर को तुम लोग मानते हो, वह न तो बड़ा है और न ही छोटा, तुम लोग उसे केवल शब्दों से स्वीकार करते हो। जब मैं कहता हूँ कि तुम लोग परमेश्वर से बहुत दूर हो, तो मेरा मतलब है कि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से दूर हो, जबकि अस्पष्ट परमेश्वर निकट प्रतीत होता है। जब मैं कहता हूँ, “बड़ा नहीं,” तो यह इस संदर्भ में है कि आज तुम लोग जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हो, वह केवल महान क्षमताओं से रहित कोई व्यक्ति प्रतीत होता है, ऐसा व्यक्ति जो बहुत बुलंद नहीं है। और जब मैं “छोटा नहीं” कहता हूँ, तो इसका मतलब है कि हालाँकि यह व्यक्ति हवा को नहीं बुला सकता और बारिश को आज्ञा नहीं दे सकता, फिर भी वह परमेश्वर के आत्मा को वह कार्य करने के लिए बुलाने में सक्षम है, जो आकाश और पृथ्वी को हिला देता है, और लोगों को पूरी तरह से भौचक्का कर देता है। बाहरी तौर पर, तुम सभी पृथ्वी पर इस मसीह के प्रति अत्यधिक आज्ञाकारी दिखाई देते हो, किंतु सार में, तुम लोगों को उसमें विश्वास नहीं है, और न ही तुम उससे प्यार करते हो। दूसरे शब्दों में, जिसमें तुम लोग वास्तव में विश्वास रखते हो, वह तुम लोगों की खुद की भावनाओं का अस्पष्ट परमेश्वर है, और जिसे तुम लोग वास्तव में प्यार करते हो, वह वो परमेश्वर है जिसके लिए तुम दिन-रात तरसते हो, किंतु जिसे तुमने व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं देखा है। किंतु इस मसीह के प्रति तुम्हारा विश्वास खंडित और शून्य है। विश्वास का अर्थ है आस्था और भरोसा; प्रेम का अर्थ है व्यक्ति के हृदय में श्रद्धा और प्रशंसा, कभी वियोग नहीं। किंतु आज के मसीह के प्रति तुम लोगों का विश्वास और प्रेम इससे बहुत कम है। जब विश्वास की बात आती है, तो तुम लोग कैसे उसमें विश्वास रखते हो? जब प्यार की बात आती है, तो तुम लोग किस तरह से उससे प्यार करते हो? तुम लोगों को उसके स्वभाव की कोई समझ ही नहीं है, उसके सार को तो तुम बिलकुल भी नहीं जानते, तो फिर तुम लोग उसमें विश्वास कैसे रखते हो? उसमें तुम लोगों के विश्वास की वास्तविकता कहाँ है? तुम लोग उसे कैसे प्यार करते हो? उसके प्रति तुम लोगों के प्यार की वास्तविकता कहाँ है?

बहुत-से लोगों ने आज तक बिना किसी हिचकिचाहट के मेरा अनुसरण किया है। इसी तरह, तुम लोगों ने भी पिछले कई वर्षों में बहुत मेहनत की है। तुममें से प्रत्येक के सहज चरित्र और आदतों को मैंने शीशे की तरह साफ़ समझा है; तुममें से प्रत्येक के साथ बातचीत अत्यधिक दुष्कर रही है। अफ़सोस की बात यह है कि यद्यपि मैंने तुम लोगों के बारे में बहुत-कुछ समझा है, लेकिन तुम लोग मेरे बारे में कुछ भी नहीं समझते। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग कहते हैं कि तुम लोग पलभर को भ्रमित होकर किसी की चाल में आ गए। वास्तव में, तुम लोग मेरे स्वभाव के बारे में कुछ नहीं समझते, और इसकी थाह तो तुम पा ही नहीं सकते कि मेरे मन में क्या है। आज, मेरे बारे में तुम लोगों की गलतफहमियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, और मुझमें तुम लोगों का विश्वास एक भ्रमित विश्वास बना हुआ है। यह कहने के बजाय कि तुम लोगों को मुझमें विश्वास है, यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि तुम लोग चापलूसी से मेरा अनुग्रह पाने की कोशिश कर रहे हो और मेरी खुशामद कर रहे हो। तुम लोगों के इरादे बहुत सरल हैं : जो भी कोई मुझे पुरस्कृत कर सकता है, मैं उसी का अनुसरण करूँगा और जो भी कोई मुझे महान आपदाओं से बचाएगा, मैं उसी में विश्वास रखूँगा, चाहे वह परमेश्वर हो या कोई ईश्वर-विशेष हो। इनमें से किसी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम लोगों के बीच ऐसे कई लोग हैं, और यह स्थिति बहुत गंभीर है। अगर किसी दिन इस बात की परीक्षा हो जाए कि तुम लोगों में से कितनों को मसीह में उसके सार में अंतर्दृष्टि के कारण विश्वास है, तो मुझे डर है कि तुम लोगों में से एक भी मेरे लिए संतोषजनक नहीं होगा। इसलिए तुममें से प्रत्येक के लिए इस प्रश्न पर विचार करना दुखदायी नहीं होगा : जिस परमेश्वर में तुम लोग विश्वास रखते हो, वह मुझसे बहुत अलग है, और ऐसा होने के कारण, परमेश्वर में तुम लोगों के विश्वास का सार क्या है? जितना अधिक तुम लोग अपने तथाकथित परमेश्वर में विश्वास रखते हो, उतना ही अधिक तुम लोग मुझसे दूर भटक जाते हो। तो फिर, इस मुद्दे का सार क्या है? यह निश्चित है कि तुम लोगों में से किसी ने भी कभी इस तरह के प्रश्न पर विचार नहीं किया है, लेकिन क्या तुम लोगों को इसकी गंभीरता का एहसास हुआ है? क्या तुम लोगों ने इस तरह से विश्वास रखते रहने के परिणामों के बारे में सोचा है?

आज, तुम लोग कई मुद्दों का सामना करते हो, और तुममें से एक भी समस्या-समाधान में माहिर नहीं है। अगर यह स्थिति जारी रही, तो नुकसान में केवल तुम्हीं लोग रहोगे। मैं मुद्दों की पहचान करने में तुम लोगों की मदद करूँगा, लेकिन उन्हें हल करना तुम्हीं लोगों पर है।

मैं उन लोगों में प्रसन्नता अनुभव करता हूँ जो दूसरों पर शक नहीं करते, और मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच को तत्परता से स्वीकार कर लेते हैं; इन दो प्रकार के लोगों की मैं बहुत परवाह करता हूँ, क्योंकि मेरी नज़र में ये ईमानदार लोग हैं। यदि तुम धोखेबाज हो, तो तुम सभी लोगों और मामलों के प्रति सतर्क और शंकित रहोगे, और इस प्रकार मुझमें तुम्हारा विश्वास संदेह की नींव पर निर्मित होगा। मैं इस तरह के विश्वास को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। सच्चे विश्वास के अभाव में तुम सच्चे प्यार से और भी अधिक वंचित हो। और यदि तुम परमेश्वर पर इच्छानुसार संदेह करने और उसके बारे में अनुमान लगाने के आदी हो, तो तुम यकीनन सभी लोगों में सबसे अधिक धोखेबाज हो। तुम अनुमान लगाते हो कि क्या परमेश्वर मनुष्य जैसा हो सकता है : अक्षम्य रूप से पापी, क्षुद्र चरित्र का, निष्पक्षता और विवेक से विहीन, न्याय की भावना से रहित, शातिर चालबाज़ियों में प्रवृत्त, विश्वासघाती और चालाक, बुराई और अँधेरे से प्रसन्न रहने वाला, आदि-आदि। क्या लोगों के ऐसे विचारों का कारण यह नहीं है कि उन्हें परमेश्वर का थोड़ा-सा भी ज्ञान नहीं है? ऐसा विश्वास पाप से कम नहीं है! कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मानते हैं कि जो लोग मुझे खुश करते हैं, वे बिल्कुल ऐसे लोग हैं जो चापलूसी और खुशामद करते हैं, और जिनमें ऐसे हुनर नहीं होंगे, वे परमेश्वर के घर में अवांछनीय होंगे और वे वहाँ अपना स्थान खो देंगे। क्या तुम लोगों ने इतने बरसों में बस यही ज्ञान हासिल किया है? क्या तुम लोगों ने यही प्राप्त किया है? और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा। कार्य के कई वर्षों के दौरान तुम लोगों ने कई सत्य देखे हैं, किंतु क्या तुम लोग जानते हो कि मेरे कानों ने क्या सुना है? तुम में से कितने लोग सत्य को स्वीकारने के लिए तैयार हैं? तुम सब लोग विश्वास करते हो कि तुम सत्य के लिए कीमत चुकाने को तैयार हो, किंतु तुम लोगों में से कितनों ने वास्तव में सत्य के लिए दुःख झेला है? तुम लोगों के हृदय में अधार्मिकता के सिवाय कुछ नहीं है, जिससे तुम लोगों को लगता है कि हर कोई, चाहे वह कोई भी हो, धोखेबाज और कुटिल है—यहाँ तक कि तुम यह भी विश्वास करते हो कि देहधारी परमेश्वर, किसी सामान्य मनुष्य की तरह, दयालु हृदय या कृपालु प्रेम से रहित हो सकता है। इससे भी अधिक, तुम लोग विश्वास करते हो कि कुलीन चरित्र और दयालु, कृपालु प्रकृति केवल स्वर्ग के परमेश्वर में ही होती है। तुम लोग विश्वास करते हो कि ऐसा कोई संत नहीं होता, कि केवल अंधकार एवं दुष्टता ही पृथ्वी पर राज करते हैं, जबकि परमेश्वर एक ऐसी चीज़ है, जिसे लोग अच्छाई और सुंदरता के लिए अपने मनोरथ सौंपते हैं, वह उनके द्वारा गढ़ी गई एक किंवदंती है। तुम लोगों के विचार से, स्वर्ग का परमेश्वर बहुत ही ईमानदार, धार्मिक और महान है, आराधना और श्रद्धा के योग्य है, जबकि पृथ्वी का यह परमेश्वर स्वर्ग के परमेश्वर का एक स्थानापन्न और साधन है। तुम विश्वास करते हो कि यह परमेश्वर स्वर्ग के परमेश्वर के समकक्ष नहीं हो सकता, उनका एक-साथ उल्लेख तो बिलकुल नहीं किया जा सकता। जब परमेश्वर की महानता और सम्मान की बात आती है, तो वे स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा से संबंधित होते हैं, किंतु जब मनुष्य की प्रकृति और भ्रष्टता की बात आती है, तो ये ऐसे लक्षण हैं जिनमें पृथ्वी के परमेश्वर का एक अंश है। स्वर्ग का परमेश्वर हमेशा उत्कृष्ट है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर हमेशा ही नगण्य, कमज़ोर और अक्षम है। स्वर्ग के परमेश्वर में भावना नहीं, केवल धार्मिकता है, जबकि धरती के परमेश्वर के केवल स्वार्थपूर्ण उद्देश्य हैं और वह निष्पक्षता और विवेक से रहित है। स्वर्ग के परमेश्वर में थोड़ी-सी भी कुटिलता नहीं है और वह हमेशा विश्वसनीय है, जबकि पृथ्वी के परमेश्वर में हमेशा बेईमानी का एक पक्ष होता है। स्वर्ग का परमेश्वर मनुष्यों से बहुत प्रेम करता है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर मनुष्य की पर्याप्त परवाह नहीं करता, यहाँ तक कि उसकी पूरी तरह से उपेक्षा करता है। यह त्रुटिपूर्ण ज्ञान तुम लोगों के हृदय में काफी समय से रखा गया है और भविष्य में भी बनाए रखा जा सकता है। तुम लोग मसीह के सभी कर्मों पर अधार्मिकता के दृष्टिकोण से विचार करते हो और उसके सभी कार्यों और साथ ही उसकी पहचान और सार का मूल्यांकन दुष्ट के परिप्रेक्ष्य से करते हो। तुम लोगों ने बहुत गंभीर गलती की है और ऐसा काम किया है, जो तुमसे पहले के लोगों ने कभी नहीं किया। अर्थात्, तुम लोग केवल अपने सिर पर मुकुट धारण करने वाले स्वर्ग के उत्कृष्ट परमेश्वर की सेवा करते हो और उस परमेश्वर की सेवा कभी नहीं करते, जिसे तुम इतना महत्वहीन समझते हो, मानो वह तुम लोगों को दिखाई तक न देता हो। क्या यह तुम लोगों का पाप नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध तुम लोगों के अपराध का विशिष्ट उदाहरण नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करते हो। तुम बुलंद छवियों से प्रेम करते हो और उन लोगों का सम्मान करते हो, जो अपनी वाक्पटुता के लिए प्रतिष्ठित हैं। तुम सहर्ष उस परमेश्वर द्वारा नियंत्रित हो जाते हो, जो तुम लोगों के हाथ धन-दौलत से भर देता है, और उस परमेश्वर के लिए बहुत अधिक लालायित रहते हो जो तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता है। तुम केवल इस परमेश्वर की आराधना नहीं करते, जो अभिमानी नहीं है; तुम केवल इस परमेश्वर के साथ जुड़ने से घृणा करते हो, जिसे कोई मनुष्य ऊँची नज़र से नहीं देखता। तुम केवल इस परमेश्वर की सेवा करने के अनिच्छुक हो, जिसने तुम्हें कभी एक पैसा नहीं दिया है, और जो तुम्हें अपने लिए लालायित करवाने में असमर्थ है, वह केवल यह अनाकर्षक परमेश्वर ही है। यह परमेश्वर तुम्हें अपना समझ का दायरा बढ़ाने में, तुम्हें खज़ाना मिल जाने का एहसास कराने में सक्षम नहीं बना सकता, तुम्हारी इच्छा पूरी तो बिलकुल नहीं कर सकता। तो फिर तुम उसका अनुसरण क्यों करते हो? क्या तुमने कभी इस तरह के प्रश्न पर विचार किया है? तुम जो करते हो, वह केवल इस मसीह का ही अपमान नहीं करता, बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, वह स्वर्ग के परमेश्वर का अपमान करता है। मेरे विचार से परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का यह उद्देश्य नहीं है!

तुम लोग लालायित रहते हो कि परमेश्वर तुम पर प्रसन्न हो, मगर तुम लोग परमेश्वर से दूर हो। यह क्या मामला है? तुम लोग केवल उसके वचनों को स्वीकार करते हो, उसके व्यवहार या काट-छाँट को नहीं, उसके प्रत्येक प्रबंध को स्वीकार करने, उस पर पूर्ण विश्वास रखने में तो तुम बिलकुल भी समर्थ नहीं हो। तो आखिर मामला क्या है? अंतिम विश्लेषण में, तुम लोगों का विश्वास अंडे के खाली खोल के समान है, जो कभी चूज़ा पैदा नहीं कर सकता। क्योंकि तुम लोगों का विश्वास तुम्हारे लिए सत्य लेकर नहीं आया है या उसने तुम्हें जीवन नहीं दिया है, बल्कि इसके बजाय तुम लोगों को पोषण और आशा का एक भ्रामक बोध दिया है। पोषण और आशा का बोध ही परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का उद्देश्य है, सत्य और जीवन नहीं। इसलिए मैं कहता हूँ कि परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का आधार चापलूसी और बेशर्मी से परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं रहा है, और उसे किसी भी तरह से सच्चा विश्वास नहीं माना जा सकता। इस प्रकार के विश्वास से कोई चूज़ा कैसे पैदा हो सकता है? दूसरे शब्दों में, इस तरह के विश्वास से क्या हासिल हो सकता है? परमेश्वर में विश्वास का प्रयोजन लक्ष्य पूरे करने में उसका उपयोग करना है। क्या यह तुम्हारे द्वारा परमेश्वर के स्वभाव के अपमान का एक और तथ्य नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो, परंतु पृथ्वी के परमेश्वर के अस्तित्व से इनकार करते हो; लेकिन मैं तुम लोगों के विचार स्वीकार नहीं करता; मैं केवल उन लोगों की सराहना करता हूँ, जो अपने पैरों को ज़मीन पर रखते हैं और पृथ्वी के परमेश्वर की सेवा करते हैं, किंतु उनकी सराहना कभी नहीं करता, जो पृथ्वी के मसीह को स्वीकार नहीं करते। ऐसे लोग स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति कितने भी वफादार क्यों न हों, अंत में वे दुष्टों को दंड देने वाले मेरे हाथ से बचकर नहीं निकल सकते। ये लोग दुष्ट हैं; ये वे बुरे लोग हैं, जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और जिन्होंने कभी खुशी से मसीह का आज्ञापालन नहीं किया है। निस्संदेह, उनकी संख्या में वे सब सम्मिलित हैं जो मसीह को नहीं जानते, और इसके अलावा, उसे स्वीकार नहीं करते। क्या तुम समझते हो कि जब तक तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति वफादार हो, तब तक मसीह के प्रति जैसा चाहो वैसा व्यवहार कर सकते हो? गलत! मसीह के प्रति तुम्हारी अज्ञानता स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति अज्ञानता है। तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति चाहे कितने भी वफादार क्यों न हो, यह मात्र खोखली बात और दिखावा है, क्योंकि पृथ्वी का परमेश्वर मनुष्य के लिए न केवल सत्य और अधिक गहरा ज्ञान प्राप्त करने में सहायक है, बल्कि इससे भी अधिक, मनुष्य की भर्त्सना करने और उसके बाद दुष्टों को दंडित करने के लिए तथ्य हासिल करने में सहायक है। क्या तुमने यहाँ लाभदायक और हानिकारक परिणामों को समझ लिया है? क्या तुमने उनका अनुभव किया है? मैं चाहता हूँ कि तुम लोग शीघ्र ही किसी दिन इस सत्य को समझो : परमेश्वर को जानने के लिए तुम्हें न केवल स्वर्ग के परमेश्वर को जानना चाहिए, बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, पृथ्वी के परमेश्वर को भी जानना चाहिए। अपनी प्राथमिकताओं को गड्डमड्ड मत करो या गौण को मुख्य की जगह मत लेने दो। केवल इसी तरह से तुम परमेश्वर के साथ वास्तव में एक अच्छा संबंध बना सकते हो, परमेश्वर के नज़दीक हो सकते हो, और अपने हृदय को उसके और अधिक निकट ले जा सकते हो। यदि तुम काफी वर्षों से विश्वासी रहे हो और लंबे समय से मुझसे जुड़े हुए हो, किंतु फिर भी मुझसे दूर हो, तो मैं कहता हूँ कि अवश्य ही तुम प्रायः परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करते हो, और तुम्हारे अंत का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होगा। यदि मेरे साथ कई वर्षों का संबंध न केवल तुम्हें ऐसा मनुष्य बनाने में असफल रहा है जिसमें मानवता और सत्य हो, बल्कि, इससे भी अधिक, उसने तुम्हारे दुष्ट तौर-तरीकों को तुम्हारी प्रकृति में बद्धमूल कर दिया है, और न केवल तुम्हारा अहंकार पहले से दोगुना हो गया है, बल्कि मेरे बारे में तुम्हारी गलतफहमियाँ भी कई गुना बढ़ गई हैं, यहाँ तक कि तुम मुझे अपना छोटा सह-अपराधी मान लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हारा रोग अब त्वचा में ही नहीं रहा, बल्कि तुम्हारी हड्डियों तक में घुस गया है। तुम्हारे लिए बस यही शेष बचा है कि तुम अपने अंतिम संस्कार की व्यवस्था किए जाने की प्रतीक्षा करो। तब तुम्हें मुझसे प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है कि मैं तुम्हारा परमेश्वर बनूँ, क्योंकि तुमने मृत्यु के योग्य पाप किया है, एक अक्षम्य पाप किया है। मैं तुम पर दया कर भी दूँ, तो भी स्वर्ग का परमेश्वर तुम्हारा जीवन लेने पर जोर देगा, क्योंकि परमेश्वर के स्वभाव के प्रति तुम्हारा अपराध कोई साधारण समस्या नहीं है, बल्कि बहुत ही गंभीर प्रकृति का है। जब समय आएगा, तो मुझे दोष मत देना कि मैंने तुम्हें पहले नहीं बताया था। मैं फिर से कहता हूँ : जब तुम मसीह—पृथ्वी के परमेश्वर—से एक साधारण मनुष्य के रूप में जुड़ते हो, अर्थात् जब तुम यह मानते हो कि यह परमेश्वर एक व्यक्ति के अलावा कुछ नहीं है, तो तुम नष्ट हो जाओगे। तुम सबके लिए मेरी यही एकमात्र चेतावनी है।

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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