304  परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देना और उसका साक्षी होना

1

देह धारण किया परमेश्वर ने, इंसान को बचाने,

हर कदम पर उसकी रहनुमाई करने, कलीसियाओं के मध्य चलने,

सत्य व्यक्त करने, कड़ी मेहनत से इंसान को सींचने,

उसका शुद्धिकरण करने और उसे पूर्ण बनाने के लिये।

अनुभव लिया है मैंने इम्तहानों की कड़वाहट का,

गुज़रा हूँ मैं परमेश्वर के न्याय से।

कड़वाहट के बाद आती है मिठास भी,

दूर हो रही है भ्रष्टता मेरी।

समर्पित करता हूँ मैं दिल और देह अपने,

ताकि लौटा सकूँ मैं परमेश्वर के प्रेम को, लौटा सकूँ मैं परमेश्वर के प्रेम को।


2

कितने ही बसंत, ग्रीष्म, पतझड़ और सर्द मौसम देखे हैं परमेश्वर ने,

मिठास के साथ कड़वाहट भी झेली है उसने, झेली है उसने।

त्यागता है वो सब-कुछ मगर कभी मलाल नहीं करता,

निस्वार्थ-भाव से दिया है प्रेम अपना उसने।


3

छोड़ दिया मुझे मेरे अपनों ने, बदनाम किया मुझे दूसरों ने।

मगर प्यार मेरा परमेश्वर के लिये अंत तक अविचल है।

परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की ख़ातिर पूर्णत: समर्पित हूँ मैं।

सहता हूँ यातनाओं, पीड़ाओं को मैं,

ले रहा हूँ अनुभव उतार-चढ़ाव का मैं।

फ़र्क नहीं पड़ता कि सह रहा हूँ मुश्किलें इस जीवन में मैं,

फ़र्क नहीं पड़ता कि कड़वाहट से भरी है ज़िंदगी मेरी।

अनुसरण करना ही है परमेश्वर का, गवाही देनी है परमेश्वर की मुझे।

अनुभव लिया है मैंने इम्तहानों की कड़वाहट का,

गुज़रा हूँ मैं परमेश्वर के न्याय से।

कड़वाहट के बाद आती है मिठास भी,

दूर हो रही है भ्रष्टता मेरी।

समर्पित करता हूँ मैं दिल और देह अपने,

ताकि लौटा सकूँ मैं परमेश्वर के प्रेम को, लौटा सकूँ मैं परमेश्वर के प्रेम को।

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