748 परमेश्वर के प्रति अय्यूब का सच्चा विश्वास और उसकी आज्ञाकारिता
1
अय्यूब ने दशकों तक कर्म देखे थे यहोवा के,
उसके आशीष पाए थे खुद के लिए।
इस कारण वो खुद को कर्ज़दार मानता था,
क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ नहीं किया था उसने,
फिर भी अनुग्रह और आशीष मिले उसे।
तभी उसने ईश्वर का कर्ज़ चुकाने की प्रार्थना की,
ईश्वर के कर्मों और उसकी महानता की
गवाही देने का मौका पाने की
अपनी आज्ञाकारिता की परीक्षा की, अपनी आस्था
के शुद्ध बनाए जाने और
ईश-स्वीकृति पाने की आशा की।
उसकी परीक्षा हुई,
तब वो समझ गया, ईश्वर ने सुन ली।
सँजोया उसने खूब इस मौके को।
वो जानता था परीक्षा को हल्के में नहीं लेना है,
उसके जीवन-भर की इच्छा अब पूरी हो सकती थी।
इस मौके का मतलब था
कि उसकी आज्ञाकारिता, श्रद्धा
परखी और शुद्ध की जा सकती थी।
यानी उसके पास ईश-स्वीकृति पाने,
ईश्वर के करीब आने का मौका था।
2
ऐसी आस्था ने उसे और पूर्ण होने,
ईश-इच्छा को और समझने दिया।
ईश्वर के आशीष और अनुग्रह के लिए
अय्यूब उसका और आभारी हुआ,
उसने ईश्वर के कर्मों की और भी स्तुति की।
ईश्वर के प्रति उसकी श्रद्धा बढ़ी, उसका भय बढ़ा;
उसकी मनोहरता, महानता और पवित्रता
के लिए वो और भी तरसने लगा।
अय्यूब अब भी ईश्वर का भय मानता,
बुराई से दूर रहता था,
आस्था और ज्ञान में वो बहुत तेज़ी से बढ़ा।
उसकी आस्था बढ़ी, आज्ञाकारिता को आधार मिला;
ईश्वर के प्रति उसका भय और गहन हुआ।
अय्यूब की आत्मा और जीवन बदल गए थे,
पर उसे ये काफी न लगा,
उसने अपनी प्रगति धीमी न होने दी।
परीक्षा से मिले लाभों की गणना करते हुए
और सोचते हुए कि अभी क्या रह गई कमी,
अगली परीक्षा के इंतज़ार में उसने प्रार्थना की।
अगली परीक्षा में आस्था, आज्ञाकारिता,
ईश्वर के प्रति भय और उन्नत हो,
ये अय्यूब की लालसा थी।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II से रूपांतरित