58. मैं राक्षसों की माँद से बच निकली

शाओ कांग, चीन

मई 2004 में, एक दिन मैं दो बहनों के साथ एक सभा में थी, तब 20 से ज्यादा पुलिस वाले अचानक धड़धड़ाते हुए अंदर घुस आए। वे हम पर चिल्लाते हुए बोले, “तुम में से कोई हिलेगा नहीं, जमीन पर बैठ जाओ!” फिर उन्होंने डाकुओं के गिरोह की तरह पूरे घर को तहस-नहस करने से पहले हम तीनों की तसवीरें लीं। एक पुलिसकर्मी को मेरे पर्स में से कलीसिया-फंड में दिए गए 200,000 युआन की रसीद मिली। यह सोचकर मेरा कलेजा मुँह को आ गया : “अब जबकि इन्हें यह रसीद मिल गई है, तो ये निश्चित रूप से मुझसे कलीसिया के धन के ठिकाने के बारे में पूछेंगे।” मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह यहूदा की तरह उसके साथ विश्वासघात न करने और उसके लिए अपनी गवाही में अडिग रहने में मेरी मदद करे। तब एक पुलिसकर्मी ने मुझसे पूछा : “क्या यह तुम्हारा पर्स है?” जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसने मेरे चेहरे पर जोर से थप्पड़ मारा और मुझे कई बार लात मारी। फिर वे हमें जबरन अपनी स्क्वॉड-कार में बैठाकर ले गए।

सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो में पहुँचने के बाद हमें अलग कर दिया गया और पूछताछ के लिए ले जाया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के कप्तान ने मुझसे पूछा कि मैं अगुआई में कितनी ऊपर हूँ और आम तौर पर किनके साथ सभा करती हूँ। जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसने एक किताब उठाई और उससे मेरे चेहरे और सिर पर कई बार मारा, जिससे मेरे चेहरे में बहुत तेज दर्द होने लगा। मैंने मन ही मन सोचा, “मुझसे 200,000 युआन पाने के लिए ये मुझे किस तरह की यातना देंगे? क्या मैं उसे झेल पाऊँगी? अगर मैं यहूदा की तरह टूट गई और मैंने परमेश्वर को धोखा दे दिया तो?” मन में ये विचार आते ही मैं तुरंत परेशान हो गई और परमेश्वर से आस्था और शक्ति देने के लिए कहा। फिर मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में सोचा, जो कहते हैं : “सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। “यह सही है,” मैंने सोचा। “ये पुलिसकर्मी कितने भी शातिर क्यों न हों, ये सब परमेश्वर की मुट्ठी में हैं। परमेश्वर की अनुमति के बिना ये मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकते। मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी चाहिए और खुद को उसके हाथों में सौंप देना चाहिए। चाहे पुलिस मेरे साथ कैसा भी व्यवहार करे, मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए और उसके लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहिए।” मैंने गुस्से से उनसे पूछा, “आपने हमें किस वजह से गिरफ्तार कर पीटा है? हमने कौन-सा कानून तोड़ा है?” एक अन्य पुलिसकर्मी ने शातिर तरीके से जवाब दिया : “तुम अभी भी अपने अपराध से इनकार कर रही हो? सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना कानून, पार्टी और हमारे देश के खिलाफ है!” मैंने यह कहते हुए उत्तर दिया : “अपनी आस्था में हम सिर्फ इकट्ठे होकर परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं। हम कभी राजनीति में हिस्सा नहीं लेते, फिर हम पार्टी और देश के खिलाफ कैसे काम कर सकते हैं? हमें अकारण गिरफ्तार करके और पीटकर आप जानबूझकर कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।” वह इतना क्रोधित हो गया कि स्पष्ट रूप से मुझे मारने ही वाला था, लेकिन तभी एक अन्य अधिकारी आकर उनसे बोला कि वे रात का खाना खा लें और बाद में रात को फिर से पूछताछ शुरू करें।

उस शाम वे मुझे एक होटल में ले गए और मुझसे पूछताछ की कि कलीसिया-फंड में 200,000 युआन किसने दिए और कहाँ रखे हैं। जब मैंने जवाब नहीं दिया, तो एक अधिकारी ने मुझे इतने जोर से थप्पड़ मारा कि मुझे तारे नजर आने लगे और मेरे गाल दर्द से जलने लगे। राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के कप्तान ने यह कहते हुए मुझे डराने की कोशिश की : “कुछ ही दिन पहले हमने तुम्हारे कई बड़े अगुआओं को गिरफ्तार किया था। कुछ समय से हम तुम्हारा पीछा कर रहे हैं और हम जानते हैं कि तुम एक अगुआ हो। बेहतर होगा कि तुम हमारे साथ पूरा सहयोग करो, नहीं तो हम तुम्हें पीट-पीटकर मार डालेंगे!” मैंने उसे नजरअंदाज किया और बस अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना कर साहस और बुद्धि देने के लिए कहती रही, ताकि मैं शैतान से डरूँ नहीं। इसके बाद एक अन्य अधिकारी ने जबरन मुस्कराते हुए कहा : “तुम्हें बस इतना करना है कि हमें बता दो कि तुम क्या जानती हो और फिर तुम घर जा सकती हो। तुम्हारा बच्चा अभी बहुत छोटा है और तुम्हारे माता-पिता की देखभाल करने वाला और कोई नहीं है। अगर तुम घर पर नहीं होगी, तो कैसे काम चलेगा? बस अब हमें बता दो कि तुम क्या जानती हो, वरना जेल जाओगी!” यह सुनकर मैंने सोचा : “मेरे माता-पिता दोनों की उम्र सत्तर साल से ऊपर है और मेरी बेटी अभी बहुत छोटी है। अगर मुझे जेल भेज दिया गया, तो उनकी देखभाल कौन करेगा?” यह सोचकर मैं रोए बिना नहीं रह सकी। तभी मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में सोचा जो कहते हैं : “मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए ... ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे याद दिलाया कि शैतान बस मेरे परिवार के सदस्यों के लिए मेरी चिंता का उपयोग करके मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए भरमाने की कोशिश कर रहा है। मैं उसके झाँसे में नहीं आ सकती। मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अन्य अंश के बारे में सोचा, जिसमें कहा गया है : “तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तुम हमेशा अपने दैहिक परिवार के बारे में चिंतित क्यों रहते हो और तुम हमेशा अपने प्रियजनों के लिए विलाप क्यों करते रहते हो? क्या तुम्हारे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। बेशक, मेरी बेटी और माता-पिता की किस्मत परमेश्वर के हाथ में थी और उसे ही उनके बारे में आदेश देना और व्यवस्था करनी थी, तो मुझे किस बात की चिंता थी? मुझे उन्हें परमेश्वर को सौंप देना चाहिए और अपने परिवार की चिंता के कारण अपने भाई-बहनों के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। मैंने एक मौन शपथ ली : “भले ही मुझे अपनी बाकी जिंदगी जेल में रहना पड़े, मैं कभी अपने भाई-बहनों के साथ विश्वासघात नहीं करूँगी, न ही परमेश्वर को धोखा दूँगी!” तभी एक और अधिकारी आया और बोला कि उन्हें पहले दो अन्य बहनों से पूछताछ करनी है, जिसके बाद वे बगल के कमरे में चले गए, केवल दो अधिकारी मेरी निगरानी के लिए रह गए। इसके तुरंत बाद मुझे अपनी बहनों की बार-बार चीखने की डरावनी आवाज सुनाई दी। मैं गुस्से में थी—परमेश्वर के विश्वासियों और अनुयायियों के रूप में हम सही रास्ते पर चल रहे थे और कोई भी कानून नहीं तोड़ रहे थे और फिर भी सीसीपी ने हमें गिरफ्तार किया और हमारे साथ क्रूरता की! मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, जो कहते हैं : “हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? ... प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। सीसीपी एक शैतान है, जो परमेश्वर से नफरत और उसका विरोध करती है। परमेश्वर का देहधारण और मानवता का उद्धार वास्तव में एक खुशी का अवसर है, लेकिन सीसीपी परमेश्वर को धरती पर आने की अनुमति नहीं देती। वे हमें परमेश्वर पर विश्वास करने, परमेश्वर का अनुसरण करने और सही मार्ग पर चलने नहीं देंगे। वे मसीह को पकड़ने के लिए उग्रतापूर्वक उसका पीछा करते हैं और परमेश्वर के अनुयायियों को दंडित करते हैं। शाश्वत संप्रभुता प्राप्त करने और मानवता को नियंत्रित करने की अपनी जंगली महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए वे हमें जड़ से उखाड़कर मिटाने और परमेश्वर का कार्य नष्ट करने में जुटे हैं; वे वास्तव में विरोधी हैं। मुझे इस बूढ़ी शैतान सीसीपी से पूरे दिल से नफरत थी और जितना ज्यादा उन्होंने मुझे सताया, उतनी ही ज्यादा मेरी परमेश्वर का अनुसरण की इच्छा हुई। चाहे मुझे कितना भी सहना पड़े, मैं शैतान को अपमानित करने के लिए परमेश्वर की गवाही में अडिग रहने को तैयार थी।

बाद में, सुबह 4 बजे के कुछ देर बाद गार्ड अपने-अपने बिस्तर पर जाकर सो गए। मेरे मन में वहाँ से भाग निकलने की जबर्दस्त इच्छा थी, लेकिन मुझे इस बात की चिंता भी थी कि अगर मैं सफल न हुई और वापस ले आई गई, तो पुलिस मुझ पर और भी ज्यादा कठोर यातना की रणनीति अपनाएगी। मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! अगर तुमने मेरे लिए यह रास्ता खोला है, तो कृपया मुझे उस आस्था, साहस और बुद्धि से भर दो, जो मुझे इस शेर की माँद से बच निकलने के लिए चाहिए।” अपनी प्रार्थना समाप्त करने के बाद मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में सोचा, जो कहते हैं : “संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शक्ति दी : परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और सभी चीजों पर संप्रभु शासन करता है। शैतान भी परमेश्वर की मुट्ठी में है। मैंने सोचा कि कैसे जब मूसा इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले जा रहा था और अपना पीछा कर रहे रथों और आगे लाल सागर के बीच फँस गया था, तो मूसा ने ईमानदारी से यहोवा परमेश्वर को पुकारा था और परमेश्वर ने उसके लिए एक मार्ग खोल दिया था, जिससे लाल सागर का जल दो भागों में विभाजित हो गया और बीच में शुष्क भूमि की एक पट्टी प्रकट हो गई थी। इस्राएलियों के लाल सागर पार कर लेने के बाद परमेश्वर ने तेजी से सागर की ऊँची लहरों से मार्ग बंद कर दिया और इस प्रक्रिया में उन लहरों ने पीछा कर रहे मिस्रियों को निगल लिया था। यह समझकर कि सभी चीजें परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन हैं, मेरा डर कम हो गया और मुझमें भागने का साहस और आस्था आ गई। हाथ में चप्पलें लिए मैं चुपके से दरवाजा खोलकर बाहर निकली और फिर उसे धीरे से बंद कर पहली मंजिल पर आ गई। फ्रंट डेस्क पर कोई नहीं था, लेकिन जब मैं इमारत के प्रवेश-द्वार पर गई, तो देखा कि वह बंद था। मैंने सोचा : “अब मैं बचकर नहीं निकल पाऊँगी। बेहतर होगा, वापस चली जाऊँ। अगर पुलिस को पता चल गया कि मैंने क्या किया है, तो वह निश्चित रूप से मुझे बुरी तरह पीटेगी।” मैं बेहद घबराई हुई थी और मेरा दिल इतने जोरों से धड़क रहा था, मानो छाती से बाहर आ जाएगा। लेकिन मुझे तब हैरानी हुई, जब दूसरी सीढ़ी पर वापस जाते हुए मैंने अचानक देखा कि पीछे से बाहर निकलने का एक रास्ता है। तो मैं धीरे से उसे देखने गई, लेकिन वह दरवाजा भी बंद था—एक और निराशा। मैंने सोचा : “हे परमेश्वर! अगर तुम अनुमति नहीं देते, तो मैं भागने की कोशिश नहीं करूँगी। मैं तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने को तैयार हूँ। लेकिन अगर मुझे तुम्हारी अनुमति है, तो कृपया मेरे लिए एक रास्ता खोल दो।” मैंने सावधानी से ताला खींचा और यह देखकर हैरान रह गई कि वह फौरन खुल गया! मैं बहुत खुश हुई और जितनी तेजी से हो सका, पिछले दरवाजे से भाग निकली। मैं अपनी पूरी ताकत से भागी और एक कठिन यात्रा के बाद मैं लगभग 4 किलोमीटर दूर अपनी मौसी के घर पहुँच गई।

मैं अपनी मौसी के घर जाकर बैठी ही थी कि अचानक गली से पुलिस-सायरन की चुभती हुई आवाज सुनी—वैसी ही, जैसी वे गंभीर अपराधियों का पीछा करते हुए इस्तेमाल करते थे। उन अधिकारियों के क्रूर चेहरों और यातना देने की उनकी विभिन्न तरकीबों के बारे में सोचते ही मैं घबरा गई और मुझे चिंता हुई कि वे मुझे किसी भी क्षण पकड़ लेंगे। तभी परमेश्वर के वचनों ने मुझे एक बार फिर हौसला दिया : “डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों ने तुरंत मुझमें हिम्मत और आस्था का संचार कर दिया। मेरे पीछे परमेश्वर है, तो मुझे किस बात का डर है? क्या परमेश्वर ने शेर की माँद से बचाने में पहले मेरी सहायता नहीं की थी? मुझे परमेश्वर पर आस्था रखनी थी और खुद को पूरी तरह से उसके हाथों में सौंपना था। मुझे कितना कष्ट उठाना पड़ेगा, यह पहले से ही परमेश्वर ने तय कर रखा था और अगर मुझे फिर गिरफ्तार किया गया, तो यह केवल उसकी अनुमति से होगा। इस विचार से मैंने थोड़ा शांत महसूस किया लेकिन फिर मैंने सोचा कि कैसे मेरी मौसी के बेटे और बहू दोनों ने उसके परमेश्वर पर विश्वास करने पर आपत्ति जताई थी, यहाँ तक कि एक से ज्यादा बार उसे थाने भेजना चाहा था। मैं आश्वस्त नहीं थी कि अगर उन्हें पता चला कि सीसीपी मुझे ढूँढ़ रही है तो वे क्या करेंगे, इसलिए मैं जानती थी कि मुझे जितनी जल्दी हो सके, यहाँ से निकलना होगा।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि मुझे पहचान न लिया जाए, मैंने अपने बाल काटकर छोटे कर लिए और कपड़े बदल लिए। फिर तीसरी सुबह लगभग 4 बजे मैं मौसी के घर से निकल गई और पीछे के रास्तों से अपनी बाइक पर 20 किलोमीटर चलकर बहन डॉन्ग एन के घर जा पहुँची। मुझे याद आया कि मैंने रोज दोपहर के समय कुछ बहनों को फोन करने का वादा किया था, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि मुझे गिरफ्तार कर लिया गया है और मेरा फोन पुलिस के पास है—अगर उन्होंने मुझे फोन किया, तो उनकी निगरानी की जाएगी और अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इसलिए मैंने एक नया फोन-कार्ड खरीदा और उन्हें फोन करके तुरंत फोन बंद करने को कहा। दुर्भाग्य से, पुलिस पहले से ही उनकी कॉल की निगरानी कर रही थी और जैसे ही मैंने उनसे संपर्क किया, उन्होंने तुरंत मेरे ठिकाने का पता लगा लिया। कुछ दिन बाद शाम के लगभग 7 बजे सीसीपी ने डॉन्ग एन के गाँव में मुझे खोजकर गिरफ्तार करने के लिए सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के अधिकारियों, सशस्त्र पुलिस और स्वाट-ऑपरेटिव्स का एक विशाल पुलिस बल भेज दिया। जैसे ही डॉन्ग एन के पति को पता चला, उन्होंने जल्दी से मुझे बताया कि पुलिस ने गाँव को घेर लिया है और वे शायद मुझे लेने आए हैं। उस क्षण डर के मारे मैं बुरी तरह घबरा गई और चप्पल बदले बिना ही तेजी से नीचे की ओर भागी। जब मैं पहली मंजिल पर आई, तो मुझे तुरंत बहन लियू यी दिखी जो उसी गाँव में रहती थी। उसने मुझे बाँह से पकड़ा और हम दोनों घर से निकलकर लगभग पचास मीटर दूर सोयाबीन के खेत में दौड़ गए। हम उस खेत में दुबककर बैठे ही थे कि सात-आठ अधिकारियों की एक टीम डॉन्ग एन के घर में धड़धड़ाती हुई घुस गई और फ्लैशलाइट से हर मंजिल की तलाशी लेनी शुरू कर दी। जब आधे घंटे से ज्यादा समय तक खोजने के बाद भी वे मुझे नहीं ढूँढ़ पाए, तो वे डॉन्ग एन के पति को साथ ले गए। लियू यी और मैं उस रात लगभग 11 बजे तक उसी सोयाबीन के खेत में छिपे रहे, उस समय उसने यह मानते हुए कि पुलिस पहले ही जा चुकी होगी, वापस डॉन्ग एन के घर जाकर यह देखने का फैसला किया कि वहाँ हालात कैसे हैं। उसे गए काफी समय हो गया था और मुझे उसकी बहुत चिंता हो रही थी, लेकिन मैंने उतावलापन नहीं दिखाया। फिर अचानक एक पुलिस-कार घर के बाहर रुकी और कुछ ही क्षणों के बाद मैंने बेबसी से लियू यी को स्क्वाड-कार में बैठकर ले जाए जाते देखा। मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई और लियू यी को घर जाने देने के लिए मुझे खुद पर गुस्सा आया, लेकिन उस समय मैं उसके लिए सिर्फ चुपचाप प्रार्थना ही कर पाई।

उस समय मेरी किसी अन्य भाई-बहन के घर जाने की हिम्मत नहीं हुई और मैं नहीं जानती थी कि मुझे भागकर कहाँ जाना चाहिए, इसलिए मैंने लक्ष्यहीन होकर दक्षिण की ओर दौड़ना शुरू कर दिया। लेकिन गाँव के कुछ कुत्ते मेरा पीछा करना और भौंकना बंद नहीं कर रहे थे। मुझे डर था कि अगर पुलिस ने उन्हें भौंकते सुन लिया, तो वे तलाश करते हुए आ जाएँगे, इसलिए मैं जल्दी से मकई के एक खेत में छिप गई। इसके तुरंत बाद मैंने आसपास के इलाके में स्कूटर के इंजन चलने की आवाज सुनी और मैं बहुत डर गई। मैंने मन ही मन सोचा : “इतनी सारी पुलिस के यहाँ मुझे ढूँढ़ने के कारण मेरे बच पाने का कोई उपाय नहीं है। वे जानते हैं कि मैं एक अगुआ हूँ और उनके पास वह रसीद है—अगर उन्होंने मुझे दोबारा पकड़ लिया, तो वे निश्चित रूप से मुझे मार डालेंगे। क्या इतनी कम उम्र में सीसीपी द्वारा मारा जाना ही वास्तव में मेरी नियति है?” यह महसूस कर मैं थोड़ी मायूस हो गई, लेकिन तभी मुझे याद आया कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “संपूर्ण मानवजाति में कौन है जिसकी सर्वशक्तिमान की नज़रों में देखभाल नहीं की जाती? कौन सर्वशक्तिमान द्वारा तय प्रारब्ध के बीच नहीं रहता? क्या मनुष्य का जीवन और मृत्यु उसका अपना चुनाव है? क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 11)। बेशक, मेरा भाग्य परमेश्वर के हाथों में था, और इस बारे में उसी का निर्णय अंतिम था कि मैं जीवित रहूँगी या मारी जाऊँगी। अगर परमेश्वर ने मुझे सीसीपी द्वारा गिरफ्तार किए जाने और प्रताड़ित कर मार दिए जाने की अनुमति न दी, तो पुलिस निश्चित रूप से मेरी जान नहीं ले पाएगी। जब शैतान ने अय्यूब पर हमला किया और उसकी परीक्षा ली, तो उसके पास अय्यूब को मारने की परमेश्वर की अनुमति नहीं थी, इसलिए वह सिर्फ उसके शरीर को ही नुकसान पहुँचा पाया और उसकी जान नहीं ले पाया। मैंने परमेश्वर के वचनों के एक और अंश के बारे में सोचा, जो कहता है : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था से भर दिया। मैं जान गई कि मुझे खुद को परमेश्वर के हाथों में सौंपना और उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए। भले ही मेरे पास सिर्फ एक साँस बची हो, मुझे परमेश्वर के प्रति वफदार रहना था और कभी भी उसके साथ विश्वासघात नहीं करना था। मैंने पतरस के बारे में सोचा, जो तमाम तरह के उत्पीड़न और कठिनाइयाँ अनुभव करने के बाद भी परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम की गवाही देने के लिए सलीब पर उलटा लटकाए जाने को तैयार था। युगों-युगों में, अनगिनत संतों ने सुसमाचार फैलाने और शैतान को नाकाम और अपमानित करने के लिए और परमेश्वर की एक अटल और जबर्दस्त गवाही देने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया है। इस उत्पीड़न और कठिनाई का अनुभव कर पाना और परमेश्वर के लिए गवाही देने का अवसर पाना वास्तव में एक आशीष था। यह एहसास कर मैंने साहस की एक नई भावना महसूस की और इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर प्रण किया कि मैं शैतान के सामने उसकी गवाही दूँगी, चाहे इसका मतलब अपनी जान जोखिम में डालना ही क्यों न हो। प्रार्थना के बाद मेरी घबराहट कम हुई और मैं सोचने लगी कि कैसे बचने के लिए मैं परमेश्वर पर भरोसा कर सकती हूँ। मैं जानती थी कि मैं मुख्य सड़क नहीं पकड़ सकती, इसलिए मैंने कभी नदी के किनारे दौड़कर गाँव के बाहरी इलाके के जंगल में चक्कर लगाए और निकल गई। परमेश्वर की सुरक्षा के साथ मैं अंततः सकुशल गाँव से भाग निकलने में सफल रही।

जब मैं जंगल से बाहर निकली, तो पहले ही बहुत रात हो चुकी थी और मैं नहीं जानती थी कि मुझे कहाँ जाना चाहिए, इसलिए मैंने लगभग 10 किलोमीटर दूर अपनी बहन के घर जाने का फैसला किया। मुझे मुख्य सड़क पर स्कूटरों के चलने की आवाज सुनाई दी और लगा कि पुलिस अभी भी मुझे घेरने और पकड़ने की कोशिश कर रही है, इसलिए मैं सुनसान जंगल में छोटे-छोटे रास्तों से नंगे पैर भागी। लगभग दो या तीन किलोमीटर बाद मैं कुछ चावल के खेतों से गुजरी और एक खपरैल पर पड़ने से मेरा पैर कट गया, लेकिन दर्द पर ध्यान देने का समय नहीं था—मैं जितना संभव हुआ, उतनी तेजी से आगे की ओर दौड़ती रही। आखिरकार मैं एक बजरी वाली सड़क पर आ गई, जो मेरी बहन के घर तक जाने वाली एकमात्र सड़क थी। बजरी मेरे पैर के घाव में लगी तो मुझे भयानक दर्द हुआ, लेकिन मैं बस अपने दाँत भींचकर रह गई क्योंकि मेरी रुकने की हिम्मत नहीं थी। एक इलेक्ट्रिक पंप स्टेशन के पास से गुजरने से ऐन पहले मैंने अपने पीछे स्कूटर आने की आवाज सुनी और मैं जल्दी से सड़क के किनारे झाड़ियों में जा दुबकी। स्कूटर स्टेशन के पास रुका और एक पुलिस अधिकारी ने अटैंडेंट के तौर पर काम कर रहे बूढ़े व्यक्ति से पूछा कि क्या उसने किसी महिला को जाते देखा है। बूढ़े ने कहा कि उसने कुछ नहीं देखा। मैंने मन ही मन सोचा : “मैं इस बजरी वाली सड़क पर यात्रा जारी नहीं रख सकती। मुझे फिर से चावल के खेतों या पीछे की सड़कों पर चलना होगा; मैं इसी तरह पुलिस से बच पाऊँगी।” लगभग आधा किलोमीटर बाद धीरे-धीरे भोर होते देखकर मुझे लगा कि पुलिस पूरी रात मुझे खोजने के बाद रुक गई होगी और मैं वापस मुख्य सड़क पर जा सकती हूँ। लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब मैंने अचानक कुछ ही कदम की दूरी पर राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के कप्तान और दो पुलिस वालों को देखा, जिनमें से एक स्कूटर पर बैठा था, एक स्कूटर के पास खड़ा था और दूसरा जमीन पर उकडूँ बैठा था। मैं इतना डर गई कि मुझे लगा कि मेरा दिल मेरे सीने से बाहर निकल आएगा। मैंने मन ही मन सोचा, “अब मैं फँस गई हूँ, अब मेरे बचने का कोई उपाय नहीं रहा। मैं पूरी रात भागती रही, फिर भी उनके चंगुल से बचने में नाकाम रही।” मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! सभी चीजें तुम्हारे नियंत्रण में हैं। अगर तुम मुझे पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने देते हो, तो मैं समर्पण करने और तुम्हारे आयोजनों के मुताबिक चलने को तैयार हूँ।” प्रार्थना करने के बाद मैंने थोड़ा शांत महसूस किया और अपने बाल ठीक करके कुछ सेकंड वहीं खड़ी रहने के बाद मैंने कदम बढ़ाया। अगर वे मुझे गिरफ्तार करना चाहते, तो ठीक उसी समय आसानी से कर सकते थे, लेकिन यह देखकर मुझे हैरानी हुई कि वे लकड़ी की नक्काशी वाली तिकड़ी की तरह जहाँ थे, वहीं अचल खड़े रहे। लगा कि वे मुझे पहचान नहीं पाए, क्योंकि मैंने अपने बाल काट लिए थे और कपड़े बदल लिए थे और पहली बार की गिरफ्तारी से बिल्कुल अलग दिख रही थी। यह देखकर कि वे मुझ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे, मैंने थोड़ा साहसी और पहले से ज्यादा आश्वस्त महसूस किया और आगे बढ़ती गई। उनके पास से गुजरते हुए घबराहट से मेरी साँस रुक गई थी; लगा जैसे मेरे चारों ओर सब-कुछ जम गया हो। मैंने पूर्व की ओर जाती एक छोटी सड़क देखी, तो मैं धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ गई, लेकिन तीनों अधिकारी अभी भी नहीं हिले थे। मैंने एक बार फिर परमेश्वर की सर्वशक्तिमान संप्रभुता देख ली थी। जब मैं उनसे लगभग 10 मीटर दूर थी, तो मैंने कप्तान को अपने पीछे चिल्लाते हुए सुना, “शाओ कांग, शाओ कांग, क्या तुम शाओ कांग हो?” वह मुझ पर चार-पाँच बार चिल्लाया होगा। जब मैंने उसे अपना नाम पुकारते सुना, तो मेरा कलेजा मुँह को आ गया और पसीना छूट गया। मैं वहाँ से एकदम भाग जाना चाहती थी, लेकिन मेरे पैर मेरे दिमाग के आदेश नहीं सुन रहे थे। मुझे लगा कि अगर मैंने बचने के लिए अचानक भागना शुरू कर दिया, तो वे जान जाएँगे कि वो मैं ही हूँ और मेरा पीछा करते हुए आ जाएँगे। मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना कर मुझे शांत रखने और घबराने न देने के लिए कहा। प्रार्थना के बाद मैंने थोड़ा शांत महसूस किया और पुलिस के बुलाने के बावजूद मैं बस उन्हें नजरअंदाज कर चलती गई। कोई पुलिस वाला मेरा पीछा करने नहीं आया। इस तरह परमेश्वर की सुरक्षा के साथ मैं ठीक उनकी नाक के नीचे से बच निकली।

इस बेहद जोखिम भरे पलायन ने मुझे परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया : “शैतान चाहे जितना भी ‘सामर्थ्यवान’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। मैंने देखा कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, सभी चीजों पर संप्रभु शासन करता है और उसके पास सर्वोच्च और परम अधिकार है। यह परमेश्वर ही था, जिसने पुलिसवालों को अंधा कर मुझे बेखबर निकलने दिया। सीसीपी के दमन और गिरफ्तारी के ये दो उदाहरण याद कर मुझे एहसास हुआ कि ऐसा कोई स्थान नहीं, जहाँ परमेश्वर की शक्तियाँ न पहुँचती हों। जब मुझे गिरफ्तार किया गया, तो परमेश्वर ने मेरे बिना किसी समस्या के बच निकलने का रास्ता खोल दिया। पुलिस ने मुझे खोजने और गिरफ्तार करने के लिए बड़ा अभियान चलाया, उस घर और गाँव को घेर लिया जिसमें मैं रह रही थी, लेकिन वे तब भी मुझे नहीं पकड़ पाए। फिर उन्होंने मेरा पीछा कर मुझे रास्ते में ही पकड़ने की कोशिश की, लेकिन जब मैं ठीक उनके पास से गुजरी, तो वे किसी तरह मुझे पहचान नहीं पाए। जितना ज्यादा मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही ज्यादा मुझे लगा कि परमेश्वर वास्तव में सर्वशक्तिमान है, और शैतान चाहे जितनी बर्बरता कर ले, परमेश्वर की अनुमति के बिना वह मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकता।

बाद में, कुछ भाई-बहनों ने मुझे बताया कि सीसीपी ने पूरी काउंटी में “सामाजिक व्यवस्था को गंभीर रूप से बाधित करने वाली” शीर्षक के साथ मेरी तसवीर वाले वांछित के साइनबोर्ड लगाए थे। पुलिस मेरी तसवीर के साथ सिटी-बसों में भी जाँच-पड़ताल कर रही थी कि क्या कोई मेरा ठौर-ठिकाना जानता है। चूँकि पुलिस अभी भी मुझे खोज रही थी, इसलिए मैं अपने कर्तव्य निभाने बिल्कुल भी बाहर नहीं जा सकती थी और मुझे अपने मेजबान-परिवार के घर में छिपे रहना पड़ता था और मैं लगातार घबराई रहती थी। इसके बाद मैं एक साल से ज्यादा समय तक बाहर नहीं गई और मैंने बहुत दमित और निराश महसूस किया। कभी-कभी मुझे लगता कि बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर पर विश्वास करना बहुत कठिन और दर्दनाक है। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा, जिनमें कहा गया है : “चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के संपूर्ण कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शोधित किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। मैं जान गई कि परमेश्वर जानबूझकर लोगों को पीड़ित नहीं होने दे रहा, बल्कि वह सीसीपी द्वारा विश्वासियों की गिरफ्तारी और उत्पीड़न से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों का उपयोग लोगों की आस्था और प्रेम को पूर्ण करने और विजेताओं का एक समूह बनाने के लिए कर रहा है।

इस पूरे अनुभव—गिरफ्तार होने से लेकर भाग निकलने और उसके बाद अब तक—मैंने काफी कठिनाई का सामना किया है, लेकिन इससे मैं परमेश्वर के प्रति सीसीपी के प्रतिरोध का शैतानी सार स्पष्ट रूप से पहचान पाई हूँ। सीसीपी अब मुझे गुमराह नहीं कर सकती, मैंने उसके विरुद्ध विद्रोह कर उसे पूरी तरह से त्याग दिया है। साथ ही मैंने करीब से देखा है कि जब भी मुझे जरूरत हुई, परमेश्वर ने मेरी मदद की और मेरे लिए बार-बार रास्ता खोलते हुए हर कदम पर मेरे साथ रहा। परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी है और बार-बार मुझे शेर की माँद से बाहर निकालने में मेरा मार्गदर्शन किया है। मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमान संप्रभुता देखी है और इससे परमेश्वर में मेरी आस्था और गहरी हुई है। जितना ज्यादा मैं इसके बारे में सोचती हूँ, उतना ही मुझे एहसास होता है कि मैंने इस कठिनाई और उत्पीड़न से बहुत-कुछ प्राप्त किया है। इसे ध्यान में रखने से मुझे अब यह कटु अनुभव नहीं लगता, बल्कि लगता है मानो परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया हो और मुझे इस कठिन परिस्थिति में अपने कार्य का अनुभव करने देकर मुझ पर कृपा की हो। चाहे सीसीपी मुझे खोजकर जितना भी प्रताड़ित करे, मैं सत्य का अनुसरण करना जारी रखूँगी, अपना कर्तव्य निभाऊँगी और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिफल दूँगी!

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