73. झूठी रिपोर्ट का सामना करना
एक दिन मुझे एक रिपोर्ट पत्र मिला जिसमें भाई-बहनों ने दावा किया था कि बहन चेन मो नाम की एक कलीसिया अगुआ अपने कर्तव्य में बोझ नहीं उठा पा रही थी, वह लोगों की समस्याएँ हल नहीं कर पाती थी, वह वास्तविक कार्य नहीं करती थी और वह नकली अगुआ थी। पत्र पढ़ने के बाद, मैंने झटपट उस कलीसिया के भाई-बहनों के साथ एक बैठक बुलाई, ताकि चेन मो के बारे में उनके मूल्यांकन को बेहतर ढंग से समझ सकूँ। मगर स्थिति की वास्तविकता उस पत्र की बातों से मेल नहीं खाती थी। उस कलीसिया के सभी भाई-बहनों ने कहा कि चेन मो अपने काम में जिम्मेदारियों का बोझ उठाती थी, कलीसिया की सभी परियोजनाएँ तत्परता से पूरी करती थी, वह लोगों की समस्याएँ तुरंत हल करने में सक्षम थी और कहा जा सकता है कि वह वास्तविक कार्य कर रही थी। मैंने मन-ही-मन सोचा : “रिपोर्ट पत्र में कलीसिया की स्थिति को लेकर गलतबयानी की गई थी। आखिर यहाँ चल क्या रहा है?”
बाद में, जब मैंने इस मसले पर आगे छानबीन की, तो पता चला कि रिपोर्ट पत्र कलीसिया की दो सदस्यों, झाओ हुई और लियु यिंग ने लिखा था। उनकी रिपोर्ट लिखने की वजह यह थी कि उन्होंने एक बार किसी सिंचन उपयाजक को नवागंतुकों के सिंचन में देरी से पहुँचते देखा था, और जब उन्होंने चेन मो को इस बात की रिपोर्ट की, तो उसने उपयाजक को नहीं फटकारा—यह जानकर कि उसे देरी हो गई थी क्योंकि वह उस समय अन्य जरूरी परियोजनाओं पर ध्यान दे रहा था मगर फिर उसने कभी देरी नहीं की। झाओ और लियु ने हालात पर गौर नहीं किया और बस मौके का फायदा उठाकर समस्याएँ हल न करने, अन्य वरिष्ठ सदस्यों को बचाने और वास्तविक कार्य करने में विफल रहने को लेकर चेन मो की आलोचना की। इसके अलावा, झाओ और लियु ने मामले को जाने नहीं दिया। वे अक्सर सभाओं के दौरान चेन मो और अन्य उपयाजकों की यह कहकर आलोचना करती थीं कि वे केवल एक-दूसरे को बचा रहे थे, कि वे वास्तविक कार्य नहीं कर रहे थे, और वे झूठे अगुआ और कार्यकर्ता थे इस गड़बड़ी ने कलीसिया के जीवन पर असर डाला और चेन मो खुद भी नकारात्मकता में डूब गई, जिससे कलीसिया का काम और भी रुक गया। जब मैंने झाओ और लियु के व्यवहार के बारे में सुना तो मुझे याद आया कि कैसे कुछ साल पहले जब मैं उस कलीसिया में अगुआ थी, तब उन दोनों ने मिलकर अगुआओं और कर्मियों पर हमले किए थे और यहाँ तक कि एक मसीह-विरोधी के निष्कासन को “अन्यायपूर्ण” बताया था। वे जिस तरह चीजों को झकझोर रही थीं, वह कलीसियाई जीवन को काफी अस्त-व्यस्त करने वाला था। उस समय मैं नई-नई अगुआ बनी थी। ऐसे हालात से निपटने का यह मेरा पहला अनुभव था और मैं आस्था में भी अपेक्षाकृत नई थी, इसलिए मैंने काफी बेबस महसूस किया और उन्हें उजागर करने या पाबंदियां लगाने की हिम्मत नहीं की। इस कारण करीब आधे साल से ज्यादा तक हंगामा चलता रहा। फिर जब एक उच्च स्तरीय अगुआ ने आकर संगति की, उनके बुरे व्यवहार की प्रकृति और परिणामों को उजागर किया, तब जाकर उन्होंने मुसीबत खड़ी करना बंद किया। चूँकि उन्होंने कलीसियाई जीवन में बाधा डालना बंद कर दिया था और दावा किया था कि वे पश्चात्ताप करने को तैयार हैं, तो निगरानी के तहत उन्हें कलीसिया में रहने की अनुमति दी गई। मगर हुआ यह कि वे फिर से मुसीबत और बाधाएँ पैदा करने लगीं, अगुआओं और कर्मियों पर हमले और उनकी आलोचना करने लगी थीं। झाओ और लियु अक्सर को अक्सर अगुआओं और कर्मियों की गलतियाँ निकालतीं और उनकी निंदा करतीं, कलीसिया के भीतर अराजकता पैदा करतीं और पश्चात्ताप करने के लिए तैयार नहीं होती थीं। उनके निरंतर व्यवहार को देखकर यह स्पष्ट था कि उनमें बुरे लोगों का प्रकृति सार है। इसका एहसास होने पर, मैंने सोचा : “इस बार मुझे उन्हें पूरी तरह से उजागर करके उन पर पाबंदी लगानी होगी। मैं उन्हें बुराई करने और कलीसिया में बाधा नहीं डालने दे सकती।” मगर फिर मैंने यह भी सोचा : “उन्हें अगुआओं में गलती ढूँढ़ना और मुसीबत खड़ी करना पसंद है। अगर उन्होंने मुझे कोई गलत बात कहते या मेरी जबान फिसलते पकड़ लिया, तब क्या होगा?” मैंने सोचा कि कैसे जब मैं पहले एक मसीह-विरोधी के मामले पर कार्रवाई कर रही थी, तब उस मसीह-विरोधी ने दो बार मेरी रिपोर्ट की थी। अगर झाओ और लियु ने मेरी रिपोर्ट की और हालात के तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया, तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या उन्हें लगेगा कि मेरे साथ कुछ तो गलत है या मैं नकली अगुआ हूँ, क्योंकि बार-बार मेरी रिपोर्ट की गई थी? इस वजह से मुझे बरखास्त कर दिया गया, तो क्या होगा? इस बारे में मैंने जितना सोचा उतना ही अधिक डर लगा, और मैं उनका सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। उस वक्त मेरे पास और भी बहुत से काम थे, इसलिए मैं रिपोर्ट पत्र पर कार्रवाई को टालती चली गई।
करीब दस दिन बाद, वरिष्ठ अगुआओं ने उस रिपोर्ट पत्र को लेकर मेरी प्रगति के बारे में जानने के लिए लिखा। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं अभी तक झाओ हुई और लियु यिंग के साथ संगति नहीं कर पाई हूँ, तो अगुआओं ने मुझे जल्द से जल्द मामले को निपटाने के लिए कहा। मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने फौरन हालात को नहीं सँभाला, तो यह मेरी बहुत बड़ी गैर-जिम्मेदारी होगी, इसलिए मैंने झाओ और लियु को पत्र लिखकर दोनों से मिलने का समय तय करने का फैसला किया ताकि उनके बुरे व्यवहार की पुष्टि कर सकूँ। मैं हैरान रह गई जब अगले ही दिन मुझे उनका एक और पत्र मिला, जिसमें चेन मो पर वास्तविक कार्य न करने और वास्तविक मुद्दों को हल न करने का आरोप लगाया गया था। पत्र की सामग्री में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया था और कुछ के बारे में पूछताछ करके पुष्टि करने की जरूरत थी। यह देखकर कि वे कितनी बुरी हैं और कैसे उन्होंने अपने रवैये में अडिग रहते हुए चेन मो की रिपोर्ट की थी और उसे फँसाया था, मुझे थोड़ा डर लगा; मैंने सोचा : “आमने-सामने बैठकर उजागर किए जाने पर अगर उन्होंने मुझ पर हमले किए तो मैं क्या करूँगी? अगर उन्होंने मेरे काम में गलती निकाली या पूरी तरह से तथ्यों की गलतबयानी करते हुए रिपोर्ट पत्र लिखा तो क्या होगा?” इस बारे में मैंने जितना सोचा उतनी ही ज्यादा डर गई। खुद को असहाय महसूस करते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “प्रिय परमेश्वर, कलीसियाई जीवन में बाधा खड़ी करने वाले बुरे लोगों से जूझते हुए, मैं जानती हूँ कि मुझे उचित कदम उठाकर उन्हें उजागर करना चाहिए, ताकि कलीसिया के कार्य की रक्षा हो सके, मगर मैं आतंकित और डरी हुई हूँ। मुझे सत्य के अभ्यास का मार्ग दिखाओ ताकि मैं इन बुरे लोगों के आगे बेबस न रहूँ।” फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा : “मसीह-विरोधियों का स्वभाव बहुत ही शातिर होता है। अगर तुम उनकी काट-छाँट करने या उन्हें उजागर करने की कोशिश करोगे तो वे तुमसे नफरत करेंगे और जहरीले साँप की तरह तुम पर अपने दाँत गड़ा देंगे। तुम चाहे कितनी भी कोशिश करो, उन्हें बदल नहीं पाओगे या उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे। जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम्हारा सामना होता है तो क्या तुम लोगों को डर लगता है? कुछ लोग डर जाते हैं और कहते हैं, ‘मुझमें उनकी काट-छाँट करने की हिम्मत नहीं है। वे जहरीले साँपों की तरह बहुत ही खौफनाक हैं और अगर वे अपनी कुंडली में मुझे लपेट लें तो मैं खत्म ही हो जाऊँगा।’ ये किस तरह के लोग हैं? उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, वे किसी काम के नहीं हैं, वे मसीह के अच्छे सैनिक नहीं हैं और वे परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते। तो जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम लोगों का सामना हो, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? अगर वे तुम्हें धमकाते हैं या तुम्हारी जान लेने की कोशिश करते हैं तो क्या तुम्हें डर लगेगा? ... लोगों को हमेशा यह डर रहता है कि मसीह-विरोधी किसी बात का फायदा उठाकर उनसे बदला ले लेंगे। लेकिन क्या तुम परमेश्वर को अपमानित करने और उसके द्वारा ठुकराए जाने से नहीं डरते? अगर तुम्हें डर है कि कोई मसीह-विरोधी तुम्हारे खिलाफ बदला लेने के मौके का फायदा उठा सकता है, तो उस मसीह-विरोधी के बुरे कर्मों के सबूत इकट्ठा करके उसकी रिपोर्ट करो और उसे उजागर करो? ऐसा करने से, तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों की स्वीकृति और समर्थन प्राप्त करोगे, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर तुम्हारे अच्छे कर्मों और न्यायपूर्ण कार्यों को याद रखेगा। तो, क्यों न ऐसा करें? परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हमेशा परमेश्वर के आदेश को ध्यान में रखना चाहिए। बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को स्वच्छ करना शैतान के खिलाफ युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई है। अगर यह लड़ाई जीत ली जाती है, तो यह एक विजेता की गवाही बन जाएगी। शैतानों और राक्षसों के खिलाफ लड़ाई एक अनुभवजन्य गवाही है जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के पास होनी चाहिए। यह एक सत्य वास्तविकता है जो विजेताओं के पास होनी चाहिए। परमेश्वर ने लोगों को बहुत सारा सत्य प्रदान किया है, इतने लंबे समय तक तुम्हारी अगुआई की है और तुम्हें इतना कुछ दिया है, ताकि तुम गवाही दे सको और कलीसिया के कार्य की रक्षा करो। ऐसा लगता है कि जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी बुरे कर्म करते हैं और कलीसिया के कार्य में बाधा डालते हैं, तो तुम डरपोक बनकर पीछे हट जाते हो, हाथ खड़े कर भाग जाते हो—तुम किसी काम के नहीं हो। तुम शैतानों को नहीं हरा सकते, तुम गवाह नहीं बने हो और परमेश्वर तुमसे घृणा करता है। इस महत्वपूर्ण क्षण में तुम्हें मजबूती से खड़े होकर शैतानों के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहिए, मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को उजागर करना चाहिए, उनकी निंदा कर उन्हें कोसना चाहिए, उन्हें छिपने की कोई जगह नहीं देनी चाहिए और उन्हें कलीसिया से निकाल बाहर करना चाहिए। केवल इसे ही शैतान पर विजय पाना और उनकी नियति को खत्म करना कहा जा सकता है। तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक हो, परमेश्वर के अनुयायी हो। तुम चुनौतियों से नहीं डर सकते; तुम्हें सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करना चाहिए। विजेता होने का यही अर्थ है। अगर तुम चुनौतियों से डरकर और बुरे लोगों या मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरकर उनसे समझौता कर लेते हो, तो तुम परमेश्वर के अनुयायी नहीं हो और तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं हो। तुम किसी काम के नहीं हो, तुम तो सेवाकर्मियों से भी कमतर हो” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे बेचैन कर दिया—क्या मैं ठीक उन बेकार अभागे इंसानों जैसी नहीं थी जिनके बारे में परमेश्वर ने बताया है? यह देखकर कि कलीसिया में मौजूद कुकर्मी कलीसियाई जीवन में बाधा डाल रहे थे, अगुआ के तौर पर उन्हें उजागर कर उन पर पाबंदी लगाने का कदम उठाना मेरा काम था, ताकि कलीसिया के कार्य की रक्षा कर सकूँ। लेकिन ऐसे अहम पल में मैंने डरकर किनारा कर लिया। यह जानते हुए भी कि झाओ और लियु अक्सर तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करती थीं, लोगों की गलतियाँ ढूँढ़ती थीं और उन्होंने पहले मुझ पर हमले किए थे, मुझे डर लगा कि अगर मैंने उनको नाराज कर दिया तो वे फिर से मेरे लिए मुसीबत खड़ी करेंगी और मुझसे बदला लेंगी। इसलिए, खुद को बचाने के लिए मैंने इस मुद्दे पर बात करना टाल दिया; उन्हें अगुआओं और कर्मियों की आलोचना और उन पर हमले कर कलीसियाई जीवन में बाधा डालते रहने दिया। इसमें मेरी गवाही कहाँ थी? क्या मैं कुकर्मियों का बचाव करके कलीसिया के हितों को नुकसान नहीं पहुँचा रही थी? परमेश्वर ऐसे व्यवहार से घृणा करता है! इसका एहसास होने पर मुझे खुद से और अपने बेहद स्वार्थी बर्ताव से नफरत हो गई। मैं एक बेकार अभागी इंसान बनकर नहीं रह सकती, अपने कर्तव्य से पल्ला झाड़कर संघर्ष से दूर नहीं भाग सकती। मुझे कोई कदम उठाकर कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी थी।
अगले दिन, मैंने झाओ और लियु को बुलाया। मुझे देखते ही वे मुझसे बहस करने लगीं : “तुम क्या काम कर रही हो? क्या तुम नकली अगुआ के मामले पर कार्रवाई कर रही हो? क्या अगुआओं और कर्मियों ने तुम्हें यहाँ हमारे साथ संगति करने भेजा है?” जब मैंने उन्हें बताया कि मैं रिपोर्ट पत्र की बातों की पुष्टि करने यहाँ आई हूँ, तो वे फिर से चेन मो पर हमला करने और उसकी आलोचना करने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने लगीं। उन्होंने दावा किया कि वह अक्सर सभाओं में हिस्सा नहीं लेती है, भाई-बहनों की समस्याएँ हल नहीं करती और नवागंतुकों की देखरेख करने में विफल रही है। वे अभी भी यही शिकायत कर रही थीं कि कैसे सिंचन उपयाजक नवागंतुकों के साथ सभा करने के लिए समय पर नहीं आता है, और कहा कि चेन मो वास्तविक कार्य नहीं करती है। उन्होंने तो चेन मो पर यह आरोप लगाकर उसे बदनाम भी किया कि जब उन्होंने उसकी कुछ कमियों का जिक्र किया तो उसने उनकी निंदा की थी और उन्हें दबाया था। वे इतनी दबंग थीं कि मैं फिर से संकोच करने लगी : “उनमें मानवता नहीं है और वे हमेशा मुसीबत खड़ी करती हैं। अगुआओं और उपयाजकों ने चेन मो के बारे में उनके साथ कई बार संगति की थी। पर वे इस बात को नहीं भूलतीं। अगर मैंने आमने-सामने उन्हें उजागर किया, तो वे गुस्सा हो जाएँगी और फिर न जाने वे क्या कर बैठें।” मैं बहुत बेचैन हो गई और इस रिपोर्ट पत्र पर कार्रवाई करने के लिए आने पर पछतावा भी होने लगा। मैंने मन-ही-मन सोचा : “मैं बस उच्च स्तरीय अगुआओं को पत्र लिखकर हालात के बारे में बता सकती हूँ और उन्हें इस मामले से निपट लेने देती हूँ। इस तरह मुझे झाओ और लियु का सामना नहीं करना पड़ेगा और इस बारे में परेशान नहीं होना पड़ेगा।” इसलिए, मैं उनके सवालों का बेपरवाही से जवाब देकर झटपट वहाँ से निकल गई। फिर मैंने रिपोर्ट पत्र की पुष्टि के साथ ही झाओ और लियु के व्यवहार के बारे में उच्च-स्तरीय अगुआओं को एक पत्र लिखा। दो दिन बाद अगुआओं ने वापस मुझे लिखा : “तुमने हमें झाओ हुई और लियु यिंग की मौजूदा समस्या के बारे में बताया, मगर तुमने यह नहीं बताया कि इस मसले से निपटने की तुम्हारी योजना क्या है। तुमने बस मामले को हम पर छोड़ दिया है। इन हालात पर तुम्हारी सोच क्या है?” इसे पढ़कर मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने पहले ही स्थापित कर दिया था कि झाओ और लियु सार रूप से कुकर्मी हैं; यह देखते हुए कि वे लगातार दूसरों में दोष ढूँढ़ती हैं, उनकी आलोचना और उन पर हमले करती हैं, उन्होंने कलीसियाई जीवन में बाधा डाली पर फिर भी पश्चात्ताप करने से इनकार किया। अगर उन्हें कलीसिया में बने रहने दिया जाता, तो कलीसिया के कार्य में व्यवधान और भी गंभीर हो जाता। सिद्धांत के अनुसार, उन्हें फौरन कलीसिया से दूर कर दिया जाना चाहिए था, पर खुद को बचाने के लिए मैंने यह जिम्मेदारी वरिष्ठ अगुआओं पर डाल दी। मैं सचमुच कितनी धोखेबाज थी।
बाद में, परमेश्वर के वचनों के इन दो अंशों को पढ़कर मुझे अपने कर्मों की प्रकृति और परिणामों की बेहतर समझ हासिल हुई। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “हम अक्सर मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के बारे में संगति और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, इस बात पर चर्चा करते हैं कि उन्हें कैसे परखा और पहचाना जाए, यह सब सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करने और लोगों को बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के खिलाफ विवेकशील बनाने के उद्देश्य से किया जाता है, ताकि वे उन्हें उजागर कर सकें। इस तरह, परमेश्वर के चुने हुए लोग अब मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह या परेशान नहीं होंगे, और वे शैतान के प्रभाव और बंधन से मुक्त हो सकते हैं। हालाँकि, कुछ लोगों के दिलों में अभी भी सांसारिक आचरण के फलसफे मौजूद हैं। वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को पहचानने की कोशिश नहीं करते; बल्कि, वे खुशामदी लोगों की भूमिका निभाते हैं। वे मसीह-विरोधियों के खिलाफ नहीं लड़ते, उनके साथ स्पष्ट सीमाएँ तय नहीं करते, और अपने हितों की रक्षा करने के लिए एक कमजोर, बीच का रास्ता चुनते हैं। वे इन राक्षसों—इन बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों—को परमेश्वर के घर में बने रहने देते हैं, राक्षसों को पाल-पोसकर खतरे को न्योता देते हैं। वे इन राक्षसों को बेतहाशा कलीसिया का काम बिगाड़ने और भाई-बहनों को उनके कर्तव्य निभाने से बाधित करने देते हैं। ऐसे लोग क्या भूमिका निभाते हैं? वे मसीह-विरोधियों की ढाल और उनके साथी बन जाते हैं। भले ही तुम लोग मसीह-विरोधियों की तरह वे चीजें नहीं कर सकते या वही बुरे कर्म नहीं कर सकते, मगर तुम लोग उनके बुरे कर्मों में हिस्सेदार हो—और तुम्हारी निंदा की जाती है। तुम मसीह-विरोधियों को बर्दाश्त करते हो और उन्हें आश्रय देते हो, उनके खिलाफ बिना कोई कार्रवाई किए या कोई कदम उठाए उन्हें अपने आस-पास तबाही मचाने देते हो। क्या तुम लोग मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों में भागीदार नहीं हो? यही कारण है कि कुछ झूठे अगुआ और खुशामदी लोग मसीह-विरोधियों के साथी बन जाते हैं। जो कोई भी मसीह-विरोधियों को कलीसिया के काम में बाधा डालते हुए देखता है, मगर उन्हें उजागर नहीं करता या उनके साथ स्पष्ट सीमाएँ तय नहीं करता है, वह उनका अनुचर और साथी बन जाता है। उसमें परमेश्वर के प्रति समर्पण और निष्ठा की कमी होती है। परमेश्वर और शैतान के बीच लड़ाई के महत्वपूर्ण क्षणों में वह शैतान की तरफ खड़े होकर मसीह-विरोधियों की रक्षा करता है और परमेश्वर को धोखा देता है। ऐसे लोगों से परमेश्वर घृणा करता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। “हर कलीसिया में खुशामद करने वाले कुछ लोग होते हैं। इन खुशामदी लोगों को कुकर्मियों द्वारा चुनावों में हेरा-फेरी करने और उनमें गड़बड़ करने की बिल्कुल भी पहचान नहीं होती है। भले ही कुछ लोगों को थोड़ी सी पहचान हो, वे इसे अनदेखा कर देते हैं। कलीसियाई चुनावों में उठने वाले मुद्दों के प्रति उनका रवैया यह होता है, ‘अगर चीजें किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं करती हैं, तो उन्हें यूँ ही छोड़ दो।’ उन्हें लगता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन अगुआ बनता है, कि इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब तक वे खुशी-खुशी अपना दैनिक जीवन जी सकते हैं, तब तक वे ठीक रहते हैं। तुम इस तरह के लोगों के बारे में क्या सोचते हो? क्या ये सत्य से प्रेम करने वाले लोग हैं? (नहीं।) ये किस किस्म के लोग हैं? ये खुशामदी लोग हैं, और इन्हें छद्म-विश्वासी भी कहा जा सकता है। ये लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं; वे सिर्फ एक आसान जीवन जीना चाहते हैं, और दैहिक सुख-सुविधाओं का लालच करते हैं। वे बेहद स्वार्थी और बेहद चालाक होते हैं। क्या समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं? चाहे कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में हो, चाहे पद सँभालने वाला व्यक्ति कोई भी हो, वे बहुत पसंद किए जाते हैं, वे अपने सामाजिक संबंधों को सफलतापूर्वक सँभाल सकते हैं, और बड़े आराम से रह सकते हैं; चाहे कोई भी राजनीतिक आंदोलन छिड़ जाए, वे उसमें नहीं उलझते हैं। ये किस किस्म के लोग हैं? ये सबसे धोखेबाज, सबसे चालाक लोग हैं, जिन्हें ‘धूर्त व्यक्ति’ और ‘दानवों’ के रूप में जाना जाता है। वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीवन जीते हैं, उनमें लेश मात्र भी सिद्धांत नहीं होता है। जो भी सत्ता में होता है, वे उसी की सेवा करते हैं, उसी की खुशामद करते हैं, उसी के गीत गाते हैं। वे अपने वरिष्ठों को बचाने के अलावा कुछ नहीं करते हैं, और उन्हें कभी भी नाराज नहीं करते हैं। उनके वरिष्ठ चाहे कितने भी बुरे कर्म क्यों न करें, वे न तो उनका विरोध करते हैं और न ही उनका समर्थन करते हैं, बल्कि अपने विचारों को अपने दिल की गहराइयों में छिपाए रखते हैं। चाहे सत्ता में कोई भी हो, उन्हें काफी पसंद किया जाता है। शैतान और शैतान राजा इस तरह के व्यक्ति को पसंद करते हैं। शैतान राजा इस तरह के व्यक्ति को क्यों पसंद करते हैं? क्योंकि वह शैतान राजाओं के मामलों को बिगाड़ता नहीं है और उनके लिए बिल्कुल भी खतरा नहीं बनता है। इस किस्म का व्यक्ति अपने आचरण में सिद्धांतहीन होता है, और अपने आचरण के लिए उसके पास कोई आधार नहीं होता, और उसमें ईमानदारी और गरिमा का अभाव होता है; वह बस समाज के रुझानों का अनुसरण करता है और शैतान राजाओं के सामने सिर झुकाता है, उनकी पसंद के अनुसार खुद को ढाल लेता है। क्या कलीसिया में ऐसे भी लोग नहीं हैं? क्या ऐसे लोग विजेता हो सकते हैं? क्या वे मसीह के अच्छे सैनिक हैं? क्या वे परमेश्वर के गवाह हैं? जब कुकर्मी और मसीह-विरोधी अपने सिर उठाते हैं और कलीसिया के कार्य में विघ्न डालते हैं, तो क्या ऐसे लोग उठ खड़े हो सकते हैं और उनके खिलाफ जंग छेड़ सकते हैं, उन्हें उजागर कर सकते हैं, पहचान सकते हैं और त्याग सकते हैं, उनके बुरे कर्मों का अंत कर सकते हैं और परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं? यकीनन वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। ये धूर्त लोग वे नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर पूर्ण बनाएगा या जिन्हें वह बचाएगा। वे कभी भी परमेश्वर के लिए गवाही नहीं देते हैं या उसके घर के हितों को बनाए नहीं रखते हैं। परमेश्वर की नजर में, ये उसका अनुसरण करने वाले या उसके प्रति समर्पण करने वाले लोग नहीं हैं, बल्कि वे लोग हैं जो आँख मूंदकर मुसीबत खड़ी करते हैं, और शैतान के गिरोह के सदस्य हैं—ये वही लोग हैं जिन्हें वह अपना कार्य पूरा करने के बाद हटा देगा। परमेश्वर ऐसे दुष्टों को सँजोकर नहीं रखता है। उनके पास न तो सत्य है और न ही जीवन है; वे जानवर और शैतान हैं; वे परमेश्वर के उद्धार के और उसके प्रेम का आनंद लेने के लायक नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर ऐसे लोगों को बड़ी आसानी से त्याग देता है और हटा देता है, और कलीसिया को उन्हें छद्म-विश्वासियों के रूप में फौरन बाहर निकाल देना चाहिए” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (19))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि जब मसीह-विरोधी और कुकर्मी लोग कलीसियाई जीवन और कलीसिया के कार्य में बाधा खड़ी करते हैं, तब परमेश्वर यह देखता है कि लोग कलीसिया के हितों की रक्षा करने का चुनाव करते हैं या खुद के हितों की रक्षा का। अगर वे खुद की रक्षा करने का विकल्प चुनते हैं और कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को कलीसिया के काम में गड़बड़ करने और बाधा डालने देते हैं, तो परमेश्वर की नजरों में वे लोग धूर्त, कपटी, स्वार्थी और नीच हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को पूर्ण नहीं बनाता है और यहाँ तक कि उनकी निंदा करके हटा देता है। परमेश्वर के वचनों पर मनन करके मुझे बहुत दुःख हुआ। मैं अच्छी तरह जानती थी कि झाओ हुई और लियु यिंग लगातार कलीसियाई जीवन में बाधा डाल रही थीं, और अगुआओं पर हमले कर उनकी आलोचना करती थीं, जिसके कारण अगुआ अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे थे और कलीसिया के कार्य में अड़चन आ रही थी। हालाँकि मैं इन शैतानी फलसफों के अनुसार जी रही थी, जैसे कि “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “समझदार लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं, वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं,” और “परेशानी जितनी कम हो उतना अच्छा है,” और परिणामस्वरूप मैं उनके कुकर्मों और गड़बड़ियों को साफ तौर पर देखने के बाद भी उन्हें उजागर करने और उन पर पाबंदी लगाने के लिए कदम उठाने में विफल रही। मुझे चिंता थी कि अगर मैंने उन्हें नाराज कर दिया तो वे मेरी गलतियाँ ढूँढ़ने लगेंगी और मेरी रिपोर्ट करके बदला लेंगी, इसलिए मैं लगातार उन्हें उजागर करने को टालती रही और अपने दायित्व से पल्ला झाड़ती रही; यहाँ तक कि मैंने अपनी जिम्मेदारी वरिष्ठ अगुआओं पर थोप दी। इस तरह, मुझे लगा कि मैं उन्हें नाराज करने से बच सकती हूँ और खुद की रक्षा कर सकती हूँ—मैं कितनी स्वार्थी और धोखेबाज थी! एक अगुआ के तौर पर, कलीसियाई जीवन में बाधा डाले जाने पर उचित कदम उठाकर कुकर्मियों को उजागर करना मेरा दायित्व था, ताकि भाई-बहनों की रक्षा की जा सके, पर मैं अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रही थी; वफादारी दिखाना तो दूर की बात थी। इन एहसास के जरिए आखिर मैंने देखा कि शैतान के जहर को अपने जीने के तरीके पर हावी होने देने से मुझमें मानवता का नामोनिशान तक नहीं बचा था, मुझमें विवेक या अंतरात्मा नाम की चीज ही नहीं थी। मैंने प्रभु यीशु की इन बातों को याद किया : “जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है, और जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह बिखेरता है” (मत्ती 12:30)। परमेश्वर और शैतान के बीच युद्ध में, जो परमेश्वर के साथ नहीं खड़े होते, वे शैतान के साथ खड़े होते हैं—बीच की कोई जगह नहीं होती। फिर भी, कुकर्मियों के साथ निपटने में मैंने चालाकी दिखाने की कोशिश की, अपना काम वरिष्ठ अगुआओं के मत्थे मढ़ने का रास्ता चुना। मैंने बीच की जगह में खड़े होने की कोशिश की, खुद के बचाव को सिद्धांत की बात से आगे रखा। क्या यह साफ तौर पर परमेश्वर से विश्वासघात करके शैतान के साथ खड़े होने का मामला नहीं था? मैंने तो यह भी सोचा कि कुकर्मियों से निपटने में सीधे तौर पर शामिल न होकर मैं होशियारी दिखा रही हूँ, पर मैं अपनी ही चालाकी की शिकार बन गई थी। मैंने भले ही कोई बुराई न की हो और उन कुकर्मियों की तरह कलीसिया में बाधा न डाली हो, पर मैं उनकी बुराई और व्यवधान को साफ तौर पर देखकर भी फौरन उनके साथ निपटने में नाकाम रही। मैंने उनके कुकर्मों में साथ दिया और यहाँ तक कि उनका बचाव भी किया। मैंने उनके कुकर्मों में भागीदारी निभाई थी! मेरी अंतरात्मा, मेरी मानवता कहाँ थी! मैं इंसान कहलाने के लायक नहीं थी! इन सबका एहसास होने पर मुझे अपने किए पर पछतावा हुआ। मैं अपना कर्तव्य निभाने और नेक कर्म इकट्ठा करने में विफल रही। इसके उलट, मैं तो अपने कुकर्मों का पिटारा बना रही थी, और मैं अगर इसी तरह चलती रहती, तो परमेश्वर मुझे ठुकराकर निकाल देता।
इसके बाद, मैंने इस बात पर विचार किया कि मैं कुकर्मियों से इतनी ज्यादा क्यों डरती थी; और मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश देखे जिनमें मसीह-विरोधियों का सत्य प्रकट किया गया है : “वे सोचते हैं कि परमेश्वर का घर समाज की ही तरह है, जो कोई भी अडिग और दबंग है वह दृढ़ रहने में सक्षम होगा, कोई भी उन लोगों को छूने की हिम्मत नहीं करेगा जो निर्दयी, उग्र और बुरे हैं; वे यह भी मानते हैं कि जो लोग काट-छाँट को स्वीकारते हैं वे सभी अक्षम और असमर्थ हैं। उन्हें लगता है कि कोई भी उन लोगों को छूने की हिम्मत नहीं करेगा जिनके पास कुछ योग्यता है, अगर वे गलतियाँ करें तो भी कोई उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करेगा, और वे बेहद सख्त लोग हैं!” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। “परमेश्वर ने कहा है : ‘परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो।’ तुम इन वचनों पर किस हद तक विश्वास कर पाते हो? मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के खिलाफ लड़ना तुम्हारी आस्था की सीमा को प्रकट करता है। अगर तुममें परमेश्वर के प्रति सच्चा विश्वास है, तो तुममें सच्ची आस्था है। अगर परमेश्वर में तुम्हारा केवल थोड़ा-सा विश्वास है और वह विश्वास अस्पष्ट और खोखला है तो तुममें सच्ची आस्था नहीं है। अगर तुम यह नहीं मानते कि परमेश्वर इन सभी चीजों पर संप्रभु हो सकता है और शैतान परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन है, और तुम अभी भी मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से डरते हो, उन्हें कलीसिया में बुराई करते हुए, कलीसिया के काम को बाधित और बर्बाद करते हुए बर्दाश्त कर सकते हो और खुद को बचाने के लिए शैतान के साथ समझौता कर सकते हो या उससे दया की भीख माँग सकते हो, उसके खिलाफ खड़े होने और उससे लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकते हो, और तुम भगोड़े, खुशामदी और तमाशबीन व्यक्ति बन गए हो, तो तुममें परमेश्वर में सच्चे विश्वास की कमी है। परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास बस एक प्रश्नचिह्न बनकर रह जाता है, जो तुम्हारे विश्वास को बहुत दयनीय बना देता है!” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर संप्रभु है और सभी चीजों को नियंत्रित करता है। परमेश्वर के घर में, मसीह और सत्य का ही बोलबाला होता है। मसीह-विरोधी और कुकर्मी चाहे कैसे भी कलीसिया में उत्पात मचाएँ, कुकर्म करें और कलीसिया के जीवन में बाधा डालें, वे बस ऐसे औजार हैं जिनका इस्तेमाल परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों की सही-गलत का भेद पहचानने की क्षमता को निखारने में करता है। उनकी भूमिका खत्म होने के बाद परमेश्वर उन्हें एक-एक करके उजागर करता है और हटा देता है। मगर मैंने परमेश्वर के शासन और धार्मिकता को नहीं पहचाना; हमेशा कुकर्मियों के नाराज हो जाने से डरती रही। मेरा मानना था कि समाज में कोई व्यक्ति जितना अधिक दबंग और निरंकुश होगा, उसे उतनी ही कम चुनौती मिलेगी और वह उतना ही अधिक सफल होगा। मैं सोचती थी कि परमेश्वर के घर में भी ऐसा ही होता होगा, और अगर मैंने किसी कुकर्मी को नाराज कर दिया, तो यकीनन इसके परिणाम नकारात्मक होंगे। मेरे लिए परमेश्वर का घर बाकी समाज जैसा ही था जिसमें कहा जाता है, “दुश्मनों के आपस में लड़ते रहने से बेहतर है कि वे एक दूसरे से समझौता कर लें” और “किसी दुर्जन को नाराज करने से बेहतर है किसी सज्जन को नाराज करना।” इन विचारों के प्रभाव में, मैं आगे बढ़कर कलीसिया जीवन में बाधा डाल रहे इन कुकर्मियों पर विराम लगाने की हिम्मत नहीं कर पाई, क्योंकि मैं डरती थी कि वे मुझसे बदला लेंगी, मेरे बारे में अफवाहें फैलाएँगी, और नकली अगुआ बताकर मेरी रिपोर्ट कर देंगी। अगर इस वजह से मुझे बरखास्त किया गया और मैं अपना कर्तव्य करने में असमर्थ रही, तो मुझे कभी अच्छी मंजिल नहीं हासिल होगी। मैंने इन कुकर्मियों की ताकत को बहुत अधिक समझ लिया था और परमेश्वर की धार्मिकता और इस तथ्य को पूरी तरह ठुकरा दिया कि सभी चीजों पर परमेश्वर की सत्ता है। मुझे बहन चेन झेंगशिन की याद आई जिसे मैं कभी जानती थी। जब उसे एक कलीसिया में फैली अव्यवस्था के प्रकोप से निपटने का जिम्मा सौंपा गया, तो उस कलीसिया में गड़बड़ी फैला रहे कुकर्मियों ने उसे खदेड़ दिया, उस पर हमला किया और उसे सभाओं में हिस्सा नहीं लेने दिया। लेकिन उन कुकर्मी लोगों के सामने झेंगशिन जरा भी नहीं डरी—उसने उनके कुकर्मों को उजागर करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया और आखिर में सभी कुकर्मियों को कलीसिया से निष्कासित किया गया। जहाँ तक झेंगशिन की बात है, वह कुकर्मियों के हमलों से बिल्कुल नहीं डरी और कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाती रही। उसकी कहानी ने मुझे यह व्यावहारिक समझ दी कि कैसे परमेश्वर के घर में सत्य का शासन चलता है, कैसे सभी चीजों पर उसकी महारत है, और कैसे जब हम न्यायसंगत चीजें करते हैं, तब परमेश्वर हमारी सराहना करता है, हमारी रक्षा करता है और हमारा मार्गदर्शन करता है। इस रिपोर्ट पत्र के साथ मेरे अनुभव ने मुझे यह भी दिखाया कि ऐसे पत्रों की समीक्षा और पुष्टि करने के काम को कलीसिया कितनी गंभीरता से लेती है, और कैसे वह सत्य सिद्धांतों के अनुसार निष्पक्ष और धार्मिक तरीके से उन पर कार्रवाई करती है। जब झाओ हुई और लियु यिंग ने अपने रिपोर्ट पत्र में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया और चेन मो की गलतियाँ दिखाईं, कलीसिया ने उस पत्र के आधार पर सीधे उसे बरखास्त नहीं किया, बल्कि पहले ज्यादातर भाई-बहनों से उनके मूल्यांकन पर परामर्श किया और रिपोर्ट लेखकों और रिपोर्ट किए गए व्यक्ति दोनों की स्थितियों का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त किया। अगर रिपोर्ट झूठी होती, तो कलीसिया अन्याय का निवारण करती। अगर यह सही होती, तो इससे सिद्धांतों के अनुसार निपटा जाता। अतीत में, एक मसीह-विरोधी ने दो बार मेरी रिपोर्ट की थी, पर जाँच-पड़ताल में पता चला कि दोनों रिपोर्ट झूठी थीं, और इसी वजह से कलीसिया ने मुझे अपने कर्तव्य से वंचित नहीं किया। मैंने देखा कि कलीसिया सत्य सिद्धांतों के अनुसार ही सब कुछ करती है और कहानी का सिर्फ एक पक्ष सुनकर यूँ ही किसी के मामले पर कार्रवाई नहीं करती। वह किसी नेक इंसान के साथ गलत नहीं होने देती और कुकर्मियों को बचकर नहीं निकलने देती। इस बारे में सोचकर, मुझे लगा कि पहले मेरे विचार बेतुके थे—जो छद्म-विश्वासियों के विचार होते हैं। साथ ही साथ, मुझे यह भी एहसास हुआ कि यह स्थिति एक परीक्षा थी कि क्या मैं न्याय की ओर मुड़ सकती हूँ, बुराई की ताकतों से लड़ सकती हूँ या नहीं, परमेश्वर की गवाही में अडिग रह सकती हूँ या नहीं।
बाद में, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “कलीसिया में मेरी गवाही में दृढ़ रहो, सत्य पर टिके रहो; सही सही है और गलत गलत है। काले और सफ़ेद के बीच भ्रमित मत होओ। तुम शैतान के साथ युद्ध करोगे और तुम्हें उसे पूरी तरह से हराना होगा, ताकि वह फिर कभी न उभरे। मेरी गवाही की रक्षा के लिए तुम्हें अपना सब-कुछ देना होगा। यह तुम लोगों के कार्यों का लक्ष्य होगा—इसे मत भूलना” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि परमेश्वर उन लोगों से प्रेम करता है जो ईमानदार हैं और जिन्हें न्याय की समझ है। ऐसे लोग सत्य का अभ्यास करने, सिद्धांतों को कायम रखने और कलीसिया के हितों की रक्षा करने में सक्षम होते हैं, और वे लोगों के नाराज हो जाने से नहीं डरते। परमेश्वर ऐसे लोगों की ही सराहना करता है। इसका एहसास होने पर, मुझे आस्था की एक नई समझ मिली और मैं कलीसिया के हितों की रक्षा करने के लिए कदम उठाने को तैयार थी। मैंने सोचा कि कैसे पहले मैं कुकर्मियों के आगे बेबस महसूस करती थी, मैं उन्हें उजागर करने और उन पर पाबंदी लगाने की हिम्मत नहीं करती थी, और इस वजह से कलीसिया में करीब आधे साल तक अव्यवस्था बनी रही, जिससे कलीसिया के जीवन और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश पर बहुत बुरा असर पड़ा। इस बात का पछतावा मुझे जिंदगी भर रहेगा। मैं जानती थी कि इस बार मुझे सत्य का अभ्यास करना था और कायर की तरह खुद की रक्षा करने का प्रयास बंद करना था। मुझे कुकर्मियों को फौरन कलीसिया से दूर करना था और भाई-बहनों के बीच सही-गलत के भेद को बढ़ावा देना था, ताकि वे फिर से बुरे लोगों द्वारा गुमराह होकर बाधित न हों। उसके बाद, मैं झाओ हुई और लियु यिंग से मिली; और उनके बुरे कामों को उजागर करने और उनका गहन विश्लेषण करने के लिए परमेश्वर के वचनों की रोशनी में उनके निरंतर व्यवहार का हवाला दिया। ऐसा करके मुझे काफी सुकून और राहत महसूस हुई। इसके तुरंत बाद, और भाई-बहनों के मतदान के बाद दोनों कुकर्मियों को कलीसिया से हटा दिया गया। इसी के साथ कलीसिया में अव्यवस्था के एक दौर का अंत हो गया, और भाई-बहनों को कुकर्मियों का भेद करने की बहुत अच्छी पहचान हो गई। मैंने परमेश्वर की धार्मिकता के लिए तहेदिल से उसका धन्यवाद किया।
इस अनुभव से, मुझे अपनी स्वार्थी और धोखेबाज प्रकृति की थोड़ी समझ हासिल हुई; मैंने परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता की झलक देखी। मुझे सही मायनों में यह समझ आ गया कि कैसे परमेश्वर के घर में सत्य और धार्मिकता का शासन चलता है, और कैसे कोई भी बुरा व्यक्ति यहाँ अपने पाँव नहीं जमा सकता। मुझे यह भी एहसास हुआ कि सत्य का अभ्यास करके और कलीसिया के हितों की रक्षा करके ही हम परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हो सकते हैं और सुकून महसूस कर सकते हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!