76. बर्बर यातना की रात
अप्रैल 2006 में, एक दिन मैं ईसाइयों के एक ग्रुप में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने गया था। पर उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। उसके बाद, मैं सुसमाचार के प्रचार के लिए दोबारा उनके पास गया, लेकिन उन्होंने मेरे पीछे एक कुत्ता लगा दिया। कई दिनों बाद, जब मैं दफ्तर में था, तो दो पुलिसवाले सादे कपड़ों में मेरे दफ्तर आए और मुझे अपने उस समय के निवास स्थान पर ले चलने के लिए ज़ोर-जबर्दस्ती करने लगे। मेरी समझ में आ गया कि उन ईसाइयों ने जरूर मेरी रिपोर्ट कर दी होगी। मैं काफी चिंतित और भयभीत महसूस कर रहा था। मैं जानता था कि अगर उन्हें मेरे अपार्टमेंट में परमेश्वर के वचनों की किताबें मिल गईं तो वे जरूर मुझे गिरफ्तार कर लेंगे। मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा था, “हे परमेश्वर, अगर ये लोग आज सचमुच मुझे गिरफ्तार कर लेते हैं तो यह तुम्हारी अनुमति से ही होगा। मैं खुद को तुम्हारे हाथों में सौंपने के लिए तैयार हूँ। कृपया मेरी रक्षा करो और मुझे अपनी गवाही में मजबूती से डटे रहने के लिए आस्था और शक्ति दो।” मेरे निवास पर पहुँचने के बाद, वे बिना अपनी कोई पहचान दिए मेरे कमरे के पूरे सामान को खँगालने लगे और आखिर “वचन देह में प्रकट होता है” की एक प्रति, एक सुसमाचार पुस्तक और एक सीडी प्लेयर उनके हाथ लग गए। इसके बाद वे मुझे काउंटी जन सुरक्षा ब्यूरो में ले जाने के लिए निकल पड़े।
एक अधिकारी ने मुझसे पूछा, “क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हो? तुमने कितने लोगों का धर्मांतरण करवाया है? तुम्हारा अगुआ कौन है?” मैंने जवाब दिया, “हाँ, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता हूँ। पर हम अपनी मर्जी से आस्था का अभ्यास और सुसमाचार का प्रचार करते हैं। हमारे कोई अगुआ नहीं हैं।” यह सुनकर वह गुस्से से भड़क उठा और उसने मेरे पेट पर इतनी ज़ोर से ठोकर मारी कि मैं लुढ़ककर कई कदम पीछे जा गिरा। मैं जानता था कि गिरफ्तारी के बाद मैं यातना और प्रताड़ना से बच नहीं सकता। ऐसा दिन कभी-न-कभी उन लोगों की जिंदगी में जरूर आता है जो चीन में रहते हैं और परमेश्वर के विश्वासी और अनुयायी हैं। इस अग्नि-परीक्षा से निकलने के लिए मुझे परमेश्वर पर निर्भर रहना होगा—मैं शैतान के आगे घुटने नहीं टेक सकता। अधिकारी कुटिलता से मुझसे पूछताछ करने लगा, “तुम कलीसिया में कब शामिल हुए? तुम्हें ये किताबें किसने दीं? वह कहाँ रहता है?” जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो उसने मेरे हाथ पीठ के पीछे मोड़ते हुए उन्हें लोहे की एक कुर्सी से बांध दिया। तभी जन सुरक्षा ब्यूरो प्रमुख वांग अंदर आते हुए चिल्लाया, “यह तुम क्या कर रहे हो? इसे फौरन खोलो!” फिर वह मुस्कुराते हुए मेरी तरफ आया और मेरा कंधा थपथपाते हुए नरमी और संजीदगी से बोला, “ओल्ड कॉमरेड, मैं तुम्हारे साथ अच्छे-से-अच्छा सलूक चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि तुम्हारा काम आसान नहीं रहा है। अगर तुम हमें वह सब बता दोगे जो तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में जानते हो, तो तुम्हें हजारों युआन का इनाम मिलेगा।” मैं फौरन भाँप गया कि यह शैतान की चालाकी भरी चाल थी। अधिकारी मुझे अपने जाल में फाँसने की कोशिश कर रहा था, ताकि मैं कलीसिया के बारे में सभी सूचनाएँ दे दूँ, परमेश्वर के साथ विश्वासघात करूँ, और इनाम के पैसे के लिए अपने भाई-बहनों को धोखा दूँ। मैंने मन-ही-मन सोचा, “अगर ये लोग मुझे सोने का पहाड़ भी दे देंगे तो भी मैं नहीं झुकने वाला। मैं कलीसिया के हितों के साथ कभी गद्दारी नहीं करूंगा।” यह देखकर कि मैं आश्वस्त नहीं हुआ था, अधिकारी ने आगे कहा, “अगर तुम जो जानते हो वो बता दो तो हम तुम्हें अपने मुनाफे का एक हिस्सा भी देंगे।” मुझे उससे वितृष्णा-सी होने लगी और मैंने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब उसने देखा कि मैं कुछ भी बताने वाला नहीं हूँ, तो वह अचानक खूंखार हो उठा और गुर्राते हुए बहुत सख्त स्वर में बोला, “इस बेचारे को नहीं पता कि इसका भला किसमें है। इसके साथ जो भी करना चाहिए करो।” और वह दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकल गया। एक अधिकारी ने मुझे धमकाते हुए कहा, “अगर तुम ईमानदारी से हमें नहीं बताओगे कि तुम क्या जानते हो तो तुम्हारे साथ अच्छा नहीं होगा।” यह कहते ही उसने मेरे गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और ठोकर मारकर मुझे नीचे गिरा दिया। इसके बाद मेरे हाथ वापस पीछे बांधते हुए मुझे लोहे की कुर्सी से जकड़ दिया। मैं थोड़ा डर गया कि पता नहीं अब मुझे क्या यतनाएँ दी जाने वाली हैं। मैं मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करने लगा, “हे परमेश्वर, मैं जीवित रहूँ या आज पुलिस के हाथों मारा जाऊँ यह पूरी तरह तुम्हारे हाथ में है। कृपया मुझमें आस्था और शक्ति का संचार करो—मुझे अपने भाई-बहनों को धोखा देने और तुम्हारे साथ विश्वासघात करने से बचा लो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे अचानक दानिएल की कथा याद आने लगी। दानिएल को शेर की माँद में फेंक दिया गया था। पर उसमें आस्था थी, वह प्रार्थना करता रहा और परमेश्वर पर निर्भर रहा। परमेश्वर ने शेर के जबड़े बंद कर दिए और उसे दानिएल को कोई नुकसान पहुंचाने से रोक दिया। मैं जानता था कि मुझे भी परमेश्वर में आस्था रखनी चाहिए और अपनी गवाही में मजबूती से डटे रहना चाहिए, फिर चाहे पुलिस मुझे कैसी भी यातना क्यों न दे।
इसके बाद, वे एक बार फिर मुझसे वही सवाल पूछने लगे, पर मैंने अब भी कोई जवाब नहीं दिया। वे मुझे घसीटते हुए एक बरामदे में ले गए, मेरे सामने परमेश्वर के वचनों की पाँच-छह किताबें रख दीं, और मेरे गले में एक तख्ती टांग दी जिस पर लिखा था, “एक कुपंथ का सदस्य।” उन्होंने मेरी एक तस्वीर खींची, मेरे फिंगर प्रिंट लिए, और मुझे एक गुप्त यातना-कक्ष में ले गये। कमरे में घुसते ही मुझे अपना खून जमता हुआ महसूस हुआ—कमरा हर तरह के यातना उपकरणों से भरा हुआ था। वेल्डेड स्टील से बना एक ऊंचा रैक था, एक टाइगर चेयर थी, और पाँवों में पहनाने की जंजीरें थीं, साथ ही, हर तरह के यातना उपकरणों से भरे हुए दस से भी ज्यादा छोटे-बड़े बक्से थे। दीवार पर चमड़े के चाबुक, बैकलाइट रॉड, क्लैंप और दूसरे बहुत-से छोटे-छोटे यातना यंत्र थे। मैंने ऐसे उपकरण और यंत्र पहले कभी नहीं देखे थे। उस कमरे में कम-से-कम सौ यातना उपकरण थे। मेरे रोंगटे खड़े हो गए और टांगें शिथिल पड़ गईं। मैंने मन-ही-मन सोचा, “अगर मुझे यातना न देनी होती तो वे मुझे यहाँ कभी न लाते। पता नहीं मैं यहाँ से जिंदा बाहर जाऊंगा या नहीं। क्यों न मैं उन्हें थोड़ी इधर-उधर की जानकारी दे दूँ, तो शायद वे मुझे जाने देंगे और मुझे इस कक्ष में यातनाएँ नहीं झेलनी पड़ेंगी। अगर मैंने उन्हें कुछ न बताया तो वे मुझे कड़ी यातनाएँ देंगे।” तभी मुझे दानिएल के तीन दोस्तों की कथा याद आई। उन्हें धधकती हुई भट्ठी में फेंक दिया गया था, क्योंकि उन्होंने एक सुनहरी मूर्ति के आगे सिर झुकाने से मना कर दिया था, यह कहकर कि वे परमेश्वर से विश्वासघात करने के बजाय मरना पसंद करेंगे। परमेश्वर ने उन तीनों को बचा लिया और किसी पर भी जरा-सी भी आंच नहीं आई। उन्होंने मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमान प्रभुसत्ता की याद दिला दी और परमेश्वर में मेरी आस्था को नया जीवन मिल गया। मैं जानता था कि मैं जीऊँ या मरूँ, मेरी नियति परमेश्वर के हाथ में थी। चाहे वे मुझे कैसी भी यातना दें, मुझे परमेश्वर पर भरोसा रखना होगा और अपनी गवाही में मजबूती से डटे रहना होगा। इसके बाद दो युवा अधिकारी अंदर आए और उन्होंने स्टील के रैक को मेरे कद जितना ऊंचा कर दिया। फिर उन्होंने मेरे हाथों को रैक के ऊपरी डंडे से इस तरह नीचे झुला दिया कि मेरे पाँवों की उँगलियाँ फर्श को छू भर रही थीं। एक अधिकारी खूंखार स्वर में गुर्राया, “हमने तुम्हारा मुंह खुलवाने के चक्कर में अपना पूरा दिन खराब कर दिया। अब तुम्हें थोड़ा कष्ट देने की बारी है!” मेरे पूरे शरीर का वजन मेरे हाथों और बाहों पर था। मैं बहुत ज्यादा असहज महसूस कर रहा था। कुछ समय बाद मेरे हाथ और बांहों में दर्द होने लगा और धीरे-धीरे यह दर्द बढ़ता ही चला गया। ऐसा लगा मानो वे धीरे-धीरे मेरे शरीर से अलग हो रहे हों। दर्द इतना असहनीय था कि मैं कराहने और चिल्लाने लगा। मैंने दिन भर कुछ भी खाया नहीं था, और मुझे चक्कर आ रहे थे। मैं इससे ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकता था। इस भयंकर पीड़ा के बीच अचानक मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आये : “तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : ‘क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।’ तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि वह अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने के लिए अपनी सेवा में बड़े लाल अजगर का इस्तेमाल करता है। मुझे मेरी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए यातना दी जा रही थी—इस यातना का एक विशेष अर्थ था—इसलिए मुझे नकारात्मक या कमजोर महसूस करना छोड़ देना चाहिए। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा, “हे परमेश्वर! चाहे वे मुझे कैसी भी यातना क्यों न दें, या मुझे कितना भी कष्ट क्यों न हो, मैं कभी भी न अपने भाई-बहनों को धोखा दूंगा और न ही तुम्हारे साथ विश्वासघात करूंगा!” इसके बाद मुझे लगभग दो घंटे तक वहीं टंगा छोड़ दिया गया।
रात के आठ बजे के बाद चार नौजवान स्की मास्क पहने हुए कमरे में दाखिल हुए और एक ने बड़ी मक्कारी से मुझसे पूछा, “तो कैसा महसूस हो रहा है? आराम से हो न?” यह कहते ही उसने दीवार से चमड़े का चाबुक उतारा और मेरी झूलती बाहों पर तड़ातड़ बरसाने लगा। हर वार के साथ मुझे अपनी चमड़ी उधड़ती हुई महसूस हुई। दर्द बहुत भयानक और असहनीय था। उसने मुझ पर कम-से-कम पचास-साठ चाबुक बरसाए। वह थक गया तो दूसरा नौजवान शुरू हो गया। उस समय मैं थोड़ा चिंतित हो उठा कि अगर ये लोग इसी तरह चाबुक बरसाते रहे तो मेरी बाहें बेकार हो जाएंगी और मैं एक सामान्य जीवन नहीं जी पाऊँगा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं सब कुछ तुम्हारे हाथों में सौंपता हूँ। मैं अपाहिज हो जाऊँगा या नहीं, मैं तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करता हूँ।” थक जाने के बाद ही उन्होंने चाबुक बरसाने छोड़े और मुझे रैक से नीचे उतारा। मेरा पूरा शरीर लड़खड़ा रहा था और मैं फर्श पर गिर पड़ा। पर उनका काम अभी पूरा नहीं हुआ था। उन्होंने मुझे टाइगर चेयर से बांध दिया और मुझसे एक बार फिर पूछताछ करने लगे। एक ने गुर्राते हुए कहा, “अगर तुमने सच न उगला तो यह न सोचना कि तुम यहाँ से जिंदा निकल पाओगे! हमें ईमानदारी से सब बता दो तो हम तुम्हें जाने देंगे। सीसीपी तुम्हारे सख्त खिलाफ है—यह तुम विश्वासियों को अपना कट्टर दुश्मन समझती है। वे तुम सबको खत्म कर देना और मार डालना चाहते हैं। यह सीसीपी की नीति है—वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वाले तुम लोगों को बिना कुछ सोचे मौत के घाट उतार सकते हैं!” मैंने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया : “मुझे कुछ भी नहीं मालूम। ऐसा कुछ भी नहीं जो मैं तुम्हें बता सकूँ।” यह देखकर कि मैं अब भी सहयोग नहीं कर रहा, उन्होंने मुझे टाइगर चेयर से उतारकर फर्श पर लिटा दिया। फिर उन चारों ने अपने-अपने हाथ में बैकलाइट की लगभग 30 इंच लंबी और 3-4 इंच मोटी छड़ी उठा ली, जिसके अंदर लोहे की गेंदें भरी हुई थीं, और मुझे दोनों तरफ से घेर कर मेरे शरीर पर धड़ाधड़ बरसाने लगे। हरेक प्रहार के साथ मेरा शरीर काँप उठता। मैं दर्द से छटपटाता हुआ चीखता-चिल्लाता रहा। मेरा दम घुट रहा था और मैं बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रहा था। इस भयानक दर्द को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। उन्होंने सबसे ज्यादा मेरे नितंबों पर प्रहार किए—और उन्होंने रुकने का नाम नहीं लिया। मुझे लगा जैसे वे मार-मारकर मेरी अंतड़ियाँ बाहर निकाल देंगे। इस असहनीय पीड़ा को किसी तरह बर्दाश्त करते हुए मैं गुस्से से चिल्लाया, “तुम लोग मुझे मार डालना चाहते हो! मेरी जान ले लेना चाहते हो! तुम जाकर हत्यारों और दंगाइयों को क्यों नहीं पकड़ते? मैंने कौन-सा कानून तोड़ा है जो मुझे इतनी क्रूर सजा दे रहे हो? क्या तुम लोग सचमुच इंसान ही हो?” एक अधिकारी यह सुनकर और भी भड़क उठा और इतने जोर से प्रहार करने लगा कि उसकी छड़ी के दो टुकड़े हो गए और स्टील की गेंदें फर्श पर इधर-उधर लुढ़कती चली गईं। यह देखकर वे सब जोर-जोर से हंसने लगे। फिर एक अधिकारी दाँत पीसते हुए मुझसे बोला, “तुमने कोई कानून नहीं तोड़ा? सीसीपी किसी भी धार्मिक आस्था की इजाजत नहीं देती। चीनी लोगों को सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी में विश्वास करना चाहिए। तुम सीसीपी के दुश्मन हो और वे तुम्हें खत्म करके रहेंगे। तुम सबको जान से मारकर तुम्हारा नामोनिशान मिटा देंगे!” उसके यह कहते ही उन लोगों ने एक बक्से में से दो लंबे चाबुक निकाले और मुझसे बोले, “अब भी कुछ नहीं बताओगे हमें? तो फिर एक अलग तरह का मजा चखो—देखते हैं तुम्हें इसका स्वाद कैसा लगता है!” उन्होंने मुझे खड़ा होने का हुक्म दिया और फिर उनमें से दो पूरे जोर से मुझ पर लंबे चाबुक बरसाने लगे। दर्द के मारे मेरा बुरा हाल था। वे दोनों थक गए तो दूसरी जोड़ी ने मोर्चा संभाल लिया और प्रहार करना जारी रखा। इस तरह बारी-बारी से उन्होंने चार बार लगभग आधे-आधे घंटे तक चाबुक बरसाए। आखिर में मैं अधमरा-सा फर्श पर गिर पड़ा। उन्होंने मुझे उठाकर खड़ा किया और एक बार फिर अपने सवाल दागने लगे। मैं कुछ न बोला तो वे चाबुक बरसाते हुए मेरी टांगों पर ठोकरें मारने लगे। ऐसा लगता था जैसे मेरी टांगें टूट गई हों। मैं थोड़ा कमजोर महसूस करने लगा और सोचने लगा, “अगर मैंने इन्हें कुछ न बताया तो ये मुझे यातना देने के लिए सभी तरह के तरीके आजमाते रहेंगे। हो सकता है ये मुझे मार ही डालें। पर अगर मैंने मुंह खोला तो मैं यहूदा बन जाऊंगा और परमेश्वर को दिया गया मेरा वचन झूठा साबित हो जाएगा। इससे परमेश्वर को दुख होगा और इससे भी बढ़कर उसमें कटु घृणा पैदा हो जाएगी।” मैं मन-ही-मन एक उधेड़बुन में उलझा रहा—मैं कुछ बताऊँ या नहीं? तभी मुझे प्रभु यीशु के सलीब पर चढ़ाए जाने की याद आई और परमेश्वर के ये वचन सहसा मेरे ख्यालों में कौंध गए : “यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापमय देह के सदृश बन गया। वह मृत्यु एवं अधोलोक की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कैसे करें)। समूची मानवजाति के छुटकारे के लिए प्रभु यीशु सलीब पर चढ़ने, अपमान और यातना झेलने, और अपने जीवन के त्याग के लिए तैयार हो गया। मानवजाति के लिए परमेश्वर का प्रेम इतना महान था! मन में यह ख्याल आते ही, मुझे बहुत हिम्मत मिली और मैंने मन-ही-मन एक संकल्प किया : “मैं यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगा, भले ही इसका मतलब यातनाएँ सहते-सहते मर जाना हो!” इसके बाद, उन्होंने मुझे धमकाना जारी रखा और कहा, “अगर तुमने वह सब न बताया जो हम जानना चाहते हैं तो हम तुम्हें पीट-पीटकर मार डालेंगे और तुम्हें शमशान भेज देंगे, जहां तुम्हारे शरीर को जलाकर राख़ कर दिया जाएगा। या फिर हम तुम्हारे शरीर को ईंटों के भट्ठे में डाल देंगे, जहां तुम्हें पिघलाकर तुम्हारी ईंटें बना ली जाएंगी।” मैं थोड़ा सहम गया, पर मैं यह भी जानता था कि मैं उनकी मारपीट से बचूँगा या नहीं, यह उनके हाथ में नहीं था। सब कुछ परमेश्वर के हाथ में था, और मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के आगे समर्पण के लिए तैयार था। तभी अचानक ही मुझे एहसास हुआ कि कलीसिया की किताबें अभी भी मेरे पास थीं, और मेरे किसी भी भाई-बहन को पता नहीं था कि मैं गिरफ्तार हो चुका हूँ। अगर ये किताबें पुलिस के हाथ लग गईं तो कलीसिया को भारी नुकसान हो जाएगा। यह सोचते ही मुझे बहुत दहशत होने लगी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मेरा जीवन महत्वपूर्ण नहीं है, पर कलीसिया की किताबों का रखवाला होने के नाते मुझे उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना होगा। लेकिन पता नहीं मैं यहाँ से जिंदा निकल पाऊँगा या नहीं। मैं ये सभी चिंताएँ तुम्हारे हाथों में सौंपता हूँ और मेरे लिए कोई रास्ता खोलने की विनती करता हूँ।” प्रार्थना पूरी होते ही मानो एक चमत्कार हुआ। मुझे चाबुक की मार का दर्द महसूस होना बंद हो गया। मैं जानता था कि मेरे कष्ट को दूर करने के लिए परमेश्वर मेरी मदद कर रहा था। मैंने मन-ही-मन उसका बहुत आभार व्यक्त किया। जब उन लोगों ने देखा कि मैं बिना हिले-डुले वहाँ पड़ा हूँ और चीख-चिल्ला नहीं रहा हूँ तो उन्होंने झट से मारपीट बंद कर दी। उनमें से एक ने मेरी नाक के नीचे उंगली रखकर मेरी सांस की जांच की और फिर घबराहट भरे स्वर में बोला : “इसकी हालत बहुत खराब है। इसे यहाँ से बाहर निकालो—अगर यह हमारी निगरानी में मर गया तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी।” मैं जानता था कि परमेश्वर ने मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया था। वह मुझ पर नजर रखे हुए था, वरना मैं निश्चित ही वहाँ मर जाता।
इसके बाद, दो अधिकारी मुझे घसीटते हुए इमारत से बाहर ले गए और मुझे एक खेत में फेंककर वापस लौट गए। मैं बेसुध जमीन पड़ा रहा। रात के लगभग दो बजे होंगे। उस समय मेरे दिमाग में एक ही ख्याल था : मुझे भाई-बहनों को बताना होगा कि दिन चढ़ने से पहले किताबों को कहीं और पहुंचा देना जरूरी है, ताकि वे पुलिस के हाथ न लग सकें। मैंने उठने की कोशिश की, पर मैं बुरी तरह घायल था। मैंने अपनी बची-खुची ताकत बटोरकर पूरा जोर लगाया, पर मैं खड़ा न हो सका। मैं चिंता और दहशत में घिर गया और परमेश्वर से मुझे शक्ति देने की प्रार्थना करने लगा। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों से मुझे आस्था मिली। लगभग आधे घंटे बाद मैंने फिर से खड़ा होने की कोशिश की, और चार-पाँच कोशिशों के बाद आखिर मैं खड़ा हो गया। अभी भोर नहीं फूटी थी, इसलिए सड़क पर अभी भी घुप्प अंधेरा था। मैं किसी तरह खुद को घसीटते हुए और भयंकर दर्द को बर्दाश्त करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। मैं भाई चेंग यी के घर की तरफ जा रहा था। वहाँ पहुँचते ही मैंने उसे सब कुछ बताया और उसे भाई-बहनों से संपर्क करके परमेश्वर के वचनों की किताबें जल्दी-से-जल्दी किसी सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचा देने के लिए कहा। उसे सूचित करने के बाद मैं किसी तरह लड़खड़ाता हुआ अपने घर पहुंचा। रात के तीन बज रहे थे। मैंने लाइट जलाई तो घर को बहुत अस्त-व्यस्त हालत में पाया। मेरे घर को क्या हुआ? कंबल, तकिये, चादरें और मेरे सारे कपड़े फर्श पर इधर-उधर फैले पड़े थे। पूरे घर का कोना-कोना छान मारा गया था। मैंने देखा कि मेरा पूरा शरीर जगह-जगह से बुरी तरह घायल था। मेरी टांगों की चमड़ी पतलून के अंदरूनी हिस्से से चिपक गई थी। मेरे मलाशय का लगभग चार इंच का हिस्सा अपनी जगह से खिसककर थोड़ा ऊपर उभर आया था और वहाँ खून जम गया लगता था। मैं पीड़ा से बिलबिला रहा था और सांस भी मुश्किल से ले पा रहा था। मुझे सचमुच लग रहा था कि मैं अपनी अंतिम सांसें ले रहा हूँ। सभी चोटें बहुत गहरी थीं। मैं न हिल पा रहा था, न एक घूंट पानी भी हलक से नीचे उतार पा रहा था। मैंने मन-ही-मन सोचा : “क्या मैं ऐसी चोटों के बाद भी बच पाऊँगा? बच भी गया तो क्या एक अपाहिज की जिंदगी जीऊँगा? क्या मैं खुद अपनी जिंदगी चला पाऊँगा? मेरी पत्नी और बच्चे सीसीपी के झूठे प्रचार के बहकावे में आकर मेरी आस्था के खिलाफ हो चुके हैं। अगर मैं अपाहिज हो गया तो क्या वे मेरी देखभाल करेंगे...।” मैंने जितना सोचा उतना ही दुखी होता चला गया। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आ गए : “संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। सचमुच ही मेरी नियति परमेश्वर के हाथों में थी। यह फैसला परमेश्वर को करना था कि मैं जीऊँगा या मरूँगा, या अपाहिज होऊँगा या नहीं। मैं जानता था कि मुझे खुद को परमेश्वर के हाथों में सौंप देना चाहिए और उसे ही सब व्यवस्थाएँ चलाने देनी चाहिए। अगर मैं अपाहिज भी हो गया तो भी समर्पण करूंगा। अगर मेरी पत्नी और बच्चे मेरी देखभाल न भी करें, तो भी मैं जानता था कि परमेश्वर मेरे साथ था, और मेरे भाई-बहन मेरी देखभाल करेंगे। तो मैं किसी तरह जिंदगी गुजार ही लूँगा। यह ख्याल आते ही मेरी यंत्रणा और व्यथा कुछ कम हो गई।
उस दिन भाई यू झीजियन सबेरे चार बजे मेरे घर पहुँच गया। अंदर आते ही उसने मुझे बिस्तर पर लेटे और चलने-फिरने से लाचार पाया तो उसने कंबल हटाकर मेरा हाल देखा। मेरी पतलून खून के धब्बों से भरी थी और मेरी टांगों में गहरे घावों के साथ-साथ जगह-जगह से चमड़ी उधड़ी हुई थी। मेरे मलाशय और मांस के टुकड़े मेरी पैंट से चिपके थे। यह सब देखकर उसकी आँखें छलक आईं। वह एक बर्तन में गर्म पानी लाकर रोते-रोते मेरे पास बैठ गया। उसने इधर-उधर से काटकर मेरी पतलून हटाई और फिर थोड़ा गर्म पानी डालकर दबाते हुएधीरे-धीरे मेरी चमड़ी से पतलून के चिपके हुए हिस्सों को अलग किया। घुटनों के नीचे की मेरी चमड़ी इतनी उधड़ चुकी थी कि नीचे की हड्डियाँ दिखाई दे रही थीं। आज भी मैं उस यातना को याद करने की हिम्मत नहीं कर पाता। हालांकि घाव बहुत गहरे थे, पर मैं इस डर से अस्पताल जाने की हिम्मत नहीं कर सका कि कहीं पुलिस मुझे अपने पहचान-पत्र के साथ वहाँ पाकर फिर से न पकड़ ले। इससे मेरे भाई-बहनों को भी खतरा हो सकता था। मैं उस समय अपनी देखभाल करने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं था। भाई झीजियन गिरफ्तारी का खतरा उठाते हुए रोज मेरे घर आता था और मेरी देखभाल करता था। वह नया-नया आस्था में आया था और मुझे चिंता थी कि मेरी पिटाई के नतीजों को देखकर कहीं वह भयभीत होकर कमजोर न पड़ जाए। मैंने उससे कहा : “इस अत्याचार से गुजरना अच्छा ही रहा—इससे मुझे शैतान की असलियत को देखने का मौका मिला है।” मुझे थोड़ा आश्चर्य में डालते हुए झीजियन ने कहा : “मेरी चिंता न करो। अब मैंने खुद देख लिया है कि सीसीपी परमेश्वर का विरोध करने वाली राक्षसी है, जो मानवजाति के साथ क्रूरता से पेश आती है। हमें परमेश्वर की गवाही देने के लिए दृढ़ता से खड़ा होना होगा।” उस हफ्ते मैं अपने मलाशय के उभरे हुए हिस्से को हर रोज नमक के पानी से साफ करता रहा और देसी दवाएं भी लेता रहा। आखिर गिरफ्तारी वाले दिन के लगभग आठ दिन बाद उभार ठीक हो गया और दो हफ्ते बाद मैं फिर से चलने-फिरने लगा।
इसके बाद, पुलिस हर 15 दिन बाद मुझसे पूछताछ कर परेशान करने आती रही। हर बार वे मुझसे कलीसिया के बारे में सवाल करते और पूछते कि क्या मैं अब भी भाई-बहनों के संपर्क में हूँ। वे मुझे धमकाते हुए कहते : “अगर तुम साफ-साफ नहीं बताओगे तो हम तुम्हारा केस कभी बंद नहीं करेंगे!” मैं मन-ही-मन कहता : “मैं पहले ही देख चुका हूँ कि तुम लोग असल में क्या हो। तुम चाहे कितनी ही जोर-जबर्दस्ती करो या धमकियाँ दो, मैं तुम्हारे आगे कभी नहीं झुकूँगा। भूल जाओ कि मैं कभी परमेश्वर को धोखा दे सकता हूँ!” 2006 में मेरी गिरफ्तारी से लेकर 2008 तक के दो बरसों में पुलिस कम-से-कम 25 बार मेरे पास आई। क्योंकि वे लगातार मेरी निगरानी कर रहे थे, इसलिए मैं भाई-बहनों से मिलने की हिम्मत नहीं कर सका, इस डर से कि कहीं वे किसी मुसीबत में न फंस जाएँ। इसलिए मुझे गाँव में अपने पारिवारिक घर में लौटना पड़ा।
बाद में, मेरा मलाशय और पीठ पूरी तरह ठीक हो गए, पर टांगों की चोटों के दीर्घकालीन दुष्प्रभाव मुझे निरंतर परेशान करते रहे। मेरी दाईं टांग में अब भी काफी सूजन और कमजोरी है और बारिश या बादलों के मौसम में मेरी चाल लड़खड़ाने लगती है। सबसे बुरा दुष्प्रभाव मेरी चमड़ी पर दिखाई देता है। घावों की पपड़ियाँ उतरने के बाद नीचे की चमड़ी में काले बदरंग निशान उभर आए और मेरा पूरा शरीर ऐसे बदसूरत निशानों से भरा हुआ है। इसके अलावा कई जगह गांठें भी बन गई हैं, जिनके छोटे-छोटे सफेद फफोलों में बहुत परेशान करने वाली खुजली होती रहती है। जब मैं शावर लेता हूँ या बहुत गर्मी होती है तो ये फफोले खुले घावों में नमक पड़ने की तरह दुखने लगते हैं। कई बार खुजली इतनी ज्यादा होती है कि मुझे नदी किनारे से इकट्ठे किए गए कंकड़ उस जगह पर रगड़ने पड़ते हैं या चाकू से मवाद को बाहर निकालना पड़ता है, तब जाकर थोड़ी राहत मिलती है। पिछले 15 बरसों से मैं दिन-रात यह तकलीफ झेल रहा हूँ। इस बीच मैं प्राइवेट क्लीनिकों में बहुत से चीनी चिकित्सा पद्धति के डॉक्टरों से भी मिला हूँ और अपने इलाज के लिए बिना किसी सुधार के 10,500 युआन खर्च कर चुका हूँ। ऐसी अजीबोगरीब शारीरिक तकलीफ झेलना और भाई-बहनों के संपर्क में रहकर एक सामान्य कलीसिया जीवन न जी पाना मेरे लिए बहुत ज्यादा दुखदायी है। मैं अक्सर भीगी आँखों से परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह हमेशा मेरे साथ खड़ा रहे और मुझे आस्था और शक्ति दे। अगर मुझे परमेश्वर की सुरक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त न होता तो मैं उन अंधकारपूर्ण दिनों को कभी नहीं झेल सकता था।
मेरी गिरफ्तारी को 15 वर्ष हो चले हैं। मैं इसके बारे में सोचता हूँ तो मुझे एहसास होता है कि भले ही मैंने एक पैमाने तक काफी कष्ट सहे हों, पर मुझे बड़े लाल अजगर की असलियत को देखने और उसके राक्षसी सार को सचमुच पहचानने का भी अवसर मिला है। मैं अब परमेश्वर के वचन पढ़ता हूँ जिनमें कहा गया है : “दिल में हजारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, हजारों साल का पाप दिल पर अंकित है—इससे कैसे न घृणा पैदा होगी? परमेश्वर का बदला लो, उसके शत्रु को पूरी तरह से समाप्त कर दो, उसे अब और बेकाबू न दौड़ने दो, और उसे अत्याचारी के रूप में शासन मत करने दो! यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दुष्ट के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट बूढ़े शैतान से विद्रोह करने दे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करें, तो मैंने सचमुच ही बिल्कुल साफ-साफ देखा है कि सीसीपी कितनी क्रूर और बर्बर है। वे धार्मिक आजादी का दावा करते हैं, पर गुप्त रूप से ईसाइयों को अंधाधुंध गिरफ्तार और प्रताड़ित करते रहते हैं। वे परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार के काम को पूरी तरह दबा देना चाहते हैं और चीन को एक नास्तिक देश बना देना चाहते हैं। वे राक्षसी चालबाज हैं, जो सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। मैं सचमुच ही सीसीपी का कुरूप चेहरा देख चुका हूँ और उन सबसे घृणा करते हुए उनके विरुद्ध विद्रोह कर चुका हूँ। इस अनुभव से गुजरकर, मुझे यह एहसास हुआ है कि परमेश्वर किस तरह हर समय मेरा ध्यान रखता है और मेरी रक्षा करता है। हर बार जब मैं पीड़ा महसूस करता था या कमजोर पड़ता था तो परमेश्वर के वचन मुझे निर्देश देकर मेरा मार्गदर्शन करते थे, मुझे आस्था और शक्ति देते थे। मैंने मानवजाति के लिए परमेश्वर के सच्चे प्रेम का और उसकी चमत्कारिकता और सर्वशक्तिमत्ता का अनुभव किया। इससे परमेश्वर में मेरी आस्था अत्यंत सुदृढ़ हो गई। आगे का रास्ता कितना ही दुष्कर क्यों न हो, या मेरे शरीर को कितना ही कष्ट क्यों न हो, मैं बिल्कुल अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करता रहूँगा!