98. आस्था के लिए मैंने जो उत्पीड़न झेला
मई 2003 में, एक शाम 8 बजे की बात है, मैं अभी-अभी काम से घर आयी थी। तभी तीन पुलिस अधिकारी घड़धड़ाते हुए घर में घुस आये और मेरे हाथ पीछेकर हथकड़ी पहना दी। डर के मारे मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। उनमें से एक अधिकारी ने मेरी तलाशी ली और मेरा पेजर जब्त कर लिया। मैंने पूछा, “मैंने कौन सा कानून तोड़ा है? आप मुझे गिरफ्तार क्यों कर रहे हैं?” उसने कठोरता से देखते हुए कहा, “देश तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखने की अनुमति नहीं देता। यह कम्युनिस्ट पार्टी की नीति के खिलाफ है। इसी वजह से तुम्हें गिरफ्तार किया जा रहा है!” आगे कुछ और बताये बिना उन्होंने मुझे कार में धकेल दिया। पिछली सीट पर बैठी मैं काफी डरी और घबराई हुई थी, मुझे कोई अंदाजा भी नहीं था कि आगे कैसी बर्बरता मेरा इंतज़ार कर रही है। छोटे आध्यात्मिक कद की होने के कारण मुझे चिंता थी कि मैं यातनाएं झेल नहीं पाऊँगी और यहूदा बनकर भाई-बहनों को धोखा दे दूंगी। मैंने मन-ही-मन बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरी देखरेख करने, मुझे आस्था और शक्ति देने की विनती थी। फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और मेरे द्वारा तुम्हें दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को मजबूती और मुझे हिम्मत दी। मेरी गिरफ्तारी परमेश्वर की अनुमति से हुई थी और पुलिस की डोर परमेश्वर के हाथों में थी। जब परमेश्वर मेरे साथ था तो मुझे किस बात का डर होता। इस तरह से सोचने पर मुझे उतना डर नहीं लगा। मैंने मन-ही-मन संकल्प लिया कि पुलिस चाहे मुझे कैसी भी यातना क्यों न दे, मैं कभी भाई-बहनों को धोखा नहीं दूंगी या परमेश्वर से विश्वासघात नहीं करूंगी।
जब हम पुलिस थाने पहुंचे, तो एक महिला अधिकारी ने कपड़े उतारकर मेरी तलाशी ली और फिर मुझे दूसरे कमरे में ले जाकर गर्म करने वाली पाइप से मेरी पीठ टिकाकर हथकड़ी लगा दी। रात को 11 बजे के बाद, पुलिस को मेरे घर से कुछ पेजरों के साथ परमेश्वर के वचनों की कुछ किताबें मिलीं। क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड के चीफ ली ने मुझे पेजरों दिखाते हुए पूछा, “ये तुम्हें किसने दिये? तुम किन लोगों के संपर्क में थी?” जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसने बेरहमी से मुझे कई तमाचे जड़ दिये। मुझे तारे दिखने लगे और मेरा चेहरा पीड़ा से जलने लगा। फिर उसने मेरे पैर के अंगूठों को जोर से कुचल दिया, जिससे ऐसा दर्द हुआ मानो किसी ने मुझे सुई चुभो दी हो। दर्द के मारे मेरे पूरे शरीर से पसीना छूटने लगा। गुस्से में, मैंने उससे कहा, “मैं जीवन में सही मार्ग पर चलने वाली विश्वासी हूँ। इससे कौन-सा कानून टूटता है? क्या चीन के कानून ने आस्था रखने की आजादी नहीं दी है? मुझे गिरफ्तार करने और मारने का आपको क्या अधिकार है?” एक अधिकारी ने कहा, “तुम कितनी नादान हो! आस्था की आजादी की बात विदेशियों को खुश करने के लिए है। कम्युनिस्ट पार्टी नास्तिक है, इसलिए देश तुम विश्वासियों को दबाकर पूरी तरह मिटा देना चाहता है! अगर तुम जो कुछ भी जानती हो, हमें नहीं बताओगी, तो कल तक जिंदा नहीं रहोगी। तुम यहाँ अपने पैरों पर चलकर आई होगी, पर यहाँ से जाओगी पीठ के बल!” यह कहकर वे कमरे से निकल गये। मैं सोच रही थी कि उन्हें मेरे घर से इतनी सारी चीजें मिली हैं, तो वे मुझे आसानी से जाने तो नहीं देंगे। मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि अगर मैं चुप रही तो वे मुझे कैसी यातनाएं देंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि मैं जीवित नहीं रहूँगी—वे मुझे मार डालेंगे। इससे मुझे सच में काफी चिंता हुई, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे मुझे आस्था और शक्ति को कहा। अगली सुबह चार अधिकारी एक टाइगर चेयर लेकर आये। राक्षसी हाव-भाव के साथ ऑफिसर ली ने कहा, “मैं दिखाता हूँ, चुप रहने का क्या अंजाम होता है! आज तुम्हें टाइगर चेयर का स्वाद चखने को मिलेगा!” फिर उन्होंने मुझे कुर्सी पर धकेल दिया, लोहे के कुंडों में फँसाकर मेरे हाथ जकड़ दिए और हथेलियाँ ऊपर की ओर कर दीं। मैं कुर्सी पर बैठी थी और मेरा शरीर पीछे की ओर झुका हुआ था, पैर नीचे की ओर लटके थे और हथकड़ी के कुंडे मेरी कलाइयों में गड़ते जा रही थे जिससे काफी दर्द हो रहा था। जल्दी ही मेरे हाथ गुब्बारों की तरह फूल गये। वे बैंगनी रंग के होकर पूरी तरह सुन्न पड़ गये। जैसे-जैसे दिन बीतता गया, मेरा शरीर बर्फ की तरह ठंडा पड़ गया और मेरे हाथ बहुत ज्यादा सूज गये। मुझे काफी चिंता हो रही थी और डर भी लग रहा था : अगर ऐसे ही चलता रहा, तो क्या मेरे हाथ बेकार नहीं हो जाएंगे? अगर ऐसा हुआ, तो इसके बाद मैं कोई काम कैसे कर पाऊँगी? इस बारे में मैंने जितना सोचा उतनी ही परेशान हो गई। मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि यह तकलीफ कब खत्म होगी। मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं बहुत कष्ट में हूँ। कृपा करके मुझे शक्ति दो और राह दिखाओ ताकि मैं मजबूती से डटी रह सकूं।” तभी मुझे परमेश्वर की यह बात याद आयी : “परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर के इरादों या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। चाहे जो हो, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर आस्था होनी चाहिए, परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए, बिल्कुल अय्यूब की तरह। ... कठिनाई और शोधन के समय लोगों को विश्वास की आवश्यकता होती है, और विश्वास वह चीज है जिसके बाद शोधन होता है; शोधन और विश्वास को अलग नहीं किया जा सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे इस पीड़ा और तकलीफ को बर्दाश्त करने की शक्ति दी, मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी ही होगी। पुलिस मुझे यातनाएं दे रही थी, मुझे परास्त करने के लिए मेरी शारीरिक कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रही थी, ताकि मैं परमेश्वर से विश्वासघात करूँ। परमेश्वर भी मेरी आस्था को पूर्ण करने और कष्ट सहकर डटे रहने के मेरे संकल्प को परखने के लिए इन हालात का इस्तेमाल कर रहा था। सब कुछ परमेश्वर के हाथों में और उसकी सत्ता के अधीन ही था, जिसमें मेरे हाथों का बेकार होना या न होना भी शामिल था। मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी थी और उस पर आश्रित रहना था, ताकि उसके लिए अपनी गवाही में मजबूती से डटी रह सकूं। इस विचार ने मुझे मजबूती थी, मुझे पता भी नहीं चला कब मेरे हाथों की तकलीफ गायब हो गई। मैंने अपने दिल की गहराइयों से परमेश्वर को धन्यवाद दिया!
तीसरे दिन सुबह एक बार फिर पुलिस ने मुझसे पूछताछ शुरू की। उनमें से एक ने मेरी ओर देखकर कहा, “यह मत सोचो कि हमें कुछ नहीं पता। हम करीब दो महीनों से तुम्हारे घर की निगरानी कर रहे हैं। तुम्हारे घर में कई लोग आते-जाते रहे हैं!” फिर उसने दिखाया कि मेरे घर में जाने वाले लोगों ने किस तरह के कपड़े पहने थे, वे कितने लंबे थे और वे कैसी साइकिल पर आये थे। मैं अवाक रह गई। उन्होंने काफी समय से मेरे घर को निगरानी में रखा हुआ था और उन्होंने जिन लोगों के बारे में बताया था, वे सब कलीसिया अगुआ या उपयाजक थे। मैं एक भी भाई या बहन के साथ धोखा नहीं कर सकती थी, पर पुलिस ने पहले ही हालात पर अच्छी पकड़ बना ली थी, अगर मैंने कुछ भी नहीं बताया, तो वे मुझे किसी भी हाल में यहाँ से जाने नहीं देंगे। उन्होंने मेरे लिये किस तरह की यातनाओं का इंतजाम कर रखा था, इसका मुझे कोई अंदाजा तक नहीं था। शायद मुझे थोड़ी और यातना सहनी पड़े? मैं तीन दिन से पुलिस की हिरासत में थी, तो मेरी बहनों को इस बारे में पता चल ही गया होगा और वे छिप गई होंगी। मैंने अंदाजा लगाया कि पुलिस उन्हें नहीं ढूंढ पायेगी, तो मैंने कहा, “वे सभी मेरी बहनें थीं।” तब पुलिस अधिकारी ने पूछा, “क्या वे विश्वासी थीं?” मैंने बिना कुछ सोचे झट से कहा, “वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं।” मेरे ऐसा कहते ही पुलिस मेरी बहनों को खोजने निकल पड़ी। मुझे काफी अपराध बोध हुआ। मैंने यह कैसे मान लिया कि वे विश्वासी हैं? मुझे कम तकलीफ सहनी पड़े, इस कारण अपनी बहनों के साथ धोखा करने से क्या मैं यहूदा बन गई? अगर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर अन्य भाई-बहनों को फंसा दिया गया, तो क्या कलीसिया के कार्य को बहुत बड़ा नुकसान नहीं पहुंचेगा? अगर उन्हें इस बार गिरफ्तार नहीं किया गया, तब भी ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उन्हें ऐसे ही छोड़ देगी। वे छिपकर भागती हुई जिंदगी जीने को मजबूर होंगी। इस बारे में मैंने जितना सोचा उतना ही बुरा लगा, और तब मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है। मुझे तुम लोगों को बता देना चाहिए : जो कोई मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई मेरे प्रति निष्ठावान रहा है, वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के न्याय के वचनों ने मुझे और भी बुरा महसूस कराया। परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कोई अपराध सहन नहीं करता है। परमेश्वर उन लोगों को ठुकरा देता है जो उसे धोखा देते हैं। मैंने अपनी दो बहनों को धोखा दिया था, ऐसा करके मैंने शर्मनाक यहूदा जैसा बर्ताव किया था और अपनी गवाही खो दी थी। मुझे खुद से नफरत हो गई कि मैं ऐसी स्वार्थी और नीच थी, मुझमें ज़रा-सी भी मानवता नहीं थी। मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना कर प्रायश्चित्त करते हुए कसम खाई कि अब चाहे पुलिस मुझसे कितनी भी पूछताछ करे और कितनी भी यातनाएं दे, मैं किसी भी भाई या बहन को धोखा नहीं दूंगी। उस दिन शाम को, ऑफिसर ली 13 तस्वीरें लेकर आया और उनमें से उन बहनों की पहचान करने को कहा। मैंने कहा कि मैं उनमें से एक को भी नहीं पहचानती। फिर उसने एक और बहन की तस्वीर निकाली और कहा, “इसे तो तुम जानती हो, है न? उसने बताया है कि तुम उसे जानती हो।” मैं सोच रही थी कि भले ही उसने कहा हो कि वो मुझे जानती है, पर मैं नहीं कह सकती कि मैं उसे जानती हूँ। मैंने पहले ही उन्हें अपनी दो बहनों के बारे में बता दिया था, तो अब मैं एक को भी धोखा नहीं दूंगी और उन्हें मेरी तरह यातना सहने के लिए मजबूर नहीं करूंगी। मैंने दृढ़ता से कहा, “मैं उसे नहीं जानती।” ऑफिसर ली चिल्लाया, “अगर तुमने नहीं बताया, तो कल तुम्हारी हालत और भी बुरी होगी!”
चौथे दिन दोपहर बाद, एक अधिकारी चार डंडे लेकर आया, हर डंडा एक इंच मोटा और एक फीट लंबा था। फिर उन्होंने खिड़कियों की जाली पूरी तरह बंद कर दीं, ताकि मैं कमरे में मौजूद किसी भी चीज को देख न सकूं। मेरा कलेजा हलक में आ गया, धड़कन बहुत तेज़ हो गई और पैरों में ताकत न रही। मैं नहीं जानती थी कि वे मुझे यातनाएं देने के लिए कौन से साधन का इस्तेमाल करने वाले हैं, मैं इसे बर्दाश्त कर भी पाऊँगी भी या नहीं। मैंने अपने दिल में बार-बार परमेश्वर को पुकारा, उससे मेरी रक्षा करने की गुहार लगाईं, ताकि मैं मजबूती से डटी रह सकूं। थोड़ी ही देर में छह अधिकारी अंदर आये, मुझे टाइगर चेयर से निकालकर मेरे हाथों को मेरी पीठ के पीछे कर दिया और हथकड़ी लगा दी। दो अधिकारी एक टेबल पर खड़े हो गये और हथकड़ी पकड़कर मुझे ऊपर उठाते हुए चिल्लाया, “बताओ! तुम्हारा अगुआ कौन है?” मेरे पैर जमीन से ऊपर थे और सिर नीचे की ओर झुका हुआ था; मेरा शरीर हवा में लटका हुआ था और मैं दर्द के मारे अपने दांत भींच रही थी। जब उन्होंने देखा कि मैं कुछ भी नहीं बोल रही हूँ, तो दो अधिकारी मेरी पसलियों के दोनों बगलों में जोर से खुरचने लगे, जबकि दो अन्य अधिकारी डंडों से मेरे हाथों और पैरों पर जोर-जोर से मारने लगे। ऐसा लगा मानो मेरी पसलियों से मांस काटकर निकाला जा रहा हो और मेरे पैर खींचकर अलग किए जा रहे हों। दर्द के मारे मेरे पसीने छूट रहे थे। इसी तरह मारते-पीटते हुए उन्होंने कहा, “अगर नहीं बताओगी तो हम तुम्हें और भी जोर से मारेंगे!” मैं अपने दांत पीसती रही, पर कुछ भी नहीं कहा। दो अधिकारियों ने एक सख्त-सी चीज निकाली और उसे मेरे अंगूठे के नाखूनों में चुभा दिया, भयानक पीड़ा हुई। साथ ही साथ उन्होंने मेरे हाथों पर काफी तेज रोशनी डाली जिससे इतना दर्द हुआ कि लगा मानो वे जल रहे हों। तब लगा कि मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती, मैंने बार-बार परमेश्वर को पुकारा, उससे मुझे हिम्मत देने की गुहार लगाई। जब उन्होंने फिर से मुझे हथकड़ियों से पकड़कर ऊपर खींचा, तो मेरे हाथों से कुछ टूटने की आवाज सुनाई दी और मैं दर्द से चीख उठी, तब जाकर उन्होंने मुझे नीचे किया। फिर मुझे करीब एक घंटे तक हवा में लटकाये रखा। जब उन्होंने मुझे नीचे उतारा, तो मेरे पैरों में कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। सीधी खड़ी रहना भी नामुमकिन लग रहा था। मेरे हाथ-पैर काले-नीले पड़ गए थे और दर्द के साथ जलन भी हो रही थी। मेरी पसलियों के आस-पास की मांसपेशियों में भी जलन और भयंकर दर्द हो रहा था। मैं फर्श पर गिर गई, चल-फिर नहीं पा रही थी, शरीर में ताकत बिल्कुल नहीं बची थी, लगा जैसे मैं पूरी तरह टूटकर बिखर गई हूँ। यह बेहद दर्दनाक था। आगे पुलिस मुझे कैसी यातनाएं देगी या मैं इसे बर्दाश्त कर भी पाऊँगी या नहीं, इसका अंदाजा न होने के विचार ने मुझे दुखी और कमजोर कर दिया। मैं अपनी जीभ काटकर आत्महत्या कर लेना चाहती थी, ताकि कम से कम अपने भाई-बहनों को धोखा तो न दूं। मैं अपनी जीभ को बहुत जोर से काटा, पर यह इतना दर्दनाक था कि मेरी बर्दाश्त के बाहर हो गया। फिर मैंने सोचा, क्यों न तालू के ऊपर की पेशी को ही काटकर निकाल दूं, ताकि मेरे लिए बोलना ही नामुमकिन हो जाये। मैंने उनसे कहा कि मुझे बाथरूम जाना है। बाथरूम में मुझ पर नजर बनाये ऑफिसर को जब ऐसी आवाज सुनाई दी कि मैंजीभ पकड़कर खींच रही हूँ तो उसने कहा, “कोई बेवकूफी मत करना,” और फिर उसने मुझे वापस लाकर फिर से टाइगर चेयर पर बिठाकर हथकड़ी पहना दी। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मैंने सच में बड़ी मूर्खतापूर्ण हरकत की थी। फिर मुझे परमेश्वर की यह बात याद आई : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल और मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि राक्षसों की बर्बरता का सामना करते हुए, परमेश्वर का इरादा हमारी आस्था और समर्पण को पूर्ण करना होता होता है, ताकि हम साफ तौर पर देख सकें कि कैसे बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के खिलाफ काम करता है और इंसानों पर बर्बरता करता है, तभी हम अपने दिल की गहराइयों से उससे नफरत कर पाएंगे, उसे ठुकराएंगे और शैतान के सामने परमेश्वर के लिये अपनी गवाही में मजबूती से डटे रहेंगे। मगर परमेश्वर में मेरी आस्था बहुत थोड़ी थी, जरा-सी पीड़ा सहन करने के बाद ही मैं मौत को गले लगाकर इससे भाग जाना चाहती थी। यह किस तरह की गवाही थी? इस तरह सोचने पर अब मैंने ज्यादा दुखी महसूस नहीं किया और मेरी आस्था मजबूत हुई। वे मुझे चाहे जैसी भी यातना दें, चाहे मुझे अपनी आखिरी साँस तक इसका सामना करना पड़े, मैं परमेश्वर पर आश्रित रहकर उसके लिए अपनी गवाही में मजबूती से डटे रहना और शैतान को शर्मिंदा करना चाहती थी। मैं अपने भाई-बहनों को कभी धोखा नहीं दूंगी, परमेश्वर से कभी विश्वासघात नहीं करूंगी। जब मैंने यह संकल्प लिया, तो पुलिस दोबारा मुझसे पूछताछ करने नहीं आई। इस अनुभव से मैंने परमेश्वर की संप्रभुता और सर्वशक्तिमत्ता देखी और यह भी देखा कि बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के हाथों में बस एक प्यादा है। यह ऐसा साधन है जिसका इस्तेमाल परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण करने के लिए करता है। मैंने देखा कि इस पूरी यातना के दौरान परमेश्वर हमेशा मेरे साथ खड़ा था। वह हमेशा मेरा साथ दे रहा था, अपने वचनों से मेरा मार्गदर्शन और मेरी मदद कर रहा था, जिससे मुझे आस्था और शक्ति मिलती थी। मैं परमेश्वर के प्रेम और संरक्षण को महसूस कर सकती थी; मैंने अपने दिल की गहराइयों से परमेश्वर को धन्यवाद दिया।
कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे “सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ने” की दोषी करार देकर तीन साल की कड़ी मशक्कत वाली पुनर्शिक्षा की सजा दी। लेबर कैम्प में मुझे हर दिन 12 से 14 घंटे बेहद कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी और अगर कभी मेरा काम पूरा नहीं हो पाता तो मुझे और भी ज्यादा देर तक काम करना पड़ता था। मुझे एक कीटनाशक बनाने वाली फैक्ट्री में काम दिया गया था। चूंकि मैं कीटनाशकों की गंध बर्दाश्त नहीं कर पाती थी, तो हर दिन सिर में दर्द रहता और चक्कर आने लगते; मैं न तो अच्छे से खा पाती थी और न ही सो पाती थी। मैंने किसी और फैक्ट्री में ट्रांसफर करने के लिए आवेदन किया, पर पुलिस ने मंजूरी नहीं दी। उस वक्त मैं बहुत बुरी हालत में थी। जब मैं वहां तीन साल यानी एक हजार से ज्यादा दिन और रात बिताये जाने के बारे में सोचती थी, तो समझ ही नहीं आता था कि इन सबका सामना कैसे कर पाऊँगी। जब भी मैं काम करने जाते समय बाहर लोगों को आजाद और सहजता से घुमते-फिरते देखती थी, जबकि मेरी हालत पिंजरे में बंद पक्षी जैसी थी, मुझे काफी दुःख होता और रोने का मन करता। उसी फैक्ट्री में काम कर रही एक बहन ने मेरे साथ संगति की और हम दोनों ने धीमी आवाज़ में साथ मिलकर परमेश्वर का यह भजन गाया “विजेताओं का गीत” : “क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मेरी रोशनी का मार्गदर्शन नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय मेरी विजय के सबूत के रूप में असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा को चमकाओगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19)। इस भजन को गाकर मेरा दिल भर आया। इस उत्पीड़न ने मुझे परमेश्वर के लिए गवाही देने का मौका दिया था—यह मेरे लिए सम्मान की बात थी। कम्युनिस्ट पार्टी मेरे शरीर और मन, दोनों को खत्म कर देना चाहती थी, ताकि मैं कष्ट और पीड़ा को सहन न कर पाने के कारण परमेश्वर को धोखा दे दूं। मैं इन चालों में नहीं फंस सकती थी। हालात चाहे कितने भी मुश्किल या दयनीय थे, मुझे परमेश्वर पर आश्रित रहकर मजबूती से डटे रहना था और शैतान को नीचा दिखाना था। तब से, हर दिन शाम को उस बहन और मैंने साथ मिलकर चोरी-छिपे परमेश्वर के वचनों के भजन गाना शुरू कर दिया और जब भी मौका मिलता, हम परमेश्वर के वचनों पर संगति भी करने लगे। धीरे-धीरे, मैंने खुद को उतना दुखी महसूस नहीं किया।
बाद में मेरा पति मुझसे मिलने आया; उसे देखकर एहसास हुआ कि उसकी सेहत भी ठीक नहीं थी और वह अपने पैरों को अच्छे से घुमा-फिरा नहीं पा रहा था। मेरी गिरफ्तारी के बाद, इस डर से कि मुझे कड़ी यातनाएं दी जाएंगी, मेरे पति को खाने और सोने में भी दिक्कत होने लगी, आखिर में वह सेरिब्रोवैस्कुलर रोग की चपेट में आ गया। जब उसने डॉक्टर को दिखाया, तो उन्होंने बताया कि उसे सेरिबेलर एट्रोफी नाम की बीमारी हो गई है जिसके कारण उसके शरीर के कुछ हिस्से को लकवा मार गया है। इससे मेरे दिल को काफी चोट पहुँची और मुझे दिल की गहराइयों से उस राक्षसों के समूह, कम्युनिस्ट पार्टी से घोर नफरत हो गई। अगर वह विश्वासियों को गिरफ्तार कर उन पर अत्याचार नहीं करती, तो मुझे काफी गिरफ्तार नहीं किया जाता और मेरा पति भी बीमार नहीं होता। कुछ दिन बाद ही मेरा देवर मुझसे मिलने आया और बताया कि मेरे पति की हालत और खराब हो गई है और उसका अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रहा। यह बेहद निराशाजनक था; मैं सिर्फ यही सोचती रहती कि कब इस कैद से बाहर निकलूँगी और घर जाकर उसकी देखभाल कर पाऊँगी। फिर साल 2004 के आखिर में, मुझे अपने परिवार का एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि मेरे पति की हालत और अधिक बिगड़ गई थी जिसके कारण उसकी मौत हो गई। यह सुनकर लगा मानो आसमान टूटकर गिर पड़ा हो। मैं बहुत व्यथित थी। हमारे परिवार का सहारा चला गया था। हमारा बेटा अभी भी यूनिवर्सिटी में था और मुझे पता भी नहीं था कि वह किस हाल में है। कम्युनिस्ट पार्टी के अत्याचार के कारण हमारा अच्छा-भला और खुशहाल परिवार बर्बाद हो गया और मेरे पति की मौत हो गई। मैं बेहद कमजोर महसूस करने लगी और मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरे अंदर शिकायतों ने सिर उठाना शुरू कर दिया। आपदाएं हमेशा मुझ पर ही क्यों आती हैं? परमेश्वर मेरी रक्षा क्यों नहीं कर रहा। अपनी पीड़ा में, मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “यदि तुम देह की कमज़ोरियों को बढ़ावा देते हो, और कहते हो कि परमेश्वर अति कर देता है, तो तुम हमेशा पीड़ा का अनुभव करोगे और हमेशा उदास रहोगे, और तुम परमेश्वर के समस्त कार्य के बारे में अस्पष्ट रहोगे, और ऐसा प्रतीत होगा मानो परमेश्वर मनुष्यों की कमज़ोरियों के प्रति बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं रखता, और वह मनुष्यों की कठिनाइयों से अनजान है। और इस प्रकार से तुम हमेशा दुःखी और अकेला महसूस करोगे, मानो तुमने बड़ा अन्याय सहा है, और उस समय तुम शिकायत करना आरंभ कर दोगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी हालत का खुलासा कर दिया। जब मेरे पति की मौत हुई, तो मैंने परमेश्वर का इरादा नहीं खोजा, बल्कि अपने देह की परवाह की। मुझे लगा कि मेरे पति के न होने पर हमारे बच्चे की देखरेख करने वाला कोई न होगा और मैंने परमेश्वर को दोष दिया। मुझमें वाकई जमीर नहीं था! असल में कम्युनिस्ट पार्टी के अत्याचार ने हमारे परिवार को तोड़ा और मेरे पति की मौत की वजह भी वही थी, पर मैंने इसका दोष परमेश्वर पर डाल दिया। क्या मैं तथ्यों को तोड़-मरोड़कर बहुत ही विवेकहीन नहीं बन रही थी? उस वक्त मैंने देखा कि मेरा आध्यात्मिक कद वाकई बहुत छोटा है और मुझे परमेश्वर में सच्ची आस्था नहीं थी या मैंने सच्चा समर्पण नहीं किया था। मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, इस तरह से उजागर किए जाने पर, मुझे समझ आ गया है कि मैं कितनी विद्रोही हूँ। मैंने सिर्फ अपने देह की परवाह की, तुम्हारे दिल की बात बिल्कुल नहीं समझ पाई। परमेश्वर, मुझे राह दिखाओ ताकि मैं इन हालात में समर्पण कर पाऊँ और तुम्हारा इरादा जान सकूं।” फिर मुझे परमेश्वर के वचन याद आये : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। ... तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके, मैंने समझा कि अपनी आस्था के कारण गिरफ्तार होना और वैसी पीड़ा सहन करना दरअसल धार्मिकता की खातिर अत्याचार सहने के लिए था, उस पीड़ा में अर्थ छिपा था। इन मुश्किल हालात का सामना करते हुए, मैंने अपने विद्रोही स्वभाव और भ्रष्टता के साथ-साथ अपना असली आध्यात्मिक कद भी देखा। मुझे बड़े लाल अजगर के राक्षसी सार की भी समझ हासिल हुई—कैसे यह परमेश्वर से नफरत और उसका विरोध करता है। यह मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम था। मैंने याद किया कि कैसे अय्यूब ने इतने भयंकर परीक्षणों का सामना किया था—उसके सारे मवेशी और उसके परिवार की सारी संपत्ति चोरी हो गई, उसके बच्चे मारे गये और उसके पूरे शरीर पर फोड़े निकल आये। फिर भी उसने परमेश्वर को दोष नहीं दिया और कोई भी पापमय बात नहीं कही। आखिर में उसने कहा, “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21)। अय्यूब ने परमेश्वर के लिए जोरदार गवाही दी। इससे मुझे काफी प्रेरणा मिली और मैंने अय्यूब की मिसाल पर चलने, परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में मजबूती से डटे रहने का संकल्प लिया, चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा क्यों न सहनी पड़े। यह एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर के सामने आकर समर्पण की इच्छा से प्रार्थना की, मैं अपने परिवार से जुड़ी हर चीज परमेश्वर के हाथों में सौंपकर उसकी संप्रभुता और आयोजनों के प्रति समर्पित होने को तैयार थी।
दिसंबर 2005 के आखिर में मुझे रिहा कर दिया गया। मेरा बेटा अभी भी यूनिवर्सिटी में था और हमारा गुजारा मुश्किल से हो रहा था, इसलिए मैंने एक नौकरी ढूंढ़ ली। मगर करीब एक महीने में ही मेरे बॉस ने कहा, “पुलिस आई थी और उसने बताया कि तुम परमेश्वर की विश्वासी हो। उसने कहा कि मैं तुम्हें निकाल दूं।” यह सुनकर मुझे काफी गुस्सा आया। मुझे जेल से रिहा कर दिया गया था पर कम्युनिस्ट पार्टी अभी भी मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी—वे अभी भी मुझसे मेरा जीवन जीने का अधिकार छीन लेना चाहते थे। वे सच में बेहद नीच और दुष्ट थे! मेरा बेटा 2006 में ग्रेजुएट हो जाता, मगर चूंकि मेरी आस्था के कारण मुझे सश्रम कारावास की सजा दी गई थी, स्कूल ने इस आधार पर उसका डिप्लोमा जारी करने से इनकार कर दिया कि वह एक विषय में फेल हो गया था, हालांकि यह बस कुछ अंकों की बात थी। इसलिए उसे अपना एक साल स्कूल में दोहराना पड़ा। लेकिन अगले साल भी उन्होंने उसी आधार पर डिप्लोमा जारी करने से इनकार कर दिया। यह देखकर कि दूसरे सहपाठी दो-तीन विषय में फेल होने के बाद भी ग्रेजुएट हो गये थे, उसने अपने टीचर से इस बारे में बात की, तो टीचर ने कहा, “तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारी माँ परमेश्वर की विश्वासी है?” तब तक हमें यह अंदाजा भी नहीं था कि मेरी आस्था के कारण ही स्कूल उसे डिप्लोमा न देने के बहाने ढूंढ़ रही थी। आखिर में, उन्होंने बस उपस्थिति का प्रमाणपत्र दिया। डिप्लोमा के बिना उसके लिए नौकरी पाना मुश्किल था और वह बहुत निराश हो गया। वह हर वक्त घर में ही रहना चाहता था और बात भी नहीं करना चाहता था। उसकी ऐसी दयनीय हालत देखकर मैं बहुत परेशान हो गई। इतने सालों की पढ़ाई के बाद उसे सिर्फ इस वजह से फँसा दिया गया कि मैंने जेल की सजा काटी थी; और आखिर में उसे डिप्लोमा तक नहीं दिया गया और उसके लिए नौकरी ढूंढना भी मुश्किल हो गया। मुझे अंदर से थोड़ी कमजोरी महसूस हुई। मेरा बेटा भी एक विश्वासी था, तो हम साथ मिलकर प्रार्थना करते और परमेश्वर के वचन पढ़ते थे, और हमने यह देखा : “कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर लोगों की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक समर्पित रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे गिरफ्तार करके सताया था, जिसके कारण मेरे पति की मौत हो गई और मेरे बेटे को काम नहीं मिला। पार्टी ने हमारी आमदनी का स्रोत बंद कर दिया था और वह इन हालात का इस्तेमाल कर चाहती थी कि मैं इसके लिए परमेश्वर को दोषी ठहराऊं और उसे धोखा दूं। लेकिन परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए इन हालात का इस्तेमाल कर रहा था। अगर मैं इतनी अधिक पीड़ा सहन करते हुए अभी भी परमेश्वर का अनुसरण करने और उसके प्रति समर्पित होने को तैयार थी तो इससे पता चलता था कि मुझमें सच्ची आस्था थी। कम्युनिस्ट पार्टी हमारे लिये जीने का कोई रास्ता नहीं छोड़ना चाहती थी, मगर परमेश्वर पर जीवन में भरोसा करके और उसके पोषण और मार्गदर्शन के सहारे हम अभी भी जी सकते थे। उसके बाद, मैं और मेरा बेटा अक्सर साथ मिलकर परमेश्वर के वचन पढ़ने और संगति करने लगे; धीरे-धीरे वह अपनी निराशा की स्थिति से बाहर निकलने में कामयाब हो पाया। उसने कहा कि उसे साफ पता चल गया है कि यह सारी मुसीबत कम्युनिस्ट पार्टी के कारण आई है; यह ऐसी पार्टी है जो जिंदगियां बर्बाद करती है जबकि परमेश्वर दया और उद्धार लाता है; केवल परमेश्वर ही हमें रोशनी दे सकता है और परमेश्वर का अनुसरण करना ही जीवन का सही मार्ग है। उसने कहा कि वह सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास करना और उसका अनुसरण करना चाहता है। उसके बाद, हम दोनों जंगली औषधियां और मशरूम बाजार में बेचकर अपना गुजारा चलाने लगे, ताकि हम आसानी से सभाओं में हिस्सा ले सकें और अपना कर्तव्य निभा सकें। इस तरह, हम ज्यादा मेहनत और मशक्कत के बिना भी इतना कमाने लगे कि हमारी आजीविका आसानी से चल सके।
कम्युनिस्ट पार्टी की गिरफ्तारी और अत्याचार का अनुभव करने के बाद, मैंने इसके राक्षसी सार को पूरी तरह समझ लिया—कैसे यह परमेश्वर से नफरत और उसका विरोध करती है। यह धर्म की आजादी की गारंटी देती है, पर चोरी-छिपे सामूहिक रूप से ईसाइयों को गिरफ्तार करती है, उन्हें यातना देकर जेल में डाल देती है, यहाँ तक कि उनके परिवार के सदस्यों को दबाती और सताती है, उसने अनगिनत ईसाई परिवारों को नष्ट किया है। मुझे इससे नफरत हो गई और मैंने दिल से इसके खिलाफ विद्रोह किया—मैं जानती थी कि मैं इसकी कट्टर विरोधी हूँ। मैंने निजी तौर पर परमेश्वर के प्रेम और उसके वचनों के अधिकार को भी महसूस किया। जब मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाला गया, जब मेरे पति की मौत हुई, जब मेरे बेटे को उसका यूनिवर्सिटी डिप्लोमा नहीं मिला और जब मेरी हालत इतनी खराब थी कि मेरे पास जीवन जीने का कोई साधन नहीं था, परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी, दैहिक कमजोरी से उबरने में मेरी अगुआई की। परमेश्वर की देखरेख और संरक्षण के बिना, मैं कभी भी इन मुसीबतों से उबर नहीं पाती। मैं सच में परमेश्वर के प्रेम और उद्धार की आभारी हूँ। भविष्य में चाहे मुझे कैसी भी मुसीबत और दबाव का सामना करना पड़े, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूंगी।