99. मानसिक रोग अस्पताल में मेरी जबरन भर्ती के दिन
अगस्त 2011 में, एक सहयोगी ने मुझे परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। उन दिनों, अपने काम के फेर में, रासायनिक दवाओं के संपर्क में आने के कारण, मुझे अप्लास्टिक एनीमिया नामक खून की कमी की बीमारी हो गई, इसलिए मैं अक्सर आराम के लिए छुट्टी ले लिया करती, और मेरे पास बहुत खाली समय होता। प्रार्थना और परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं यह समझ गई कि स्वर्ग, पृथ्वी और तमाम चीजों का सृजन परमेश्वर ने ही किया और इंसान परमेश्वर से ही आया, इसलिए हमें परमेश्वर में विश्वास रखकर उसकी आराधना करनी चाहिए। मैंने यह भी जाना कि अंत के दिनों में, परमेश्वर देहधारी होकर मनुष्य को पाप से पूरी तरह बचाने के लिए वचन व्यक्त करता है, और लोग परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करके ही बचाए जा सकते हैं। इसके बाद, मैं अक्सर बैठकों में भाग लेती और परमेश्वर के वचन पढ़ती। उम्मीद नहीं थी, मगर एकाएक मेरी बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगी। यह परिणाम देखकर मेरे परिवार ने परमेश्वर में आस्था रखने में मेरा साथ दिया।
दिसंबर 2012 में, सीसीपी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को दबाने और सताने का एक नया दौर शुरू किया। तब बहुत-से भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया। एक दिन, मेरे बड़े भाई ने, जोकि जल संरक्षण ब्यूरो के उपनिदेशक थे, मुझे अपने घर बुलाया। वे बोले, “सरकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर कार्रवाई कर रही है। यह पता चलते ही कि कोई व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्य सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे सरकारी कार्यालयों से तुरंत बरखास्त कर दिए जाएँगे। फिर, उन्हें या उनके परिवार के सदस्यों को पार्टी में शामिल नहीं होने दिया जाएगा, और उनके बच्चों को सेना में शामिल नहीं किया जाएगा, यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं दिया जाएगा। अब से तू परमेश्वर में विश्वास नहीं रख सकती। अब अगर तू गिरफ्तार हो गई, तो तेरे बच्चे यूनिवर्सिटी प्रवेश परीक्षा नहीं दे पाएँगे या सेना में शामिल नहीं हो पाएँगे, क्योंकि वे राजनीतिक पृष्ठभूमि जाँच पार नहीं कर पाएँगे। तुझे अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना होगा! इसके अलावा, तेरी भाभी और मैं दोनों सरकारी विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हैं। तुझे पकड़ लिया गया, तो हम पर बुरा असर पड़ेगा। ऐसा हुआ तो भविष्य में तेरे बेटे के लिए काम की व्यवस्था कौन करेगा?” मेरी भाभी और भतीजा दोनों ही मुझे रोकने की इस मुहिम में शामिल हो गए। इससे मैं बहुत दुखी हो गई, क्योंकि मेरे बड़े भाई बचपन से ही मेरे साथ बहुत अच्छे थे, अक्सर हमारे परिवार की जरूरतों का ख्याल रखते थे। उन्होंने ही मेरी बेटी को नौकरी लगवाई थी। मैं हमेशा से उनकी आभारी थी। परमेश्वर में मेरी आस्था के कारण अगर उनकी नौकरी चली गई, तो उन्हें क्या मुँह दिखाऊँगी? और अगर पूरे परिवार को फंसा दिया गया, तो इसके लिए वे मुझसे नफरत करेंगे। यह सोचकर थोड़ी परेशान हो गई, इसलिए मुझे उनसे वादा करना पड़ा कि मैं सभाओं में नहीं जाऊँगी या सुसमाचार का प्रचार नहीं करूँगी। फिर भी मेरे बड़े भाई चिंतित थे, और जाने से पहले उन्होंने खासतौर से मेरे पति से मुझ पर बारीक नजर रखने को कहा।
इसके बाद, मेरे पति अक्सर इस डर से मुझे वर्कशॉप में देखने आते कि कहीं मैं बैठकों में तो नहीं चली गई और वे मुझे घर पर परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने देते। मुझे इस डर से चोरी-छिपे पढ़ना पड़ता कि मेरे पति को पता चल जाएगा। मुझे पुराने दिन याद आए जब मेरे परिवार के सदस्य मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने और बैठकों में भाग लेने से नहीं रोकते थे। अब, सीसीपी की ताकत के डर से, वे सब मुझे सताने को एकजुट हो गए थे, और मैं न बैठकों में जा पा रही थी, न ही सामान्य ढंग से परमेश्वर के वचन पढ़ पा रही थी। लगा, जैसे चीन में परमेश्वर में विश्वास रखना बहुत ही मुश्किल काम है। बाद में, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के संपूर्ण कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शोधित किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी काबिलियत के माध्यम से, और इस गंदे देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। “तुम लोगों के बीच एक भी व्यक्ति नहीं है जो व्यवस्था द्वारा सुरक्षित है—इसके बजाय, तुम व्यवस्था द्वारा दण्ड के भागी ठहराए जाते हो। इससे भी अधिक समस्यात्मक यह है कि लोग, तुम लोगों को समझते नहीं हैं : चाहे वे तुम्हारे रिश्तेदार हों, तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारे मित्र, या तुम्हारे सहकर्मी हों, उनमें से कोई भी तुम लोगों को समझता नहीं है। जब परमेश्वर द्वारा तुम लोगों को त्याग दिया जाता है, तब तुम लोगों के लिए पृथ्वी पर और रह पाना असंभव हो जाता है, किंतु फिर भी, लोग परमेश्वर से दूर होना सहन नहीं कर सकते हैं, जो परमेश्वर द्वारा लोगों पर विजय प्राप्त करने का महत्व है, और यही परमेश्वर की महिमा है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल के तार झनझना दिए। इस नास्तिक देश चीन में, परमेश्वर में विश्वास रखने, और जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए कानून का संरक्षण मिलना तो दूर रहा, निंदा कर हमें गिरफ्तार कर लिया जाता है, यहाँ तक कि हमारे रिश्तेदारों को भी फँसा दिया जाता है। सीसीपी वाकई एक दानव है जो परमेश्वर से नफरत करती है। चीन में, अगर कोई परमेश्वर में विश्वास रखकर उसका अनुसरण करे, तो उसका सताया जाना निश्चित है, लेकिन इस तकलीफ के जरिए ही परमेश्वर लोगों की आस्था को पूर्ण करता है। एक बार परमेश्वर का इरादा समझ लेने पर मेरा दुख कम हो गया और इस माहौल को भुगतने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने को तैयार हो गई। दो महीने बाद, मेरे पति ने भी निगरानी में ढील दे दी, मैं फिर से चोरी-छिपे बैठकों में भाग लेने लगी।
दिसंबर 2015 में, मैंने एक मित्र को सुसमाचार सुनाया। उसके परिवार को इस बारे में पता चल गया और उन्होंने मेरी शिकायत करने की धमकी दी। मेरे बड़े भाई डर गए कि मेरी गिरफ्तारी से उनकी नौकरी पर असर पड़ेगा, इसलिए उन्होंने मेरे परिवार के साथ मिलकर, वसंत पर्व के बाद मुझे एक मानसिक रोग अस्पताल में भेज दिया। उस दिन, मेरा बेटा, बेटी, भाई और बहन सभी मौजूद थे। मेरी बेटी को डिप्रेशन था, और जब हम मानसिक रोग अस्पताल के सामने से गुजरे, तो वह हाल में हुई अपनी नींद न आने की बीमारी के लिए दवा लेने के बहाने से अंदर गई। मैंने नहीं सोचा था कि बाहर आते समय वह अपने साथ दो नर्सों को भी लाएगी, जिनके हाथ में मुझे बांधने के लिए रस्सियाँ होंगी। आखिरकार मैं समझ गई कि वे मुझे मानसिक रोग अस्पताल भेजने वाले हैं, लेकिन भागने के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी। मेरा परिवार मुझे धक्के देकर जबरन अस्पताल घसीटकर ले गया। मैं तड़पते हुए संघर्ष करती रही और बोली, मैं बीमार नहीं, मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया। जब मैंने अपने परिवार के सदस्यों का इतना निर्दयी रूप देखा तो सोचा, “तुम सब चाहे जैसे सताओ, मैं कभी भी परमेश्वर में विश्वास रखना नहीं छोड़ूँगी।” जब मेरा ध्यान कहीं और था, तब दो नर्सों ने मुझे बिस्तर पर धकेलकर जबरन एक इंजेक्शन दे दिया। इंजेक्शन के बाद, मुझे चक्कर-सा आया और मेरी विरोध करने की ताकत चली गई। फिर उन्होंने मेरी तथाकथित जांच-पड़ताल की। नर्स ने कहा मेरा रक्तचाप बहुत ज्यादा है, मुझे निरीक्षण के लिए रात भर अस्पताल में रहना होगा। उस रात मैं अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी-पड़ी उस दिन की बातों के बारे में सोचती रही, मन में दुख का सैलाब उमड़ पड़ा। मैंने नहीं सोचा था कि मेरा परिवार सिर्फ अपने हितों की रक्षा करने और मेरे कारण फँसने से बचने के लिए मुझे मानसिक रोग अस्पताल भेज देगा। यह बहुत क्रूर बर्ताव था। ये लोग मेरा परिवार कैसे हो सकते हैं? ये बस दानवों का एक जत्था हैं! अगले दिन, मैंने मेडिकल सर्टिफिकेट देखा, जिसमें लिखा था, “कुपंथी आस्थाओं के कारण गंभीर मानसिक रोग; परमेश्वर के विश्वासियों के संपर्क में होने पर तुरंत पागलपन के दौरे पड़ने का खतरा।” मैंने डॉक्टर को यह कहते भी सुना कि मुझे अस्पताल में भर्ती करना जरूरी है क्योंकि मेरे इलाज में समय लगेगा। मेरी बेटी ने मुझसे कहा, “अंकल अस्पताल के डॉक्टर को पहले ही समझा चुके हैं। तुम्हें यहाँ कुछ दिन रहकर चीजों के बारे में साफ तौर पर सोचना चाहिए। जब तुम हमें बताओगी कि अब तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती, तो तुम्हें ले जाएंगे।” मुझे बहुत गुस्सा आया : मैं परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ, इसलिए बिना किसी कारण मुझे मानसिक रोगी बताया जा रहा है। यह सब सीसीपी का कसूर है! अगर सीसीपी परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले लोगों को गिरफ्तार कर नहीं सताती, लोगों को गुमराह करने और उनके परिवारों को फँसाने के लिए झूठ नहीं गढ़ती, तो मुझे मानसिक रोग अस्पताल नहीं भेजा जाता। तभी मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हजारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीकी से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर के उत्कट इरादों को समझ सकता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचन पूरी तरह सच थे। बड़े लाल अजगर के देश में पैदा हुए इंसान के लिए कोई आजादी नहीं है। सीसीपी ईसाइयों को अंधाधुंध दबाती और सताती है, यहाँ तक कि मानसिक रोग अस्पताल भी ऐसे स्थान बन गए हैं, जहां वह ईसाइयों को यातना देती है। मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होने के बावजूद, मुझसे जबरन परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए उन्होंने मुझे एक मानसिक रोग अस्पताल में फँसा दिया था। मुझे सीसीपी से घृणा हो गई, जो सारी चीजों की मास्टरमाइंड है। उसने मुझे जितना ज्यादा सताया, परमेश्वर के प्रति विरोध के उसके दानवी सार को मैं उतना ही साफ समझ सकी, इससे परमेश्वर के अनुसरण को लेकर मेरी आस्था भी मजबूत हुई।
बाद में, डॉक्टर ने मेरे परिवार से कहा, “फिक्र न करें। कुछ महीने इन्हें यहाँ छोड़ दें, और जब ये बाहर जाएँगी, तो परमेश्वर में विश्वास नहीं रखेंगी।” मेरे परिवार को यकीन हो गया कि यह सच है, तो उन्होंने मुझे वहाँ रखने का कागजी काम पूरा कर दिया। दूसरे मरीजों की तरह वहाँ भर्ती हो जाने के बाद, मुझे दिन में तीन बार इंजेक्शन, और खाने के बाद, नर्सों की निगरानी में, दिन में तीन बार गोलियाँ लेनी पड़तीं। शुरू में जब मैंने इंजेक्शन और गोलियाँ लेने से मना किया, तो नर्स ने मुझे धमकाया, “सहयोग नहीं करेगी, तो हम तुझे बांधकर जबरदस्ती देंगे!” मैंने खुद देखा कि जो मरीज इलाज से मना करते, उन्हें किस तरह बिस्तर से बाँधकर यातना दी जाती। मरीजों के साथ उनका क्रूर बर्ताव देखने के बाद, मेरे पास उनकी बात मानने के सिवाय दूसरा कोई चारा नहीं था।
एक दिन लंच के समय मैं खाना खाने नहीं गई। मैं अपने स्टूल पर बैठी चुपचाप रोती रही, सोच रही थी, “मैं बीमार नहीं, मगर यहाँ बंद हूँ, मुझसे बात करनेवाला भी कोई नहीं। मैं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ सकती, अपना कर्तव्य नहीं कर सकती, हर दिन मुझे इंजेक्शन और गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। ये सब कब ख़त्म होगा? ...” इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, उतनी ही ज्यादा दुखी हो गई। मुझे खाने के लिए जाता न देख नर्स ने धमकाया, “खाना नहीं खाएगी, तो हम, अभी उस मरीज को जैसे बांधा था, वैसे ही तुझे रस्सियों से बाँध देंगे। तुझे बिस्तर से बाँध देंगे, तेरी नाक में नली लगाकर उसमें खाना डाल देंगे!” अभी-अभी मैंने दुख से चीखते उस मरीज का दयनीय दृश्य देखा था, मुझे बहुत डर लगा, फिर मेरे पास जाकर खाना लेने के सिवाय कोई चारा नहीं था। अस्पताल में रहने के दौरान, मैं हर दिन, सहयोग न करनेवाले मरीजों से उनका बुरा बर्ताव और मरीजों का रोना-चीखना देखती, तो मुझे बहुत डर लगता। लगता जैसे मैं दानवों की माँद में हूँ, हर दिन बहुत घबराई हुई रहती। मुझे बहुत चिंता थी कि पूरा दिन इन मानसिक रोगियों के साथ रहने और डॉक्टरों से जबरन दवा और इंजेक्शन लेने से कहीं सच में मानसिक रोगी न बन जाऊं। अगर मानसिक रोगी बन गई, तो परमेश्वर में विश्वास नहीं रख सकूंगी, फिर मेरे जीवन का क्या लाभ? पीड़ा और लाचारी में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर विनती की कि मुझे आगे का मार्ग दिखाए। प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “यह ‘विश्वास’ शब्द किस चीज को संदर्भित करता है? विश्वास सच्चा भरोसा और ईमानदार हृदय है, जो मनुष्यों के पास तब होना चाहिए जब वे किसी चीज को देख या छू न सकते हों, जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की धारणाओं के अनुरूप न होता हो, जब वह मनुष्यों की पहुँच से बाहर हो। मैं इसी विश्वास की बात करता हूँ। कठिनाई और शोधन के समय लोगों को विश्वास की आवश्यकता होती है, और विश्वास वह चीज है जिसके बाद शोधन होता है; शोधन और विश्वास को अलग नहीं किया जा सकता। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करे और तुम्हारा परिवेश कैसा भी हो, तुम जीवन का अनुसरण करने, सत्य की खोज करने, परमेश्वर के कार्य के ज्ञान को तलाशने, उसके क्रियाकलापों की समझ रखने और सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होते हो। ऐसा करना ही सच्चा विश्वास रखना है, ऐसा करना यह दिखाता है कि तुमने परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं खोया है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों ने समझाया कि यह माहौल एक परीक्षा है, यह देखने के लिए कि मेरी आस्था सच्ची है या नहीं। मैंने दानिय्येल को याद किया जिसे शेर के पिंजड़े में फेंक दिया गया था। परमेश्वर उसके साथ था, उसने शेर का मुँह बंद कर दिया, जिससे दानिय्येल जरा भी जख्मी नहीं हुआ। मैं समझ गई कि दानिय्येल परमेश्वर में आस्था रखता था, उसने परमेश्वर और उसके कार्यों की गवाही दी थी, इसलिए मुझे भी अब डर और कायरता में नहीं जीना चाहिए। मुझे परमेश्वर की गवाही देने के लिए उसमें अपनी आस्था पर भरोसा करना चाहिए। यह समझ लेने के बाद, मैंने अपने दिल में कम दर्द महसूस किया।
एक बार, रात दो बजे के बाद, मैं सोई हुई थी कि किसी ने मुझे दो बार थपथपाया। मैं अचानक उठ बैठी, किसी को अपने सिरहाने खड़ा देख चौंक उठी। वह मानसिक रोगी मुझे देख हंस पड़ी और बड़बड़ाने लगी। मैंने उसे दुत्कार कर भगाना चाहा, लेकिन वह नहीं गई, हँसती रही। तभी कमरे के दूसरे मरीज भी जाग गए, आखिरकार नर्स आई और उसने उसे भगा दिया। ज्यादातर मानसिक रोगी दुष्ट आत्माओं के कब्जे में थे, और मुझे हर दिन उन्हीं के साथ रहना पड़ता था। ऐसा ही चलता रहा, तो देर-सवेर, यह तकलीफ मुझे भी पागल बना देगी। इस बारे में मैंने जितना ज्यादा सोचा, उतना ही दर्दनाक होता गया। उन दिनों, मैंने गाना छोड़ दिया, परमेश्वर के वचनों पर मनन करना बंद कर दिया। मैं बहुत उदास थी, सोचा कितना बढ़िया होगा अगर कोई आकर मेरे साथ संगति करे। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उसे अपनी तकलीफों और पीड़ा के बारे में बताया। तीन-चार दिन बाद, एक सुबह, लॉबी में दूसरे मरीजों के साथ टीवी देखते समय, मैंने करीब तीस साल की एक औरत को देखा, लगा मैंने उसे पहले कहीं देखा है। वह जानी-पहचानी-सी लगी। उससे बात की, तो पता चला वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखती थी। मेरी ही तरह उसे भी जबरन मानसिक रोग अस्पताल भेज दिया गया था, क्योंकि उसके परिवार ने सीसीपी की अफवाहें सुनी थीं। वहाँ एक बहन मिली, तो मुझे बहुत खुशी हुई, आखिरकार बातचीत के लिए एक साथी मिल गया। परमेश्वर ने यहाँ मुझसे मिलने एक बहन की व्यवस्था कर दी, ताकि हम संगति करके एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें, मैंने परमेश्वर का बड़ा आभार माना।
मानसिक रोग अस्पताल में मेडिकल स्टाफ की चौबीसों घंटे चौकसी थी, तो हमें परमेश्वर के वचनों पर संगति करने, अपने अनुभवों पर चर्चा करने और एक-दूसरे का साथ देकर मदद करने के मौके चोरी-छिपे ढूँढ़ने पड़ते। एक बार, रोगी गतिविधि हॉल में मैं उससे फुसफुसाई, “डरती हूँ अगर यहाँ ज्यादा दिन रही, तो मानसिक रोगी बन जाऊंगी, इसलिए सच में निकल जाना चाहती हूँ, मगर नहीं जा सकती, बहुत पीड़ा होती है।” उसने जवाब में मुझे परमेश्वर का वचन फुसफुसाकर सुनाया : “मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। उसने मुझे मानसिक रोग अस्पताल में अपने अनुभव के बारे में भी बताया, और कहा कि परमेश्वर हर चीज पर नियंत्रण रखता है, इसलिए मुझे डरना नहीं चाहिए, और परमेश्वर पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए। मुझे समझ आया कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है, और उसकी इजाजत के बिना, शैतान मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। परमेश्वर के वचन का मार्गदर्शन पाकर मेरा डर दूर भाग गया।
फिर, एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए मेरी बहन और मैंने परमेश्वर के कुछ वचन और भजन लिखे जो हमें याद आए, और हमने एक-दूसरे को दे दिए। एक बार, बहन ने एक भजन लिखा हुआ नोट मुझे दिया। गीत के बोल थे : “अपने हृदय में परमेश्वर के उपदेशों के साथ, मैं कभी भी शैतान के सामने घुटने नहीं टेकूंगा। यद्यपि हमारे सिर धड़ से अलग हो सकते हैं और हमारा खून बह सकता है, लेकिन परमेश्वर के लोगों की रीढ़ की हड्डी झुक नहीं सकती। मैं परमेश्वर के लिए शानदार गवाही दूँगा, और राक्षसों और शैतान को अपमानित करूँगा। पीड़ा और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं, और मैं मृत्युपर्यंत उसके प्रति वफादार और समर्पित रहूँगा। मैं फिर कभी परमेश्वर के रोने या चिंता करने का कारण नहीं बनूँगा। मैं अपना प्यार और अपनी निष्ठा परमेश्वर को अर्पित कर दूँगा और उसे महिमान्वित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करूँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ, परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है)। इस गीत ने मुझे प्रेरणा दी, लगा मेरा दिल मजबूत हो गया है। शैतानी राक्षस मुझसे जैसा भी बर्ताव करे, मैं परमेश्वर से कभी विश्वासघात नहीं करूंगी। मुझे गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाना होगा।
प्रधान डॉक्टर हफ्ते में एक बार मुझसे बात करती, और मुझसे परमेश्वर में विश्वास छोड़ देने को कहती रहती। मुझे मालूम था वह सीसीपी का अनुसरण करती है और उसके लिए काम करती है, इसलिए मैं उसे अनदेखा करती। बाद में, वह मुझसे फिर बात करने आई, और मुझसे पूछा कि अस्पताल में मेरा अनुभव कैसा है। मैंने सोचा, “आप सब जानती हैं, मैं बीमार नहीं हूँ, लेकिन परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण, आप मुझसे मानसिक रोगी जैसा बर्ताव करती हैं, और मुझे यहाँ फँसाकर रखा हुआ है। आप हर दिन मुझे जबरन दवा और इंजेक्शन देती हैं। आप डॉक्टरों में जमीर नहीं है, मुझे सताती हैं, और अब पूछती हैं कि मेरा क्या अनुभव है?” मैंने उस पर आरोप लगाते हुए पूछा, “मैं बीमार नहीं हूँ, तो फिर आप यह कहने पर क्यों जोर देती हैं कि मैं बीमार हूँ, और मुझसे मानसिक रोगी जैसा बर्ताव करती हैं?” उसने मुझे घूरा, फिर क्रूर होकर बोली, “मैं तुझे साफ-साफ बताती हूँ, हमने तेरी जो जाँच की, वो बेकार थी। अहम यह है कि परमेश्वर में तेरा विश्वास ही तेरी बीमारी है। तेरी हालत उन मानसिक रोगियों से कहीं ज्यादा गंभीर है। और तू यह जान ले कि यहाँ आए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों में से तू पहली या आखिरी नहीं है। अगर तू विश्वास रखने पर अड़ी रही, तो तुझे कुछ साल के लिए जेल में डाल दिया जाएगा। यहाँ मेरा ही फैसला चलता है। तू बीमार है या नहीं, इसका फैसला मैं करती हूँ!” यह सुनकर मैं आगबबूला हो गई। अस्पाताल मरते हुए लोगों को बचाने और बीमार लोगों की देखभाल के लिए होते हैं, लेकिन अब इन्हें सीसीपी द्वारा ईसाइयों को यातना देने का स्थान बना दिया गया है। हम परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, और जीवन में सही मार्ग पर चलते हैं, लेकिन सीसीपी परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए हर तरह के घिनौने तरीके इस्तेमाल करती है। वह गहराई तक दानव है, भयंकर दुष्टता वाली राजनीतिक पार्टी! परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण, मुझे सीसीपी ने सताया, मेरे परिवार ने ठुकराया, और डॉक्टरों ने दवाओं से यातना दी। मैं साफ तौर पर समझ गई कि सीसीपी कुछ और नहीं, बल्कि पृथ्वी पर आया हुआ दानव है। वह परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाला और लोगों को नुकसान पहुँचाने वाला शैतान है, बाद में, बहन और मैंने अस्पताल में मिले प्रभु के विश्वासियों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया। कुछ को नींद न आने की बीमारी के कारण अस्पताल भेजा गया था, तो कुछ और लोगों को प्रभु में उनके विश्वास के कारण सरकार जबरन यहाँ ले आई थी। अंत में, उनमें से कुछ ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया।
हर दिन डॉक्टरों द्वारा जबरन दी जा रही दवाओं और इंजेक्शनों के कारण, मेरी सेहत बद से बदतर होती जा रही थी। मुझे चक्कर आते, थकान महसूस होती, हमेशा सोते रहना चाहती, मेरे कंधे भारी लगते, और बड़ी मुश्किल से अपनी बाँहें उठा पाती। मैंने डॉक्टरों से दवा बंद कर देने को कहा, लेकिन उन्होंने एक न सुनी। फिर, मेरी हालत और ज्यादा बिगड़ गई। मुझे हमेशा सिरदर्द रहता, हर दिन बेहोशी-सी रहती। हमेशा घबराई हुई, बेचैन और चिड़चिड़ी; मेर हाथ कांपते, चीजें चॉपस्टिक से नहीं पकड़ पाती। अक्सर डरावने सपने आते, याददाश्त भी कमजोर हो गई। अक्सर चीजें कहीं रख देती, और तुरंत भूल जाती कहाँ रखी थी, और मेरी सोच का सिलसिला भी गड़बड़ा गया था। फिर, जो चीजें हाथ में होतीं, उन्हीं को ढूँढ़ती रहती, हर दिन बहुत ज्यादा घबराई रहती। मैं पहले कुछ मिनट के लिए घबराई रहती थी, लेकिन बाद में, घबराये रहने की अवधि दस मिनट से बढ़कर आधा घंटा हो गई। इससे बहुत परेशानी होने लगी, मेरा मन मेरे काबू में नहीं था। लगता, जैसे मानसिक रूप से अपंग हूँ, हमेशा रोना चाहती। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, शैतान की क्रूरता से मुझे बचाने की विनती की। अस्पताल में 40 दिन रहने के बाद, मेरी बेटी मुझसे मिलने आई। उस दिन, मैं अपना सिर झुकाए हॉल में बैठी थी। जब अपनी बेटी की पुकार सुनी, तो सिर उठाया, कुछ सेकंड के लिए भावशून्य होकर उसे देखा, फिर मैं धीरे-धीरे खड़ी हुई, चलकर उसके पास गई, उसकी बाँहें खींचकर रो पड़ी, “मुझे घर ले जा, घर ले जा...।” पल भर के बाद, मैं फिर से हँसने लगी। मेरी बेटी ने चौंक कर कहा, “तुम ऐसी क्यों हो गई हो? क्या सचमुच बीमार हो?” मेरी बेटी मुझे मेरे बड़े भाई के घर ले गई। उसने उसे डांट लगाई, “तू अपनी माँ को वापस क्यों ले आई?” फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं अब भी परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ। उस समय, मेरी चेतना थोड़ी साफ थी, और मैंने दृढ़ता से कहा, “हाँ! परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ, सत्य का अनुसरण करती हूँ, एक नेक इंसान बनने और सही मार्ग का अनुसरण करने की कोशिश करती हूँ। भला विश्वास क्यों न रखूँ?” मेरी भाभी बोली, “लगता है तुम वहां ज्यादा दिन नहीं रही। इसे वापस भेजना होगा।” मैंने गुस्से से कहा, “आपने मुझे वो क्रूर इलाज लेने पर मजबूर किया, और अब भी चाहती हैं कि मैं वहां वापस चली जाऊँ। आप बेहद क्रूर हैं! अगर आपने ऐसा किया, तो देर-सवेर आपको सजा मिलेगी!” मेरी यह बात सुनकर वे और कुछ नहीं बोले, मेरे बड़े भाई ने अनिच्छा से मेरी बेटी से अस्पताल से मेरे डिस्चार्ज की प्रक्रिया पूरी करने को कहा।
अस्पताल से मेरे डिस्चार्ज होने के बाद, मुझे हमेशा सिरदर्द रहता, हर दिन भावशून्य हालत में रहती। अक्सर मुझे विस्मय-सा महसूस होता। रात को बत्तियाँ बुझा देने पर मुझे बहुत डर लगता, क्योंकि मुझे लगता कि मैं वापस मानसिक रोग अस्पताल में आ गई हूँ, मुझे अक्सर डरावने सपने आते। मेरे पति के अनुसार, कभी-कभार मैं अचानक रो पड़ती या हँस देती, और उन पर बरस पड़ती। मुझे बहुत डर लगा, मैंने सोचा, “क्या मैं सच में मानसिक रोगी हूँ? तो फिर भविष्य में परमेश्वर में विश्वास कैसे रख सकूंगी?” मैंने बिस्तर के सामने घुटने टेककर आँखों में आँसू लिए परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, आज जो ये मेरा हाल है, यह पूरी तरह से बड़े लाल अजगर के कारण हुआ है। मैं उससे घृणा करती हूँ, मेरी रक्षा करो, मुझे बचा लो...।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे थोड़ा सुकून मिला। दो हफ्ते बाद, मेरी हालत में काफी अच्छा सुधार हुआ, मैं सचेतन होकर अपनी भावनाओं पर काबू कर पाई। तीन महीने बाद, मेरी मानसिक हालत सामान्य हो गई, मेरी मानसिक सेहत बहुत सुधर गई, लेकिन मेरी याददाश्त अब भी कमजोर थी। छह महीने बाद, मैं बैठकों में जाने लगी, फिर से अपना काम करने लगी।
मानसिक रोग अस्पताल में बिताए पैंतालीस दिनों ने मेरे तन-मन को बहुत नुकसान पहुँचाया। इस यातना से, मैं सत्य से घृणा करने और परमेश्वर की विरोधी होने के सीसीपी के दानवी सार को साफ तौर पर समझ सकी। मैंने दानव सीसीपी से जबरदस्त नफरत की, दिल से उसे ठुकराया और उसके खिलाफ विद्रोह किया। तभी मैंने अपने परिवार के सार को भी पूरी तरह से समझा। परमेश्वर में सिर्फ मेरे विश्वास रखने के कारण और उनके फँसाए जाने और उनके रुतबे और भविष्य पर असर पड़ने के डर से, उन्होंने सीसीपी का अनुसरण किया और परमेश्वर में मेरी आस्था छुड़वाने के लिए टेढ़े-मेढ़े तरीके अपनाए। उन्होंने मुझे एक मानसिक रोग अस्पताल में भी भेज दिया। जियूँ या मरूं, उन्हें परवाह नहीं थी। मैं उन लोगों को अपना परिवार कैसे कहती? वे दानव थे! इस माहौल का अनुभव करने के बाद, मैंने अपने लिए सच में परमेश्वर का प्रेम और उद्धार महसूस किया। मानसिक रोग अस्पताल में, मेरे भयभीत, दुखी और असहाय होने पर, परमेश्वर ने बार-बार मुझे प्रबुद्ध करने, रास्ता दिखाने और मुझे आस्था और शक्ति देने के लिए अपने वचनों का उपयोग किया, उसने मेरा साथ देने और मदद करने के लिए एक बहन की भी व्यवस्था की। परमेश्वर की रक्षा के बिना, ये दानव मुझे पूरी तरह से पागल और बेसुध कर देते। मैं परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं, सर्वशक्तिमत्ता, और बुद्धि को समझ सकी। मैंने यह भी सच में महसूस किया कि सदा-सर्वदा के लिए एकमात्र परमेश्वर ही मेरा सहारा है, सिर्फ परमेश्वर ही लोगों को बचा सकता है, फिर परमेश्वर में मेरी आस्था बहुत बढ़ गई। परमेश्वर का धन्यवाद!