79. अब मैं पैसों के लिए नहीं जीती
मैं जब छोटी थी, मेरा परिवार बहुत गरीब था। हमारे रिश्तेदार और पड़ोसी सभी हमें नीची नजर से देखते थे, पड़ोसियों के बच्चे मेरे साथ खेलते भी नहीं थे। मुझे याद है एक बार मैं खुशी-खुशी पड़ोस वाली बच्ची से पूछने गई कि क्या वो मेरे साथ खेलना चाहेगी, पर मैं उसके घर के दरवाजे तक पहुँचने ही वाली थी कि उसने अचानक दरवाजा बंद कर दिया। यह घटना मेरे बचपन की यादों में मुहर की तरह छप गई है। इससे मेरे स्वाभिमान को बुरी तरह ठेस पहुँची। जब मैंने स्कूल जाना शुरू किया, तो मेरे सहपाठी और शिक्षकों ने भी मुझे नीची नजर से देखा। जब मैं दूसरे परिवारों के बच्चों को अच्छे बस्ते, पेंसिल बॉक्स और अच्छे कपड़ों में देखती, तो यह जानकर कि मेरे पास इनमें से कुछ भी नहीं है, हर दिन यही सोचती कि मेरे परिवार के पास भी औरों जितना पैसा होता तो कितना अच्छा होता। तब लोग मुझे नीची नजर से नहीं देखते। जब मैं 10 साल की थी, एक ट्रैफिक दुर्घटना के कारण मेरा परिवार भारी कर्जे में डूब गया, मेरे डैड ने रिश्तेदारों से कुछ पैसे उधार माँगे। पर क्योंकि हम गरीब थे, उन्होंने हमें उधार देने की हिम्मत नहीं की। उसके बाद, मेरे डैड इतने उदास हो गए कि वो अक्सर हताशा में आहें भरते, और मुझसे कहते, “हमारे रिश्तेदार और पड़ोसी हमें नीची नजर से देखते हैं क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं हैं। तुम्हें बड़ी होकर हमारे परिवार का नाम रौशन करना होगा; जब तुम ज्यादा पैसे कमाओगी तभी लोग तुम्हारा सम्मान करेंगे।” मेरे डैड की बातें और बचपन में धौंस जमाए जाने की यादें मेरे मन में अंकित हो गई थीं, मैंने संकल्प लिया कि मैं बड़ी होकर खूब सारे पैसे कमाऊँगी, समृद्धि का जीवन जियूँगी, “गरीब इंसान” होने का कलंक हमेशा-हमेशा के लिए मिटा दूँगी, और जो मुझे नीची नजर से देखते थे, उन सबके सामने खुद को साबित करूँगी।
1996 में, मेरे डैड ने ट्रांसपोर्ट के कारोबार में एक बिचौलिये के रूप में काम शुरू किया था। कुछ सालों बाद, हमारा पारिवारिक कारोबार काफी फलने-फूलने लगा। हमने सिर्फ अपना कर्ज ही नहीं चुकाया, बल्कि एक फ्रेट ट्रक, टेलीफोन और मोबाइल भी खरीद लिया। जैसे ही हमारे परिवार के पास पैसे आए, तो जो रिश्तेदार और पड़ोसी पहले हमें नीची नजर से देखते थे, वे हमसे मिलने आने लगे। हम जहाँ भी जाते, लोग हमारा खूब सम्मान करते। मैं आखिरकार सिर उठाकर चल सकती थी। इससे मेरा विश्वास और पक्का हो गया कि इस संसार में जीने के लिए अधिक पैसे कमाना जरूरी है। जब आपके पास पैसा होगा तभी लोग आपका सम्मान करेंगे। अपने आस-पास की चीजें देख-सुनकर, धीरे-धीरे मैंने कारोबार चलाना सीख लिया। 1999 में, जब मैं अपनी सारी ऊर्जा कारोबार में लगाने की तैयारी में थी, परमेश्वर का अंत के दिनों का उद्धार मुझ पर आया। शुरुआत में, मैं परमेश्वर में अपने विश्वास में बहुत उत्साही थी। मैंने देखा कि बहुत से लोग अब तक परमेश्वर के समक्ष नहीं आए हैं, तो मैं सुसमाचार फैलाने वालों के साथ जुड़ गई। उसके बाद, मैं अक्सर सुसमाचार फैलाने बाहर जाने लगी, जिसका असर मेरे पारिवारिक कारोबार पर पड़ा। मेरे परिवार वाले मुझे यह कहकर डाँटने लगे, “तुम इतनी कम उम्र से परमेश्वर में विश्वास क्यों कर रही हो? अगर तुम इसी तरह घूमती रही, तो हम तुम्हें खर्च के लिए पैसे नहीं देंगे।” मैंने सोचा, “अगर मेरे पास पैसे नहीं हुए, तो क्या मुझे बचपन की तरह लोगों से भेदभाव नहीं सहना पड़ेगा?” आखिर में, मैं इस लालच से जीत नहीं पाई और कर्तव्य निभाना छोड़ दिया, और सभाओं में भी कभी-कभार ही जाती थी। काम जैसे-जैसे और बढ़ता गया, मेरा दिल परमेश्वर से दूर होता गया। फिर, डैड ने कारोबार के प्रबंधन का जिम्मा मुझे सौंप दिया, और बीस-बाईस की होते-होते मैंने अपना करियर बना लिया। उस समय मैं बेहद खुश थी। ज्यादा पैसे कमाकर सफल करियर वाली महिला बनने के लिए मैंने हर दिन दिमाग चलाया ताकि अच्छे सप्लायरों से संपर्क जोड़ सकूँ। दिन-रात, इतने ज्यादा फोन आने लगे कि उनका जवाब तक नहीं दे पाती थी। प्यास लगने पर पानी पीने का समय नहीं मिलता था, गला बैठ जाता, तो भी आराम करना नहीं चाहती थी। इस कड़ी मेहनत से, मैंने आखिरकार करीब 1,00,000 युआन की बचत कर ली। भले ही उन कुछ सालों में मैंने एक औसत व्यक्ति से ज्यादा कष्ट सहे, पर अपनी जेब भरी देखकर बहुत संतुष्टि होती थी।
बाद में, मैंने देखा कि कारोबार पर चर्चा के लिए मेरे घर आने वाले ज्यादातर ग्राहकों के पास गाड़ियाँ थीं और वे ऊँची इमारतों में रहते थे, जबकि मैं सड़क के किनारे दो कमरों वाले पुराने भाड़े के घर में रहती थी। मेरी जिंदगी इन अमीरों की तुलना में फीकी थी। मैंने खुद से कहा, “ऐसे नहीं चलेगा, मुझे कड़ी मेहनत जारी रखनी होगी ताकि एक दिन मेरी अपनी गाड़ी हो, ऊँची इमारत में रह सकूँ, और मेरी अपनी कंपनी हो।” जल्द-से-जल्द अपनी इच्छा पूरी करने के लिए, मैं पहले से भी ज्यादा काम करने लगी। उन सालों में, मैंने शायद ही कभी अच्छी नींद ली होगी, मैं अक्सर बहुत थकी-हारी रहती थी। कम उम्र में ही तनाव के कारण मुझे सिर में दर्द रहने लगा। जब ऐसा होता, तो लगता मानो सिर में कोई सुइयाँ चुभो रहा हो। और फिर, कंप्यूटर और फोन के रेडिएशन के कारण मुझे अक्सर मतली और उल्टी होने लगी। दर्द से छुटकारा पाने के लिए, मैं जोर-जोर से खोपड़ी पर नाखून चुभोती या दीवार पर सिर मारती, पर इन तरीकों से मेरा दर्द जरा भी कम नहीं हुआ। जब मेरा सिर दर्द बर्दाश्त के बाहर हो गया, तो जाँच कराने के लिए अस्पताल जाने की सोची, पर सौ-सौ के नोटों से भरा अपना बटुआ देखकर अस्पताल जाने का मन नहीं किया। मैंने सोचा “चलो छोड़ो”, “आजकल पैसे कमाने के मौके कम ही मिलते हैं। जब तक जवान हूँ मुझे इस मौके का फायदा उठाकर थोड़े और पैसे कमाने चाहिए।” कई सालों बाद, हमारे पास एक गाड़ी, घर और कंटेनर की रजिस्टर्ड कंपनी थी। जब भी मैं अपनी गाड़ी से दूसरी कंपनियों में कारोबार की चर्चा करने जाती, तो वहाँ के बॉस मुझे स्वीकृति भरी नजरों से देखते, और इतनी कम उम्र में खुद का कारोबार होने को लेकर मेरी तारीफ करते थे, कहते कि मुझमें काफी क्षमता है। कई ग्राहक अक्सर मुझे “मैनेजर” कहकर बुलाते, और कामयाब महिला होने के नाते मेरे दोस्त भी मेरी तारीफ करते। छुट्टियों के दौरान, जब हमारा पूरा परिवार गाड़ी से गाँव गया, तो कई पड़ोसी हमसे मिलने आए, और कहा कि मेरे पति के माँ-बाप बड़े खुशकिस्मत हैं जो उन्हें मेरे जैसी काबिल बहू मिली। ये तारीफें सुनकर, मुझे खुद पर बहुत नाज हुआ। उन कुछ सालों में, मैं हर दिन यही सोचती रहती थी कि ज्यादा पैसे कैसे कमाऊँ और मैं परमेश्वर में अपनी आस्था में बहुत बेपरवाह हो गई। कभी-कभी, जब मैं किसी सभा में नहीं आती, तो बहनें मुझे खोजने चली आतीं। मगर तब मैं उनकी संगति सुनने की सही मनोदशा में बिलकुल नहीं थी। कभी-कभी, मैं सभा में जाती तो थी, पर पूरे वक्त बस कारोबार के बारे में ही सोचती रहती। भले ही मैं हर दिन बहुत व्यस्त रहती थी, पर कारोबार उतनी सहजता से नहीं चल रहा था जैसा कि मैंने सोचा था। एक-के-बाद-एक ट्रैफिक दुर्घटनाएँ हो रही थीं, और कई ग्राहकों ने माल भाड़े के भुगतान में देरी कर दी थी। उन कुछ सालों में, हमारे हजारों-हजार युआन से ज्यादा पैसे डूब गए। डूबे हुए पैसे वापस कमाने के लिए, मैंने कारोबार में पहले से भी ज्यादा समय और ऊर्जा लगाई। हर दिन काम के भारी बोझ के कारण, मेरा शरीर गंभीर रूप से दबाव में था, और मेरा सिरदर्द पहले से ज्यादा गंभीर हो गया। हर दिन, मुझे लगता कि इससे अच्छा तो मर ही जाती। जब से हमारे पास पैसे आने लगे, मेरा पति हर दिन मौज-मस्ती के लिए बाहर जाता और पूरी रात बाहर ही रहता। उसने जुए और सट्टे में भी बहुत सारे पैसे उड़ाए। इस बात पर रोज हमारी बहस होती, और मेरा चेहरा अक्सर आँसूओं से लाल रहता। मुझे जीवन दर्द से भरा लगता था। मैं बेहद लाचार थी, और बेचैन भी। अब, मैंने अपना सपना पूरा कर लिया था। मेरे पास गाड़ी, घर, और अपनी कंपनी थी। पर मैं जरा भी खुश क्यों नहीं थी? आखिर चल क्या रहा था? जब मैं कष्ट में और लाचार थी, मैंने अपने दफ्तर में रखी परमेश्वर के वचनों की किताब के बारे में सोचा। मैं “सर्वशक्तिमान की आह” शीर्षक वाला अध्याय खोलकर पढ़ने लगी। उस वक्त दफ्तर का माहौल बहुत शांत था, मैं शुरुआत से पढ़ती चली गई। आखिरी अंश पढ़ा, तो परमेश्वर के वचनों ने मेरा दिल छू लिया। परमेश्वर कहते हैं : “सर्वशक्तिमान के जीवन के प्रावधान से भटके हुए मनुष्य, अस्तित्व के उद्देश्य से अनभिज्ञ हैं, लेकिन फिर भी मृत्यु से डरते हैं। उनके पास मदद या सहारा नहीं है, लेकिन फिर भी वे अपनी आंखों को बंद करने के अनिच्छुक हैं, आत्मा के बोध के बगैर मांस के बोरों को लिए खुद को मजबूत बनाते हैं ताकि इस दुनिया में एक अधम अस्तित्व को घसीट सकें। तुम अन्य लोगों की तरह ही, आशारहित और उद्देश्यहीन होकर जीते हो। केवल पौराणिक कथा का पवित्र जन ही उन लोगों को बचाएगा, जो अपने दुःख में कराहते हुए उसके आगमन के लिए बहुत ही बेताब हैं। अभी तक, चेतनाविहीन लोगों को इस तरह के विश्वास का एहसास नहीं हुआ है। फिर भी, लोग अभी भी इसके लिए तरस रहे हैं। सर्वशक्तिमान ने बुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से विमुख महसूस करता है, जिनमें चेतना की कमी है, क्योंकि उसे मनुष्य से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। वह तुम्हारे हृदय की, तुम्हारी आत्मा की तलाश करना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना और तुम्हें जगाना चाहता है, ताकि अब तुम भूखे और प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया के बेरंग उजड़ेपन का कुछ-कुछ अहसास होने लगे, तो तुम हारना मत, रोना मत। द्रष्टा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे : जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो लेकिन किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुमने एक ‘पिता’ को पा लिया था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है। वह हताश लालसा लिए देखता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नज़र रखना और प्रतीक्षा करना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना और प्रतीक्षा करना अनिश्चितकालीन है, या शायद इनका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। जब मैंने ये वचन पढ़े, “जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है,” मेरा दिल जो गहरी नींद में था, अचानक जग गया और मैं विचार करने लगी, “जवाब के बिना कौन प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर सकता है? सिर्फ परमेश्वर! परमेश्वर ही सदैव चुपचाप इस तरह लोगों का साथ देता रहता है।” परमेश्वर के वचनों ने मेरी जख्मी आत्मा को सांत्वना दी, और मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। उस पल में, मैंने खुद को परमेश्वर के बहुत करीब पाया। परमेश्वर में मेरे इतने सालों के विश्वास में, मैंने कभी गंभीरता से परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े थे, और मेरा दिमाग इन्हीं विचारों से भरा रहता था कि ज्यादा पैसे कैसे कमाऊँ और लोगों की नजरों में ऊँची कैसे उठूँ। हर दिन, मैंने अपने थके-हारे शरीर के साथ कारोबार को संभाला। आखिर में, मुझे काफी सारा भौतिक सुख और दूसरों का सम्मान मिला, पर असल में मुझे इससे बस मेरे पति से बार-बार धोखा और बीमारियाँ मिलीं। मैं रत्ती भर भी खुश नहीं थी। बल्कि, मैं खालीपन, पीड़ा, और लाचारी महसूस करती थी। मेरे सारे कष्ट की वजह यह थी कि मैं परमेश्वर से दूर थी और उसकी देखरेख और सुरक्षा से छिपी थी। दस साल पहले, मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी थी, पर मैंने उसके अनुग्रह को संजोया नहीं या अच्छी तरह उसके वचन नहीं खाए-पिए, और न ही मैंने अपने कर्तव्य निभाए। मैं बहुत विद्रोही थी, पर परमेश्वर ने मुझे नहीं छोड़ा, हमेशा मेरे साथ रहा, मेरा हृदय परिवर्तन होने की प्रतीक्षा की। जब मैं परेशान और लाचार थी, परमेश्वर के वचनों ने तुरंत मेरी जख्मी आत्मा को सांत्वना दी। जब मैं नियमित रूप से सभाओं में न आकर परमेश्वर से दूरी बना रही थी, तो उसने बहनों के जरिए बार-बार मुझे मदद भेजी, पर मैंने आभार जताने के बजाय विरोध किया। मैंने बार-बार परमेश्वर का उद्धार ठुकराया; मेरे पास सचमुच कोई जमीर या विवेक नहीं है। इस बारे में जितना सोचती, उतना ही पछतावा होता और मैं खुद को धिक्कारती। रोते हुए, मैंने प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं गलत थी, मुझे इससे नफरत है कि मैंने तब तुम्हारे वचन ध्यान से नहीं पढ़े और अपना पूरा दिल पैसा कमाने में लगा दिया। मुझे लगा कि अगर मेरे पास पैसा होगा, तो मुझे सब मिल जाएगा। मगर पैसे और भौतिक खुशी पाने के बाद, मैंने असल में बहुत खालीपन, पीड़ा, और लाचारी महसूस की। परमेश्वर, पहले मैं जिस मार्ग पर चली वह गलत था। अब मैं फिर से सत्य का अनुसरण करना और परमेश्वर में विश्वास के मार्ग पर चलना चाहती हूँ।” प्रार्थना के बाद, मुझे काफी सुकून और शांति मिली। मैं समुद्र में अकेली नाव की तरह थी जिसे लंगर डालने के लिए एक बंदरगाह मिल गया था, एक आवारा बेटे की तरह थी जो वर्षों तक भटकने के बाद अपनी माँ की गोद में लौट आया था। मुझे ऐसी सुरक्षा महसूस हुई जो पहले कभी नहीं हुई थी। उसके बाद, जब भी सभा का समय आता, मैं हमेशा अपने सारे काम पहले ही निपटा लेती। धीरे-धीरे, सभाओं में भाग लेने से मुझे सुकून मिलने लगा, और मैं आम तौर पर परमेश्वर के वचन पढ़ने और कलीसिया में कर्तव्य निभाने के लिए समय निकाल लेती। मगर कभी-कभी, जब मुझे कारोबार और कर्तव्य में से किसी एक को चुनना होता, तो मैं अपना कारोबार चुनती और अपना कर्तव्य छोड़ देती थी। इस वजह से, मैं अंदर से बहुत व्याकुल थी। कभी-कभी, मैं यह भी सोचती, “कब मैं अपने कारोबार से प्रभावित हुए बिना अपना कर्तव्य शांति से निभा पाऊँगी?” जब मैंने कई भाई-बहनों को सुसमाचार फैलाने के लिए अपने परिवार और करियर को त्यागने में सक्षम होते देखा, तो मेरा दिल भर आया। मैंने सोचा कि हम सभी मनुष्य हैं, तो जब भाई-बहन अपनी चिंताएँ भुलाकर परमेश्वर के लिए खुद को खपा सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं ऐसा कर सकती? मुझे बहुत आशा थी कि एक दिन मैं पूरे दिल से अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हो पाऊँगी; वो कितना बढ़िया होगा! मैंने परमेश्वर से अपनी प्रार्थना में बार-बार इस विचार को दोहराया, इस उम्मीद में कि परमेश्वर मुझे और आस्था दे और वो दिन आए जब मैं अपना कारोबार त्यागकर पूरे दिल से खुद को उसके लिए खपा सकूँ।
2011 की गर्मियों में, मेरा सिरदर्द बद से बदतर होने लगा। दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया, तो मैं चेकअप के लिए सिटी अस्पताल गई। डॉक्टर ने मुझसे कहा, “तुम्हारे सिरदर्द का कारण तुम्हारा काम हो सकता है। अपनी हालत सुधारना चाहती हो, तो सबसे अच्छा यही होगा कि तुम ये काम मत करो। नहीं तो, तुम्हारी हालत और ज्यादा खराब हो जाएगी।” डॉक्टर की बातें सुनकर, मुझे यकीन हो गया कि परमेश्वर मुझे इससे निकलने का रास्ता दिखा रहा है। मैं इस मौके का फायदा उठाकर अपने परिवार को बताना चाहती थी कि अब मैं कारोबार नहीं संभाल सकती, पर मैं फैसला नहीं ले पाई, क्योंकि 10 साल की कड़ी मेहनत और प्रबंधन के बाद ही मुझे यह सब मिला था, और फिर, उस साल कारोबार फल-फूल रहा था और हम कभी-कभी दिन में पाँच-छह हजार युआन कमा लेते थे। अगर मैं कारोबार छोड़ देती, तो जिन ग्राहकों के साथ इतने सालों से संपर्क में थी, उन्हें इंडस्ट्री के दूसरे लोग चुरा ले जाते। आखिर में, मैं पैसे की लालच से जीत नहीं पाई, और मैंने कई और महीनों तक काम जारी रखने के लिए अपनी बीमारी की पीड़ा सही। वैसे तो मैंने खूब पैसे कमाए, पर मैं बिलकुल भी खुश नहीं थी, मैंने उस वक्त के बारे में सोचा, जब मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की थी, अपना कारोबार छोड़कर उसके लिए खपने को तैयार थी। मगर, मैं अभी भी पैसे के काबू में थी, इसे त्याग नहीं रही थी। मैंने मन-ही-मन खुद को कसूरवार माना। मैंने दोबारा परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरी मदद करने को कहा ताकि मैं अपना कारोबार त्यागकर खुद को उसके लिए खपा सकूँ। एक दिन, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा[क] भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। सालों की लगन और प्रयास से मुझे स्पष्टतः केवल तुम्हारे परित्याग और निराशा से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? इस क्षण तुम्हारा चुनाव क्या है? क्या तुम मेरे वचनों के प्रति समर्पण करोगे या उनसे विमुख रहोगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के सवालों का सामना होते ही मैं चिंतन में डूब गई। मैंने सोचा कि कैसे इतनी बार परमेश्वर से प्रार्थना की और कहा कि मैं अपना कारोबार त्यागकर उसके लिए खुद को खपाने को तैयार हूँ। मगर जब हजारों युआन की अपनी रोजाना कमाई को देखती, तो मेरा मन बदल जाता। क्या मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दे रही थी? भले ही मैंने उन वर्षों के दौरान परमेश्वर में विश्वास किया, मैंने लगभग अपना सारा समय और ऊर्जा कारोबार चलाने में लगा दिया। मेरा दिमाग इन विचारों से भरा था कि कैसे ज्यादा पैसे कमाऊँ, और मैंने कभी उस कर्तव्य को संजोया नहीं जिसे संजोना चाहिए। जब भी मेरे कर्तव्य और कारोबार के बीच किसी एक को चुनने की बात आती, तो मैं हमेशा कारोबार को चुनती थी, अपने कर्तव्य को नजरंदाज कर इसे गंभीरता से नहीं लेती थी। इन कुछ सालों में, अपने साथियों से आगे निकलने के लिए मैं पैसों की गुलाम बन गई थी, और हर दिन खालीपन और पीड़ा के बीच संघर्ष करती हुई डूबती चली गई। भले ही मैंने बार-बार परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह किया, उसने कभी मुझे बचाना नहीं छोड़ा। जब मैं अपने कारोबार की वजह से सभाओं में नहीं आ पा रही थी, तो उसने बहनों के जरिए मुझे सहयोग और मदद भेजी। जब मैं अपने पति से मिले धोखे, कारोबार की चुनौतियों, और अपनी बीमारी का सामना कर रही थी, जब मैं पीड़ा और लाचारी की स्थिति में जी रही थी, परमेश्वर ने अपने वचनों से मेरी अगुआई और मार्गदर्शन किया, उसने मुझे रोशनी के लिए तरसने और सही ढंग से सत्य का अनुसरण करने में सक्षम बनाया। जब मैंने अपना कारोबार नहीं त्यागा, तो परमेश्वर ने डॉक्टर की बातों के जरिए मुझे सलाह दी। वह हमेशा मेरे जीवन के बारे में चिंतित और फिक्रमंद रहा है, और मेरे लिए इतने कठिन प्रयास किए हैं, मगर मैं लगातार ज्यादा पैसे कमाने के बारे में ही सोचती रही और अपने कर्तव्य पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया। मैं वाकई बहुत स्वार्थी थी! परमेश्वर मुझे अभी भी अपना कर्तव्य निभाने का मौका दे रहा था, जिसे मुझे संजोना था। राज्य का सुसमाचार फैलाने के लिए मुझे खुद को खपाना और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना था। यह फैसला करने के बाद, कुछ अप्रत्याशित घटनाएँ घटीं, जिससे मुझे धन के पीछे भागने के नुकसान और परिणामों के बारे में पता चला।
2011 की सर्दियों में एक दिन, किसी ने मेरे पति को फोन करके धमकी दी, कहा कि हमने किसी को नाराज किया है, और मेरे पति से कहा कि अपनी सलामती चाहते हो तो हमें 1,00,000 युआन भेज दो। नहीं तो, वो मेरे पति के हाथ-पैर तोड़ देंगे। ये सब सुनकर, मेरा दिल डर के मारे जोर से धड़कने लगा। मैंने ऐसा पहले सिर्फ टीवी पर देखा था, और कभी नहीं सोचा था कि असल जिंदगी में खुद इसका अनुभव करूँगी। दुनिया में आजकल इतनी अराजकता क्यों है? लोगों के दिल इतने बुरे कैसे हो सकते हैं? उस पल, मैंने अचानक सोचा कि अगर मैंने यह कारोबार जारी रखा, तो वाकई कुछ बुरा घट जाएगा। मैंने सोचा कि जब से मेरे परिवार के पास पैसे आए, मैंने एक दिन भी शांति से नहीं गुजारा, और अब अचानक मुझे इस दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा—पैसे से खुशी और आनंद नहीं मिला। बाद में, यह सुनने में आया कि हमारे घर सामान पहुँचाने वाले कई ट्रक ड्राइवरों की कार दुर्घटनाओं में मौत हो गई थी। उनकी मौत की खबर सुनकर मैं यकीन ही नहीं कर पाई। उनमें से, जवान ट्रक ड्राइवर करीब बीस बरस के ही थे, और कुछ बड़े ड्राइवर चालीस के आसपास की उम्र थे। मुझ पर सबसे गहरी छाप एक पति-पत्नी के जोड़े ने छोड़ी, जिन्होंने ज्यादा पैसे कमाने के लिए ड्राइवर नहीं रखा था और दिन-रात काम करते थे। आखिर में, थकान के कारण एक कार दुर्घटना में पति-पत्नी दोनों की मौत हो गई। भले ही उन्होंने थोड़े पैसे कमाए, पर ऐसा करने में अपनी जान गँवा दी। उस पैसे से उन्हें क्या हासिल हुआ? मुझे प्रभु यीशु के वचन याद आए : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” (मत्ती 16:26)। उन बरसों के बारे में सोचूँ जब मैंने अपना दिल पूरी तरह से समाज की सीढ़ी चढ़ने में लगाया था, तब मैं दिन-रात काम करने वाली मशीन जैसी बन गई थी। भले ही मैंने कुछ पैसे और प्रतिष्ठा कमाई और लोग मेरा सम्मान करते थे, मुझे उससे कोई सुख या आनंद नहीं मिला, बल्कि मैंने बेहद खालीपन और पीड़ा महसूस की। पैसे कमाने के चक्कर में मैं बीमार पड़ गई, और जब मेरा सिरदर्द इतना बढ़ गया कि सिर दीवार पर मारने का मन होता, तब भी पैसे कमाना छोड़ने को तैयार नहीं थी। मैंने देखा कि मैं पैसे के लालच में बंधी थी। पैसा उस चाकू जैसा है जो लोगों को बेरहमी से मार डालता है। अगर मैं अब भी पहले की तरह पैसे कमाने की कोशिश में लगी रही, तो शायद एक दिन मैं भी इन लोगों की तरह पैसों के लिए तड़प-तड़प कर मर जाऊँगी। आज के बाद, मैं पैसों के चक्कर में अपना जीवन बिल्कुल बर्बाद नहीं करूँगी। मुझे ध्यान आया कि अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो इस मामले को समझ नहीं पा रहे हैं और अभी भी पैसे के भँवर में फँसकर छटपटा रहे हैं। उन्हें अपने जीवन के लिए कोई दिशा नहीं दिखती और वो नहीं जानते कि सार्थक जीवन कैसे जिएँ। मैं अंत के दिनों में परमेश्वर का सुसमाचार ज्यादा लोगों तक फैलाना चाहती थी, ताकि लोग जल्दी से उसकी वाणी सुनकर सत्य को समझ सकें, और शैतान की भ्रष्टता और नुकसान से बच जाएँ। मैंने अपने परिवार से कहा कि अब मेरा सिरदर्द बहुत बढ़ गया है, आगे से कारोबार के मामलों में शामिल नहीं रहूँगी। मेरे परिवार ने मुझे आराम करने की अनुमति दे दी। मैं बहुत खुश थी। मुझे रास्ता दिखाने के लिए मैंने दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया।
2012 में, बसंत उत्सव के बाद, मैंने पूरे कारोबार को संभालने का जिम्मा अपने पति को सौंप दिया, और मैं शांति से परमेश्वर के वचन पढ़ने और अपना कर्तव्य निभाने लगी। मुझे और मेरी आत्मा को बड़ी शांति मिली। मेरी मानसिक दशा भी धीरे-धीरे बेहतर हो गई। इससे भी ताज्जुब की बात यह है कि बिना किसी इलाज के मेरा सिरदर्द अपने आप ठीक हो गया। मेरा दिल बहुत आभारी हो गया, मुझे पक्का यकीन था कि परमेश्वर ने ही मेरी बीमारी ठीक करके मुझे इसकी यातना और मेरी आत्मा की दुर्गति से छुटकारा दिलाया है। मैंने अच्छी तरह कर्तव्य निभाने और परमेश्वर के अनुग्रह का ऋण चुकाने का संकल्प किया। जब मेरे पति ने देखा कि मेरा सिरदर्द बेहतर हो गया, तो उसने कारोबार में वापस आने का दबाव बनाया, पर मैंने साफ बोल दिया कि कारोबार में वापस आने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जब मैंने उसकी एक न सुनी, तो उसने तलाक लेने की धमकी दी और कहा कि अगर मैं परमेश्वर में विश्वास करती रही, तो वो मुझे खर्च के पैसे नहीं देगा। अपने पति को निष्ठुर देखकर मुझे इतना गुस्सा आया कि पूरा शरीर काँपने लगा था। बचपन में मुझे नीची नजर से देखने वालों की यादें फिर से मन में उभर आईं। मैं सच में वैसा जीवन दोबारा नहीं जीना चाहती थी। मैं बहुत कमजोर पड़ गई। अगर मैंने परमेश्वर में विश्वास नहीं किया, तो मैं समृद्ध भौतिक जीवन और लोगों के सम्मान का आनंद ले सकती हूँ। अगर मैं हमेशा अपना कर्तव्य निभाना चुनती हूँ, तो अपना सब कुछ खो दूँगी। मेरा दिल बहुत पीड़ा और यातना में था, और मैं रोती जा रही थी। एक ओर मेरा कर्तव्य था, तो दूसरी ओर मेरी आजीविका थी जिसे मैंने बरसों से संभाला था। समझ नहीं आ रहा था कि किसे चुनूँ। रोते हुए, मैंने प्रार्थना की, “परमेश्वर! मैं इस वक्त बहुत कमजोर हूँ, नहीं जानती कि किसे चुनूँ। अगर मैं कर्तव्य निभाना जारी रखती हूँ, तो अपनी आजीविका और परिवार खो दूँगी। अगर अपना परिवार और आजीविका चुनकर परमेश्वर में अपना विश्वास और कर्तव्य निभाना छोड़ देती हूँ, तो मैं बिना जमीर और विवेक वाली इंसान कहलाऊँगी। परमेश्वर, मैं तुम्हें छोड़ना नहीं चाहती। अगर तुमने आज तक हर मोड़ पर मेरा मार्गदर्शन न किया होता, तो मैं जीवन में सही मार्ग पर कभी न चलती। पहले, मैंने न तो सत्य का अनुसरण किया, न ही खुद को तुम्हारे लिए खपाया। आज मैं तुम्हारी विचारशीलता से दूर नहीं रह सकती। मैं सही ढंग से सत्य का अनुसरण करना और तुम्हारे रास्ते पर आगे बढ़ना चाहती हूँ। परमेश्वर! मुझे आस्था और शक्ति दो ताकि मैं सही फैसला ले सकूँ!” प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचन पढ़कर लगा मानो वह मुझसे आमने-सामने बात कर रहा हो : “आगे से, तुम्हें सही ढंग से सत्य का अनुसरण करना चाहिए। वो वाहियात जीवन मत जीना जो तुमने पहले जिया।” पहले, मैंने न तो सत्य का अनुसरण किया, न ही परमेश्वर के ज्यादा वचन पढ़े। मैंने अपना समय और प्रयास कारोबार चलाने में लगाया, अपना इतना समय बर्बाद किया। अब मुझे अपने आने वाले समय को संजोना था, और चाहे मेरा परिवार मुझे कैसे भी रोके, मैं सत्य का अनुसरण करने का यह महान अवसर गँवा नहीं सकती। मैंने अपने पति से कहा, “पिछले कुछ सालों में, पैसे कमाने की कोशिश में मुझे बीमारियाँ झेलनी पड़ीं। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करती तो बहुत पहले मर जाती। परमेश्वर की विश्वासी होने के नाते, मैं एक रोशन और सही जीवन पथ पर चल रही हूँ। अब मैंने यह रास्ता चुन लिया है तो अंत तक इसी पर चलना होगा। तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, पर तुम मेरी आजादी में दखल नहीं दे सकते।” यह देखकर कि वह मुझे रोक नहीं पाएगा, मेरे पति ने मुझे इस बारे में परेशान करना बंद कर दिया। यह फैसला करने के बाद, मेरे दिल को आजादी महसूस हुई। उसके बाद मैं हर वक्त अपना कर्तव्य निभाने लगी।
बाद में, जब मैं परिचितों को उनकी गाड़ियों में घूमते देखती, तो मुझे अभी भी थोड़े नुकसान का एहसास होता : जब मैं पहले कारोबार कर रही थी और गाड़ी चलाती थी, तो मैं जहाँ भी जाती लोग मेरा सम्मान करते थे। अब, मैं ई-बाइक चलाती हूँ। जब पुराने परिचित और ग्राहक मुझे देखते, तो वे नमस्ते भी नहीं बोलते, और मुझे जानने वाला हर कोई मुझसे रूखा बर्ताव करता। न सिर्फ मैंने वह आभा खो दी जो कभी मेरे पास थी, मुझे अपने परिवार की डांट भी खानी पड़ी : “तुमने 10 साल से भी ज्यादा मेहनत करके कारोबार चलाया और फिर खुद ही इसे दूसरों को सौंप दिया। अगर तुम कारोबार नहीं करोगी, तो देखते हैं आगे से तुम्हें खर्च के पैसे कौन देता है। पता नहीं तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है। तुम सचमुच बहुत बेवकूफ हो!” इन अपमानजनक और चुभने वाले शब्दों ने मुझे बेहद परेशान कर दिया। उन दिनों, मैं हर दिन बेचैन और उदास रहती थी। मैंने सोचा, “अगर मैंने कारोबार करना जारी रखा होता, तो लोग अभी भी मेरा सम्मान करते। मगर अब, अपने कारोबार के बिना, आने वाले समय में मेरे पास पैसा नहीं होगा, तो मैं कैसे जियूँगी?” अनजाने में ही, मैं एक बार फिर शैतान के प्रलोभनों में फँस गई, और न चाहते हुए भी, एक बैकअप प्लान बनाने के बारे में सोचने लगी। रात के सन्नाटे में, मैं अक्सर करवटें बदलती रहती और सो नहीं पाती थी। मैं विचार करने लगी, “कैसे हर बार जब भी मुझे पैसे, शोहरत और रुतबे के प्रलोभन का सामना करना पड़ता है, तो मेरा दिल बेचैन हो जाता है?” मैं हर हाल में इस सवाल का जवाब ढूँढना चाहती थी। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “‘पैसा दुनिया को नचाता है’ यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है। यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है; तुम कह सकते हो, यह एक रुझान है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है, जिन्होंने पहले तो इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किंतु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो इसे मूक सहमति दे दी, और महसूस करना शुरू किया कि ये वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? ... शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, ज़ोर से बोलते हैं और अंहकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है? जैसे-जैसे तुम इस लोकप्रिय कहावत का विरोध करने से लेकर अंततः इसे सत्य के रूप में स्वीकार करने तक की प्रगति करते हो, तुम्हारा हृदय पूरी तरह से शैतान के चंगुल में फँस जाता है, और इस तरह तुम अनजाने में इस कहावत के अनुसार जीने लगते हो” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। परमेश्वर के वचनों ने जो उजागर किया, उससे मुझे यह मूल कारण पता चल गया कि मैं पैसे और शोहरत की बेड़ियों से क्यों कभी आजाद नहीं हो सकी। मैंने उस बात को याद किया जो बचपन में मेरे डैड अक्सर मुझे सिखाया करते थे, “हमारा परिवार गरीब है, जब तुम बड़ी हो जाओगी, तो तुम्हें ज्यादा पैसे कमाकर हमारा नाम रौशन करना होगा। जब हमारे पास पैसे होंगे तभी लोग हमारे बारे में अच्छा सोचेंगे।” मेरे डैड की बातें मेरी यादों में छपी थीं। मैंने सोचा कि इन बरसों में “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है” और “पैसा ही सब कुछ नहीं है, किन्तु इसके बिना, आप कुछ नहीं कर सकते हैं” जैसे शैतानी फलसफे मेरे जीवन की दिशा तय कर रहे थे। मेरा मानना था कि अगर मेरे पास पैसा होगा तो ही मैं सिर ऊँचा करके बात कर पाऊँगी और दूसरे मेरा सम्मान करेंगे। दूसरों से सम्मान पाने के चक्कर में, मैंने एक पैसे बनाने वाले रोबोट की तरह बिना रुके दिन-रात काम किया। थकने या नींद आने पर, मैं आराम नहीं करना चाहती थी, और जब बीमार पड़ी, तो भी मैंने डॉक्टर के पास नहीं जाना चाहा। जरा सा कारोबार गँवाने के डर से, मैंने अपना पूरा दिल पैसे कमाने में लगा दिया। जब भी कारोबार और सभाओं में से किसी एक को चुनने की बात आती, तो मैं पहले कारोबार के काम निपटाती और उसके बाद ही सभा में जाती। मैंने कभी सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने को आगे नहीं रखा, और जब मैं अपने कारोबार में व्यस्त रहती, तो सभाओं में जाती ही नहीं थी। मैं पैसों के जाल में फँस गई थी और खुद को इससे बाहर नहीं निकाल सकी, मैं अधिक से अधिक लालची और नीच बन गई। परमेश्वर के वचनों से जो उजागर हुआ, उससे मैंने इन विषों के जरिए लोगों को नुकसान पहुँचाने की शैतान की भयावह मंशा साफ तौर पर देखी। वह पैसे और शोहरत के पीछे भागने की लोगों की महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं का फायदा उठाकर उन्हें नुकसान पहुँचाना और पूरा निगल जाना चाहता था। अगर परमेश्वर ने शैतान की भयावह मंशा को उजागर न किया होता, तो मेरे लिए शैतान की कुटिल साजिश को समझना वाकई कठिन होता, और मैं अपना जीवन शैतान को सौंपते हुए पैसे के भँवर में फँसती चली जाती। इस अनुभव के बाद, मैं समझ गई कि चाहे मुझे कितना भी पैसा, भौतिक आनंद, और दूसरों से सम्मान मिले, मेरा दिल अभी भी खाली और पीड़ा में है। मेरे जीवन में रत्ती भर भी मूल्य या अर्थ नहीं था। अगर मैं अब भी अपने सामने मौजूद हितों को नहीं त्याग पाई और पैसों की चाह से चिपकी रही, तो अंत में पैसा यकीनन मुझे यातना दे-देकर मार डालेगा। इस जीवन में, मैं खुशकिस्मत थी जो मैंने परमेश्वर का अनुसरण किया, और मुझे अपने कानों से सृष्टिकर्ता के वचन सुनने और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने को मिला। यह मेरे जीवन की वह चीज थी जिसका सबसे अधिक मूल्य और अर्थ था। मैं भौतिक सुखों और दूसरों के सम्मान के लिए सत्य को त्याग नहीं सकती थी। बल्कि, परमेश्वर में विश्वास और उसकी आराधना ही मेरे अनुसरण का लक्ष्य था। यह राज्य के सुसमाचार के व्यापक विस्तार का समय है, और सृजित प्राणी के रूप में, मुझे अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य पूरा करना, सुसमाचार फैलाना और इसकी गवाही देनी चाहिए, ताकि ज्यादा लोग परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकें। मेरे जीवन का यही मूल्य और अर्थ है। परमेश्वर का इरादा समझने के बाद, अब मैं पैसे के प्रभाव में नहीं थी। जब मैं अपने मॉम-डैड के घर गई, तो उन्होंने अब कारोबार न करने के लिए मुझे नहीं डांटा, और कभी-कभी वे मुझे जीवन-यापन के खर्च के लिए कुछ पैसे भी देते। मैं अच्छी तरह जानती थी कि यह सब परमेश्वर का अनुग्रह और दया है, और मेरा दिल उसके प्रति आभार से भरा था।
मैंने सोचा कि इस सफर में, अगर परमेश्वर के वचनों ने मेरा मार्गदर्शन नहीं किया होता, तो मैं “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है” जैसे शैतानी जहर के काबू से बाहर नहीं निकल पाती, फिर अपना कारोबार छोड़कर कर्तव्य निभाना तो दूर की बात है। मैं समझ गई कि पैसा, शोहरत, रुतबा, गाड़ियाँ, घर वगैरह—वो सभी भौतिक चीजें तैरते बादल के समान क्षणभंगुर हैं। सिर्फ सत्य का अनुसरण करके, परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीकर, और सृजित प्राणी के रूप में कर्तव्य निभाकर ही व्यक्ति सबसे सार्थक और मूल्यवान जीवन जी सकता है। जैसा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “जब लोग संसार में करियर बनाते हैं, तो सिर्फ सांसारिक प्रवृत्तियों, प्रतिष्ठा और लाभ, और शारीरिक आनंद जैसी चीजों के बारे में सोचते हैं। इसका निहितार्थ क्या है? इसका मतलब यह है कि तुम्हारी ऊर्जा, समय और युवावस्था, सभी इन चीजों में व्याप्त और इस्तेमाल हो जाती हैं। क्या वे सार्थक हैं? आखिर में तुम्हें उनसे क्या हासिल होगा? भले ही तुम्हें प्रतिष्ठा और लाभ मिल जाए, फिर भी यह खोखला ही रहेगा। अगर तुमने अपनी जीवनशैली बदल ली, तब क्या होगा? अगर तुम्हारा समय, ऊर्जा और दिमाग सिर्फ सत्य और सिद्धांतों पर केंद्रित रहता है, और अगर तुम सिर्फ सकारात्मक चीजों के बारे में सोचते हो, जैसे कि अपना कर्तव्य अच्छे से कैसे निभाएँ और परमेश्वर के समक्ष कैसे आएँ, और अगर तुम इन सकारात्मक चीजों पर अपनी ऊर्जा और समय खर्च करते हो, फिर तुम्हें अलग परिणाम हासिल होगा। तुम्हें जो हासिल होगा वह सबसे मूलभूत लाभ होगा। तुम्हें पता चल जाएगा कि कैसे जीना है, कैसा आचरण करना है, हर तरह के व्यक्ति, घटना और चीज का सामना कैसे करना है। एक बार जब तुम जान जाओगे कि हर प्रकार के व्यक्ति, घटना और चीज का सामना कैसे करना है, तो यह काफी हद तक तुम्हें स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में सक्षम बनाएगा। जब तुम स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में सक्षम हो जाओगे, तो तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम उस प्रकार के व्यक्ति बन जाओगे जिसे परमेश्वर स्वीकार और प्यार करता है। इस बारे में सोचो, क्या यह अच्छी बात नहीं है? शायद तुम अभी तक यह नहीं जानते, मगर अपना जीवन जीने, और परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों को स्वीकारने की प्रक्रिया में, तुम अनजाने में ही परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीना, लोगों और चीजों को देखना, आचरण करना और कार्य करना सीख जाओगे। इसका मतलब यह है कि तुम अनजाने में ही परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पण करोगे, उसकी अपेक्षाओं के प्रति समर्पित होगे और उन्हें संतुष्ट करोगे। तब तुम उस तरह के व्यक्ति बन चुके होगे जिसे परमेश्वर स्वीकारता है, जिस पर वह भरोसा करता है और जिससे प्यार करता है, और तुम्हें इसकी भनक भी नहीं लगेगी। क्या यह बढ़िया नहीं है? (बिल्कुल है।) इसलिए, अगर तुम सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए अपनी ऊर्जा और समय खर्च करते हो, तो अंत में तुम्हें जो हासिल होगा वे सबसे मूल्यवान चीजें होंगी” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में I, सत्य का अनुसरण कैसे करें (18))। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैंने सत्य का अनुसरण करने के मूल्य और महत्व को बेहतर समझा। भले ही अब मैं पहले जितनी अमीर नहीं थी और मेरे कपड़े उतने उजले और सुंदर नहीं थे, पर मैं परमेश्वर से जीवन की आपूर्ति का आनंद ले रही थी। यह ऐसी चीज थी जो किसी को कितने भी पैसों के बदले में नहीं मिल सकती थी। मैंने सोचा कि कैसे इन बरसों में, मैंने बार-बार परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर उसके दिल को ठेस पहुँचाई, और कैसे पैसे के पीछे भागने के लिए कई बार मैंने उसके उद्धार को ठुकरा दिया। मैंने अपना कर्तव्य निभाने के महान अवसर को नहीं सँजोया, पर परमेश्वर सदैव मेरे साथ खड़ा रहा और उसने मेरे बदलने की प्रतीक्षा की; उसने मुझे बचाने से हार नहीं मानी। कारोबार छोड़ने के बाद, परमेश्वर ने मुझे अकेला या भूखा नहीं छोड़ा, और वह हर संभव तरीके से मेरी सहायता करता रहा। परमेश्वर के अनुग्रह का हिसाब नहीं लगाया जा सकता, चुकाना तो दूर की बात है। मुझे इस जीवन में परमेश्वर का अनुसरण करने के फैसले पर कभी पछतावा नहीं होगा। परमेश्वर के उद्धार के लिए धन्यवाद! परमेश्वर की महिमा बनी रहे!