20. आस्था के प्रति माता-पिता के विरोध का सामना करना

यांग मेई, चीन

2012 में सुसमाचार का प्रचार करते समय पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने मुझसे बहुत सख्ती से पूछताछ की और पूछा कि कलीसिया के अगुआ कौन हैं और सभाएँ कहाँ होती हैं और जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो उन्होंने मुझे पीटा और काफी समय तक पूछताछ के लिए वहाँ रोककर रखा। आखिरकार जब उन्होंने देखा कि उन्हें वह जानकारी नहीं मिल रही है जो वे चाहते थे तो उन्होंने मेरे माता-पिता को मुझे घर ले जाने दिया और उन्हें धमकी देते हुए कहा, “इस बार हम उसे छोड़ रहे हैं लेकिन तुम्हें उस पर कड़ी नजर रखनी होगी और उसे परमेश्वर पर विश्वास नहीं करने देना होगा। अगर वह ऐसा करती है और हम उसे पकड़ते हैं तो फिर उसे जेल भेज दिया जाएगा और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि तुम्हारा सब कुछ छिन जाए और तुम्हारा परिवार बर्बाद हो जाए!” इसके बाद मेरे माता-पिता ने मेरे परमेश्वर में विश्वास के रास्ते में बाधाएँ डालनी शुरू कर दीं। उन्हें डर था कि मैं परमेश्वर के वचन पढ़ूँगी, इसलिए वे हर जगह मुझ पर नजर रखते थे और यहाँ तक कि वे रात में मेरे कमरे में ही सोते थे और ऐसी कोई जगह नहीं थी जहाँ मैं आजाद रह सकूँ। मेरे अन्य रिश्तेदार भी मुझे समझ नहीं पाए। मेरी बुजुर्ग दादी हमारे घर आईं और इस डर से रोते हुए मुझसे गुहार लगाने लगीं कि मैं परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दूँ वरना मुझे गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाएगा। मेरे दादा जी ने भी कड़ी नजरों से मेरी ओर देखते हुए कहा, “तुम इतनी छोटी उम्र में परमेश्वर में विश्वास क्यों कर रही हो! परमेश्वर में विश्वास करने के कारण तुम्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और तुम्हारा आपराधिक रिकॉर्ड बन गया है, जिससे न केवल हमें शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है बल्कि हमारा पूरा परिवार फँस गया है! तुम्हें अपनी यह आस्था छोड़नी होगी!” अपने दादा जी की कड़ी नजरें देखकर मुझे गहरा दुख हुआ। मैंने मन ही मन में इसका खंडन करते हुए कहा कि, “परमेश्वर में विश्वास करना और उसकी आराधना करना पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है और यही सही मार्ग पर चलना है। सभी देशों के अच्छे लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं। आप मुझे क्यों नहीं समझते? चाहे आप मेरी राह में कितनी भी बाधाएँ क्यों न डालें, मैं परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं छोड़ूँगी!”

एक रात मेरी माँ मेरे कमरे में आईं और मेरे सामने घुटनों के बल बैठकर रोते हुए बोलीं, “अब परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दो! तुम हमारी इकलौती बेटी हो और अगर तुम्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और सजा दी गई तो न केवल पुलिस हमारे पैसे जब्त कर लेगी बल्कि तुम्हें यातना भी देगी। अगर तुम्हारे साथ कुछ बुरा हुआ तो यह परिवार बर्बाद हो जाएगा!” यह देखकर मैं चौंक गई और तुरंत अपनी माँ की मदद करने के लिए दौड़ी। अपनी माँ को इतना दुखी देखकर मैं भी फूट-फूट कर रो पड़ी। मुझे नहीं पता था कि उन्हें क्या जवाब दूँ। मेरे जीवन भर में मेरे पिता काम के कारण हमेशा घर से दूर ही रहे और मेरी माँ ने ही मेरा पालन-पोषण करने की कठिनाई को सहा था। अब मैं बड़ी हो गई थी लेकिन मैंने अभी तक मेरा पालन-पोषण करने का ऋण नहीं चुकाया था और अब वह मेरे सामने घुटनों के बल बैठकर मुझसे गुहार लगा रही थी। मुझे लगा जैसे मैं बहुत ही नालायक हूँ। इस सोच ने मुझे थोड़ा कमजोर महसूस कराया, “मेरी माँ मेरे सामने घुटनों के बल बैठकर मुझसे गुहार लगा रही है और अगर मैंने उनकी भावनाओं का बिल्कुल भी ख्याल नहीं किया तो क्या इससे उन्हें बहुत दुख नहीं होगा?” मैं बहुत परेशान हो गई, इसलिए मैंने मन ही मन प्रार्थना करके परमेश्वर से मुझे दृढ़ बनाए रखने की विनती की। प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अंधकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शांति और आनंद प्रदान करूँगा। दूसरों के सामने एक विशेष तरह का होने का प्रयास मत करो; क्या मुझे संतुष्ट करना अधिक मूल्य और महत्व नहीं रखता? मुझे संतुष्ट करने से क्या तुम और भी अनंत और जीवनपर्यंत शान्ति या आनंद से नहीं भर जाओगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने मेरा मन हल्का कर दिया। बाहरी तौर पर ऐसा लग रहा था कि मेरी माँ घुटनों के बल बैठकर मुझसे गुहार लगा रही थीं लेकिन असल में इसके पीछे शैतान की साजिश थी। शैतान नहीं चाहता था कि मैं परमेश्वर का अनुसरण करूँ और बचाई जाऊँ, वह मुझे ललचाने और मुझ पर हमला करने के लिए मेरी माँ का इस्तेमाल कर रहा था और कोशिश कर रहा था कि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ और उसके साथ नरक में जाऊँ। मैं शैतान की साजिश में नहीं फँस सकती थी; मुझे अपनी गवाही में मजबूती से खड़ी रहकर उसे शर्मिंदा करना था! इस सोच ने मुझे और अधिक दृढ़ बना दिया। रोजमर्रा के मामलों में मैं अपनी माँ की बात मान सकती थी लेकिन आस्था के मामलों में मैं ऐसा नहीं कर सकती थी। मैंने परमेश्वर में विश्वास करने का दृढ़ निश्चय कर लिया!

बाद में परमेश्‍वर पर विश्वास करने के प्रति मेरे दृढ़ रवैये को देखकर मेरे माता-पिता ने मुझ पर अपनी निगरानी और भी कड़ी कर दी। मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती कि वह मेरे लिए कोई मार्ग खोले। बाद में एक बहन ने मुझे अपने स्टोर में नौकरी की पेशकश की और इससे मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ने और भाई-बहनों के साथ संगति करने का अवसर मिल सकता था, इसलिए मैंने खुशी-खुशी इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन मुझे हैरानी हुई जब मेरे पिता ने गुप्त रूप से मेरा पीछा किया। एक दिन जब मैं एक सभा में थी तो अचानक मुझे मेरे पिता का फोन आया और उन्होंने पूछा कि मैं कहाँ हूँ। मैंने बुद्धिमानी से उन्हें जवाब दिया कि मैं काम पर हूँ लेकिन उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं हुआ और वे स्टोर पर आ धमके। सौभाग्य से मैं उनसे पहले स्टोर पर पहुँच गई और वह मुझे देखने के बाद ही वहाँ से चले गए। एक और बार जब मैं एक सभा में जा रही थी, जैसे ही मैं मेजबान के घर के पास पहुँची तो मैंने पीछे मुड़कर देखा और पाया कि मेरे पिता जी मेरा पीछा कर रहे हैं, इसलिए मैं सभा में जाने की हिम्मत नहीं कर पाई और मुझे घर लौटना पड़ा। मेरे पिता न केवल बाहर जाते समय मेरा पीछा और निगरानी करते थे बल्कि कभी-कभी घर पर भी मेरे कमरे में यह जाँचने के लिए आ जाते थे कि कहीं मैं परमेश्वर के वचन तो नहीं पढ़ रही। एक रात मैंने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और चुपके से अंदर परमेश्वर के वचन पढ़ने लगी कि तभी अचानक मैंने दरवाजे पर “ठक-ठक-ठक” की दस्तक सुनी और मुझे बहुत डर लगने लगा। इससे पहले कि मैं परमेश्वर के वचनों की किताबें छिपा पाती और दरवाजा खोलती, मेरे पिता ने बालकनी का काँच तोड़ दिया और वे अंदर आ गए। उन्होंने वैनिटी से एक बोतल उठाई और उससे मुझे मारने लगे और मुझे गालियाँ देते हुए बोले, “मैंने कहा था कि परमेश्वर में विश्वास मत करना! मैं तुम्हें यह आस्था जारी रखने नहीं दूँगा!” उन्होंने चिल्लाते हुए परमेश्वर के खिलाफ तिरस्कार भरे शब्द भी बोले। फिर मेरी माँ ने भी मुझे डाँटा और कहा, “अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखती हो, तो तुम्हारे पिता और मैं तुम्हें त्याग देंगे। फिर देखते हैं कि तुम कैसे अपना प्रबंध करती हो!” मैं सच में बहुत डर गई थी और मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे पिता मुझे चोट पहुँचा सकते हैं और वे वास्तव में मुझे घर से निकाल सकते हैं, इसलिए मैंने परमेश्वर को पुकारा और कहा, “हे परमेश्वर, इस परिस्थिति पर काबू पाने के लिए मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, कृपया मेरा मार्गदर्शन कर और मेरी रक्षा कर, मुझे आस्था और शक्ति दे।” फिर मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “तुम्हें किसी भी चीज से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। यह सच है कि परमेश्वर ही मेरा सहारा है, सभी चीजें और घटनाएँ परमेश्वर के हाथों में हैं और मेरे माता-पिता भी परमेश्वर के नियंत्रण में हैं। परमेश्वर की अनुमति के बिना वे मेरे साथ कुछ भी नहीं कर सकते थे। जब मेरे माता-पिता ने देखा कि चाहे वे कुछ भी कहें, मैंने परमेश्वर में विश्वास करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है, तो वे इतना गुस्सा हुए कि पलटकर वहाँ से चले गए।

माता-पिता के जाने के बाद मैंने सोचा कि कैसे मेरे पिता ने मुझे पीटा और मुझे बहुत दुख हुआ। मेरे पूरे जीवन में मेरे पिता ने मुझे कभी भी नहीं मारा था लेकिन मुझसे हमेशा प्रेम करने वाले मेरे माता-पिता सिर्फ इसलिए मुझे अपना दुश्मन मानने लगे कि मैं परमेश्वर में विश्वास करती थी। मेरे पिता ने मुझे बोतल से मारा और मेरी माँ ने यहाँ तक कह दिया कि वे मुझे नहीं चाहतीं। अगर उन्होंने सच में मुझे घर से निकाल दिया तो मेरे पास कोई घर नहीं होगा और मैं बिल्कुल अकेली हो जाऊँगी, फिर मैं कहाँ जाऊँगी? मैं थोड़ी कमजोर पड़ गई और मैंने सोचा कि चीन में परमेश्वर में विश्वास करना कितना मुश्किल काम है। मैंने सोचा कि क्या मुझे बस अपने दिल में विश्वास रखना चाहिए और सभाओं में नहीं जाना चाहिए ताकि परिवार फिर से पहले की तरह मिलजुलकर रह सके और वे मुझसे पहले जैसा प्रेम करें। लेकिन सभाओं में न जाने के बारे में सोचकर मुझे बहुत दुख हुआ क्योंकि भाई-बहनों के साथ संगति करने और परमेश्वर के वचन पढ़ने से मुझे कुछ सत्य को समझने में मदद मिली थी और मुझे यह जानने का अवसर मिला था कि परमेश्वर में विश्वास करना ही जीवन के सही मार्ग पर चलना है और यह कि जीवन में सब कुछ परमेश्वर की तरफ से आता है। परमेश्वर में विश्वास करने से मुझे शांति, आनंद और किसी पर भरोसा करने की समझ मिलती थी और इससे मुझे बहुत खुशी होती थी। लेकिन अपने माता-पिता द्वारा सताए जाने का दर्द बहुत गहरा और घुटनभरा था, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि वह अपना इरादा समझने में मेरा मार्गदर्शन करे और इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए आस्था प्रदान करे। बाद में मैंने परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए खुद को बलिदान करना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक सामंजस्यपूर्ण पारिवारिक जीवन का आनंद लेने के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनंद के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम ऐसा साधारण और सांसारिक जीवन जीते हो और तुम्हारे पास अनुसरण का कोई लक्ष्य नहीं है, तो क्या यह अपना जीवन बर्बाद करना नहीं है? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों का त्याग करना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने से मेरे दिल में स्पष्टता आई। चीन जो परमेश्वर का सबसे अधिक प्रतिरोध करने वाला देश है, वहाँ परमेश्वर में विश्वास रखने पर सताया जाना निश्चित है। परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए व्यक्ति में आस्था और कठिनाइयों को सहने की इच्छा होनी चाहिए। लेकिन जब मेरे माता-पिता अक्सर मुझे पीटते, डाँटते और सताते थे तो थोड़ी सी कठिनाइयाँ झेलने के बाद मेरा दिल परेशान हो गया था और मैंने शिकायत की कि परमेश्वर में विश्वास करना वास्तव में बहुत दर्दनाक है और यहाँ तक कि मैंने सभाओं में न जाने पर भी विचार किया। मैं बहुत कमजोर थी और मुझमें कोई दृढ़ता नहीं थी! परमेश्वर में विश्वास करना और उसकी आराधना करना पूरी तरह स्वाभाविक और उचित है, लेकिन मेरे माता-पिता की मुझे समझने में असमर्थता और उनका मुझे सताना, यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के कारण था जो परमेश्वर का विरोध करती है, हर जगह ईसाइयों को गिरफ्तार करती है, निराधार अफवाहें फैलाती है और परमेश्वर की निंदा करती है। इसने मेरे अविश्वासी परिवार को गुमराह किया और उन्हें मेरे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने और मुझे सताने के लिए प्रेरित किया। लेकिन मैंने गलती से यह मान लिया कि यह कष्ट परमेश्वर में मेरी आस्था के कारण हुआ है। मैं सही-गलत में अंतर करने में पूरी तरह से असमर्थ थी, मैं अंधी और मूर्ख थी! मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने देहधारण किया और चीन में आया जो एक ऐसा देश है जो उसका सबसे अधिक विरोध करता है और यहाँ उसे नास्तिक शासन से गिरफ्तारी और उत्पीड़न के साथ ही धार्मिक दुनिया से प्रतिरोध और निंदा का सामना करना पड़ा, लेकिन परमेश्वर हमेशा चुपचाप सत्य को व्यक्त करता रहा है और मानवता को बचाने के लिए सभी प्रकार की पीड़ाओं को सहता रहा है। फिर भी मैं सिर्फ थोड़े से कष्ट के कारण परमेश्वर के बारे में शिकायत कर रही थी और केवल एक आरामदायक और आसान जीवन जीने की इच्छा रखती थी और परमेश्वर पर अपने विश्वास में सत्य को पाने के लिए कष्ट सहने या उत्पीड़न का सामना करने के लिए तैयार नहीं थी। मुझमें सचमुच अंतरात्मा की कमी थी। मैंने इस बारे में भी सोचा कि कैसे परमेश्वर ने सत्य व्यक्त करने और मानवता को बचाने के लिए अंत के दिनों में देहधारण किया है। यह जीवन में केवल एक बार मिलने वाला अवसर था और यह मेरे लिए सत्य प्राप्त करने और परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का एकमात्र अवसर होगा। अगर मैंने केवल अस्थायी पारिवारिक सद्भाव का आनंद लेने के लिए परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ दी और परमेश्वर के उद्धार का यह मौका गँवा दिया तो यह मेरे लिए जीवन भर का पछतावा होगा! चाहे मेरे माता-पिता मुझे कितना भी प्रेम करते हों वे मुझे आपदा से बचा नहीं सकते थे। केवल परमेश्वर ही मेरा एकमात्र सहारा है। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास न करती या सत्य का अनुसरण न करती, केवल आराम और पारिवारिक सद्भाव का आनंद लेती और यह सब करते हुए एक खाली जीवन जीती तो इसका क्या मतलब होता? अंत में मैं भी तो वही भ्रष्टता और बुराई वाला मार्ग अपनाती जिस पर सांसारिक लोग चलते हैं और शैतान द्वारा और भी अधिक भ्रष्ट कर दी जाती तो आखिरकार शैतान के साथ ही नष्ट हो जाती। इस बारे में सोचकर मुझे बहुत शांति महसूस हुई और मैंने संकल्प लिया कि चाहे मेरे माता-पिता मुझे कितना भी सताएँ या रोकें, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी!

अगले दिन मेरे पिता फिर से मेरे कमरे में आए। वह पिछले दिन की तरह कठोर नहीं थे और उन्होंने माथे पर शिकन के साथ कहा, “कुछ ऐसी बातें हैं जो मैंने तुम्हें पहले नहीं बताईं थीं। क्योंकि मुझे डर था कि तुम परेशान हो जाओगी। जब से तुम्हें गिरफ्तार करने के बाद रिहा किया गया है, गाँव के कुछ लोग कह रहे हैं कि हमारे गाँव से एक युवा अपराधी निकला है और तुम्हारी माँ और मैं जब बाहर जाते हैं तो सिर भी नहीं उठा सकते। तुम्हें पालना हमारे लिए आसान नहीं था लेकिन अगर तुम हमारे बारे में नहीं भी सोचती तब भी तुम्हें कम से कम अपने बारे में सोचना चाहिए! अगर तुम्हें तुम्हारी आस्था के लिए फिर से गिरफ्तार किया गया तो तुम्हारा जीवन खत्म हो जाएगा!” यह कहने के बाद वे चले गए। अपने पिता को दर्द भरे भाव के साथ जाते हुए देखकर मैं भी दुखी हो गई। पहले हर कोई मुझे एक प्यारी और समझदार बच्ची के रूप में देखता था लेकिन अब पुलिस की गिरफ्तारी के बाद, जो लोग तथ्यों को नहीं समझते थे उन्होंने सोचा कि मैंने वहाँ जरूर कुछ बुरा किया होगा। मेरे माता-पिता को इस दौरान बहुत सारे तिरस्कार और कठोर बातें सहनी पड़ी होंगी। मैंने सोचा कि मेरे माता-पिता ने मुझे पालने के लिए कितनी मेहनत की थी लेकिन मैंने उन्हें कभी गर्व महसूस नहीं कराया बल्कि उन्हें इस स्थिति में डाल दिया कि लोग उनकी ओर उँगली उठाएँ और उन्हें नीचा दिखाएँ। मुझे लगा कि मैंने उन्हें वास्तव में निराश कर दिया है। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : ‘क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।’ तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण लोगों को अपमान और अत्याचार का सामना करना पड़ता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि परमेश्वर में विश्वास करके जीवन के सही मार्ग पर चलना गलत नहीं है लेकिन क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी पागलपन से परमेश्वर का विरोध करती है, विश्वासियों को गिरफ्तार करती और सताती है, इसलिए चीन जैसे नास्तिक देश में विश्वासियों को बहुत अपमान और उत्पीड़न सहना पड़ता है। ऐसा इसलिए नहीं कि परमेश्वर में विश्वास करना गलत है बल्कि इसलिए कि कम्युनिस्ट पार्टी बेहद बुरी है जो विश्वासियों और उनके परिवारों को अंतहीन नुकसान और कष्ट पहुँचाती है। इन सभी कष्टों के पीछे मुख्य दोषी कम्युनिस्ट पार्टी थी और मुझ पर अपने माता-पिता का कोई कर्ज नहीं था। यह सोचकर मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मैंने यह भी समझा कि भले ही आज हम परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण अपमान और उत्पीड़न सहते हैं लेकिन यह कष्ट अस्थायी है। परमेश्वर इस कष्ट का उपयोग मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए कर रहा था इसलिए इस कष्ट का एक अर्थ था और मुझे परमेश्वर पर निर्भर रहना चाहिए और दृढ़ता से आगे बढ़ना चाहिए। इस बात को ध्यान में रखते हुए मुझे थोड़ी आस्था मिली और मैं अब कोई दर्द या परेशानी महसूस नहीं कर रही थी।

2013 की गर्मियों में जब मैं अपने कर्तव्य निभाकर घर लौटी तो मेरी माँ ने घबराकर कहा, “पुलिस थाने से फोन आया था और उन्होंने कहा कि वे तुमसे मिलना चाहते हैं।” यह सुनकर मैं सच में डर गई, मैं यह नहीं समझ पा रही थी कि पुलिस मुझसे क्या चाहती है, इसलिए मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे अपने लिए बुद्धि माँगी ताकि मैं शैतान की साजिशों की असलियत जान सकूँ और अपनी गवाही में दृढ़ रह सकूँ। पुलिस थाने में पुलिस ने मुझसे कलीसिया के बारे में कुछ सवाल पूछे और उन्होंने मुझे परमेश्वर के खिलाफ निंदात्मक शब्द लिखने के लिए भी कहा। मैं जानती थी कि परमेश्वर के खिलाफ निंदा करना इस जीवन और अगले जीवन में अक्षम्य पाप है और यह लिखना परमेश्वर के साथ विश्वासघात करना होगा, इसलिए मैंने दृढ़ता से ऐसा करने से इनकार कर दिया। जब मेरे पिता ने देखा कि मैंने उनकी कही हुई बातें लिखने से इनकार कर दिया है तो उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया और उन्होंने पुलिस से कहा, “अगर यह अपनी आस्था पर अड़ी रहती है तो इसे ले जाओ!” मैं अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पाई। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे पिता पुलिस के साथ मिलकर मुझ पर मेरी आस्था छोड़ने का दबाव डालेंगे, यहाँ तक कि उन्होंने पुलिस से मुझे गिरफ्तार करने का आग्रह किया। ये मेरे वो पिता नहीं थे जिन्हें मैं जानती थी! बाद में जब पुलिस ने देखा कि मैंने लिखने से इनकार कर दिया है तो उन्होंने मुझे घर जाने दिया और मुझे तीन दिनों में धर्मत्याग की गारंटी देने के लिए कहा। घर लौटने के बाद इस विचार से मैं अंदर तक सहम गई कि कैसे मेरे पिता मुझे पुलिस को सौंप देना चाहते थे। मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंशों के बारे में सोचा : “अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के नाम का उल्लेख किए जाने पर कुपित हो जाता है और क्रोध से फनफना उठता है, तो क्या उसने परमेश्वर को देखा है? क्या वह जानता है कि परमेश्वर कौन है? वह नहीं जानता कि परमेश्वर कौन है, उस पर विश्वास नहीं करता और परमेश्वर ने उससे बात नहीं की है। परमेश्वर ने उसे कभी परेशान नहीं किया है, तो फिर वह गुस्सा क्यों होता है? क्या हम कह सकते हैं कि यह व्यक्ति दुष्ट है? दुनिया के रुझान, खाना, पीना और सुख की खोज करना, और मशहूर हस्तियों के पीछे भागना—इनमें से कोई भी चीज ऐसे व्यक्ति को परेशान नहीं करेगी। किंतु ‘परमेश्वर’ शब्द या परमेश्वर के वचनों के सत्य के उल्लेख मात्र से ही वह आक्रोश से भर जाता है। क्या यह दुष्ट प्रकृति का होना नहीं है? यह ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि इस मनुष्य की प्रकृति दुष्ट है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। “एक विश्वासी पति और अविश्वासी पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं होता और विश्वासी बच्चों और अविश्वासी माता-पिता के बीच कोई संबंध नहीं होता; ये दोनों तरह के लोग पूरी तरह असंगत हैं। विश्राम में प्रवेश करने से पहले, लोगों में दैहिक, पारिवारिक स्नेह होता है, लेकिन एक बार जब वे विश्राम में प्रवेश कर जाते हैं, फिर दैहिक, पारिवारिक स्नेह जैसी कोई बात नहीं रह जाती(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों ने उजागर किया कि अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर को नहीं जानता या उस पर कभी विश्वास नहीं किया है लेकिन जैसे ही “परमेश्वर” का नाम लिया जाता है, वह गुस्से और घृणा से भर जाता है तो यह दर्शाता है कि उस व्यक्ति की प्रकृति ही बुरी है और वह परमेश्वर का विरोधी है। मैंने इस बात पर विचार किया कि कैसे मेरे पिता हमेशा मेरी आस्था के प्रति घृणास्पद रवैया रखते थे और जब भी वे मुझे सभा करते या परमेश्वर के वचन पढ़ते हुए देखते थे तो वे घृणा में अपने दाँत पीसते थे, उनकी आँखें क्रोध से चमक उठती थीं और यहाँ तक कि वे परमेश्वर का तिरस्कार भी करते थे। मेरे विश्वास को रोकने के लिए वे अक्सर मुझ पर अपराधी की तरह नजर रखते थे, मेरा पीछा करते थे, मेरी निगरानी करते थे, मुझे कोई आजादी नहीं देते थे और जब उन्हें पता चला कि मैं अपने कमरे में परमेश्वर के वचन पढ़ रही हूँ तो वे पागल से हो गए, खिड़की तोड़कर अंदर आ गए और उन्होंने मुझे मारा। मुझे परमेश्वर को धोखा देने को मजबूर करने के लिए उन्होंने सक्रियता से पुलिस को मुझे गिरफ्तार करने का सुझाव भी दिया, उन्होंने इस बात की कोई परवाह नहीं की कि मैं जीवित रहूँगी या मर जाऊँगी और न ही उन्होंने पिता-पुत्री वाला किसी भी प्रकार का कोई स्नेह दिखाया। इस बात ने मुझे समझा दिया कि उनका प्रकृति सार ही ऐसा है जो परमेश्वर का प्रतिरोध और उससे घृणा करता है। परमेश्वर कहता है कि विश्वासी और अविश्वासी दो अलग प्रकार के लोग हैं और यह सच भी है! मैं परमेश्वर और सत्य का अनुसरण कर रही थी और जीवन में सही मार्ग पर चल रही थी जबकि मेरे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे और मुझे सताने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी का अनुसरण कर रहे थे। भले ही हमारे बीच खून का रिश्ता था लेकिन हम एक ही मार्ग पर नहीं थे और मूल रूप से असंगत थे। इन बातों का अनुभव करके मुझे अपने माता-पिता के सार का भेद पहचानने का मौका मिला और मैं उनके प्रति अपने भावनात्मक लगाव को कुछ हद तक छोड़ने में सक्षम हुई। बाद में क्योंकि पुलिस थाना लगातार मुझसे धर्मत्याग की गारंटी पर हस्ताक्षर करने की माँग कर रहा था, इसलिए मैंने घर छोड़ दिया और कहीं छिप गई।

फिर एक और घटना घटी जिसने मुझे मेरे माता-पिता के सार को और अधिक स्पष्टता से देखने में सक्षम बनाया। एक रात जब मैं अपने कर्तव्य निभाने के दौरान अपने गाँव से गुजर रही थी तो मैं कुछ चीजें लेने के लिए वापस घर गई, मेरे माता-पिता ने मुझे वापस आया देखकर फिर से आग्रह किया कि मैं परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दूँ। मेरे पिता जी ने कहा, “हमने इस उम्मीद के साथ तुम्हारा पालन-पोषण किया था कि जब हम बूढ़े हो जाएँगे तब तुम हमारा सहारा बनोगी, लेकिन अब जब तुम हर दिन सभाओं में जाती हो तो ऐसा लगता है कि हम तुम पर निर्भर नहीं हो सकते।” पहले तो मैंने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ जब मेरे पिता अचानक अपने चेहरे पर थप्पड़ मारने लगे और वे यह माँग करते हुए खुद को मारने लगे कि मैं परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दूँ और इसके कारण उनकी नाक से खून बहने लगा। मैं हैरान रह गई। मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि मेरे पिता ऐसे तरीकों का सहारा लेंगे ताकि मुझे परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ने के लिए मजबूर कर सकें। मेरी माँ भी रो रही थीं और मुझसे आग्रह कर रही थीं। मैं बहुत परेशान हो गई और अपने आँसुओं को रोक नहीं पाई, मैंने सोचा, “अगर मेरे पिता खुद को मारते रहे तो कहीं उन्हें कोई गंभीर चोट तो नहीं लग जाएगी? आखिरकार वे मेरे पिता हैं और मैं उन्हें खुद को चोट पहुँचाते हुए तो नहीं देख सकती लेकिन मैं परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ने के लिए सहमत भी तो नहीं हो सकती। मुझे क्या करना चाहिए?” उस समय मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए; उन्हें एक दूसरे को सहारा दे पाना और एक दूसरे का भरण-पोषण कर पाना चाहिए, ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि मेरे पिता का खुद को चोट पहुँचाना मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए था और यह शैतान की एक साजिश थी। इसलिए मैंने उनके साथ कोई समझौता नहीं किया। जब मेरे माता-पिता ने देखा कि मैं अडिग हूँ तो उन्होंने आखिरकार बोलना बंद कर दिया।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार की इच्छाएँ पालते हैं? क्या उनकी मंशा उनकी खुद की योजनाओं और स्वार्थी आकांक्षाओं को पूरा करने की नहीं है? क्या उनका इरादा वास्तव में परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए कार्य करने का है? क्या वे परमेश्वर के कार्य के लिए कार्य कर रहे हैं? क्या उनकी मंशा सृजित प्राणी के कर्तव्यों को अच्छे से पूरा करने की है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि माता-पिता का अपने बच्चों के लिए प्रेम उनकी अपनी स्वार्थी इच्छाओं से प्रेरित होता है। जब मुझे परमेश्वर में विश्वास करने के कारण गिरफ्तार किया गया तो मेरे माता-पिता को लगा कि मैंने उन्हें शर्मिंदा कर दिया है और उन्हें पुलिस द्वारा परेशान किए जाने का भी डर था। इसलिए उन्होंने मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए विभिन्न तरीकों का सहारा लिया, यहाँ तक कि मुझे मजबूर करने के लिए वे खुद को ही चोट पहुँचाने लगे। मुझे एहसास हुआ कि उनका मेरे प्रति प्रेम सच्चा नहीं था। माता-पिता का प्रेम अशुद्ध होता है और यह उनके अपने निजी हितों के लिए होता है। अगर मैंने उनकी बात मानी और परमेश्वर में अपना विश्वास छोड़ दिया तो मैं कैसे बचाई जा सकूँगी? वे मुझसे प्रेम नहीं करते थे; बल्कि वे मुझे नुकसान पहुँचा रहे थे! मैं अब और स्नेह के आगे बेबस नहीं रह सकती थी। चाहे मेरे माता-पिता मुझे रोकने या सताने की कितनी भी कोशिश करें, मैंने अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का संकल्प लिया।

बाद में जब मैंने मेरे पिता के खुद को मारने की घटना को याद किया तो मुझे अब भी थोड़ी बेचैनी और कमजोरी महसूस हुई। मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “युवाओं को उस सत्य के मार्ग पर बने रहने की दृढ़ता होनी चाहिए, जिसे उन्होंने अब चुना है—ताकि वे मेरे लिए अपना पूरा जीवन खपाने की अपनी इच्छा साकार कर सकें। उन्हें सत्य के बिना नहीं होना चाहिए और न ही पाखंड और अधर्म को स्थान देना चाहिए—उन्हें उचित दृष्टिकोण में दृढ़ता से खड़ा रहना चाहिए। उन्हें सिर्फ यूँ ही धारा के साथ बह नहीं जाना चाहिए, बल्कि उनमें न्याय और सत्य के लिए बलिदान और संघर्ष करने की हिम्मत होनी चाहिए। युवा लोगों में अँधेरे की शक्तियों के दमन के सामने समर्पण न करने और अपने अस्तित्व के महत्व को रूपांतरित करने का साहस होना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन)। परमेश्वर के वचनों से मैंने महसूस किया कि एक सृजित प्राणी के रूप में, मुझे परमेश्वर में विश्वास करना और उसका अनुसरण करना चाहिए और अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। इसी तरह से जीवन में मूल्य और अर्थ होता है। अगर मैंने पारिवारिक सद्भाव की खातिर अस्थायी आराम की तलाश की और सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का अपना अवसर खो दिया, तो क्या मैं अपना जीवन व्यर्थ नहीं कर दूँगी? चूँकि मैंने परमेश्वर में विश्वास करने का चयन किया है, इसलिए मुझे किसी भी व्यक्ति या चीज से बेबस नहीं होना चाहिए और मुझे दृढ़ता से आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक युवा व्यक्ति में यही संकल्प और दृढ़ता होनी चाहिए। मैंने पतरस के बारे में सोचा जिसके माता-पिता ने परमेश्वर में उसके विश्वास का विरोध किया था, लेकिन पतरस में न्याय की भावना थी और उसे स्पष्ट पता था कि वह किससे प्रेम करता है और किससे घृणा करता है। वह अपने अविश्वासी माता-पिता के आगे बेबस नहीं हुआ और दृढ़ता से प्रभु यीशु का अनुसरण किया। प्रभु का अनुसरण करते हुए उसने परमेश्वर के न्याय, ताड़ना, परीक्षाओं और शोधन का अनुभव किया, उसका जीवन स्वभाव बदल गया और अंत में, परमेश्वर की गवाही के लिए उसे उल्टा क्रूस पर चढ़ा दिया गया। पतरस का जीवन वास्तव में सबसे अर्थपूर्ण था। भले ही मैं पतरस की मिसाल से बहुत पीछे थी, लेकिन उससे प्रेरित होकर किसी भी व्यक्ति या चीज के आगे बेबस नहीं होना चाहती थी, बल्कि सत्य का अनुसरण करना और एक सार्थक जीवन जीना चाहती थी। परमेश्वर के इरादे को समझने के बाद मेरा दिल पूरी तरह से मुक्त महसूस हुआ। मुझे अब मेरे प्रति अपने माता-पिता के रवैये के कारण कोई परेशानी महसूस नहीं हुई और मैं केवल परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना चाहती थी। बाद में जब मेरे माता-पिता ने देखा कि मैं परमेश्वर में विश्वास करने का दृढ़ निश्चय रखती हूँ और उनके पास वास्तव में मुझे रोकने का और कोई तरीका नहीं बचा, तो उन्होंने मुझे परेशान करना बंद कर दिया। अब मैं लगातार कलीसिया की सभाओं में भाग ले रही हूँ और अपना कर्तव्य निभा रही हूँ और मेरा दिल सच में शांति और सुकून से भरा हुआ है!

पिछला: 19. हीनता की भावनाओं का समाधान कैसे करें

अगला: 21. किसी पर हमला करने और उसे बाहर करने के बाद आत्म-चिंतन

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

37. आवारा पुत्र की वापसी

लेखिका: रूथ, अमेरिकामैं दक्षिणी चीन के एक छोटे-से शहर में पैदा हुई। मेरी मॉम की तरफ के खानदान में पड़नानी के ज़माने से परमेश्वर में विश्वास...

32. एक महत्वपूर्ण खोज

लेखिका: फांगफांग, चीनमेरे परिवार के सब लोग प्रभु यीशु में विश्वास रखते हैं। मैं कलीसिया में एक साधारण विश्वासी थी और मेरे डैड कलीसिया में...

18. मुझे अपनी गलतफहमियों और रक्षात्मक-प्रवृत्ति से नुकसान हुआ

सुशिंग, चीनकुछ समय पहले, हमारी कलीसिया की अगुआ ने अपना पद गँवा दिया क्योंकि उसने न तो सत्य का अनुशीलन किया और न ही कोई व्यावहारिक काम किया।...

13. यह आवाज़ कहाँ से आती है?

लेखिका: शियीन, चीनमेरा जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था। मेरे बहुत से सगे-संबंधी प्रचारक हैं। मैं बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ प्रभु में...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें