23. अत्यधिक प्रतिस्पर्धी होना सभी को नुकसान पहुँचाता है

लियू जिंग, चीन

2016 में मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया। मैं वाकई प्रेरित हो गई और मैंने इस कर्तव्य को ठीक से करने और कलीसिया के सभी काम अच्छी तरह से सँभालने की पूरी कोशिश करने का संकल्प लिया ताकि भाई-बहन देख सकें कि उन्होंने सही व्यक्ति को चुना है। लेकिन मुझे जल्द ही पता चला कि मेरी सहयोगी बहन ली शिन मुझसे ज्यादा समय से अपना कर्तव्य निभा रही है, उसकी काबिलियत बेहतर है और वह सत्य की ज्यादा स्पष्ट संगति कर सकती है। जब हम एक साथ सभाओं में हिस्सा लेती थीं तो वह भाई-बहनों द्वारा उठाए गए ज्यादातर सवालों का समाधान करने में सक्षम होती थी और भाई-बहनों को उसकी संगति सुनने में आनंद आता था। यह सब देखकर मैं थोड़ी असहज हो गई, सोचने लगी, “ली शिन की सत्य पर संगति वाकई काफी स्पष्ट है, लेकिन अगर ऐसे ही चलता रहा तो दूसरे लोग उसका सम्मान करेंगे। फिर मेरी बात पर कौन ध्यान देगा? ऐसा नहीं चलेगा, मुझे खुद को साबित करने का कोई तरीका ढूँढ़ना होगा।” उसके बाद मैं परमेश्वर के वचन खाने-पीने और खुद को सत्य से सुसज्जित करने के लिए अक्सर देर तक जागने लगी। सभाओं के दौरान जब भी परमेश्वर के वचनों पर किसी की संगति रोशन करने वाली होती, मैं जल्दी-जल्दी नोट्स बना लेती ताकि मैं अन्य समूहों के साथ सभाओं में संगति कर सकूँ, जिससे भाई-बहनों को पता चले कि मैं भी काफी कुछ समझती हूँ। बाद में चूँकि ली शिन अपेक्षाकृत दूरदराज के इलाके में रहती थी, इसलिए भाई-बहनों के लिए अपने सवालों में उससे सलाह लेना असुविधाजनक था, मैंने इसे कलीसिया के सभी काम अपने हाथ में लेने के अवसर के रूप में देखा और कभी-कभी ली शिन के साथ चर्चा किए बिना ही व्यवस्थाएँ करने लगी। समय के साथ ली शिन को लगा कि वह कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रही है और अपने कर्तव्यों के प्रति उसकी प्रेरणा कम होने लगी। इसके अलावा उसके भारी पारिवारिक बोझ ने उसकी मनोदशा को अधिक से अधिक नकारात्मक बना दिया और कई बार उसने मुझे देखकर गहरी आह भरी और कहा कि वह इस कर्तव्य को करने में सक्षम नहीं है। भले ही मैं उसके साथ संगति करती हुई दिखती थी, लेकिन अंदर से मैं उम्मीद करती थी कि वह नकारात्मक बनी रहे, सोचती थी कि इससे मैं और भी ज्यादा अलग दिखूँगी। बाद में ली शिन की मनोदशा लगातार खराब रहने के कारण उसे बर्खास्त कर दिया गया और कलीसिया ने बहन वांग लिंग को नई अगुआ चुना। यह देखकर कि वांग लिंग में अच्छी काबिलियत है, मुझे संकट का एहसास हुआ और लगा कि थोड़े प्रशिक्षण के बाद वह मुझसे आगे निकल सकती है, इसलिए मैं नहीं चाहती थी कि वह अलग दिखे। संयोग से नव निर्वाचित होने के कारण वांग लिंग काम से अपरिचित थी, इसलिए मैंने इस बात को बहाना बनाकर कलीसिया के काम पर पूरा नियंत्रण कर लिया और उसे अपनी प्रतिभा दिखाने के अवसरों से वंचित कर दिया। एक बार कलीसिया के एक कार्य के लिए तत्काल संगति और कार्यान्वयन की जरूरत थी, लेकिन चूँकि वांग लिंग स्थानीय नहीं थी, वह कुछ सभा स्थलों से अपरिचित थी। मैंने उसे क्षेत्र से परिचित कराने या साथ मिलकर कार्य को कार्यान्वित करने के लिए अपने साथ नहीं लिया, बल्कि उसे बहिष्कृत कर दिया और उन क्षेत्रों में कार्य को कार्यान्वित किया जो उसकी जिम्मेदारी के दायरे में आने वाले थे। बाद में मैंने भाई-बहनों को यह भी बताया कि वांग लिंग में कार्य के लिए जिम्मेदारी की कोई भावना नहीं है और कैसे मैं अकेले ही कार्य को कार्यान्वित करने के लिए भाग-दौड़ कर रही थी। इससे कुछ भाई-बहन उसके प्रति पूर्वाग्रही हो गए और उसकी संगति सुनने के लिए अनिच्छुक हो गए। नतीजतन वांग लिंग नकारात्मक हो गई। मुझे थोड़ा अपराध बोध हुआ, लेकिन मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया। इसके बजाय मैं भाई-बहनों के सामने दिखावा करती रही कि मैंने अपने कर्तव्य में कितना त्याग किया है और कितना कुछ सहा है। भाई-बहन अक्सर कार्य के प्रति दायित्व और जिम्मेदारी की भावना के लिए मेरी प्रशंसा करते थे और कहते थे कि कलीसिया मेरे बिना नहीं चल सकती। जब मैंने यह सुना तो मुझे बहुत खुशी हुई। बाद में मैंने पाया कि मुझे अब परमेश्वर के वचनों से कोई प्रबोधन या रोशनी नहीं मिल रही है और प्रार्थना के दौरान मेरे पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है। मैंने अपने दिन भ्रमित और लक्ष्यहीन मनोदशा में बिताए और कलीसिया के काम के नतीजे भी खराब होने लगे। तब मुझे आखिरकार एहसास हुआ कि मेरी मनोदशा ठीक नहीं है, इसलिए मैं परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने और खोजने के लिए आई, उससे खुद को जानने के लिए मुझे प्रबुद्ध करने और मार्गदर्शन देने के लिए कहा।

मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य करें, वे खुद को ऊँचे स्थान पर यानी प्रमुखता के स्थान पर रखने की कोशिश करेंगे। वे एक साधारण अनुयायी के रूप में अपने स्थान से कभी संतुष्ट नहीं हो सकते। ... अपने कर्तव्य निर्वहन में हमेशा उनके व्यक्तिगत इरादे होते हैं, और वे हमेशा दूसरों को पराजित करने और अपनी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करने की अपनी जरूरत पूरी करने के एक साधन के रूप में खुद को दूसरों से अलग दिखाना चाहते हैं। अपने कर्तव्य करते हुए, अत्यधिक प्रतिस्पर्धी होने—हर मामले में होड़ करने, विशिष्ट दिखने, सबसे आगे रहने, दूसरों से ऊपर उठने—के साथ-साथ वे यह भी सोचते रहते हैं कि अपने मौजूदा रुतबे, नाम और प्रतिष्ठा को कैसे कायम रखें। अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जो उनके रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए खतरा है, तो वे उसे नीचे गिराने और उससे छुटकारा पाने के लिए कुछ भी करने से बिल्कुल नहीं कतराते, और इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। वे सत्य का अनुसरण कर सकने वाले और अपना कर्तव्य निष्ठा से और दायित्व की भावना से करने वाले लोगों को दबाने के लिए घृणित साधनों का इस्तेमाल करते हैं। वे उन भाई-बहनों के प्रति भी ईर्ष्या और घृणा से भरे होते हैं जो अपना कर्तव्य बहुत श्रेष्ठ ढंग से निभाते हैं। ऐसे लोगों से तो वे खासतौर से घृणा करते हैं जिनका दूसरे भाई-बहन अनुमोदन और समर्थन करते हैं; वे ऐसे लोगों को अपने प्रयासों, अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए गंभीर खतरा मानते हैं, और वे दिल-ही-दिल में कसमें खाते हैं कि ‘या तो तुम रहोगे या मैं, मैं रहूँगा या तुम, हम दोनों के लिए यहाँ जगह नहीं है, अगर मैंने तुम्हें नीचे नहीं गिराया और तुम्हारा सफाया नहीं किया तो मुझे चैन नहीं पड़ेगा!’ ऐसे भाई-बहन जो अलग राय व्यक्त करते हैं, जो उन्हें उजागर कर देते हैं, या उनके रुतबे के लिए खतरा बन जाते हैं, उनके प्रति वे पूरी तरह निर्मम हो जाते हैं : वे उनकी आलोचना और निंदा करने, उन्हें कलंकित करने और नीचे गिराने के लिए जो भी संभव हो सके वह सब करने की सोचते रहते हैं, और जब तक वे ऐसा नहीं कर देते उन्हें चैन नहीं पड़ता(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग सात))। “यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर के प्रति समर्पण करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि शोहरत, लाभ और रुतबा प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य कर रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त और खराब करता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों ने मेरी वास्तविक मनोदशा को उजागर किया। जब से मैं अगुआ बनी, मैंने हमेशा इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि दूसरे मेरा सम्मान कैसे करते हैं। जब मैंने पाया कि मेरी सहयोगी बहन मुझसे बेहतर है, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकी और उसके साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहती थी और उससे अपनी तुलना करना चाहती थी। मुझे बस दूसरों से आगे निकलना था और हर किसी के मन में अपना मान बढ़ाना था। जब मैं ली शिन के साथ सहयोग कर रही थी, मैंने देखा कि उसमें अच्छी काबिलियत है, उसमें अच्छी कार्य क्षमता है, सत्य की उसकी संगति स्पष्ट है और वह भाई-बहनों की समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है। मुझे ईर्ष्या हुई और मैं इसे स्वीकार नहीं सकी, मुझे डर था कि सभी भाई-बहन उसके बारे में ऊँचा सोचेंगे और मुझे नीची नजरों से देखेंगे। इसलिए मैं खुद को सुसज्जित करने के लिए दूसरों की संगति में निहित रोशनी का अध्ययन करने लगी, इस उम्मीद में कि ऐसा करने पर दूसरे मेरे बारे में ऊँचा सोचेंगे। बात यहाँ तक पहुँच गई कि यह दिखाने के लिए कि मैं ली शिन से बेहतर हूँ, मैंने कलीसिया का सारा काम खुद ही सँभाल लिया और ली शिन को हस्तक्षेप नहीं करने दिया और चुपके से उसे दरकिनार कर दिया। जब मैंने देखा कि ली शिन की मनोदशा अच्छी नहीं है, तब भी मैं उदासीन थी, क्योंकि मुझे डर था कि अगर उसकी मनोदशा सुधर गई तो उसके काम के नतीजे मुझसे बेहतर हो जाएँगे। जब मैं वांग लिंग के साथ सहयोग कर रही थी, तब भी मैं बहुत प्रतिस्पर्धी थी। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि वांग लिंग ने अभी-अभी अगुआ के रूप में प्रशिक्षण लेना शुरू किया है और मुझे उसकी मदद करनी चाहिए और साथ देना चाहिए, लेकिन जब मैंने देखा कि उसमें अच्छी काबिलियत है, मुझे डर था कि एक बार जब वह काम में निपुण हो जाएगी तो वह मुझसे आगे निकल जाएगी और मेरे रुतबे पर असर डालेगी। इसलिए मैंने अपनी कार्य क्षमता दिखाने के लिए अकेले काम किया और उसे अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग करने का कोई मौका नहीं दिया। मैंने खुद को ऊँचा उठाते हुए उसकी पीठ पीछे उसकी निंदा भी की, नतीजतन भाई-बहन उसके प्रति पूर्वाग्रही हो गए और उसे बहिष्कृत करने लगे, जब तक कि वह आखिरकार हारकर नकारात्मक नहीं हो गई। जब मैंने अपनी इन चीजों के बारे में सोचा तो मुझे वाकई लगा कि मुझमें कोई मानवता नहीं है और मैं काफी घृणित हूँ। भाई-बहनों ने मुझे अगुआ चुना था और मुझे इस अवसर को सँजोना चाहिए था। मुझे कलीसिया के काम को अच्छी तरह से करने में भाई-बहनों के साथ सहयोग करना चाहिए था। लेकिन मैंने यह नहीं सोचा कि अपने कर्तव्यों में दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से कैसे सहयोग करना है और वफादार कैसे रहना है। इसके बजाय मैं लगातार प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा करती रही ताकि लोग मेरे बारे में ऊँचा सोचें। न सिर्फ मेरे व्यवहार ने दोनों बहनों को बेबस किया, बल्कि इससे कलीसिया का काम भी प्रभावित हुआ। अब मैं अंधकार में गिर गई थी और परमेश्वर मुझे ताड़ना देकर अनुशासित कर रहा था और मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने चिंतन और पश्चात्ताप नहीं किया तो परमेश्वर मुझे ठुकरा देगा। इस विचार ने मुझे बहुत डरा दिया, इसलिए मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर! मैं तुमसे पश्चात्ताप करना चाहती हूँ। मैं अपने भाई-बहनों के साथ फिर कभी प्रतिस्पर्धा नहीं करूँगी।” उसके बाद जब मैंने अपने कर्तव्य किए, मैं सचेत होकर खुद को अलग रखने लगी और वांग लिंग के साथ प्रतिस्पर्धा करनी बंद कर दी। बल्कि मैंने सीखा कि कलीसिया का काम करने में उसके साथ कैसे सहयोग करना है और उसकी मदद करने लगी ताकि वह यथाशीघ्र अपने कर्तव्यों पर पकड़ बना सके। वांग लिंग की मनोदशा में सुधार हुआ, वह अपने कर्तव्य सक्रियता से करने लगी और वह कुछ वास्तविक समस्याएँ सुलझाने में सक्षम हो गई। जब मैंने यह देखा तो मुझे शर्मिंदगी हुई। मुझे पता था कि यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि मैं हमेशा वांग लिंग के साथ प्रतिस्पर्धा करती रही थी और उसे कभी प्रशिक्षण का अवसर नहीं दिया था, जिससे वह हताश हो गई थी। अब जब हम सहयोग कर रहे हैं, वांग लिंग अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग करने में सक्षम है और कलीसियाई जीवन में मिले नतीजे भी बेहतर हुए। मैं इस बात से बहुत खुश थी और मुझे लगा कि मैंने इस क्षेत्र में कुछ हद तक प्रवेश किया है, लेकिन क्योंकि मेरा भ्रष्ट स्वभाव मुझमें गहराई तक समा चुका था, जल्दी ही मैं फिर से प्रसिद्धि और लाभ पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करने की मनोदशा में आ गई।

सितंबर 2018 में हमारी कलीसिया का पास की एक अन्य कलीसिया में विलय हो गया और मुझे फिर से अगुआ चुन लिया गया। मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मुझे लगा कि कलीसिया के विलय के बाद भी अगुआ बने रहना साबित करता है कि मैं सक्षम हूँ। लेकिन फिर मैंने अपनी दो सहयोगी बहनों के बारे में सोचा। एक बहन पैंग जिंग थी, जिसने कई वर्षों तक अगुआ के रूप में सेवा की थी। वह कई सिद्धांत समझती थी, उसके पास समृद्ध अनुभव था और वह अक्सर सत्य की संगति करने और भाई-बहनों की समस्याएँ सुलझाने में सक्षम होती थी। दूसरी बहन चेन मिन थी, जिसकी काबिलियत और कार्य क्षमता दोनों ही बहुत अच्छी थीं। इसलिए मैं बहुत दबाव में आ गई और मुझे चिंता हुई कि भाई-बहन मुझे नीची नजरों से देखेंगे क्योंकि वे दोनों मुझसे बेहतर हैं और मैं हम में सबसे कमजोर हो जाऊँगी। इस वजह से मैं चुपके से अपने प्रयासों को दोगुना करने लगी और समूह की सभाओं में जाने के लिए हर दिन ज्यादा समय निकालने लगी, क्योंकि मुझे लगता था कि मैं उनसे ज्यादा काम करके, ज्यादा कष्ट झेलकर और उनसे ज्यादा कीमत चुकाकर उनसे आगे निकल सकती हूँ। मैंने खासकर पैंग जिंग की जिम्मेदारी के दायरे में आने वाले भाई-बहनों के साथ समय बिताने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए। मैं हर एक समूह सभा में जाती थी, उम्मीद करती थी कि उन दोनों की जिम्मेदारी वाले भाई-बहनों का अनुमोदन पा सकूँ। एक बार मैंने पैंग जिंग को यह कहते हुए सुना कि उसके क्षेत्र में एक ऐसा समूह है, जहाँ भाई-बहन कभी भी सामंजस्य से काम नहीं कर सकते और भले ही उसने उनके साथ कई बार संगति की हो, लेकिन वह समस्या का समाधान नहीं कर पाई। मैंने सोचा, “मुझे संगति करने और इस समस्या का समाधान करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। इससे पता चलेगा कि मैं उससे बेहतर हूँ।” इसलिए मैंने तुरंत इस समूह में जाने के लिए समय निकाला। अपनी धैर्यपूर्ण संगति के माध्यम से मैंने आखिरकार भाई-बहनों की मनोदशाएँ ठीक कर दीं। मेजबान घर की बहन ने पैंग जिंग के सामने समस्याएँ सुलझाने की मेरी क्षमता की प्रशंसा भी की। जब मैंने यह सुना तो मुझे बहुत खुशी हुई और सोचा कि मैं काफी सक्षम हूँ। बाद में अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए मैं अक्सर अपने दिन विभिन्न समूहों की सभाओं में भाग लेने में बिताने लगी, मैं रात के 1 बजे तक जागकर परमेश्वर के वचन पढ़ती और सामग्रियों पर शोध करती ताकि मैं मुद्दों को तुरंत संबोधित कर सकूँ। हर सभा से पहले मैं इस तरह से तैयारी करती जैसे मैं कोई शिक्षक हूँ और इस उम्मीद में पाठों की योजना बनाती कि भाई-बहन देखेंगे कि मैं सत्य की संगति करने में अच्छी हूँ। एक बार क्योंकि मैं दूसरे क्षेत्र में एक सभा में गई थी, मैं एक समूह सभा में शामिल होने से चूक गई। भाई-बहनों को यह दिखाने के लिए कि मैं जिम्मेदार हूँ, अगले दिन वापस आने के बाद मैं सभा में शामिल होने के लिए समय निकालने की जल्दी में थी ताकि छूटी हुई सभा की भरपाई कर सकूँ। लेकिन अप्रत्याशित रूप से सभा में जाते समय मेरी इलेक्ट्रिक बाइक का पिछला टायर अचानक पंक्चर हो गया। मैंने खुद को बारिश और बर्फबारी के बीच कहीं फँसी हुई पाया और कुछ समय के लिए मुझे पता ही नहीं था कि क्या करूँ। जब मेरा दिमाग चलना बंद होने ही वाला था, मुझे अचानक याद आया कि हर दिन हमारे सामने आने वाले सभी लोग, घटनाएँ और चीजें परमेश्वर की अनुमति से होती हैं और शायद इस स्थिति से मुझे कुछ सबक सीखना चाहिए। विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि सभा में भाग लेने का मेरा इरादा सही नहीं था। मैं परमेश्वर के वचनों पर संगति करने और भाई-बहनों के साथ सत्य समझने के लिए नहीं जा रही थी, बल्कि इस सभा का इस्तेमाल उन्हें यह दिखाने के अवसर के रूप में करना चाहती थी कि मुझमें दायित्व और जिम्मेदारी की समझ है, जिससे वे मेरा सम्मान करें। मैं अभी भी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे की खातिर काम कर रही थी।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचन का यह अंश पढ़ा : “शक्ति और रुतबा हासिल करने के लिए, मसीह-विरोधी कलीसिया में सबसे पहले दूसरों का भरोसा और सम्मान जीतने की कोशिश करते हैं, ताकि वे ज्यादा लोगों को अपने पक्ष में कर सकें, ज्यादा लोग उन्हें ऊँची नजरों से देखें और उनकी आराधना करें, और इस तरह कलीसिया में अंतिम फैसला लेने और शक्ति पाने का उनका लक्ष्य पूरा होता है। जब शक्ति हासिल करने की बात आती है, वे दूसरे लोगों से होड़ करने और लड़ने में माहिर होते हैं। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, कलीसिया में जिनकी प्रतिष्ठा है, और जिनसे भाई-बहन प्रेम करते हैं, वे उनके मुख्य प्रतिस्पर्धी होते हैं। जो कोई भी उनके रुतबे के लिए खतरा है वह उनका प्रतिस्पर्धी है। वे अपने से शक्तिशाली लोगों से बिना किसी हिचकिचाहट के होड़ करते हैं; और अपने से कमजोर लोगों से भी बिना किसी दया भाव के प्रतिस्पर्धा करते हैं। उनके दिल संघर्ष के फलसफों से भरे हुए हैं। उनका मानना है कि अगर लोग लड़ेंगे नहीं और होड़ नहीं करेंगे, तो उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाएगा, और वे केवल लड़कर और प्रतिस्पर्धा करके ही अपनी मनचाही चीजें हासिल कर सकते हैं। प्रतिष्ठा हासिल करने और लोगों के समूह में एक प्रमुख स्थान पाने के लिए, वे दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए कुछ भी करते हैं, और वे ऐसे किसी भी व्यक्ति को नहीं छोड़ते जो उनके रुतबे के लिए खतरा हो। चाहे वे किसी से भी बातचीत करें, वे संघर्ष करने की इच्छा से भरे होते हैं, और यहाँ तक कि जब वे बुजुर्ग हो जाते हैं, तब भी लड़ते रहते हैं। वे अक्सर कहते हैं : ‘अगर मैं उस व्यक्ति से प्रतिस्पर्धा करूँ तो क्या उसे हरा पाऊँगा?’ जो कोई भी वाक्पटु है, और तर्कसंगत, संरचित और व्यवस्थित ढंग से बोल सकता है, वह उनकी ईर्ष्या और उनकी नकल का लक्ष्य बन जाता है। यहाँ तक कि वह उनका प्रतिस्पर्धी बन जाता है। जो कोई भी सत्य का अनुसरण करता है और आस्था रखता है, और भाई-बहनों की लगातार मदद और सहयोग करने में समर्थ है और उन्हें नकारात्मकता और कमजोरी से उभरने में सक्षम बना सकता है, वह भी किसी ऐसे व्यक्ति की तरह मसीह-विरोधियों का प्रतिस्पर्धी बन जाता है, जो किसी खास पेशे में विशेषज्ञ है और जिसका भाई-बहन कुछ हद तक सम्मान करते हैं। जो कोई भी अपने काम में परिणाम प्राप्त करता है, और ऊपरवाले की स्वीकृति प्राप्त करता है, स्वाभाविक रूप से उनके लिए प्रतिस्पर्धा का एक बड़ा स्रोत बन जाता है। मसीह-विरोधी चाहे किसी भी समूह में हों, उनके आदर्श वाक्य क्या होते हैं? तुम लोग अपने विचार बताओ। (अन्य लोगों और स्वर्ग के साथ लड़कर बहुत मजा आता है।) क्या यह पागलपन नहीं है? यह पागलपन है। क्या कोई और भी है? (परमेश्वर, क्या वे यह नहीं सोचते कि : ‘सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ’? यानी कि वे सबसे ऊपर रहना चाहते हैं, और चाहे वे किसी के भी साथ हों, हमेशा उनसे आगे निकलना चाहते हैं।) यह उनके कई विचारों में से एक है। कोई और विचार? (परमेश्वर, मुझे चार वचन याद आते हैं : ‘विजेता राजा होता है।’ मुझे लगता है कि वे हमेशा दूसरों से बेहतर बनना चाहते हैं और अलग दिखना चाहते हैं, चाहे वे कहीं भी हों, और वे सबसे ऊपर रहने की कोशिश करते हैं।) तुम लोगों ने जो कुछ भी कहा है उनमें से ज्यादातर विचारों के प्रकार हैं; किसी प्रकार के व्यवहार का इस्तेमाल करके उनका वर्णन करने की कोशिश करो। यह जरूरी नहीं कि मसीह-विरोधी जहाँ भी हों वहाँ सबसे ऊँचा स्थान पाना चाहते हों। जब भी वे किसी स्थान पर जाते हैं, तो उनके पास एक स्वभाव और एक मानसिकता होती है जो उन्हें इस तरह काम करने के लिए मजबूर करती है। वह मानसिकता क्या है? वह यह है, ‘मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा!’ तीन ‘प्रतिस्पर्धाएँ’ क्यों, एक ही ‘प्रतिस्पर्धा’ क्यों नहीं? (प्रतियोगिता उनका जीवन बन गई है, वे इसी के सहारे जीते हैं।) यह उनका स्वभाव है। वे ऐसे स्वभाव के साथ पैदा हुए थे, जो बेतहाशा अहंकारी है और जिसे नियंत्रित करना मुश्किल है; यानी वे खुद को किसी से भी कम नहीं समझते और बेहद अहंकारी होते हैं। कोई भी उनका यह बेहद अहंकारी स्वभाव कम नहीं कर सकता; वे खुद भी इसे नियंत्रित नहीं कर सकते। इसलिए उनका जीवन लड़ने और प्रतिस्पर्धा करने वाला होता है। वे किसके लिए लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं? स्वाभाविक रूप से, वे शोहरत, लाभ, रुतबे, नाम और अपने हितों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। चाहे उन्हें जिन भी तरीकों का इस्तेमाल करना पड़े, अगर हर कोई उनके प्रति समर्पण करता है, और अगर उन्हें अपने लिए लाभ और प्रतिष्ठा मिलती है, तो उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया होता है। प्रतिस्पर्धा करने की उनकी इच्छा कोई अस्थायी मनोरंजन नहीं होता; यह एक प्रकार का स्वभाव है, जो शैतानी प्रकृति से आता है। यह बड़े लाल अजगर के स्वभाव जैसा है, जो स्वर्ग से लड़ता है, पृथ्वी से लड़ता है, और लोगों से लड़ता है। अब, जब मसीह-विरोधी कलीसिया में दूसरों से लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो वे क्या चाहते हैं? निस्संदेह, वे प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। लेकिन अगर वे रुतबा हासिल कर लेते हैं, तो इससे उन्हें क्या फायदा होता है? अगर दूसरे उनकी बात सुनते हैं, उनकी प्रशंसा और आराधना करते हैं, तो इसमें उनकी क्या भलाई है? खुद मसीह-विरोधी भी इसे स्पष्ट नहीं कर सकते। वास्तव में, उन्हें प्रतिष्ठा और रुतबे का आनंद लेना, हर एक का उन्हें देखकर मुस्कुराना, और चापलूसी और खुशामद के साथ अपना स्वागत किया जाना पसंद है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर के वचन उजागर करते हैं कि मसीह-विरोधी वाकई प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे से प्यार करते हैं और चाहे वे किसी के साथ भी हों, वे दूसरों से प्रतिस्पर्धा और अपनी तुलना करना पसंद करते हैं। वे हमेशा दूसरों से आगे निकलना चाहते हैं ताकि लोग उनका सम्मान और उनकी आराधना करें और वे प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए दूसरों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने और लड़ने के लिए अनैतिक तरीकों का सहारा लेने को भी तैयार रहते हैं। ऐसा कोई घृणित काम नहीं है जो वे नहीं करते। परमेश्वर के वचनों की रोशनी में आत्म-चिंतन करते हुए मैंने देखा कि मैंने किसी मसीह-विरोधी जैसा ही स्वभाव प्रकट किया था। बचपन से लेकर जवानी तक मैं “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है” और “सिर्फ एक अल्फा पुरुष हो सकता है” जैसे शैतानी जहरों के साथ जीती थी। चाहे मैंने कुछ भी किया हो, मैं हमेशा दूसरों से बेहतर करना चाहती थी और जहाँ भी जाती, मैं दूसरों से सम्मान और प्रशंसा पाना चाहती थी। परमेश्वर को पाने के बाद भी मैं हमेशा दिखावा करना चाहती थी और जो कुछ भी करती, उसमें दूसरों से बेहतर होना चाहती थी, मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती और प्रतिस्पर्धा करती रहती थी। मैं दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग नहीं कर सकी और मैंने तो खुद को ऊपर उठाने के लिए अपनी साथी बहनों को बहिष्कृत किया और उन्हें नीचा दिखाया। यहाँ तक कि उन सभाओं में भी जहाँ मैं मुद्दों को सुलझाने के लिए संगति करती थी, मेरा उद्देश्य हमेशा अपनी साथी बहनों से आगे निकलना ही होता था। मुझे एहसास हुआ कि इन शैतानी जहरों के अनुसार जीने से मैं और भी घमंडी और द्वेषपूर्ण हो गई थी। मुझे सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की परवाह थी और मैंने परमेश्वर के इरादों या कलीसिया के हितों के बारे में नहीं सोचा। नतीजतन मैंने अपने भाई-बहनों को चोट पहुँचाई और कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा की। मैंने उन मसीह विरोधियों के बारे में सोचा जिन्हें निष्कासित कर दिया गया था, जो अपने ओहदे को मजबूत करने के लिए असहमति रखने वालों को बहिष्कृत करने और दबाने की हद तक चले गए थे। उन्होंने कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा की और आखिरकार उन्हें अपने कई बुरे कर्मों से परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करने के कारण हटा दिया गया। मुझे एहसास हुआ कि मैं उसी रास्ते पर चल रही थी जिस पर मसीह-विरोधी चल रहे थे। मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती रही और अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया तो मैं निश्चित रूप से परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करूँगी और उसके द्वारा दंडित की जाऊँगी। मुझे वाकई डर लगा और मैं पछतावे और अपराध बोध से भर गई। मैंने मन में संकल्प लिया, “मुझे देह के खिलाफ विद्रोह करना होगा, सत्य का अभ्यास करना होगा और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने के लिए अपनी बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करना होगा।”

बाद में मैंने परमेश्वर के वचन का यह अंश पढ़ा : “तुम्‍हें नजरअंदाज करने औरइन चीजों को अलग करने, दूसरों की अनुशंसा करने, और उन्हें विशिष्ट बनने देने का तरीका सीखना चाहिए। विशिष्‍ट बनने और कीर्ति पाने के लिए संघर्ष मत करो अवसरों का लाभ उठाने के लिए जल्‍दबाजी मत करो। तुम्‍हें इन चीजों को दरकिनार करना आना चाहिए, लेकिन तुम्‍हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो वफादारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुम जितना अधिक प अपने अहंकारऔर हैसियत को छोड़ते हो, और जितना अधिक अपने हितों को नजरअंदाज करते हो, उतनी ही शांति महसूस करोगे, तुम्‍हारे हृदय में उतना ही ज्‍यादा प्रकाश होगा, और तुम्‍हारी अवस्था में उतना ही अधिक सुधार होगा। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धाकरोगे, तुम्‍हारी अवस्था उतनी ही अंधेरी होती जाएगी। अगर तुम्‍हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो इसे आजमाकर देखो! अगर तुम इस तरह की भ्रष्ट स्थिति को बदलना चाहते हो, और इन चीज़ों से नियंत्रित नहीं होनाचाहते, तो तुम्‍हेंसत्य की खोज करनी चाहिए और इन चीजों का सार स्पष्ट रूप से समझना चाहिए, और फिर इन्हें एक तरफ रख देना चाहिए और त्याग देना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया। मामलों को सँभालने में मुझे अपने व्यक्तिगत हितों, प्रतिष्ठा और रुतबे को अलग रखना सीखना होगा और कलीसिया के हितों को प्राथमिकता देनी होगी। तभी मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकती हूँ। इस बात पर विचार करते हुए कि कैसे मेरी साथी बहनों की काबिलियत मुझसे बेहतर है और कैसे वे वास्तविक समस्याओं को हल कर सकती हैं, मैंने देखा कि इससे कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को लाभ होता है और मुझे उनके साथ और ज्यादा सहयोग करना चाहिए, उनकी खूबियों से सीखना चाहिए क्योंकि हम एक दूसरे के पूरक हैं। इस तरह से कलीसिया का काम बेहतर नतीजे पा सकता है और मेरी अपनी कमियों को पूरा किया जा सकता है और इस तरह से मैं परमेश्वर के इरादे के अनुसार अपना कर्तव्य निभा सकती हूँ। इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास किया, अब इस बात पर विचार नहीं किया कि मेरे साथी भाई-बहनें मुझसे बेहतर हैं या नहीं और सिर्फ अपने कर्तव्य में अपनी भूमिका निभाने पर ध्यान केंद्रित किया। मैंने इस अवधि के दौरान अपने द्वारा प्रकट की गई भ्रष्टता और अपने विचारों और अपनी समझ के बारे में संगति में अपनी भागीदार बहनों के साथ खुलकर बात की। मेरी बात सुनने के बाद बहनों ने मुझे नीची नजरों से नहीं देखा, बल्कि उन्होंने संगति करके मेरी मदद की। आगे बढ़ते हुए हमने साथ मिलकर काम करने पर चर्चा की और सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग किया। कुछ समय बाद कलीसिया के काम में प्रगति हुई।

एक दिन उच्च अगुआओं ने एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया था कि वे कलीसिया अगुआओं में से एक प्रचारक का चुनाव करने जा रहे हैं। मैंने महसूस किया कि मेरा दिल धड़क रहा था, क्योंकि मैं चुनी जाना चाहती थी, लेकिन फिर मैंने सोचा, “चेन मिन मुझसे ज्यादा सत्य समझती है, उसमें अच्छी काबिलियत और कार्य क्षमता है, इसलिए सिद्धांतों के आधार पर वह ज्यादा उपयुक्त होगी।” लेकिन मैं अभी भी थोड़ी असहज थी, सोच रही थी, “अगर चेन मिन वाकई प्रचारक बन जाती है तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे कहेंगे कि मैं उसके जितनी अच्छी नहीं हूँ?” मैं एक भयंकर आंतरिक संघर्ष में थी। उस क्षण परमेश्वर के वचनों का एक अंश मेरे मन में स्पष्ट रूप से आया : “तुम्‍हें नजरअंदाज करने औरइन चीजों को अलग करने, दूसरों की अनुशंसा करने, और उन्हें विशिष्ट बनने देने का तरीका सीखना चाहिए। विशिष्‍ट बनने और कीर्ति पाने के लिए संघर्ष मत करो अवसरों का लाभ उठाने के लिए जल्‍दबाजी मत करो। तुम्‍हें इन चीजों को दरकिनार करना आना चाहिए, लेकिन तुम्‍हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो वफादारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन ने मेरा दिल रोशन कर दिया। मैंने सोचा कि कैसे मैं अक्सर भ्रष्ट स्वभाव में डूबी रहती थी, अत्यधिक प्रतिस्पर्धी थी और दूसरों से आगे निकलने की कोशिश करती थी और जब भी कोई ऐसा काम आता था जिससे मुझे अपना नाम बनाने का मौका मिलता तो मैं खुद को दूसरों से प्रतिस्पर्धा करते और उनसे आगे निकलने की कोशिश करते हुए पाती। इससे न सिर्फ लोग बेबस होते थे, बल्कि इससे कलीसिया के काम पर भी असर पड़ता था। जब मैंने इन बातों के बारे में सोचा तो मैंने खुद को पछतावे से भरी हुई पाया। अब मुझे अपने शैतानी स्वभाव के खिलाफ विद्रोह करना था, प्रतिष्ठा और रुतबे को अलग रखना था और कलीसिया के काम को प्राथमिकता देनी थी। चेन मिन मुझसे ज्यादा समय से कर्तव्य निभा रही थी और वह सत्य पर ज्यादा व्यावहारिक रूप से संगति करती थी, इसलिए उसका प्रचारक होना कलीसिया के काम के लिए ज्यादा फायदेमंद होगा। यह सोचकर मैंने चेन मिन को वोट दिया। इस तरह अभ्यास करने के बाद, मुझे अपने दिल में शांति और सहजता का एहसास हुआ। ये परमेश्वर के वचन ही थे जिनकी वजह से मुझमें यह बदलाव आया। परमेश्वर का धन्यवाद।

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