24. मुझे सच्ची खुशी मिल गई

चोंगशेंग, चीन

छोटी उम्र से ही मुझे रोमांटिक ड्रामे देखना बहुत पसंद था और मुख्य पात्रों के बीच प्रेमपूर्ण रिश्तों से मुझे हमेशा ईर्ष्या होती थी। इसलिए मुझे विश्वास हो गया कि मुझे इससे अधिक खुशी किसी और चीज से नहीं मिल सकती कि मेरा पति ऐसा हो जो मुझे प्यार और मेरी देखभाल करे। जब मैं सत्रह साल की थी तब मेरी मुलाकात मेरे भावी पति से हुई। उसका रूप-रंग एकदम मेरी पसंद से मेल खाता था और वह अपेक्षाकृत भोला था और हमारी बातचीत में मैंने देखा कि वह मेरी काफी परवाह करने वाला और चौकस है, इसलिए हमने बस शादी कर ली। शादी के बाद भी मेरा पति मेरे प्रति बहुत अच्छा और बहुत सहयोगपूर्ण रहा। वह घर के काम-काज करता था और जो कुछ भी मैं चाहती मुझे खरीदकर देता। जब कभी मैं दुखी होती तो वह मुझे खुश करता और मेरे गुस्से को सहन करता। मुझे लगता मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि मुझे ऐसा पति मिला जो मेरी इतनी परवाह और मुझे इतना प्यार करता है और इसलिए मैंने अपने विवाह को संजोकर रखने का संकल्प लिया।

2019 में महामारी के दौरान मेरी माँ ने मुझे परमेश्वर के अंत के दिनों के सुसमाचार का उपदेश दिया। उसके बाद मैंने अपनी पूरी क्षमता से अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया। मेरा पति नास्तिक था और परमेश्वर में विश्वास की बात सुनते ही गुस्से में आ जाता था। इसके अलावा सीसीपी द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा, गिरफ्तारी और बदनामी ने उसे परमेश्वर में मेरी आस्था के प्रति बहुत विरोधी बना दिया था। एक दिन जब भाई-बहन हमारे घर में सभा कर रहे थे तो अचानक मेरा पति आ गया। जब उसने सभी भाई-बहनों को वहाँ देखा तो वह बहुत नाराज हुआ और बुरी तरह से धमकी दी, “अगर ऐसा दोबारा हुआ तो मैं पुलिस को बुलाऊँगा!” इतना कहकर वह दरवाजा जोर से बंद करते हुए बाहर निकल गया। मैंने अपने पति को कभी इतना क्रोधित होते नहीं देखा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह बिल्कुल कोई अलग ही इंसान बन गया हो। जब मैंने देखा कि मेरा पति मेरी आस्था के प्रति इतना प्रतिरोधी है तो मैं सचमुच डर गई और सोचा, “मुझे क्या करना चाहिए? अगर उसने हमें दोबारा सभा करते देख लिया तो क्या वह सचमुच पुलिस को बुला लेगा? क्या वह आज रात घर आते ही मुझ पर भड़क जाएगा? मैं अपने रिश्ते को खतरे में डाले बिना उसे यह बात कैसे समझाऊँ?” उस समय एक कलीसिया अगुआ ने संगति में मुझे अपना व्यक्तिगत अनुभव बताया और परमेश्वर के वचनों का निम्नलिखित अंश पढा‌ : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि बाहरी तौर पर ऐसा लग रहा था जैसे मेरा पति ही मुझे रोक रहा है लेकिन असल में इसके पीछे शैतान की साजिश थी। शैतान मुझे चिंतित और भयभीत करने के लिए मेरे पति की धमकी का इस्तेमाल कर रहा था ताकि परमेश्वर से दूर हो जाऊँ, उसके साथ विश्वासघात करूँ और अपना विश्वास और कर्तव्य त्याग दूँ जिससे कि हमारा रिश्ता बना रहे। मेरे पति ने परमेश्वर की अनुमति से ही हमें सभा करते पकड़ा था। परमेश्वर चाह रहा था कि मैं उस स्थिति में अपनी गवाही में दृढ़ रहूँ, परमेश्वर के साथ खड़ी रहूँ और शैतान के सामने न झुकूँ। परमेश्वर का इरादा समझ लेने के बाद मुझमें एक नई आस्था पैदा हो गई। घर आकर मेरा पति वाकई बहुत गुस्सा हुआ। उसने कहा कि वह निगरानी कैमरे लगाने जा रहा है और अगर उसने मुझे फिर से पकड़ा तो वह पुलिस को बुला लेगा और मुझे तलाक दे देगा। उसकी ये सारी बातें सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ और मेरी आंखों से आँसू बहने लगे। तभी मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। शैतान मेरे पति के जरिए मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने का प्रयास कर रहा था। मुझे उसकी दुष्ट साजिश को समझना था। इसलिए मैंने दृढ़तापूर्वक कहा, “अगर तुम्हें चिंता है कि मेरी आस्था तुम्हें परेशानी में डाल देगी तो मैं तुम्हें मेरे साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। अगर तुम तलाक चाहते हो तो ठीक है, क्योंकि मैं अपनी आस्था नहीं छोड़ सकती।” वह इतना नाराज हो गया कि उसकी आंखें लाल हो गईं और उसने बिस्तर पर मुट्ठियाँ पटकनी शुरू कर दीं। मैंने उस समय भले ही अपने पति के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया था लेकिन मैं अभी भी तलाक लेने से डरती थी और नहीं चाहती थी कि मेरी आस्था हमारे रिश्ते के आड़े आए।

परमेश्वर में मेरी आस्था का पता चलने के बाद मेरे पति ने मेरे साथ अच्छा व्यवहार करना बंद कर दिया, वह हर समय मुझ पर भड़कता रहता और मेरी गलतियाँ निकालता रहता। “तुम सारा दिन घर पर क्या करती रहती हो? तुम्हारी उम्र का कोई व्यक्ति परमेश्वर में विश्वास कैसे कर सकता है? दूसरों की पत्नियों को देखो जो सारा दिन घर पर बैठी यही तलाशती रहती हैं कि कौन-सा स्वादिष्ट खाना बनाया जाए और तमाम चीजें कैसे पकाई जाएँ। फिर तुम मेरे किस काम की हो? मेरे लिए कुत्ता पालना बेहतर होगा! तुम पैसे कमाने की पूरी कोशिश नहीं करती। एक दिन हमारा बच्चा स्कूल जाएगा और कभी बीमार पड़ा तो उसे इलाज की जरूरत होगी। अगर तुमने कुछ पैसे नहीं बचाए तो बुढ़ापे में अपने परमेश्वर से ही कहना कि वह तुम्हारा साथ दे! अगर परमेश्वर में तुम्हारी आस्था के कारण तुम गिरफ्तार हो जाती हो तो उसका असर हमारे बच्चे की सेना में सेवा करने और विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने की संभावनाओं पर पड़ेगा। चीन में तुम्हें कम्युनिस्ट पार्टी की बात सुननी पड़ेगी—कमजोर लोग ताकतवर को नहीं हरा सकते...।” मुझे अपने पति के इस तरह के अन्यायपूर्ण व्यवहार से बहुत दुःख हुआ। परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद मैं हर मामले में कुछ हद तक बदल गई थी। पहले मैं बहुत स्वार्थी थी और शायद ही कभी खाना बनाती थी, स्वच्छता या सफाई करती थी और मैं अक्सर अपने पति से नाराज हो जाती थी; अब चूँकि मैं परमेश्वर में विश्वास रखती थी, सत्य समझती थी और परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करती थी, तो मैं धीरे-धीरे सामान्य मानवता जी पा रही थी। परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले मैं अपनी कमाई का सारा पैसा मेकअप और सजने-संवरने पर खर्च कर देती थी; परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी मैं काम करती थी, हालाँकि कम पैसे कमाती थी, फिर भी यथासंभव बचत करने की कोशिश करती थी और अपने पूरे वेतन का उपयोग परिवार के जीवन-यापन के खर्चों को पूरा करने में करती थी। तो फिर वह यह कैसे समझ सकता था कि मैं अब पैसा नहीं कमाती थी? लेकिन मेरे पति का दिल पत्थर की तरह सख्त दिखता था और वह मुझमें आया कोई बदलाव नहीं देख पा रहा था। उसने मुझे धमकी तक दे डाली, “मैं तुम्हारी टाँगें तोड़ दूँगा और तुम्हें घर में बंद कर दूँगा, फिर देखता हूँ कि क्या तब भी तुम परमेश्वर में विश्वास रखती हो!” एक बार उसने मेरा गला पकड़ लिया और बोला, “मैं तुम्हारा गला घोंट दूँगा और देखूँगा कि क्या तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें बचाने आता है!” उस रात मैं सोच रही थी कि मेरा पति कभी मेरा कितना ख्याल रखा करता था और अब वह हर दिन मेरी गलतियाँ निकालता है क्योंकि मैं परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ, मुझे लगा मेरे साथ बहुत अन्याय हो रहा है और मैं फूट-फूट कर रोने लगी। अगली सुबह मेरी आंखें रोने से अभी भी सूजी हुई थीं लेकिन मेरे पति ने मुझे देखकर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जब मैंने सोचा कि अगर मैं परमेश्वर में विश्वास न रखती तो मेरा पति मेरे साथ ऐसा व्यवहार न करता, मैं थोड़ा हिचकिचा गई लेकिन फिर मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर अपना कार्य करने और मानवजाति को बचाने के लिए आया है और मुझे अच्छे से आस्था का अभ्यास कर सही मार्ग पर चलना है, इसलिए मुझे पता था कि मैं अपने पति के लिए अपनी आस्था को त्याग नहीं सकती। लेकिन मैं अपनी शादी भी बचाकर रखना चाहती थी। उसके बाद मैं सावधानीपूर्वक अपने रिश्ते को बनाए रखने लगी और अपने पति को खुश रखने के तरीकों के बारे में सोचने लगी। यह जानते हुए कि मेरा पति मेरी आस्था से नाखुश है, मैं परमेश्वर के वचनों की अपनी पुस्तकों को उसकी नजरों से छुपाने की कोशिश करती और सभा के बाद मैं कमरे को साफ कर देती और बैठक आयोजित करने का कोई निशान न छोड़ती। अपने बच्चे की देखभाल करके मुझे कितनी भी थकान क्यों न हुई हो, मैं हमेशा घर की सफाई करने और खाना बनाने के लिए समय निकाल ही लेती। इस डर से कि कहीं मेरा पति मुझमें कोई गलती न निकाले मैं अपनी भक्ति केवल तभी करती जब मेरा पति घर पर न होता। जब कभी जब मेरा पति ओवरटाइम काम कर रहा होता तो मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ने का मौका तलाश लेती लेकिन मैं ध्यान केंद्रित न कर पाती क्योंकि मुझे चिंता होती कि कहीं वह जल्दी घर न आ जाए। मेरे कान हमेशा दरवाजे पर लगे रहते और जैसे ही दरवाजा खुलता मैं झट से कंप्यूटर बंद कर देती और अपनी किताबें छिपा देती। उसके बाद मेरे पति ने मुझे कभी आस्था का अभ्यास करते या परमेश्वर के वचन पढ़ते नहीं देखा और मेरे प्रति उसका रवैया धीरे-धीरे सुधरने लगा। 2021 में जब मेरा बच्चा थोड़ा बड़ा हो गया तो मेरी सास उसकी देखभाल करने लगी और मैंने नवागतों का सिंचन करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद मुझे सिंचन उपयाजिका चुन लिया गया। क्योंकि मैंने अपने कर्तव्य में कुछ बोझ उठाया था, मुझे मार्च 2023 में कलीसिया अगुआ चुन लिया गया। एक अगुआ के रूप में मुझे सभाएँ आयोजित करनी होती थीं और मेरा कार्यभार बढ़ गया था। कभी-कभी मुझे रात को पत्रों के माध्यम से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने होते थे। लेकिन रात को मैं सचमुच उन्हें संभालने की हिम्मत नहीं कर पाती थी। मैं सोचती, “उसे नहीं पता कि मैं अभी भी आस्था का पालन कर रही हूँ और अपना कर्तव्य निभा रही हूँ। हमारे रिश्तों में अभी-अभी सुधार आना शुरू हुआ है लेकिन अगर उसे पता चल गया कि मैं अभी भी विश्वास रख रही हूँ और अपना कर्तव्य निभा रही हूँ तो क्या वह पहले की तरह सारा दिन मुझमें गलतियाँ ढूँढ़ने में नहीं लगा रहेगा? अगर मैं रात को काम न कर सकूँ तो कोई बात नहीं, मैं दिन में अधिक काम कर लूँगी।” चूँकि मैं रात को पत्रों का जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी और दिन में रोज सभाएँ होती थीं तो बिना पढ़े पत्रों का ढेर लगना शुरू हो गया। कलीसिया के स्वच्छता और निष्कासन कार्य में देरी होती रही और हमारे सुसमाचार कार्य की प्रगति भी धीमी हो गई। मैं खुद इस सब को लेकर बहुत चिंतित थी लेकिन मैंने सोचा, “चूँकि मेरी सास और ससुर हमारे साथ रह रहे हैं, अगर उन्हें मेरी आस्था के बारे में पता चल जाए और वे मेरे पति के साथ मिलकर मुझे परेशान करने लगें या मेरे पति को मुझे तलाक देने के लिए उकसाने लगें तो मुझे क्या करना चाहिए?” मैं अपनी शादी बचाकर रखना चाहती थी इसलिए अपना कर्तव्य निभाते समय मुझे विवशता महसूस होने लगी।

एक बार एक सभा के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश सुना : “शादी के बाद कुछ लोग अपने शादीशुदा जीवन में अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार होते हैं, और वे अपनी शादी के लिए भरसक कोशिश करने, संघर्ष करने, और मेहनत करने की तैयारी करते हैं। कुछ लोग पैसे कमाने में लगे रहते हैं और कष्ट सहते हैं और बेशक, अपने जीवन की खुशी का जिम्मा अपने साथी को सौंप देते हैं। वे मानते हैं कि उनके जीवन की हँसी-खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि उनका साथी कैसा है, वह अच्छा इंसान है या नहीं; उसका व्यक्तित्व और रुचियाँ एक जैसी हैं या नहीं; क्या वह पैसे कमाकर परिवार चलाने वालों में से है; क्या वह ऐसा व्यक्ति है जो भविष्य में उसकी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सके, और उसे एक खुशहाल, स्थिर और बेहतरीन परिवार दे सके; और क्या वह ऐसा व्यक्ति है जो किसी दर्द, तकलीफ, विफलता या नाकामी का सामना करने पर उसे दिलासा दे सके। इन बातों की पुष्टि करने के लिए, वे साथ रहते हुए अपने साथी पर विशेष ध्यान देते हैं। वे बड़ी सावधानी और सतर्कता से, अपने साथी के विचारों, दृष्टिकोणों, बातों और व्यवहार को और उसके हर एक कदम के साथ-साथ उसकी हर खूबी और कमजोरी पर नजर रखते और उसे परखते हैं। वे जीवन में अपने साथी द्वारा प्रकट किए गए सभी विचारों, दृष्टिकोणों, बातों और व्यवहारों को अच्छे से याद रखते हैं, ताकि वे अपने साथी को बेहतर ढंग से समझ सकें। इसी के साथ, वे यह भी आशा करते हैं कि उनका साथी भी उन्हें बेहतर ढंग से समझे, वे अपने साथी को अपने दिल में जगह देते हैं, और अपने साथी के दिल में बसते हैं, ताकि एक-दूसरे पर बेहतर ढंग से काबू रख सकें; वे चाहते हैं कि अपने साथी के साथ कुछ भी हो तो सबसे पहले वही सामने नजर आएँ, सबसे पहले वही उनकी मदद करें, आगे बढ़कर उनका सहारा बनें, उनका हौसला बढ़ाएँ, और उनके लिए चट्टान बनकर खड़े रहें। जीवन की ऐसी परिस्थितियों में, पति और पत्नी शायद ही कभी यह समझने की कोशिश करते हैं कि उनका साथी कैसा इंसान है, वे अपने साथी के लिए पूरी तरह से अपनी भावनाओं में जीते हैं, और अपनी भावनाओं में आकर अपने साथी की देखभाल करते हैं, उन्हें सहन करते हैं, उनकी सभी गलतियों और कमियों को माफ करते हैं, और यहाँ तक कि उनके इशारों पर नाचते रहते हैं। उदाहरण के लिए, एक महिला का पति कहता है, ‘तुम्हारी सभाएँ बहुत लंबी चलती हैं। बस आधे घंटे के लिए जाकर वापस आ जाया करो।’ वह जवाब देती है, ‘मैं पूरी कोशिश करूँगी।’ जाहिर है, अगली बार वह सभा में बस आधे घंटे के लिए जाकर घर वापस आ जाती है, तो अब उसका पति कहता है, ‘ये हुई न बात। अगली बार, बस अपना चेहरा दिखाकर वापस आ जाना।’ फिर वह कहती है, ‘अच्छा, तुम्हें मेरी इतनी याद आती है! ठीक है फिर, मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगी।’ जाहिर है, अगली बार जब वह सभा में जाती है तो अपने पति को निराश नहीं करती, और करीब दस मिनट बाद ही घर वापस आ जाती है। उसका पति बहुत खुश होता है, और कहता है, ‘बहुत बढ़िया!’ वह उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करती; अगर वह उसे हँसते हुए देखना चाहता है तो वह रोने की हिम्मत नहीं करती। वह उसे परमेश्वर के वचन पढ़ते और भजन सुनते देखता है तो उसे अच्छा नहीं लगता और इससे घृणा होती है; वह कहता है, ‘हर वक्त उन वचनों को पढ़ने और गीत गाने से तुम्हें क्या मिलेगा? जब मैं घर पर रहूँ, तब क्या तुम उन वचनों को पढ़ना और उन गीतों को गाना बंद नहीं कर सकती?’ वह जवाब देती है, ‘कोई बात नहीं, मैं उन्हें अब और नहीं पढ़ूँगी।’ अब वह परमेश्वर के वचनों को पढ़ने या भजन सुनने की हिम्मत नहीं करती। अपने पति की माँगों से उसे आखिरकार समझ आ जाता है कि उसके पति को उसका परमेश्वर में विश्वास करना या उसके वचन पढ़ना पसंद नहीं है, इसलिए वह जब घर पर होता है तो उसके साथ ही रहती है, साथ में टीवी देखती है, खाना खाती है, बातें करती है, और यहाँ तक कि उसकी शिकायतें भी सुनती है। वह उसकी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है। उसका मानना है कि एक पत्नी या पति को ये जिम्मेदारियाँ निभानी ही चाहिए। तो, वह परमेश्वर के वचन कब पढ़ती है? वह अपने पति के बाहर जाने का इंतजार करती है, फिर उसके पीठ-पीछे दरवाजा बंद करके जल्दी-जल्दी वचन पढ़ती है। जब वह दरवाजे पर किसी की आहट सुनती है, तो जल्दी से किताब को दूर रख देती है और इतनी डर जाती है कि उसे दोबारा पढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाती। और जब दरवाजा खोलती है तो पता चलता है कि यह उसका पति नहीं था—उसे बस गलत फहमी हुई थी, तो वह पढ़ना जारी रखती है। जैसे-जैसे वह पढ़ती जाती है, उसके मन में आशंकाएँ घुमड़ने लगती हैं, वह घबरा जाती है और डर जाती है, सोचती है, ‘अगर वह सच में घर आ गया तो क्या होगा? बेहतर होगा कि अभी के लिए बस इतना ही पढ़ूँ। जरा फोन करके पूछती हूँ कि वह कहाँ है और कब तक घर वापस आएगा।’ वह उसे फोन करती है और वह कहता है, ‘आज काम थोड़ा ज्यादा है, तो मैं तीन या चार बजे तक घर नहीं पहुँच पाऊँगा।’ इससे वह शांत हो जाती है, लेकिन क्या उसका मन अभी भी इतना शांत होगा कि वह परमेश्वर के वचन पढ़ सके? नहीं होगा; उसका मन अशांत हो चुका है। वह प्रार्थना के लिए परमेश्वर के पास दौड़ती है, और फिर क्या कहती है? क्या वह कहती है कि परमेश्वर में उसकी आस्था में विश्वास नहीं है, कि उसे अपने पति का भय है, और वह परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए अपना मन शांत नहीं कर पा रही है? उसे लगता है कि वह ये चीजें नहीं कह सकती, तो वह परमेश्वर से कुछ भी नहीं कह पाती है। मगर फिर वह अपनी आँखें बंद करके हाथ जोड़ लेती है। वह शांत हो जाती है और इतनी बेचैन महसूस नहीं करती, तो फिर से परमेश्वर के वचन पढ़ने जाती है, लेकिन अब ये वचन उसके पल्ले नहीं पड़ते। वह सोचती है, ‘मैं अभी क्या पढ़ रही थी? मैं अपने चिंतन-मनन में कहाँ तक पहुँच पाई थी? मेरे दिमाग से सब निकल गया।’ जितना अधिक वह इसके बारे में सोचती है, उतना ही परेशान और असहज महसूस करती है : ‘आज मैं नहीं पढ़ूँगी। एक बार के लिए मेरी आध्यात्मिक भक्ति छूट गई तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।’ तुम्हें क्या लगता है? क्या उसका जीवन अच्छा चल रहा है? (नहीं।) यह वैवाहिक सुख है या वैवाहिक संकट? (संकट।)” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (11))। परमेश्वर के वचनों ने मेरी वास्तविक दशा को उजागर कर दिया। लोगों के लिए आस्था का पालन करना और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है। लेकिन जब मेरे पति ने मुझे रोका तो अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए, उसकी परवाह और ध्यान का आनंद लेना जारी रखने के लिए और अपनी शादी बचाए रखने के लिए मुझे अपना कर्तव्य दर-किनार करने में कोई दिक्कत नहीं हुई और मैंने उसे खुश रखने के लिए हर संभव प्रयास किया। चूँकि मेरे पति को मेरा आस्था का अभ्यास करना पसंद नहीं था इसलिए जब वह घर पर होता था तो मैं परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने की हिम्मत नहीं करती थी और जब उसके घर आने की आहट सुनती तो मैं डर जाती और घबराकर अपनी किताबें छिपा देती। अगर मेरा पति न होता तो शाम को घर आकर मैं नियमित रूप से भक्ति कर सकती थी, अपने काम में हुई गलतियों की समीक्षा कर सकती थी, अपने भ्रष्ट स्वभाव को दूर करने के लिए परमेश्वर के वचनों को खा और पी सकती थी और मेरी जिंदगी तेजी से आगे बढ़ सकती थी। यह मेरे कर्तव्य के लिए भी लाभदायक होता। लेकिन अपनी शादी को खुशहाल बनाए रखने के लिए मैंने अपने कर्तव्य और सत्य की खोज को दर-किनार कर दिया और घर पर बमुश्किल ही कोई भक्ति-कार्य किया। चूँकि मैं कुछ बुरी सांसारिक प्रवृत्तियों का प्रतिरोध नहीं कर पाती थी, मैं अक्सर अविश्वासियों के वीडियो और फिल्में देखने में फंसकर रह जाती, इससे परमेश्वर के साथ मेरा सम्बन्ध खराब हो गया और मेरे जीवन प्रवेश को नुकसान हुआ। इसके अलावा मैं रात को समय पर पत्रों का उत्तर नहीं दे पाती थी और इसलिए बहुत सारा काम अटक जाता था और जब तक अगुआ आकर जाँच नहीं करता और मुझ पर दबाव नहीं डालता तब तक यह काम पूरा नहीं होता था। मैंने देखा कि मुझे केवल अपनी ही पड़ी थी। जब तक मैं अपनी शादी को बनाए रख सकती थी तब तक मुझे कलीसिया के हितों से समझौता करने की परवाह नहीं थी और नतीजतन कई परियोजनाओं में देरी हुई। मुझमें सचमुच जमीर और विवेक नहीं था और मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी।

इसके बाद मैंने निम्नलिखित अंश देखा : “परमेश्वर ने तुम्हारे लिए शादी की व्यवस्था सिर्फ इसलिए की है ताकि तुम अपनी जिम्मेदारियाँ निभाना सीख सको, किसी दूसरे इंसान के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रह सको और मिलकर जीवन बिता सको, और इसका अनुभव कर सको कि अपने जीवनसाथी के साथ जीवन बिताना कैसा होता है, और तुम एक साथ मिलकर सभी तरह के हालात का सामना कैसे कर सकते हो, जिससे तुम्हारा जीवन पहले से अधिक समृद्ध और अलग हो जाए। लेकिन, वह तुम्हें शादी की भेंट नहीं चढ़ाता है, और बेशक, वह तुम्हें तुम्हारे साथी के हाथों बेचता भी नहीं है ताकि तुम उसकी गुलामी करो। तुम उसके गुलाम नहीं हो, और वह तुम्हारा मालिक नहीं है। तुम दोनों बराबर हो। तुम्हें अपने साथी के प्रति सिर्फ एक पत्नी या पति की जिम्मेदारियाँ निभानी हैं, और जब तुम ये जिम्मेदारियाँ निभाते हो, तो परमेश्वर तुम्हें एक संतोषजनक पत्नी या पति मानता है। तुम्हारे साथी के पास ऐसा कुछ नहीं है जो तुम्हारे पास नहीं है, और तुम अपने साथी से कमतर तो बिल्कुल नहीं हो। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास और सत्य का अनुसरण करते हो, अपना कर्तव्य निभा सकते हो, अक्सर सभाओं में हिस्सा ले सकते हो, परमेश्वर के वचन पढ़ते हुए प्रार्थना कर सकते हो और परमेश्वर के समक्ष आ सकते हो, तो ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकार करता है और ये वही चीजें हैं जो एक सृजित प्राणी को करनी चाहिए और एक सृजित प्राणी को ऐसा ही सामान्य जीवन जीना चाहिए। इसमें शर्म की कोई बात नहीं है, और न ही इस तरह का जीवन जीने के लिए तुम्हें अपने साथी का ऋणी महसूस करना चाहिए—तुम उसके ऋणी नहीं हो। ... दैहिक रिश्तों के मामले में, तुम्हारे माता-पिता के अलावा, इन संसार में तुम्हारे सबसे करीब तुम्हारा जीवनसाथी ही है। फिर भी परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास के कारण तुम्हें वे दुश्मन मानते हैं और तुम पर हमले और अत्याचार करते हैं। वे तुम्हारे सभा में जाने का विरोध करते हैं, कोई अफवाह सुनने को मिल जाए तो वे घर आकर तुम्हें डाँटते हैं और तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव करते हैं। यहाँ तक कि जब तुम घर पर परमेश्वर के वचन पढ़ते या प्रार्थना करते हो और उनके सामान्य जीवन में कोई दखल नहीं देते, तब भी वे तुम्हें फटकारेंगे और तुम्हारा विरोध करेंगे, और तुम्हें पीटेंगे भी। बताओ, यह सब क्या है? क्या वे राक्षस नहीं हैं? क्या यह वही व्यक्ति है जो तुम्हारे सबसे करीब है? क्या ऐसा व्यक्ति इस लायक है कि तुम उसके प्रति अपनी कोई भी जिम्मेदारी निभाओ? (नहीं।) नहीं, वह इस लायक नहीं है! और इसलिए, ऐसा शादीशुदा जीवन जीने वाले कुछ लोग अभी भी अपने साथी के इशारों पर नाचते हैं, सब कुछ त्यागने को तैयार रहते हैं, वे अपना कर्तव्य निभाने में दिया जाने वाला समय, अपना कर्तव्य निभाने का अवसर, और यहाँ तक कि अपना उद्धार पाने का मौका भी त्यागने को तैयार होते हैं। उन्हें ये चीजें नहीं करनी चाहिए और कम से कम उन्हें ऐसे विचारों को पूरी तरह त्याग देना चाहिए(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (11))। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैंने सीखा कि परमेश्वर ने विवाह की व्यवस्था इसलिए की है ताकि लोग एक साथ शांतिपूर्वक रहना सीखें, एक-दूसरे का साथ दें और एक-दूसरे की देखभाल करें तथा जिम्मेदारियाँ निभाना सीखें। इसके पीछे भावना यह है कि कठिनाइयाँ आने पर किसी से परामर्श किया जा सके, विवाह की व्यवस्था के अंतर्गत किसी के साथ मिलकर समस्याओं को सुलझाया जा सके। परमेश्वर ने मुझे शादी के नाम पर बेचा नहीं है और मैं कोई अपने पति की गुलाम नहीं हूँ। हम सभी सृजित प्राणी हैं, हम समान हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी मैंने अपने पति की देखभाल करने की पूरी कोशिश की। जब भी उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ा तो मैं उसके साथ खड़ी रही और जब वह बीमार पड़ा तो मैंने उसकी देखभाल की। मैंने हमारी शादी में अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाई, मुझ पर उसका कोई कर्ज नहीं था। असल में वही लगातार मेरी गलतियाँ निकालता था और तलाक की धमकी देता था, उसने हमारी शादी को महत्व नहीं दिया और फिर भी मैंने मूर्खतापूर्ण तरीके से इसे बनाए रखने का प्रयास किया और यहाँ तक कि उसके हाथों विवश होकर मैंने आस्था का अभ्यास और सत्य का अनुसरण करने का साहस नहीं किया। मैं कितनी मूर्ख थी! परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे बहुत स्पष्टता महसूस हुई। जब मैं बाहर सभाओं में भाग लेती या घर पर परमेश्वर के वचनों को खाती और पीती थी तो मैं उसे बिल्कुल परेशान नहीं करती थी, फिर भी मेरा पति न केवल मेरा साथ नहीं देता था बल्कि वह मुझ पर लगातार दबाव डालता और बाधाएँ खड़ी करता था, मुझे तलाक की और पुलिस को बुलाने की धमकी देता था। इससे पता चलता है कि मेरे पति में मानवता नहीं थी और वह सार रूप में एक राक्षस था। वह मेरी अच्छाई के लायक नहीं था और मुझे निश्चित रूप से ऐसा नहीं करना चाहिए कि मैं परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना, सत्य का अनुसरण करना और अपना कर्तव्य करना छोड़ दूँ और यहाँ तक कि सिर्फ उसके लिए अपने बचाए जाने का मौका भी गँवा दूँ। जब मैं घर लौटी तो मैंने सोचा, “मैं अब अपने पति द्वारा बाध्य होकर नहीं रह सकती।” अगले ही दिन से मैंने घर पर अपना कर्तव्य करना शुरू कर दिया। जब मैंने व्यावहारिक रूप से सहयोग करना शुरू किया तो मेरे पति ने परेशानी खड़ी करना बंद कर दिया। वह यहाँ-वहाँ कुछ अजीब-सी टिप्पणियाँ जरूर करता था लेकिन अब मैं बेबस नहीं थी और अपना कर्तव्य सामान्य रूप से कर सकती थी।

बाद में मैंने इस पर विचार किया कि मैं सुखी वैवाहिक जीवन पर इतना जोर क्यों देती हूँ और यहाँ तक कि मैंने इसे अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य ही मान लिया था। मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश देखे : “सबसे पहले, शादी के बारे में कुछ राय समाज में लोकप्रिय हो जाती हैं, और फिर साहित्य की विभिन्न रचनाओं में शादी के संबंध में लेखकों के विचार और दृष्टिकोण सामने आते हैं; जैसे-जैसे साहित्य की इन रचनाओं को स्क्रीन पर दिखाने के लिए टेलीविजन कार्यक्रमों और फिल्मों में बदला जाता है, वे शादी के बारे में लोगों की विभिन्न राय, इसके बारे में उनके विभिन्न लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को और भी अधिक स्पष्ट रूप से सामने लाती हैं। कमोबेश, प्रत्यक्ष या अदृश्य रूप से, ये चीजें तुम लोगों के भीतर लगातार समाहित होती रहती हैं। इससे पहले कि तुम लोगों के पास शादी के बारे में कोई सटीक अवधारणा हो, शादी के संबंध में ये सामाजिक राय और संदेश तुममें पूर्वाग्रह पैदा करते हैं और तुम इन्हें स्वीकार लेते हो; फिर तुम लोग यह कल्पना करने लगते हो कि तुम्हारी शादी कैसी होगी और तुम्हारा जीवनसाथी कैसा होगा। चाहे ये संदेश टेलीविजन कार्यक्रमों, फिल्मों और उपन्यासों के जरिये तुम्हारे सामने आएँ या तुम्हारे सामाजिक दायरे और तुम्हारे जीवन में मौजूद लोगों के माध्यम से आएँ—स्रोत चाहे जो भी हो, ये सभी संदेश मनुष्य, समाज और संसार से आते हैं, या सटीक रूप से कहें, तो वे दुष्ट प्रवृत्तियों से आते और विकसित होते हैं। बेशक, अधिक सटीकता से कहें, तो वे शैतान से आते हैं। ऐसा ही है न? (बिल्कुल।) ... शादी को लेकर समाज की ऐसी राय—ये बातें जो लोगों के विचारों और उनकी आत्मा की गहराई में व्याप्त हैं—मुख्य रूप से रूमानी प्रेम से संबंधित हैं। ऐसी राय लोगों में डाली जाती है, जिससे उनमें शादी के बारे में सभी प्रकार की कल्पनाएँ विकसित होने लगती हैं। उदाहरण के लिए, वे इस बारे में कल्पना करते हैं कि उनका प्रेमी कौन होगा, वह कैसा व्यक्ति होगा और जीवनसाथी के रूप में उनकी अपेक्षाएँ क्या हैं। विशेष रूप से, समाज से मिलने वाले कई ऐसे संदेश हैं जो कहते हैं कि उन्हें निश्चित रूप से उस व्यक्ति से प्यार करना चाहिए और उस व्यक्ति को भी उन्हीं से प्यार करना चाहिए, सिर्फ यही सच्चा रूमानी प्रेम है, सिर्फ सच्चा रूमानी प्रेम ही शादी की ओर बढ़ सकता है, सिर्फ रूमानी प्रेम पर आधारित शादी ही अच्छी और सुखद होती है, और जिस शादी में रूमानी प्रेम न हो वह शादी अनैतिक है(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (10))। “कई लोग अपने जीवन की खुशी का आधार अपनी शादी को बना लेते हैं, और खुशी की तलाश में उनका मकसद अपनी शादी के सुख के पीछे भागना और उसे आदर्श बनाना होता है। वे मानते हैं कि अगर उनकी शादी खुशहाल होगी और वे अपने साथी के साथ खुश रहेंगे, तो उनका जीवन सुखद रहेगा, और इसलिए वे एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपनी शादी को खुशहाल बनाना ही जीवन का मकसद बना लेते हैं। ... इसलिए, जब परमेश्वर के घर को ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है जो वैवाहिक सुख को दूसरी सभी चीजों से बढ़कर मानते हैं, और उनसे अपना घर छोड़कर किसी दूर देश में जाकर सुसमाचार फैलाने और अपना कर्तव्य निभाने की अपेक्षा की जाती है, तो वे अक्सर इस तथ्य को जानकर निराश, असहाय और यहाँ तक कि असहज महसूस करते हैं कि जल्द ही उनका वैवाहिक सुख खत्म हो सकता है। कुछ लोग अपने वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना छोड़ देते हैं या उन्हें करने से इनकार कर देते हैं, और कुछ लोग तो परमेश्वर के घर की महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं को भी अस्वीकार कर देते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए अक्सर अपने जीवनसाथी की भावनाओं को जानने की कोशिश करते हैं। अगर उनका जीवनसाथी जरा भी दुखी होता है या अपनी आस्था, अपने द्वारा अपनाए गए परमेश्वर में आस्था के मार्ग और अपने कर्तव्य पालन को लेकर थोड़ी सी भी नाखुशी या असंतोष दिखाता है, तो वे तुरंत अपना रास्ता बदलकर रियायतें देने लगते हैं। अपने वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए, वे अक्सर अपने जीवनसाथी को रियायतें देते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपने कर्तव्य निभाने के अवसरों को भी त्यागना पड़े, और सभाओं में हिस्सा लेने, परमेश्वर के वचन पढ़ने और आध्यात्मिक भक्ति करने का समय भी छोड़ना पड़े; वे अपने जीवनसाथी को अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाने और उन्हें अकेला और अलग-थलग महसूस न होने देने और अपने जीवनसाथी को अपने प्यार का एहसास दिलाने की भरसक कोशिश करेंगे; वे अपने जीवनसाथी का प्यार खोने या उसके बगैर रहने के बजाय सब कुछ त्यागना या छोड़ना पसंद करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने अपनी आस्था के लिए या परमेश्वर में आस्था के लिए चुने गए मार्ग की खातिर अपने जीवनसाथी के प्यार को त्याग दिया, तो इसका मतलब है कि उन्होंने अपने वैवाहिक सुख को त्याग दिया है और अब वे इस वैवाहिक सुख को महसूस नहीं कर पाएँगे, और फिर वे अकेले, बेचारे और दयनीय बन जाएंगे। किसी व्यक्ति के बेचारे और दयनीय होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है एक दूसरे के लिए प्यार या सम्मान न होना। भले ही ये लोग कुछ धर्म-सिद्धांत और परमेश्वर के उद्धार कार्य के महत्व को समझते हैं और बेशक, वे यह भी समझते हैं कि एक सृजित प्राणी के रूप में उन्हें सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहिए, मगर क्योंकि वे अपनी खुशी का जिम्मा अपने जीवनसाथी को सौंप देते हैं, और बेशक अपनी खुशी का आधार अपने वैवाहिक सुख को बनाते हैं, तो यह जानते और समझते हुए भी कि उन्हें क्या करना चाहिए, वे वैवाहिक सुख के पीछे भागना नहीं छोड़ पाते हैं। वे गलती से वैवाहिक सुख के पीछे भागने को अपने इस जीवन का मकसद बना लेते हैं, और गलती से वैवाहिक सुख की तलाश को उस मकसद के रूप में देखते हैं जिसका अनुसरण एक सृजित प्राणी को करना चाहिए और जिसे हासिल करना चाहिए। क्या यह गलती नहीं है? (बिल्कुल है।)” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (11))। परमेश्‍वर के वचनों ने उजागर किया कि कैसे विवाह के बारे में लोगों के भ्रामक विचार शैतान द्वारा पैदा किए गए थे। मुझे याद आया जब मैं छोटी थी तो पूरे मोहल्ले में रोमांटिक गाने बजते सुने जा सकते थे। जब भी मैं वो गाने सुनती तो हमेशा एक खुशहाल शादी की आशा और सपना देखती थी। “काश मैं कोई सच्चा दिल जीत सकूँ और काश हम अपने जीवन के अंत तक कभी अलग नहीं हों” और “एक दूसरे का हाथ पकड़ना और साथ-साथ बूढ़ा होना” जैसे विचार और दृष्टिकोण धीरे-धीरे मेरी विश्वास प्रणाली में बैठ गए। मुझे विश्वास हो गया कि मेरा पति जीवन भर मेरा साथ देगा और मेरे लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं था कि मेरा पति ऐसा हो जो मुझे प्यार करे और मेरी देखभाल करे। परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद मैंने कर्तव्यों के पालन के बारे में परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े और सिद्धांत रूप में जान गई कि मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरा जन्म अंत के दिनों में हुआ, कि एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य पूरा करना ही मेरे जीवन का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए और यही सभी चीजों में सर्वाधिक सार्थक है। लेकिन मैं इन सांसारिक विचारों और दृष्टिकोणों से बँधी हुई थी। मुझे लगता था कि मेरे पति को जीवन भर मेरा साथ देना चाहिए और प्रेमविहीन विवाह दयनीय और दुखद होगा। इसलिए जब मेरे पति ने मेरी आस्था के कारण मेरी परवाह करना और मुझे प्यार करना बंद कर दिया तो मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकी। मैं डर गई कि अगर मेरी शादी टूट गई तो मैं इतनी दयनीय स्थिति में पहुँच जाऊँगी कि मुझे चाहने और मेरी परवाह करने वाला कोई नहीं होगा। इसलिए मैंने अपने पति का प्यार वापस पाने के लिए हर संभव प्रयास किया। यह देखकर कि वह मेरी आस्था के विरुद्ध है, मैंने उसकी बात मान ली और अपनी शादी को बनाए रखने के लिए मैं परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में कम समय बिताने और कलीसिया के काम में देरी करने को तैयार थी। मैं कितनी स्वार्थी और नीच थी! मैंने विचार किया कि कैसे जब से मैंने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया था तब से मेरा पति पूरी तरह से बदल गया था और हर समय मेरी गलतियाँ निकालने लगा था और वह अक्सर मुझे तलाक देने या पुलिस को बुलाने की धमकी देता था। मैंने देखा कि मेरे पति का मेरे साथ अच्छा व्यवहार सच्चा प्यार नहीं है, यह सिर्फ एक कार्य है जो उसे एक बच्चा देने और घर का रखरखाव करने की मेरी क्षमता पर आधारित है। जब मेरी आस्था ने उसके हितों को खतरे में डाल दिया तो उसने अपना मुखौटा उतार फेंका और एक राक्षस के रूप में अपना सार प्रकट किया। रोमांटिक प्रेम और खुशहाल शादी और कुछ नहीं बल्कि शैतान द्वारा लोगों को धोखा देने और फँसाने के लिए रची गई धोखाधड़ी हैं। अगर मैं हमेशा अपने कर्तव्य को हल्के में लेती रहती क्योंकि मैं वैवाहिक सुख को बनाए रखने की कोशिश कर रही थी तो मैं कभी भी सत्य प्राप्त न कर पाती और अंत में परमेश्वर द्वारा नष्ट कर दी जाती।

जून 2023 में मुझे जिला अगुआ के रूप में चुना गया। मैं जानती थी कि यह परमेश्वर का उत्कर्ष है लेकिन कर्तव्य में एक महीने के बाद मैंने देखा कि अक्सर कोई न कोई संदिग्ध व्यक्ति मेरा पीछा करता रहता है। ऐसी स्थिति में अपना कर्तव्य सुरक्षित रूप से निभाने का एकमात्र तरीका घर छोड़ देना ही था। लेकिन मुझे पता था कि अगर मैंने घर छोड़ दिया तो मेरा पति मुझे तलाक दे सकता है और मैं चिंता और असमंजस में डूब गई। खोज के जरिए मुझे परमेश्वर के वचनों के ये दो अंश मिले : “परिवार या समाज में तुम्हारी भूमिका कुछ भी हो—चाहे वह पत्नी, पति, बच्चे, माता-पिता, कर्मचारी या कुछ और भूमिका हो—और चाहे वैवाहिक जीवन में तुम्हारी भूमिका महत्वपूर्ण हो या न हो, परमेश्वर के सामने तुम्हारी एक ही पहचान है और वह एक सृजित प्राणी के रूप में है। परमेश्वर के सामने तुम्हारी कोई दूसरी पहचान नहीं है। इसलिए, जब परमेश्वर का घर तुम्हें बुलाता है, यही वह समय है जब तुम्हें अपना मकसद पूरा करना चाहिए। यानी, एक सृजित प्राणी के रूप में, ऐसा नहीं है कि तुम्हें अपना मकसद सिर्फ तभी पूरा करना चाहिए जब तुम्हारे वैवाहिक सुख और तुम्हारी शादी की अखंडता को बनाए रखने की शर्त पूरी हो, बल्कि ऐसा है कि अगर तुम एक सृजित प्राणी हो, तो परमेश्वर ने जो मकसद तुम्हें सौंपा है, तुम्हें उसे बिना शर्त पूरा करना चाहिए; परिस्थिति चाहे जो भी हो, परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपे गए मकसद को प्राथमिकता देना हमेशा तुम पर निर्भर करता है, जबकि शादी के जरिए तुम्हें सौंपे गए मकसद और जिम्मेदारियों को निभाना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हें जो भी मकसद पूरा करना चाहिए, जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है, वह किसी भी स्थिति में और किसी भी परिस्थिति में हमेशा तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसलिए तुम अपने वैवाहिक सुख को चाहे कितना भी बरकरार रखना चाहो या तुम्हारी वैवाहिक स्थिति चाहे कैसी भी हो या तुम्हारा साथी तुम्हारी शादी के लिए चाहे कितनी भी बड़ी कीमत चुकाता हो, इनमें से कोई भी उस मकसद को ठुकराने का कारण नहीं है जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (10))। “अगर तुम्हारा वैवाहिक सुख का अनुसरण एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित, बाधित या यहाँ तक कि उसे बर्बाद करता है, तो तुम्हें न सिर्फ वैवाहिक सुख के अनुसरण को, बल्कि अपनी पूरी शादी को ही त्याग देना चाहिए। इन समस्याओं पर संगति करने का अंतिम उद्देश्य और अर्थ क्या है? यही कि वैवाहिक सुख तुम्हारे कदमों को न रोके, तुम्हारे हाथ न बाँधे, तुम्हारी आँखों पर पर्दा न डाले, तुम्हारी दृष्टि विकृत न करे, तुम्हें परेशान न करे और तुम्हारे दिमाग को काबू न करे; यह संगति इसलिए है ताकि तुम्हारा जीवन और जीवन पथ वैवाहिक सुख के अनुसरण से न भर जाए, और ताकि तुम शादी में पूरी की जाने वाली जिम्मेदारियों और दायित्वों के प्रति सही रवैया अपना सको और उन जिम्मेदारियों और दायित्वों के संबंध में, जो तुम्हें पूरे करने चाहिए, उनके बारे में सही फैसले ले सको। अभ्यास करने का एक बेहतर तरीका यह है कि तुम अपना ज्यादा समय और ताकत अपने कर्तव्य में लगाओ, वह कर्तव्य निभाओ जो तुम्हें निभाना चाहिए, और परमेश्वर द्वारा सौंपे गए मकसद को पूरा करो। तुम्हें कभी नहीं भूलना चाहिए कि तुम एक सृजित प्राणी हो, परमेश्वर ने ही तुम्हें जीवन के इस पड़ाव पर लाकर खड़ा किया है, वह परमेश्वर ही है जिसने तुम्हें शादी की व्यवस्था दी, एक परिवार दिया और वो जिम्मेदारियाँ सौंपी जो तुम्हें शादी के ढांचे के भीतर निभानी चाहिए, और कि वह तुम नहीं हो जिसने तुम्हारी शादी तय की है, या ऐसा नहीं है कि तुम्हारी शादी बस यूँ ही हो गई, या फिर तुम अपनी क्षमताओं और ताकत के भरोसे अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रख सकते हो(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (10))। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि हालाँकि अपने घर में मैं एक पत्नी और माँ थी, लेकिन मैं परमेश्वर द्वारा सृजित एक सृजित प्राणी भी थी और जब कोई कर्तव्य सौंपा जाए तो मुझे उसे बिना शर्त स्वीकारना और उसे अपनी पहली प्राथमिकता बनाना था। एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य पूरा करना ही मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। परमेश्वर ने मुझे जीवन दिया है, उसने न केवल स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजों की रचना की है बल्कि मानवजाति को उसकी हर जरूरत की आपूर्ति भी की है, वह मानवजाति को बचाने के लिए सभी सत्य भी व्यक्त करता है, वह हमें सिखाता है कि हमें कैसे आचरण करना चाहिए और शैतान की भ्रष्टता के कहर से कैसे बचना चाहिए और एक सच्चे इंसान की तरह कैसे जीवन जीना चाहिए। अगर मैं अपने विवाह को बनाए रखने के लिए अपने कर्तव्य को अस्वीकार कर दूँ तो यह एकदम अनुचित और अविवेकपूर्ण होगा। अगर इससे एक सृजित प्राणी के रूप में मेरे कर्तव्य में रुकावट ना आए तो मैं विवाह के दायरे में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकती थी लेकिन चूँकि एक खुशहाल शादी की कोशिश मेरे कर्तव्य को प्रभावित कर रही थी, मुझे अपनी शादी को दर-किनार करना था, एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में अधिक ऊर्जा और समय लगाना था और अपनी शादी के झंझट से पीछा छुड़ाना था। तब जाकर मुझे स्पष्ट रूप से समझ आया कि मुझे अपनी शादी को बनाए रखने के अपने कर्तव्य में प्रगति का त्याग करना बंद करना पड़ेगा। इसलिए मैंने अपना कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ने का संकल्प लिया। जब मैंने अपने पति से यह बात कही कि मुझे कुछ समय के लिए घर छोड़कर कहीं छिपना होगा तो वह तुरंत तलाक चाहता था। उसने कहा, “अगर तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जाए और कुछ वर्षों के लिए जेल भेज दिया जाए तो मैं तुम्हारा इंतजार कर सकता हूँ, लेकिन अगर तुम घर छोड़कर जाओगी तो हमारा रिश्ता खत्म।” यह सुनकर मुझे गहरी निराशा हुई। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरा पति मुझे छिपने देने के बजाय चाहता है कि मैं गिरफ्तार होकर जेल चली जाऊँ। मैंने देखा कि मेरे पति का सार परमेश्वर से घृणा करने वाला है। मैंने अपने आँसू पोंछे और दृढ़ता से जवाब दिया, “मनुष्य को परमेश्वर ने बनाया है इसलिए हमें उसकी आराधना करनी चाहिए। अगर मुझे गिरफ्तार भी कर लिया गया तो मैं बाहर आने के बाद भी विश्वास रखना जारी रखूँगी। अगर तुम इसे स्वीकार कर सको तो हम एक साथ रह सकते हैं, अगर नहीं तो हम दोनों अपने-अपने रास्ते चले जाएँगे।” अगले ही दिन हमने अपने तलाक के कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए।

अब जब कि मैं घर से दूर हूँ और अब मेरे पति द्वारा कोई बाधा नहीं डाली जाती, मेरे पास परमेश्वर के वचन पढ़ने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए और भी अधिक समय है। जब भी मुझे कोई समस्या होती है तो मैं अपने भाई-बहनों से संगति कर तुरंत खोज कर सकती हूँ। जब मैं अपने कर्तव्य में भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करती हूँ और मेरे भाई-बहन इस ओर ध्यान दिलाते हैं तो अब मेरे पास खुद को शांत करने और चिंतन करने के लिए अधिक समय होता है। इसके अलावा मेरे पास कार्य की जाँच करने और किसी भी समस्या को तुरंत सुधारने के लिए अधिक समय होता है। नतीजतन हमें अपने कार्य में बेहतर परिणाम मिलने लगे हैं। अब मुझे समझ आया कि मैं शैतान द्वारा मुझमें डाले गए विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार जीती थी और मैंने सत्य प्राप्ति के कई अवसर खो दिए थे और मैंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया था। यह सब परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण ही है कि मैं विवाह की बेड़ियों और बाधाओं से मुक्त हो सकी। परमेश्वर का धन्यवाद!

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