58. मैं हमेशा पदोन्नति क्यों चाहती हूँ?

किंगशियान, चीन

2017 में मैं कलीसिया में वीडियो बनाने का काम कर रही थी और मुझे टीम अगुआ चुना गया था। एक दिन मुझे पता चला कि बहन ली मिन और भाई चेन बिन को पर्यवेक्षक बनाया गया है। मेरे अंदर कड़वाहट थी और मैंने मन में सोचा, “वे मेरे जितने लंबे समय से वीडियो नहीं बना रहे हैं और उनके कौशल मेरे जितने अच्छे नहीं हैं। तो उन्हें पर्यवेक्षक क्यों बनाया गया और क्यों अगुआ ने मेरे बारे में सोचा भी नहीं? मैं ली मिन की टीम अगुआ हुआ करती थी और अब वह मेरे काम का पर्यवेक्षण कर रही है। अब से मैं उसके सामने अपना चेहरा कैसे दिखाऊँगी? क्या भाई-बहन सोचेंगे कि मैं उसके बराबर अच्छी नहीं हूँ? क्या इससे मैं पूरी तरह से अक्षम नहीं लगूँगी?” यह सोचकर मैं बहुत निरुत्साहित और नकारात्मक हो गई और मैं कुछ भी करने की ऊर्जा नहीं जुटा पाई। बाद में एक सभा में अगुआ ने कहा कि एक और पर्यवेक्षक चुना जाना चाहिए और अंत में भाई लिन हुई को चुना गया। मैं इस नतीजे से अचंभित थी। अपने कर्तव्यों में मैं जिन लोगों के साथ सहयोग करती थी उनमें से प्रत्येक व्यक्ति को एक-एक करके पदोन्नत और विकसित किया गया, लेकिन मैं अभी भी वहीं अटकी हुई थी। क्या मैं सबसे निचले पायदान पर नहीं अटकी थी? लिन हुई ने मेरे जितने लंबे समय तक वीडियो भी नहीं बनाए थे लेकिन अब उसे पर्यवेक्षक चुन लिया गया था। मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। क्या यह सच हो सकता है कि मैं बस अयोग्य थी? जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही बुरा लगा और मैं खुद को रोने से नहीं रोक पाई। फिर मुझे अचानक अगुआ की यह बात याद आई कि लिन हुई ने अपने कर्तव्य में अच्छे नतीजे पाए हैं और मैंने सोचा, “क्या ऐसा हो सकता है कि लिन हुई को पर्यवेक्षक के रूप में इसलिए चुना गया क्योंकि उसने कर्तव्य में अच्छे नतीजे दिए? अगर मैं काम के नतीजों को बेहतर बनाने के लिए ज्यादा मेहनत करूँ और ज्यादा कीमत चुकाऊँ तो शायद मुझे भी पदोन्नत और विकसित किया जाएगा। फिर लोग मुझे नीची नजर से नहीं देखेंगे।” इस विचार के साथ मैं फिर से प्रेरित हो गई।

तब से मैंने खुद को रोज वीडियो बनाने में झोंक दिया, आगे प्रगति करने के लिए अतिरिक्त समय काम किया। एक दिन हमारे बनाए गए वीडियो देखने के बाद अगुआ ने कहा कि वे बहुत अच्छे हैं और हमने प्रगति की है। यहाँ तक कि अगुआ ने हमें कुछ महत्वपूर्ण कार्य भी पूरे करने को दिए और हमें उन्हें समय से पूरा करने के लिए कहा। काम में आखिरकार सुधार होते और अगुआ द्वारा हमें महत्व दिए जाते देखकर मुझे वाकई बहुत खुशी हुई। मैंने सोचा कि अगर मैं प्रयास जारी रखूँ और जल्दी से और अच्छे वीडियो बनाऊँ, तो शायद मुझे भी पदोन्नति और विकसित होने का मौका मिलेगा। काम को गति देने के लिए मैंने टीम की बहनों से हर दिन अपने साथ अतिरिक्त समय काम भी करवाया। लेकिन क्योंकि मैं जल्दी सफलता के लिए बहुत उत्सुक थी, मैंने अपने कर्तव्यों में सिद्धांतों को नहीं खोजा, मैं तकनीकों का अध्ययन करने या काम में समस्याओं की समीक्षा करने के लिए सभी को एक साथ नहीं लाई और मैंने केवल तेजी से प्रगति पर जोर दिया। नतीजतन वीडियो की गुणवत्ता खराब हो गई और उन पर बार-बार फिर से काम करना पड़ा। बहनों का मनोबल भी कम था। चूँकि कोई समीक्षा या सीख नहीं थी, बहनों ने अपने कौशल में सुधार नहीं किया और जब उनके कर्तव्यों में कठिनाइयाँ आईं तो उनके पास आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं था, उनकी स्थिति खराब होती गई, और वे अधिक से अधिक सुस्त होती गईं। ये समस्याएँ हल करने के लिए आत्म-चिंतन करने या सत्य की खोज करने के बजाय मैंने बहनों को अच्छे नतीजे न देने, अपने कर्तव्यों की प्रगति में देरी करने और मेरे अलग दिखने के अवसर को प्रभावित करने के लिए दोषी ठहराया। मैंने उन्हें ऐंठ भी दिखाई। कभी-कभी मुझे एहसास होता था कि मेरी दशा गलत थी और मुझे अपनी दशा पर आत्म-चिंतन करने और उसे समायोजित करने की जरूरत थी, लेकिन जब मैंने कार्य के खराब नतीजों के बारे में सोचा तो मुझे महसूस हुआ कि अगर मैंने नतीजे बेहतर करने के लिए कड़ी मेहनत नहीं की, तो अगुआ निश्चित रूप से मुझे एक अक्षम टीम अगुआ समझेंगे और मुझे न केवल पदोन्नत नहीं किया जाएगा बल्कि मुझे बरखास्त भी किया जा सकता है। जब मैंने इस बारे में सोचा तो मैं लट्टू की तरह बिना रुके प्रगति के पीछे भागती रही। मैं बस रुक नहीं पाई।

चूँकि मैंने अपने कर्तव्य में सिद्धांतों को नहीं खोजा या कोई वास्तविक काम नहीं किया, मैंने वीडियो कार्य की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित किया और कुछ ही समय बाद अगुआ ने मुझे बरखास्त कर दिया। मुझे लगा कि मेरे साथ कुछ अन्याय हुआ है। मैंने सोचा कि मैं अपने कर्तव्य में बड़ी कीमत चुका रही हूँ तो मुझे क्यों कहा जा रहा है कि मैंने वास्तविक कार्य नहीं किया? बरखास्त किए जाने के बाद मैं पीड़ा से भर गई और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मुझे बरखास्त कर दिया गया है और मैंने वीडियो पर काम करने का अवसर गँवा दिया है। मुझे अपना इरादा समझने में मार्गदर्शन करो।” अपनी एक भक्ति के दौरान मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला : “चाहे जो भी परिवेश सामने आए—विशेष रूप से मुश्किलों में, और खासकर जब परमेश्वर लोगों को प्रकट या उजागर करे—सबसे पहले इंसान को परमेश्वर के सामने आकर आत्म-चिंतन करना चाहिए और अपने शब्दों, कर्मों और भ्रष्ट स्वभाव की जाँच करनी चाहिए, न कि यह जाँच, अध्ययन और आलोचना करनी चाहिए कि परमेश्वर के वचन और कार्य सही हैं या गलत। यदि तुम अपने उचित स्थान में रहते हो, तो तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हें वास्तव में क्या करना चाहिए। लोगों का स्वभाव भ्रष्ट है और वे सत्य को नहीं समझते। यह कोई ज्यादा बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन जब लोगों का स्वभाव भ्रष्ट होता है और वे सत्य को नहीं समझते, और फिर भी वे सत्य को नहीं खोजते—तब बड़ी समस्या होती है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग तीन))। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ में आया कि मेरी बरखास्तगी परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं का हिस्सा थी और हालाँकि मैं अभी भी परमेश्वर के इरादे को पूरी तरह से नहीं समझ पाई थी, मुझे समर्पण करना था, ईमानदारी से सत्य खोजना था और आत्म-चिंतन करना था।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और मुझे अपनी समस्याओं की कुछ समझ मिली। परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधियों के लिए, अगर उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे पर हमला किया जाता है और उन्हें छीन लिया जाता है, तो यह उनकी जान लेने की कोशिश करने से भी अधिक गंभीर मामला होता है। मसीह-विरोधी चाहे कितने भी उपदेश सुन ले या परमेश्वर के कितने भी वचन पढ़ ले, उसे इस बात का दुख या पछतावा नहीं होगा कि उसने कभी सत्य का अभ्यास नहीं किया है, और वह मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहा है, न ही इस बात पर कि उसका प्रकृति सार मसीह-विरोधियों का है। बल्कि उसकी बुद्धि हमेशा इसी काम में लगी रहती है कि कैसे अपने रुतबे और प्रतिष्ठा को बढ़ाया जाए। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, दूसरों के सामने दिखावा करने के लिए करते हैं, परमेश्वर के सामने नहीं। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ऐसे लोग रुतबे से इतना प्यार करते हैं कि वे इसे अपना जीवन समझते हैं, अपने जीवनभर का लक्ष्य समझते हैं। इसके अलावा, चूँकि वे अपने रुतबे से बहुत प्यार करते हैं, वे सत्य के अस्तित्व में विश्वास ही नहीं करते, और यह तक कहा जा सकता है कि वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते। इस प्रकार, प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करने के लिए वे चाहे जैसे भी गणना करें, लोगों और परमेश्वर को धोखा देने के लिए चाहे जैसा बनावटी वेश बनाएँ, उनके दिलों की गहराइयों में कोई जागरूकता या धिक्कार नहीं होता, चिंतित होने की तो बात ही दूर है। प्रतिष्ठा और रुतबे की अपनी निरंतर खोज में वे, परमेश्वर ने जो किया है उसका भी मनमाने ढंग से खंडन करते हैं। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? अपने दिलों की गहराइयों में मसीह-विरोधी मानते हैं, ‘समस्त प्रतिष्ठा और रुतबा व्यक्ति के अपने प्रयासों से अर्जित किया जाता है। केवल लोगों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करके और प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करके ही वे परमेश्वर के आशीषों का आनंद ले सकते हैं। जीवन का मूल्य तभी होता है, जब लोग पूर्ण सत्ता और रुतबा हासिल कर लेते हैं। बस यही मनुष्य की तरह जीना है। इसके विपरीत, परमेश्वर के वचन में जिस तरह से जीने के लिए कहा गया है उस तरह जीना बेकार होगा—यानी हर चीज में परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना, स्वेच्छा से सृजित प्राणी के स्थान पर खड़े होना और एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीना—इस तरह के व्यक्ति का कोई आदर नहीं करेगा। इंसान को अपने रुतबे, प्रतिष्ठा और खुशी खुद संघर्ष करके अर्जित करनी चाहिए; ये चीजें सकारात्मक और सक्रिय रवैये के साथ लड़कर जीती और हासिल की जानी चाहिए। कोई तुम्हें ये चीजें थाली में परोसकर नहीं देगा—निष्क्रिय होकर प्रतीक्षा करने से केवल विफलता मिलेगी।’ मसीह-विरोधी इसी प्रकार हिसाब लगाते रहते हैं। मसीह-विरोधियों का यही स्वभाव है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा ही उनका जीवन है। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें वे केवल यह सोचते हैं कि दूसरों से रुतबा और सम्मान और प्रशंसा कैसे प्राप्त करें। चाहे वे कलीसिया के काम में कितनी भी बाधा डालें या उसे नुकसान पहुँचाएँ, वे कभी आत्म-चिंतन या पश्चात्ताप नहीं करते। अपने व्यवहार पर आत्म-चिंतन करते हुए मैंने देखा कि मैंने भी प्रतिष्ठा और रुतबे पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया। जब मैंने देखा कि जिन भाई-बहनों के साथ मैंने सहयोग किया था, उन्हें पर्यवेक्षक के रूप में चुन लिया गया था तो मैं भावनात्मक रूप से हिल गई। मैंने सोचा कि यदि मैं बस थोड़ा और प्रयास करती, अधिक कीमत चुकाती और अच्छे नतीजे लाती तो मुझे भी पदोन्नत किया जाता और महत्व दिया जाता। चूँकि मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भाग रही थी, मैंने अपने कर्तव्य में सिद्धांतों को नहीं खोजा, सभी के लिए अपने कौशल सुधारने के लिए सीखने के सत्र आयोजित नहीं किए और क्योंकि जल्दी से नतीजे हासिल करने की इच्छा के कारण मैं हर दिन सभी को देर रात तक काम करने के लिए मजबूर करती रही, वीडियो पर फिर से कई बार काम करने की आवश्यकता पड़ी और काम में गंभीर रूप से देरी हुई। इसके अलावा एक टीम अगुआ के रूप में जब मैंने काम में समस्याएँ देखीं तो मुझे भाई-बहनों को इन भटकावों का सारांश देने और वास्तविक समस्याएँ हल करने के लिए सत्य सिद्धांतों की खोज करने की पहल करनी चाहिए थी। जब बहनें खराब दशा में थीं तो मुझे उनकी मदद करने के लिए संगति करनी चाहिए थी क्योंकि यह मेरी जिम्मेदारी थी। लेकिन मैंने कोई वास्तविक कार्य नहीं किया। मुझे बस नतीजे हासिल करने और दूसरों की प्रशंसा पाने की परवाह रही और मैंने भाई-बहनों के जीवन प्रवेश की बिल्कुल भी परवाह नहीं की, न ही मैंने इसकी परवाह की कि कहीं कलीसिया के कार्य को नुकसान तो नहीं हुआ है। मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने की दशा में रही और मेरा दिल अंधकार, दबाव और पीड़ा में था। अपनी गति बनाए रखने के लिए मैंने भक्ति और आत्म-चिंतन को भी समय की बरबादी माना और मैं बस जिद्दी होकर काम पर मेहनत करती रही। चाहे दूसरों ने मुझे कितना भी याद दिलाने की कोशिश की, मैं तब तक उदासीन रही जब तक मुझे बरखास्त नहीं कर दिया गया। मैंने देखा कि मेरा दिल पूरी तरह से अड़ियल बन गया था। प्रतिष्ठा और रुतबे की मेरी चाह बहुत अधिक थी, जिसके कारण मैं सत्य से विमुख हो गई थी और प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे को सँजोने लगी थी। मैं जिस रास्ते पर चल रही थी, वह मसीह-विरोधी का रास्ता था। यह एहसास होने पर मुझे गहराई से ऋणी होने की भावना महसूस हुई और इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अब अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार नहीं जीना चाहती। मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ।”

बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े और मुझे लगातार प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने के मूल के बारे में कुछ समझ मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है। अब, शैतान की करतूतें देखते हुए, क्या उसके भयानक इरादे एकदम घिनौने नहीं हैं? हो सकता है, आज शायद तुम लोग शैतान के भयानक इरादों की असलियत न देख पाओ, क्योंकि तुम लोगों को लगता है कि व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ के बिना नहीं जी सकता। तुम लोगों को लगता है कि अगर लोग प्रसिद्धि और लाभ पीछे छोड़ देंगे, तो वे आगे का मार्ग नहीं देख पाएँगे, अपना लक्ष्य देखने में समर्थ नहीं हो पाएँगे, उनका भविष्य अंधकारमय, धुँधला और विषादपूर्ण हो जाएगा। परंतु, धीरे-धीरे तुम लोग समझ जाओगे कि प्रसिद्धि और लाभ वे विशाल बेड़ियाँ हैं, जिनका उपयोग शैतान मनुष्य को बाँधने के लिए करता है। जब वह दिन आएगा, तुम पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण का विरोध करोगे और उन बेड़ियों का विरोध करोगे, जिनका उपयोग शैतान तुम्हें बाँधने के लिए करता है। जब वह समय आएगा कि तुम वे सभी चीजें निकाल फेंकना चाहोगे, जिन्हें शैतान ने तुम्हारे भीतर डाला है, तब तुम शैतान से अपने आपको पूरी तरह से अलग कर लोगे और उस सबसे सच में घृणा करोगे, जो शैतान तुम्हारे लिए लाया है। तभी मानवजाति को परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और तड़प होगी(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे प्रसिद्धि और लाभ के जरिए लोगों को भ्रष्ट करने के शैतान के घृणित तरीकों और दुष्ट इरादों के बारे में कुछ समझ मिली। शैतान लोगों को बाँधने और नुकसान पहुँचाने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग करता है, जिससे लोग परमेश्वर से दूर हो जाते हैं और उससे विश्वासघात करते हैं। पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास हुआ कि बचपन से ही मैं शैतान की शिक्षा और अनुकूलन से प्रभावित थी। मैंने शैतान के फलसफों जैसे “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है” और “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है” को अपने मार्गदर्शक आदर्श वाक्य मान लिया था। मेरा स्वभाव लगातार अहंकारी होता गया और चाहे मैं कहीं भी रहूँ, मैं हमेशा दूसरों की प्रशंसा पाना चाहती थी और पीछे रहने से इनकार करती थी। मुझे याद आया कि जब मैं पहले काम करती थी, जब मैं देखती थी कि मेरी उम्र के आसपास के लोग जो मुझसे अधिक शिक्षित थे, कंपनी में कुलीन कर्मचारियों के रूप में काम कर पाते थे, जबकि मैं अपनी कम शिक्षा के कारण केवल कुछ छोटे-मोटे काम ही कर पाती थी, मैं ऐसा औसत दर्जे का जीवन जीने के लिए तैयार नहीं थी। इसलिए मैंने अपने खाली समय में जमकर पढ़ाई की, मुझे उम्मीद थी कि एक दिन मैं खुद पढ़ाई करके डिप्लोमा प्राप्त करूँगी और दूसरों के सामने प्रभावशाली दिखने के लिए एक अच्छी नौकरी लूँगी। परमेश्वर को पाने के बाद भी मैं सांसारिक आचरण के इन शैतानी फलसफों के अनुसार जी रही थी। मैंने सोचा कि कलीसिया में एक अगुआ या पर्यवेक्षक बनना और भाई-बहनों की स्वीकृति और सम्मान प्राप्त करना ही सार्थक जीवन जीने का एकमात्र तरीका है। इसलिए जब मैंने भाई-बहनों को पदोन्नत होते देखा तो मुझे ईर्ष्या और जलन महसूस हुई। मैंने वीडियो पर कड़ी मेहनत की, इस उम्मीद में कि मैं जल्दी से कुछ हासिल कर लूँगी ताकि अगुआ मुझे भी आगे विकसित करें। अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने के लिए मुझे बहनों को अपने साथ देर तक रोके रखने में कोई समस्या नहीं थी ताकि तेजी से प्रगति की जा सके और जब मैंने देखा कि मेरी बहनें खराब दशा में थीं, तो मैंने न केवल उनकी मदद नहीं की बल्कि उन्हें नीची नजर से भी देखा। कभी-कभी मैं क्रोधित भी हो जाती थी और उन्हें ऐंठ दिखाती थी। मैं वास्तव में बहुत स्वार्थी और उदासीन थी। प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने के दौरान मुझमें मनुष्य जैसा कुछ भी नहीं रहा। मैंने न केवल भाई-बहनों को पीड़ा दी बल्कि कलीसिया के काम को भी नुकसान पहुँचाया। चूँकि मैंने कोई वास्तविक कार्य नहीं किया, केवल प्रतिष्ठा और रुतबे का पीछा किया और जल्दी सफलता की इच्छा से प्रेरित रही, मैंने वीडियो कार्य की प्रगति में गंभीर रूप से देरी की और अंततः मुझे बरखास्त कर दिया गया। मैंने देखा कि शैतान के फलसफों और झूठ के अनुसार जीना और प्रमुखता के पीछे भागना केवल और अधिक भ्रष्टता, विद्रोह और परमेश्वर के प्रतिरोध की ओर ले जाएगा। अंत में मैं केवल खुद को नुकसान पहुँचाऊँगी। अब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मुझे लगता है कि अलग दिखने की मेरी पिछली चाह और जिस तरह से मैं प्रतिष्ठा और रुतबे से कसकर चिपकी हुई थी, वह वास्तव में मूर्खतापूर्ण था।

बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े और मैं पर्यवेक्षक के रूप में न चुने जाने को तर्कसंगत ढंग से स्वीकार कर पाई। परमेश्वर कहता है : “यदि तुम अगुआई के लिए खुद को उपयुक्त मानते हो, तुम्हें लगता है कि तुम्हारे अंदर प्रतिभा, क्षमता और मानवता होते हुए भी परमेश्वर के घर ने तुम्हें पदोन्नत नहीं किया और भाई-बहनों ने तुम्हें नहीं चुना है, तो तुम्हें इस मामले में कैसे पेश आना चाहिए? अभ्यास का एक मार्ग है जिसका तुम अनुसरण कर सकते हो। तुम्हें अपने आप को भली-भांति जानना चाहिए। देखो कि अंततः कहीं तुम्हारी मानवता में कोई समस्या तो नहीं है या तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव के प्रकाशन का कोई पहलू लोगों में घृणा तो नहीं पैदा करता; या कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे अंदर सत्य वास्तविकता न हो और दूसरे लोग तुमसे आश्वस्त न होते हों, या तुम्हारा कर्तव्य निष्पादन अधोमानक तो नहीं है। तुम्हें इन सब बातों पर चिंतन कर देखना चाहिए कि वास्तव में तुममें क्या कमी है। ... यदि तुमने सही मायने में बोझ उठाओ और तुममें जिम्मेदारी की भावना है, तुम भार वहन करना चाहते हो, तो तुम अपने आपको प्रशिक्षित करो। सत्य का अभ्यास करने पर ध्यान दो और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करो। जब तुम्हारे पास जीवन का अनुभव आ जाएगा और तुम गवाही के निबंध लिख सकोगे, तो इसका अर्थ है कि सच में तुम्हारा विकास हो गया है। और यदि तुम परमेश्वर की गवाही दे सकते हो, तो तुम निश्चय ही पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकते हो। यदि पवित्र आत्मा तुम पर काम कर रही है, तो इसका अर्थ है कि परमेश्वर तुम्हें अनुग्रह की दृष्टि से देखता है और पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन पाकर तुम्हारे लिए शीघ्र ही अवसर का निर्माण होगा। तुम पर इस समय भार हो सकता है, लेकिन तुम्हारा आध्यात्मिक कद अपर्याप्त है और जीवन अनुभव बहुत उथला है, इसलिए यदि तुम अगुआ बन भी जाओ, पर तुम्हारे लड़खड़ाने की संभावना रहेगी। तुम्हें जीवन में प्रवेश करना चाहिए, पहले अपनी असाधारण इच्छाएँ नियंत्रित करो, स्वेच्छा से अनुयायी बनो और बिना कुड़कुड़ाए, परमेश्वर चाहे जो भी आयोजन करे या व्यवस्था बनाए, उसका पालन करो। जब तुम्हारा आध्यात्मिक कद ऐसा बन जाएगा, तो तुम्हारा अवसर आ जाएगा। यह अच्छी बात है कि तुम भारी बोझ उठाना चाहते हो और तुम पर यह बोझ है। यह दर्शाता है कि तुममें एक अग्रगामी हृदय है जो प्रगति करना चाहता है, और तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना और परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना चाहते हो। यह कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि एक सच्चा भार है; यह सत्य का अनुसरण करने वालों का दायित्व है और उनके अनुसरण का लक्ष्य भी है। तुम्हारे कोई स्वार्थी उद्देश्य नहीं है, और तुम अपने लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर की गवाही देने और उसे संतुष्ट करने निकले हो, तो यही वह चीज है जिसे परमेश्वर का सर्वाधिक आशीष प्राप्त है, वह तुम्हारे लिए उपयुक्त व्यवस्था कर देगा। ... परमेश्वर का इरादा अधिक लोगों को प्राप्त करने की है जो उसके लिए गवाही दे सकें; उसकी इच्छा उन सभी को पूर्ण करने की है जो उससे प्रेम करते हैं और जल्द से जल्द ऐसे लोगों का एक समूह बनाना चाहता है जो उसके साथ हृदय और मन से एक साथ हैं। इसलिए, परमेश्वर के घर में सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों के लिए भरपूर संभावनाएं हैं, जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर से प्रेम करते हैं, उनके लिए असीम संभावनाएं हैं। सभी को परमेश्वर के इरादे समझने चाहिए। इस भार को वहन करना वाकई एक सकारात्मक बात है। जिन लोगों में अंतरात्मा और विवेक है, उन्हें इसे वहन करना चाहिए, लेकिन जरूरी नहीं कि हर कोई भारी बोझ वहन कर सके। यह विसंगति कहाँ से आती है? तुम्हारी क्षमता या योग्यता कुछ भी हो, तुम्हारा बौद्धिक स्तर कितना भी ऊँचा हो, यहाँ महत्वपूर्ण है तुम्हारा लक्ष्य और वह मार्ग जिस पर तुम चलते हो(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (6))। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि कलीसिया के पास कार्य की विभिन्न मदों के लिए पर्यवेक्षकों को पदोन्नति देने और उन्हें विकसित करने के सिद्धांत होते हैं। किसी को सिर्फ इसलिए पदोन्नत या विकसित नहीं किया जाता है क्योंकि वह कुछ उत्साह दिखाता है या उसके पास कुछ खास खूबियाँ हैं। कम से कम व्यक्ति के पास सही हृदय होना चाहिए, उसमें अपने कर्तव्य के लिए जिम्मेदारी की भावना होनी चाहिए और उसे कलीसिया के कार्य की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। उसके पास एक निश्चित काबिलियत भी होनी चाहिए और वास्तविक समस्याओं को हल करने में सक्षम होना चाहिए। ऐसे लोग जब पर्यवेक्षक के रूप में सेवा करते हैं तो कार्य के लिए फायदेमंद होते हैं और पदोन्नति और विकसित करने के मानदंडों को पूरा करते हैं। उदाहरण के लिए, चेन बिन और लिन हुई न केवल इसलिए पर्यवेक्षक बनने में सक्षम थे क्योंकि वे अपने कर्तव्यों में प्रभावी थे बल्कि इसलिए भी थे क्योंकि उनमें अपने कर्तव्यों में जिम्मेदारी की भावना थी और वे कुछ वास्तविक समस्याओं को हल करने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने में सक्षम थे। यदि किसी व्यक्ति की काबिलियत नाकाफी है और वह कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं करता और इसके बजाय केवल निजी लाभ के पीछे भागता है तो ऐसा व्यक्ति पर्यवेक्षक चुने जाने पर केवल कलीसिया के कार्य में देरी करेगा और भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाएगा। ठीक वैसे ही जैसे जब मैं अपना कर्तव्य निभा रही थी तो मैं हमेशा प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती थी और जब मेरी रुतबे की इच्छा संतुष्ट नहीं होती थी तो मैं निराश और कमजोर हो जाती थी और कलीसिया के हितों की परवाह किए बिना अपने कर्तव्यों को लापरवाही से करती थी। भाई-बहनों ने मुझे टीम अगुआ के रूप में चुना लेकिन न केवल मैं उनके जीवन प्रवेश में उनकी मदद करने में नाकाम रही, मैंने उन्हें कर्तव्यों में सिद्धांतों का उल्लंघन करने के लिए भी प्रेरित किया। मेरी तरह की मानवता के साथ अगर मुझे सचमुच पर्यवेक्षक चुना जाता तो मैं एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने लगती और परमेश्वर द्वारा हटा दी जाती। पर्यवेक्षक के रूप में नहीं चुना जाना मेरे लिए परमेश्वर की सुरक्षा थी। मैं वास्तव में खुद को नहीं जानती थी और मुझमें आत्म-जागरूकता नहीं थी। इन बातों को समझने के बाद मेरा दिल मुक्ति की भावना से भर गया।

कुछ महीने बाद कलीसिया ने मेरे लिए फिर से वीडियो बनाने की व्यवस्था की और मुझे कुछ बहनों को वीडियो बनाना सिखाने को कहा। अगुआ ने कहा कि इन बहनों में अच्छी काबिलियत है और उन्हें केंद्रित कर विकसित किया जा सकता है, इसलिए मुझे वीडियो निर्माण पर उन्हें और मार्गदर्शन देने के लिए कहा गया। यह सुनकर मुझे थोड़ा बुरा लगा। मुझे महसूस हुआ कि वे ही हैं जिन्हें विकसित करने के लिए प्राथमिकता मिल रही है, जबकि मैं चाहे कितना भी अच्छा कर लूँ, मैं सिर्फ एक सहायक भूमिका ही निभा रही हूँ। जब मैंने इस तरह सोचा तो मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरी दशा ठीक नहीं थी। इसलिए मैंने इस मुद्दे को लेकर परमेश्वर के वचनों की तलाश की। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हें क्या कर्तव्य मिला है, या तुम पर कौन सा कर्तव्य आन पड़ा है, चाहे यह कोई बड़ी जिम्मेदारी हो या कोई आसान कर्तव्य हो, या भले ही यह इतना विशिष्ट भी न हो, यदि तुम सत्य खोजने और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कर्तव्य निभाने में सक्षम हो तो तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा लोगे। यही नहीं, अपने कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया में तुम अपने जीवन प्रवेश और स्वभाव परिवर्तन दोनों में अलग-अलग मात्रा में वृद्धि का अनुभव करोगे। लेकिन, यदि तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और अपने कर्तव्य को केवल अपना खुद का उद्यम, अपना निजी काम मानते हो या इसे निजी पसंद या निजी कार्य मानते हो तो तुम्हें परेशानी होगी(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, कर्तव्‍य का समुचित निर्वहन क्‍या है?)। परमेश्वर के वचनों से मैं परमेश्वर का इरादा समझ गई। चाहे मैं कोई भी कर्तव्य करूँ, सबसे अहम बातें हैं अपने कर्तव्य में अपने जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करना और स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने के लिए सत्य का अनुसरण करना। यह अपने कर्तव्य को करने का सही मार्ग है। अपना कर्तव्य करने का यह अवसर मुझे बड़ी मुश्किल से मिला था और मैं अब अपनी प्रतिष्ठा या रुतबे के बारे में और नहीं सोच सकती थी। मुझे परमेश्वर के इरादे पर विचार करना था, इस जिम्मेदारी को उठाना था और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था। बाद में मैं अक्सर बहनों के साथ संवाद करती और दिल से दिल की बातें करती और मैं सचेत रूप से उनके कर्तव्यों में आने वाली कठिनाइयों को देखती। मैंने प्रत्येक व्यक्ति की कमियों के आधार पर विस्तृत मार्गदर्शन भी दिया। तीनों बहनों ने अपने तकनीकी कौशल में तेजी से प्रगति की और जल्द ही वे अपने दम पर वीडियो बनाने में सक्षम हो गईं। मैंने परमेश्वर को उसके मार्गदर्शन के लिए अपने दिल की गहराई से धन्यवाद दिया।

छह महीने बाद मुझे पर्यवेक्षक भी चुना गया, लेकिन मैं पद के कारण दंभी नहीं बनी। इसके उलट मुझे जिम्मेदारी का गहरा एहसास हुआ। मैं यह ज्ञान होने और इस परिवर्तन का अनुभव करने में सक्षम हूँ, यह तथ्य परमेश्वर के वचनों का ही नतीजा है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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जायोयू, चीनमेरा नाम जायोयू है और मैं 26 साल की हूँ। मैं एक कैथोलिक हुआ करती थी। जब मैं छोटी थी, तो अपनी माँ के साथ ख्रीस्तयाग में भाग लेने...

27. प्रभु से फिर से मिलना

जियांदिंग, यू.एस.ए.मेरा जन्म एक कैथलिक परिवार में हुआ था। छोटी उम्र से ही मेरी माँ ने मुझे बाइबल पढ़ना सिखाया था। उस समय, चीनी कम्युनिस्ट...

32. एक महत्वपूर्ण खोज

लेखिका: फांगफांग, चीनमेरे परिवार के सब लोग प्रभु यीशु में विश्वास रखते हैं। मैं कलीसिया में एक साधारण विश्वासी थी और मेरे डैड कलीसिया में...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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