62. दूसरों को विकसित करने से मैं बेनकाब हुआ

लोगन, दक्षिण कोरिया

मैं कलीसिया में वीडियो बनाने का कार्य करता हूँ। जैसे-जैसे कार्यभार बढ़ा, कुछ नए भाई-बहन हमारी टीम में शामिल हुए। पर्यवेक्षक ने मुझे उन्हें विशेषज्ञ कौशल का अध्ययन करने के लिए विकसित करने और उनके काम को ठीक से समन्वित और व्यवस्थित करने के लिए कहा। यह व्यवस्था देखकर मुझे थोड़ा प्रतिरोध महसूस हुआ, मैंने सोचा, “सिर्फ अपने काम सँभालने में ही काफी समय देना और प्रयास करना पड़ता है और अब मुझे दूसरों को भी विकसित करना होगा? क्या इसमें और भी अधिक समय और ऊर्जा नहीं लगेगी? अगर इससे मेरा अपना काम रुकता है और मैं अपने तय काम पूरे नहीं कर पाता, तो पर्यवेक्षक मेरे बारे में क्या सोचेगा? क्या वह कहेगा कि मैं अपने कर्तव्यों में ढिलाई बरत रहा हूँ और मेरी कार्य-कुशलता नए आए भाई-बहनों से भी खराब है? यह तो बहुत अपमानजनक होगा! समय के साथ क्या पर्यवेक्षक मेरे काम में लगातार खराब नतीजों के कारण मुझे बरखास्त करने पर विचार करेगा? पर्यवेक्षक यह नहीं देख सकता कि मैं पर्दे के पीछे कितना काम करता हूँ। मेरे काम का प्रत्यक्ष नतीजा यह है कि मैं हर महीने कितने वीडियो बना सकता हूँ, लेकिन अगर मैंने दूसरों को विकसित करने में काफी अधिक समय और ऊर्जा खर्च कर दी और अपने वीडियो बनाने में देरी की, तब तो यह किसी लायक नहीं होगा।” चाहे मैंने इसके बारे में जितना भी सोचा, मुझे लगता रहा कि मैं नुकसान में रहूँगा। लेकिन फिर मैंने सोचा कि मैं इस कर्तव्य का लंबे समय से अभ्यास कर रहा हूँ और अधिक सिद्धांत समझता हूँ और अगर मैंने यह काम करने से इनकार किया, तो मुझमें सचमुच अंतरात्मा की कमी होगी। इसलिए मैंने इसे अनिच्छा से स्वीकार कर लिया।

बाद में जब भाई-बहनों को अपने काम में समस्याएँ हुईं और वे चर्चा और समाधान के लिए मेरे पास आए, तो मैंने उनकी मदद करने की पूरी कोशिश की। कुछ समय बाद एक बहन को दूसरा कर्तव्य सौंप दिया गया। बाद के चरणों की जाँच के दौरान उसके बनाए एक वीडियो में कुछ समस्याएँ पता चलीं और मुझे उन्हें हल करने में मदद करनी थी। शुरू में मैंने इसे ठीक से लिया, लेकिन चूँकि वीडियो में कई समस्याएँ थीं, इसलिए मुझे उन्हें ठीक करने में बहुत समय लगाना पड़ा। मैंने देखा कि उस दौरान अन्य भाई-बहन पहले ही कई वीडियो बना चुके थे, जबकि मैंने एक भी पूरा नहीं किया था। इससे मैं चिंतित हो गया। मैंने सोचा, “इन भाई-बहनों ने अभी-अभी प्रशिक्षण लेना शुरू किया है। उन्हें विकसित करने में पहले ही मेरा काफी समय लग गया है। अब मुझे किसी और की उन समस्याओं से निपटना है, जिनका समाधान नहीं किया गया था। इस दर से मैं निश्चित रूप से अपना मासिक कोटा पूरा नहीं कर पाऊँगा। फिर हर कोई मुझे कैसे देखेगा? मुझे अपने वीडियो पर अधिक ध्यान देना चाहिए।” इसलिए मैंने उस बहन के बनाए वीडियो को संशोधित करने की ज्यादा कोशिश नहीं की। बाद में पर्यवेक्षक को वीडियो की जाँच करने पर कई समस्याएँ मिलीं और उसने मुझे इसे फिर से संशोधित करने के लिए कहा। मुझे बहुत गुस्सा आया और यहाँ तक कि यह सोचकर थोड़ा गलत भी लगा, “यह मेरा वीडियो नहीं है। आप मुझे इसे संशोधित करने में इतना समय लगाने के लिए क्यों कह रहे हैं? इससे न केवल मुझे काफी ज्यादा प्रयास करने पड़ते हैं, बल्कि मेरे अपने काम भी देरी होती है!” इस प्रतिरोधी रवैये के साथ मैंने वांछित प्रभाव प्राप्त किए बिना वीडियो को कई बार संशोधित किया। आखिरकार पर्यवेक्षक ने मुझे इस पर काम करना बंद करने के लिए कहा। उस समय हालाँकि मुझे थोड़ा बुरा लगा, लेकिन मैंने इसे दिल पर नहीं लिया। इसके बजाय मैंने सोचा, “ठीक ही है कि मुझे इसे संशोधित करने की जरूरत नहीं है। इस तरह यह मेरा ज्यादा समय नहीं लेगा और मैं अपने खुद के काम पर ध्यान केंद्रित कर पाऊँगा।” उसके बाद मैंने खुद को अपने काम में डुबो दिया। जब भाई-बहन मुझसे अपनी समस्याओं पर चर्चा करने आते, तो मैं उन्हें केवल एक संक्षिप्त, सरल उत्तर देता था, यह नहीं सोचता था कि वे समझे या नहीं, उनके पास आगे का स्पष्ट रास्ता स्पष्ट है या नहीं। उस अवधि के दौरान मैं अपने कर्तव्य करने में निष्क्रिय था, कोई बोझ नहीं उठाता था और मेरे द्वारा बनाए वीडियो में हमेशा ही समस्या होती थी। मुझे बहुत निराशा महसूस होती थी, लेकिन मैं आत्म-चिंतन नहीं करता था। एक दिन एक बहन ने मुझे बताया, “मैंने देखा है कि तुम हाल ही में काम में अपना दिल नहीं लगा रहे हो और तुमने नए आए भाई-बहनों के लिए काम को ठीक से समन्वित और व्यवस्थित नहीं किया है।” उसकी बातें सुनकर मैं बहस करने लगा, “मेरे पास भी अपने बहुत काम हैं। मैं काम के हर पहलू का ध्यान कैसे रख सकता हूँ?” मेरा प्रतिरोध देखकर बहन ने मुझे याद दिलाया, “तुम सिर्फ अपने हितों के बारे में नहीं सोच सकते और समग्र कार्य में देरी नहीं कर सकते।” मैं बहस और शिकायत करते रहना चाहता था। लेकिन फिर मुझे अचानक एहसास हुआ कि इस बहन का यह याद दिलाना परमेश्वर की ओर से है और मुझे इसे स्वीकार करना चाहिए और आत्म-चिंतन करना चाहिए। इसलिए मैंने और कुछ नहीं कहा। बाद में मैंने जितना इस बारे में सोचा, उतना ही मुझे एहसास हुआ कि बहन सही थी। चूँकि मैंने इस कार्य को स्वीकार किया था, इसलिए मुझे अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी थी और सिर्फ अपने हितों पर ध्यान केंद्रित नहीं करना था। मैंने खुद से यह भी पूछा कि जो मैं महसूस नहीं कर पा रहा था कि परमेश्वर मेरी अगुआई और मार्गदर्शन कर रहा है और मेरे काम में और अधिक समस्याएँ पैदा हो रही हैं, इसका कारण क्या यह है कि कर्तव्यों के प्रति मेरे रवैये ने परमेश्वर की घृणा को भड़का दिया था। मुझे लगा कि इस तरह से आगे बढ़ना खतरनाक था, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, आज बहन के याद दिलाने में तुम्हारे इरादे अच्छे थे। मैं सुधार करने और उचित रूप से आत्म-चिंतन करने के लिए तैयार हूँ। मुझे प्रबुद्ध करो ताकि मैं खुद को जान सकूँ।”

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अंतरात्मा और विवेक दोनों ही व्यक्ति की मानवता के घटक होने चाहिए। ये दोनों सबसे बुनियादी और सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं। वह किस तरह का व्यक्ति है जिसमें अंतरात्मा नहीं है और सामान्य मानवता का विवेक नहीं है? सीधे शब्दों में कहा जाये तो, वे ऐसे व्यक्ति हैं जिनमें मानवता का अभाव है, वह बहुत ही खराब मानवता वाला व्यक्ति है। अधिक विस्तार में जाएँ तो ऐसा व्यक्ति किस लुप्त मानवता का प्रदर्शन करता है? विश्लेषण करो कि ऐसे लोगों में कैसे लक्षण पाए जाते हैं और वे कौन-से विशिष्ट प्रकटन दर्शाते हैं। (वे स्वार्थी और नीच होते हैं।) स्वार्थी और नीच लोग अपने कार्यकलापों में लापरवाह होते हैं और अपने को उन चीजों से अलग रखते हैं जो व्यक्तिगत रूप से उनसे संबंधित नहीं होती हैं। वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते हैं और परमेश्वर के इरादों का लिहाज नहीं करते हैं। वे अपने कर्तव्य को करने या परमेश्वर की गवाही देने की कोई जिम्मेदारी नहीं लेते हैं, और उनमें उत्तरदायित्व की कोई भावना होती ही नहीं है। जब कभी वे कोई काम करते हैं तो किस बारे में सोचते हैं? उनका पहला विचार होता है, ‘अगर मैं यह काम करूंगा तो क्या परमेश्वर को पता चलेगा? क्या यह दूसरे लोगों को दिखाई देता है? अगर दूसरे लोग नहीं देखते कि मैं इतना ज्यादा प्रयास करता हूँ और मेहनत से काम करता हूँ, और अगर परमेश्वर भी यह न देखे, तो मेरे इतना ज़्यादा प्रयास करने या इसके लिए कष्ट सहने का कोई फायदा नहीं है।’ क्या यह अत्यधिक स्वार्थपूर्ण नहीं है? यह एक नीच किस्म का इरादा है। जब वे ऐसी सोच के साथ कर्म करते हैं, तो क्या उनकी अंतरात्मा कोई भूमिका निभाती है? क्या इसमें उनकी अंतरात्मा पर दोषारोपण किया जाता है? नहीं, उनकी अंतरात्मा की कोई भूमिका नहीं है, न इस पर कोई दोषारोपण किया जाता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि कुछ लोगों पर जब कुछ घटित होता है, तो वे केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, इस बारे में सोचते हैं कि क्या वे दूसरों से अलग दिख सकते हैं, अपना नाम कमा सकते हैं या लाभ उठा सकते हैं और वे केवल तभी कार्य करने को तैयार होते हैं जब कोई चीज उन्हें लाभ पहुँचाती है अगर ऐसा न हो तो वे इसे अपनी समस्या नहीं मानते और खुद को इससे अलग करके इसे लापरवाही से करते हैं। उन्हें अपने कर्तव्यों में बोझ या जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं होता और वे कलीसिया के कार्य पर बिल्कुल भी विचार नहीं करते। ऐसे लोग स्वार्थी और नीच होते हैं और उनमें अंतरात्मा और विवेक की कमी होती है। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे बहुत बुरा लगा। मैं बिल्कुल वैसा ही व्यक्ति था जिसे परमेश्वर उजागर करता है—बेहद स्वार्थी। मैं जो कुछ भी करता था, उसमें केवल अपने बारे में सोचता था और मैं परमेश्वर के इरादों पर बिल्कुल भी विचार नहीं करता था। भाई-बहनों ने अभी-अभी वीडियो बनाने का प्रशिक्षण लेना शुरू ही किया था, उन्होंने अभी तक सिद्धांतों और कौशल में महारत हासिल नहीं की थी और उन्हें चीजें समझने में अधिक समय लग रहा था। अगर वे अपने भरोसे खोजते रहे, तो संभव है कि वे भटक जाएँ और अप्रभावी साधन इस्तेमाल करें और चूँकि मैं यह काम लंबे समय से कर रहा था और कुछ सिद्धांत समझता था, इसलिए उन्हें काम से परिचित कराने और सिद्धांतों को जल्द से जल्द समझने में मदद करना मेरी जिम्मेदारी और कर्तव्य था। लेकिन मुझे केवल अपने लाभ-हानि की परवाह थी और मुझे डर था कि दूसरों को विकसित करने में समय और ऊर्जा खर्च करने से मेरे काम में देरी होगी। अगर दूसरे लोगों ने मुझसे अधिक वीडियो बनाए, तो न सिर्फ मेरे गौरव को ठेस पहुँचेगी, बल्कि शायद मेरी काट-छाँट भी हो। इसलिए इस पर विचार करने के बाद मुझे लगा कि यह काम कठिन और व्यर्थ है और अंदर ही अंदर मैं इसे नहीं करना चाहता था। जब मैंने देखा कि किसी और के वीडियो को संशोधित करने में मेरा बहुत समय लगेगा, तो मुझे प्रतिरोध और झुंझलाहट महसूस हुई और लगा कि यह मेरे काम के दायरे में नहीं है। भले ही मैं इसे अच्छी तरह से कर लूँ, लेकिन इससे मेरे काम के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, इसलिए मैंने सिर्फ अपने कामों पर ध्यान केंद्रित किया और टीम में अपनी स्थिति बचाने के लिए अधिक उच्च-गुणवत्ता वाले वीडियो बनाने पर ध्यान दिया, क्योंकि यह ज्यादा वास्तविक लग रहा था। इसलिए मैंने बस जल्दबाजी में लापरवाही से सुधार कर दिए और परिणामस्वरूप वीडियो की गड़बड़ियाँ ठीक नहीं हुईं और अंत में पर्यवेक्षक ने मुझे संशोधन करना बंद करने के लिए कह दिया। उस समय मुझे अपनी गलती या कोई परेशानी महसूस नहीं हुई। बल्कि मुझे लगा कि मैंने एक बोझ उतार दिया है, यह सोचकर कि मुझे अब अपने काम में देरी को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। अपने खुलासों पर विचार करते हुए मुझे लगा कि मुझमें अंतरात्मा या विवेक नहीं था, मैं कितना स्वार्थी था!

बाद में मैंने परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा और मुझे अपने बारे में कुछ समझ मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कुछ लोग हमेशा प्रसिद्धि, लाभ और स्वार्थ के पीछे दौड़ते रहते हैं। कलीसिया उनके लिए जिस भी कार्य की व्यवस्था करे, वे हमेशा यह सोचते हुए उसके बारे में विचार करते हैं, ‘क्या इससे मुझे लाभ होगा? अगर होगा, तो मैं इसे करूँगा; अगर नहीं होगा, तो मैं नहीं करूँगा।’ ऐसा व्यक्ति सत्य का अभ्यास नहीं करता—तो क्या वह अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकता है? निश्चित रूप से नहीं निभा सकता। भले ही तुमने कोई बुराई न की हो, फिर भी तुम सत्य का अभ्यास करने वाले व्यक्ति नहीं हो। अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते, और कुछ भी तुम पर आ पड़े, तुम सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत, अपने स्वार्थ और जो तुम्हारे लिए अच्छा है, उसकी परवाह करते हो, तो तुम ऐसे व्यक्ति हो जो केवल स्वार्थ से प्रेरित होता है और स्वार्थी और नीच है। इस तरह का व्यक्ति अपने लिए कुछ अच्छा या लाभदायक पाने के लिए परमेश्वर पर विश्वास करता है, सत्य या परमेश्वर का उद्धार पाने के लिए नहीं। इसलिए इस प्रकार के लोग छद्म-विश्वासी होते हैं। जो लोग वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, वे सत्य की खोज और अभ्यास कर सकते हैं, क्योंकि वे अपने हृदय में जानते हैं कि मसीह सत्य है, और उन्हें परमेश्वर के वचन सुनने चाहिए और परमेश्वर पर उसकी अपेक्षा के अनुसार विश्वास करना चाहिए। अगर तुम अपने साथ कुछ होने पर सत्य का अभ्यास करना चाहते हो, लेकिन अपनी प्रतिष्ठा, हैसियत और इज्जत पर विचार करते हो, तो ऐसा करना कठिन होगा। इस तरह की स्थिति में प्रार्थना, खोज और आत्मचिंतन करके और आत्म-जागरूक होने से सत्य से प्रेम करने वाले लोग अपने ही स्वार्थ या भले की चीजें छोड़ पाएँगे, और सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के प्रति समर्पित होने में सक्षम होंगे। ऐसे लोग वे होते हैं, जो वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास और सत्य से प्रेम करते हैं। और जब लोग हमेशा अपने स्वार्थ के बारे में सोचते हैं, जब वे हमेशा अपने गौरव और अहंकार की रक्षा करने की कोशिश करते हैं, जब वे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं लेकिन उसे ठीक करने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते, तो इसका क्या परिणाम होता है? यही कि वे जीवन-प्रवेश नहीं कर पाते हैं, और उनके पास सच्ची अनुभवजन्य गवाही की कमी है। और यह खतरनाक है, है न? अगर तुम कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते, अगर तुम्हारे पास कोई अनुभवजन्य गवाही नहीं है, तो समय आने पर तुम्हें बेनकाब कर निकाल दिया जाएगा। अनुभवजन्य गवाही से रहित लोगों का परमेश्वर के घर में क्या उपयोग है? वे कोई भी कर्तव्य खराब तरीके से निभाने और कुछ भी ठीक से न कर पाने के लिए बाध्य हैं। क्या वे सिर्फ कचरा नहीं हैं?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। मैं बिल्कुल इसी दशा में था—अपने कर्तव्य करते समय मैं केवल अपने हितों के बारे में सोचता था। जब मैंने देखा कि दूसरों को विकसित करने और उनके काम में समस्याओं को हल करने में उनकी मदद करने के लिए गहन सोच-विचार और बहुत समय चाहिए, तो मुझे लगा कि यह मेरे अपने काम की प्रगति में देरी करेगा और मेरे गौरव और रुतबे को नुकसान पहुँचाएगा, मैं दूसरों की मदद करने के लिए कीमत चुकाने को तैयार नहीं हुआ। जब भाई-बहनों को अपने काम में समस्याएँ आती थीं और वे मेरी मदद माँगने आते थे, तो मैं उनकी परेशानी नहीं लेना चाहता था और मैं उन्हें टालने के लिए बस एक लापरवाही भरा जवाब दे देता था। जब मेरे संशोधित किए गए किसी और के वीडियो में लगातार समस्याएँ आती थीं, तो मैं समाधान के लिए सिद्धांतों की तलाश नहीं करता था, बल्कि इसके बजाय बस जल्द से जल्द वीडियो को जारी कर देना चाहता था। मैंने जो प्रकट किया था और मेरा व्यवहार अविश्वासियों से अलग नहीं था। अविश्वासी केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं और जब तक उनके लिए कुछ न हो, वे एक उंगली भी नहीं उठाएँगे। वे हर उस चीज को लपक लेते हैं जिससे उन्हें फायदा मिलता है, उसका लाभ उठाने के लिए वे हद दर्जे के काम करते हैं, भले ही इसका मतलब दूसरों के हितों को नुकसान पहुँचाना हो। लेकिन अगर किसी चीज से उन्हें फायदा नहीं पहुँचता, तो वे उससे परेशान नहीं होते और अगर हो सके तो उसे दूर कर देते हैं। वे सिर्फ लाभ चाहते हैं। हालाँकि मेरा परमेश्वर में विश्वास था, हर दिन मैं परमेश्वर के वचन पढ़ता था और अपने कर्तव्य करता था, लेकिन मेरे दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं थी। जब मेरे साथ कुछ हुआ, तो मैंने सत्य नहीं खोजा या सत्य का अभ्यास नहीं किया; मैंने सिर्फ इस बात पर विचार किया कि क्या मेरे गौरव को ठेस पहुँचेगी और क्या मैं अपने निजी हितों की रक्षा कर पाऊँगा। मेरे विचार और कार्य सभी मेरे अपने लाभों को अधिकतम करने पर केंद्रित थे, मानो कलीसिया के काम को नुकसान होता है या नहीं, इससे मेरा कोई लेना-देना न हो। मैं परमेश्वर के घर का सदस्य कहलाने के योग्य भी नहीं था। अपने कर्तव्यों के प्रति इस तरह के रवैये के साथ भले ही मैं हर महीने अपने काम समय पर पूरा कर लूँ, परमेश्वर की स्वीकृति पाना असंभव होगा। मैं सिर्फ परमेश्वर की घृणा और नफरत को भड़काऊँगा। यह सोचकर मुझे डर लगने लगा, मुझे एहसास हुआ कि इस तरह से चलते रहना मेरे लिए बहुत खतरनाक होगा।

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के दो और अंश पढ़े, जिन्होंने मुझे गहराई से प्रभावित किया। परमेश्वर कहता है : “वह मानक क्या है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के कर्मों को अच्छे या बुरे के रूप में आंका जाता है? वह यह है कि वह अपने विचारों, प्रकाशनों और कार्यों में सत्य को व्यवहार में लाने और सत्य वास्तविकता को जीने की गवाही रखता है या नहीं। यदि तुम्‍हारे पास यह वास्तविकता नहीं है या तुम इसे नहीं जीते, तो बेशक, तुम एक कुकर्मी हो। परमेश्वर कुकर्मियों को कैसे देखता है? परमेश्वर के लिए, तुम्‍हारे विचार और बाहरी कर्म परमेश्वर की गवाही नहीं देते, न ही वे शैतान को शर्मिंदा करते या उसे हराते हैं; बल्कि वे परमेश्वर को शर्मिंदा करते हैं और उस अपमान से निशानों से भरे हुए हैं जो तुमने परमेश्वर का किया है। तुम परमेश्वर के लिए गवाही नहीं दे रहे, न ही तुम परमेश्वर के लिये खुद को खपा रहे हो, तुम परमेश्वर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को भी पूरा नहीं कर रहे; बल्कि अपने फायदे के लिए काम कर रहे हो। ‘अपने फायदे के लिए’ इसका क्या मतलब है? इसका सही-सही मतलब है, शैतान के फायदे के लिए काम करना। इसलिए अंत में परमेश्वर यही कहेगा, ‘हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।’ परमेश्वर की नजर में तुम्‍हारे कार्यों को अच्‍छे कर्मों के रूप में नहीं देखा जाएगा, बल्कि उन्‍हें बुरे कर्म माना जाएगा। उन्‍हें न केवल परमेश्वर की स्वीकृति हासिल नहीं होगी—बल्कि उनकी निंदा भी की जाएगी। परमेश्वर में ऐसे विश्‍वास से कोई क्‍या हासिल करने की आशा कर सकता है? क्या इस तरह का विश्‍वास अंततः व्‍यर्थ नहीं हो जाएगा?(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “अगर तुम अपना कर्तव्‍य पालन ठीक से नहीं करते, बल्कि हमेशा खुद को विशिष्‍ट दिखाने की कोशिश करते हो, और हमेशा हैसियत के लिए प्रतिस्‍पर्धा की कोशिश करते हो, विशिष्‍ट द‍िखने और कीर्ति पाने की कोशिश करते हो, अपनी प्रतिष्‍ठा और हितों के लिए लड़ते हो, तब इस अवस्‍था में जीते हुए क्‍या तुम केवल एक मजदूर नहीं हो? यदि तुम चाहो तो मजदूरी कर सकते हो, लेकिन यह संभव है कि तुम्‍हारी मजदूरी पूरी होने से पहले ही तुम्‍हें बेनकाब कर दिया जाए। जब लोगों को बेनकाब किया जाता है, तब उनकी निंदा किए जाने और हटाए जाने का दिन आ जाता है। क्‍या उस परिणाम को पलटना संभव है? यह आसान नहीं है; संभव है कि परमेश्वर ने उनका परिणाम पहले ही निर्धारित कर रखा हो, ऐसा होने पर, वे संकट में हैं। लोग आम तौर पर अपराध करते हैं, भ्रष्‍ट स्‍वभाव प्रकट करते हैं, और कुछ छोटी-छोटी गलतियाँ करते हैं या वे अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्‍छाएँ पूरी करते हैं, अप्रत्यक्ष उद्देश्यों से बोलते हैं और धोखेबाजी में लिप्त रहते हैं, लेकिन जब तक वे कलीसिया के कार्य में रुकावट या व्‍यवधान नहीं डालते, या कोई बड़ी गड़बड़ नहीं करते, या परमेश्वर के स्‍वभाव को आहत नहीं करते या स्‍पष्‍ट रूप से प्रतिकूल परिणामों का कारण नहीं बनते, तब तक उनके पास पश्‍चाताप का अवसर बना रहता है। लेकिन यदि वे कोई जघन्य दुष्टता करते हैं या किसी बड़ी विपदा का कारण बनते हैं, क्‍या वे तब भी स्‍वयं को छुड़ा सकते हैं? परमेश्वर में विश्‍वास करने वाले और अपना कर्तव्‍य निभाने वाले किसी भी व्‍यक्ति के लिए इस बिंदु तक आ जाना बहुत खतरनाक होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे अपनी समस्याओं की स्पष्ट समझ मिली। बाहर से तो मैं अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा था और कीमत चुका रहा था और मैं जल्दी से और वीडियो भी बनाना चाहता था। लेकिन मेरे इरादे और उद्देश्य सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर को संतुष्ट करना नहीं थे; वे अपना गौरव और रुतबा बनाए रखना, दूसरों की प्रशंसा पाना और पर्यवेक्षक की स्वीकृति प्राप्त करना था। इसलिए जहाँ तक उन कार्यों की बात है जो मुझे अपनी मौजूदगी दिखाने और ऐसे परिणाम देने में सक्षम थे जिन्हें पर्यवेक्षक देख सकता था, मैंने उनमें बहुत प्रयास लगाए। हालाँकि जब ऐसे कार्यों की बात आई जहाँ मैं अलग नहीं दिख सकता था, भले ही वे कलीसिया के लिए अहम और महत्वपूर्ण थे, मैं उन्हें करने में अनिच्छुक था और अगर मैंने उन्हें किया भी तो लापरवाह तरीके से किया। अपने कर्तव्य करते समय मैं केवल इस बात पर विचार करता था कि दूसरे मुझे कैसे देखते हैं और केवल लोगों को खुश करने और उनके सामने खुद का हिसाब देने की कोशिश करता था। मुझे परवाह नहीं थी कि कलीसिया के काम में देरी हो रही है या नहीं। मैं एक सृजित प्राणी का कर्तव्य नहीं निभा रहा था, बल्कि अपना खुद का उद्यम कर रहा था। जिस तरह से मैं अपना कर्तव्य निभा रहा था उसका सार वास्तव में बुराई करना था! इस बिंदु पर यह मेरे लिए और भी स्पष्ट हो गया कि हाल ही में अपने कर्तव्यों में मैं इतनी गलतियाँ क्यों कर रहा था, इसका कारण यह था कि मेरे कर्तव्य के प्रति मेरा रवैया परमेश्वर के लिए घृणित था और पवित्र आत्मा मुझमें काम नहीं कर रहा था, जिससे मेरा दिमाग भ्रमित हो गया था और मैं मुद्दों की असलियत नहीं देख पा रहा था। मैं भाई-बहनों के सुझावों को भी पूरी तरह से समझ नहीं पा रहा था। मैंने एक बड़े मूर्ख की तरह काम किया—सुन्न और बेवकूफ, एक अंधेरे और डूबते हुए दिल के साथ—जो केवल काम करते रहने के उत्साह और इच्छाशक्ति पर टिका था। चूँकि मेरे बनाए गए वीडियो को लगातार फिर से तैयार करने की आवश्यकता थी, इसलिए भाई-बहनों को अपना काम छोड़कर मेरी मदद करने में बहुत समय लगाना पड़ा। न केवल मैं अपना कर्तव्य पूरा करने में विफल रहा, बल्कि मैंने उनका समय भी बरबाद किया। नतीजतन, मैंने अनजाने में काम की प्रगति में देरी कर दी। इसके अलावा बहन ने जिस वीडियो पर इतनी मेहनत की थी, उसे संशोधित करते समय मेरी गैर-जिम्मेदारी के कारण मैं न केवल सही संशोधन करने में विफल रहा, बल्कि पहले से भी अधिक समस्याएँ पैदा कर दीं। मेरा काम अनुत्पादक था! मैं सोचा करता था कि केवल मसीह-विरोधी और बुरे लोग ही बुरे काम करते हैं और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी कर बाधा डालते हैं और मैं कभी भी उनके जैसा व्यवहार नहीं करता। लेकिन अब यह साबित हो गया है कि ये सिर्फ मेरी अपनी धारणाएँ और कल्पनाएँ थीं। जब मैंने अपने कर्तव्यों में प्रसिद्धि, रुतबे और निजी हितों का पीछा किया, तो मैं कलीसिया के कार्य में बाधा डालने और बुरे काम करने से खुद को नहीं रोक पाया। सिर्फ सत्य का अनुसरण करके और भ्रष्ट स्वभावों को हल करके ही मैं अपने कर्तव्यों में परिणाम प्राप्त कर सकता हूँ। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे अपने भ्रष्ट स्वभाव दूर करने में मार्गदर्शन करने के लिए कहा।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा और अभ्यास का मार्ग पाया। परमेश्वर कहता है : “जो लोग सत्य को अभ्‍यास में लाने में सक्षम हैं, वे अपने कार्यों में परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार करने पर तुम्‍हारा हृदय निष्कपट हो जाएगा। यदि तुम हमेशा दूसरों को दिखाने के लिए ही काम करते हो, और हमेशा दूसरों की प्रशंसा और सराहना प्राप्त करना चाहता हो और परमेश्वर की पड़ताल स्वीकार नहीं करते, तब भी क्या तुम्‍हारे हृदय में परमेश्वर है? ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता। हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश से मुझे एहसास हुआ कि अपने कर्तव्य करते हुए सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकार करना बहुत जरूरी होता है। जब ऐसे हालात से सामना हो जिनमें निजी हित शामिल हों, तो हमें सचेत रूप से अपने विचारों के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए और अपने गौरव और रुतबे के बारे में नहीं सोचना चाहिए। इसके बजाय हमें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, सोचना चाहिए कि कैसे काम करें जिससे परमेश्वर संतुष्ट हो और कलीसिया के कार्य को लाभ हो। फिर हमें सत्य सिद्धांतों की तलाश करनी चाहिए और उनका अभ्यास करना चाहिए और उनमें प्रवेश करना चाहिए। मुझे याद है कि जब मैंने पहली बार अपने कर्तव्य करना शुरू किया था, तो मैं सिद्धांतों को समझ पाने में असमर्थ था, लेकिन परमेश्वर के प्रबोधन और मार्गदर्शन के जरिए, साथ ही मेरे भाई-बहनों की व्यावहारिक मदद और मार्गदर्शन के माध्यम से मैं धीरे-धीरे वीडियो निर्माण से जुड़े कुछ सिद्धांत और कौशल समझने लगा। यह सब परमेश्वर का प्रेम था। अब कुछ भाई-बहनों ने अभी-अभी अपने कर्तव्यों का अभ्यास करना शुरू किया था और अभी तक सिद्धांत नहीं जाने थे। मुझे परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए था और उन्हें वह सब कुछ सिखाना चाहिए जो मैंने समझा था और जाना था। यह वह बुनियादी जिम्मेदारी थी जो मुझे पूरी करनी चाहिए थी। इसके अलावा एक बार जब वे सिद्धांत समझ जाएँगे और अपने कर्तव्यों में नतीजे पाने लगेंगे, तो कलीसिया के काम की समग्र प्रभावशीलता में सुधार होगा और यह सिर्फ मेरे अपने काम करने से कहीं अधिक मूल्यवान और प्रभावी था। पर्यवेक्षक द्वारा भाई-बहनों को विशेषज्ञ कौशल सीखने के लिए तैयार करने का कार्य सौंपना भी मेरे कर्तव्यों की स्थिति के आकलन पर आधारित था। मैं यह काम लंबे समय से कर रहा था और काम की प्रक्रिया और कौशलों से अपेक्षाकृत परिचित था, इसलिए अपने काम में अच्छा प्रदर्शन करने के दौरान भाई-बहनों को उनके काम में आने वाली समस्याएँ सुलझाने में मदद करने के लिए समन्वय करना और समय देना मेरे लिए कोई समस्या नहीं होती। इसके अलावा मेरे सहयोग के दौरान अगर मुझे पता चलता कि मैं अपर्याप्त कार्य क्षमता या योग्यता के कारण सचमुच जिम्मेदारी नहीं उठा सकता, जिससे मेरे काम में देरी या प्रभाव पड़ता है, तो मैं ईमानदारी से पर्यवेक्षक को इसकी रिपोर्ट कर सकता था, जिससे पर्यवेक्षक काम की जरूरतों के आधार पर उचित समायोजन कर सके। लेकिन मैं बहुत स्वार्थी और नीच था, दूसरों के काम के लिए समय देने को तैयार नहीं था, इसलिए मैं हमेशा प्रतिरोधी था, ठीक से सहयोग करने के लिए तैयार नहीं था, इस प्रकार काम में देरी करता था। यह सब महसूस करके मैंने अपनी मानसिकता को सुधारा और सक्रिय रूप से सभी के काम में समस्याओं को देखा और कठिनाइयाँ आने पर हमने मिलकर समाधान खोजा।

एक बार एक भाई को वीडियो बनाते समय कुछ कठिनाइयाँ आईं और उसने मेरी मदद माँगी। लेकिन मेरे पास भी काम था, इसलिए मैं यह सोचकर उलझन में पड़ गया, “भाई का वीडियो जरूरी है और मुझे पता है कि मुझे पहले उसे पूरा करने में मदद करनी चाहिए, लेकिन उसके वीडियो में शामिल काम वास्तव में जटिल है और इसके लिए बहुत समय और प्रयास चाहिए। उसका वीडियो बहुत अच्छा बन भी जाए तो कोई नहीं जान पाएगा कि मैंने उसकी मदद की है और इससे मेरे काम में भी देरी होगी।” तब मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से अपने हितों के बारे में सोच रहा था। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और खुद के खिलाफ विद्रोह किया। चूँकि भाई का वीडियो जरूरी था, इसलिए मुझे इसे प्राथमिकता देनी थी और उसे पूरा करने में पहले उसकी मदद करनी थी। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने अपना काम अलग रखा और भाई की वीडियो बनाने में मदद की। इस तरह से अभ्यास करके मुझे अपने दिल में सुकून महसूस हुआ। असल में दूसरों को विकसित करते हुए मैंने भी बहुत कुछ प्राप्त किया। हालाँकि मैं यह काम लंबे समय से कर रहा था, फिर भी मुझे कई सत्य सिद्धांतों की केवल सतही समझ थी और मैं अक्सर बिना किसी लचीलेपन के विनियमों का पालन करता था और जब दूसरों को उनके काम में समस्याएँ आती थीं और वे मेरी मदद माँगते थे, तो मैं अक्सर उनका समाधान नहीं कर पाता था। परमेश्वर से प्रार्थना करने और भाई-बहनों के साथ इन मुद्दों पर संगति करने और उनका पता लगाने से मैंने अनजाने में कुछ सिद्धांतों की अधिक स्पष्ट और अधिक गहन समझ प्राप्त कर ली और वीडियो बनाने में मेरा कौशल भी सुधर गया। पहले मैं अपने पैर घसीटते हए कर्तव्य पूरा करता था, मेरी प्रगति करने की कोई इच्छा नहीं थी। मैं काम में विचलनों के संक्षिप्तीकरण और उन्हें हल करने के लिए सिद्धांत खोजने पर पर्याप्त ध्यान नहीं देता था। भाई-बहनों को उनके कौशलों में विकसित करने के लिए पर्यवेक्षक की व्यवस्था के जरिए मैंने लगातार यह खोजना और विचार करना शुरू किया कि समस्याएँ हल करने में उनकी मदद कैसे की जाए। मैंने अपने कर्तव्य पूरे करने में जिम्मेदारी की भावना भी विकसित की, यथास्थिति से संतुष्ट रहने और सुधार के लिए प्रयास न करने के रवैये से भी पीछा छुड़ा लिया। इस कर्तव्य को पूरा करने के द्वारा मैंने ये समझ और कुछ लाभ प्राप्त किए हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!

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