98. मेरे जीवन का सबसे बुद्धिमानी भरा चुनाव

जिन यी, चीन

मैं एक साधारण से किसान परिवार में पैदा हुई थी, और मेरे माता-पिता ने बचपन से ही मुझे यह सिखाया था कि मुझे मेहनत से पढ़ाई करनी है ताकि बड़े होने पर, मैं अपने आप को किसी काबिल बना सकूं, एक अच्छी ज़िन्दगी जी सकूँ, और उनकी तरह अशिक्षित रह कर अपनी ज़िन्दगी खेती करते हुए ही न निकाल दूँ, यह न सिर्फ़ मुश्किल और थकाऊ था बल्कि दूसरे इसे नीची नजरों से भी देखते थे। इसलिए, मैंने अपने आप को वचन दिया कि मैं एक बेहतर जीवन जीने के लिए मेहनत से पढ़ाई करुँगी और बहुत पैसा कमाऊंगी। मैं बड़ी होकर एक डॉक्टर बनी। शादी करने के बाद, अपने व्यवसायिक कौशल को सुधारने के लिए मैंने बहुत मेहनत की, खूब पढ़ाई की और प्रमाणन परीक्षाएँ दीं। मैंने कभी-कभी तो दिन में सिर्फ़ दो घंटे सोकर अपने दिन एक मशीन की तरह बिताए। अपनी कड़ी मेहनत द्वारा, मुझे एक बड़े शहर के एक अस्पताल में काम मिला और मैं एक अच्छा वेतन कमाने लगी। क्योंकि मैं अच्छा कमाती थी, इसीलिए मेरे पड़ोसी, रिश्तेदार और दोस्त मुझसे जलते थे। मुझे इससे खुशी महसूस होती थी और मुझमें एक श्रेष्ठता की भावना थी, अपने आप में यह सोचते हुए कि, “पैसा होना सच में बहुत अच्छी बात है।” हालाँकि ज़्यादा काम करने की वजह से मुझे गंभीर अनिद्रा की बीमारी हो गई थी और मैं रात में सो नहीं पाती थी, फिर भी मुझे लगता था कि मैंने जो किया वो इसके लायक था। मार्च 2013 में, मेरे एक सहकर्मी और मैंने मिलकर एक बड़ा बहिरंग रोगी क्लिनिक खोला। हमारे यहाँ कई विभाग और कुछ सेवानिवृत डॉक्टर थे, और व्यवसाय अच्छा चल रहा था। एक रात्रि भोज के दौरान, मेरे रिश्तेदारों, दोस्तों और सहपाठियों ने मेरी काबिलियत के लिए मेरी तारीफ़ करते हुए कहा, “इतनी कम उम्र में ही तुम्हारे पास घर और कार तो थी ही, और अब तुमने इतनी बड़ी क्लिनिक खोल ली है। तुमने अपनी उम्र के हिसाब से सच में काफ़ी कुछ हासिल कर लिया है!” मैं बहुत खुश थी, और मैं अपने व्यवसाय को और भी बड़ा और बेहतर करना चाहती थी। बाद में, मैं क्लिनिक की कानूनी प्रतिनिधि बन गई, और क्लिनिक के बड़े और छोटे, सभी पहलुओं का प्रबंधन किया। उस समय, अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किए मुझे दो महीने से ज्यादा वक्त हो गया था, और सभाओं व परमेश्वर के वचन को पढ़ने से, मुझे यह समझ आ गया था कि जो कुछ भी मेरे पास था, वह परमेश्वर की तरफ से आया था, और यह भी कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, सब कुछ प्रदान करता और नियंत्रित करता है। परमेश्वर मुझे अपने घर में लेकर आया और मुझे बचाए जाने का अवसर प्रदान किया और मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानती थी। सभाओं के दौरान, मैंने सक्रीय रूप से सहभागिता में भाग लिया, और हर एक सभा से मुझे बेहद आनंद और अनेक लाभ प्राप्त हुए। मैंने सच में ऐसे दिनों का आनंद लिया, और हालाँकि मैं अपने काम में बहुत व्यस्त थी, फिर भी सभाओं में भाग लेने किए लिए मैं अपने समय को समायोजित करने की कोशिश करती थी।

तीन महीने बाद, अगुआ ने मुझसे पूछा कि क्या मैं समूह सभाओं की मेज़बानी और भाई-बहनों के सुसमाचार कार्य की खोज-खबर लेने का काम करने की इच्छुक हूँ। मैं सच में अपना कर्तव्य निभाने का अभ्यास करना चाहती थी, लेकिन फिर मुझे याद आया कि कैसे एक पिछली सभा में, जब एक सहकर्मी ने किसी मरीज़ को क्लिनिक पर भेजा था, तो मेरा फ़ोन न लगने के कारण क्लिनिक को एक हज़ार युआन से ज़्यादा का नुकसान हुआ था। उस समय मेरी सहकर्मी ने मुझे गुस्से से डांटा था, और कहा था कि अगर दोबारा ऐसा हुआ, तो नुकसान की भरपाई मुझे करनी होगी। यहाँ तक की उसने क्लिनिक के लेनदेन के बैंक कार्ड भी अपने नाम कर लिए थे। अब अगर मैं यह कर्तव्य स्वीकार कर लेती हूँ, तो इसमें बहुत समय जाएगा, और मैं क्लिनिक में और भी कम समय दे पाऊँगी। मुझे डर था कि इससे व्यवसाय पर असर पड़ेगा, इसलिए मैंने मना कर दिया। कुछ समय बाद, लीडर यह कहते हुए दोबारा मेरे पास आये, कि एक ज़रूरी कार्य था और उन्हें उस समय उस कार्य के लिए सही व्यक्ति नहीं मिल सका, और उन्होंने पूछा कि क्या मैं सहयोग देने के लिए इच्छुक हूँ। मैं बहुत उलझन में थी, क्योंकि क्लिनिक का व्यवसाय पहले से कहीं ज़्यादा व्यस्त था, और चिकित्सा संस्थानों को भी प्रशिक्षण में भाग लेना पड़ता था; मैं कानूनी प्रतिनिधि थी, इसलिए अगर मैं नहीं जाती, तो प्रैक्टिस करने के लिए मुझे दोबारा सीखना पड़ता, और इससे व्यवसाय में कई महीने की देरी होती, जिसके परिणामस्वरूप भारी नुक्सान होता। इसलिए मैंने दोबारा कर्तव्य निभाने से बचने के लिए बहाना बनाया। उस शाम, मैं कर्तव्य निभाने से बचने के अपने बहाने को लेकर थोड़ा परेशान महसूस कर रही थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ, लेकिन क्लिनिक में बहुत काम है, और मैं इसे छोड़कर वाकई नहीं जा सकती। अपना कर्तव्य निभाने से इनकार करने को लेकर मैं सच में परेशान हूँ, कृपया अपना इरादा समझने में मेरा मार्गदर्शन कर।”

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा : “आज तुम लोगों से जो कुछ हासिल करने की अपेक्षा की जाती है, वे अतिरिक्त माँगें नहीं, बल्कि मनुष्य का कर्तव्य है, जिसे सभी लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। यदि तुम लोग अपना कर्तव्य तक निभाने में या उसे भली-भाँति करने में असमर्थ हो, तो क्या तुम लोग अपने ऊपर मुसीबतें नहीं ला रहे हो? क्या तुम लोग मृत्यु को आमंत्रित नहीं कर रहे हो? कैसे तुम लोग अभी भी भविष्य और संभावनाओं की आशा कर सकते हो? परमेश्वर का कार्य मानवजाति के लिए किया जाता है, और मनुष्य का सहयोग परमेश्वर के प्रबंधन के लिए दिया जाता है। जब परमेश्वर वह सब कर लेता है जो उसे करना चाहिए, तो मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने अभ्यास में उदार हो और परमेश्वर के साथ सहयोग करे। परमेश्वर के कार्य में मनुष्य को कोई कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए, उसे अपनी वफादारी प्रदान करनी चाहिए, और अनगिनत धारणाओं में सलंग्न नहीं होना चाहिए, या निष्क्रिय बैठकर मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर मनुष्य के लिए स्वयं को बलिदान कर सकता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर को अपनी वफादारी प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मनुष्य के प्रति एक हृदय और मन वाला है, तो क्यों मनुष्य थोड़ा-सा सहयोग प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मानवजाति के लिए कार्य करता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के लिए अपना कुछ कर्तव्य पूरा नहीं कर सकता? परमेश्वर का कार्य इतनी दूर तक आ गया है, पर तुम लोग अभी भी देखते ही हो किंतु करते नहीं, सुनते ही हो किंतु हिलते नहीं। क्या ऐसे लोग तबाही के लक्ष्य नहीं हैं? परमेश्वर पहले ही अपना सर्वस्व मनुष्य को अर्पित कर चुका है, तो क्यों आज मनुष्य ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ है? परमेश्वर के लिए उसका कार्य उसकी पहली प्राथमिकता है, और उसके प्रबंधन का कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मनुष्य के लिए परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाना और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करना उसकी पहली प्राथमिकता है। इसे तुम सभी लोगों को समझ लेना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। चुपचाप कीमत चुकाते हुए, परमेश्वर मानवता को बचाने के लिए पूरे दिल से समर्पित है। वह स्वयं देहधारी बन गया है और उसने इस पृथ्वी पर लाखों वचन व्यक्त किए हैं, जिस सत्य की मानवता को आवश्यकता है, उसकी आपूर्ति करते हुए, लोगों को सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने की अनुमति दी है। लेकिन मैं अकृतज्ञ थी, और क्लिनिक के व्यवसाय के लिए, मैंने कलीसिया के काम की ज़रूरतों पर बिल्कुल भी विचार किए बिना ज़्यादा पैसा कमाने और श्रेष्ठता का जीवन जीने के लिए अपने कर्तव्य को कई बार अस्वीकार किया। मैं किस तरह से परमेश्वर में विश्वास करने वाली व्यक्ति थी? जब भी मैंने उस समय के बारे में सोचा जब मैंने अपने कर्तव्य को अस्वीकार किया था, तो मैं गहराई से खुद को दोषी महसूस करती थी। मैं पहले की तरह, बिना किसी ज़मीर के जीना नहीं चाहती थी। उसी पल, मुझे एक विचार आया। मैं क्लिनिक किराये पर दे सकती हूँ, और भले ही मैं कम पैसे कमाऊँगी, फिर भी वह पर्याप्त होगा, और मैं मन की शाँति के साथ अपना कर्तव्य निभा सकूँगी। मैंने अपने विचार व्यक्त करने के लिए अपनी सहकर्मी को फ़ोन किया, लेकिन उसने कहा, “क्या तुम मूर्ख हो? इस क्लिनिक का भविष्य उज्ज्वल है, अगर हम ऐसे ही चलते रहे तो हम दो साल में अमीर हो जाएंगे, और हमारे पास जो भी हम चाहेंगे वह होगा। हमें थोड़ा यथार्थ के साथ जीने की ज़रूरत है। इस समाज में बिना पैसे के कोई तुम्हारी इज़्ज़त नहीं करता!” मेरी सहकर्मी के शब्दों ने मुझे झिझकने पर मजबूर कर दिया, मैंने सोचा, “अगर मैं अपने शेयर किराए पर देती हूँ, तो मैं उतना पैसा नहीं कमा पाऊँगी, और शायद मैं अपनी आरंभिक पूंजी भी वापस नहीं पा सकूंगी, मेरे रिश्तेदार और दोस्त मेरे बारे में क्या सोचेंगे?” इसलिए, मैंने मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। मुझे एक सभा याद आई जब भाइयों और बहनों ने शैतान की योजनाओं को समझने और कठिनाइयों और प्रलोभनों के दौरान गवाही में दृढ़ रहने के बारे में बात की थी, और मैंने इस विषय पर परमेश्वर के वचनों को खोजना शुरू कर दिया। परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ होड़ लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों का विघ्न डालना था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि जिन लोगों, घटनाओं और चीज़ों से प्रतिदिन हमारा सामना होता है, वे लोगों के बीच की बातचीत प्रतीत होती हैं, लेकिन इसके पीछे एक आध्यात्मिक लड़ाई है, और हमें अपनी गवाही में दृढ़ रहने की ज़रूरत है। ठीक वैसे ही जैसे जब अय्यूब को अपने परीक्षण का सामना करना पड़ा था, हालाँकि ऐसा लग रहा था कि उसने अपने बच्चों को खो दिया है और लुटेरों ने रातों-रात उसकी संपत्ति छीन ली है, वास्तव में, इसके पीछे शैतान के प्रलोभन थे। जब अय्यूब परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहा, तो शैतान शर्मिंदा हुआ और भाग गया। ऊपरी तौर पर, मेरी सहकर्मी की दयालु सलाह मेरे ही भले के लिए थी, लेकिन इसके पीछे शैतान की साजिश थी, क्योंकि शैतान मुझे क्लिनिक का प्रबंधन जारी रखने के लिए पैसे का प्रलोभन देने की कोशिश कर रहा था, जिससे मुझे अपने कर्तव्यों को पूरा करने का समय नहीं मिल रहा था, और इसलिए मैं परमेश्वर से दूर हो रही थी। मैं शैतान की चालों में नहीं फंस सकती। इसलिए मैंने अपनी सहकर्मी से कहा, “क्लिनिक को उप-पट्टे पर देने में मेरी मदद करो, तुम 60% ले लेना, और मैं 40% ले लूंगी, और तुम्हारे हिस्से से अभी भी तुम्हें लाभांश मिलेगा।” मेरी सहकर्मी ने कहा कि वह कार्यभार संभालने के लिए अपने किसी सहपाठी से संपर्क करेगी, लेकिन दूसरे पक्ष ने अचानक कीमत बहुत कम कर दी पर अंत में उसने फिर भी इसे किराए पर नहीं लिया। मैं ठीक से समझ नहीं पाई, कि उसने इतनी कम कीमत पर भी इसे किराए पर क्यों नहीं लिया? बाद में, मुझे पता चला कि मेरी सहकर्मी का सहपाठी वास्तव में उसका बॉयफ्रेंड था, और उन्होंने मिलीभगत करके मुझ पर क्लिनिक को कम कीमत पर उप-पट्टे पर देने के लिए दबाव डाला था। मैं बहुत परेशान थी, यह सोचते हुए कि मैं तो अपनी सहकर्मी के साथ ईमानदारी से पेश आई, पर उसने मुझे धोखा दिया। मुझे लगा कि दुनिया सचमुच डरावनी है, और वास्तव में कोई सच्चा दोस्त नहीं है! मुझे लगा कि परमेश्वर में विश्वास करना अच्छा है, क्योंकि भाई-बहन साफ़ और खुले मन के हैं, परमेश्वर के वचनों पर जीते हैं, सत्य पर संगति करते हैं, और अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने का प्रयास करते हैं, इसलिए मैं अब अपनी सहकर्मी के साथ क्लिनिक का प्रबंधन नहीं करना चाहती थी। लेकिन जब मैंने उस सारी बचत के बारे में सोचा जो मैंने क्लिनिक खोलने के लिए पिछले कई वर्षों के दौरान निवेश की थी, और इस बारे में कि मैं कैसे अपनी प्रारंभिक पूंजी वापस अर्जित करने से पहले ही हार मान लूंगी, तो मुझे लगा कि दूसरे मुझे कैसी नज़रों से देखेंगे। सब कहते हैं कि क्लिनिक चलाना बहुत लाभदायक है, लेकिन अगर मैंने इसमें अपना सारा पैसा खो दिया, तो मेरे दोस्त और परिवार वाले मेरे बारे में क्या सोचेंगे? मेरे सहकर्मी मेरे बारे में क्या सोचेंगे? जब मैंने इस सब के बारे में सोचा तो मुझे बहुत दबाव और दुःख महसूस हुआ, और मुझे लगा कि क्लिनिक में रहना ही मेरा एकमात्र विकल्प था।

सितंबर 2013 में, लगभग डेढ़ साल का एक छोटा लड़का, आईवी ड्रिप के लिए क्लिनिक में आया। पहले दिन, मैंने दवा के लिए त्वचा परीक्षण किया, और बच्चे के माता-पिता से यह पुष्टि करने के लिए कहा कि उसे एलर्जी का कोई इतिहास नहीं था, लेकिन तीसरी सुबह अचानक, आईवी ड्रिप ख़त्म करने के बाद, जैसे ही मैं सुई निकालने ही वाली थी, उसकी आँखें पीछे की ओर घूम गईं, उसका शरीर ऐंठने लगा, और उसका चेहरा नीला-बैंगनी हो गया, फिर उसकी आँखें कसकर बंद हो गईं और वह चिल्ला नहीं सका। मैं चकित रह गई, और मैं इसे दवा से होने वाली एलर्जी मानकर उसका इलाज करने के लिए दौड़ी। दो मिनट बीत गए, और बच्चे का चेहरा काले बैंगनी रंग का हो गया, मानो वह मर गया हो। मैं डर गई थी, और पूरी तरह से घबराहट की स्थिति में सोच रही थी कि, “सब ख़त्म हो गया! सब ख़त्म हो गया! यह बच्चा मेरे हाथों मर जाएगा। अगर वह मर गया तो मैं क्या करूंगी?” जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा, मैं उतना ही अधिक भयभीत होती चली गई, और मैं अपने हृदय में परमेश्वर को पुकारती रही, “परमेश्वर, कृपया इस बच्चे पर नज़र रख! परमेश्वर, कृपया इसे बचा ले!” कुछ पलों बाद मेरे अंदर एक प्रबल भावना उभरी, “इस बच्चे को जो तरल पदार्थ दिया गया था उसमें पोटैशियम था। क्या यह हाइपरकेलेमिया हो सकता है?” मैं तुरंत उपचार कक्ष में भागी, कैल्शियम इंजेक्शन को डाइल्यूट किया, और बच्चे को सीधा इंट्रावीनस दे दिया। इंजेक्शन देते समय मैंने मन ही मन परमेश्वर को पुकारा। इंजेक्शन आधा ही लगा था कि बच्चा ज़ोर से चिल्लाया, उसके गले से खांसी के साथ कफ़ और लार निकली, और उसका चेहरा अब पहले जैसा काले बैंगनी रंग का नहीं रहा। जब मैंने कैल्शियम का इंजेक्शन पूरा खत्म किया, बच्चे का हाथ अब सख्त नहीं था और सामान्य स्थिति में आ गया था। उस पल, मुझे समझ आया कि जीवन वास्तव में कितना नाज़ुक है। मैं यह भी जानती थी कि परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुनी और इस बच्चे को बचा लिया था। मैं मन ही मन परमेश्वर को धन्यवाद देती रही। फिर हमने बच्चे को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस बुलाई। अगले कुछ दिनों तक मैं अपने आप से यह पूछते हुए चिंतित और भयभीत थी कि, “इस बच्चे का क्या होगा? क्या उस पर इसके गंभीर दुष्प्रभाव होंगे? मुझे मुआवज़ा कितना देना पड़ेगा?” मुझे यह भी डर था कि अगर ऐसी कोई जानलेवा घटना दोबारा घटी, तो मेरा सारा पैसा, प्रसिद्धि और लाभ, सब चला जाएगा। ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई विशाल पत्थर मेरे ह्रदय को दबा रहा है और मैंने कई रातें बिना सोए बिताईं। अचानक, कुछ ही दिनों बाद, एक और दुर्घटना घटी। एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आईवी के लिए क्लिनिक में आया। दवा देने से पहले मैंने त्वचा का परीक्षण किया और उससे पुष्टि की कि उसे एलर्जी का कोई इतिहास नहीं था। आईवी आधी ही हुई थी कि आदमी को अचानक सांस लेने में कठिनाई होने लगी और उसकी सांस फूलने लगी। उसका चेहरा पीले से गहरे नीले रंग में बदल गया। मैं डरी हुई और चिंतित यह सोच रही थी कि, “बच्चे की समस्या अभी भी हल नहीं हुई है, और अब इस मरीज़ के साथ भी दुर्घटना घट रही है! क्या मेरे लिए सब ख़त्म होने वाला है?” मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा ह्रदय टूट सा रहा है, और मुझमें और अधिक सोचने की हिम्मत नहीं हुई। मैंने परमेश्वर से सुरक्षा के लिए प्रार्थना की और मेरा ह्रदय धीरे-धीरे शांत हो गया। मैंने तुरंत एलर्जी उपचार प्रक्रियाओं का पालन किया और उसे बचाने में सफल रही। उस दौरान क्लिनिक में घटनाओं की एक श्रृंखला चली, और अगर मुझे परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा, और आपातकालीन उपायों के बारे में सोचने के लिए मुझे प्रबुद्ध करने में मार्गदर्शन नहीं मिला होता, तो ये दो लोग पहले ही मर चुके होते, और चाहे मैंने अपने जीवनकाल में कितना भी पैसा कमाया होता, मैं कभी भी मुआवज़ा वहन नहीं कर पाती! तब मुझे एहसास हुआ कि पैसा, प्रसिद्धि, लाभ, और भौतिक संपदा एक ताश के पत्तों के घर की तरह है, और वे किसी भी समय गायब हो सकते हैं। केवल परमेश्वर के सामने रहकर और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाकर ही मुझे सच्ची शांति और सहजता मिल सकती है।

बाद में, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने एक सभा में पढ़ा था : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा[क] भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। सालों की लगन और प्रयास से मुझे स्पष्टतः केवल तुम्हारे परित्याग और निवृत्ति से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। मुझे परमेश्वर के वचनों में उसका अत्यावश्यक इरादा और श्रमसाध्य प्रयास दिखा। परमेश्वर को आशा है कि हममें से प्रत्येक उद्धार प्राप्त करने के लिए सत्य का अनुसरण कर सकता है। मैंने सोचा कि जब से मैंने क्लिनिक खोली है, तब से मैं हमेशा इसी बारे में सोचती रही हूँ कि अधिक पैसा कैसे कमाया जाए और बेहतर जीवन कैसे जिया जाए और दूसरों की प्रशंसा और ईर्ष्या कैसे हासिल की जाए। मैंने यह भी सोचा कि कैसे मैंने कई बार अपने कर्तव्यों को अस्वीकार किया और सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्यों को निभाने में समय और ऊर्जा खर्च करने को तैयार नहीं थी। मैं परमेश्वर में विश्वास करना और बचाया जाना तो चाहती थी, लेकिन अधिक पैसा भी कमाना चाहती थी। मैं दौलत और सत्य दोनों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी, और अगर मैं सत्य प्राप्त करने और बचाये जाने का अवसर चूक जाती, तो आपदाओं के बीच रोने और अफसोस में दाँत पीसने के लिए बहुत देर हो चुकी होती। मुझे याद आया कि प्रभु यीशु ने कहा था : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?(मत्ती 16:26)। उस पल, मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी मूर्ख थी, और चीज़ों को स्पष्ट रूप से देखने में असमर्थ थी। मुझे पता नहीं था कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है। अगर ये दो दुर्घटनाएँ नहीं होतीं, तो मेरा सुन्न और कट्टर हृदय बदलता नहीं। अगर परमेश्वर की दया और सुरक्षा नहीं होती, तो ये दोनों लोग तो मर ही गए होते और अगर मैं अपनी जान भी कुरबान कर देती तब भी कोई फायदा नहीं होता। मुझे शायद ज़िन्दगी और पैसे, दोनों के कर्ज़ में डूबे होने के कष्ट में अपना जीवन जीना पड़ता, और मुझे कभी शांति नहीं मिलती। जब मैंने सोचा कि कैसे मैंने बार-बार अपने कर्तव्यों को निभाने से इनकार किया है, तो मुझे लगा कि मैं वास्तव में परमेश्वर के प्यार और उद्धार के लायक नहीं हूँ। मैं अब केवल पैसे के पीछे भागने के लिए सत्य हासिल करने का अवसर नहीं छोड़ना चाहती थी। बाद में, मैंने अपनी सहकर्मी को फ़ोन किया और उसे क्लिनिक स्थानांतरित करने के बारे में बताया। मेरी सहकर्मी ने देखा कि मैं कितनी दृढ़ थी और उसने और कुछ नहीं कहा। कुछ समय बाद, उसकी आवश्यकताएँ बहुत कठोर होने की वजह से, क्लिनिक सफलतापूर्वक स्थानांतरित नहीं हो पाई थी। मैंने परमेश्वर की ओर देखा और यह आशा करते हुए सब कुछ उसे सौंप दिया कि वह मेरे लिए कोई रास्ता खोलेगा। बाद में, शहर के एक अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टरों के एक समूह ने पट्टे के माध्यम से दो साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करके क्लिनिक का कार्य संभाल लिया। उसके बाद, मैंने कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया, और मैं अक्सर सभाओं में भाग लेती थी, परमेश्वर के वचन खाती-पीती थी, और सत्य पर संगति करती थी, और मुझे अपने हृदय में शांति और आराम मिला।

मगर एक साल और दो महीने बाद, दूसरे पक्ष ने अनुबंध समाप्त कर दिया। मेरी सहकर्मी ने जब मुझे देखा तो उसने कहा, “अगर तुम क्लिनिक चलाने के लिए वापस आती हो, तो मैं गारंटी देती हूँ कि तुम अमीर बन जाओगी। अगर नहीं आती हो, तो मैं क्लिनिक में तुम्हारा हिस्सा कम कीमत पर खरीद लूंगी।” एक अन्य सहकर्मी ने कहा, “हम दोनों इसे चला सकते हैं, तुम अपना काम स्वयं संभाल सकती हो, इससे तुम्हारे विश्वास में कोई बाधा नहीं आएगी। कई मरीज़ अभी भी तुम पर भरोसा करते हैं। मैं अस्पताल से मरीज़ लाने में मदद करूंगा, और एक साल के अंदर, हम ढेर सारा पैसा कमा लेंगे, और तब तक, हमारे पास धन और अपने पेशे में सफलता, दोनों होंगी। सब लोग हमसे ईर्ष्या करेंगे!” मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैं क्लिनिक का कार्यभार संभाल लेती हूँ, तो न केवल मैं अपना निवेश वापस कमा पाऊँगी, बल्कि मुझे एक श्रेष्ठ जीवन भी मिलेगा।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मैं कार्यभार संभाल लेती हूँ, तो मेरे कर्तव्य निश्चित रूप से प्रभावित होंगे।” इस पर विचार करने के बाद, मैंने सहमत नहीं होने का निर्णय लिया। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है। अब, शैतान की करतूतें देखते हुए, क्या उसके भयानक इरादे एकदम घिनौने नहीं हैं? हो सकता है, आज शायद तुम लोग शैतान के भयानक इरादों की असलियत न देख पाओ, क्योंकि तुम लोगों को लगता है कि व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ के बिना नहीं जी सकता। तुम लोगों को लगता है कि अगर लोग प्रसिद्धि और लाभ पीछे छोड़ देंगे, तो वे आगे का मार्ग नहीं देख पाएँगे, अपना लक्ष्य देखने में समर्थ नहीं हो पाएँगे, उनका भविष्य अंधकारमय, धुँधला और विषादपूर्ण हो जाएगा। परंतु, धीरे-धीरे तुम लोग समझ जाओगे कि प्रसिद्धि और लाभ वे विशाल बेड़ियाँ हैं, जिनका उपयोग शैतान मनुष्य को बाँधने के लिए करता है। जब वह दिन आएगा, तुम पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण का विरोध करोगे और उन बेड़ियों का विरोध करोगे, जिनका उपयोग शैतान तुम्हें बाँधने के लिए करता है। जब वह समय आएगा कि तुम वे सभी चीजें निकाल फेंकना चाहोगे, जिन्हें शैतान ने तुम्हारे भीतर डाला है, तब तुम शैतान से अपने आपको पूरी तरह से अलग कर लोगे और उस सबसे सच में घृणा करोगे, जो शैतान तुम्हारे लिए लाया है। तभी मानवजाति को परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और तड़प होगी(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। “शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, जोर से बोलते हैं और अहंकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। परमेश्वर के वचनों का प्रकाशन बहुत स्पष्ट है। शैतान लोगों के विचारों को नियंत्रित करने और हमें गुमराह और भ्रष्ट करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग करता है। पिछले कई वर्षों से, मैं प्रसिद्धि और लाभ दोनों के पीछे भाग रही थी, और अलग दिखने का प्रयास कर रही थी। मैं इन कहावतों पर भरोसा कर रही थी कि “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है,” “पैसा सबसे पहले है,” “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है,” और “पैसा सब कुछ नहीं है, लेकिन इसके बिना, आप कुछ नहीं कर सकते।” ये शैतानी सिद्धांत मेरे जीवन का मार्गदर्शन करते आए थे, और मैंने सोचा कि पैसे के साथ मेरे पास सब कुछ था। मैं हमेशा से केवल बहुत पैसा कमाना, खुद को बहुत अमीर बनाना, दूसरों की प्रशंसा और ईर्ष्या हासिल करना, और एक श्रेष्ठ जीवन जीना चाहती थी। मैंने सोचा कि पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के लिए चाहे मुझे कितनी भी कठिनाई झेलनी पड़े, यह सब इसके लायक था, और चाहे मैं यह जानती थी कि परमेश्वर देहधारी बन गया है और लोगों को बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है, फिर भी मैंने सही तरीके से सत्य का अनुसरण या अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया। पैसे के पीछे भागने के चक्कर में, मैंने बार-बार अपने कर्तव्यों को अस्वीकार किया और परमेश्वर से दूर होती गई। सच तो यह था कि मेरा परिवार पहले से ही संपन्न था और उसे खाने या कपड़े की कोई चिंता नहीं थी, लेकिन मैं संतुष्ट नहीं थी, और अभी भी और अधिक पैसा कमाना चाहती थी। मैंने पैसे, प्रसिद्धि और लाभ को बाकी सब से ऊपर महत्व दिया, जिससे मैं अपने कर्तव्यों को निभाने और सत्य को प्राप्त करने का मौका गँवा रही थी। तभी मुझे एहसास हुआ कि पैसे, प्रसिद्धि और लाभ ने मुझे अंधा कर दिया था, मैं पैसे की दासी बन गई थी, और अगर मैं वापस नहीं मुड़ी, तो मैं प्रसिद्धि और लाभ की शिकार हो जाउंगी।

फिर मैंने परमेश्वर के और वचनों को पढ़ा : “लोग भाग्य के विरुद्ध लड़ते हुए अपने पूरे जीवन भर की ऊर्जा खपा देते हैं, अपने परिवारों का भरण-पोषण करने की कोशिश में दौड़-भाग करते हुए और प्रतिष्ठा और लाभ की खातिर दौड़-धूप करते हुए अपना सारा जीवन बिता देते हैं। जिन चीजों को लोग सँजोकर रखते हैं, वे हैं पारिवारिक प्रेम, पैसा, शोहरत और लाभ, वे इन्हें जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीजों के रूप में देखते हैं। सभी लोग अपना भाग्य खराब होने के बारे में शिकायत करते हैं, फिर भी वे अपने दिमाग में उन प्रश्नों को पीछे धकेल देते हैं जिन्हें सबसे ज्यादा समझना और टटोलना चाहिए : मनुष्य जीवित क्यों है, मनुष्य को कैसे जीना चाहिए और मानव जीवन का मूल्य और अर्थ क्या है। उनका जीवन चाहे जितना भी लंबा हो, जब तक कि उनकी युवावस्था उनका साथ नहीं छोड़ देती, उनके बाल सफेद नहीं हो जाते और उनकी त्वचा पर झुर्रियाँ नहीं पड़ जातीं, वे अपना सारा जीवन शोहरत और लाभ के पीछे भागने में ही लगा देते हैं, तब जाकर उन्हें एहसास होता है कि शोहरत और लाभ उन्हें बूढ़ा होने से नहीं रोक सकते हैं, धन हृदय के खालीपन को नहीं भर सकता है; तब जाकर वे समझते हैं कि कोई भी व्यक्ति जन्म, उम्र के बढ़ने, बीमारी और मृत्यु के नियमों से बच नहीं सकता है और नियति के आयोजनों से कोई अपना पिंड नहीं छुड़ा सकता है। केवल जब उन्हें जीवन के अंतिम मोड़ का सामना करना पड़ता है, तभी सही मायने में उन्हें समझ आती है कि चाहे किसी के पास करोड़ों रुपयों की संपत्ति हो, उसके पास विशाल संपदा हो, भले ही उसे विशेषाधिकार प्राप्त हों और वह ऊँचे पद पर हो, फिर भी वह मृत्यु से नहीं बच सकता है, और उसे अपनी मूल स्थिति में वापस लौटना ही पड़ेगा : एक एकाकी आत्मा, जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। “लोग अपना जीवन धन-दौलत और प्रसिद्धि का पीछा करते हुए बिता देते हैं; वे इन तिनकों को यह सोचकर कसकर पकड़े रहते हैं, कि केवल ये ही उनके जीवन का सहारा हैं, मानो कि उनके होने से वे निरंतर जीवित रह सकते हैं, और मृत्यु से बच सकते हैं। परन्तु जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है, केवल तभी उन्हें समझ आता है कि ये चीज़ें उनकी पहुँच से कितनी दूर हैं, मृत्यु के सामने वे कितने कमज़ोर हैं, वे कितनी आसानी से बिखर जाते हैं, वे कितने एकाकी और असहाय हैं, और वे कहीं से सहायता नही माँग सकते हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन को धन-दौलत और प्रसिद्धि से नहीं खरीदा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही धनी क्यों न हो, उसका पद कितना ही ऊँचा क्यों न हो, मृत्यु के सामने सभी समान रूप से कंगाल और महत्वहीन हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मुझे समझ आया कि अगर कोई व्यक्ति अपना पूरा जीवन पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने में बिता देता है, तब भी अंत में, यह सब व्यर्थ है। क्लिनिक में मौत के करीब पहुंचने की दो घटनाओं ने मुझे यह अहसास कराया कि जब खतरा आता है, तो पैसा और दौलत किसी व्यक्ति की सुरक्षा नहीं कर सकते या उसकी जान नहीं बचा सकते, और यह कि एकमात्र परमेश्वर ही है जिसकी किसी व्यक्ति को वास्तव में आवश्यकता होती है और जिस पर वह भरोसा कर सकता है, और केवल परमेश्वर ही किसी व्यक्ति के भाग्य पर शासन और नियंत्रण करता है। मुझे अपनी एक पड़ोसी भी याद आई। वह बैंक ऑफ चाइना में एक विभाग की महाप्रबंधक थी, उसके पति परिवहन ब्यूरो के निदेशक थे, और उसके पिता पीपल्स बैंक ऑफ चाइना में अनुभाग प्रमुख थे। उसका परिवार अमीर और प्रभावशाली था, और उस समय, हमारे मोहल्ले में हर कोई उसकी प्रशंसा और उससे ईर्ष्या करता था, लेकिन बत्तीस साल की उम्र में पता चला कि उसे स्तन कैंसर है और कुछ ही समय बाद उसका निधन हो गया। मेरा एक रिश्तेदार भी था जो धनी और प्रसिद्ध था, लेकिन बाद में किसी यात्रा के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी। मेरे लिए यह स्पष्ट था कि चाहे आप कितना भी पैसा, प्रसिद्धि या प्रशंसा प्राप्त कर लें, जब मृत्यु आती है, तो पैसा, प्रसिद्धि और लाभ आपके जीवन को नहीं बचा सकते हैं। पैसा, प्रसिद्धि और लाभ केवल शरीर के लिए अस्थायी संतुष्टि और आनंद प्रदान कर सकते हैं, और अगर तुम्हें परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा नहीं मिलेगी, तो तुम मर जाओगे। ऐसे में ज़्यादा पैसा होने का क्या मतलब होगा? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, तूने मुझे सत्य का अनुसरण करने और बचाए जाने का मौका दिया, लेकिन मैंने इसे महत्व नहीं दिया। मैंने अपना सारा समय और ऊर्जा पैसा, प्रसिद्धि और लाभ कमाने में लगा दी। मैं सचमुच अंधी और मूर्ख थी! अब मैं जानती हूँ कि सत्य को प्राप्त करना और अपने कर्तव्यों का पालन करना सबसे सार्थक और महत्वपूर्ण काम है जो मैं कर सकती हूँ।” उसके बाद, मैंने अपनी सहकर्मी को फ़ोन किया और कहा कि चाहे मुझे शेयरों और क्लिनिक की शुरुआती पूंजी में कितना भी नुकसान हो, मैं उन्हें हस्तांतरित करने को तैयार हूँ। कुछ ही समय बाद, मैंने क्लिनिक के अपने शेयर हस्तांतरित कर दिए। हालाँकि मुझे हज़ारों का नुकसान हुआ, पर जिस पल मैंने यह किया, मुझे मुक्ति और खुशी महसूस हुई।

बाद में, मैंने अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक समय और ऊर्जा समर्पित की, और जब भी मेरे पास समय हुआ, मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा और अधिक सच्चाइयों को समझ पाई। मैं शैतान के भ्रष्ट करने के तरीकों को समझने में भी और ज़्यादा सक्षम हो पाई। यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि परमेश्वर में विश्वास करके और अपने कर्तव्यों का पालन करके, मैं सत्य को समझ सकती हूँ! हाल ही में, मेरे कुछ दोस्तों ने कहा कि वे क्लिनिक खोलने में मेरा सहयोग करने के लिए भुगतान करेंगे, और मुझे इसे चलाना जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, और कुछ ने मुझे अस्पताल में काम करने की सलाह भी दी, लेकिन मैं अब इन चीजों से प्रभावित नहीं थी। मैंने एक सृजित प्राणी के कर्तव्य निभाना, सुसमाचार का प्रचार करना और परमेश्वर की गवाही देना चुना। यह इस दुनिया में मेरे द्वारा किए गए किसी भी काम से अधिक सार्थक और मूल्यवान है, और यह मेरे जीवन का सबसे बुद्धिमानी भरा चुनाव है।

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