2. शुद्धिकरण का मार्ग
मुझे 1990 में प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा दिया गया था और 1998 तक मैं कलीसिया की सहकर्मी बन गयी थी। पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद, मेरे पास प्रभु के लिए काम करने की अटूट ऊर्जा थी और उपदेशों के लिए मेरा कुआं कभी सूखा नहीं। मैंने अक्सर उन भाई-बहनों का सहयोग किया जो कमजोर या नकारात्मक महसूस करते थे, जब उनके अविश्वासी परिवार मुझसे नाराज़ थे, तब मैं धैर्यवान और सहनशील बनी रही। मुझे लगा कि ईसाई बनने के बाद से मैं बहुत बदल गयी हूँ। लेकिन 2010 की शुरुआत से, मैं अब प्रभु के मार्गदर्शन को महसूस नहीं कर पाती थी और मुझमें अपने काम के लिए उतनी ऊर्जा नहीं थी। मैंने बिना किसी नए प्रबोधन के उन्हीं पुरानी बातों का प्रचार किया। जब मेरे पति या बेटी ने कुछ ऐसा किया जो मुझे पसंद नहीं आया, तो मैं अपना आपा खो बैठी और उन्हें डांट दिया। मैं जानती थी कि यह प्रभु की इच्छा नहीं थी, मैंने प्रार्थना करके गलती कबूल की और पश्चाताप किया, परन्तु मैं फिर से और अधीर और असहिष्णु होकर पाप करने लगी। यह मेरे लिए तकलीफ़देह था। मैंने पूरे मन से बाइबल पढ़ी, उपवास किया और प्रार्थना की, ताकि पाप करके उसे कबूल करने के उस जीवन से बच सकूँ। मैंने इसके बारे में जानने में मदद के लिए पादरियों की तलाश की, लेकिन वे बिल्कुल भी मदद नहीं कर सके।
2017 तक, मैं अभी भी हर जगह काम करते हुए प्रचार कर रही थी, लेकिन मुझे खालीपन और बेचैनी का एहसास हुआ, क्योंकि मैं हमेशा पाप में जी रही थी, और यह भावना मजबूत होती जा रही थी। एक दिन, मेरे पति ने मुझसे पूछा, "तुम हाल के दिनों में काफ़ी निराश लग रही थी। क्या कुछ गड़बड़ है?" उनके सवालों के जवाब में मैंने उनको अपनी चिंताओं के बारे में बताया। "मैं सोच रही थी, मैं इतने सालों से एक विश्वासी रही और मैं एक प्रचारक भी हूँ, फिर मैं पाप में जीना बंद क्यों नहीं कर सकती? मैं प्रभु की उपस्थिति को महसूस नहीं कर सकती। यह ऐसा है मानो उसने मुझे छोड़ दिया है। मैंने वर्षों से प्रभु पर विश्वास किया है, बाइबल को बहुत पढ़ा है और प्रभु के मार्ग के बारे में बहुत कुछ सुना है। मैं अक्सर क्रूस धारण करने और खुद को काबू करने का संकल्प करती हूं, लेकिन मैं हमेशा पाप से बंधी रहती हूं। मैं अपने फायदे और प्रतिष्ठा के लिए झूठ बोलती हूं, मैं यह स्थिति हासिल नहीं कर सकती 'उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था' (प्रकाशितवाक्य 14:5)। मुझे पता है कि प्रभु उन कठिनाइयों और शुद्धिकरण की अनुमति देता है जिनका मैं सामना करती हूँ, लेकिन मैं सिर्फ़ उसे दोषी और गलत समझती हूं। मैं खुशी से समर्पण नहीं कर सकती। मुझे डर है कि अगर मैं इस तरह से पाप में जीती रही, तो प्रभु के आने पर मैं उसके राज्य में नहीं जा पाउंगी!"
जवाब में, उन्होंने कहा, "तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो? विश्वास रखो, तुम प्रचारक हो! क्या तुम हमेशा ऐसा नहीं कहती हो? भले ही हम पाप में रहते हैं और उससे बचे नहीं हैं, फिर भी बाइबिल में कहा गया है: 'यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है।' (रोमियों 10:9-10), और 'क्योंकि, "जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।"' (रोमियों 10:13)। हम पाप में जीते हैं और इससे मुक्त नहीं हैं, लेकिन हमारे पाप क्षमा किए जाते हैं। आस्था से हमारा न्याय होता है और हम बचाये जाते हैं। जब तक हम सेवाओं में शामिल होते हैं, बाइबिल पढ़ते हैं, क्रूस धारण करते हैं और प्रभु का अनुसरण करते हैं, हम स्वर्ग का राज्य प्राप्त करेंगे और धन्य होंगे।" मैंने उनसे कहा, "मुझे ऐसा लगता था, लेकिन हाल ही में मैंने 1 पतरस 1:16 पढ़ा, 'पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ' और इब्रानियों 12:14, 'पवित्रता, जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि नहीं देखेगा।' हम बचाये गए हैं, लेकिन हम हमेशा पाप करके उसे कबूल कर रहे हैं। हमने पवित्रता हासिल नहीं की है। मुझे चिंता है—क्या हम इसी दशा में स्वर्ग के राज्य में आ सकते हैं?"
मेरी बात सुनने के बाद, वे मुझसे सहमत हो गये और कहा कि कलीसिया ने हांगकांग से एक पादरी चेन को आमंत्रित किया था और सुझाव दिया कि मैं उनसे इसके बारे में पूछूं। मुझे लगा मुझे इस बात पर स्पष्टता हासिल करनी थी कि मैं अपने विश्वास में लापरवाह नहीं हो सकती, या फिर मैं खुद के साथ-साथ अपने भाई-बहनों के भी नुकसान का कारण बनूंगी। बाद में, मैंने पादरी चेन को ऑनलाइन खोजा और जो पेज सामने आया, उसमें मैंने यह वेबसाइट देखी—राज्य के अवरोहण का सुसमाचार। मैं उस साइट पर गई और कुछ शब्दों को देखा जिसने मुझे आकर्षित किया। "मनुष्य ने बहुत अनुग्रह प्राप्त किया, जैसे देह की शांति और खुशी, एक व्यक्ति के विश्वास करने पर पूरे परिवार को आशीष, बीमारी से चंगाई, इत्यादि। शेष मनुष्य के भले कर्म और उसकी ईश्वर के अनुरूप दिखावट थी; यदि कोई इनके आधार पर जी सकता था, तो उसे एक स्वीकार्य विश्वासी माना जाता था। केवल ऐसे विश्वासी ही मृत्यु के बाद स्वर्ग में प्रवेश कर सकते थे, जिसका अर्थ था कि उन्हें बचा लिया गया है। परंतु अपने जीवन-काल में इन लोगों ने जीवन के मार्ग को बिलकुल नहीं समझा था। उन्होंने सिर्फ इतना किया कि अपना स्वभाव बदलने के किसी मार्ग को अपनाए बिना बस एक निरंतर चक्र में पाप किए और उन्हें स्वीकार कर लिया : अनुग्रह के युग में मनुष्य की स्थिति ऐसी थी। क्या मनुष्य ने पूर्ण उद्धार पा लिया है? नहीं! इसलिए, उस चरण का कार्य पूरा हो जाने के बाद भी न्याय और ताड़ना का कार्य बाकी रह गया था। यह चरण वचन के माध्यम से मनुष्य को शुद्ध बनाने और उसके परिणामस्वरूप उसे अनुसरण हेतु एक मार्ग प्रदान करने के लिए है। यह चरण फलदायक या अर्थपूर्ण न होता, यदि यह दुष्टात्माओं को निकालने के साथ जारी रहता, क्योंकि यह मनुष्य की पापपूर्ण प्रकृति को दूर करने में असफल रहता और मनुष्य केवल अपने पापों की क्षमा पर आकर रुक जाता। पापबलि के माध्यम से मनुष्य के पाप क्षमा किए गए हैं, क्योंकि सलीब पर चढ़ने का कार्य पहले ही पूरा हो चुका है और परमेश्वर ने शैतान को जीत लिया है। किंतु मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव अभी भी उसके भीतर बना रहने के कारण वह अभी भी पाप कर सकता है और परमेश्वर का प्रतिरोध कर सकता है, और परमेश्वर ने मानवजाति को प्राप्त नहीं किया है। इसीलिए कार्य के इस चरण में परमेश्वर मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करने के लिए वचन का उपयोग करता है और उससे सही मार्ग के अनुसार अभ्यास करवाता है। यह चरण पिछले चरण से अधिक अर्थपूर्ण और साथ ही अधिक लाभदायक भी है, क्योंकि अब वचन ही है जो सीधे तौर पर मनुष्य के जीवन की आपूर्ति करता है और मनुष्य के स्वभाव को पूरी तरह से नया होने में सक्षम बनाता है; कार्य का यह चरण कहीं अधिक विस्तृत है। इसलिए, अंत के दिनों में देहधारण ने परमेश्वर के देहधारण के महत्व को पूरा किया है और मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन-योजना का पूर्णतः समापन किया है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। इसे पढ़कर मैं बहुत उत्साहित हुई। इसमें विश्वासियों के तौर पर हमारी स्थिति को पूरी तरह से समझाया गया है, और हालांकि मैं इसे पूरी तरह से समझ नहीं पायी, मैंने इसमें आशा देखी। मुझे लगा कि मैं यहां शुद्ध और परिवर्तित होने का मार्ग पा सकती हूं। मैंने अपनी प्रार्थनाओं को सुनने के लिए परमेश्वर को हार्दिक धन्यवाद दिया। इसे पढ़ते हुए मुझे लगा कि यह सब बहुत शानदार ढंग से लिखा गया है, इससे मेरी शुष्क आत्मा का सिंचन किया और रास्ता दिखाया। मैं सोच रही थी कि क्या ये लोग मेरी उलझन को दूर कर सकते हैं। साइट पर ऐसा कहा गया है "अगर आपके पास कोई प्रश्न है, तो कृपया यहां हमें एक संदेश छोड़ दें," इसलिए मैंने उन्हें बिना किसी हिचकिचाहट के एक संदेश भेजा, उन्हें अपना नंबर और ईमेल भी भेज दिया।
मैंने अपने पति को इस बारे में बताया और उन्होंने कहा कि वे भी अनुसरण में रुचि रखते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों ने अगले दिन मुझसे संपर्क किया। हमने उस दोपहर ऑनलाइन चैट किया, और मैंने वह बात बताई जो मुझे परेशान कर रही थी। "हम हमेशा रोमियों की इस कविता को पढ़ते हैं जिसमें कहा गया है - 'यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा (रोमियों 10: 9)। हमें लगता है कि प्रभु यीशु द्वारा हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, इसलिए हम बचाये गए हैं और जब वे लौटकर आएंगे तब हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे। लेकिन हम अभी भी पाप में जी रहे हैं, हम प्रभु के उपदेशों का पालन नहीं कर पाते हैं या पाप से बच नहीं पाते हैं। बाइबल में कहा गया है कि पवित्रता के बिना हम प्रभु को नहीं देख सकते हैं। मैं उलझन में हूं: क्या मेरे जैसी कोई इंसान राज्य में प्रवेश कर सकती है जो लगातार पाप कर रही है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट कहती है कि परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय और ताड़ना का कार्य कर रहा है। क्या यह एक पापी प्रकृति से बचने और राज्य में प्रवेश करने से संबंधित है?"
भाई चेन ने हमारे साथ यह सहभागिता की: "इसे समझने के लिए, पहले हमें यह जानना होगा कि 'बचाया जाना’ क्या है। व्यवस्था के युग में देर से, लोग परमेश्वर से दूर हो गए थे और उन्हें उसका कोई डर नहीं था। चूंकि किसी ने व्यवस्था का पालन नहीं किया और वे अधिक से अधिक पाप कर रहे थे, वे सभी दंडित होने और मौत की सजा पाने के खतरे में थे। परमेश्वर ने स्वयं देहधारण किया और व्यवस्था के तहत लोगों को मौत से बचाने के इरादे से, मानवजाति के लिए एक पाप बलि के रूप में उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया गया। उसने सारी मानवजाति को पाप से छुटकारा दिलाया, इसलिए हम सभी को प्रभु यीशु के नाम से प्रार्थना करनी चाहिए और अपने पापों को कबूल करके पश्चाताप करना चाहिए, तब हमारे पापों को क्षमा किया जाएगा। तभी हम व्यवस्था से दंडित हुए बिना परमेश्वर के अनुग्रह और आशीष का आनंद ले सकते हैं। यही अनुग्रह के युग में ‘बचाये जाने’ का सही अर्थ है। इसका मतलब है कि हमारे पाप क्षमा किए जाते हैं, इसलिए हमें व्यवस्था के तहत हमें दंडित नहीं किया जाएगा और मौत नहीं दी जाएगी, परमेश्वर अब उन पापों को नहीं देखता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अब हम पापी नहीं हैं, हम पाप नहीं करते हैं या परमेश्वर का विरोध नहीं करते हैं। बचाये जाने का मतलब यह नहीं है कि हम भ्रष्ट नहीं हैं या हम शुद्ध हो गए हैं, ख़ास तौर पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लायक हैं। शुद्ध होने के लिए, हमें अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य को स्वीकार करना होगा।"
मैं भाई चेन की सहभागिता से यह समझ गई कि रोमियों में "बचाये जाने" का मतलब है, प्रभु यीशु के उद्धार को स्वीकार करना और अब व्यवस्था के तहत दंडित नहीं होना और मौत न दिया जाना, लेकिन इसे शुद्ध करना नहीं कहा जा सकता। मुझे लगा कि इसमें सत्य था जिसकी खोज की जानी चाहिये।
भाई चेन ने हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कई अंश पढ़कर सुनाये। "उस समय यीशु का कार्य समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाना था। उन सभी के पापों को क्षमा कर दिया गया था जो उसमें विश्वास करते थे; अगर तुम उस पर विश्वास करते हो, तो वह तुम्हें छुटकारा दिलाएगा; यदि तुम उस पर विश्वास करते, तो तुम पापी नहीं रह जाते, तुम अपने पापों से मुक्त हो जाते हो। यही बचाए जाने और विश्वास द्वारा उचित ठहराए जाने का अर्थ है। फिर विश्वासियों के अंदर परमेश्वर के प्रति विद्रोह और विरोध का भाव था, और जिसे अभी भी धीरे-धीरे हटाया जाना था। उद्धार का अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य पूरी तरह से यीशु द्वारा प्राप्त कर लिया गया है, बल्कि यह था कि मनुष्य अब पापी नहीं रह गया है, उसे उसके पापों से मुक्त कर दिया गया है। अगर तुम विश्वास करते हो, तो तुम फिर कभी भी पापी नहीं रहोगे।" "मनुष्य को उसके पापों को क्षमा किया जाता था, किंतु जहाँ तक इस बात का संबंध था कि मनुष्य को उसके भीतर के शैतानी स्वभावों से कैसे मुक्त किया जाए, तो यह कार्य अभी किया जाना बाकी था। मनुष्य को उसके विश्वास के कारण केवल बचाया गया था और उसके पाप क्षमा किए गए थे, किंतु उसका पापी स्वभाव उसमें से नहीं निकाला गया था और वह अभी भी उसके अंदर बना हुआ था। मनुष्य के पाप देहधारी परमेश्वर के माध्यम से क्षमा किए गए थे, परंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य के भीतर कोई पाप नहीं रह गया था। पापबलि के माध्यम से मनुष्य के पाप क्षमा किए जा सकते हैं, परंतु मनुष्य इस समस्या को हल करने में पूरी तरह असमर्थ रहा है कि वह आगे कैसे पाप न करे और कैसे उसका भ्रष्ट पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया और रूपांतरित किया जा सकता है। मनुष्य के पाप क्षमा कर दिए गए थे और ऐसा परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने के कार्य की वजह से हुआ था, परंतु मनुष्य अपने पुराने, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीता रहा। इसलिए मनुष्य को उसके भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से पूरी तरह से बचाया जाना आवश्यक है, ताकि उसका पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया जा सके और वह फिर कभी विकसित न हो पाए, जिससे मनुष्य का स्वभाव रूपांतरित होने में सक्षम हो सके। इसके लिए मनुष्य को जीवन में उन्नति के मार्ग को समझना होगा, जीवन के मार्ग को समझना होगा, और अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के मार्ग को समझना होगा। साथ ही, इसके लिए मनुष्य को इस मार्ग के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता होगी, ताकि उसका स्वभाव धीरे-धीरे बदल सके और वह प्रकाश की चमक में जी सके, ताकि वह जो कुछ भी करे, वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हो, ताकि वह अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर कर सके और शैतान के अंधकार के प्रभाव को तोड़कर आज़ाद हो सके, और इसके परिणामस्वरूप पाप से पूरी तरह से ऊपर उठ सके। केवल तभी मनुष्य पूर्ण उद्धार प्राप्त करेगा।" "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)।
तब भाई चेन ने हमारे साथ यह सहभागिता की: "परमेश्वर के वचन अंत के दिनों में उसके न्याय कार्य के औचित्य को स्पष्ट करते हैं। प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में केवल छुटकारे का कार्य किया, और भले ही उसने हमारे पापों को क्षमा कर दिया, हमारी पापी प्रकृति वास्तव में बहुत गहराई तक समायी है, हमारे अन्दर अभी भी शैतानी स्वभाव हैं। हम अपने स्वयं के लाभ के लिए झूठ बोलते हैं, धोखा देते हैं, ईर्ष्या और घृणा करते हैं, हम सांसारिक प्रवृत्तियों का पालन करते हैं, हम लालची हैं, हमें अन्याय में आनंद आता है। यदि हमारी शैतानी प्रकृति का समाधान नहीं किया गया, तो हम कभी भी पाप करते हुए परमेश्वर का विरोध कर सकते हैं। प्रभु यीशु ने कहा था, 'मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है' (यूहन्ना 8:34-35)। परमेश्वर धार्मिक है और उसका धार्मिक स्वभाव कोई अपमान नहीं सहेगा। वह ऐसे लोगों को अपने राज्य में प्रवेश कैसे करने दे सकता है जो लगातार पाप करते हुए उसका विरोध करते हैं। इसलिए, मानवजाति को पूरी तरह से बचाने के लिए परमेश्वर ने अंत के दिनों में फिर से देहधारण किया है। वह छुटकारे के कार्य के आधार पर मनुष्य का न्याय कर उसे शुद्ध करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, ताकि हम इंसान पूरी तरह से पाप से मुक्त हो सकें, शुद्ध हो सकें और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें। यह प्रभु यीशु की इन भविष्यवाणियों को पूरा करता है: 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। 'जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:48)। और 1 पतरस में कहा गया है: 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)। अगर हम सिर्फ अनुग्रह के युग के छुटकारे के कार्य से चिपके रहते हैं और अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय को स्वीकार नहीं करते हैं, तो हमारे पाप की जड़ का समाधान कभी नहीं हो पाएगा। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करना ही एकमात्र रास्ता है जिससे हम अपनी भ्रष्टता से शुद्ध हो सकते हैं और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।"
भाई चेन की सहभागिता सुनकर मेरा दिल रोशन हो गया। कोई आश्चर्य नहीं कि मैंने कितनी ही प्रार्थना की, बाइबल पढ़ी या खुद को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन पाप करने से खुद को नहीं रोक पाई। ऐसा इसलिए था क्योंकि मेरे पाप की जड़ें पूरी तरह उखड़ी नहीं थीं। मुझे अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य का अनुभव नहीं हुआ था! परमेश्वर का न्याय कार्य कैसे लोगों को शुद्ध करके परिवर्तित करता है और उन्हें पूरी तरह से बचाता है? मैंने उनसे काफ़ी उत्सुकता से पूछा।
उन्होंने हमारे लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा: "अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। भाई चेन ने तब हमारे साथ अपनी सहभागिता जारी रखी। "अंत के दिनों में, परमेश्वर मुख्य रूप से लोगों का न्याय करने और शुद्ध करने के लिए सत्य व्यक्त करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति को शुद्ध करने और पूरी तरह से बचाने के लिए सभी सत्य व्यक्त किए हैं, मानवता को बचाने के लिए अपनी योजना के रहस्यों को खोला है, दुनिया में बुराई और अंधेरे की जड़ का खुलासा किया है, शैतान मनुष्य को कैसे भ्रष्ट करता है और परमेश्वर मनुष्य को कैसे बचाता है शैतान द्वारा इंसान को भ्रष्ट किये जाने का सच क्या है, लोगों की पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने की की शैतानी प्रकृति और अनेकों शैतानी स्वभावों के बारे में बताया है, कैसे लोगों को न्याय, ताड़ना, परीक्षण और परमेश्वर के वचनों के शुद्धिकरण के माध्यम से पवित्र किया जाता है, और भी कई बातें। कुछ वर्षों तक परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से गुजरने के बाद, हम महसूस करते हैं कि परमेश्वर के वचन जो मानवजाति का न्याय कर उसे उजागर करते हैं, एक बहुत तेज चाकू की तरह हैं, जो हमारी विद्रोहशीलता, भ्रष्टता और गलत इरादों का खुलासा करते हैं, ये हमें दिखाते हैं कि शैतान द्वारा हमें कितनी गहराई से भ्रष्ट किया गया है। हम अहंकार, धोखे, कठोरता, बुराई और क्रूरता जैसे स्वभावों से भरे हुए हैं, हममें ज़रा सी भी इंसानियत नहीं। अगर हम अपनी आस्था में त्याग भी करते हैं, तो हम यह सिर्फ आशीष और स्वर्ग के राज्य में जगह पाने के लिए करते हैं। हम परमेश्वर से उसके अनुग्रह और आशीष पाने के लिए एक सौदा करते हैं। हम यह उसकी आज्ञा मानने और उसे संतुष्ट करने के लिए नहीं करते हैं। जब हम पर कोई आपदा आती है या हम किसी और कठिनाई का सामना करते हैं, तो हम परमेश्वर को दोषी मानते हैं और उसके प्रति सच्चे मन से समर्पित नहीं होते हैं। यदि हमारे कर्तव्य में हमारे अंदर कुछ क्षमता, गुण या उपलब्धियां हैं, तो हम दिखावा करते हैं ताकि दूसरे हमें ऊँची नज़र से देखें और यहां तक कि हम लोगों को अहंकार से डांटते हैं। जब परमेश्वर के कार्य और वचन हमारी धारणाओं के साथ मेल नहीं खाते, तो हम परमेश्वर की आलोचना और विरोध करते हैं। हम परमेश्वर का भय नहीं मानते। जब परमेश्वर के वचनों और तथ्यों से हमें उजागर किया जाता है, तो हमें शर्म आती है, जैसे हमें छिपने की जगह न मिल रही हो। फिर हम सच्चे मन से पश्चाताप और खुद से नफरत करते हैं, अब हम अपने भ्रष्ट, शैतानी स्वभावों के साथ नहीं जीना चाहते। हम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की समझ भी हासिल करते हैं और उसके प्रति हमारी श्रद्धा बढ़ जाती है। हम परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करके उसके प्रति समर्पित होते हैं, अपनी भ्रष्टता को मिटाने के लिए सत्य का अभ्यास करते हैं। हमारे जीवन स्वभाव धीरे-धीरे बदलने लगते हैं। यह सब अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का अनुभव करके प्राप्त किया जाता है।"
उनकी सहभागिता मेरे दिल को छू गई। मैंने देखा कि अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय कार्य कितना सार्थक है, कैसे वह बहुत ही व्यावहारिक तरीकों से इंसान का न्याय करके उसे उजागर करने के लिये सत्य व्यक्त करता है। यह सब हमें शुद्ध करने और पूरी तरह से बचाने के लिये है। अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य का अनुभव किए बिना हमारे भ्रष्ट स्वभावों को कभी शुद्ध नहीं किया जा सकेगा और हम परमेश्वर के राज्य के लिए पूरी तरह से अयोग्य होंगे। सहभागिता के कुछ दिनों के बाद, मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, और उसके वचन वही हैं जो पवित्र आत्मा कलीसियाओं से कहता है। मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया। एक विश्वासी के रूप में उन सभी वर्षों में, मैं पाप में फंस कर जीती रही, लेकिन अब मुझे आखिरकार शुद्धिकरण और पूर्ण उद्धार का मार्ग मिल गया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!