33. बरखास्त किए जाने से मैंने जो सबक सीखे

चेन जिन, चीन

2012 में, मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया। परमेश्वर के मार्गदर्शन में, हमारी कलीसिया के सुसमाचार कार्य के कुछ फल मिले, और हमने दो नई कलीसियाएँ भी शुरू कीं। उस समय, भाई-बहनों ने मुझे कलीसिया के चुनाव कार्य की मेजबानी के लिए नामित किया, और जब भाई-बहनों की दशाएँ खराब होतीं, तो वे संगति और मदद के लिए भी मेरे पास आते थे। मेरी संगति के बाद, वे अपनी दशा में सुधार कर पाते थे। खासकर कार्यकर्ताओं की सभाओं में, यह देखकर कि हमारी कलीसिया सबसे ज्यादा नए लोगों को लाई है, कि इसमें अगुआओं और उपयाजकों की पूरी टीम है, और हर पहलू में काम सुचारू रूप से आगे बढ़ता देख मैं बहुत खुश थी। मुझे लगा कि मुझमें वाकई कार्यक्षमता है और मैं लोगों को चुनने और उनका उपयोग करने में अच्छी थी।

बाद में, मुझे एक उपदेशक के रूप में चुना गया। एक बार, मैं एक कलीसिया चुनाव की अध्यक्षता करने गई, और चुनाव के पहले दौर में, वांग चेन नाम की एक बहन को सबसे ज्यादा वोट मिले। मैंने मन में सोचा, “हालाँकि वांग चेन को रुतबे का काफी शौक है और उसे दिखावा करना पसंद है, लेकिन कुछ बार की बातचीत में मैंने देखा है कि उसे अपने भ्रष्ट स्वभाव की कुछ समझ है। वह एक अगुआ बनने के लिए उपयुक्त है।” उस दिन, मैंने झांग लिन को देखा, जिसे पहले कलीसिया में अगुआ के पद से बरखास्त कर दिया गया था। झांग लिन ने मुझसे कहा, “वांग चेन अक्सर अपनी गवाही देती है और दिखावा करती है। अपनी दशा पर संगति करते समय, वह केवल अपनी अच्छी बातें बताती है और अपनी भ्रष्टता के बारे में कभी बात नहीं करती। इस वजह से भाई-बहन उसे बहुत सम्मान देते हैं और आदर करते हैं और कहते हैं कि वह सत्य पर संगति कर सकती है और समस्याएँ हल कर सकती है। साथ ही, उसे अगुआ के पद से बरखास्त किए जाने से भी अपने बारे में कोई समझ नहीं मिली; उसे अगुआ बनाना ठीक नहीं है!” यह सुनने के बाद, झांग लिन को लेकर मेरे मन में भी कुछ विचार आए। मैंने सोचा, “क्या ऐसा नहीं है कि तुम्हें अभी-अभी बरखास्त किया गया है, इसलिए वांग चेन को चुने जाते देख तुम्हें बुरा लग रहा है? इसके अलावा, मैं वांग चेन से कई बार मिल चुकी हूँ, और मुझे लगता है कि उसने अपनी पिछली बरखास्तगी के बारे में कुछ समझ दिखाई है। यह वैसा बिल्कुल नहीं है जैसा तुम कह रही हो। तुम्हें अपने शब्दों के पीछे की मंशा पर विचार करना चाहिए।” अतीत में, मैं कलीसिया के लगभग सभी चुनावों की अध्यक्षता करती रही थी, और चुने गए लोग अपने काम के लिए कमोबेश उपयुक्त थे, इसलिए मुझे लगा कि मुझमें परखने की अच्छी क्षमता है और मैं झांग लिन की सलाह नहीं मानना चाहती थी। घर आकर मैंने अपनी सहयोगी बहन को बताया कि इस चुनाव में वांग चेन को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। यह सुनकर वह हैरान रह गई, और बोली, “वांग चेन में रुतबे की बहुत प्रबल इच्छा है और उसे दिखावा करने की गंभीर समस्या है। एक अगुआ के रूप में, काम की रिपोर्ट करते समय उसने केवल अपने अच्छे पक्ष पर ध्यान दिया और अपने विचलनों का कभी उल्लेख नहीं किया। जब वह अपनी दशा के बारे में बात करती थी, तो सब कुछ सकारात्मक होता था; उसने कभी किसी को अपना भ्रष्ट पक्ष नहीं देखने दिया। उसने कहा कि अगर कुछ होता तो सभी भाई-बहन उससे बात करते थे, लेकिन वे सिद्धांतों की खोज नहीं करते थे। उस समय, हमने उसके साथ संगति की और दिखावा करने और अपनी गवाही देने की उसकी समस्याओं को बताया, लेकिन उसने कहा कि उसकी ऐसी कोई मंशा नहीं थी, यह तो भाई-बहन थे जो उसे बहुत सम्मान देना चाहते थे। बरखास्त होने के बाद, उसे खुद की कोई समझ नहीं मिली है। हम अभी भी वांग चेन की असलियत नहीं जान पाए हैं; तुम्हें इस पर सत्य खोजते रहना चाहिए।” यह सुनकर कि इस बहन ने भी मेरे चुने हुए व्यक्ति को अस्वीकार कर दिया है, मुझे काफी दुख हुआ। मैंने मन में सोचा, “तुम कई साल पहले हुई बातों के बारे में बात कर रही हो। पिछली कुछ बार जब मैं वांग चेन के संपर्क में आई, तो मैंने देखा है कि वह खुद को समझने में सक्षम है। यह वैसा नहीं है जैसा तुम कह रही हो। उसके बारे में इतनी जल्दी कोई पक्की राय मत बनाओ। इसके अलावा, मैं अब कुछ सालों से अगुआ हूँ, और मैं कई लोगों के संपर्क में आई हूँ और भेद पहचानना जानती हूँ। लोगों को चुनने और उनका उपयोग करने में मैं तुमसे ज्यादा अनुभवी हूँ; क्या मैं इस बारे में सचमुच गलत हो सकती हूँ?” लेकिन बाहर से मैंने फिर भी उससे धीरे से कहा, “तुम जिन बातों के बारे में बात कर रही हो, वे कई साल पहले हुई थीं; वांग चेन को अब खुद की कुछ समझ है। हम सिर्फ लोगों के अतीत को नहीं देख सकते; हमें उन्हें सही ढंग से देखना चाहिए।” जब बहन ने कोई जवाब नहीं दिया, तो मुझे और भी दृढ़ विश्वास हो गया कि मैं सही थी।

एक और बार, मैं ली ली नाम की एक बहन से मिली। वह अगुआ की भूमिका से बरखास्त कर दी गई थी और बेहद नकारात्मक थी। मैंने सोचा कि अगर मैं उसके लिए एक कर्तव्य की व्यवस्था करूँ, तो शायद वह अपनी नकारात्मक दशा से जल्दी बाहर आ जाए। मैंने देखा कि कलीसिया को सामान्य मामलों के उपयाजक की जरूरत है, तो मुझे ली ली याद आई, और मैंने उसे यह कर्तव्य सौंपने पर विचार किया। मैं कलीसिया अगुआ, झांग हुई से मिलने गई, ताकि ली ली को सामान्य मामलों के उपयाजक के रूप में नियुक्त करने के मामले पर चर्चा कर सकूँ। झांग हुई ने कहा, “बरखास्त होने के बाद ली ली ने खुद की कोई समझ नहीं दिखाई है। जब भाई-बहन उसकी समस्याएँ बताते हैं तो वह स्वीकार नहीं करती, बल्कि पलटकर जवाब देती है और बहस करती है, जिससे हर कोई उससे बाधित महसूस करता है। भाई-बहनों ने बताया कि उसकी मानवता अच्छी नहीं है और वह सत्य को स्वीकार नहीं करती। सिद्धांत के अनुसार, वह सामान्य मामलों के उपयाजक होने के लिए उपयुक्त नहीं है।” झांग हुई की बातें सुनकर, मैं विरोध से भर गई। मैंने मन में सोचा, “ली ली को अभी-अभी बरखास्त किया गया है; यह सामान्य है कि उसे अपने बारे में ज्यादा समझ नहीं है। और जब मैं अतीत में उससे मिली थी, तो मैंने यह नहीं देखा था कि उसकी मानवता खराब है। क्या तुम लोग लोगों को आंकना जानते भी हो? भले ही ली ली अपनी प्रतिष्ठा की काफी परवाह करती है और कभी-कभी अपनी समस्याएँ बताने वालों से बहस करती है, लेकिन बाद में वह आत्म-चिंतन करेगी और खुद को जानने की कोशिश करेगी, और वह अपने खराब मूड को अपने कर्तव्य के आड़े नहीं आने देगी। वह अपने कर्तव्य को जिम्मेदारी की भावना से निभाती है।” तो मैंने झांग हुई से कहा, “मैं इस बहन को अच्छी तरह से जानती हूँ, और मैंने यह नहीं देखा है कि उसकी मानवता खराब है। उसके लिए सामान्य मामलों का कर्तव्य करना ठीक है।” हालाँकि मैं ऊपर से बहुत जिद्दी नहीं दिखी, फिर भी मैं सोच रही थी, “मैं सालों से अगुआ हूँ; क्या मैं सचमुच इस मामले को गलत समझ सकती हूँ? हम वैसा ही करेंगे जैसा मैं कहती हूँ। मैं बस यहाँ तुम्हें इस बारे में बताने आई हूँ। अंत में, फैसला मेरे हाथ में है।” उसके बाद, मैंने सीधे ली ली को सामान्य मामलों के उपयाजक के रूप में नियुक्त कर दिया। और इसी के साथ, मैं घमंड और दंभ की दशा में जीती रही; या तो मेरी बात मानो या भाड़ में जाओ, और मैंने दूसरों की सलाह स्वीकार नहीं की। मुझे लगा कि मैं बहुत अच्छी हूँ, कि जिस तरह से मैं मुद्दों को देखती हूँ उसमें गहराई है। साथ ही, जब मैंने अपनी सहयोगी बहन के साथ काम पर चर्चा करती, मुझे हमेशा लगता था कि मेरा फैसला उससे बेहतर है, और मैं अपने विचारों पर अड़ी रहती थी। इसके बाद, मेरे कर्तव्य के नतीजों में गिरावट आने लगी, और मेरी दशा बद से बदतर होती गई। परमेश्वर के वचनों पर संगति करते समय भी, मैं किसी प्रकाश के बारे में बात नहीं कर सकी। मैं अपना कर्तव्य करते समय हमेशा ऊँघती रहती, और रात 8 या 9 बजे तक मुझे नींद आने लगती। मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है, जैसे परमेश्वर मुझसे अपना मुँह छिपा रहा है। उस समय, मैं अभी भी अपनी इन समस्याओं को पहचानने में असमर्थ थी। कुछ दिनों बाद, मुझे परमेश्वर की ताड़ना और अनुशासन का सामना करना पड़ा।

एक शाम, मैंने गलती से एक रिपोर्ट पत्र खोल लिया। पत्र में लिखा था कि मैंने एक उपदेशक के रूप में अपने समय के दौरान सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं किया था। जब भाई-बहनों ने मुझे बताया कि वांग चेन एक अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं है, तो मैंने इसे स्वीकार नहीं किया, और मैंने वास्तविक स्थिति को समझने की कोशिश नहीं की। जब वांग चेन अगुआ था, उस समय के दौरान, जब भाई-बहनों की दशाएँ खराब होती थीं, तो वह संगति करने और उनकी मदद करने के लिए परमेश्वर के वचन नहीं खोजती थी, बल्कि सत्य का अनुसरण न करने के लिए उन्हें डाँटती थी। उसकी सहयोगी बहन, शिआओशुए ने उसकी समस्याएँ बताईं, लेकिन उसने न केवल इसे स्वीकार नहीं किया, बल्कि भाई-बहनों के बीच शिआओशुए के खिलाफ अपने पूर्वाग्रह भी फैलाए। इस वजह से सभी ने वांग चेन का पक्ष लिया और विश्वास किया कि शिआओशुए एक झूठी अगुआ थी। इससे कलीसिया में अराजकता फैल गई, और भाई-बहनों ने दो महीने से अधिक समय तक सामान्य कलीसियाई जीवन नहीं जिया। उनके जीवन प्रवेश को नुकसान हुआ, और कलीसिया के काम में गंभीर रूप से बाधा और गड़बड़ी हुई। यह रिपोर्ट पत्र पढ़ने के बाद, मैं सिर से पाँव तक काँप रही थी और मेरा दिल धड़क रहा था। पत्र का हर शब्द मेरे दिल में चुभ गया था, और ऐसा लगा जैसे मुझे दोषी ठहराया गया हो; मैं घबराहट और भय की स्थिति में थी। मैंने मन में सोचा, “अब मैं सचमुच गई काम से। क्या उच्च-स्तरीय अगुआ मुझे बरखास्त कर देंगे? परमेश्वर का कार्य अब अपने अंत के करीब है। अगर मुझे इस समय बरखास्त कर दिया गया, तो क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि मैं बेनकाब हो गई हूँ? क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि मेरे बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं होगी?” ऐसा लगा जैसे मेरे सीने पर कोई भारी वजन रखा हो। उन कुछ दिनों में मैंने ठीक से खाना नहीं खाया, और मैं सो नहीं सकी, इस डर से कि अगुआ मुझे कभी भी बरखास्त कर देंगे। जल्द ही, उच्च-स्तरीय अगुआ ने मेरे साथ एक बैठक की व्यवस्था की। यह देखकर कि मुझे खुद की कोई समझ नहीं है, उसने मुझे यह कहते हुए बेनकाब किया और मेरी काट-छाँट की कि मैं बेहद घमंडी हूँ, भाई-बहनों की सलाह नहीं मानती, अपने कर्तव्य में मनमाने ढंग से और जल्दबाजी में व्यवहार करती हूँ, और कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी कर रही हूँ। अंत में, अगुआ ने मुझे बरखास्त कर दिया। बरखास्त होने के बाद, मैं बहुत नकारात्मक थी; मैं परमेश्वर के वचन खाना-पीना या प्रार्थना नहीं करना चाहती थी, और जैसे ही मैंने सोचा कि अगुआ ने मुझे कैसे बेनकाब किया, मैं दिल दहला देने वाली पीड़ा से भर गई। मुझे लगा कि मैं खत्म हो गई हूँ, कि मैं बहुत घमंडी हूँ, और मैं सुधर नहीं सकती। मैंने तो खुद को छोड़ ही दिया था और दुख में डूबी रहती थी, जब मेरे पास समय होता तो मैं आत्म-चिंतन नहीं करती और इसके बजाय दर्द को सुन्न करने के लिए बस टीवी शो देखती थी। मैं एक चलती-फिरती लाश की तरह जीते हुए, उलझे भ्रम में दिन गुजारती थी। कभी-कभी, मैं सोचती, “मैं आखिर परमेश्वर में विश्वास किसलिए कर रही हूँ? क्या मैं सचमुच अब अनुसरण करना बंद कर दूँगी, जब मुझे बरखास्त कर दिया गया है? जिस ऊर्जा के साथ मैं अतीत में अनुसरण करती थी, वह अब सब खत्म क्यों हो गई है? क्या मैं सच्चे दिल से परमेश्वर में विश्वास करने वाली हूँ?” यह सोचकर, मैं परमेश्वर के सामने गई और प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! बरखास्त होने के बाद, मैं नकारात्मकता में पड़ गई हूँ और इस हाल में पहुँच गई हूँ। मैं देखती हूँ कि मेरा आध्यात्मिक कद सचमुच बहुत छोटा है। परमेश्वर, कृपया मुझे इस नकारात्मक दशा से बाहर निकालो।”

एक दिन, अपनी भक्ति के दौरान, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “कुछ लोग सोचते हैं कि जब व्यक्ति न्याय किए जाने, ताड़ना दिए जाने, और काट-छाँट किए जाने का अनुभव कर लेता है, या उसका असली रंग बेनकाब हो चुका होता है, तो उसका परिणाम तय हो जाता है, और उसकी नियति में उद्धार की कोई उम्मीद नहीं होती है। बहुत-से लोग इस मामले को स्पष्टता से नहीं देख सकते, वे चौराहे पर पहुँचकर हिचकिचाने लगते हैं, वे नहीं जानते हैं कि इस मार्ग पर आगे कैसे चला जाए। क्या इसका यह मतलब नहीं है कि उनमें अभी भी परमेश्वर के कार्य के सच्चे ज्ञान की कमी है? क्या जो हमेशा परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर के मनुष्य का उद्धार करने पर संदेह करते हैं, उनमें जरा भी सच्ची आस्था है? सामान्यतया, जब कुछ लोगों को अभी उनकी काट-छाँट करना बाकी होता है और उन्होंने कोई असफलता नहीं झेली होती है, तो उन्हें लगता है कि उन्हें सत्य का अनुसरण करना चाहिए और अपनी आस्था में परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट करना चाहिए। हालाँकि, जैसे ही उन्हें कोई झटका लगता है या कोई मुश्किल सामने आती है, वैसे ही उनकी विश्वासघाती प्रकृति प्रकट हो जाती है, जो देखने में बेहद घिनौनी लगती है। उसके बाद उन्हें भी ये घिनौना महसूस होता है और अंततः अपने परिणाम का फैसला खुद ही सुना देते हैं। वे कहते हैं, ‘मेरे लिए सब खत्म हो चुका है! अगर मैं ऐसी चीजें करने में सक्षम हूँ, क्या इसका यह मतलब नहीं कि मेरा काम तमाम हो गया है? परमेश्वर मुझे कभी नहीं बचाएगा।’ बहुत-से लोग इसी अवस्था में हैं। यहाँ तक कि यह भी कहा जा सकता है कि सभी लोग ऐसे ही हैं। लोग स्वयं के बारे में इस तरह के फैसले क्यों सुनाते हैं? इससे साबित होता है कि वे अभी भी मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का इरादा नहीं समझते हैं। सिर्फ एक बार काट-छाँट किए जाने के कारण तुम लंबे समय तक नकारात्मकता में पड़ सकते हो, जहाँ से बाहर निकलने में तुम असमर्थ रहते हो, इस हद तक कि तुम अपना कर्तव्य भी छोड़ देते हो; यहाँ तक कि एक छोटा-सा परिदृश्य भी तुम्हें इतना डरा सकता है कि तुम सत्य का अब और अनुसरण नहीं कर पाओगे, और फँस जाओगे। यह ऐसा है मानो लोग अपने अनुसरण में सिर्फ तभी तक उत्साही होते हैं जब तक उन्हें लगता है कि वे निष्कलंक और निर्दोष हैं, लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि वे बहुत ज्यादा भ्रष्ट हैं, तो उनका सत्य का अनुसरण करने का मन ही नहीं करता। बहुत-से लोगों ने हताशा और नकारात्मकता के शब्द बोले हैं जैसे, ‘मेरे लिए निश्चित रूप से सब खत्म हो चुका है; परमेश्वर मुझे नहीं बचाएगा। यहाँ तक कि अगर परमेश्वर मुझे क्षमा कर देता है, मैं खुद को माफ नहीं कर सकता; मैं कभी नहीं बदल सकता।’ लोग परमेश्वर का इरादा नहीं समझते, जिससे पता चलता है कि वे अभी भी उसका कार्य नहीं जानते हैं। दरअसल, लोगों के लिए यह स्वाभाविक है कि वे अपने अनुभवों के दौरान कभी-कभार कुछ भ्रष्ट स्वभाव जाहिर करें, या मिलावटी तरीके से, या गैर जिम्मेदारी से, या अनमने ढंग से और बिना लगन के काम करें। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों के पास भ्रष्ट स्वभाव है; यह एक अपरिवर्तनीय सिद्धांत है। अगर ऐसे खुलासे नहीं होते, तो उन्हें भ्रष्ट मनुष्य क्यों कहा जाता? अगर मनुष्य भ्रष्ट न हों, तो परमेश्वर के उद्धार के कार्य का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। अब समस्या यह है कि, चूँकि लोग सत्य नहीं समझते या असल में खुद को नहीं समझते, और चूँकि वे अपनी अवस्था स्पष्टता से नहीं देख सकते, उन्हें प्रकाश देखने के लिए आवश्यकता होती है कि परमेश्वर प्रकाशन और न्याय के अपने वचन व्यक्त करे। वरना, वे संवेदनहीन और मंदबुद्धि बने रहेंगे। अगर परमेश्वर इस तरह से कार्य न करे, तो लोग कभी नहीं बदलेंगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश ने एक गर्म धारा की तरह मेरे दिल को गरमाहट दी, मुझे दिलासा और हिम्मत दी। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मैं निराशा की इस दशा में इसलिए जी रही थी क्योंकि मैं परमेश्वर के कार्य को समझने में नाकाम रही थी। मुझे लगा कि चूँकि मैंने अपनी मनमर्ज़ी से लोगों को चुना और उनका इस्तेमाल किया और कलीसिया के काम में गंभीर विघ्न-बाधा डाली, तो परमेश्वर अब मुझे नहीं बचाएगा। असल में, परमेश्वर इस प्रकाशन का इस्तेमाल मेरी भ्रष्टता को समझने में मेरी मदद करने के लिए कर रहा था। तथ्यों के प्रकाशन और इस काट-छाँट के बिना, मैं यह नहीं देख पाती कि मेरा घमंडी स्वभाव कितना गंभीर था, और कि मैंने परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले कितने सारे काम किए थे। अब, मुझे बरखास्त कर दिया गया था, और यह परमेश्वर की ओर से मेरी सुरक्षा थी, जिससे मैं तुरंत बुराई करना बंद कर सकूँ और आत्म-चिंतन, पश्चात्ताप और बदलाव कर सकूँ। लेकिन मैंने फिर भी परमेश्वर को गलत समझा, यह सोचते हुए कि वह मुझे बेनकाब कर रहा है और हटा रहा है, और इसलिए मैं नकारात्मकता में जीती रही और खुद को निराशा में छोड़ दिया। मैंने परमेश्वर को बहुत गहरी चोट पहुँचाई थी! मैं परमेश्वर के प्रति बेहद ऋणी महसूस कर रही थी, और इसलिए मैंने मन ही मन खुद से कहा, “चाहे मैं कितनी भी भ्रष्ट क्यों न हूँ, मुझे फिर भी ऊपर उठने की पूरी कोशिश करनी है। मैं और अधिक नकारात्मकता में नहीं डूब सकती।” उसके बाद, मैंने सामान्य रूप से परमेश्वर के वचन खाए और पीए और हर दिन उससे प्रार्थना की, और धीरे-धीरे, मेरी दशा में सुधार होने लगा।

उस दौरान, मैंने इस पर भी विचार किया कि मैं क्यों असफल हुई और ठोकर खाई। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “‘स्‍वेच्‍छाचारी और उतावला’ होने का क्‍या अर्थ है? इसका अर्थ है कि किसी मसले से सामना होने पर सोचने या खोजने की प्रक्रिया के बगैर उस तरह का आचरण करना जो तुम्हें ठीक दिखता हो। किसी और का कहा हुआ कुछ भी तुम्हारे दिल को नहीं छू सकता, न ही तुम्हारे मन को बदल सकता है। यहाँ तक कि जब तुम्हारे साथ सत्य पर संगति की जाती है तो तुम उसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हो। तुम बस अपनी ही रायों पर अड़े रहते हो, दूसरे लोग जो कहते हैं वह सही होने पर भी सुनने से इनकार कर देते हो, खुद को सही मानते हो और अपने ही विचारों से चिपके रहते हो। भले ही तुम्हारे विचार सही हों, तुम्हें दूसरे लोगों की राय पर भी ध्यान देना चाहिए। क्या इन मतों पर बिल्कुल ही विचार न करना अत्यधिक आत्मतुष्ट होना नहीं है? जो लोग अत्यधिक आत्मतुष्ट और मनमाने होते हैं, उनके लिए सत्य को स्वीकारना आसान नहीं होता। मान लो तुम कुछ गलत करते हो और दूसरे यह कहते हुए तुम्हारी आलोचना करते हैं, ‘तुम सत्य के अनुसार कार्य नहीं कर रहे हो!’ तो तुम जवाब देते हो, ‘भले ही मैं इसे सत्य के अनुसार नहीं कर रहा, फिर भी मैं चीजें ऐसे ही करूँगा’ और फिर तुम जाकर कोई ऐसा कारण ढूँढ़ लेते हो जिससे उन्हें लगने लगे कि तुम जो कर रहे हो वह उचित है। वे यह कहते हुए तुम्हें फटकार लगाते हैं, ‘तुम्हारे कार्यकलाप गड़बड़ी पैदा करते हैं और यह कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाएगा,’ और न केवल तुम नहीं सुनते, बल्कि बहस भी करते रहते हो : ‘मुझे लगता है कि यही सही तरीका है, इसलिए मैं चीजें इसी तरह करूँगा।’ यह कौन-सा स्वभाव होगा? (अहंकार।) यह अहंकार है। अहंकारी स्वभाव तुम्हें मनमौजी बनाता है। तुममें अहंकारी प्रकृति है तो तुम दूसरों की बात न सुनकर स्‍वेच्‍छाचारी और लापरवाह ढंग से व्यवहार करते हो(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर ने मेरे ही व्यवहार को उजागर किया। मैं वैसी ही थी जैसा उसने वर्णन किया था: घमंडी स्वभाव वाली, जो मनमाने ढंग से और जल्दबाजी में काम करती है। मुझे लगा कि लोगों को चुनने और उनका इस्तेमाल करने के मामले में मैं काफी अनुभवी थी, और सिद्धांतों के आधार पर लोगों का भेद पहचानना जानती थी, इसलिए मैं भाई-बहनों के सुझाव सुनने को तैयार नहीं थी, यह सोचते हुए कि मैं सही थी और किसी को परखने में गलती नहीं करूँगी। कलीसिया अगुआओं को चुनने के मामले में, झांग लिन और मेरी सहयोगी बहन ने मुझे याद दिलाया कि वांग चेन हमेशा दिखावा करती थी और अपनी गवाही देती थी, उसे अपनी बरखास्तगी की कोई सच्ची समझ नहीं मिली, और वह अगुआ बनने के लिए अनुपयुक्त थी। लेकिन, मैंने बहनों की सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया, यह मानते हुए कि मैं कई सालों से अगुआ थी और लोगों को आँकने में बेहतर थी। मैंने न केवल मामले की और जाँच-पड़ताल नहीं की, न ही उसे समझा, बल्कि बहनों का खंडन भी किया, चाहती थी कि वे वैसा ही करें जैसा मैंने कहा। क्योंकि मैं घमंडी और आत्मतुष्ट थी, अपने विचारों पर अड़ी रही और मनमाने ढंग से काम किया, वांग चेन एक अगुआ बन गई, जिससे कलीसिया के जीवन में गंभीर विघ्न-बाधा आई। साथ ही, ली ली को पदोन्नत करने के संबंध में, झांग हुई ने मुझे बताया कि उसे अभी-अभी बरखास्त किया गया था और उसे खुद की कोई समझ नहीं थी, और यह भी कि उसकी मानवता अच्छी नहीं थी, वह दूसरों की सलाह नहीं मानती थी, और वह सामान्य मामलों के उपयाजक होने के लिए अनुपयुक्त थी। हालाँकि मैं जानती थी कि झांग हुई की बात में दम था, मुझे लगा कि ली ली को एक कर्तव्य सौंपना उसकी दशा को जल्दी सुधारने में मददगार होगा। मैंने यह भी सोचा कि मैं उसे काफी अच्छी तरह से जानती थी, और इसलिए मैंने उसे पदोन्नत करने की ज़िद की। लोगों को चुनने और उनका इस्तेमाल करने के इन दो मामलों में, दोनों बार भाई-बहनों ने मुझे कुछ सुझाव दिए, लेकिन मैंने उनकी एक भी बात नहीं सुनी। नतीजतन, मैंने कलीसिया के काम में गंभीर विघ्न-बाधाएँ पैदा कीं, और भाई-बहनों ने दो महीने से अधिक समय तक सामान्य कलीसियाई जीवन नहीं जिया। यह मेरे घमंडी स्वभाव के अनुसार काम करने, मनमाने ढंग से व्यवहार करने, और दूसरों की सलाह न मानने का नतीजा था। यह समझकर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, अगर मेरी शिकायत न की जाती और मुझे बरखास्त करके बुराई करने से न रोका जाता, तो पता नहीं मैंने और कितने बुरे काम किए होते। परमेश्वर, मुझे बेनकाब करने के लिए आपका धन्यवाद; मैं पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ।”

बाद में, मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े और अपने भ्रष्ट स्वभाव के बारे में कुछ समझ हासिल की। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “यदि तुम्हारा स्वभाव अहंकारी और दंभी है, तो तुम्हें परमेश्वर का विरोध न करने को कहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, तुम खुद को रोक नहीं सकते, यह तुम्हारे नियंत्रण के बाहर है। तुम ऐसा जानबूझकर नहीं करोगे; तुम ऐसा अपनी अहंकारी और दंभी प्रकृति के प्रभुत्व के अधीन करोगे। तुम्हारे अहंकार और दंभ के कारण तुम परमेश्वर को तुच्छ समझोगे और उसे ऐसे देखोगे जैसे कि उसका कोई महत्व ही न हो, उनके कारण तुम खुद को ऊँचा उठाओगे, निरंतर खुद का दिखावा करोगे; वे तुम्हें दूसरों का तिरस्कार करने के लिए मजबूर करेंगे, वे तुम्हारे दिल में तुम्हें छोड़कर और किसी को नहीं रहने देंगे; वे तुम्हारे दिल से परमेश्वर का स्थान छीन लेंगे, और अंततः तुम्हें परमेश्वर के स्थान पर बैठने और यह माँग करने के लिए मजबूर करेंगे और चाहेंगे कि लोग तुम्हें समर्पित हों, तुमसे अपने ही विचारों, ख्यालों और धारणाओं को सत्य मानकर पूजा करवाएँगे। लोग अपनी अहंकारी और दंभी प्रकृति के प्रभुत्व के अधीन इतनी बुराई करते हैं!(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य का अनुसरण करके ही व्यक्ति स्वभाव में बदलाव ला सकता है)। “अहंकार मनुष्‍य के भ्रष्‍ट स्‍वभावों का मूल कारण है। लोग जितने ज्यादा अहंकारी होते हैं, उतने ही ज्यादा अविवेकी होते हैं और वे जितने ज्यादा अविवेकी होते हैं, वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने के लिए उतने ही प्रवृत्त होते हैं। यह समस्‍या कितनी गंभीर है? चूँकि लोगों के अहंकारी स्‍वभाव होते हैं, न केवल वे बाकी सभी को अपने से नीचा मानते हैं, बल्कि, सबसे बुरा यह है कि वे परमेश्वर के प्रति कोई सम्मान नहीं रखते और उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल भी नहीं होता। भले ही लोग परमेश्वर में विश्‍वास करते और उसका अनुसरण करते हैं, फिर भी वे उससे परमेश्वर मानकर कतई पेश नहीं आते हैं। उन्‍हें हमेशा लगता है कि उनके पास सत्‍य है और वे अपने बारे में बहुत ऊँचा सोचते हैं। अहंकारी स्वभाव का यही सार और जड़ है और यह शैतान से आता है। इसलिए, अहंकार की समस्‍या का समाधान अनिवार्य है। यह भावना कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ—एक तुच्‍छ मसला है। महत्‍वपूर्ण बात यह है कि एक व्‍यक्ति का अहंकारी स्‍वभाव उसे परमेश्वर, उसकी संप्रभुता और उसकी व्‍यवस्‍था के प्रति समर्पण करने से रोकता है; इस तरह का व्‍यक्ति हमेशा दूसरों पर नियंत्रण स्‍थापित करने व सत्ता के लिए परमेश्वर से होड़ करने की ओर प्रवृत्‍त होता है। इस तरह के व्‍यक्ति के पास रत्ती भर भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता है, परमेश्वर से प्रेम या उसके प्रति समर्पण करने की तो बात ही क्या की जाए। जो लोग अहंकारी और दंभी होते हैं, खास तौर से वे जो इतने घमंडी होते हैं कि अपना विवेक खो बैठते हैं, वे परमेश्वर पर अपने विश्वास में उसके प्रति समर्पण नहीं कर पाते, यहाँ तक कि अपनी ही बड़ाई कर गवाही देते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर का प्रतिरोध सबसे अधिक करते हैं और उनके पास बिल्कुल भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि घमंडी स्वभाव वाले लोग ऐसे काम करने में सक्षम होते हैं जो विघ्न और गड़बड़ी पैदा करते हैं और सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं; वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने में सक्षम होते हैं। मैं सालों से परमेश्वर में विश्वास करती थी और अपने कर्तव्य में कुछ नतीजे दिए थे, और इसलिए मैंने इन चीजों को अपनी पूँजी मान लिया। मुझे लगा कि मेरे पास थोड़ी सत्य वास्तविकता है, कि मैं प्रतिभाशाली हूँ, और मैं बाकी सबसे बेहतर हूँ। मुझे खुद पर बहुत अधिक विश्वास था, यह सोचते हुए कि मैं हर मुद्दे को देखने में सही थी। उन दो बार जब मैंने लोगों को चुना और उनका इस्तेमाल किया, परमेश्वर ने भाई-बहनों का इस्तेमाल करके मुझे बार-बार याद दिलाया कि इन लोगों का इस्तेमाल करना सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है, लेकिन मैंने उन्हें बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लिया। मुझे लगा कि मैं सत्य को समझती हूँ और लोगों को आँकने में अच्छी हूँ, और मैंने अपनी मनमर्ज़ी चलाने पर ज़ोर दिया, अपने विचारों के अनुसार लोगों को चुना और उनका इस्तेमाल किया और सत्य सिद्धांतों की अवहेलना की। मुझे लगा कि हर कोई मुझसे कम है और मैंने परमेश्वर को अपने दिल में नहीं रखा; मेरे घमंड की कोई सीमा नहीं थी। अतीत में अपना कर्तव्य करते समय मुझे जो कुछ नतीजे मिले, वे इसलिए नहीं थे कि मेरी काबिलियत अच्छी थी और मैं सत्य को समझती थी। असल में, जब मैंने पहली बार अपना कर्तव्य करना शुरू किया, तो बहुत कुछ ऐसा था जो मैं नहीं समझती थी। कठिनाइयों का सामना करते समय मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उस पर भरोसा किया, उसके इरादे की खोज की और सिद्धांतों के अनुसार काम किया। इससे मुझे पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन मिला, और मैंने अपने कर्तव्य में कुछ नतीजे हासिल किए। लेकिन, मैंने पवित्र आत्मा के कार्य के माध्यम से प्राप्त नतीजों को अपनी पूँजी मान लिया, हमेशा यह सोचते हुए कि मैं सत्य को समझती हूँ। मैंने भाई-बहनों की सलाह नहीं मानी और न ही सत्य सिद्धांतों की खोज की, मनमाने ढंग से और जल्दबाजी में काम किया और काम में विघ्न और गड़बड़ियाँ पैदा कीं, पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया और बरखास्त हो गई। यह मेरी असफलता का मूल कारण था। मैंने सोचा कि कैसे, जब मसीह हर सभा में सत्य की संगति करता था, तो अपनी बात खत्म करने के बाद, वह भाई-बहनों को बोलने का मौका देता था, उन्हें सवाल पूछने की अनुमति देता था, और अगर कोई अच्छा सुझाव देता, तो मसीह उन्हें स्वीकार करता और फिर एक-एक करके उनका जवाब देता। मसीह के विनम्रता और अदृश्यता के साथ-साथ सुंदरता और अच्छाई के सार को देखकर, मुझे और भी शर्मिंदगी महसूस हुई। मैं कुछ भी नहीं थी; मैंने कुछ धर्म-सिद्धांत समझे और कुछ कार्य अनुभव प्राप्त किया और फिर किसी की नहीं सुनी, “मेरी बात मानो नहीं तो भाड़ में जाओ” वाले रवैये से काम किया। अगर उस समय मैं खुले दिमाग से भाई-बहनों की सलाह सुन पाती और सत्य को स्वीकार करने का रवैया रखती, तो मैं अपनी मर्जी से लोगों को नहीं चुनती और उनका इस्तेमाल नहीं करती और न ही काम को इतना नुकसान पहुँचाती। यह सोचकर, मुझे बहुत पछतावा हुआ। परमेश्वर ने मुझे बुराई करने से रोकने के लिए भाई-बहनों द्वारा मेरी शिकायत करवाने और मुझे बरखास्त करवाने का इस्तेमाल किया; यह परमेश्वर की ओर से मेरी सुरक्षा थी। उसकी सुरक्षा के बिना, मेरे घमंडी स्वभाव को देखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता कि मैंने किस तरह के बुरे काम किए होते। अब, परमेश्वर ने मुझे चिंतन करने और पश्चात्ताप करने का मौका दिया था। मुझे लगा कि परमेश्वर का प्रेम बहुत महान है, और अपने दिल में, मैंने खुद से कहा, “भविष्य में, चाहे मैं कुछ भी करूँ, मुझे और अधिक खोजना है और परमेश्वर का भय मानने वाला दिल रखना है; मैं सिर्फ अपने विचारों के आधार पर मनमाने ढंग से काम नहीं कर सकती।”

2020 में, मुझे एक बार फिर कलीसिया अगुआ चुना गया। उस समय, हमारी कलीसिया को सिंचन उपयाजक के रूप में सेवा करने के लिए किसी की जरूरत थी। मेरी सहयोगी बहन ने कहा कि बहन जेनशिन अपने कर्तव्य में सक्रिय थी, उसका दिल शुद्ध था, वह एक सही व्यक्ति थी, और उसे विकसित किया जा सकता था। यह सुनने के बाद, मैंने मन में सोचा, “मैं इस बहन से कुछ बार मिल चुकी हूँ। उसकी संगति काफी उथली है, और वह अपनी भ्रष्टता पर चर्चा नहीं करती। क्या इस तरह का कोई व्यक्ति सिंचन उपयाजक हो सकता है?” इस समय, दो अन्य बहनों ने भी कहा कि हालाँकि जेनशिन काम करते समय सक्रिय थी, लेकिन सत्य पर संगति करने और समस्याओं को हल करने के पहलुओं में उसमें कुछ कमी थी। उसके बाद, मुझे और भी यकीन हो गया कि मैंने इसका सही आकलन किया है, कि जेनशिन सिंचन उपयाजक होने के लिए उपयुक्त नहीं थी। जब मेरे मन में यह विचार आया, मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से घमंडी और आत्मतुष्ट हो रही हूँ। मैंने सोचा कि कैसे मैंने अतीत में अपने विचारों पर अड़े रहने के कारण अपराध किया था, और मुझे लगा कि मैं अब और अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार नहीं जी सकती, और मुझे उन लोगों से खोजना चाहिए जो सत्य को समझते हैं। मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “जब दूसरे लोग अपनी भिन्न राय सामने रखते हैं—तुम किस तरह से अभ्यास कर सकते हो कि तुम मनमाने या जल्दबाज तरीके से काम न करो? पहले तुम्हें विनम्र होना चाहिए, जिसे तुम सही समझते हो उसे किनारे रख दो, और हर किसी को संगति करने दो। भले ही तुम मानते हो कि तुम सही हो, तुम्‍हें अपने ही नजरियों पर नहीं अड़ना चाहिए। यह प्रगति है। यह सत्‍य खोजने के रवैये को दिखाता है और स्‍वयं को नकारने और परमेश्वर के इरादे पूरे करने के रवैये को दिखाता है। जैसे ही तुम यह रवैया अपनाते हो और साथ ही तुम अपनी रायों से चिपके नहीं रहते, तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए, परमेश्वर से सत्य खोजना चाहिए और फिर परमेश्वर के वचनों में एक आधार ढूँढ़ना चाहिए और यह निर्धारित करना चाहिए कि परमेश्वर के वचनों के आधार पर कैसे आचरण किया जाए। यही अभ्यास का सबसे उपयुक्त और सटीक तरीका है। जब लोग सत्य की तलाश करते हैं और कोई ऐसी समस्या रखते हैं जिस पर सभी लोग संगति करें और सत्य खोजें, तभी पवित्र आत्मा प्रबुद्धता प्रदान करता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मुझे अभ्यास का मार्ग मिल गया। चूँकि मेरी बहन ने एक अलग सुझाव दिया था, इसलिए मुझे पहले अपने विचारों को दरकिनार कर सत्य की खोज करनी थी। तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरी सहयोगी ने कहा कि जेनशिन सिंचन उपयाजक के रूप में सेवा करने में सक्षम है, लेकिन मुझे लगता है कि वह उपयुक्त नहीं है। मैं जानती हूँ कि मेरा स्वभाव घमंडी है और हो सकता है कि मैंने इसका सही आकलन न किया हो। कृपया मुझे खुद को छोड़ने और इस तरह से काम करने में मार्गदर्शन करें जो सिद्धांतों के अनुरूप हो और कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद हो।” हमारी सभा में, संयोग से उपदेशक वहाँ थे, और मैंने उपदेशक से मार्गदर्शन माँगा। उपदेशक ने हमारे साथ संगति की और कहा कि हम इस आधार पर निर्णय ले सकते हैं कि अधिकांश भाई-बहनों ने जेनशिन का आकलन कैसे किया। मैंने पूछताछ की और पता चला कि सभी को लगता था कि जेनशिन का चरित्र अच्छा है, वह धैर्यवान है, और दूसरों के साथ बातचीत करते समय वह शुद्ध रूप से खुद को खोल सकती थी। उन्होंने कहा कि हालाँकि उसका जीवन प्रवेश थोड़ा उथला था, लेकिन उसे अपने कर्तव्य में जिम्मेदारी का एहसास था। उस समय, कलीसिया में कर्मचारियों की कमी थी, और कोई अधिक उपयुक्त व्यक्ति उपलब्ध नहीं था। इसलिए उसे सिंचन उपयाजक के रूप में चुनना उचित था। भाई-बहनों के आकलन के आधार पर, हमने अंततः जेनशिन को सिंचन उपयाजक के रूप में चुना। इसके बाद, जब मैं जेनशिन के साथ सहयोगी बनी, मैंने देखा कि जब उस पर मामले पड़ते थे तो वह अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचानने में सक्षम थी, और उसमें न्याय की कुछ भावना भी थी। शुक्र है, मैंने पहले सभी की सलाह सुनी थी और अपने विचारों पर अड़ी नहीं रही। आने वाले दिनों में, जब मैंने भाई-बहनों के साथ मामलों पर चर्चा की, और मुझे लगा कि मैं सही हूँ या दूसरों ने अलग-अलग सुझाव दिए, मैंने सचेत रूप से परमेश्वर से प्रार्थना की और खुद से विद्रोह किया, खोजते हुए दिल से भाई-बहनों के सुझाव सुने। इस तरह से अभ्यास करते समय, मैंने देखा कि उनके सुझावों में अक्सर कुछ सुनने लायक होता था जो मुझे यह भी दिखाता था कि मुझमें क्या कमी है। इससे मुझे अपने कर्तव्य के प्रदर्शन में बहुत मदद मिली। मैं जो थोड़ा बदल पाई हूँ, वह सब परमेश्वर के वचनों का नतीजा है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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