प्रश्न 2: भाई डिंग ने अभी कुछ अराजक कामों के बारे में बात की थी, इसलिए जब आप कहते हैं कि अराजकता बढ़ रही है, तो आपका मतलब ऐसे कौन से ख़ास कामों से होता है?

उत्तर: अराजकता बढ़ने का अक्‍सर अर्थ होता है कि वे पादरी, एल्डर्स और अगुवा परमेश्‍वर की इच्छा के विपरीत जाकर अपनी ख़ुद की राह पर चल रहे हैं। वे परमेश्‍वर की आज्ञाओं का अनुसरण नहीं करते, और लोगों को बंधन में जकड़ने, नियंत्रण में रखने और धोखा देने के लिए बाइबल की गलत व्याख्या करते हैं; उन्हें बाइबल संबंधित धर्मशास्त्र में डुबो कर, परमेश्‍वर से दूर ले जाते हैं, और कलीसिया को धार्मिक कर्मकांड की जगह में बदलते हुए, अपने दायित्‍वों और कर्तव्यों को वे अपनी प्रतिष्ठा और कमाई का जरिया समझने लगते हैं, जो कलीसिया में परमेश्‍वर का विरोध करने वाले कई पाखण्डी कार्यों की ओर ले जाता है। कई लोगों ने ख़ुद को अविश्वासियों के रूप में प्रकट किया है। प्रभु के मार्ग से विचलित होकर, वे सांसारिक खुशियों के पीछे भागते हैं, और तो और, वे परमेश्‍वर के वचनों को सिर्फ़ परी कथाओं की तरह दूसरों तक पहुंचा देते हैं। वे बिल्कुल भी ये नहीं मानते कि प्रभु यीशु उपदेश देने और कार्य करने के लिए फ़िर से आयेंगे। ख़ास करके ऐसे धार्मिक अगुवा जिनके दिलों में परमेश्‍वर के प्रति कोई आदरभाव नहीं हैं, और ऐसे सभी तरह के बुरे इंसान और अविश्वासी लोग, जो नहीं चाहते कि सत्य उजागर किया जाए। वे खुले आम बुरे काम करते हैं, अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य का खंडन करते हैं और सत्य को अस्वीकारते हैं। ये धार्मिक पादरी और एल्डर्स बाइबल संबंधित ज्ञान और धर्मशास्त्र का उपदेश देते हैं। वे अपनी ख़ुद की प्रतिष्ठा, प्रभाव और कमाई की रक्षा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे प्रभु के मार्ग का अनुसरण करने या प्रभु के वचनों का प्रचार करने से इनकार करते हैं। वे बिल्‍कुल भी प्रभु की प्रशंसा नहीं करते या उनकी गवाही नहीं देते हैं। उसकी ज़गह वे परमेश्‍वर के वचन के सत्य के साथ विश्वासघात करने वाले उपदेश देते हैं, और लोगों को धोखा देने और उन्‍हें काबू में करने के लिए हठपूर्वक फरीसियों की तरह परमेश्‍वर के विरोध का मार्ग अपना कर, वे भ्रांतियों और इंसानी परम्पराओं का इस्तेमाल करते हैं। कई धर्मपरायण पादरी और एल्डर्स भी सांसारिक सुखों के पीछे भागते हैं, वे फैशन, धन की लालसा और पद के लिए संघर्ष करते हैं। वे शुध्द रूप से सांसारिक मनुष्य हैं, पूरी तरह से अविश्वासी। सबसे ज़्यादा गुस्‍सा दिलाने वाली बात यह है कि ये धार्मिक अगुवा, पादरी, और एल्डर्स विश्वासियों को धोखा देने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य की निराधार निंदा करते हैं, यहां तक कि वे सीसीपी की सत्‍ता के साथ गठजोड़ करके परमेश्‍वर के विरोध में शैतान के साथ खड़े होते हैं और परमेश्‍वर को फ़िर से सूली पर चढ़ाते हैं, जिसके लिए परमेश्‍वर उनसे नफरत करते हैं और उन्‍हें शापित करते हैं। ये अराजक काम हम सभी के सामने बिल्कुल साफ तथ्य हैं। ये धार्मिक जगत के साथ सरासर धोखे से कुछ कम नहीं हैं। और इन अराजक कृत्यों में बढ़ोत्तरी के कारण, कई विश्वासियों का विश्वास एवं प्रेम ठंडा पड़ गया है और वे नकारात्मक और कमज़ोर हो गए हैं। चूंकि इन धार्मिक अगुवाओं ने अपना ख़ुद का मार्ग चुन लिया है, और वे अब परमेश्‍वर के मार्ग का अनुसरण नहीं करते हैं, पवित्र आत्मा का काम रोक दिया गया है, और धार्मिक स्थलों का परित्याग कर दिया गया है। पवित्र आत्मा का कार्य उन लोगों के पास आ गया है जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कार्य को स्वीकार करते हैं। और इन बातों में हम देखते हैं कि परमेश्‍वर का धार्मिक स्वभाव मनुष्य की गलतियों के प्रति असहनशील है।

हमने अभी-अभी धार्मिक दुनिया के वीरान हो जाने के कुछ कारणों पर सहभागिता की। अब मैं अपने ख़ुद के दृष्टिकोण और विचार को धार्मिक दुनिया के वीरान होने के मूल कारणों से जोड़ना चाहूंगी। चलिए पहले हम सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन के दो अंशों को पढ़ते हैं, जो धर्म में वीरानी के कारणों को बेहतर ढंग से समझने में आपकी मदद करेंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर इस तथ्य को पूर्ण करेगा : वह संपूर्ण ब्रह्मांड के लोगों को अपने सामने आने के लिए बाध्य करेगा, और पृथ्वी पर परमेश्वर की आराधना करवाएगा, और अन्य स्थानों पर उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, और लोगों को सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर किया जाएगा। यह यूसुफ की तरह होगा : हर कोई भोजन के लिए उसके पास आया, और उसके सामने झुका, क्योंकि उसके पास खाने की चीज़ें थीं। अकाल से बचने के लिए लोग सच्चा मार्ग तलाशने के लिए बाध्य होंगे। संपूर्ण धार्मिक समुदाय गंभीर अकाल से ग्रस्त होगा, और केवल आज का परमेश्वर ही मनुष्य के आनंद के लिए हमेशा बहने वाले स्रोत से युक्त, जीवन के जल का स्रोत है, और लोग आकर उस पर निर्भर हो जाएँगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सहस्राब्दि राज्य आ चुका है)। "परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को समस्त ब्रह्माण्ड भर में अपने कार्य का एकमात्र केंद्रबिंदु बनाया है। उसने तुम लोगों के लिए अपने हृदय का रक्त तक निचोड़कर दे दिया है; उसने ब्रह्माण्ड भर में पवित्रात्मा का समस्त कार्य पुनः प्राप्त करके तुम लोगों को दे दिया है। इसी कारण से तुम लोग सौभाग्यशाली हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने पहले ही धार्मिक जगत में अकाल के कारण को स्पष्ट कर दिया है। इससे हमें परमेश्‍वर की सर्वव्यापकता और बुद्धिमत्‍ता का पता चलता है। परमेश्‍वर ने उन लोगों का त्याग नहीं किया है जो सत्‍य से प्रेम करते और उनके प्रकटन की लालसा रखते हैं। परमेश्‍वर ने अकाल के आगमन का इस्तेमाल उन्हें सच्चे मार्ग को तलाशने के लिए, और उन्हें कलीसिया के वीराने में परमेश्‍वर की इच्छा और परमेश्‍वर के पदचिन्‍हों को खोजने को मज़बूर करने के लिए किया है। उन्होंने प्रत्येक पंथ और संप्रदाय में, जो लोग सत्‍य से प्रेम करते हैं और वाकई परमेश्‍वर में विश्‍वास करते हैं, उन्‍हें अपने सिंहासन के सम्मुख आने में सहायता करने के लिए किया है। इसलिए परमेश्वर कहते हैं "परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को समस्त ब्रह्माण्ड भर में अपने कार्य का एकमात्र केंद्रबिंदु बनाया है।" इससे हम समझ सकते हैं कि पवित्र आत्मा का कार्य उन लोगों के पास आ गया है जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कार्य को स्वीकार करते हैं। और यह इस तथ्य का प्रमाण है कि परमेश्‍वर उन सभी लोगों के लिए हैं जो उनके सिंहासन के सामने इसलिये आते हैं ताकि वे ऐसे बन सकें जो परमेश्‍वर के दिल के करीब आना चाहते हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें आपदा आने से पहले परमेश्‍वर द्वारा विजेता बना दिया जाएगा, और इस तरह मेमने के साथ शादी की दावत में शामिल होने वाली बुद्धिमान कुंवारियों के बारे में प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों की पुष्‍टि होगी। मूर्ख कुंवारियां, जिन्‍हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी कलीसियाएं कैसे वीरान या अंधेरी बन गई हैं, वे वहीं बनी रहती हैं और मौत का इंतज़ार करती हैं, और वे मिस्र से बाहर ले जाए गए इसराइलियों की तरह हैं जो बीहड़ में मारे गए। पूरा धार्मिक जगत ही बर्बादी का मुकाम बन चुका है, खास तौर पर, क्योंकि धार्मिक जगत के अगुवाओं ने फरीसियों के मार्ग का अनुसरण किया और प्रभु के इरादे के साथ धोखा किया। वे परमेश्‍वर की इच्छा का पालन नहीं करते, प्रभु की आज्ञाओं का पालन नहीं करते और बहुत पहले परमेश्‍वर द्वारा त्याग दिए गए थे। अंत के दिनों के देहधारी परमेश्‍वर के व्‍यक्‍त सत्‍य से, उनका मसीह-विरोधी स्वभाव और सार उजागर हो गया है, और वे उन लोगों की तरह बन गये हैं, जिन्होंने परमेश्‍वर को फ़िर से सूली पर चढ़ाया है, और जिन्हें परमेश्‍वर ने शाप दिया है। धार्मिक जगत को अकाल का सामना करवाने में परमेश्‍वर का क्या उद्देश्य है? वे लोगों को सही मार्ग की तलाश करने के लिए मज़बूर करना चाहते हैं। सिर्फ़ वे लोग जो परमेश्‍वर की वाणी को खोजना चाहते हैं, और जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें फ़िर से पवित्र आत्मा का कार्य, उनके सिंहासन से प्रवाहित होने वाली सजीव जीवन जल की धारा का पोषण मिलता है, और अंत में वे बचा लिए जाएंगे और उन्हें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी। ये वे लोग हैं, जिनके बारे में प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वे स्वर्ग के राज्य में पकड़े जाएँगे। अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, शुद्धिकरण और उद्धार से इनकार करते हैं, तो हमें सदा के लिए त्याग दिया जाएगा और हटा दिया जाएगा। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं, "यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का प्रतिरोध करोगे, यदि तुम अंत के दिनों के मसीह को ठुकराओगे, तो तुम्हारी ओर से परिणाम भुगतने वाला कोई अन्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, इस दिन के बाद तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का दूसरा अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम अपने प्रायश्चित का प्रयास भी करते हो, तब भी तुम दोबारा कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देखोगे। क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं है, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा। और इसलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने जहरीले दाँत मत दिखाओ, या छिछोरी आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुम्हें जीवन दिला सकता है, और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें पुनः जन्म लेने नहीं दे सकता, और न ही तुम्हें दोबारा परमेश्वर का चेहरा देखने दे सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

"सिंहासन से बहता है जीवन जल" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 1: पिछले कुछ सालों में हमने हमारे कलीसीया में बढ़ती हुई वीरानी को महसूस किया है। हमने अपने शुरुआती विश्वास और प्यार को खो दिया है, हम कमज़ोर और ज्‍़यादा नकारात्मक बन गए हैं। यहां तक कि कभी-कभी हम उपदेशक भी खोया-खोया महसूस करते हैं, और नहीं जानते कि किस बारे में बात करनी है। हमें लगता है कि हमने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है। हमने पवित्र आत्मा के कार्य वाली किसी कलीसिया के लिए भी हर जगह खोज की। लेकिन जिस भी कलीसिया को हमने देखा, वह हमारी कलीसिया की तरह ही वीरान है। इतनी सारी कलीसियाएं भूखी और वीरान क्यों हैं?

अगला: प्रश्न 1: प्रभु का वादा है कि वे फिर से हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए आएंगे, और फिर भी आप कहते हैं कि प्रभु अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए पहले ही देहधारी हो चुके हैं। बाइबल साफ तौर पर यह भविष्यवाणी करती है कि प्रभु सामर्थ्य और महान महिमा के साथ बादलों पर देहधारी होंगे। यह उस बात से काफ़ी अलग है जिसकी आपने गवाही दी थी, कि प्रभु पहले ही देहधारण कर चुके हैं और गुप्त रूप से लोगों के बीच देहधारी हो चुके हैं।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

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