104 मैं परमेश्वर की उपस्थिति में रहता हूँ
1 मैं हर दिन परमेश्वर के वचनों पर चिंतन-मनन करते हुए उसकी उपस्थिति में शांत रहता हूँ। अपने आप को जाँचते हुए मैं देखता हूँ कि मेरे विचारों और वाणी से अभी भी कई भ्रष्टताएँ प्रवाहित होती हैं। मैं अकसर अपने बोलने और काम करने में आडंबर करता हूँ, ताकि अन्य लोग मेरी ओर देखें। मैं हमेशा दूसरों पर हावी होना चाहता हूँ, मैं दंभी और अभिमानी हूँ, और मैं एक इंसान की सदृशता को नहीं जीता। परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकटन का सामना करके मुझे बहुत शर्मिंदगी होती है। देखने में ऐसा लग सकता है कि मैं अच्छा व्यवहार करता हूँ, लेकिन मेरा स्वभाव नहीं बदला। मेरे पास कोई वास्तविकता नहीं है, बल्कि मैं अभी भी बहुत अभिमानी हूँ, जिससे परमेश्वर ने लंबे समय से घृणा की है। मुझे इस बात से नफरत है कि मैं इतनी गहराई से भ्रष्ट हो चुका हूँ, और मैं परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करना चाहता हूँ।
2 मैं परमेश्वर की उपस्थिति में शांत हूँ और सभी चीजों में उसकी इच्छा की तलाश करता हूँ। मैं परमेश्वर के वचनों में उसके साथ संवाद करता हूँ, सत्य को समझता हूँ और मेरा हृदय प्रदीप्त हो जाता है। लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते हुए मैं जो गलतफहमियाँ पाल लेता हूँ, उससे पता चलता है कि मेरे पास कोई वास्तविकता नहीं है। मैं हमेशा शिकायत करता हूँ, अपनी मासूमियत का दावा करता हूँ और उसकी सफाई देने की कोशिश करता हूँ, और मैं जरा भी आज्ञाकारी नहीं हूँ। सत्य की समझ हासिल कर मैं देखता हूँ कि इंसान को शुद्ध करने का परमेश्वर का काम बहुत वास्तविक है। लोगों की धारणाओं में कोई बात जितनी अधिक असंगत होती है, उसमें तलाश करने के लिए उतना ही अधिक सत्य निहित होता है। परमेश्वर के वचन का अनुभव करना और वास्तविकता में प्रवेश करना वास्तव में परमेश्वर के आमने-सामने होना है। मैं परमेश्वर के प्रेम का अनुभव करता हूँ, मैं अब भ्रमित या विवश नहीं हूँ।
3 मैं परमेश्वर की उपस्थिति में रहता हूँ और हर समय उसकी जाँच-पड़ताल स्वीकार करता हूँ। एक के बाद एक, मेरे विचार और कार्य परमेश्वर के वचन के न्याय और शोधन को स्वीकार करते हैं। जब मैं देखता हूँ कि परमेश्वर का स्वभाव कितना धार्मिक और पवित्र है, तो मेरा दिल श्रद्धा से भर जाता है। मैं परमेश्वर द्वारा सुरक्षित हूँ और उसे और नाराज नहीं करूँगा, और मेरी आत्मा शांत है। मैं खुद को अकसर परमेश्वर की उपस्थिति में शांत करता हूँ, और मेरा दिल परमेश्वर का भय मानता है और बुराई का त्याग करता है। मैं परमेश्वर के वचन का अभ्यास करता हूँ और सत्य के अनुसार आचरण करता हूँ, और मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ और उसकी आज्ञा का पालन करता हूँ। परमेश्वर का वचन मेरा मार्गदर्शन करता है, और मैं परमेश्वर में आस्था के सही मार्ग पर चल पड़ता हूँ। सत्य को प्राप्त कर लेने के बाद मेरी भ्रष्टता शुद्ध हो गई है, और मैं अपने हृदय में परमेश्वर की प्रशंसा करता हूँ।