731 मनुष्य परमेश्वर से बहुत अधिक माँग करता है
1 लोग परमेश्वर से बहुत ज्यादा अपेक्षाएँ करते हैं, जो अतिरेकपूर्ण होती हैं; लोग हमेशा अतर्कपूर्ण ढंग से यह चाहते रहते हैं कि परमेश्वर इस तरह से या उस तरह से काम करे। वे पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होने या उसकी आराधना करने में सक्षम नहीं हैं। बल्कि, वे अपनी स्वयं की प्राथमिकताओं के मुताबिक अनुचित मांगें करते रहते हैं; वे चाहते हैं कि परमेश्वर बहुत ज्यादा सहिष्णुता दिखाए, लोगों के प्रति बहुत धैर्य बरते, और इसी तरह से उन्हें सत्य के बारे में बताए, या उनके साथ संवाद करे, इत्यादि। तुम्हें इन मामलों पर चिंतन-मनन करना चाहिए। मानवीय विवेक बहुत दोषपूर्ण है। न केवल लोग परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्था के प्रति पूरी तरह से समर्पण करने और परमेश्वर से सब कुछ स्वीकार करने में असमर्थ हैं, बल्कि इसके विपरीत, वे परमेश्वर पर अपनी ऐसी ही अतिरिक्त अपेक्षाएँ लादते रहते हैं। इस तरह की अपेक्षाओं वाले लोग परमेश्वर के प्रति निष्ठावान कैसे हो सकते हैं? वे परमेश्वर की व्यवस्था के सामने समर्पण कैसे कर सकते हैं? वे परमेश्वर से प्रेम कैसे कर सकते हैं?
2 लोगों में सिर्फ ये अपेक्षाएँ हैं कि परमेश्वर को उनसे कैसे प्रेम करना चाहिए, उन्हें बर्दाश्त कैसे करना चाहिए, उनकी निगरानी कैसे करनी चाहिए, उनका सरंक्षण कैसे करना चाहिए, और उनकी परवाह कैसे करनी चाहिए; लेकिन उनमें ऐसी कोई अपेक्षाएँ नहीं हैं कि खुद वे परमेश्वर से कैसे प्रेम करें, परमेश्वर के बारे में कैसे सोचें, परमेश्वर का कैसे ध्यान रखें, परमेश्वर को संतुष्ट कैसे करें, उसे अपने दिल में कैसे बसाएँ, और कैसे परमेश्वर की आराधना करें। क्या इन बातों का लोगों के दिलों में कोई अस्तित्व है? ये ऐसी चीजें हैं जो लोगों को करनी चाहिए, तो वे इन चीजों में मेहनत से क्यों नहीं जुटते? कुछ लोग कुछ समय के लिए उत्साहित रहते हैं, लेकिन यह स्थायी नहीं होता; अगर उन्हें थोड़ा-सा झटका लगता है, तो उनकी आशा टूटने लगती है और उन्हें शिकायत होने लगती है। लोगों की बहुत सारी समस्याएँ हैं और बहुत कम लोग हैं जो सच्चाई की तलाश करते हैं और परमेश्वर को प्रेम करते हैं और उसे संतुष्ट करते हैं। मनुष्य सर्वथा अतर्कपूर्ण हैं और गलत स्थान पर खड़े रहकर भी स्वयं को विशिष्ट रूप से मूल्यवान मानते रहते हैं।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन से रूपांतरित