667 मनुष्य परमेश्वर के नेक इरादों को न समझ पाए
1
इंसान ईश-परीक्षणों से डरे, घबराए,
वो शैतान के फंदे में जिए, शैतान के हमले सहे,
ख़तरनाक जगह पर रहे, फिर भी शांत रहे। ये क्या चल रहा है?
इंसान की ईश-आस्था सीमित है उन्हीं चीज़ों तक जिन्हें वो देख पाए।
वो इंसान के लिए ईश-प्रेम और चिंता को न समझे,
बल्कि ईश-परीक्षणों और ताड़ना से,
उसके न्याय, रोष और प्रताप से डरे, घबराए।
इंसान ईश्वर के नेक इरादों को न समझे।
2
परीक्षणों के ज़िक्र से इंसान को लगे, कोई गुप्त मंसूबे हैं ईश्वर के।
कुछ को लगे ईश्वर दुष्ट इरादे पाले, न जाने ईश्वर उनके साथ क्या करे।
इंसान कहे वो है समर्पित ईश-प्रभुता और व्यवस्था के प्रति,
पर वो ईश्वर की प्रभुता और इंसान के लिए
उसकी योजना का हर तरह से विरोध भी करे।
वो माने उसे ध्यान रखना चाहिए, ताकि ईश्वर उसे गुमराह न कर दे।
अगर उसने नियंत्रित न की अपनी नियति,
तो शायद ईश्वर उसकी हर चीज़ पर कब्ज़ा कर ले,
वो शायद उसकी ज़िंदगी भी ले ले।
इंसान की ईश-आस्था सीमित है उन्हीं चीज़ों तक जिन्हें वो देख पाए।
वो इंसान के लिए ईश-प्रेम और चिंता को न समझे,
बल्कि ईश-परीक्षणों और ताड़ना से,
उसके न्याय, रोष और प्रताप से डरे, घबराए।
इंसान ईश्वर के नेक इरादों को न समझे।
3
शैतान के शिविर में रहकर भी इंसान न डरे
उससे चोट खाने से, बंदी बनाए जाने से।
वो कहे, उसे ईश्वर द्वारा बचाया जाना स्वीकार है,
पर ईश्वर उसे बचाएगा, उसे यकीन नहीं।
इंसान की ईश-आस्था सीमित है उन्हीं चीज़ों तक जिन्हें वो देख पाए।
वो इंसान के लिए ईश-प्रेम और चिंता को न समझे,
बल्कि ईश-परीक्षणों और ताड़ना से,
उसके न्याय, रोष और प्रताप से डरे, घबराए।
इंसान ईश्वर के नेक इरादों को न समझे।
अगर इंसान अय्यूब की तरह ईश्वर के
आयोजनों-व्यवस्थाओं को स्वीकार सके,
ख़ुद को ईश्वर के हाथों में सौंप सके, तो अंत में अय्यूब की तरह,
वो ईश्वर का आशीष पाएगा।
अगर इंसान ईश-प्रभुत्व को समर्पित हो सके, तो इंसान क्या खोएगा?
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II से रूपांतरित