812 पतरस ने परमेश्वर को व्यवहारिक रूप से जानने पर ध्यान दिया
1
यीशु के संग, पतरस ने पायीं बहुत-सी प्यार करने,
अपनाने योग्य चीज़ें, बहुत पोषण पाया।
उसने यीशु में ईश्वर को देखा, उसकी हर चीज़ को,
उसके जीवन, वचन, हर काम को दिल से लगाया।
उसने जाना यीशु कोई मामूली इंसान नहीं।
हालाँकि उसका रूप दूसरों-सा था,
पर इंसानों के लिए दया थी, हमदर्दी थी उसमें,
उसके किए-कहे से सबको सहारा मिला।
पतरस ने इतना पहले कभी न पाया था।
2
पतरस ने देखा यीशु मामूली इंसान दिखे
पर उसमें कुछ अलग है जो बयाँ न किया जा सके।
उसने देखा यीशु अनूठा है, उसके कर्म अलग हैं दूसरों से।
उसका चरित्र विशेष है, सदा स्थिरता से काम करता है।
यीशु ने न बातें बढ़ाईं, न छोटी कीं।
सामान्य और सराहनीय चरित्र दर्शाती थी उसकी जीवन-पद्धति।
वो सरलता से बोलता शिष्टता के साथ।
उसने काम में अपनी गरिमा बनाए रखी।
3
पतरस ने देखा यीशु कभी शांत रहे, कभी बहुत बोले।
वो कबूतर की तरह ख़ुश रहे, या उदास और मौन हो जाए।
वो फ़ौजी की तरह गुस्सा करे या शेर की तरह दहाड़े।
कभी वो हँसे, कभी वो प्रार्थना और विलाप करे।
यीशु ने जो भी किया, उसके लिए पतरस का प्यार, सम्मान बढ़ता ही गया।
यीशु की हँसी से वो ख़ुश, दुख से दुखी होता।
यीशु के गुस्से से वो भय से काँपता।
पर यीशु की अपेक्षाएँ, दया, क्षमा उसके मन में
प्रेम, श्रद्धा, चाहत पैदा करतीं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस ने यीशु को कैसे जाना से रूपांतरित