432 जो लोग परमेश्वर के समक्ष अक्सर शांत रहते हैं वे धर्मपरायण होते हैं
1 तुम्हें अक्सर परमेश्वर के सामने आना होगा, उसके वचनों को खाना-पीना और उन पर चिंतन करना होगा, और तुम्हें दिए गए अनुशासन और मार्गदर्शन को स्वीकार करना होगा। परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए व्यवस्थित किये गए परिवेशों, लोगों, चीज़ों और मुद्दों के प्रति समर्पित होना होगा, और जब बात कुछ ऐसी हो जिसकी तुम थाह न पा सको, तो तुम्हें अक्सर सत्य की तलाश में प्रार्थना करनी होगी; केवल परमेश्वर की इच्छा को समझ कर ही तुम आगे का रास्ता खोज सकोगे। तुम्हें परमेश्वर का आदर करते रहना होगा, और तुम्हें जो भी करना है उसे सावधानीपूर्वक करना होगा; तुम्हें अक्सर परमेश्वर के सामने शांत रहना होगा, और तुम्हें स्वच्छंद नहीं होना चाहिए। जब भी तुम्हारे साथ कोई बात हो जाए, तब कम से कम, तुम्हारी सबसे पहली प्रतिक्रिया खुद को शांत करना और फिर तुरंत प्रार्थना करना होनी चाहिए। प्रार्थना, प्रतीक्षा और तलाश के द्वारा, तुम परमेश्वर की इच्छा की एक समझ हासिल करोगे।
2 यदि तुम अपने हृदय की गहराई में, परमेश्वर का आदर और उसके प्रति समर्पण करते हो, और परमेश्वर के सामने शांत रहकर उसकी इच्छा को समझ सकते हो, तो इस तरह के सहयोग और अभ्यास के माध्यम से तुम सुरक्षित रह सकते हो। तुम प्रलोभनों का सामना नहीं करोगे या परमेश्वर का अपमान नहीं करोगे या उन चीज़ों को नहीं करोगे जो उसकी प्रबंधन योजना में बाधा डालें, न ही तुम परमेश्वर की घृणा को उकसाने की हद तक जाओगे। यदि गहराई से तेरा हृदय अक्सर परमेश्वर के सामने रहता है, तो तू नियंत्रण में रहेगा और कई चीज़ों में उसका भय मानेगा। तू बहुत दूर नहीं जाएगा या ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो स्वच्छन्द हो, न ही तू कुछ ऐसा करेगा जो परमेश्वर के लिए घृणित हो, तू वैसे वचन भी नहीं बोलेगा जो निरर्थक हों। यदि तू परमेश्वर की जाँच को स्वीकार कर ले और परमेश्वर के अनुशासन को मान ले, तो तू बहुत से बुरे काम करने से बच जाएगा। इस तरह, तू बुराई से दूर रहेगा।
3 जिन्हें सत्य से प्रेम नहीं होता, वे अपने साथ कुछ घटित होने पर परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या सत्य की तलाश नहीं करते। यदि तू अक्सर अपनी मर्ज़ी के अनुसार कार्य करता है, अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जीता है और अपने अहंकारी स्वभाव को प्रकट करता है; और यदि तू परमेश्वर की जाँच या परमेश्वर के अनुशासन को स्वीकार नहीं करता है, और समर्पण नहीं करता है, तो इस तरह के लोग अंतर्मन से हमेशा शैतान के सामने रहेंगे और अपने शैतानी स्वभाव द्वारा नियंत्रित होंगे। ऐसे लोगों में परमेश्वर के प्रति थोड़ी-सी भी श्रद्धा से नहीं होती। वे बुराई से दूर रहने में बिल्कुल असमर्थ होते हैं, भले ही वे बुरे काम नहीं करते, लेकिन वे जो कुछ भी सोचते हैं वह अभी भी दुष्टतापूर्ण होता है, यह सत्य से असंबद्ध होता है और उसके विरुद्ध जाता है। वे सोचते हैं कि बुराई करना उनका अधिकार है। वे परमेश्वर में विश्वास को एक प्रकार का मंत्र मानते हैं जो कि एक अनुष्ठान का रूप है। वे अविश्वासी होते हैं!
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है से रूपांतरित