386 परमेश्वर में इंसान की आस्था का क्या लक्ष्य होना चाहिए
1
परमेश्वर में सच्ची आस्था के मायने हैं यथार्थ मान उसके वचन स्वीकारना,
उसके वचनों से उसे पहचानना ताकि पा सको उसके प्रति सच्चे प्रेम को तुम।
परमेश्वर में आस्था का मकसद है, उसकी आज्ञा मानो, प्रेम करो,
ईश्वर के जीव के नाते फर्ज़ निभाओ। है यही लक्ष्य परमेश्वर में आस्था रखने का।
तुम्हें उसकी प्रियता का ज्ञान होना चाहिये, वो श्रद्धा के कितने काबिल है,
वो जीवों का कैसे उद्धार करता, उन्हें पूर्ण बनाता, इसका ज्ञान पाओ।
ईश्वर-विश्वासी के नाते तुम में इतना तो हो।
परमेश्वर में तुम्हारी आस्था महज़,
प्रतीक और चमत्कार देखने के लिये न हो, न सिर्फ़ तुम्हारे देह-सुख के लिये हो।
ये परमेश्वर को जानने की खोज हो, उसकी आज्ञा का पालन कर पाना हो,
ये पतरस की तरह, अंतिम साँस तक आज्ञापालन हो।
इसी को ख़ास तौर से हासिल करने के लिये है ये।
2
ईश्वर में तुम्हारी आस्था है बदलना देह-जीवन का ईश-प्रेम के जीवन में।
सहजता के जीवन का बदलना ईश्वर के अस्तित्व के भीतर के जीवन में।
ये शैतान की अधीनता से बाहर निकलकर ईश्वर की देखभाल में जीना है,
देह की गुलामी से निकलकर परमेश्वर की आज्ञाकारिता पाना है।
ये ईश्वर को अपना दिल पाने देना, तुम्हें पूर्ण बनाने देना है,
और शैतानी स्वभाव की भ्रष्टता से ख़ुद को मुक्त कराना है।
ईश्वर में आस्था, उसके सामर्थ्य और महिमा को अपने में व्यक्त होने देना है।
परमेश्वर में तुम्हारी आस्था महज़,
प्रतीक और चमत्कार देखने के लिये न हो, न सिर्फ़ तुम्हारे देह-सुख के लिये हो,
ये परमेश्वर को जानने की खोज हो, उसकी आज्ञा का पालन कर पाना हो,
ये पतरस की तरह, अंतिम साँस तक आज्ञापालन हो।
इसी को ख़ास तौर से हासिल करने के लिये है ये।
ताकि दिखे सामर्थ्य और महिमा ईश्वर की तुम में,
ताकि ईश्वर-इच्छा को पूरा करो, ईश्वर-योजना को पूरा करो।
शैतान के सामने ईश्वर की गवाही दो तुम।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है से रूपांतरित