201 सत्य का अनुसरण करना बहुत सार्थक है
1 शैतान ने लोगों को बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है, उनमें ज़रा-सी भी इंसानियत नहीं बची है। अहंकार, छल, स्वार्थ, नीचता—ये सब शैतान के चेहरे हैं। चूँकि लोगों में शैतान की प्रकृति है, इसलिये उन्हें परमेश्वर के न्याय को स्वीकारना चाहिए। भ्रष्ट मनुष्य का होगा न्याय, यही स्वर्ग और पृथ्वी का अटल नियम है। सत्य और जीवन को पाकर ही लोग अपने स्वभाव में बदलाव ला सकते हैं। सत्य से प्यार करना जीवन में प्रवेश करने की कुंजी है। वास्तविकता में प्रवेश केवल सत्य को समझने और अभ्यास करने से ही होता है। परमेश्वर से प्रेम और उसका आज्ञापालन करना, सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं।
2 परमेश्वर के वचनों के न्याय का अनुभव करने से मैं खुद को जान पाया। अहंकारी और कपटी होकर, आशीष खोजकर, मेरी भ्रष्टता उजागर हुई। मैंने झूठ बोला, कपट किया, मैं धूर्त था, फिर भी अपने के बारे में इतना सोचा। मैं बेहद भ्रष्ट था, इंसान न था, फिर भी मुझे आशीष चाहिए था। परमेश्वर का न्याय दिखाए वो धार्मिक और पवित्र है। जो न्याय और शुद्धिकरण से नहीं गुज़रे, वे आपदा में पड़ेंगे। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना ने मुझे स्वच्छ किया, मुझे बचाया। मेरा जीवन स्वभाव बदलने लगा है, दिल ही दिल में मैं परमेश्वर की स्तुति करता हूँ।
3 अंत के दिनों का मसीह चिरस्थायी जीवन का मार्ग लाता है। सत्य के मूल्य और महत्व की थाह कोई नहीं पा सकता। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव किए बिना जीवन नहीं पाया जा सकता। परमेश्वर में विश्वास, सत्य और जीवन के अनुसरण से ही आता सार्थक अस्तित्व। सच्चा मानव जीवन आए केवल सत्य प्राप्त करने से। परमेश्वर लोगों का अंत इस आधार पर तय करे कि उनके अंदर सत्य है या नहीं। परमेश्वर के कार्य पूरी तरह से धार्मिक हैं, उन पर इंसान को शक नहीं करना चाहिए। महाआपदा हर चीज़ को तबाह करे जो शैतान की है। जिन्होंने सत्य पा लिया, वे सदा परमेश्वर के राज्य में बने रहेंगे।