494 केवल परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने से ही वास्तविकता आती है
1
परमेश्वर चाहे कि उसके कार्य और वचन लाएँ तुम्हारे स्वभाव में बदलाव।
उसका लक्ष्य नहीं कि तुम बस इन्हें जानो, समझो।
लोगों को सारे सत्य का विस्तार से अनुभव करना चाहिए,
अधिक विस्तार से इन्हें खोजना चाहिए।
जानकर भी लोग ईश-वचन को अभ्यास में न लाएँ तो
उन्हें सत्य से प्यार नहीं, निकाल दिए जाएंगे वे अंत में।
पतरस जैसा बनना है तो ईश-वचनों का अभ्यास करो,
सच्चा प्रवेश, और बड़ी प्रबुद्धता पाओ।
इससे तुम्हारे जीवन की और मदद होगी।
परमेश्वर में विश्वास की प्रक्रिया है प्रक्रिया
उसके वचनों को अनुभव करने, उसे हासिल होने की।
विश्वास करना यानी उसके वचनों को जानना, समझना,
अनुभव करना, उन्हें जीना। यही है आस्था की वास्तविकता।
2
अगर तुमने पढ़े हैं बहुत-से ईश-वचन, लेकिन शब्दों के ही अर्थ जानते हो,
खुद कुछ अनुभव नहीं किया, तो तुम ईश-वचनों को न जान पाओगे।
तुम्हारे लिए ईश-वचन जीवन नहीं, बस बेजान शब्द हैं।
तुम सार नहीं समझोगे, न ईश्वर की इच्छा जानोगे।
उसके वचनों का जीवन में अनुभव करके ही आध्यात्मिक अर्थ समझ पाओगे।
अनुभव से ही जान सकते हो तुम कई सत्यों का
आध्यात्मिक अर्थ और समझ सकते हो रहस्य उसके वचनों का।
3
जो तुम ईश-वचनों का अभ्यास न करो, तो वे चाहे जितने भी स्पष्ट हों,
तुम बस खोखले शब्द और वाद पाओगे,
जो बस धार्मिक नियम बनकर रह जाएंगे।
क्या फरीसियों ने यही नहीं किया था?
अगर तुम्हें ईश्वर में विश्वास है, अनंत जीवन की आशा है,
लेकिन तुम न करते ईश-वचनों का अभ्यास, तो बेवकूफ़ हो तुम।
परमेश्वर में विश्वास की प्रक्रिया है प्रक्रिया
उसके वचनों को अनुभव करने, उसे हासिल होने की।
विश्वास करना यानी उसके वचनों को जानना, समझना,
अनुभव करना, उन्हें जीना। यही है आस्था की वास्तविकता।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए से रूपांतरित