परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे (अंश I)

परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, उसे पृथ्वी पर रखा, और उसकी आज के दिन तक अगुआई की। उसने तब मानवजाति को बचाया और मानवजाति के लिये पापबली के रूप में कार्य किया। अंत में उसे अभी भी अवश्य मानवजाति को जीतना चाहिए, मानवजाति को पूर्णतः बचाना चाहिए और उसे उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना चाहिए। यही वह कार्य है जिसमें वह आरंभ से लेकर अंत तक संलग्न रहा है—मनुष्य को उसकी मूल छवि में और उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना। वह अपना राज्य स्थापित करेगा और मनुष्य की मूल समानता पुनर्स्थापित करेगा, जिसका अर्थ है कि वह पृथ्वी पर अपने अधिकार को पुनर्स्थापित करेगा, और समस्त प्राणियों के बीच अपने अधिकार को पुर्नस्थापित करेगा। शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जाने पर मनुष्य ने, परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी शत्रु बनते हुए, अपना धर्मभीरू हृदय गँवा दिया है और उस प्रकार्य को गँवा दिया जो परमेश्वर के सृजित प्राणियों में से एक के पास होना चाहिए। मनुष्य शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन रहा और उसने उसके आदेशों का पालन किया; इस प्रकार, अपने प्राणियों के बीच कार्य करने का परमेश्वर के पास कोई मार्ग नहीं था, और तो और अपने प्राणियों से परमेश्वर का भय प्राप्त करने में असमर्थ था। मनुष्य परमेश्वर के द्वारा सृजित था, और उसे परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए थी, परंतु मनुष्य ने वास्तव में परमेश्वर की ओर पीठ फेर दी और शैतान की आराधना की। शैतान मनुष्य के हृदय में प्रतिमा बन गया। इस प्रकार, परमेश्वर ने मनुष्य के हृदय में अपना स्थान खो दिया, जिसका मतलब है कि उसने मनुष्य के सृजन के अपने अर्थ को खो दिया, और इसलिए मनुष्य के सृजन के अपने अर्थ को पुनर्स्थापित करने के लिए उसे अवश्य मनुष्य की मूल समानता को पुनर्स्थापित करना चाहिए, और मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से छुड़ाना चाहिए। शैतान से मनुष्य को वापस प्राप्त करने के लिए, उसे अवश्य मनुष्य को पाप से बचाना चाहिए। केवल इसी तरह से वह धीरे-धीरे मनुष्य की मूल समानता को पुनर्स्थापित कर सकता है और मनुष्य के मूल प्रकार्य को पुनर्स्थापित कर सकता है, और अंत में अपने राज्य को पुनर्स्थापित कर सकता है। अवज्ञा के उन पुत्रों को अंतिम रूप से इसलिए भी नष्ट किया जाएगा ताकि मनुष्य को बेहतर ढंग से परमेश्वर की आराधना करने दी जाए और पृथ्वी पर बेहतर ढंग से जीने दिया जाए। चूँकि परमेश्वर ने मानवों का सृजन किया है, इसलिए वह मनुष्य से अपनी आराधना करवाएगा; चूँकि वह मनुष्य के मूल प्रकार्य को पुनर्स्थापित करना चाहता है, इसलिए वह उसे पूर्ण रूप से और बिना किसी मिलावट के पुनर्स्थापित करेगा। अपना अधिकार पुनर्स्थापित करने का अर्थ है, मनुष्य से अपनी आराधना करवाना और मनुष्य से अपना आज्ञापालन करवाना; इसका अर्थ है कि वह अपनी वजह से मनुष्य को जीवित रखवाएगा, और अपने अधिकार की वजह से अपने शत्रुओं को नष्ट करवाएगा; इसका अर्थ है कि वह अपने हर अंतिम भाग को मानवजाति के बीच और मनुष्य द्वारा किसी भी प्रतिरोध के बिना बनाए रखेगा। जो राज्य वह स्थापित करना चाहता है, वह उसका स्वयं का राज्य है। जिस मानवजाति की वह इच्छा करता है वह है जो उसकी आराधना करती है, जो पूर्णतः उसकी आज्ञा का पालन करती है और उसकी महिमा रखती है। यदि वह भ्रष्ट मानवजाति को नहीं बचाता है, तो मनुष्य का सृजन करने का उसका अर्थ व्यर्थ हो जाएगा; मनुष्यों के बीच उसका अब और अधिकार नहीं रहेगा, और पृथ्वी पर उसके राज्य का अस्तित्व अब और नहीं रह पाएगा। यदि वह उन शत्रुओं का नाश नहीं करता है जो उसके प्रति अवज्ञाकारी हैं, तो वह अपनी संपूर्ण महिमा को प्राप्त करने में असमर्थ होगा, न ही वह पृथ्वी पर अपने राज्य की स्थापना करने में समर्थ होगा। ये परमेश्वर का कार्य पूरा होने के प्रतीक हैं और उसकी महान उपलब्धियों की पूर्णता के प्रतीक हैं: मानवजाति में से उन सबको सर्वथा नष्ट करना जो उसके प्रति अवज्ञाकारी हैं, और जो पूर्ण किए जा चुके हैं उन्हें विश्राम में लाना। जब मनुष्यजाति को उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित कर दिया जाता है, जब मानवजाति अपने संबंधित कर्तव्यों को पूरा कर सकती है, अपने स्वयं के स्थान को सुरक्षित रख सकती है और परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं का पालन कर सकती है, तो परमेश्वर पृथ्वी पर लोगों के एक समूह को प्राप्त कर चुका होगा जो उसकी आराधना करते हैं, वह पृथ्वी पर एक राज्य स्थापित कर चुका होगा जो उसकी आराधना करता है। उसके पास पृथ्वी पर अनंत विजय होगी, और जो उसके विरोध में है वे अनंतकाल के लिए नष्ट हो जाएँगे। इससे मनुष्य का सृजन करने का उसका मूल अभिप्राय पुनर्स्थापित हो जाएगा; इससे सब चीजों के सृजन का उसका मूल अभिप्राय पुनर्स्थापित हो जाएगा, और इससे पृथ्वी पर उसका अधिकार, सभी चीजों के बीच उसका अधिकार और उसके शत्रुओं के बीच उसका अधिकार भी पुनर्स्थापित हो जाएगा। ये उसकी संपूर्ण विजय के प्रतीक हैं। इसके बाद से मानवजाति विश्राम में प्रवेश करेगी और ऐसे जीवन में प्रवेश करेगी जो सही मार्ग का अनुसरण करता है। मनुष्य के साथ परमेश्वर भी अनंत विश्राम में प्रवेश करेगा, और एक अनंत जीवन में प्रवेश करेगा जो परमेश्वर और मनुष्य द्वारा साझा किया जाता है। पृथ्वी पर से गंदगी और अवज्ञा ग़ायब हो जाएगी, वैसे ही पृथ्वी पर से विलाप ग़ायब हो जाएगा। उन सभी का अस्तित्व पृथ्वी पर नहीं रहेगा जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। केवल परमेश्वर और वे जिन्हें उसने बचाया है ही शेष बचेंगे; केवल उसकी सृष्टि ही बचेगी।

— "वचन देह में प्रकट होता है" से उद्धृत

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