16. धार्मिक जगत की धारणा कि: “परमेश्वर जब लौटेगा तो वह संभवतः चीन में नहीं प्रकट होगा और काम करेगा”

धार्मिक जगत यह मानता है कि पुराने और नए नियम के युगों में परमेश्वर ने अपना सारा कार्य इस्राएल में किया, और जब अंत के दिनों में प्रभु यीशु लौटकर आएगा, तब भी वह इस्राएल में ही कार्य करेगा, और कि वह चीन में कभी नहीं प्रकट होगा और काम करेगा।

बाइबल से उद्धृत वचन

“क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं हैं, न ही तुम्हारा मार्ग और मेरा मार्ग एक सा है” (यशायाह 55:8)

“क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा। जहाँ लोथ हो, वहीं गिद्ध इकट्ठे होंगे” (मत्ती 24:27-28)

“क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति–जाति में मेरा नाम महान् है..., सेनाओं के यहोवा का यही वचन है” (मलाकी 1:11)

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

परमेश्वर और मनुष्य की बराबरी पर बात नहीं की जा सकती। परमेश्वर का सार और कार्य मनुष्य के लिए सर्वाधिक अथाह और समझ से परे है। यदि परमेश्वर मनुष्य के संसार में व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य न करे और अपने वचन न कहे, तो मनुष्य कभी भी परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझ पाएगा। और इसलिए वे लोग भी, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन परमेश्वर को समर्पित कर दिया है, उसका अनुमोदन प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे। यदि परमेश्वर कार्य करने के लिए तैयार न हो, तो मनुष्य चाहे कितना भी अच्छा क्यों न करे, वह सब व्यर्थ हो जाएगा, क्योंकि परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से सदैव ऊँचे रहेंगे और परमेश्वर की बुद्धि मनुष्य की समझ से परे है। और इसीलिए मैं कहता हूँ कि जो लोग परमेश्वर और उसके कार्य को “पूरी तरह से समझने” का दावा करते करते हैं, वे मूर्खों की जमात हैं; वे सभी अभिमानी और अज्ञानी हैं। मनुष्य को परमेश्वर के कार्य को परिभाषित नहीं करना चाहिए; बल्कि, मनुष्य परमेश्वर के कार्य को परिभाषित नहीं कर सकता। परमेश्वर की दृष्टि में मनुष्य एक चींटी जितना महत्वहीन है; तो फिर वह परमेश्वर के कार्य की थाह कैसे पा सकता है? जो लोग गंभीरतापूर्वक यह कहना पसंद करते हैं, “परमेश्वर इस तरह से या उस तरह से कार्य नहीं करता,” या “परमेश्वर ऐसा है या वैसा है”—क्या वे अहंकारपूर्वक नहीं बोलते? हम सबको जानना चाहिए कि मनुष्य, जो कि देहधारी है, शैतान द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है। मानवजाति की प्रकृति ही है परमेश्वर का विरोध करना। मानवजाति परमेश्वर के समान नहीं हो सकती, परमेश्वर के कार्य के लिए परामर्श देने की उम्मीद तो वह बिलकुल भी नहीं कर सकती। जहाँ तक इस बात का संबंध है कि परमेश्वर मनुष्य का मार्गदर्शन कैसे करता है, तो यह स्वयं परमेश्वर का कार्य है। यह उचित है कि इस या उस विचार की डींग हाँकने के बजाय मनुष्य को समर्पण करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य धूल मात्र है। चूँकि हमारा इरादा परमेश्वर की खोज करने का है, इसलिए हमें परमेश्वर के विचार के लिए उसके कार्य पर अपनी अवधारणाएँ नहीं थोपनी चाहिए, और जानबूझकर परमेश्वर के कार्य का विरोध करने के लिए अपने भ्रष्ट स्वभाव का भरसक उपयोग तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। क्या ऐसा करना हमें मसीह-विरोधी नहीं बनाएगा? ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास कैसे कर सकते हैं? चूँकि हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर है, और चूँकि हम उसे संतुष्ट करना और उसे देखना चाहते हैं, इसलिए हमें सत्य के मार्ग की खोज करनी चाहिए, और परमेश्वर के अनुकूल रहने का मार्ग तलाशना चाहिए। हमें परमेश्वर के कड़े विरोध में खड़े नहीं होना चाहिए। ऐसे कार्यों से क्या भला हो सकता है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना

परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिल्कुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिल्कुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, जिसे हर व्यक्ति को पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को खुद से यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना चाहिए : मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और समर्पण करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है

कई जगहों पर परमेश्वर ने सीनियों के देश में विजेताओं के एक समूह को प्राप्त करने की भविष्यवाणी की है। चूँकि विजेताओं को दुनिया के पूर्व में प्राप्त किया जाना है, इसलिए परमेश्वर अपने दूसरे देहधारण में जहाँ कदम रखता है, वह बिना किसी संदेह के सीनियों का देश है, ठीक वह स्थान, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे पड़ा है। वहाँ परमेश्वर बड़े लाल अजगर के वंशजों को प्राप्त करेगा, ताकि वह पूर्णतः पराजित और शर्मिंदा हो जाए। परमेश्वर पीड़ा के बोझ से अत्यधिक दबे इन लोगों को जगाने जा रहा है, जब तक कि वे पूरी तरह से जाग नहीं जाते, वह उन्हें कोहरे से बाहर निकालेगा, और उनसे उस बड़े लाल अजगर को अस्वीकार करवाएगा। वे अपने सपने से जागेंगे, बड़े लाल अजगर के सार को जानेंगे, परमेश्वर को अपना संपूर्ण हृदय देने में सक्षम होंगे, अँधेरे की ताक़तों के दमन से बाहर निकलेंगे, दुनिया के पूर्व में खड़े होंगे, और परमेश्वर की जीत का सबूत बनेंगे। केवल इसी तरीके से परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा। केवल इसी कारण से परमेश्वर इस्राएल में समाप्त हुए कार्य को उस देश में लाया, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे पड़ा है, और प्रस्थान करने के लगभग दो हजार वर्ष बाद वह अनुग्रह के कार्य को जारी रखने के लिए पुनः देह में आया है। मनुष्य की आँखों को लग रहा है कि, परमेश्वर देह में नए कार्य का शुभारंभ कर रहा है। किंतु परमेश्वर की दृष्टि से, वह अनुग्रह के युग के कार्य को जारी रख रहा है, पर केवल कुछ हजार वर्षों के अंतराल के बाद, और अपने कार्य के स्थान तथा कार्यक्रम में बदलाव के साथ।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (6)

पिछले दो युगों के कार्य का एक चरण इस्राएल में पूरा किया गया, और एक यहूदिया में। सामान्य तौर पर कहा जाए तो, इस कार्य का कोई भी चरण इस्राएल छोड़कर नहीं गया, और प्रत्येक चरण पहले चुने गए लोगों पर किया गया। परिणामस्वरूप, इस्राएली मानते हैं कि यहोवा परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है। चूँकि यीशु ने यहूदिया में कार्य किया, जहाँ उसने सूली पर चढ़ने का काम किया, इसलिए यहूदी उसे यहूदी लोगों के उद्धारक के रूप में देखते हैं। वे सोचते हैं कि वह केवल यहूदियों का राजा है, अन्य किसी का नहीं; कि वह अंग्रेजों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु नहीं है, न ही अमेरिकियों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु, बल्कि वह इस्राएलियों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु है, और इस्राएल में भी उसने यहूदियों को छुटकारा दिलाया। वास्तव में, परमेश्वर सभी चीज़ों का संप्रभु है। वह सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है। वह केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, न यहूदियों का; बल्कि वह सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है। उसके कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में हुए, जिसने लोगों में कुछ निश्चित धारणाएँ पैदा कर दी हैं। वे मानते हैं कि यहोवा ने अपना कार्य इस्राएल में किया, और स्वयं यीशु ने अपना कार्य यहूदिया में किया, और इतना ही नहीं, कार्य करने के लिए उसने देहधारण किया—और जो भी हो, यह कार्य इस्राएल से आगे नहीं बढ़ा। परमेश्वर ने मिस्रियों या भारतीयों में कार्य नहीं किया; उसने केवल इस्राएलियों में कार्य किया। लोग इस प्रकार विभिन्न धारणाएँ बना लेते हैं, वे परमेश्वर के कार्य को एक निश्चित दायरे में बाँध देते हैं। वे कहते हैं कि जब परमेश्वर कार्य करता है, तो अवश्य ही उसे ऐसा चुने हुए लोगों के बीच और इस्राएल में करना चाहिए; इस्राएलियों के अलावा परमेश्वर किसी अन्य पर कार्य नहीं करता, न ही उसके कार्य का कोई बड़ा दायरा है। वे देहधारी परमेश्वर को नियंत्रित करने में विशेष रूप से सख़्त हैं और उसे इस्राएल की सीमा से बाहर नहीं जाने देते। क्या ये सब मानवीय धारणाएँ मात्र नहीं हैं? परमेश्वर ने संपूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजें बनाईं, उसने सभी सृजित प्राणी बनाए, तो वह अपने कार्य को केवल इस्राएल तक सीमित कैसे रख सकता है? अगर ऐसा होता, तो उसके तमाम सृजित प्राणी बनाने का क्या तुक था? उसने पूरी दुनिया को बनाया, और उसने अपनी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना केवल इस्राएल में नहीं, बल्कि ब्रह्मांड में प्रत्येक व्यक्ति पर कार्यान्वित की। चाहे वे चीन में रहते हों या संयुक्त राज्य अमेरिका में, यूनाइटेड किंगडम में या रूस में, प्रत्येक व्यक्ति आदम का वंशज है; वे सब परमेश्वर के बनाए हुए हैं। उनमें से एक भी सृजित प्राणियों के दायरे से बाहर नहीं जा सकता, और उनमें से एक भी खुद को “आदम का वंशज” होने के ठप्पे से अलग नहीं कर सकता। वे सभी सृजित प्राणी हैं, वे सभी आदम की संतानें हैं, और वे सभी आदम और हव्वा के भ्रष्ट वंशज भी हैं। केवल इस्राएली ही सृजित प्राणी नहीं हैं, बल्कि सभी लोग सृजित प्राणी हैं; बस इतना ही है कि कुछ को शाप दिया गया है, और कुछ को आशीष। इस्राएलियों के बारे में कई स्वीकार्य बातें हैं; परमेश्वर ने आरंभ में उन पर कार्य किया क्योंकि वे सबसे कम भ्रष्ट थे। चीनियों की उनसे तुलना नहीं की जा सकती; वे उनसे बहुत हीन हैं। इसलिए, आरंभ में परमेश्वर ने इस्राएलियों के बीच कार्य किया, और उसके कार्य का दूसरा चरण केवल यहूदिया में संपन्न हुआ—जिससे मनुष्यों में बहुत सारी धारणाएँ और नियम बन गए हैं। वास्तव में, यदि परमेश्वर मनुष्य की धारणाओं के अनुसार कार्य करता, तो वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, और इस प्रकार वह अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता, क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर नहीं। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में सम्मान पाएगा, कि वह अन्यजाति-राष्ट्रों में फैल जाएगा। यह भविष्यवाणी क्यों की गई थी? यदि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इतना ही नहीं, वह इस कार्य का विस्तार न करता, और वह ऐसी भविष्यवाणी न करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की थी, इसलिए वह निश्चित रूप से अन्यजाति-राष्ट्रों में, प्रत्येक राष्ट्र में और समस्त भूमि पर, अपने कार्य का विस्तार करेगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, इसलिए वह ऐसा ही करेगा; यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीज़ों का सृष्टिकर्ता प्रभु और सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है। चाहे वह इस्राएलियों के बीच कार्य करता हो या संपूर्ण यहूदिया में, वह जो कार्य करता है, वह संपूर्ण ब्रह्मांड और संपूर्ण मानवता का कार्य होता है। आज जो कार्य वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र—एक अन्यजाति-राष्ट्र में—करता है, वह भी संपूर्ण मानवता का कार्य है। इस्राएल पृथ्वी पर उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार, अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच चीन भी उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने अब इस भविष्यवाणी को पूरा नहीं किया है कि “यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा”? अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच उसके कार्य का पहला चरण यह कार्य है, जिसे वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में कर रहा है। देहधारी परमेश्वर का इस राष्ट्र में कार्य करना और इन शापित लोगों के बीच कार्य करना विशेष रूप से मनुष्य की धारणाओं के विपरीत है; ये लोग सबसे निम्न स्तर के हैं, इनका कोई मूल्य नहीं है, और इन्हें यहोवा ने आरंभ में त्याग दिया था। लोगों को दूसरे लोगों द्वारा त्यागा जा सकता है, परंतु यदि वे परमेश्वर द्वारा त्यागे जाते हैं, तो किसी की भी हैसियत उनसे कम नहीं होगी, और किसी का भी मूल्य उनसे कम नहीं होगा। एक सृजित प्राणी के लिए शैतान द्वारा कब्ज़े में ले लिया जाना या लोगों द्वारा त्याग दिया जाना कष्टदायक चीज़ है—परंतु किसी सृजित प्राणी को उसके सृष्टिकर्ता द्वारा त्याग दिए जाने का अर्थ है कि उसकी हैसियत उससे कम नहीं हो सकती। मोआब के वंशज शापित थे और वे इस पिछड़े देश में पैदा हुए थे; निःसंदेह अंधकार के प्रभाव से ग्रस्त सभी लोगों में मोआब के वंशजों की हैसियत सबसे कम है। चूँकि अब तक ये लोग सबसे कम हैसियत वाले रहे हैं, इसलिए उन पर किया गया कार्य मनुष्य की धारणाओं को खंडित करने में सबसे सक्षम है, और परमेश्वर की संपूर्ण छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना के लिए सबसे लाभदायक भी है। इन लोगों के बीच ऐसा कार्य करना मनुष्य की धारणाओं को खंडित करने का सर्वोत्तम तरीका है; और इसके साथ परमेश्वर एक युग का सूत्रपात करता है; इसके साथ वह मनुष्य की सभी धारणाओं को खंडित कर देता है; इसके साथ वह संपूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य का समापन करता है। उसका पहला कार्य इस्राएल की सीमा के भीतर यहूदिया में किया गया था; अन्यजाति-राष्ट्रों में उसने नए युग का सूत्रपात करने के लिए कोई कार्य नहीं किया। कार्य का अंतिम चरण न केवल अन्यजातियों के बीच किया जा रहा है; बल्कि इससे भी अधिक, उन लोगों में किया जा रहा है, जिन्हें शापित किया गया है। यह एक बिंदु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे सक्षम प्रमाण है, और इस प्रकार, परमेश्वर ब्रह्मांड में सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर, सभी चीज़ों का प्रभु, और सभी जीवधारियों की आराधना की वस्तु “बन” जाता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर समस्त सृजित प्राणियों का प्रभु है

यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, वह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र जगह पर एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए सभी देशों में से सबसे अशुद्ध देश में किया जा रहा है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान पर किया गया था और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान पर किया जा रहा है, और इस अंधकार को बाहर निकालकर प्रकाश को प्रकट किया जाएगा और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि परमेश्वर है, जो कि सच्चा परमेश्वर है और हर व्यक्ति को पूरी तरह से विश्वास हो जाएगा, तब समस्त ब्रह्मांड में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है : एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का छह हजार वर्षों का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया गया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। इस तरह, केवल चीन में ही विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्त रूप है और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। चीनी लोग ही बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, वही परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी हैं, उन्हीं की मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूल आदर्श हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य देशों में कोई समस्या नहीं है; मनुष्य की अवधारणाएँ समान हैं, यद्यपि इन देशों के लोग अच्छी क्षमता वाले हो सकते हैं, किन्तु यदि वे परमेश्वर को नहीं जानते, तो वे अवश्य ही उसके विरोधी होंगे। यहूदियों ने भी परमेश्वर का विरोध और उससे विद्रोह क्यों किया? फरीसियों ने भी उसका विरोध क्यों किया? यहूदा ने यीशु के साथ विश्वासघात क्यों किया? उस समय, बहुत-से अनुयायी यीशु को नहीं जानते थे। यीशु को सूली पर चढ़ाये जाने और उसके फिर से जी उठने के बाद भी, लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया? क्या मनुष्य का विद्रोहीपन बिल्कुल वैसा ही नहीं है? बात बस इतनी है कि चीन के लोग इसके एक उदाहरण के रूप में पेश किए जाते हैं, जब उन पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी तो वे एक आदर्श और नमूना बन जाएँगे और दूसरों के लिए संदर्भ का काम करेंगे। मैंने हमेशा क्यों कहा है कि तुम लोग मेरी प्रबंधन योजना के सहायक हो? चीन के लोगों में भ्रष्टता, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता पूरी तरह से व्यक्त और विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं और दूसरी ओर, उनका जीवन और उनकी मानसिकता पिछड़ी हुई है, उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जिस परिवार में वे जन्में हैं—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी निम्न है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, एक बार जब यह परीक्षा-कार्य पूरी तरह से संपन्न हो जाएगा, तो परमेश्वर का बाद का कार्य अधिक आसान हो जाएगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सका, तो इसके बाद का कार्य अच्छी तरह से आगे बढ़ेगा। एक बार जब कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जायेगा, तो बड़ी सफलता प्राप्त हो जाएगी और समस्त ब्रह्माण्ड में विजय का कार्य पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल होने पर, यह समस्त ब्रह्माण्ड में सफलता प्राप्त करने के बराबर होगा। यही इस बात की महत्ता है कि क्यों मैं तुम लोगों को एक आदर्श और नमूने के रूप में कार्य करने को कहता हूँ। विद्रोहशीलता, विरोध, अशुद्धता, अधार्मिकता—ये सभी इन लोगों में पाए जाते हैं और ये मानवजाति की समस्त विद्रोहशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वास्तव में कुछ हैं। इस प्रकार, उन्हें विजय के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, एक बार जब वे जीत लिए गए तो वे स्वाभाविक रूप से दूसरों के लिए एक आदर्श और नमूने बन जाएँगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)

परमेश्वर का कार्य सभी सृजित प्राणियों पर निर्देशित है; यह इस बात पर आधारित नहीं है कि सृजित किए जाने के बाद किसी को शापित किया गया है या नहीं। उसका प्रबंधन-कार्य सभी सृजित प्राणियों पर निर्देशित है, केवल उन चुने हुए लोगों पर नहीं, जिन्हें शापित नहीं किया गया है। चूँकि परमेश्वर अपने सृजित प्राणियों के बीच अपना कार्य करना चाहता है, इसलिए वह इसे निश्चित रूप से सफलतापूर्वक पूरा करेगा, और वह उन लोगों के बीच कार्य करेगा जो उसके कार्य के लिए लाभदायक हैं। इसलिए, जब वह मनुष्यों के बीच कार्य करता है, तो सभी परंपराओं को तहस-नहस कर देता है; उसके लिए, “शापित,” “ताड़ित” और “धन्य” शब्द निरर्थक हैं! यहूदी लोग अच्छे हैं, इस्राएल के चुने हुए लोग भी अच्छे हैं; वे अच्छी क्षमता और मानवता वाले लोग हैं। प्रारंभ में यहोवा ने उन्हीं के बीच अपना कार्य आरंभ किया, और अपना सबसे पहला कार्य किया—परंतु आज उन पर विजय प्राप्त करने का कार्य अर्थहीन होगा। वे भी सृजित प्राणियों का एक हिस्सा हो सकते हैं और उनमें बहुत-कुछ सकारात्मक हो सकता है, किंतु उनके बीच कार्य के इस चरण को कार्यान्वित करना बेमतलब होगा; परमेश्वर लोगों को जीत पाने में सक्षम नहीं होगा, न ही वह सभी सृजित प्राणियों को समझाने में सक्षम होगा, जो कि उसके द्वारा अपने कार्य को बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के इन लोगों तक ले जाने का आशय है। यहाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण उसका युग आरंभ करना, उसका सभी नियमों और मानवीय धारणाओं को खंडित करना और संपूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य का समापन करना है। यदि उसका वर्तमान कार्य इस्राएलियों के मध्य किया गया होता, तो जब तक उसकी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना समाप्त होने को आती, हर कोई यह विश्वास करने लगता कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर का आशीष और प्रतिज्ञा विरासत में पाने योग्य हैं। अंत के दिनों के दौरान बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के अन्यजाति-देश में परमेश्वर का देहधारण उस परमेश्वर का कार्य पूरा करता है जो सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है; वह अपना संपूर्ण प्रबंधन-कार्य पूरा करता है, और वह बड़े लाल अजगर के देश में अपने कार्य के केंद्रीय भाग को समाप्त करता है। कार्य के इन तीनों चरणों के मूल में मनुष्य का उद्धार है—अर्थात, सभी सृजित प्राणियों से सृष्टिकर्ता की आराधना करवाना। इस प्रकार, कार्य के प्रत्येक चरण का बहुत बड़ा अर्थ है; परमेश्वर ऐसा कुछ नहीं करता जिसका कोई अर्थ या मूल्य न हो। एक ओर, कार्य का यह चरण एक नए युग का सूत्रपात और पिछले दो युगों का अंत करता है; दूसरी ओर, यह मनुष्य की समस्त धारणाओं और उसके विश्वास और ज्ञान के सभी पुराने तरीकों को खंडित करता है। पिछले दो युगों का कार्य मनुष्य की विभिन्न धारणाओं के अनुसार किया गया था; किंतु यह चरण मनुष्य की धारणाओं को पूरी तरह मिटा देता है, और ऐसा करके वह मानवजाति को पूरी तरह से जीत लेता है। मोआब के वंशजों के बीच किए गए कार्य के माध्यम से उसके वंशजों को जीतकर परमेश्वर संपूर्ण ब्रह्मांड में सभी लोगों को जीत लेगा। यह उसके कार्य के इस चरण का गहनतम अर्थ है, और यही उसके कार्य के इस चरण का सबसे मूल्यवान पहलू है। भले ही तुम अब जानते हो कि तुम्हारी अपनी हैसियत निम्न है और तुम कम मूल्य के हो, फिर भी तुम यह महसूस करोगे कि तुम्हारी सबसे आनंददायक वस्तु से भेंट हो गई है : तुमने एक बहुत बड़ा आशीष विरासत में प्राप्त किया है, एक बड़ी प्रतिज्ञा प्राप्त की है, और तुम परमेश्वर के इस महान कार्य को पूरा करने में सहायता कर सकते हो। तुमने परमेश्वर का सच्चा चेहरा देखा है, तुम परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव को जानते हो, और तुम परमेश्वर की इच्छा पर चलते हो। परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में संपन्न किए गए थे। यदि अंत के दिनों के दौरान उसके कार्य का यह चरण भी इस्राएलियों के बीच किया जाता, तो न केवल सभी सृजित प्राणी मान लेते कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, बल्कि परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना भी अपना वांछित परिणाम प्राप्त न कर पाती। जिस समय इस्राएल में उसके कार्य के दो चरण पूरे किए गए थे, उस दौरान अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच न तो कोई नया कार्य—न ही नया युग प्रारंभ करने का कोई कार्य—किया गया था। कार्य का आज का चरण—एक नए युग के सूत्रपात का कार्य—पहले अन्यजाति-राष्ट्रों में किया जा रहा है, और इतना ही नहीं, प्रारंभ में मोआब के वंशजों के बीच किया जा रहा है; और इस प्रकार संपूर्ण युग का आरंभ किया गया है। परमेश्वर ने मनुष्य की धारणाओं में निहित किसी भी ज्ञान को बाकी नहीं रहने दिया और सब खंडित कर दिया। विजय प्राप्त करने के अपने कार्य में उसने मानवीय धारणाओं को, ज्ञान के उन पुराने, आरंभिक मानवीय तरीकों को ध्वस्त कर दिया है। वह लोगों को देखने देता है कि परमेश्वर पर कोई नियम लागू नहीं होते, कि परमेश्वर के मामले में कुछ भी पुराना नहीं है, कि वह जो कार्य करता है वह पूरी तरह से स्वतंत्र है, पूरी तरह से मुक्त है, और कि वह अपने समस्त कार्य में सही है। वह सृजित प्राणियों के बीच जो भी कार्य करता है, उसके प्रति तुम्हें पूरी तरह से समर्पित होना चाहिए। उसके समस्त कार्य में अर्थ होता है, और वह उसकी अपनी इच्छा और बुद्धि के अनुसार किया जाता है, मनुष्य की पसंद और धारणाओं के अनुसार नहीं। अगर कोई चीज़ उसके कार्य के लिए लाभदायक होती है, तो वह उसे करता है; और अगर कोई चीज़ उसके कार्य के लिए लाभदायक नहीं होती, तो वह उसे नहीं करता, चाहे वह कितनी ही अच्छी क्यों न हो! वह कार्य करता है और अपने कार्य के अर्थ और प्रयोजन के अनुसार अपने कार्य के प्राप्तकर्ताओं और स्थान का चयन करता है। कार्य करते हुए वह पुराने नियमों से चिपका नहीं रहता, न ही वह पुराने सूत्रों का पालन करता है। इसके बजाय, वह अपने कार्य की योजना उसके मायने के अनुसार बनाता है। अंततः वह वास्तविक प्रभाव और प्रत्याशित लक्ष्य प्राप्त करेगा। यदि तुम आज इन बातों को नहीं समझते, तो इस कार्य का तुम पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर समस्त सृजित प्राणियों का प्रभु है

मानवीय धारणाओं के अनुसार तो मुझे किसी अच्छे देश में जन्म लेना होगा, यह दिखाने के लिए कि मैं ऊँची हैसियत का हूँ, यह दिखाने के लिए कि मेरा मोल बहुत ज्यादा है, और अपना सम्मान, पवित्रता और महानता दिखाने के लिए। अगर मैं किसी ऐसे स्थान पर पैदा हुआ होता जो मुझे पहचानता, किसी संभ्रांत परिवार में, और अगर मैं उच्च स्थिति और हैसियत का होता, तो मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया जाता। इससे मेरे कार्य को कोई लाभ नहीं होता, और क्या तब भी ऐसा महान उद्धार प्रकट किया जा सकता था? वे सभी लोग जो मुझे देखते, वे मेरे प्रति समर्पण करते, और वे गंदगी से प्रदूषित न होते। मुझे इस तरह के स्थान पर जन्म लेना चाहिए था। तुम लोग यही मानते हो। लेकिन इस बारे में सोचो : क्या परमेश्वर पृथ्वी पर आनंद लेने के लिए आया था, या कार्य करने के लिए? अगर मैं उस तरह के आसान, आरामदायक स्थान पर काम करता, तो क्या मैं अपनी पूरी महिमा हासिल कर सकता था? क्या मैं सभी सृजित प्राणियों को जीत सकता था? जब परमेश्वर पृथ्वी पर आया, तो वह संसार का नहीं था, और संसार का सुख भोगने के लिए वह देह नहीं बना था। जिस स्थान पर कार्य करना सबसे अच्छी तरह से उसके स्वभाव को प्रकट करता और जो सबसे अर्थपूर्ण होता, वह वही स्थान है, जहाँ वह पैदा हुआ। चाहे वह स्थल पवित्र हो या गंदा, और चाहे वह कहीं भी काम करे, वह पवित्र है। दुनिया में हर चीज़ उसके द्वारा बनाई गई थी, हालाँकि शैतान ने सब-कुछ भ्रष्ट कर दिया है। फिर भी, सभी चीजें अभी भी उसकी हैं; वे सभी चीजें उसके हाथों में हैं। वह अपनी पवित्रता प्रकट करने के लिए एक गंदे देश में आता है और वहाँ कार्य करता है; वह केवल अपने कार्य के लिए ऐसा करता है, अर्थात् वह इस दूषित भूमि के लोगों को बचाने के लिए ऐसा कार्य करने में बहुत अपमान सहता है। यह पूरी मानवजाति की खातिर, गवाही के लिए किया जाता है। ऐसा कार्य लोगों को परमेश्वर की धार्मिकता दिखाता है, और वह परमेश्वर की सर्वोच्चता प्रदर्शित करने में अधिक सक्षम है। उसकी महानता और शुचिता उन नीच लोगों के एक समूह के उद्धार के माध्यम से व्यक्त होती है, जिनका अन्य लोग तिरस्कार करते हैं। एक मलिन भूमि में पैदा होना यह बिल्कुल साबित नहीं करता कि वह दीन-हीन है; यह तो बस सभी सृजित प्राणियों को उसकी महानता और मानवजाति के लिए उसका सच्चा प्यार दिखाता है। जितना अधिक वह ऐसा करता है, उतना ही अधिक यह मनुष्य के लिए उसके शुद्ध प्रेम, उसके दोषरहित प्रेम को प्रकट करता है। परमेश्वर पवित्र और धर्मी है। यद्यपि वह एक गंदी भूमि में पैदा हुआ था, और यद्यपि वह उन लोगों के साथ रहता है जो गंदगी से भरे हुए हैं, ठीक वैसे ही जैसे यीशु अनुग्रह के युग में पापियों के साथ रहता था, फिर भी क्या उसका हर कार्य संपूर्ण मानवजाति के अस्तित्व की खातिर नहीं किया जाता? क्या यह सब इसलिए नहीं है कि मानवजाति महान उद्धार प्राप्त कर सके? दो हजार साल पहले वह कई वर्षों तक पापियों के साथ रहा। वह छुटकारे के लिए था। आज वह गंदे, नीच लोगों के एक समूह के साथ रह रहा है। यह उद्धार के लिए है। क्या उसका सारा कार्य तुम मनुष्यों के लिए नहीं है? यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह एक नाँद में पैदा होने के बाद कई सालों तक पापियों के साथ रहता और कष्ट उठाता? और यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह दूसरी बार देह में लौटकर आता, इस देश में पैदा होता जहाँ दुष्ट आत्माएँ इकट्ठी होती हैं, और इन लोगों के साथ रहता जिन्हें शैतान ने गहराई से भ्रष्ट कर रखा है? क्या परमेश्वर वफ़ादार नहीं है? उसके कार्य का कौन-सा भाग मानवजाति के लिए नहीं रहा है? कौन-सा भाग तुम लोगों की नियति के लिए नहीं रहा है? परमेश्वर पवित्र है—यह अपरिवर्तनीय है। वह गंदगी से प्रदूषित नहीं है, हालाँकि वह एक गंदे देश में आया है; इस सबका मतलब केवल यह हो सकता है कि मानवजाति के लिए परमेश्वर का प्रेम अत्यंत निस्वार्थ है और जो पीड़ा और अपमान वह सहता है, वह अत्यधिक है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ

चाहे तुम अमेरिकी हो, ब्रिटिश या फिर किसी अन्य देश के, तुम्हें अपनी राष्ट्रीयता की सीमाओं से बाहर कदम रखना चाहिए, अपनी अस्मिता के पार जाना चाहिए, और परमेश्वर के कार्य को एक सृजित प्राणी की पहचान से देखना चाहिए। इस तरह तुम परमेश्वर के पदचिह्नों को सीमाओं में नहीं बाँधोगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आजकल बहुत-से लोग इसे असंभव समझते हैं कि परमेश्वर किसी विशेष राष्ट्र में या कुछ निश्चित लोगों के बीच प्रकट होगा। परमेश्वर के कार्य का कितना गहन अर्थ है, और परमेश्वर का प्रकटन कितना महत्वपूर्ण है! मनुष्य की धारणाएँ और सोच भला उन्हें कैसे माप सकती हैं? और इसलिए मैं कहता हूँ, कि तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन की तलाश करने के लिए अपनी राष्ट्रीयता और जातीयता की धारणाओं को तोड़ देना चाहिए। केवल इसी प्रकार से तुम अपनी धारणाओं से बाध्य नहीं होगे; केवल इसी प्रकार से तुम परमेश्वर के प्रकटन का स्वागत करने के योग्य होगे। अन्यथा, तुम शाश्वत अंधकार में रहोगे, और कभी भी परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं करोगे।

परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति का परमेश्वर है। वह स्वयं को किसी भी राष्ट्र या लोगों की निजी संपत्ति नहीं मानता, बल्कि अपना कार्य अपनी बनाई योजना के अनुसार, किसी भी रूप, राष्ट्र या लोगों द्वारा बंधे बिना, करता जाता है। शायद तुमने इस रूप की कभी कल्पना नहीं की है, या शायद इस रूप के प्रति तुम्हारा दृष्टिकोण इनकार करने वाला है, या शायद वह देश, जहाँ परमेश्वर स्वयं को प्रकट करता है और वे लोग, जिनके बीच वह स्वयं को प्रकट करता है, ऐसे हैं, जिनके साथ सभी के द्वारा भेदभाव किया जाता है और वे पृथ्वी पर सर्वाधिक पिछड़े हुए हैं। लेकिन परमेश्वर के पास अपनी बुद्धि है। उसने अपने महान सामर्थ्य के साथ, और अपने सत्य और स्वभाव के माध्यम से, सचमुच ऐसे लोगों के समूह को प्राप्त कर लिया है, जो उसके साथ एक मन वाले हैं, और जिन्हें वह पूर्ण बनाना चाहता है—उसके द्वारा विजित समूह, जो सभी प्रकार के परीक्षणों, क्लेशों और उत्पीड़न को सहन करके, अंत तक उसका अनुसरण कर सकता है। परमेश्वर का प्रकटन, जो किसी राष्ट्र या रूप में सीमित नहीं है, उसका लक्ष्य उसे अपनी योजना के अनुसार कार्य पूरा करने में सक्षम बनाना है। यह वैसा ही है जैसे, जब परमेश्वर यहूदिया में देह बना, तब उसका लक्ष्य समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा करना था। फिर भी यहूदियों का मानना था कि परमेश्वर के लिए ऐसा करना असंभव है, और उन्हें यह असंभव लगता था कि परमेश्वर देह बन सकता है और प्रभु यीशु का रूप ग्रहण कर सकता है। उनका “असंभव” वह आधार बन गया, जिस पर उन्होंने परमेश्वर की निंदा और उसका विरोध किया, और जो अंततः इस्राएल को विनाश की ओर ले गया। आज कई लोगों ने उसी तरह की ग़लती की है। वे अपनी समस्त शक्ति के साथ परमेश्वर के आसन्न प्रकटन की घोषणा करते हैं, मगर साथ ही उसके प्रकटन की निंदा भी करते हैं; उनका “असंभव” परमेश्वर के प्रकटन को एक बार फिर उनकी कल्पना की सीमाओं के भीतर कैद कर देता है। और इसलिए मैंने कई लोगों को परमेश्वर के वचनों के आने के बाद जँगली और कर्कश हँसी का ठहाका लगाते देखा है। लेकिन क्या यह हँसी यहूदियों के तिरस्कार और ईशनिंदा से किसी भी तरह से भिन्न है? तुम लोग सत्य की उपस्थिति में श्रद्धावान नहीं हो, और सत्य के लिए तरसने की प्रवृत्ति तो तुम लोगों में बिल्कुल भी नहीं है। तुम बस इतना ही करते हो कि अंधाधुंध अध्ययन करते हो और पुलक भरी उदासीनता के साथ प्रतीक्षा करते हो। इस तरह से अध्ययन और प्रतीक्षा करने से तुम क्या हासिल कर सकते हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हें परमेश्वर से व्यक्तिगत मार्गदर्शन मिलेगा? यदि तुम परमेश्वर के कथनों को नहीं समझ सकते, तो तुम किस तरह से परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हो? जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य व्यक्त होता है, और वहाँ परमेश्वर की वाणी होगी। केवल वे लोग ही परमेश्वर की वाणी सुन पाएँगे, जो सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, और केवल इस तरह के लोग ही परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हैं। अपनी धारणाओं को जाने दो! स्वयं को शांत करो और इन वचनों को ध्यानपूर्वक पढ़ो। यदि तुम सत्य के लिए तरसते हो, तो परमेश्वर तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम उसकी इच्छा और उसके वचनों को समझोगे। “असंभव” के बारे में अपनी राय जाने दो! लोग किसी चीज़ को जितना अधिक असंभव मानते हैं, उसके घटित होने की उतनी ही अधिक संभावना होती है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमाओं के पार जाता है। जितना अधिक कुछ असंभव होता है, उतना ही अधिक उसमें सत्य होता है, जिसे खोजा जा सकता है; कोई चीज़ मनुष्य की धारणा और कल्पना से जितनी अधिक परे होती है, उसमें परमेश्वर की इच्छा उतनी ही अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भले ही वह स्वयं को कहीं भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसका सार उसके प्रकटन के स्थान या तरीके के आधार पर कभी नहीं बदलेगा। परमेश्वर के पदचिह्न चाहे कहीं भी हों, उसका स्वभाव वैसा ही बना रहता है, और चाहे परमेश्वर के पदचिह्न कहीं भी हों, वह समस्त मनुष्यजाति का परमेश्वर है, ठीक वैसे ही, जैसे कि प्रभु यीशु न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, बल्कि वह एशिया, यूरोप और अमेरिका के सभी लोगों का, और इससे भी अधिक, समस्त ब्रह्मांड का एकमात्र परमेश्वर है। तो आओ, हम परमेश्वर की इच्छा खोजें और उसके कथनों में उसके प्रकटन की खोज करें, और उसके पदचिह्नों के साथ तालमेल रखें! परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकटन साथ-साथ विद्यमान हैं, और उसका स्वभाव और पदचिह्न मनुष्यजाति के लिए हर समय खुले हैं। प्यारे भाइयो और बहनो, मुझे आशा है कि तुम लोग इन वचनों में परमेश्वर का प्रकटन देख सकते हो, एक नए युग में आगे बढ़ते हुए तुम उसके पदचिह्नों का अनुसरण करना शुरू कर सकते हो, और उस सुंदर नए स्वर्ग और पृथ्वी में प्रवेश कर सकते हो, जिसे परमेश्वर ने उन लोगों के लिए तैयार किया है, जो उसके प्रकटन का इंतजार करते हैं!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है

मैंने अपनी महिमा इस्राएल को दी और फिर उसे हटा लिया, और इस प्रकार इस्राएलियों और सभी मनुष्यों को पूरब में ले आया। मैं उन सभी को प्रकाश में ले आया हूँ, ताकि वे इसके साथ फिर से जुड़ सकें और इससे जुड़े रह सकें, और उन्हें इसकी खोज न करनी पड़े। जो लोग प्रकाश की खोज कर रहे हैं, उन्हें मैं फिर से प्रकाश देखने दूँगा और उस महिमा को देखने दूँगा जो मेरे पास इस्राएल में थी; मैं उन्हें यह देखने दूँगा कि मैं बहुत पहले एक सफेद बादल पर सवार होकर मनुष्यों के बीच आ चुका हूँ, मैं उन्हें असंख्य सफेद बादल और प्रचुर मात्रा में फलों के गुच्छे देखने दूँगा, और यही नहीं, मैं उन्हें इस्राएल के यहोवा परमेश्वर को भी देखने दूँगा। मैं उन्हें यहूदियों के गुरु, इच्छित मसीहा को देखने दूँगा, और अपना पूर्ण प्रकटन देखने दूँगा, जिन्हें युगों-युगों से राजाओं द्वारा सताया गया है। मैं संपूर्ण ब्रह्मांड पर कार्य करूँगा और मैं महान कार्य करूँगा, और अंत के दिनों में मनुष्य के सामने अपनी पूरी महिमा और अपने सभी कर्म प्रकट कर दूँगा। मैं अपना महिमामय मुखमंडल उसकी पूर्णता में उन लोगों को, जिन्होंने कई वर्षों से मेरी प्रतीक्षा की है और जो मुझे सफेद बादल पर सवार होकर आते हुए देखने के लिए लालायित रहे हैं, और उस इस्राएल को, जिसने मेरे एक बार फिर प्रकट होने की लालसा की है, और उस पूरी मनष्यजाति को दिखाऊँगा, जो मुझे कष्ट पहुँचाती हैं, ताकि सभी यह जान सकें कि मैंने बहुत पहले ही अपनी महिमा हटा ली है और उसे पूरब में ले आया हूँ, और वह अब यहूदिया में नहीं है। कारण, अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं!

पूरे ब्रह्मांड में मैं अपना कार्य कर रहा हूँ, और पूरब में असंख्य गर्जनाएँ निरंतर जारी हैं और सभी राष्ट्रों और संप्रदायों को झकझोर रही हैं। यह मेरी वाणी है, जो सभी मनुष्यों को वर्तमान में ले आई है। मैं अपनी वाणी से सभी मनुष्यों को जीत लेता हूँ, उन्हें इस धारा में बहाता हूँ और उनसे अपने आगे घुटने टेकवाता हूँ, क्योंकि मैंने बहुत पहले पूरी पृथ्वी से अपनी महिमा वापस लेकर उसे नए सिरे से पूरब में जारी किया है। भला कौन मेरी महिमा देखने के लिए लालायित नहीं होता? कौन बेसब्री से मेरे लौटने का इंतज़ार नहीं करता? किसे मेरे पुनः प्रकटन की प्यास नहीं है? कौन मेरी सुंदरता के लिए नहीं तरसता? कौन प्रकाश में नहीं आएगा? कौन कनान की समृद्धि नहीं देखेगा? किसे उद्धारकर्ता के लौटने की लालसा नहीं है? कौन उसकी आराधना नहीं करता, जो सामर्थ्य में महान है? मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं अपने चुने हुए लोगों के सामने आकर उनसे और अधिक वचन बोलूँगा, जैसे शक्तिशाली गर्जन जो पर्वतों और नदियों को हिला देता है। पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ। इस प्रकार, मेरे मुँह से निकले वचन मनुष्य का खजाना बन गए हैं, और सभी मनुष्य मेरे वचनों को सँजोते हैं। बिजली पूरब से चमकते हुए दूर पश्चिम तक जाती है। मेरे वचन ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य छोड़ना नहीं चाहता और साथ ही उनकी थाह भी नहीं ले पाता, फिर भी उनमें और अधिक आनंदित होता है। एक नवजात शिशु की तरह, सभी मनुष्य खुशी और आनंद से भरे हैं और मेरे आने की खुशी मनाते हैं। अपनी वाणी के माध्यम से मैं सभी मनुष्यों को अपने समक्ष ले आऊँगा। उसके बाद, मैं औपचारिक रूप से मनुष्यों की जाति में प्रवेश करूँगा, ताकि वे मेरी आराधना करने लगें। स्वयं द्वारा विकीर्ण महिमा और अपने मुँह से निकले वचनों से मैं ऐसा करूँगा कि सभी मनुष्य मेरे समक्ष आएँगे और देखेंगे कि बिजली पूरब से चमकती है और मैं भी पूरब में “जैतून के पर्वत” पर अवतरित हो चुका हूँ। वे देखेंगे कि मैं बहुत पहले से पृथ्वी पर मौजूद हूँ, अब यहूदियों के पुत्र के रूप में नहीं, बल्कि पूरब की बिजली के रूप में। क्योंकि बहुत पहले मेरा पुनरुत्थान हो चुका है, और मैं मनुष्यों के बीच से जा चुका हूँ, और फिर अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच पुनः प्रकट हुआ हूँ। मैं वही हूँ, जिसकी आराधना अब से असंख्य युगों पहले की गई थी, और मैं वह शिशु भी हूँ जिसे अब से असंख्य युगों पहले इस्राएलियों ने त्याग दिया था। इसके अलावा, मैं वर्तमान युग का संपूर्ण-महिमामय सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ! सभी मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामय मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरी संपूर्ण इच्छा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है और साथ ही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी : हर राष्ट्र मेरी आराधना करे, हर जिह्वा मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और हर मनुष्य मेरी अधीनता स्वीकार करे!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ गरजती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा

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परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने का बहुत महत्व है

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पूरब की ओर लाया है परमेश्वर अपनी महिमा

प्रकट हुए परमेश्वर जग के पूरब में महिमा लेकर

परमेश्वर के प्रकटन की खोज के लिए तुम्हें राष्ट्रीयता और जातीयता की धारणाओं को तोड़ना होगा

सत्य को स्वीकारने वाले ही परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं

पिछला: 15. धार्मिक जगत की धारणा कि: “प्रभु यीशु जब लौटेगा तो वह पुरुष होगा न कि महिला”

अगला: 17. धार्मिक जगत की धारणा कि: “पादरियों और एल्डरों को प्रभु ने स्थापित किया है”

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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