19. धार्मिक जगत की धारणा कि: “कैथोलिकवाद शास्त्रसम्मत कलीसिया है और कैथोलिक कलीसिया से अलग जाना प्रभु को धोखा देना है”

कैथोलिक लोग मानते हैं कि कैथोलिक धर्म का प्रचार प्रेरित ने किया था, और यह सर्वाधिक शास्त्र-सम्मत है। इसलिए, उनका मानना है कि जब परमेश्वर लौटकर आएगा, तो वह सबसे पहले कैथोलिक लोगों के सामने प्रकट होगा, ईसाइयों के सामने नहीं। अगर वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखेंगे, तो वे ईसाई कहलाएँगे और इस प्रकार परमेश्वर से विश्वासघात करेंगे।

बाइबल से उद्धृत परमेश्वर के वचन

“अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे” (यशायाह 2:2)

“आधी रात को धूम मची : ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो’” (मत्ती 25:6)

“देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ” (प्रकाशितवाक्य 3:20)

“मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं” (यूहन्ना 10:27)

“ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं” (प्रकाशितवाक्य 14:4)

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, प्रत्येक का अपना प्रमुख, या अगुआ है, और उनके अनुयायी संसार भर के देशों और सम्प्रदायों में सभी ओर फैले हुए हैं; लगभग प्रत्येक देश में, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, भिन्न-भिन्न धर्म हैं। फिर भी, संसार भर में चाहे कितने ही धर्म क्यों न हों, ब्रह्मांड के सभी लोग अंततः एक ही परमेश्वर के मार्गदर्शन के अधीन अस्तित्व में हैं, और उनका अस्तित्व धर्म-प्रमुखों या अगुवाओं द्वारा मार्गदर्शित नही है। कहने का अर्थ है कि मानवजाति किसी विशेष धर्म-प्रमुख या अगुवा द्वारा मार्गदर्शित नहीं है; बल्कि संपूर्ण मानवजाति को एक ही रचयिता के द्वारा मार्गदर्शित किया जाता है, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का और मानवजाति का भी सृजन किया है—यह एक तथ्य है। यद्यपि संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, किंतु वे कितने ही महान क्यों न हों, वे सभी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन अस्तित्व में हैं और उनमें से कोई भी इस प्रभुत्व के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। मानवजाति का विकास, समाज का आगे बढ़ना, प्राकृतिक विज्ञानों का विकास—प्रत्येक सृष्टिकर्ता की व्यवस्थाओं से अविभाज्य है और यह कार्य ऐसा नहीं है जो किसी धर्म-प्रमुख द्वारा किया जा सके। धर्म-प्रमुख मात्र किसी धर्म विशेष के अगुआ हैं, और वे परमेश्वर का, या उसका जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों को रचा है, प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। धर्म-प्रमुख पूरे धर्म के भीतर सभी का नेतृत्व कर सकते हैं, परंतु वे स्वर्ग के नीचे के सभी सृजित प्राणियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं—यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत तथ्य है। एक धर्म-प्रमुख मात्र अगुआ है, और वह परमेश्वर (सृष्टिकर्ता) के समकक्ष खड़ा नहीं हो सकता। सभी चीजें रचयिता के हाथों में हैं, और अंत में वे सभी रचयिता के हाथों में लौट जाएँगी। मानवजाति परमेश्वर द्वारा बनाई गई थी, और किसी का धर्म चाहे कुछ भी हो, प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएगा—यह अपरिहार्य है। केवल परमेश्वर ही सभी चीज़ों में सर्वोच्च है, और सभी सृजित प्राणियों में उच्चतम शासक को भी उसके प्रभुत्व के अधीन लौटना होगा। मनुष्य की हैसियत चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हो, लेकिन वह मनुष्य मानवजाति को किसी उपयुक्त गंतव्य तक नहीं ले जा सकता, और कोई भी सभी चीजों को उनके प्रकार के आधार पर वर्गीकृत करने में सक्षम नहीं है। स्वयं यहोवा ने मानवजाति की रचना की और प्रत्येक को उसके प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया, और जब अंत का समय आएगा तो वह तब भी, सभी चीजों को उनकी प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत करते हुए, अपना कार्य स्वयं ही करेगा—यह कार्य परमेश्वर के अलावा और किसी के द्वारा नहीं किया जा सकता है। आरंभ से आज तक किए गए कार्य के सभी तीन चरण स्वयं परमेश्वर के द्वारा किए गए थे और एक ही परमेश्वर के द्वारा किए गए थे। कार्य के तीन चरणों का तथ्य परमेश्वर की समस्त मानवजाति की अगुआई का तथ्य है, एक ऐसा तथ्य जिसे कोई नकार नहीं सकता। कार्य के तीन चरणों के अंत में, सभी चीजें उनके प्रकारों के आधार पर वर्गीकृत की जाएँगी और परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएँगी, क्योंकि संपूर्ण ब्रह्मांड में केवल इसी एक परमेश्वर का अस्तित्व है, और कोई दूसरे धर्म नहीं हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं। अब तुम्हारे लिए यह समझना उचित है कि प्रथम चरण से लेकर आज तक का समस्त कार्य एक ही परमेश्वर का कार्य है, एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)

यहोवा के कार्य के बाद, यीशु मनुष्यों के मध्य अपना कार्य करने के लिए देहधारी हो गया। उसका कार्य अलग से किया गया कार्य नहीं था, बल्कि यहोवा के कार्य के आधार पर किया गया था। यह कार्य एक नए युग के लिए था, जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था का युग समाप्त करने के बाद किया था। इसी प्रकार, यीशु का कार्य समाप्त हो जाने के बाद परमेश्वर ने अगले युग के लिए अपना कार्य जारी रखा, क्योंकि परमेश्वर का संपूर्ण प्रबंधन सदैव आगे बढ़ रहा है। जब पुराना युग बीत जाता है, तो उसके स्थान पर नया युग आ जाता है, और एक बार जब पुराना कार्य पूरा हो जाता है, तो परमेश्वर के प्रबंधन को जारी रखने के लिए नया कार्य शुरू हो जाता है। यह देहधारण परमेश्वर का दूसरा देहधारण है, जो यीशु का कार्य पूरा होने के बाद हुआ है। निस्संदेह, यह देहधारण स्वतंत्र रूप से घटित नहीं होता; व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के बाद यह कार्य का तीसरा चरण है। हर बार जब परमेश्वर कार्य का नया चरण आरंभ करता है, तो हमेशा एक नई शुरुआत होती है और वह हमेशा एक नया युग लाता है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव, उसके कार्य करने के तरीके, उसके कार्य के स्थल, और उसके नाम में भी परिवर्तन होते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के लिए नए युग में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना कठिन होता है। परंतु इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य द्वारा उसका कितना विरोध किया जाता है, परमेश्वर सदैव अपना कार्य करता रहता है, और सदैव समस्त मानवजाति का प्रगति के पथ पर मार्गदर्शन करता रहता है। जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना

आज के कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबंधन योजना का कार्य आगे बढ़ा है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? क्योंकि आज का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए गए कार्य की प्रगति है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं और श्रृंखला की हर कड़ी निकटता से अगली कड़ी से जुड़ी है। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? मान लो, यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूस पर चढ़ाए जाने का कार्य फिर से करना होता, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को फिर से करना पड़ता। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि युग आगे बढ़ गया है, और कार्य के स्तर को पहले से अधिक ऊँचा कर दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। परमेश्वर का कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण कोई नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबंधन योजना माना जा सकता है। इस चरण का कार्य अनुग्रह के युग के कार्य की नींव पर किया जाता है। यदि कार्य के ये दो चरण जुड़े न होते, तो इस चरण में क्रूस पर चढ़ाए जाने का कार्य क्यों नहीं दोहराया गया? मैं मनुष्य के पापों को अपने ऊपर क्यों नहीं लेता हूँ, इसके बजाय सीधे उनका न्याय करने और उन्हें ताड़ना देने क्यों आता हूँ? अब जबकि मेरा आगमन पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आए बिना हुआ है, अगर मनुष्य का न्याय करने और उन्हें ताड़ना देने का मेरा कार्य क्रूसीकरण के बाद नहीं होता, तो मैं मनुष्य को ताड़ना देने के योग्य नहीं होता। मैं यीशु से एकाकार हूँ, बस इसी कारण मैं प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को ताड़ना देने और उसका न्याय करने के लिए आता हूँ। कार्य का यह चरण पूरी तरह से पिछले चरण पर ही निर्मित है। यही कारण है कि सिर्फ ऐसा कार्य ही चरण-दर-चरण मनुष्य का उद्धार कर सकता है। यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारे देह एक-दूसरे से जुड़े नहीं है, किन्तु हमारा आत्मा एक ही है; यद्यपि हमारे कार्य की विषयवस्तु और हम जो कार्य करते हैं, वे एक नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम समान हैं; हमारे देह भिन्न रूप धारण करते हैं, लेकिन यह युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की भिन्न आवश्यकताओं के कारण है; हमारी सेवकाई एक जैसी नहीं है, इसलिए जो कार्य हम आगे लाते हैं और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं, वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और समझता है वह अतीत के समान नहीं है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनके देह के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे हैं, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु फिर भी उनके आत्मा एक ही हैं। यद्यपि उनके देह किसी प्रकार के रक्त या भौतिक संबंध साझा नहीं करते, पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में परमेश्वर के देहधारण हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने

चूँकि मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए उसे परमेश्वर के पदचिह्नों का, कदम-दर-कदम, निकट से अनुसरण करना चाहिए; और उसे “जहाँ कहीं मेमना जाता है, उसका अनुसरण करना” चाहिए। केवल ऐसे लोग ही सच्चे मार्ग को खोजते हैं, केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को जानते हैं। जो लोग शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का ज्यों का त्यों अनुसरण करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा बाहर निकाल दिया गया है। प्रत्येक समयावधि में परमेश्वर नया कार्य आरंभ करेगा, और प्रत्येक अवधि में मनुष्य के बीच एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सत्यों का ही पालन करता है कि “यहोवा ही परमेश्वर है” और “यीशु ही मसीह है,” जो ऐसे सत्य हैं, जो केवल उनके अपने युग पर ही लागू होते हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में अक्षम रहेगा। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करता हो, मनुष्य बिना किसी संदेह के अनुसरण करता है, और वह निकट से अनुसरण करता है। इस तरह, मनुष्य पवित्र आत्मा द्वारा कैसे बाहर निकाला जा सकता है? परमेश्वर चाहे जो भी करे, जब तक मनुष्य निश्चित है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, और बिना किसी आशंका के पवित्र आत्मा के कार्य में सहयोग करता है, और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने का प्रयास करता है, तो उसे कैसे दंड दिया जा सकता है? परमेश्वर का कार्य कभी नहीं रुका है, उसके कदम कभी नहीं थमे हैं, और अपने प्रबंधन-कार्य की पूर्णता से पहले वह सदैव व्यस्त रहा है और कभी नहीं रुकता। किंतु मनुष्य अलग है : पवित्र आत्मा के कार्य का थोड़ा-सा अंश प्राप्त करने के बाद वह उसके साथ इस तरह व्यवहार करता है मानो वह कभी नहीं बदलेगा; जरा-सा ज्ञान प्राप्त करने के बाद वह परमेश्वर के नए कार्य के पदचिह्नों का अनुसरण करने के लिए आगे नहीं बढ़ता; परमेश्वर के कार्य का थोड़ा-सा ही अंश देखने के बाद वह तुरंत ही परमेश्वर को लकड़ी की एक विशिष्ट आकृति के रूप में निर्धारित कर देता है, और यह मानता है कि परमेश्वर सदैव उसी रूप में बना रहेगा जिसे वह अपने सामने देखता है, कि यह अतीत में भी ऐसा ही था और भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा; सिर्फ एक सतही ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य इतना घमंडी हो जाता है कि स्वयं को भूल जाता है और परमेश्वर के स्वभाव और अस्तित्व के बारे में बेहूदा ढंग से घोषणा करने लगता है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं होता; और पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण के बारे में निश्चित हो जाने के बाद, परमेश्वर के नए कार्य की घोषणा करने वाला यह व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, मनुष्य उसे स्वीकार नहीं करता। ये ऐसे लोग हैं, जो पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार नहीं कर सकते; वे बहुत रूढ़िवादी हैं और नई चीजों को स्वीकार करने में अक्षम हैं। ये वे लोग हैं, जो परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं, किंतु परमेश्वर को अस्वीकार भी करते हैं। मनुष्य का मानना है कि इस्राएलियों का “केवल यहोवा में विश्वास करना और यीशु में विश्वास न करना” ग़लत था, किंतु अधिकतर लोग ऐसी ही भूमिका निभाते हैं, जिसमें वे “केवल यहोवा में विश्वास करते हैं और यीशु को अस्वीकार करते हैं” और “मसीहा के लौटने की लालसा करते हैं, किंतु उस मसीहा का विरोध करते हैं जिसे यीशु कहते हैं।” तो कोई आश्चर्य नहीं कि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण को स्वीकार करने के पश्चात् अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन जीते हैं, और अभी भी परमेश्वर के आशीष प्राप्त नहीं करते। क्या यह मनुष्य की विद्रोहशीलता का परिणाम नहीं है? दुनिया भर के सभी ईसाई, जिन्होंने आज के नए कार्य के साथ कदम नहीं मिलाया है, यह मानते हुए कि परमेश्वर उनकी हर इच्छा पूरी करेगा, इस उम्मीद से चिपके रहते हैं कि वे भाग्यशाली होंगे। फिर भी वे निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि क्यों परमेश्वर उन्हें तीसरे स्वर्ग तक ले जाएगा, न ही वे इस बारे निश्चित हैं कि कैसे यीशु उनका स्वागत करने के लिए सफेद बादल पर सवार होकर आएगा, और वे पूर्ण निश्चय के साथ यह तो बिल्कुल नहीं कह सकते कि यीशु वास्तव में उस दिन सफेद बादल पर सवार होकर आएगा या नहीं, जिस दिन की वे कल्पना करते हैं। वे सभी चितित और हैरान हैं; वे स्वयं भी नहीं जानते कि परमेश्वर उनमें से प्रत्येक को ऊपर ले जाएगा या नहीं, जो विभिन्न समूहों के थोड़े-से मुट्ठी भर लोग हैं, जो हर पंथ से आते हैं। परमेश्वर द्वारा अभी किया जाने वाला कार्य, वर्तमान युग, परमेश्वर की इच्छा—इनमें से किसी भी चीज की उन्हें कोई समझ नहीं है, और वे अपनी उँगलियों पर दिन गिनने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते। जो लोग बिल्कुल अंत तक मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं, केवल वे ही अंतिम आशीष प्राप्त कर सकते हैं, जबकि वे “चतुर लोग”, जो बिल्कुल अंत तक अनुसरण करने में असमर्थ हैं, किंतु विश्वास करते हैं कि उन्होंने सब-कुछ प्राप्त कर लिया है, वे परमेश्वर के प्रकटन को देखने में असमर्थ हैं। वे सभी विश्वास करते हैं कि वे पृथ्वी पर सबसे चतुर व्यक्ति हैं, और वे बिल्कुल अकारण ही परमेश्वर के कार्य के लगातार जारी विकास को काटकर छोटा करते हैं, और पूर्ण निश्चय के साथ विश्वास करते प्रतीत होते हैं कि परमेश्वर उन्हें स्वर्ग तक ले जाएगा, वे जो कि “परमेश्वर के प्रति अत्यधिक वफादार हैं, परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, और परमेश्वर के वचनों का पालन करते हैं।” भले ही उनमें परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों के प्रति “अत्यधिक वफादारी” हो, फिर भी उनके वचन और करतूतें अत्यंत घिनौनी हैं क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य का विरोध करते हैं, और छल और दुष्टता करते हैं। जो लोग बिल्कुल अंत तक अनुसरण नहीं करते, जो पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम मिलाकर नहीं चलते, और जो केवल पुराने कार्य से चिपके रहते हैं, वे न केवल परमेश्वर के प्रति वफादारी हासिल करने में असफल हुए हैं, बल्कि इसके विपरीत, वे ऐसे लोग बन गए हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं, ऐसे लोग बन गए हैं जिन्हें नए युग द्वारा ठुकरा दिया गया है, और जिन्हें दंड दिया जाएगा। क्या उनसे भी अधिक दयनीय कोई है? अनेक लोग तो यहाँ तक विश्वास करते हैं कि जो लोग प्राचीन व्यवस्था को ठुकराते हैं और नए कार्य को स्वीकार करते हैं, वे सभी विवेकहीन हैं। ये लोग, जो केवल “विवेक” की बात करते हैं और पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते, अंततः अपने ही विवेक द्वारा अपने भविष्य की संभावनाओं को कटवाकर छोटा कर लेंगे। परमेश्वर का कार्य सिद्धांत का पालन नहीं करता, और भले ही वह उसका अपना कार्य हो, फिर भी परमेश्वर उससे चिपका नहीं रहता। जिसे नकारा जाना चाहिए, उसे नकारा जाता है, जिसे हटाया जाना चाहिए, उसे हटाया जाता है। फिर भी मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के सिर्फ एक छोटे-से भाग को ही पकड़े रहकर स्वयं को परमेश्वर से शत्रुता की स्थिति में रख लेता है। क्या यह मनुष्य की बेहूदगी नहीं है? क्या यह मनुष्य की अज्ञानता नहीं है? परमेश्वर के आशीष प्राप्त न करने के डर से लोग जितना अधिक भयभीत और अति-सतर्क होते हैं, उतना ही अधिक वे और बड़े आशीष प्राप्त करने और अंतिम आशीष पाने में अक्षम होते हैं। जो लोग दासों की तरह व्यवस्था का पालन करते हैं, वे सभी व्यवस्था के प्रति अत्यंत वफादारी का प्रदर्शन करते हैं, और जितना अधिक वे व्यवस्था के प्रति ऐसी वफादारी का प्रदर्शन करते हैं, उतना ही अधिक वे ऐसे विद्रोही होते हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। क्योंकि अब राज्य का युग है, व्यवस्था का युग नहीं, और आज के कार्य और अतीत के कार्य को एक जैसा नहीं बताया जा सकता, न ही अतीत के कार्य की तुलना आज के कार्य से की जा सकती है। परमेश्वर का कार्य बदल चुका है, और मनुष्य का अभ्यास भी बदल चुका है; वह व्यवस्था को पकड़े रहना या सलीब को सहना नहीं है, इसलिए, व्यवस्था और सलीब के प्रति लोगों की वफादारी को परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

जब परमेश्वर के प्रबंधन का संपूर्ण कार्य समाप्ति के निकट होगा, तो परमेश्वर प्रत्येक वस्तु को उसके प्रकार के आधार पर श्रेणीबद्ध करेगा। मनुष्य रचयिता के हाथों से रचा गया था, और अंत में वह मनुष्य को पूरी तरह से अपने प्रभुत्व में ले लेगा; कार्य के तीन चरणों का यही निष्कर्ष है। अंत के दिनों में कार्य का चरण और इस्राएल एवं यहूदा में पिछले दो चरण, संपूर्ण ब्रह्मांड में परमेश्वर के प्रबंधन की योजना के हिस्से हैं। इसे कोई नकार नहीं सकता है, और यह परमेश्वर के कार्य का तथ्य है। यद्यपि लोगों ने इस कार्य के बहुत-से हिस्से का अनुभव नहीं किया है या इसके साक्षी नहीं हैं, परंतु तथ्य तब भी तथ्य ही हैं और इसे किसी भी मनुष्य के द्वारा नकारा नहीं जा सकता है। ब्रह्मांड के हर देश के लोग जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे सभी कार्य के इन तीनों चरणों को स्वीकार करेंगे। यदि तुम कार्य के किसी एक विशेष चरण को ही जानते हो, और कार्य के अन्य दो चरणों को नहीं समझते हो, अतीत में परमेश्वर द्वारा किए गए कार्यों को नहीं समझते हो, तो तुम परमेश्वर के प्रबंधन की समस्त योजना के संपूर्ण सत्य के बारे में बात करने में असमर्थ हो, और परमेश्वर के बारे में तुम्हारा ज्ञान एक-पक्षीय है, क्योंकि तुम परमेश्वर को जानते या समझते नहीं हो, और इसलिए तुम परमेश्वर की गवाही देने के लिए उपयुक्त नहीं हो। इन चीज़ों के बारे में तुम्हारा वर्तमान ज्ञान चाहे गहरा हो या सतही, अंत में, तुम लोगों के पास ज्ञान होना चाहिए, और तुम्हें पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहिए, और सभी लोग परमेश्वर के कार्य की संपूर्णता को देखेंगे और उसके प्रभुत्व के अधीन समर्पित होंगे। इस कार्य के अंत में, सभी धर्म एक हो जाएँगे, सभी सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएँगे, सभी सृजित प्राणी एक ही सच्चे परमेश्वर की आराधना करेंगे, और सभी दुष्ट धर्म नष्ट हो जाएँगे और फिर कभी भी प्रकट नहीं होंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

संबंधित चलचित्र अंश

एक रूढ़िवादी कलीसिया में क्या कोई प्रभु का स्वागत कर सकता है?

संबंधित भजन

सभी चीज़ें परमेश्वर के अधिकार-क्षेत्र के अधीन होंगी

सभी प्राणी सर्जक के प्रभुत्व में लौटेंगे

पिछला: 18. धार्मिक जगत की धारणा कि: “पोप पृथ्वी पर परमेश्वर का प्रतिनिधि है और प्रभु जब वापस आएंगे तो वह इस बात को सबसे पहले पोप पर प्रकट करेंगे”

अगला: 20. धार्मिक जगत की धारणा कि: “अंतिम दिनों में महान श्वेत सिंहासन का न्याय अच्छे लोगों को पुरस्कृत करने और दुष्टों को दंडित करने से संबंधित है, यह उद्धार नहीं है”

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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