209 न्याय से गुजरने के बाद उपजा पछतावा
1
मसीह के वचनों के न्याय से गुजरने के बाद मैं भाव-विह्वल हो रहा हूँ।
परमेश्वर का हर वचन सत्य है, जो इंसान की भ्रष्टता के सत्य की बात करता है।
अपने कृत्यों और व्यवहार पर आत्म-मंथन करके मैं पश्चाताप से भर गया हूँ।
मैं अहंकारी, दंभी, स्वार्थी और धोखेबाज हूँ, मैंने जरा-सी भी इंसानियत कहाँ दिखाई है?
परमेश्वर के न्याय के बिना, मैं तब भी अपने-आपको अच्छा मानता रहूँगा।
यह केवल उसके न्याय और प्रकाशन की वजह से है कि मैं जाग गया हूँ,
और मैं अब अपनी भ्रष्टता की गहराई को देख रहा हूँ और यह भी कि मुझमें चेतना और तर्कशीलता नहीं है।
परमेश्वर के वचन मुझे सत्य का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करते हैं और उसे सुकून देते हैं।
2
परमेश्वर ने बहुत से सत्य अभिव्यक्त किए हैं; उसकी इच्छा साक्षात प्रकट हो चुकी है।
मुझे अपने विद्रोहीपन से घृणा है : भले ही मैं सत्य को स्पष्ट रूप से जानता हूँ, मैं इसका अभ्यास नहीं करता हूँ।
मैं अपने कृत्यों पर मनन करता हूँ, जो शैतानी दर्शन से भरे हुए हैं,
हमेशा अपने-आपको बहुत अच्छा समझते हुए मैं न्याय और ताड़ना से बचता रहा हूँ।
मैं बार-बार, जिद्दी और विद्रोही बना रहा हूँ, और परमेश्वर का दिल तोड़ता रहा हूँ।
निपटारे और काट-छांट के बाद, मैंने आखिर पूरी तरह से समर्पण कर दिया है।
मुझे नहीं पता कि परमेश्वर के प्रति समर्पित होना इतना कठिन क्यों है।
इंसान के विद्रोह की जड़ में आखिर क्या है?
परमेश्वर द्वार निरंतर किए गए न्यायों ने मुझे बचाया है,
और सिर्फ अब मैं भ्रष्ट मानव जाति को बचाने की मुश्किल को समझ पाया हूँ।
परमेश्वर का न्याय और ताड़ना इंसान के लिए अत्यंत लाभकारी हैं;
परीक्षण और शुद्धिकरण लोगों को खुद को सचमुच जानने का अवसर देते हैं।
परमेश्वर के आशीषों और अनुग्रह से ही हम उसके कार्य का अनुभव कर पाते हैं।